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आध्यात्मिक आलोक रत्न-जटित कटोरा निकाला और पानी पीकर फेंक दिया । घरवालों ने स्वर्ण-कटोरे को फैका देखकर समझा कि बाई जी अप्रसन्न हो गई हैं । सेठजी ने बाईजी से करबद्ध प्रार्थना की कि हम सबसे कोई गलती हुई हो तो उसे क्षमा कर दें। यह सुनकर बाईजी हँसी और बोली कि नाराजगी का कारण नहीं, यह तो मेरा नियम है कि जूठे बर्तन को दुबारा काम नहीं लेती । यों मैं तुम सब पर नाराज नहीं हूँ।
सेठ ने सोचा कि इस देवी के यहां ठहरने से तो दुहरा लाभ है, धर्म और धन दोनों प्राप्त होंगे | उसने इस सुअवसर का लाभ लेना चाहा. और बाईजी से आग्रह किया कि आप कुछ दिनों तक यही ठहरें, जिससे स्त्रियां भी कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें | ज्ञानाभाव से स्त्रियों का जीवन बिगड़ रहा है। विश्वास है कि आपके सत्संग से उनके जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा । यह सुनकर साध्वी बोली कि हम माया वालों के बीच में कैसे रहें । सेठ ने बगीचे के बंगले. की ओर इशारा किया और प्रार्थना की कि अपने चरणरज से उसको पवित्र कीजिए बाईजी ने बंगला देखा और इस पर साध्वी बोली कि जहां साधु रहते हों, वहां हम नहीं रहतीं।
सेठ ने काम बिगड़ते देखकर बाबाजी से निवेदन किया कि आप दूसरे मकान में पधारिए । किन्तु बाबाजी ने उसे स्वीकार नहीं किया । इस पर सेठ बोला कि महाराज ! कृपाकर आप दूसरे बंगले में पधार जावें, नहीं तो सेवकों द्वारा मुझे आपको उठवाना होगा । बाबाजी ने देखा अब यहां रहना ठीक नहीं । यहां पार्वती का चक्र चल गया है, वे वहां से चले तथा अदृश्य हो गए।
इधर सेठ साध्वी को लिवाने गए किन्तुं उन्होंने टका-सा जवाब दिया कि जहां से साधु रूठकर चला जावे वहां साध्वी नहीं ठहरती, यह कहकर वह भी चल पड़ी, तथा कुछ दूर चलकर अन्तर्धान हो गई । सेठ ने देखा बाबा भी गायब और साध्वी भी गायब | दुःखित मन से उसने कहा कि
सूजा सुधि पायी नहीं, घर आए थे राम ।
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम ।। __संसार में ऐसे लोग बहुत हैं जो संतों के पास आकर मुक्ति की बात करेंगे और बाहर जाते ही पूरे मायामोह में रंग जाएँगे । उनका कोई लक्ष्य स्थिर नहीं होता। साधक को बुद्धिपूर्वक अपना लक्ष्य स्थिर कर लेना आवश्यक है। अस्थिर लक्ष्य वाला मुक्ति और भुक्ति दोनों से वंचित रहता है।
भारतीय संस्कृति साधना-प्रधान है क्योंकि मुक्ति रूप फल की प्राप्ति साधना । के बिना नहीं होती । ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य वानप्रस्थ और सन्यास रूप चारों आश्रमों में त्याग तथा साधना को ही महत्व दिया गया है । मनुष्य अनुकूल समय देखकर मुक्ति