Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३
४१
तथाप्रकारमशनं वा ४ लाभे सति न प्रतिगृण्हीयात् ।
पदार्थ- से भिक्खू वा वह साधु वा साध्वी । जाव समाणे- यावत् गृह में प्रवेश करता हुआ। से जं पुण- फिर यह । जाणिज्जा - जाने । असणं वा - अशनादि चतुर्विध आहार। एसणिज्जे सिया-क्या एषणीय है अथवा | अणेसणिज्जे सिया- अनेषणीय है। वितिगिंच्छसमावन्नेण इस प्रकार की विचिकित्साआशंका युक्त। अप्पाणेण - आत्मा से । असमाहडाए लेसाए - यह आहार अशुद्ध है इस प्रकार की लेश्या से । तहप्पगार- उक्त प्रकार का असणं वा ४ अशनादिक चतुर्विध आहार । लाभे संते- मिलने पर भी । नो पडिग्गाहिज्जा ग्रहण न करे ।
मूलार्थ - गृहस्थ के घर में गया हुआ साधु वा साध्वी अशनादि चतुर्विध आहार को जाने कि यह आहार एषणीय है या अनेषणीय ? यदि इस प्रकार की विचिकित्सा - आशंका या लेश्या उत्पन्न होने पर कि यह आहार अशुद्ध है वह उस आहार को मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
हिन्दी विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु गृहस्थ के घर में आहार आदि के लिए प्रवेश करते ही देखे कि मुझे दिया जाने वाला आहार एषणीय है या नहीं । यदि उसे उस आहार की निर्दोषता में सन्देह हो तो उसे वह आहार नहीं लेना चाहिए। क्योंकि उस आहार के प्रति मन में सदोषता का संशय उत्पन्न होने पर उस संशय के दूर हुए बिना वह उस आहार को ग्रहण कर लेता है तो वह संकल्प-विकल्प मे उलझ जाता है और उसके उस मानसिक चिन्तन का प्रभाव साधना पर पड़ता है। इस तरह उसकी आध्यात्मिक साधना का प्रवाह कुछ देर के लिए रुक जाता है या दूषित सा हो जाता है । अतः 'साधु को आहार के सदोष होने की शंका हो जाने पर उसे उस आहार को ग्रहण ही नहीं करना चाहिए । • अब गच्छ से बाहर रहे हुए जिनकल्पी आदि मुनियों को आहार आदि के लिए कैसे जाना चाहिए इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम् - से भिक्खू० गाहावइकुलं पविसिउकामे सव्वं भण्डगमायाए गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज्ज वा ।
सेभिक्खू वा २ बहिया विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा सव्वं भंडगमायाए बहिया विहारभूमिं वा वियारभूमिं वा निक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा ।
से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥१९॥
छाया - स भिक्षुः गृहपतिकुलं प्रवेष्टकामः सर्वं भण्डकमादाय गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया प्रविशेद् वा निष्क्रामेद् वा, स भिक्षुर्वा० २ बहि - विहारभूमिं वा विचारभूमिं वा निष्क्रमन् वा प्रविशन् वा सर्वं भंडकमादाय बहिः विहारभूमिं वा विचारभूमिं वा निष्क्रामेद् वा प्रविशेद् वा । स भिक्षुर्वा २ ग्रामानुग्रामं गच्छन् सर्वंभण्डकमादाय ग्रामानुग्रामं गच्छेद् ।