Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक २
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चिता पर उसकी स्मृति में बनाया गया स्मारक 'स्तूप' कहलाता है और यक्ष आदि का आयतन 'चैत्य' कहलाता है। यहां प्रयुक्त महोत्सव भौतिक कामनाओं के लिए किए जाते रहे हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि चैत्य शब्द का प्रयोग जिन भगवान् की प्रतिमा या मन्दिर के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है । उक्त शब्द यक्षायतन या व्यन्तरायतन का परिबोधक है।
अब सूत्रकार ग्रामान्तरीय आचार का वर्णन करते हुए कहते हैं
मूलम्- से भिक्खू वा २ परं अद्धजोयणमेराए संखडिं नच्चा संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए। से भिक्खू वा २ पाईणं संखडिं नच्चा पडीणं गच्छे अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं नच्चा पाईणं गच्छे अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं नच्चा उदीणं गच्छे अणाढायमाणे, उईणं संखडिं नच्चा दाहिणं गच्छे अणाढायमाणे, जत्थेव सा संखडी सिया, तंजहा- गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, आगरंसि वा, दोणमुहंसि वा,नेगमंसि वा, आसमंसि वा,संणिवेसंसिवा, जाव रायहाणिंसि वा संखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए, केवली बूयाआयाणमेयं, संखडिं संखडिपडियाए अभिधारेमाणे आहाकम्मियं वा, उद्देसियं वा, मीसजायं वा, कीयगडं वा, पामिच्चं वा, अच्छिज्जं वा, अणिसिटुं वा, अभिहडं वा आहट्ट दिज्जमाणं भुञ्जिजा॥१२॥
छाया- स भिक्षुर्वाः २ परं अर्द्धयोजनमर्यादया संखडिं ज्ञात्वा संखडिप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेत् गमनाय।स भिक्षुर्वा २ प्राचीनां संखडिं ज्ञात्वा प्रतीचीनं गच्छेत् अनाद्रियमाणः, प्रतीचीनं संखडिं ज्ञात्वा प्राचीनं गच्छेत् अनाद्रियमाणः, दक्षिणं संखडिं ज्ञात्वा उदीचीनं गच्छेत् अनाद्रियमाणः, उदीचीनं संखडिं ज्ञात्वा दक्षिणं गच्छेत् अनाद्रियमाणः, यत्रैव असौ संखडिस्यात्-तद्यथा-ग्रामे वा नगरे वा खेटे वा कर्बटे वा मडंबे वा पत्तने वा आकरे वा द्रोणमुखे वा नैगमे वा आश्रमे वा सन्निवेशे वा यावत् राजधान्यां वा संखडिं संखडिप्रतिज्ञया न अभिसन्धारयेत् गमनाय, केवली ब्रूयात्-आदानमेतत्, संखडिं संखडिप्रतिज्ञया अभिसंधारयत: आधाकर्म वा, औद्देशिकं वा, मिश्रजातं वा, क्रीतकृतं वा, प्रामित्यं वा, आच्छेद्यं वा, अनिसृष्टं
१ थूभ पु. (स्तूप) प्रेक्षा घर के सामने वाली मणिपीठिका के ऊपर का सोलह योजन लम्बा चौड़ा सोलह योजन ऊंचा सफेद रंग वाला चैत्यस्तूप,-स्मारक स्तम्भ, स्तूप, मृतक घर (अर्द्धमागधीकोष भा० ३ पृ० १०१)
चेइय-नं. (चैत्य) यक्ष वगैरह व्यन्तर देवता के आयतन स्थान, चिता के ऊपर मंदिर या अन्य रूप में बनाया हुआ स्मारक चिन्ह; संसारी लोग इसकी इस लोक के सुखों की इच्छा से उपासना करते हैं।
(अर्द्धमा कोष भा० २ पृ०, ७३७)