Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३ संखडिप्रतिज्ञयां न अभिसन्धारयेत् गमनाय, केवली ब्रूयात्-आदानमेतत् आकीर्णावमा वा संखडिमनुप्रविशतः पादेन वा पादः आक्रान्तपूर्वो भवेत्, हस्तेन वा हस्तः, संचालित पूर्वो भवति, पात्रेण वा पात्रं आपतितपूर्वं भवति, शिरसा वा शिरः संघटितपूर्वं भवति, कायेन वा कायः संक्षोभितपूर्वो भवति, दण्डेन वा अस्थना वा मुष्टिना वा लोष्ठेन वा कपालेन वा अभिहतपूर्वो वा भवति, शीतोदकेन वा उत्सिक्तपूर्वे भवति, रजसा वा परिघर्षितपूर्वो भवति, अनेषणीयेन वा परिभुक्तपूर्वो भवति, अन्यस्मै वा दीयमानं प्रतिग्राहितपूर्वो भवति, तस्मात् स संयतः निर्ग्रन्थः तथाप्रकारमाकीर्णामवमां संखडिं संखडिप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेद् गमनाय।
पदार्थ-से-वह।भिक्खूवा-भिक्षु-साधुअथवा साध्वी।से जंपुण-जो फिर । जाणिजाजाने। गामं वा-ग्राम में। जाव-यावत्। रायहाणिं वा-राजधानी में। खलु-निश्चय ही। इमंसि-इस। गामंसिग्राम में। जाव-यावत्। रायहाणिंसि वा-राजधानी में। संखडी सिया-संखडि है। तंपि य-उस । गामं वाग्राम में। जाव-यावत्। रायहाणिं वा-राजधानी में। संखडिं-संखडि को।संखडिपडियाए-संखडि की प्रतिज्ञा से। गमणाए-उस ओर जाने का। नो अभिसंधारिज्जा-संकल्प न करे। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं कि।आयाणमेयं-यह संखडिगमन कर्म के आने का मार्ग है। आइन्ना-परिव्राजकादि से आकीर्ण। अवमा-और जिसमें थोड़े व्यक्तियों के लिए भोजन बनाया गया हो तथा भिखारी अधिक हों ऐसी हीन। संखडिं-संखडि में। अणुपविस्समाणस्स-प्रवेश करते समय। पाएण वा पाए-परस्पर पैर से पैर। अक्कंतपुव्वे-प्रथम आक्रान्त। भवइ-होता है। हत्थेण वा हत्थे-हाथ से हाथ का। संचालियपुव्वे भवइ-संचालन होता है। पाएण वा पाए-पात्र से पात्र का।आवडियपुव्वे भवइ-संघर्षण होता है। सीसेण वा सीसे-शिर से शिर का।संघट्टियपुव्वे भवइ-संघटन होता है। काएण वा काए-शरीर से शरीर का। संखोभियपुव्वे भवइ-संक्षोभ होता है फिर शरीर के पारस्परिक संघटन से कलह उत्पन्न होने की संभावना है जिस से वे चरकादि भिक्षुगण आपस में। दंडेण वा-दण्ड से। अट्ठीण वा-अस्थि से। मुट्ठीण वा-मुष्टी से। लेलुणा वा-पत्थर से। कवालेण वामिट्ठी के ढेलों से लड़ेंगे।अभिहयपुव्वे भवइ-इससे एक दूसरा अभिहत होगा-एक दूसरे को अभिघात पहुंचेगा अथवा। सीओदएण वा-शीतोदक से-शीतल जल से। उस्सित्तपुव्वे भवइ-एक दूसरे को सींचेगा, तथा। रयसा वा-रज से-मिट्टी से। परिघट्टीसियपुव्वे भवइ-परिघर्षित करेगो ये सब दोष उस संखडि में जाने से उत्पन्न हो सकते हैं जिस में स्थान कम हो और जन संख्या अधिक हो।अब आगे हीन संखडि में जाने से उत्पन्न होने वाले दोषों का उल्लेख करते हैं।
अणेसणिजे वा-अनेषणीय आहार। परिभुत्तपुव्वे भवइ-भोगने वाला होगा। अन्नेसिं वा दिजमाणे -अन्य के लिए देने को उत्सुक दाता से। पडिग्गाहियपुव्वे भवइ-मध्य में ही कोई ग्रहण कर लेगा। तम्हा-इस लिए।से-वह।संजए-संयत।नियंठे-निर्ग्रन्थ। तहप्पगारं-उक्त प्रकार की।आइन्नावमाणं-आकीर्ण और अवम हीन। संखडिं-संखडि में। संखडिपडियाए-संखडि की प्रतिज्ञा से। गमणाए-जाने के लिए। नो अभिसंधारिजा-विचार न करे।
मूलार्थ-साधु व साध्वी यह जान ले कि ग्राम में या राजधानी में तथा, निश्चय रूप से