Book Title: Acharang Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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.. प्रथम अध्ययन, उद्देशक ३ संमिश्रीभावमापद्येत, अन्यमना वा स मत्तः विपरियासीभूतः स्त्रीविग्रहे वा क्लीबे वा तं भिक्षुमुपसंक्रम्य ब्रूयात्- आयुष्मन् श्रमण ! अथारामे वा अथोपाश्रये वा रात्रौ वा विकाले वा ग्रामधर्मनियंत्रितं कृत्वा रहसि मैथुनधर्म परिचारणया प्रवर्तामहे, तां चैव एकाकी अभ्युपगच्छेत् ; अकरणीयं चेदं संख्याय एतानि आदानानि (आयतनानि) सन्ति संचीयमानानि प्रत्यपाया भवंति, तस्मादसौ संयतो निर्ग्रन्थः तथाप्रकारां पुरः संखडिं वा पश्चात् संखडिं वा संखडिं संखडिप्रतिज्ञया नाभिसन्धारयेद् गमनाय।
___ पदार्थ-से-वह-भिक्षु। एगइओ-एकदा।अन्नयरं-किसी एक। संखडिं-संखडि में।आसित्तासरस आहार खाकर। पिबित्ता-दूधादि पीकर। छड्डिज वा-छर्दी करे या। वमिज वा-वमन-उल्टी करे। भुत्ते-खाया हुआ।से-वह-आहार। सम्म-भली प्रकार से। नो परिणमिज्जा-परिणमन न हो तो।अन्नयरे वाअन्य विसूचिकादि से।से-वह। दुक्खे-दुःखी होगा या।रोगायंके-रोग-आतंक, ज्वर,शूलादि। समुप्पजिजाउत्पन्न हो जाएंगे, अतः। केवली बूया-केवली भगवान कहते हैं कि।आयाणमेयं-यह कर्म बन्ध का कारण है।
इह खलु-निश्चय ही इस संखडि में जाने से। भिक्खू-भिक्षु । गाहावईहिं-गृहपतियों से अथवा। गाहावइणीहिं-गृहपति की स्त्रियों से। वा-अथवा। परिवायएहिं वा-परिव्राजकों से अथवा। परिवाइयाहिं वा-परिव्राजिकाओं से। एगजं सद्धि-इकट्ठे-एक साथ मिलने पर।सुंडं पाउं-सीधु-मदिरा के पीने पर। भोहे शिष्य। वइमिस्सं-उसे व्यतिमिश्र हो जाएगा। वा-अथवा। हुरत्था वा-वहां से बाहर निकल कर। उवस्सयंउपाश्रय की। पडिलेहेमाणे-याचना करता हुआ। नो लभिजा-जब अच्छा उपाश्रय न मिलेगा तो। तमेव उवस्सयं-उसी उपाश्रय में। संभिस्सीभावमावजिजा- गृहस्थी वा परिव्राजकों के साथ मिलकर रहना होगा। वा-और वहां। से-वह गृहस्थादि। अन्नमणे-परस्पर। मत्ते-मदोन्मत्त होकर। विप्परियासियभूए-विपरीतभाव को प्राप्त होंगे और उनके सम्पर्क से भिक्षु भी अपनी आत्मा को विस्मृत कर देगा।वा-अथवा। इत्थीविग्गहे-स्त्री के शरीर में, तथा। किलीबे-नपुंसक में-विपरीत भाव को प्राप्त हो जाता है। वा-वह स्त्री या नपुंसक । तं-उस। भिक्खुं-भिक्षु के। उवसंकमित्तु-पास में आकर। बूया-इस प्रकार कहे कि। आउसंतो समणा-हे आयुष्मन् श्रमण। अहे आरामंसि वा-उद्यान में अथवा। अहे उवस्सयंसि वा-उपाश्रय में अथवा। राओ वा-रात्री में। वियाले वा-विकाल में-अकाल में। गामधम्म-नियंतियं कटु-ग्राम्य धर्म मैथुन धर्मादि की नियंत्रणा से नियंत्रित करके।रहस्सियं-एकान्त स्थान में। मेहुणधम्मपरियारणाए-मैथुन धर्म के आसेवनार्थ हम।आउट्टामोप्रवृत्त हों प्रवृत्ति करें, इस प्रकार कहे जाने पर।तं-उस प्रार्थना को। चेवेगइओ-कोई अनभिज्ञ भिक्षु।सातिजिजास्वीकार करे। च-पुनः। एयं-यह। अकरणिजं-अकरणीय कार्य। संखाए-जानकर संखडि में गमन न करे। एए-ये पूर्वोक्त।आयाणा-कर्म आने के मार्ग अथवा।आयतणाणि-दोषों के स्थान।संति-हैं।संविजमाणाक्षण-क्षण में कर्म संचय करता हुआ। पच्चवाया-इसी प्रकार के अन्य भी कर्म आने के मार्ग। भवंति-होते हैं। तम्हा-अतः। से-वह। संजए-संयत-संयमशील। नियंठे-निर्ग्रन्थ । तहप्पगारं- उक्त प्रकार की। पुरेसंखडिंपूर्व संखडि में अथवा। पच्छासंखडिं वा-पश्चात् संखडि में। संखडिं-संखडि को जानकर।संखडिपडियाएसंखडि की प्रतिज्ञा से।गमणाए-उस ओर जाने का। नो अभिसंधारिजा-मन में संकल्प भी न करे।