Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३ पर एक सूत का वस्त्र भी रख सकते हैं। इस तरह ५ उपकरण हो गए और यदि किसी जिनकल्पी मुनि के हाथों की अंजली (जिन कल्पी मुनि हाथ की अंजली बनाकर उसी में आहार करते हैं) में छिद्र पड़ते हों तो उससे सब्जी, दूध, पानी आदि के टपक पड़ने से अयतना न हो इस लिए वे एक पात्र रखते हैं और पात्र के साथ उन्हें सात उपकरण रखने होते हैं। इस तरह जिनकल्पी मुनि के जघन्य २ और उत्कृष्ट १२ उपकरण कहे गए हैं । परन्तु स्थविरकल्पी मुनि के पास इससे अधिक उपकरण होते हैं। प्रश्नव्याकरण सूत्र में १४ उपकरण गिनाए गए हैं। निशीथ सूत्र में दण्ड, लाठी, अवलेहमी, बांस का खपाट और सूत की रस्सी एवं चिल्मिलिका (मच्छरदानी) रखने का उल्लेख है । व्यवहार सूत्र में पात्र रखने का उल्लेख है और स्थविरकल्पी के छत्र आदि उपकरणों का उल्लेख भी किया गया है। बृहत्कल्प सूत्र में साध्वी को मूत्र त्याग के लिए एक पात्र रखने की विशेष आज्ञा दी गई है। आचाराङ्ग सूत्र में आर्या (साध्वी) के लिए ४ चादर रखने का विधान है। बृहत्कल्प सूत्र में साध्वी को साड़ी के भीतर चोलपट्टक (जांघिया) रखने की आज्ञा भी दी गई है। इस तरह स्थविरकल्पी के पास १४ से भी अधिक उपकरण होते हैं, अतः उन्हें बाहर आहार आदि को जाते समय सदा साथ ले जाना कठिन है। परन्तु, जिनकल्पी के पास थोड़े उपकरण होने के कारण वह उन्हें अपने साथ ले जा सकता है। इस अपेक्षा से यहां जिन कल्पी का प्रसंग ही उचित प्रतीत होता है।
___वृत्तिकार ने लिखा है कि. गच्छ के अन्दर एवं गच्छ के बाहर रहा हुआ साधु अपने स्थान से बाहर जाते समय देखे कि वर्षा आ तो नहीं रही है। यदि वर्षा हो रही हो तो जिनकल्पी मुनि को किसी भी हालत में बाहर नहीं जाना चाहिए। क्योंकि वह ६ महीने तक पुरीष (टट्टी-पेशाब) को रोकने में समर्थ है। परन्तु, स्थविरकल्पी मुनि मल-मूत्र की बाधा होने पर उसका त्याग करने के लिए जा सकता है। परन्तु ऐसे समय में वह सभी उपकरण साथ लेकर न जाए।
१ पात्रं पात्रबन्धः पात्रस्थापनं च पात्रकेसरिका।
पटलानि रजस्त्राणंच गोच्छकः पात्रनिर्योगः।आचारांग वृत्ति।
२ जंपि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पगारंमि समुप्पन्ने, वायाहिय पित्तसिंभिअइरित्तकुविय; - तह सण्णिवाय जातेव उदयपत्ते उजलबलविउलकक्खड पगाढ़ दुक्खे, असुभकडुयफरुसचंडफलविवागो महब्भयजीवियंतकरणे, सव्यसरीरपरितावणकरणे न कप्पइ- तारिसेवि तह अप्पणो परस्स व ओसहभेसजं, भत्तपाणं च तंपि सण्णिहिं कयं।९। जंपिय-समणस्स सुविहियस्स तओ पडिग्गहधारिस्स भवइ, भायणभण्डोवहिउवगरणं पडिग्गहो, पायबंधणं पायकेसरिया, पायट्ठवणं च पडलाइं, तिण्णि व रयत्ताणं च, गोच्छओ तिण्णि व पच्छाका रयहरणं चोलपट्टगमुहणंतगमादियं।
-प्रश्न व्याकरण सूत्र ५ वां संवरद्वार। निशीथ सूत्र १,४१। निशीथ सूत्र १,१५। व्यवहार सूत्र, उद्देशक २। कप्पड़ निग्गंथीणं अंतोलित्तयं घडिमित्तयं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा। - बृहत्कल्प सूत्र, १,१,६। आचारांग सूत्र, २, ४,२, स्थानांग सूत्र- स्थान ४। कप्पइ निगांथीणं ओग्गहणंतगं वा ओग्गहणपट्टगं वा धारेत्तए वा परिहरित्तए वा।
-बृहत्कल्प सूत्र ३,१२। आचारांग सूत्र वृत्ति।
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