Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्रम्,
द्वितीय श्रुतस्कन्ध
३२
सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ निवायाओ कुज्जा, निवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिंदिय छिंदिय दालिय दालिय संथारगं संथारिज्जा, एस विलुङ्गयामो सिजाए, तम्हा से संजए नियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए, एयं खलु तस्स भिक्खुस्स जाव सया जाए, त्तिबेमि ॥ १३ ॥
छाया - असंयतः भिक्षुप्रतिज्ञया क्षुद्रद्वारा: महाद्वारा: कुर्यात्, महाद्वाराः क्षुद्रद्वारा: कुर्यात्, समाः शय्या विषमाः कुर्यात्, विषमाः शय्याः समा कुर्यात्, प्रवाताः शय्याः निवाताः कुर्यात्, निवाताः शय्याः प्रवाताः कुर्यात्, अन्तोवा बहिर्वा उपाश्रयस्य हरितानि छित्त्वा २ विदार्य २ संस्तारकं संस्तारयेत्, एष निर्ग्रन्थः (अकिंचन: ) शय्यायाः, तस्मात् सः संयतः निर्ग्रन्थः तथाप्रकारां पुरः संखडिं वा पश्चात्संखडिं वा संखडिं संखडिप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेत् गमनाय, एवं खलु तस्य भिक्षोः यावत् ( सामग्र्यं ) सदा यतेत । इति ब्रवीमि ।
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पदार्थ:- असंजए-असंयति-गृहस्थ । भिक्खुपडियाए - साधु के लिए | खुड्डियदुवारियाओछोटे द्वार को। महल्लियदुवारियाओ- - बड़ा द्वार । कुज्जा करता है या । महल्लियदुवारियाओ-बड़े द्वार को । खुड्डियदुवारियाओ - छोटा द्वार कुज्जा करता है। समाओ सिज्जाओ-सम शय्या को । विसमाओ सिज्जाओविषम शय्या। कुज्जा-करता है । विसमाओ सिज्जाओ विषम शय्या को । समाओ-सम । कुज्जा करता है । पवायाओ सिज्जाओ - वायु वाली शय्या को । निवायाओ - निर्वात वायु रहित । कुज्जा करता है और । निवायाओ सिज्जाओ - निर्वात शय्या को । पवायाओ - वायु युक्त । कुज्जा करता है । उवस्सयस्स - उपाश्रय के । अंतो वाअंदर से। बहिं वा - बाहर से। हरियाणि-हरियाली का । छिंदिय २-छेदन करता है । दालिय २- विदारण करता है। संथारगं-संस्तारक को । संथारिज्जा- बिछाता है। एस- यह साधु । विलुङ्गयामो-अकिंचन है अतः । सिज्जाएयह शय्या उसके लिए संस्कार की गई है । तम्हा - अतः । से संजए - वह संयत । नियंठे-निर्ग्रन्थ। तहप्पगारं - इस प्रकार की शय्या को एवं । पुरेसंखडिं वा विवाहादिक के समय की पहली जीमनवार । पच्छासंखडिं वा मृतक के निमित्त पीछे की जाने वाली जीमनवार । संखडिं संखडी को । संखडिपडियाए - संखडी की प्रतिज्ञा से । गमणाए -गमन करने के लिए। नो अभिसंधारिज्जा- मन में विचार न करे। एयं - यह । खलु निश्चय ही । तस्स उस । भिक्खुस-भिक्षु की। जाव - यावत् समग्रता है - सम्पूर्णता है । सया-सदा । जए - यत्न करे । त्तिबेमिइस प्रकार मैं कहता हूँ ।
मूलार्थ — कोई श्रद्धालु गृहस्थ साधु के ( संखडि में आने की सम्भावना से ) छोटे द्वार को बड़ा करेगा और बड़े द्वार को छोटा, तथा सम शय्या को विषम और विषम को सम करेगा, तथा वायु युक्त शय्या को निर्वात (वायु रहित ) और निर्वात को सवात (वायुयुक्त) करेगा। इसी भाँति उपाश्रय के अन्दर और बाहर हरियाली का छेदन करेगा तथा उसे जड़ से उखाड़ कर आसन