Book Title: Updeshpad Part 01
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Lalan Niketan Madhada
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपदेश पद. (श्री इरीजद्रसूरिविरचित.) समूल भाषांतर सहित, प्रथम भाग. फ्र 55 कॉमत रु. ४-० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ECE कास R YSHyise.xHSHARMYaaxm/MO-१० का ... BEDDREDASEASE DGE-SELEBLSDIENDLERSODOGDASDEOSDDDDDEGDEBARICISTRIGONDEY YearBO THISA 000000rattanitletoothimom उपदेशपद. (श्री हरीभद्रसूत्रिविरचित.) समूल नाषांतर सहित, प्रथम भाग. SESENSESS प्रसिद्ध कर्ता, श्री लालन निकेतन मढडा. AMERIALSOREDIO-area-MASADDAINIDEO-DACADE संवत १९८१ सने १९२५ varanasterderance, कीमत रु. ३-०-. KHESANEANERRORIES PRIORNasaramvasanawa000000000000000000PM MERame.ase PRESTMastersnessMESSERIESrineKERSTAR MAugugeo DUBEWWERESTLESS CAGHIROEN Page #3 --------------------------------------------------------------------------  Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उपदेशपद. ( नमः श्रीसर्वज्ञाय ), यस्योपदेश पदसंपदमापदंत-संपादिकां सपदि संघटितश्रियं च । आसाद्य संतिजविनः कृतिनः प्रयत्नात् - तं वीरमीरितरजस्तमसं प्रणम्य - १ तत्त्वामृतोदधीना — मानंदितसकल विबुधहृदयानां । उपदेशपदानामह - मुपक्रमे विवरणं किंचित्. ॥ २ ॥ पूर्वैर्यद्यपि कल्पितेहगढ़ना वृत्तिः समस्त्यल्पधी — ओक: कालबलेन तां स्फुटतया बोद्धुं यतो न क्रमः । तत्तस्योपकृतिं विधातुमनघां स्वस्यापि तत्त्वानुगां प्रीतिं संतनितुं स्वaaaaat यत्नोयमास्थीयते ॥ ३ ॥ जे जुनी पदनात लावनारी अने लक्ष्मीने जोमनारी उपदेश संपद् हास पाम ने नव्यजनो कृतकृत्य याय ते रजस्तमस् रहित ( रागद्वेष मोहरहित ) वीर प्रजुने नमीने तत्त्वरूप अमृतना समुद्र समान अने सकळ बिना हृदयानंदित करनार उपदेशना पदोनुं हुं कांइक विवरण करूं बुं. (१-२ ) शास्त्री पूर्वाचार्योए जोके वृत्ति करेली हयात बे, बतां गहन होवाथी काळना योगे पबुद्धिवान् बालोको तेने स्फुटते समजी शकता नयी, माटे तेमनो उपकार करवा ने पोताने पण तत्वने अनुसरती प्रीति धारवा पोताना बोधनानुसारे या यत्न करवा मांड्यो छे ।। ३ ।। श्री ७५५५५० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३॥ इह खट्वार्यममबमध्योपलब्धजन्मानोपि निःपंकपंकजपुंजोज्वबकुलजातिप्रभृतिगुणमणिरमणीयतालाजोपि तथाविधशास्त्राच्यासवशोपजातजात्यमतिमाहात्म्यापहस्तितबृहस्पतयोपि विहितौदार्यदाक्षिण्यप्रियंवदत्वाद्यनुपमकृत्यपरंपरासंपादितसकन्नमनस्विमानवमनःप्रमोदसंपदोपि स्वन्नावत एव मंदमोहमदिरामदतया मनाप्राप्त निर्वाणपुरपयानुकून विषयवैराग्या अपि प्राणिनः प्रायो जिनोपज्ञानि राकसकुशलारंजमूलबी. जानि अत एवाधरीकृतनिधानकामधेनुप्रमुखपदार्थप्रज्ञावाणि दूरसमुत्सारितप्रचुरतरमोहतिमिरप्रसराण्युपदेशपदानि बिना न सम्यग्दर्शनादिपरिपूर्णमोकमार्गावतारसारा. जवितुमर्हति. श्री उपदेशपद. - आ जगत्मा खरेखर आयदेशमा जन्मेला, निर्मळ पंकजना माफक उज्वळ कुळजाति वगेरे गुणमणियी रमणीय रहेबा, तथाविध शास्त्राच्यासना वशथी नत्पन्न थएनी नतम बुद्धिना बळयी वृहस्पतिने वण हरवनारा, औदार्य-दाक्षिण्य–प्रियतापित्व वगेरे अनुपम कामोनी परंपरा करवायी सघळा मनस्वि मनुष्योना मनने प्रमोद आपनारा अने स्वनावधीज मोहमदिरानो ोगो उक होवाथी निर्वाणपुरना मार्गने अनुकूळ एवा विषयवैराग्यने . जराक प्राप्त थएला प्राणियो पण पाये जिनेश्वरप्रणीत सकळ कुशळ कामना मूळवीज रुप अने तेयीज निधान अने । कामधेनु वगेरे पदार्थोना प्रनावने हलका पामनार अने अति आकरा मोहरूप अंधकारना जोरने दूर करनार उपदेशना पदो विना सम्यक दर्शन वगेरे परिपूर्ण मोकमार्गमां उतरी शकता नयी. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथंचित्तत्रावतीर्णा अपिअनादिकालविनग्नविझीनवासनासंतानविषवेगावेशवशेन कोज्यमाणमनसो न स्थैर्यमवलंबितुमवं. यद् वक्ष्यति-सफझो एसुवएसो-गुणगणारंजगाण नव्वाण, परिवरमाणाण तहा-पायं नन तष्ठियाणं तु. इत्यवधार्य परहिताधाननिविमनिबछबुधिनगवान् सुगृहीतनामधेयः श्रीहरिजप्रसुरिरुपदेशपदनामकं प्रकरणं चिकीर्षुरादावेव मंगसानिधेयप्रयोजनप्रतिपादकभिदं गायायुग्ममाह. नमिऊण महानागं–तियोगनाहं जिणं महावीरं । झोयालोयमियंकं-सिकं सिझोवदेसत्थं,- ॥ १ ॥ वोच्छं उबएसमए-क अहं तज्वदेसम्रो मुहुमे। नावत्थसारजुत्ते-मंदमविबोहणठाए ॥२॥ श्री लपदेवापद. __कदाच कोइ रीते तेमां तेश्रो उतरे चे, तोपण अनादिकालदी लागेनी चूपी वासना रूप विषना जोरना बीधे मन मुंळांतां तेमां स्यैर्य धारण करी शकता नयी, जे माटे आगळ कहेशे के-गाये आ उपदेशगुणस्थानना श्रारंजक अथवा तो पगत पमनाराअोने कामतुं , पण तेमां स्थिर रहेलाअोने तेनी जहर नथी. एम धारीने परहित करवामां सख्त बुद्धि करनार नन्ना नामवाळा नगवान् हरिनद्रसूरि उपदेशपद नाम । प्रकरण करता थका आदिमां मंगळ, अनिधेय, अने प्रयोजन जणावनारी आ वे गाया कहे :____महानाग, त्रिलोकनाय, लोकालोकमां चंद्रसमान, सफळ उपदेशवाळा, कृतकृत्य महावीर जिनने नमीने तेना उपदेशने अनुसरी हुं मंदमति जनोने बोधवा माटे केटलाक सूदम उपदेशना पद कहीश. (१-५) .. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४ ॥ Boo इह चायगाथया सकलाकुशलकझापनिर्मूलोन्मूलकत्येन समाहितशास्त्रनिष्पत्तिहेतुरादिमंगलमुक्तं,-द्वितीयया तु प्रेक्षावत्प्रवृत्त्यर्थं साकादेवोपदेशपदवङ्गणमन्निधेयंमंदमतिश्रोतृजनावबोधवकणं च प्रयोजनं. सामर्थ्याच्चानिधानानिधेययोर्वाच्यवाचकनावकणः-अन्निधेयनयोजनयोश्च साध्यसाधन्नावस्वन्नावः संबंध उक्त इति समुदायार्थः संप्रत्यवयवार्थः प्रतन्यते.-तत्र नत्वा प्रणम्य प्रशस्तमनोवाक्कायव्या.. पारगोचरनावमानीयेति यावत् महावीरमित्युत्तरेण योगः-कीदृशमित्याह,-जा____ गोऽचिंत्या शक्तिः-ततो महान् प्रशस्यो जागो यस्य स तथा तं महानागं ॥ श्री उपदोपद. • इहां पहेली गायाथी सपळा अशिवसमूहने मूळयी उसेमनार होश इच्छित शास्त्रनी निष्पत्तितुं कारण आदिमंगळ का,-अने बीजी गायावझे बुद्धिमान् पुरुषोनी प्रवृत्तिना माटे खुसी रीते उपदेशपदरूप अजिधेय अने मंदमति श्रोताओने अवबोध थवा रूप प्रयोजन कयां छे. अजिधान अने अनिधयनो वाच्यवाचकनाव रूप संबंध तया अन्निधेय अने प्रयोजननो साध्यसाधननाव रूप संबंध सामर्थ्यथीज जणावेश छे. ए रीते समुदायार्थ छे. हवे अवयवार्थ कहीयेछीये :-त्यां नमीने एटो प्रणाम करीने अर्थात् प्रशस्त मनवचनकायना व्यापारना * विषय बनावीने ( कोने ) महावीरने, महावीर केवा छ ? ते कहे डे,-महान् एटले वखाणवा योग्य जाग एटले अचिंत्य शक्ति ने जेमने ते महानाग छे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५ ॥ महानागता चास्य जन्ममज्जनकाल एवं सहस्राक्षशंका शंकुसमुत्खननाय वामचरपांगुष्टकोटिविघट्टितामर गिरिवशात् संकुल शैक्षराशे रिलाया विशंस्थूलतासंपादनेन, शक्रकृतपराक्रमप्रशंसा सहिष्णोः क्रीमनव्या जानीतात्मपरिनवस्य स्वस्कंधनगवदारोपणानंतरमेवारब्धगगनतलोल्लंघनका रिकायवृद्धेः सुरस्य वज्र निष्ठुरमुष्टिपृष्टघाताद्भू मित्रत्कुब्जताकरणेन, सकलत्रैलोक्यसाहाय्य निरपेकृतया प्रवज्यानंतरमेव दिव्याद्युपसर्गसंसगधिसहनांगीकारेण, केवलज्ञानलानका चाष्टमहाप्रातिहार्य सपर्योपस्थापनेन, - - दनु - प्रांतरतमः पटनपाटनपटीयसा समस्तजनमनोहारिणा अवितयकथापयस्फीतिकारिणा जातिजरामरणापहारिणा प्रधानार्द्धमागधनाषाविशेषेण समकालमेव मित्रस्वरूपनरावरादिजंतुसंशयसंदोहापोहसमुत्पादनेन, स्वविहारपवनप्रसरेण च पंचविंशतियोजनप्रमाणचतुर्दिग्विनागमदी मंगलमध्ये सर्वाधिव्याधिरजोरा शेरपसार ऐन, सकल सुरासुरातिशायिशरीरसौंदर्यादिगुणग्रामवशेन च, त्रिजुवनस्यापि प्रतीतैव. महानागना ऐ जगने जाहीती छे :- तेणे जन्मनात्र वखते इंद्रनी शंका टाळवा मेरुदा अनेक पर्वतोवा की जमीनने विसंध्थूळ करी, इंद्रे करे प्रशंसाथी चीरमाने रमतमा पोनेहा बनने पोताना वंधे चाव आकाशगी शरीरने वधारनार देवने तेपणे वज्रमाफक मूत्र मारी भूमि सकुनाकाना पण साहाय्यत! अपेक्षा न राखतां दोका लेवा बाद तरतन दिव्य उपसर्ग सहेवा कबूल कर्या वनांत महानातिहार्य उपस्थित थयां, बाद आंतरना अंधाराने दूर करनार सौना मनहरनार सत्य वाताने जगावतार जन्नतरा महणने अनार अर्धपागो जात्रा समाज अनेक सुरासुरादि जंतुना संशय तोड्या, पोताना विहारथी पचीश योजननी चारे दिशाओमी आधिव्याधि दूरथी, अने सघळा सुरापुर करतां तेपना शरीर सौंदर्यादि गुणो अधिक हता. या कारणोयी ते महानाग हता. श्री उपदेशपद. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनरपि कीदृशमित्याह,-सोक्यते केवनालोकझोचनबझेन केवविनिर्दृश्यते यः स लोकः स च धर्माधर्मजीवपुद्गनास्तिकायोपनक्षित आकाशदेशः-तमुक्तं धर्मादीनां वृत्ति-व्याणां नवति यत्र तत् क्षेत्र, तैव्यैः सह लोक-स्तछिपरीतं ह्यलोकाख्यं ॥ १ ॥ इह तु तदेकदेशोप्यूदिमिकदेशग्रामवनोक इत्युच्यतेततस्त्रयो लोकाः समाहृतास्त्रिलोकंत्रिलोकस्य लोकत्रयवर्तिनो जव्यजनस्य नाथो, प्राप्तसम्यग्दर्शनादिगुणाधानेन प्राप्तगुणानां च तत्तउपायप्ररूपणेन रक्षणतो योगक्षेमकर्ता यस्तं त्रिलोकनाथं, जिनं दुरंतरागाचंतरवैरिवारजेतारं, कमित्याहउर्गसुराधमसंगमकादिकुषजंतुकृतोपसर्गवर्गसंसर्गेपि अविवत्रितसत्त्वतया महान् बृ. होरः शूरो यस्तं महावीरं-अपश्चिमतीर्याधीश्वरं वर्द्धमाननामानमित्यर्यः ॥ वळी ते केवा ने ते कहे जे. केवळ ज्ञान रूप लोचनना बळे केवलि प्रोयो जे जोवाय ते लोक छे. ते धमास्तिकाय, अधर्मस्ति काय, जीवास्तिकाय, अने पुद्ग ठास्तिकाययी नरेला आकाश देश जे. जे माटे कहेउ छे के । "ज्यां धर्मास्तिकायादिक द्रव्यो होय ते क्षेत्र ते द्रव्योनी साथे लोक कहेवाय छे अने तेयो विपरीत ते अनोक जे." पण हां तो तेनो नर्वादिक एक देश पण गामना नागने पण गाम कहेवाय तेम लोक कडेवाय ने. तेयो त्रण बोEX कना नबननाना नाय एस अपात्रा सम्मानिादि गुणने पासार अओ पामेला गुगला ते ते जगार बतावीने से रक्षण करनार एम योगहोम कर्ता छे, तया जिन एटले पुरंत रागादिक अंतरवैरि प्रोने जीत तार छे. एवा ते कोण छे ते कहे.-अधम सुर संगमक वगेरे कुद्र जंतुओए करेना उपसर्गमां पण अविचळ हिम्मत राखनार होवायी महान् एXटले वमा वीर एरले शूर ते महावीर एटने के छेखा तीर्थपति वर्द्धमान स्वामी. श्री उपदंशपद. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥७॥ पुनरपि कीदृशामित्याह-रोक नक्तकणस्तहिपरीतश्चानोकः-लोकालोकयो. र्मूगांक श्व केवनासोकपूर्वकवचनचंतिकाप्राग्नारेण ययावस्थिततत्स्वरूपप्रकाशनात् तं खोकालोकमृगांकं, तथा पिञ्बंधने इतिवचनात्सितं चिरकालबद्धं कर्म ध्मातं निर्दग्धं शुकसध्यानानवाद्येन स निरुक्तासिकः-विधु गत्यामिति गतो निवृत्तिं-ख्यातो नुवनादृत्तुतनूतविजूतिनाजनतया-षिधू शास्त्रे मांगल्ये चेति वचनात्समस्तवस्तुस्तोमशास्ता विहितमंगनः-षिधु संराको राध साध संसिद्धावितिवचनात् साधितसकलप्रयोजनो वा सिद्धस्तं सिकं,-नक्तंच-मांतं सितं येन पुराणकर्म-यो वा गतोनिर्वृतिसौधमूर्ध्नि, ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्टितार्थोयः सोऽस्तु सिधः कृतमंगलो मे. कळी ते केवा छे ते कहे छे :-लोक अने अलोकमां केवळ ज्ञान रुप अजवाका पूर्वक वचनरुप चंद्रिकाव तेनु खरेखरूं स्वरूप प्रकाशित करनार होवाथी चंद्रसमान, तया " पिञ् बंधने" ए धातुपरयो सित एटले चिरकाळर्थी बांधेल कर्म ते ध्मात एटले शुकळध्यान रूप अग्नियी वाव्युं छे जेमणे ते निरुक्तथी सिद्ध कडेवाय छे अथवा “ पिधु गत्यां" ए धातुपरथी निवृत्तिने पामेला के जगत्ने आर्यकारक विजूतिना नाजन होवाय प्रख्यात रहेला ते सद्ध ने-अथवा " पिधू शास्त्र मांगध्येच" ए धातुपरथी सघली चीजोना शास्ता अने कृत मंगळ ते सिद्ध छे-अथवा " पिधु संराद्धौ-राधसाध संसिद्धौ" ए धातुपरथी सकळ प्रयोजन साधनार ते सिक जाणवा. कहे पण छे के :-- जेणे बांधेनां जूनां कर्म वाळ्यां छे, अथवा जे निवृतिरूप महेलना शिवरपर गया डे, अथवा जे ख्यात ने अनुशास्ता छे के कृतकृत्य छे ते सिक मने मंगलकारी थाो." श्री उपदेशपद. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥6॥ तथा सिकः प्रमाणबझोपनब्धात्मतत्त्व उपदेशस्य प्रवचनस्यार्यः जीवाजीवादिरूपोऽनिधेयविशेषो यस्य स तथा-अथवासिघःसकसक्वेश विनिर्मुक्तोजीवविशेषःसएवोपदेशस्याज्ञाया अर्थ प्रयोजनं यस्य स तथा—जगवदाज्ञाया मोबैकफनत्वेन परमर्षिनिः प्रतिपादितत्वा-दतस्तं सिखोपदेशार्थ. अत्र च विशेषणबाहुट्यं अज्ञातज्ञापनफनमेवोक्तं, न पुनर्व्यवच्छेदार्थ,-यथा कृष्णोनमरःशुक्ला बलाका इत्यादीवेति. वदयेऽतिधास्ये-किमित्याह-नपदेशपदानि-इह सकयलोकपुरुषार्थेषु मोक्ष एव प्रधानः पुरुषार्थ इति तस्यैव मतिमतामुपदेष्टुमहत्वेन तदुपदेशानामेव नावत उपदेशत्वमामनंति-तत उपदेशानां मोक्षमार्गविषयाणां शिक्षाविशेषाणां पदानि स्थानानि मनु. ष्यजन्मनत्वादीनि, यहा उपदेशा एव पदानि वचनानि उपदेशपदानि तानि. वळी प्रमाण वळेथी सिद्ध थयो ने जेना उपदेशनो एटले प्रवचननो जीवाजीवादि रूप अर्थ जेनो ते सिX कोपदेशार्थ कहेवार-अथवा सिद्ध एटले सकळक्वेशरहित जीव तेज जेना उपदेश एटले आझानो अर्थ एटले प्र-3 योजन चे ते सिचोपदेशार्य जाणवा. वेमके जगवान्नी आझानुं फळ एकलो मोक्न छे एम परमर्षिोए कहेलु छे. 3 इहां का विशेषणो अजाण्याने जणाववा खातरज डे, नहिके व्यवच्छेद माटे, जेमके काळो चमरो धोळी बानी-इत्यादि माफक. उपदेशना पदो कहीश. त्यां सघळा पुरुषार्थोमां मोहज प्रधान छे तेथी बुद्धिवानोद तनोज उपदेश करवोर योग्य होवायी ते संबंधी उपदेशोनेज चारथी नपदेशप कहे छे, तेथी उपदेशो एटले मोइ.मार्ग संबंधी शिक्षाप्रोना पदो एटसे मनुष्य नव पूर्सन ने इत्यादि पदो, अथवा उपदेशो एज पदो एटल्ले वचनो ते उपदे शपदो जाणवा.. श्री उपदेशपद. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए कतिचित्स्वल्पानि सूत्रतोऽर्थतस्त्त्रपरिमाणानि - सर्वसूत्राणामनंतार्थाजिधायकत्वेन पारगतगदितागमे प्रतिपादनात् तथा चार्ष - सव्वनईां जादुज - वालुया सव्वनदहिजं तोयं । एतो गुओि - त्यो सुत्तस्स एकस्स. । कथं वक्ष्ये इत्याह तस्य महानागादिगुणजाजनस्य जगवतो महावीरस्योपदेशास्तडुपदेशास्तेभ्यस्तहुपदेशतः महावीरागमानुसारेणेत्यर्थः - स्वातंत्र्येण ब्रह्मस्यस्योपदेशदानानधिकारित्वात्. कीदृशानीत्याह — सूक्ष्माणि सूक्ष्मार्थप्रतिपादकत्वात् कुशाग्रबुद्धिगम्यानि, अतएव नावापर्य तदेव सारः पदवाक्यमहावाक्यार्थेषु मध्ये प्रधानं तेन युक्तानि जावासारयुक्तानि . वेट एटले सूत्र या बाकी अर्थी तो अपरिमित - केमके सर्वे सूत्र नंत र्थना कहेनार छे सर्वागमम कलुं छे. जुवो ऋषिवाक्य या रीते छे :सर्व नदीओनी उनी वालुका तथा सर्व समुद्रोनुं जेटलं पाणी जे तेनाथी अनंतगले एक सूत्रनो अर्थ छे, छे . कहीश ते कहे बे :- महानागादिगुणवान् जगवान् महावीरना उपदेशने अनुसरीने, केमके स्वतंत्रपद्मस्थने उपदेश देवानो अधिकार नथी. पदो केवां ते कहेछे । —सूक्ष्म एटले के सूक्ष्म अर्थना जलावनार होवाथी कुशाग्र बुद्धिथी जगाइ शके एवां, तेथीज नावार्थ एटले पर्य ( तात्पर्य ) तेज पढ़ार्थ, वाक्यार्थ ने महावाक्यार्थमां सार एटले प्रधान गाय बे तेणेकरीने युक्त. श्री उपदेशपद. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावार्थश्च “एयंपुणएवंखा" इत्यादिना वक्ष्यते किमर्यमित्याह-मंदा जमा संशयविपर्ययानध्यवसायविनवोपेता तत्त्वप्रतीतिं प्रति मतिर्बुधिर्येषां ते तथा--तेषां विवोधनं संशयादिबोधदोषापोहेन परमार्थप्रकाशनं तदेवार्यः प्रयोजनं यत्र नणने तन्मंदमतिविबोधनार्थ-क्रियाविशेषणमेतत्. अथ पदेवपदेशपदेषु सर्वप्रधानमुपदेशपदं तदन्निधित्सुराह ; सण माणुसत्तं--कहंचि अइलहं नवसमुद्दे । सम्मं निजियव्वं--कुशवेहि सयावि धम्ममि ॥३॥ लब्ध्वा समुपान्य मानुषत्वं मनुजन्नावलक्षणं कथंचित्केनापि प्रकारेण तनुकषायत्वादिनाध्यवसायविशेषणेत्यर्थः-यदवाचि. नावार्थ, स्वरूप " एयं पुण एवं खलु" ए वगेरे गाथाओथी आगळ कहेवामां आवशे. शामाटे कहीश ते कहेडे-तत्वनी प्रतीति प्रते मंद एटट्ने संशय विपर्यय, अने अनध्यवसायनी गमवमवाळी जम बुद्धि छे जेमनी तेवा मंदमतिओन विवोधन एटले. संशयादिक दोष टाळीने तेमने परमार्य जलाववो तेना अर्थे एटने प्रयोजने आ क्रिया विशेषण छे. हवे ए उपदेशना पदोमा जे सौथी प्रधान उपदेशपद ने ते कहे जे. आ जवसमुद्रमा अति उर्जन मनुष्यपणं कोइ पण रीते पामी करीने कुशळ पुरुषोए हमेशां धर्ममा उद्यम करवो. ३. मानुषत्व एटले मनुजपणुं कोइ पण प्रकारे कर एटने के अल्पकषाय वगेरे अध्यवसाय विशेष करीने बहीने एटले पामोने-जे माटे कहे छे के : श्री उपदेशपद.. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥ पयई तणुकसाओ-दाणरओ सीलसंजमविहूणो ।मजिकमगुणेहि जुत्तो-मणुयाजं बंधए जीवो॥१॥अतिउर्वन्नमतीवदुरापं वदयमाणैरेव चोलकादिनिीतैनवसमुने अनेकपरजात्यंतरनीरत्नराकीणे मनपारे संसाराकूपारे, किमित्याह-सम्यक् स्वावस्थोचितानुष्टानारंजरूपसंगतनावयुक्तं यथा नवति एवं नियोक्तव्यं मनोवाकायसाम •गोपनेन व्यापारणीयं कुशखैरज्ञानादिदोषकुशववंचनकक्षाकलापकक्षितैः मतिमद्निः पुंनिरित्यर्य:-सदापि वानयुक्त्वादिसर्वावस्थाव्याप्त्या सर्वकालमेव, धर्मे श्रुतचारित्रलक्षणे जिनप्रणीते, एतएव पश्यते बाब एव चरेद्धर्म---मनित्यं खशु जीवितं । फसानामिव पक्वानां-शश्वत् पतनतो नयं ॥ १॥ स्व नाव पातळा कषायवाळो शीळसंयमरहित बतां दानपरावण एम मध्यम गुणवान् जीव मनुष्य आयु बधे छे. ते वक्ष्यमाण चोकादिक दृष्टांतायी अनेक जातिरुप नीरयी जरपूर लांचा संसार समुद्रमा अति वन ले माटे ते पामीने शें करखं ते कहे :-सम्यक् एटट्ने पोतानी अवस्याने उचित अनुष्ठान करवा रुप संग नावथी तेने क शळ एटने अज्ञानादि दोषने उतरवामां बरोवर कळावाज बुद्धिमान् जनोए हमेशां एट्ले बाळपण तथा जवानी वगेरे स. घठो अवस्या प्रोमां श्रुाचारित्र रूप जिनप्रणीत धर्ममा मन वचन कायनु सामर्थ्य लुपाच्या वगर वापरवं. जे माटे कडेवाय छे के बाळ छतां पण धर्म करता रहेवं. केमके जीवित अनित्य छ, तेथी पाका फळोनी माफक हमेशां तेना परवानुं न्य रहे छ. १ श्रीनपदेशपद. र Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्य श्वो वा परश्वो वा-श्रोष्यते निष्पतिष्यतः, परिपक्कफास्येव- वपुषोपिट. णक्कः ॥ ५ ॥ मनुजवळजत्वमेवाह___अश्वहं च एयं–चोलगपमुहेहि अत्य समयंमि, जणियं दिच्तेहिं-अहमवि ते संपविक्खामि ॥४॥ अतिर्खनंचातिरापमेव एतन्मानुषत्वं चोरकप्रमुखैरनंतरमेव व्याख्यास्यमानैर्दशतिरबार्हते समये सिद्धांते जणितं निरूपितं वर्तते दृष्टांतैरुदाहरणैः–यदि नामैवं ततः किमित्याह अहमपि कर्ता-न केवलं पूरेवोक्ता इत्यादिशब्दार्यः-तान् चो कादिदृष्टांतान् संप्रवक्ष्यामि नगवद्नवाहुस्वामिन्नणितानुसारसांगत्येन प्रतिपादयिष्यामि. आजे, काले, के परमदिने पाकेला फळनी माफक पमनार शरीरनो टणकारो सनळाशे. २. . मनुष्यनवर्नु पूर्खनपांज कहे छ :जैन सिद्धांतमा चोहक वोरे दृष्टांतीथो ए मनुष्यपाणु अतिर्बन कहे , तेथी हुँ पण ते दृष्टांतो कहोश. ४. अति पुन एटले अति मुश्कलीथी पभाय छे आ एटले मनुष्यपणं चोझक वगेरे हवे तरतमां कहेवामा आवनार दश दृष्टांतीथी एम आ समयमा एटले जैन सिद्धांतमां कहेलु छे. ज्यारे एम ने त्यारे हुं आ ग्रंथनो कर्ता पण-(नहिक फक्त पूर्वाचार्योज कहो गया रे-) ते चोहकादिक दृष्टांता लगवान्नद्रबाहुस्वामीए कहेला छे तेने अनुसारे प्रतिपादन करीश. श्री नपदेशपद. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ननु पूर्वरेवोपदेशपदानामुक्तत्वात् किं नवतः पिष्टपेषणप्रायेण तद्नणनेन प्रयोजनमिति ? नच्यते-पूर्वेस्तत्कासनाविनः प्रौढप्रज्ञान् श्रोतॄन् स्वयमेव नावार्थप्रतिपत्तिसहानपेदय नावार्थाविष्करणानादरेण नोपदेशप्रणयनमकारि,-संप्रति तु तुच्छबुछिः श्रोतृलोको न स्वयमेव नावार्थमवबोकुं दमते इति तदनुग्रहधिया नावार्यसारयुतोपदेशपदप्रणयनं प्रस्तुतमिति. चोलकादिदृष्टांतानेवाह-चोखगपासगधएणे-जूए रयण य सुमिणचके य,। चम्मजुमे परमाणू-दस दिलुता मणुयबंने. ५. कदाच कोइ एम पूचशे के उपदेशना पदो तो पूर्व पुरुषोने कहेलाज छे, तो पछी पीसेनान पासवा माफक तमारे ते कहेवानुं शुं प्रयोजन ... एनो जवाब ए छे के, पूर्व पुरुषोए ते काळे रहेला प्रौढ बुद्धिवाला सांजळनाराओ के जेसो पोतानी मेळेज नावार्थ समजी शके तेमना खातर नावार्य वताववा वगर उपदेश करेल डे, पण हमणांना तुच्छ बुद्धि श्रोताजनो पोतानो र जावार्थ समजी शके तेम नथी; तेथी तेमनापर अनुग्रह बुद्धि सावी जावार्थना सारसहित उपदेश पढे! कहेवाने शह कर्या छे. चोलक विगरे दृष्टांतोज कहे छे. चोखक, पाशक, धान्य, धृत, रत्न, स्वप्न, चक्र, चर्म, युग, अने परमाणुओ, ए दश दृष्टांत मनुष्यनव पामवामां अपाय छे. ५ .. . ...... श्री उपदेशपद.. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ ___चोलकश्च पाशकौ च धान्यानि चेति चोबकपाशकधान्यानि-धन्नेत्येकचननिर्देशः प्राकृतत्वात्-एवमन्यत्रापि (३ ), द्यूतं प्रतीतमेव, ( ४ ), रत्नानि च (५), स्वप्नश्च चक्रं चेति स्वप्नचक्रे (६-७), चः समुच्चये, चर्म च युगं चेति चर्मयुगे (७-५), पदैकदेशेपि पदसमुदायोपचारादिह युगशब्देन युगसमिसे गृह्येते, परमाणवः (१०), अमी दशसंख्याः दृष्टं प्रमाणोपलब्धमर्थ मनुजस्वउर्सनत्वादिलक्षणमंतं श्रोतुः प्रतीतिपथं नयंतीति दृष्टांताः मनुजसंने मानुष्यप्राप्तावित्यर्थः दृष्टांतनावना चैवं कार्या. श्री उपदेशपद. चोटलक, वे पासा, अने जूदी जूदी जातना धान्यो-ए त्रण-वहां धान्या घणां छतां प्राकृत नापाना कारणे एकवचनथीज ते वताव्यां छे. एम बीजा स्थळे पण समजबू. चोयुं जुगार, पांचमा रत्नो, छठे स्वप्न, सातम चक्र, चकार समुच्चयार्य छ, आउ{ चर्म अने नवमुं युग एटले पदना एक देशथी आखो पदसमुदाय लेता हां युग शब्दे करी युग एटले धूसरीना बे समेस्रो खेवी, अने दशमा परमाणुओ-एम ए दश दृष्टांतो एटले प्रमाणवझे जाणवामां आवता मनुष्यनव जित्वादिरूप अर्थने अतपर एटले के सांजळनारनी खात्रीपर सावे ते दृष्टांतो मनुष्यनव पामवामां छे, दृष्टांतोनी भावना आ रीते करवी. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोवो मानुष्यं लब्ध्वा पुनस्तदेव फुःखेन लप्स्यत इति प्रतिज्ञा अकृतधर्मत्वे सति बढ्तरायांतरितत्वादिति हेतुः । यद्यद्बहुन्निरंतरायैरंतरितं तत्तत् पुनःखेन बन्यते, -- ब्रह्मदत्तचक्रवर्तिमित्रस्य ब्राह्मणस्यैकदा चक्रवर्तिरहे प्राप्तनोजनस्य सकसनरतक्षेत्रवास्तव्यराजादिलोकगृहपर्यवसाने पुनश्चक्रवर्तिगृहे चोलकापरनामनोजनवत्, ॥ १ ॥ चाणाक्यपाशकपातवत्, ॥ ॥ जरतक्षेत्रसर्वधान्यमध्यप्रक्षिप्तसर्षपप्रस्थपुनीलकवत,॥३॥-अष्टाधिकस्तंनशताष्टोत्तराश्रिशताष्टसमर्गत्रशतवारा निरंतरातजयवत्, ॥४॥ महाश्रेष्टिपुत्रनानावणिदेशविक्रीतरत्नसमाहारवत, ॥५॥ श्री उपदेशपद. जीव मनुष्य नव पामीने फरीने ते नव मुकन्नीए पामे छे ए प्रतिझा एटले आपणी साध्य वात छे. त्यां हेतु ए छे के, धर्म न करेल होवायो त्यां घणा अंतराय आवी पमे छे. आ उपस्थी एवी प्राप्ति था शके छे के: जे जे वहुँ अंतरायवाळु होय ते ते मुःख पमायः–मदत्त चक्रवर्त्तिनो मित्र ब्रामण चक्रवर्तिने घरे जमीने पछी आखा जातक्षेत्रमा रहेनार राजादिक लोकांना घरे जम्पा बाद फरीने चक्रवर्तिना घरे चरु के जोजन करे तेनी माफक ॥ १ ॥ चाणाक्यना पासाने जीतवा माफक ॥२॥ जरतक्षेत्रना सघळा धान्य बच्चे सरसवनी पात्री नेळीने ते पाछी जूद। पामची तेनी माफक ॥ ३ ॥ एकसो आठ यांजना-अकेक थांनने एकसो आठ खूणा, अने दरके खूणे एकसो आउ वार निरंतरपणे जुगार रमतां जीत मेळववी तेनी माफक ।। ४ ॥ शेठना पुत्रे जूदा जूदा देशना वेपारीओने वेचेनां रत्नो फरीने एकठा करवा तेनी माफक ॥ ५ ॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १६ ।। महाराज्यलाभ स्वप्न दर्शनाकांक्षि स्वप्नकार्य टिकतादृशस्वप्नन्नाजवत् ॥६॥ मंत्रि दौहित्रराजसुतसुरेंद्रदत्ताष्टचक्रारकपरिवत्र्तांतरितराधावेधवत् ॥ ७ ॥ एकच्छ महञ्चर्मावनद्धमहाहदसंभूतकच्छपग्रीवानुप्रवेशोपलब्ध पुनस्तच्छिलाभवत् ॥ ८ ॥ महासमुप्रमध्ये विघटितपूर्वापरांत विक्षिप्तयुगे समिला स्वयं विषानुप्रवेशवत् ॥ ए ॥ अनंतपरमाणुसंघातघटितदेवसंचूर्णित विभक्ततत्परमाणुसमाहारजन्यस्तजवा ॥ १० ॥ - इति दृष्टांताः अनेक जात्यंतरप्राप्तिलक्षएवह्वंतरायांतरितं च मानुषत्वं जन्मेत्युपनयः तस्माद्दुरापमिति निगमन मिति. तेनी मोडं राज्य मयुं एवं स्वप्न जो फरीने ते स्वप्न जोवा इच्छनार कापमीने तेवं स्वप्न फरीने माफक || ६ || मंत्रिना दोहित्र राजकुमार सुरेंद्रदते आठ चक्रना करता आरामांयी राधा पूतळीनी खींची तेनी माफक || 9 || एफज काणावाळा मोटा चामकायी ढांकेला मोटा दरमां रहना काचवानी कोट ते काणामां पेशी ग‍ एटले फरीने ते छिद्र तेने मळे ते माफक || ८ || मोटा समुद्रमां पूर्व किनारे धूसरीनी समेझो छूटी करीने नाखी होय पश्चिम किनारे धूसरी नाखी होय तेम छतां पातानी मेळे ते छिद्रमां दाखन थाय ते माफक ॥ ७ ॥ अनेनंत परमाणुना संघातर्थ । बनेलो यांनलो को देवता चूरेचूरो करीने तेना परमाणु छूटा करी नाखे ते पाछा एकता ने स्तंन बने तेनी माफक ॥ १० ॥ अनेक तरेहनी जूदो जूदी जातियो पामवारूप घया अंतरायोयी मनुष्यजत्र लांबे अंतरे मळे बे. ए उपनय बे. श्री. उपदेशपद. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ अथैतानेव दृष्टांताविस्तरतः क्रमेण नावयन्नाह. चोखति नोयणंबंनदत्तपरिवारनारहजणंमि, सयमेव पुणो नहं-जह तत्य, तत्य मणुयत्तं ॥ ६॥ गाथानावार्यः कथानकादवसेयस्तच्चेदं.अस्थि इह नरहवासे-दाहिणनरहद्धमज्जखमंमि, निच्चमकंपिलंपर-नयाड्डि कंपिलनामपुरं. ॥ १॥ सुश्णासीत्रेण धणेण-जूरिणा बाढवूढमाहप्यो, सुमिणेवि जत्य न कुणश-परदाराखोयणं लोगो ॥ ३ ॥ दक्खिन्नामयजनही-पियंवओ थिरगहीरचित्तो य, अपनरी परजणे-जायपमोओ सया वस ॥ ३ ॥ माटे ते मुर्खन डे ए निगमन जाण. हवे एज दृष्टांतीने विस्तारयी अनुक्रमे कही बताव छे. चोल एटले नोजन ते ब्रह्मदत्तना ( मोटा परिवार तथा जरतक्षेत्रना ( घणा ) जनोमा ( करवा होवाथी ) A फरीने चक्रवर्तिना घरे मळवं मुझन छे, तेम इहां मनुष्यपणुं . ६ गायानो जावार्य कयानकथी समजवानो छे, ते कथानक छ :आ नारतवर्षमा दक्षिण जरतार्द्धना मध्य खंकमां दुश्मनोना जयथा हमेशां अकंप्य (अग) रहेतुं कांपिव्यपुर नामे नगर हतुं. १ पवित्र शीळ अने पुष्कळ धनयी अतिशय मोटाइ पामेला त्यांना सोको स्वममां पण परस्त्री तरफ नजर नहीं करतां. ५ त्यां दाक्षिण्यरुप अमृतना दरियासमान, मी बोलनारा, अमग अने जंमा मनवाला. पुष्कळ . माणसो हमेशां हर्षयी वसता हताः ३ जे शहेरनी अंदर सारी जातिवाळी, अति मनोहर, अति चळकता तिलकवाळी श्री उपदेशपद.. 888888560000000 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १८ ॥ सजाई मोहरा अश्फार तिलयक लियाओ, पुन्नागसंग सुगया – रम जिपयो - हरायो य ॥ ४ ॥ सच्छायाओ सुवजुया सरला सुर हिंगंधा, जत्थं तो रीमायो — बढ़िया आरामपंती ॥ ए ॥ उज्जञ्जसुवन्नतारून्नयानं पारद्वडुक्करवयाओ, बच्ची जत्थ सजणगिदेसु विहगणाओ य ॥ ६ ॥ -- अविय, जत्य जिएमंदिरोवरि-घणपणपणोलियापनाया, रेहंति व धम्मियजा कित्तिओ सग्गच लिया || ७ ॥ तं च गच्छेयसारं पालेइ विलबल कलियो, इक्खागुर्वसवसहो नामेण नरनाहो ॥ ॥ पीवहि अदीहरेदि कत्थवि अपतत्तोठेहिं, जस्स गुणेहिं व गुणेहि दामिया सथिरा अच्छी ॥ ए ॥ सामेण य दंण य-- नए उ जो उमदा माणसोने परलेली, रमणीय स्तनवाळी, सारी कांतिवाळी, सारी वपवाळी, सफळ अने शरीरे सुगंधयी बहकती स्त्रीहता, तेमज जे शहेरना बाहेर जायना वेलावाळी, फूलोयी जरपूर, अति मोटा तिलक नामना कामवाळी, पुन्नान नामना कामोयी शोजती, सुंदर फुंवारावाळी सारी छायावाळी, सारा पक्षियोवाळी, सरल हारोवाळी, सुगंधयी बहकेती वामी हती. ४-५ ज्यां सारा लोकोना घरोम विधवा स्त्रीओ उजळी कांति अने यौवनवाळी छतां पुष्कर व्रत पाळती लक्ष्मी पण उजळा सोना अने रुपाना ढगलारूपे रहीने ( स्थिर रहेवारूप ) पुष्कर व्रत पाळती. ६ वळी ज्यां जिनमंदिरोना उपर तोफानी पवनयी जमती धजाओ जाये धार्मिक लोकोनी कीर्तिम्रो स्वर्गे जती न होय तेत्री लागती. 9 ते अनेक आश्रयायी नरेला नगरने मोटा लइकरवाळो इक्ष्वाकुवंशनो धुरंधर ब्रह्म नामे राजा पाळतो हतो. ८ जेराजानाति पुष्ट, तिलांबा, अने क्यों पल नहीं तूटेना गुणवमे रसीय जीकमायली होय तेम तेनी पासे लक्ष्मी हमेशां स्थिर थर रहती. तो अवसर प्रमाणं साम, दान, दंक, तथा जेद वापरी खूब जसवधायें हतं. १० इन श्री उपदेशपद. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १५ ॥ -- वप्पयाणकरणेण, अत्रसरवत्तेण जसो -- जेण पवित्यारियो दूरं ॥ १० ॥ तस्सुब्नरुरिजमको मिघमणउब्जभियपुरिसकारस्स, बहुपायरयणखाणी - चुम्नणीनामा य पिया ॥ ११ ॥ अजविंसु तस्स मित्ता -- निक्कित्तिममित्रिनावसंजुत्ता, चन चराचरबुद्धिकलिया महीपाला ॥ १२ ॥ कासीगाहो कडओ - - कणेरूदत्तो गराहिवई, कोसलामी दी हो - चंपापहु पुप्फचूलो ति ॥ १३ ॥ निरवज्जरज्ज - चिंताधुरंधरो तह धणू महामच्चो, पुत्तो तस्स वरचणू - धणियं कलिओ पिगुणेहिं ॥ १४ ॥ ते पंचति रायाणो - बनाईया परूढपणयवसा, विरहं अणिच्छमाणा - परोप्य एंव मसु ॥ १९ ॥ पत्तेयं पत्तेयं - पंचसु रज्जेसु वरिस मेक्केक, नियपरिवारजुएहिं - जुगवं चिय संवसेयव्वं ॥ १६ वोलीमि य काले - केवइए दूर मुएाय सुटोनी कोर मरमनार ते राजानी बहु प्रेमरूप रत्ननी खालसमान चुल्लणी नामे प्रिया हती. ११ ते खरी मैत्रीचाळा चतुर्मुख ब्रह्मानी माफक चारे बुद्धियी शोजता चार राजाओ मित्र हताः – एक काशीपति कटकराजा, बीजो गजपुरनो धणी कणेरुदत्त, त्रीजो कोशळदेशने। धणी दीर्घ, अने चोथो मानो घणी पुष्कवून. १२-१३ तेने चोक्ख । रीते राज्यचिंतामां मशगुल धनु नामे मोटो अमात्य हतो. अने ते अमात्यनो तेनान जेवा गुणवाळो वरधनु नामे पुत्र हतो. १४ ब्रम विगेरे ते पांच राजाओ जामेन्झी प्रीतिने योगे एकबीजाना विरहने नहीं इच्छतां थका अरसपरस आवं कहेवा लाग्या. १५ आपण दरेके पांचे राज्योमां एकेक वर्ष सपरिवार साथेज रहें. १६ आ रीते उदार मनयी बहु पुण्ये पार्म । शकाय एवं जोगसुख जोगवतां थकां तेमने लांबोकाळ पसार था श्री उपदेशपद. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १० ॥ पणाएं, बहुपुपावणिजं - जोगसुहं मुंजमाणाणं ॥ १७ ॥ यह अन्नया कयाईरयणीए मज्ऊनागसमयंमि, चुणी अश्फारफले – वनदस सुमिणे नियच्छेइ ॥१८॥ जहा — कुंजरवसहसीह ग्रइसेया — दामसोमर विझया निसेंया, कुंतंजोरूहसरजल निहिण - दिव्वविमारयण गण सिहिणो (१) तक्खमेव पबुद्धा - सा मुद्धा कहर बंजनरवइणो, जह सामि संपइ मए - दस सुमिया ये दिहा ॥ १७ ॥ राया रंजिय दियो - धाराहयनी व कुसुमसम पुत्रो, फुल्लिंदीवरनयणो - नगइ इयं देवि ते होही, - ॥ २० ॥ अम्ह कुलकप्परूक्खो - कुज्को कुलपश्वसंकासो, महिममलमनलमणी —– गुणरयणखणी सुपुत्तो ति ॥ २९ ॥ साहियनत्रमासंते -- संतेसु च वाडधूलिकमरेसु, नज्जोइयदि सिचक्को - लाग्यो. १७ एवामां एक वेळा मध्यरात्रिना वखते चुली राणीए वहु मोटां फळवाळां चौद स्वप्न जोयां. १८ ते चौद स्वप्न या प्रमाणे छे :- १ हाथी, २ वळद, ३ सिंह, ४ प्रतिश्वेत फूलनी माळा, ए चंद्र, ६ सूर्य, 9 धजा, अभिषेक, ए कुंज, १० कपलोयी नरेन तळाव, ११ समुद्र, १२ दिव्य विमान, १३ रत्ननो ढगलो, अने १४ शिखावाळी अति. (१) राणी तर जागीने ब्रह्मराजाने कहेवा लागी के, हे स्वामि ! में हमणां ए चाँद स्वप्न दीगं. १७ त्यारे राजापानी धाराधीना नीयना फूलनी माफक पुलकित यइने विकस्वर कमळनी माफक नेत्र ज्यामां करी कहेवा लाग्यो के, हे देवी! तने अमारा कुळमां कपटक समान-ध्वजा समान - दीवा समान, नूमंगळनो मुगटमणि, अने गुणरत्नोनो खाए, एवो सुपुत्र यशे. २०-११ बाद कईक अधिक नव मासना बेके पवन ने धूळतो कमर शांत थवा श्री उपदेशपद. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORY ॥१॥.86 जाओ तणो कायचमको ॥ २५ ॥ वझावणयाईसुं-विहिएसुं विविहजाइकम्येसु, समयंमि तस्स नाम--पष्टियं बंनदत्त ति ॥ २३ ॥ सियपक्खं सोममंगल-मिववुढिं एस बफ चारखो, बच्चीनिवाससिरिवत्यकलियवत्यत्थायएसो ॥ २४ ॥ कत्यइ समए कमगाइएसु पत्तेसु बंजनिवपासे, वनस्स सिरे रोगो-जाओ दाविय सुयण सोगो ॥ २५ ॥ सुत्तत्थ पारगेहिं--पहाणविजेहि ओसहाईस, सम्पं पनंजिएसुवि-न निवत्तइ जा सिरो वियणा ॥ २६ ॥ मरणावसाण मेयं-जय मेवं निच्च्यं मणे कालं, वाहरिया कगाइ-समप्पिो बंनदत्तो सिं ॥ २७ ॥ जह सयसकनाकुसनो-पावियनोसेसरजपन्नारो, जाय सुओ ममेसो-कायचं ति नणिया य ॥२७ ॥ तत्तो कमेण पत्तो---परखोयपहंमि बंननरनाहो, मयकजेसु कएसं--प्सछता, दिशाोना चक्रने उजवनार अने चमत्कार करनार पुत्र थशे. २२ तेना वधामणी विगेरे अनेक जन्मकर्म का वाद समयसर तेनुं ब्रमदत्त एई नाम पामयु. २३ ते शुक्लपकना चंद्रमंझळ माफक वधवा मांझयो, अने तेना वस्यळमां बमीना निवासन स्थान एवं श्रीवत्सनु चिह्न शोनवा लाग्यु. २४ हवे कोक समये ब्रह्मराजा पासे कटकादिक राजाओ आव्या हता, तेवामां तेते मस्तकमां रोग थयो के, जथी तेना सगां स्वजनोमां चार शोक थवा लाग्यो. २५ त्यारे सूत्राथना पारंगामि मोटा वैद्योए बरोबर रीते तेनी दवाओ विगरे कया बतां पण ते माथानी वेदना बंध पमो नहीं. २६ त्यारे राजाए मनमां निश्चय कर्यों के, आ जगत् मरणशीळ , तेथी तण कटकादिकने बोलावीने कयु के, आ ब्रह्मदत्त तमने सोंप्यो छे. २७ माटे ए मारो पुत्र जेम सकळ कळाओमां कुशळ थइ समग्र राज्यप्राग्नार पामे तेम तमारे करवु. एम तणे तेमने कयु. २० बाद ते ब्रह्मराजा परलोक पाम्यो, अने लोकप्रसिद्ध सर्वे मृतकार्य करवामां आव्यां. पछी श्री उपदेशपद. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २२॥ व्वेसुवि जणपसिसु ॥ २५ ॥ ते रजकजसज्ज--संगविय तत्य दोहनरनाहं, कमगाई तिन्नि निवा--संपत्ता नियनिययरज्जेसु ॥३०॥चुनणीए दीहस्स य–दोएहविकजाई चिंतयंताणं, सीप्रवणदहणपवणो-जनणो व्व विजंनियो मयणो ॥ ३१ ॥ अगणियकुत्रपालिमा--चुनणी चमुबत्तणेण चित्तस्स, दूरूझियजणाजा--रजित्या पावदीहमि ॥ ३५ ॥ श्यरो नण उिदरओ--कुझियमई विसयगिद्धिविसपुण्णो, चुनणीए सत्यो-संजाओ दीहपट्रो व्व ॥ ३३ ॥ नायं नीसेस मिणं--चरियं चुसणी सीनंगफणं, धणुणा मच्चेण विचिंतियं च नो कुमरकुतत्र मओ ॥ ३४ ॥ नणिो य वरधणू तेण पुत्त कुमरस्स अपनत्तण, कुन्जा सरीररक्वा--जणण। णो सुंदरा जेण ॥ ३५ ॥ समए य माचरियं--जाणावेयव्यो तए सवं, जेण ण मा श्री उपदेशपद. राजकाज चन्नाववामां समर्थ दीर्घराजाने त्यां स्थापिने वामोना काकादिक त्रण राजा पोतपाताना राज्यमां आव्या. ३० हवे चुलणी अने दीर्घराजा बन्ने कामकाजनी मसन्नत करवा लाग्या, तेवामां तेमने शीळवनने अमिनी माफक बालवामां सार्थ कामविकार जागृत थयो. ३१ त्यारे चुन्नणी मननी च पळतायी कुळना कलंकने नहीं गणकारतां लोकमान दूर मेशीने ने पापिष्ट दीर्घराजामा मोहित थ६. ३५ अने ते दीर्घ पण छिद्र जोइ कुटिल बुधि धरीने विषयगृद्धिना विषयी नरेन होवायी दोष्ट ( विज्ञान )नी माफक चुत्रणामां रक्त थयो. ३३ आ वधू चुतणीना शीशगर्नु चरित्र धनु । नामना अमात्ये जाणी लोधु अन विचार्यु के, आथ। कुमारने कुशळ नथी. तेथी तेणे पोताना वरधनु नामना पुत्रने र कधु के, तारे खबरदार रहीने कुमारनी शरीररका करवी केमके एनी मा बगमती छे. ३४-३५ वळी समय पामी Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ वेज मो-नवदव केण बोण ॥ ३६ ॥ नववढे जणणीए-चरिए तो तिव्वअमरिससणाहो, कुमरो कानवसेणं--संजाओ जोव्वणालिमुहो ॥ ३७॥ जणणी जाणणकए---जे जे असमाणजाइणो जीवा, कोनकायाध्या---विसरिसायारकरणरया ॥ ३८ ॥ अंतेनरस्त अंते---गयाइ तीए य ते पदंसेश; लण य सकोयवयणो---अम्ह निगिएहामि अहमेए ॥३ए ॥ अन्नो चिय जो मऊ---रजे णायारसेवणं काही, दूरं निगिएिहयव्वो---निरवेक्खमणेण सो सव्वो ॥ ४० ॥ एवं अणेगवारे-विणिगिएहतं तहा पत्नासंतं, दवण बनदत्त---दीहो चुनणि समुल्ल वइ ॥४१ ॥ नेयं परिणामसुहं--जं जंपइ एस तुज्क किन पुत्तो, सा जण बालनावो इत्य वर न सजावो. ॥ ४२ ॥ मुझे न अन्नहे यं---आरूढो जोव्वणं श्मो कुमरो, एने एनी मार्नु सबलु चरित्र जाणावी देवू के, जयी ए कोइ पण छळमा फसाइने हेरान नहि थाय. ३६ हवे कुमारन माताना चरित्रनी खबर पमतां ते चारे गुस्से यया थको अनुक्रमे यौवनअवस्थान अनिमुख थयो. ३७ त्यारे माताने चेतववा खातर ते जे जे जूदी जूही जातना कोयन कागमा विगरे प्राणिो अनाचार करवा तैयार थता तमने पकने अंतःपुरमा बइ जइ माताने वतावीन गुस्सो धरी बोलतो के, हे माता ! हुं एमनो निग्रह करु ब. ६०-३ए आ रीते। बीजो पण जे कोइ मारा राज्यमा अनाचारनुं सेवन करश, तेने निर्दय थइ हु बरोबर निग्रह करीश. ४० एम अनेकवार निग्रह करता अने त रीते जाषण करता ब्रह्मदत्तने जोइने दोषराजा चुनणीन आ रीते कहवा लाग्यो. ४१ आ तारो पुत्र जे कई बोले छ, ते परिणाम हितकारक नथी. त्यारे चुलणी बोली के, ए बाळपणथी गोळे जावे एम कर छ, माटे एमां एनो वांक न गणाय. ४२ दीर्घ बोयो के अरे मुन्धा ! हुं कहुं बुं ते तेमन छे. कुमार यौवनपणु श्री नुपदेशपद. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२४॥ मुज्कं तुज्य मरणाय होहिही जण श्य दीहो ॥३॥ तो मारिजन एसो---केणावि अनक्खिए णुवाएण, मइ साहीणे नहे-अन्ने होहिंति तुह पुत्ता ॥ ४ ॥ रइराग परवसाए-शह परत्नवकजवंज्कचित्ताए, पमिवन्नं चुनणीए--धिरत्थु इत्थीण चरियाई ॥ ४५ ॥ जं सबसक्खणधरे-वायएणुकरितनिजियकुसुमसरे, सव्वा विणयविरहिए-- निय पुत्ते ववसिया एवं ॥४६॥ वरिया य तेहिंतत्तो-तस्स कए नूमिपहुसुया एगा, पनणीक्यं च करव--विवाहपाजग मुवगरणं ॥४७॥ नसयन्निविटूर---अगूढपवेसनिग्गमवारं, कारावियं जजहरं-- वासनिमित्तं कुमारस्स ॥ 4 ॥ जाओ एस वश्यरोधणुणा तो रजकजकुसोण, नणियो य दोहराया--एप्स सुओ वरधणू मज्क पक्षा संपत्तजोव्वणजरो---निव्वाहसहो य रज्जकज्जाण, वणगमणावसरो मे----अणुमएणसु जामि जं तत्थ ॥५०॥ तो कश्णवण नणियो-दोहेण अमच्च एय नयररित्रो, पाम्यो बे, माटे मारा अने तारा मरण माटे ए थशे. माटे कोइ छाना उपाययी एने मारी नाखवो जोइए, अने हा तारे आध'न बु एटले वीजा घणा पुत्रो तारे थशे. ४३-१४ त्यारे रतिशगना परवंशपणाथी आ जव अने परजवना काम विचारवामां इन्य चित्त बनेन। चुलाणीए ते वात कबृन राखी, माटे स्त्रीना चरित्रने धिक्कार थाओ. ४५ केमके सब बक्षण संपूर्ण, लावायगुण थी कामदेवने जीत्नार ने अविनयथी तदन रहित एवा पोताना आ पुत्रम पण तेणी श्रा रीते वर्त्तवा लागी !!! ४६ वड़ तेम्णे कुमारना माटे एक र.जानी पुत्री दरी ने विशह माटे तैयारी करवा मांझी. H७ तेमणे वुमारने रहेवा माटे सो पांचला पर गांउबखें नै देसवा तथा नीवळवाना अतिगूढ कारवाळु बाखनुं घर बंधाव्यु. ४ श्राव्यतिकरण नी धनुमंत्री ने खवर एमी एटले ते राजकाजमां कुशळ होवाथी दीर्घराजा पासे जइ कहेवा लाग्यो के, आ मारो वरधनु पुत्र छे. ते यौवनवय पाम्यो छे, अने राजकाज चलावी शके तेम छे. माटे मारो हवे वनमा जवानो वखत डे, तेथी जो रजा आपो तो हुं त्यां जालं. ४ --५० यारे दीईराजा काट्या बोटयो के, हे अमात्य : तुं श्री उपदेशपर. . Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५५ ॥ दाणा पहाणं - - करेसु परलोयद्राणं ॥ १ ॥ परिवजिना एयं - पुरपरिसरवाहिगंगतीरंमि, काराविया विसाला - एगा धणुणा पवा पवरा ॥ ५२ ॥ परिवाय गाण तह नक्खुगाणाला विहाण पहियाण, जहगईंदो व्व तहि - दाणं दानं पयट्टो सो ॥ ५३ ॥ सम्माणदाण गहिएहिं अप्पणो निव्विसेसपुरिसेहिं, चटगालयं सुरंगं—करावर जाव जनगेहं ॥ ४ ॥ एवं विपि नरवइकमा सा यियपरियरसमेया, वीवादत्यं पत्ता - कंपिल्ले उसियपकाए || ए | वित्तं पाणिग्गहां - वासनिमितं तरयणीये, वरधवसमेयो – पवेसियो जनदरं कुमरी ॥ ५६ ॥ जामडुपि इगए - निसार पज्जालियं च तं जवणं, जाओ य कलयलरखो - प्रश्नीमो सव्वतस् || ७ || क्युहियजल निदिनिहं -- कुमरेगा यणि हलबोनं, आ आज नगरमा रहने दानादिकवमे परलोकनुं रुकूं अनुष्ठान कर. ५१ मंत्रिए ते वात कबूल करीने ते नगरनी नजी कमां बहती गंगाना किनारे एक मोटी प्रपा ( परव) करावी. ५२ त्यां ते परिव्राजक तथा अनेक जातना दिनुको तथा टेमाने दाऊरता द्र हाथीनी माफक दान देवा लाग्यो. ए३ ते साये तेणे मानदानयी संतोषेला पोताना अंगत मासो रोकीने ते, लाखना घर सूधी चार गाउनी सुरंग करावी. २४ एवामां राजकन्या पोताना परिवार साथे फरती धावाळा कांपिल्लरपुरम पर वामाटे आवी पहोची. एटले तेनुं पाणिग्रहण - थयुं बाद राते वसवा माटे वरधनुं अने वहु साथै कुमारने ते लाखना घरमां मोकलवामां आव्यो. ९९ - २६ बाद मधरात यतां ते घरने सळगाववामां आयु एटले त्यांना कळा या लाग्यो. ए७ ते कोनेला दरिया वा घोंघाटने सांजळी कुमार वरधनने पूछवा लाग्यो के ओ श्री उपदेशपद. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ पुलिओ वरधणू-किमको कमर मेयं ति ॥ ७ ॥ कुमर तुहा णत्यकए--एसो वीवाहवश्यरो रश्ओ, एसा न रायकमा-अमंश्चिय का तस्सरिसा ॥ एए ॥ तो तीइ मंदपणो--कुमरो जपे किं विहेय मओ, तो नणिो वरधणुणा-पहिपहारं अहो देसु ॥ ६० ॥ दिमि तंमि पत्तं सुरंगदारं विणिग्गया तेण, दोलिवि गंगातीरे—पवापएसंमि संपत्ता ॥ ६१ ॥ पुव्वंचिय धणुणा गवियंमि जम्ममि तुरयजुयलंमि, तक्वाण मारूढा ते—पामासं जोयणाणि गया ॥ ६२ ॥ अश्दी. हरपहखेएण-खेड्याज्झत्ति निवडिया तुरया, पाएहिं चेव गंतुं-नग्गा पत्ता तो गाम॥ ६३ ॥ कुड्डानिहाण मेत्थं-कुमरेणं वरधणूं मं नणिओ, जह बाहए छुहा मे --परिसंती तह दढं जाओ॥ ६४ ॥ गामबहिमिय तं गविक्रण गामंतरे पविट्रो सो, चिंती आशी गमवा था बे. ५७ वरधनुए कह्यु के हे कुमार, तने मारवा खातर आ विवाहनो गठमाठ करवामां आव्यो छे, अने आ कंश राजकन्या नयी, पण तेना सरखी को बीजी स्त्री छे. ५0 ते सांगळी कुमार तेनाथी प्रीति उतारी। कहवा लाग्यो के त्यारे हवे शं करवं? त्यारे वरधनए का के आकाणे तारी पेनी वता हमसेलो आप. ६० तेम करतां तेमने सुरंगनों दरवाजो मळ्यो एम्ने ते बन्ने जण गंगाना कोठे प्रपाना प्रदेशमा आवी पहोंच्या. ६१ स्यां प्रथमचीज मनुमंत्रीए बे जातवंत घोमा राखेला हता तेनापर तेश्रो तरत स्वार थइने पचाश योजन दूर नीकळी गया ६२ हवे लांबो रस्तो कापवाना थाकथी थाकीने घोमा ट द पी गया. स्यारे तेत्रो पगे चालीने एक गामे आवी पहोंच्या. ६३ ते गामर्नु नाम कुड्ड करीने हतुं. त्यां कुमार वरधनुने कहेवा लाग्यो के मने नूख पी डे अने खूब थाकी पण गयो बु. ६व त्यारे कुमारने गामनी बाहेरज राखीने वरधन गामना अंदर आवी एक हजामने ला आव्यो अने श्री उपदेशपद. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ घेत्तूण पहावियं आगएण मुंमावियो कुमरो ॥ ६५ ॥ वत्थे कसायरत्ते--निवासियो पट्टएण बछो य, चनरंगुत्रेण वत्थे--सिरिवत्यो लच्छिकुल निनो ॥६६॥ वेसविवज्जासामो-वरधणुणाविय को परावत्तो, जइ कहवि दोहराया-जाणेज्ज हणेज तो अम्हे. ॥ ६७ ॥ श्य संजमं वदंता-तप्पनियारं तहा कुणं ता य, गामंतो संपत्ता-एगाओ माहण गिहाओ,-॥६७ ॥ निग्गम्म दासयेमेण-नासिया भुंजहेह गेहंमि, जुत्ता तत्य निवोचियनीईए तदव साणंमि,--॥ ६ए ॥ एगा पहाणमहिवा-कुमरस्स सिरंमि अक्खए देश, नण य बंधुमईए--कामा वरो श्मो होहि. ॥ ७० ॥ अच्चंतं णिगगोवणपरेण नणियं अमच्चपुत्रोण, किं अस्त कए हिजइ-- खेत्रो मुख्वस्स बयस्स ॥ ७१ ॥ नफुटबलोयणेणं-जणियं घरसामिणा सुणसु सा श्री उपदेशपद. तेनी पासेथी कुमारनुं मायुं बोमाव्यु. तेमज नगवां कपमा पहेराव्यां तथा चार आंगळना पाटायी छातीपरतुं श्रीवत्सर बांधी बीधु. ६५-६६ तनी वरधनुर पण पोतानो वेश बदली नाख्यो, एम धारीने के जो कोइ रीते दीर्घराजा जाणशे तो ते । मने मारीज. नाखने. ६७ एम संभ्रम धरी तेनो प्रतिकार करता तेश्रो गामनी अंदर आव्या एटले एक ब्राह्मणना घरमांधी एक चाकरे नोकळीने तेमने कह्यु आ घरमां तमो जमो, तेयी तेश्रो राजाने योग्य आदरमानथी त्यां जम्या. बादएक नली स्त्रीए कुमारना कपाळमां चांदलो करी चोखा चोड्या अने बोलीके बंधुमतीकन्यानो आ वर थशे -६७ -६५-७० त्यारे मंत्रिकुमार पोताने खूब-छाना राखवामाटे बोल्यो के श्रा मूर्ख बटुकना माटे का हेरान थाओ गे? ७१ R Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २८ ॥ - मि, नेमित्तिएण पुव्वं -- नणिय मिाँ जो घरे एही. – ॥ ७२ ॥ पट्टाच्छाश्यवत्थो - चित्र जोयां करिस्सर य, एयाए बाळाए - बरोस होही न उण अन्नो. ॥ ७३ ॥ तो तंमिचेव दिवसे - पाणिग्रहणं करेइ सो कुमरो, तक्खणमेव विग्गोपरोप्परं निब्ज हो. ॥७४॥ तुच्छी हूओ जणगाइएस चिरपरिचिएसुवि जोसु, पमि - बंधी तीए जं-- नति कुसला श्येरिसगं ॥ ७५ ॥ बालत्तणं मि पिइ माइनाइसहियायो पो हो, आरुढजोव्वाणं - जुवईण पिओ पियो एगो ॥ ७६ ॥ नीया रयणी - साती सद्धिं सको गयाए, अन्नजबुत्तणय - सव्वंग पप्पांती ॥७७॥ बीयदिणे वरधणुणा--नपिओ गंतव्वंमत्थि ते दूरं, कहियो बंधुमईए - सन्नावो नियादोवि ॥ ७८ ॥ गामंतरंभि पत्ता- - अदूरपमि वरधणू तत्य, सलिलनिमित्त त्यारे विकसित नेत्रवाळा घरधणीए कयुं के हे! स्वामि, तमे सांजळ अमोन पूर्व एक नैमित्तके कहें छे, जे या धरमां आ वशे, जेनी छाती पकाना पाटायी ढांकेली हशे अने चित्रसहित होइ जमशे ते या बाळानो वर थशे' बीजो नहि याय७२–७३ तेथी तेज दीवसे कुमारे तेनुं पाणी ग्रहण कर्यु. अन तरतज तेमनो परसपर गाढ स्नेह बधायो. ७४ वाळानो चिरपरिचित जनकादिक जनमां प्रतिबंध ओछो पड्यो, जे माटे चतुरजनो आ रीत कहेछ:- ७५ स्त्रीओने नानपणमां पिता जाइ तथा सखियो प्रिय होय छे, पण ज्यारे तेप्रो यौवन पामे छे त्यारे तेमने एकलो तीरज प्रिय होयछे. ७६ त्यां कुमारे ते रात ते उत्सुकमनवाळी बाळासाथे पसार करी, पण तेणीए शरमाळपणाथी पोतानुं सर्वाग हि. 99 बजे दिने वरधनुए कुमारने कछु के तारे हजु दूर चालवानुं छे. तेथे । बंधुमतीने खरी हकीकत कहीने ते वे जण त्यांथी चालता थया. ७० तेप्रो घणुं लांबुं चाली बीजे गामे याव्या. त्यां वरधनु पाणी लेवा श्री उपदेशपद. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || gu || मग -- बहुं तो निगो, जन||७|| निसु जापवाओ - मए जहा दीहराइणा मया, सव्वेयि बंजदत्तस्स - गहणहेनुं निरुद्ध त्ति ॥ ८०॥ ताना सिजह दूरेण मग्ग चागं करितु गच्छामो, जाया महामवीए - पनिया तिसि बहुं कुमरो ॥ ८१ ॥ रामदिदा व एसो गयो स सलिलत्या, जायं दिपावसाणं- न लद्ध मुदगं परं एसो - ॥ ८२ ॥ दिदो दीनडेहिं - दढं च हम्मत सरोसेहिं, पत्तो कुमरासन्ने - कवि विरलदुमंतरि ॥ ८३ ॥ कय संकेओ विदियो - ते कुमारोपायसु सुदूरं तत्तोस तिव्ववेगो - पलायमाणो दुरुत्तारं ॥ ८४॥ कतारं कायर - लोय सोय संपायगंग जत्थ, हरिणारिणो वियंतंति जीमरवन रियगिरि कुहरा. ॥ ८ए ॥ रविपाया जत्थ न ओयरंति तरुवह पल्लवंतरिया, मन्ने नवनवनर्दतदनसूई माटे लांबे त्यांयी ऊट वाछो आवी बोल्यो के हुं लोक प्रवाद सांजळी आव्यो बुं के ब्रह्मदत्तने पकवान दीर्घ राजा सघळा रस्ता रोकेला छे ८ माटे आपणे रस्तो मेलीने दूर नाशिये एम कही तेत्रो एक मोटी वटीनां यात्री चड्या. त्यां कुमार बाहु तरसेझो ययो. ८१ त्यारे वरधनुए तेने वमहेत्रे पो राख्यो अने पोते पाणि नरवा गयो दिवसमा व्याथी पाणी नळयुं नहि- - पण उलटो ते दीर्घराजाना माणसोनी नजरे चड्यो एटले तेमले गुस्से थइ तेने खूब मार्यो. छतां जेम तेम ते कुमारनी नजीक यावी कामना प्रोथे पूर्व कहेलो संकेत करवा लाग्यो के कुमार तुं दूर जा, एटले कुमार तीव्र वेगयी ते दुरुत्तार अटवी मां नाशवा लाग्यो. ८२ – ८३-८४ ते नाशतो यको कायरलोकन शोकमां नाखनार कांतारमां श्वान थयो के ज्यां जयंकर अवाजथी पर्वतनी गुफाओने र नाता सिंहो गाजी रहे बेवळ ज्यां कामोना पांददायी सूर्यना किरणो पण अटकी रहे डे, अने जाणे नवी नवी जगती दर्जनी श्री उपदेशपद. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ MAP कयत्नयाओ. ॥ ७६ ॥ मयरायपहयगयकुलंगलियमुत्ताहलाई रेहंति, जत्थु नयतरुसिहरग्गखनियतारावळीओ य. ॥19॥ जत्य बहुन्निनजल्नय सल्लियचित्तगझरंतरुहि रेण, नाइ महीवणदेवय चक्षणालत्तयरसेणे व. ॥ ॥ जं जमपुरं व सवराहएहि उइंमपुंमरीएहि, तरुसाहासिहरोलंबिएहि जीमेहि एगत्य,-॥ ए॥ अन्नत्तो हरिहिंसियसमयगंदट्रिवियमकूमेहिं, निच्चं संतासुक्करिसकारगं पहियसोयाणं. ॥ ५० ॥ गयगंधगब्जिणेसु-तहसु सत्तच्चएसु गुविसु, करिसंकिणो मरंदा-नमंति विहलक्कमा जत्य. ॥ ए१ ॥जत्य गमइति करणा-हेमंत तरुवरग्गसंलग्गा, सययं पसरियअपगुरूणीसासुण्हेहि पवणेहिं. ॥ ए२ ॥ ताहाहाकितंतोतं अमवि मक्वमित्तु तश्यदिणे, पेच्छ तावस मेकं तवसुसियतणुं पसन्नमणं. ॥ ए३ ॥ तदंसणमित्तेणविअणीए नयनुज सूचन करे छ.८५-८६ वळी ज्यां सिंहोए विदारेखा हाथीओना कुनस्थळयी पमता मोतीओ जाणे ऊंचा कामोनी टोचमां अटकीने खरता ताराओ न होय तेम शोलता हता. ८७ ज्यां जीसोना नासाथी हणायला चित्ताओनो करती लोहीते जाणे वनदेवताना चरणना असतानो रस होय तेम जमीनने जीजवती. ८८ जे एक ठेकाणे जीलोए हणेला अन कामोनी शाखाओ पर लटकावेना नयंकर सिंहोना चाममाअोथी अन बीजे ठेकाणे सिंहोए मारेला मोटा हाथीओना हामकाना ढगतामोथी वटेमाणुओने यमपुरी माफक बीहामणु लागतुं हतुं.८५-८० वळ। ज्यां हाथीनी गंध आपता सप्तपर्ण नामना गीच कामोमां हाथो होवानुं वहेम झावी सिंहो फोकटनी छत्रगो मारता जमता हता. ए ज्यां वांदराओ शियालानां कामोनी टोचे रही नारे नीसासाथी ऊना यएना पवनव बखत प्रसार करता. एक ते अटवीने नूरख्या तरस्या कुमारे नस्संधी करीने त्रीजे दीवसे एक तपथी सूकायन्ना शरीरवाळो अन प्रसन्न मनवाळो श्री उपदेशपद. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३१ ॥ संजाया तरस जीवियासंसा, पयपशिवाय पुरस्सर - - मा पुद्दो ते सो जगवं ॥ ७४ ॥ तुम्हा मायो कत्थ ते कहियां तय कुन्नवइस्स, नीग्रो समव मानासि य सप्पय मेएए ॥ एए ॥ बपच्चवाय मेयं - रां सुतं च सज्जण जणेण, ता कह तुह आगमणं - - जायं संपइ महानाग ॥ ए६ ॥ सन्नावगन्न मेयं नाऊण जहवित्र्यो नियगिहस्स, कुमरणं वृत्तंतो— कहिओ सव्वोवि कुलवणो ॥ ७ ॥ दूनग्गपायपरव्वसेण कुलसा मिणा तयो नणियो, बंजस्स तुम्ह पिटणो-नायाहं आसि ॥ ८॥ ता वच्छ नियो च्चिय एस-आसमो निन्नयं परिवसाहि, मुंचसु विसाय मेया रिसाई संसारच रियाई ॥ ९९ ॥ होउण उन्नयाओ तहरियाओ जलस्स जंतंमि, जह घमिया खणाओ - जायंते श्यररूवाओ. ॥ १०० ॥ तह इत्थं जवचक्के तापस जोयो. ३ तेने जोताज कुमारने जीववानी आशा आवी, तेथी तेणे ए भगवान् ने पूछयुं. ९४ तमारो आश्रय वयां बे. तापसे ते कही नेतेने कुळपतिनी पासे एयो. कुपतिये तेने प्रीति पूवर्क या रीते बोलायो. एए अरण्य ६. जो खम्वा ने सारा जनानी वसतिथी रहित छे माटे हे महाभाग, तारुं इहां शी रीते कुळ तिने खरा दिलवाळ जाणीने कुमारे पोताना घरनो वृंतात जेम बन्यो हतो तेम कह्यो. ७ त्यारे दौनाग्याने प्रीतिने सीधे चाइने कुलपतिए तेने वां के हुं तारा ब्रह्म पितानो नानो जाइ हतो. ए८ माटे हे वत्स, आ ताशेज छे, इहां निर्भय ने रहे, अने विषाद बोगी दे, केमके संसारना बनाव एवाज छे. एए जेम जळयंत्रमां मी उंची अने नरेली यह पानी तरत गली ने नीची थाय छे, तेम आ जवचक्रमां जीवो लक्ष्मीना निलय उत्तमकुळवाळा या पाछा काळना वशे तेथी विपरीत पता रहे बे. १०० - १०१ स्त्री चरित्रमां कोइए कं वि वकुं पयुं छे ? ६ श्री उपदेशपद. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३३॥ -सच्ची निलया जणुत्तमकुळा य, होनें कासवसाओ-जीवा जायंति विवरीया. ॥१०१॥ इत्यी चरिए सु न को-केणई विम्हओ विसाओ वा-कजे, जो अणजइमान अणवदियमणाओ. ॥ १०॥ रज्जति अरत्तेसुवि-णियमणचवज्ञत्तणेण एयाओ, अणिमित्तं चिय रत्तेसु-झत्ति पावंति य विरतिं.॥१०३॥ खणरत्ताणं कुराण मेव अवसाणविहियतिमिराण, संफ्राण व रामाणं- वसंमि को कुसल मुव्वहइ. ॥ १०४ ॥ तम्हा चयसु विसायं--जं धीर च्यिय तरंति विसमदसं, श्यरे गहिरजले श्व-- अतारगा शत्ति बुड्डुति. ॥ १०५ ॥ लछानिप्पाओ कुत्रवश्स्स सो तत्य अत्यिनं ल ग्गो, पत्तो वासारत्तो जलवाहानवियगयणयलो. ॥१०६ ॥ नयनीवियवत्यहिव-सव्वत्य समुस्थिया तिणेही मही, विरहि जणुम्माहेहि व--फुरियं तह इंदगोवेहिं. ॥ १०७॥ * स्मय के विषाद न करवो केमके तेत्रों अनार्य अने अनवस्तित ( चंचल ) मनवाळी छे. १०२ तेओ पोताना मननी चपळतायी अणरागीमां रागवाळी बने बे, अने रागीमां वगरकारणे ऊट दल्ने विरक्त बने. १०३ कण XXक्त. कर ने छे अंधकार करनारी संध्याओनी माफक स्त्रीओना वशमां पयो कोण कुशळपाणं पामे ? १०४ माटे तुं विषाद मूकी थे, केमके में धीर होय तेोज विषयदशाने पार पहाचे, बाकी कायरो तो ऊंमा पाणी मां प्रणतारुनी माफक कट दाने बसे छे. १०५ श्रारीते कुळपतिनो अजिप्राय जाणीने ते त्यां रदेवालाग्यो. एवामां त्यां वादळाथी आकाशने गरी नाखतो वर्षाकाळ आव्यो. १०६ जनीम सघळा स्थळे जाणे नवां नीलां वस्त्र जोड्यां होय मेम घासयी छवाइ गइ; अने विरहिजननां कंदर्पनी माफक इंद्रगोप उन्नरावा लाग्या. १०७ श्री नुपदेशपद. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३३ ॥ --- सुमुणीण माणसाणि व--धवलान वियंनिया बनायाओ, सुयणाग संगमेण व-निदाहो जो जाओ. ॥ १०८ ॥ नज्जो श्य नुवणयला -- -- पत्ता चिय नियदूर तिमिरनरा, धम्मियजणधम्मक हव्व — झत्ति विजोश्या विज्जू ॥ १०८॥ अश्ग हिरघणारवसवणखुहिय वल्लह जणाणुरागाओ; नियाणा निमुहाओ -- पंथियमानान चलियाओ ॥ ११० ॥ सो कुलवणा धणुवे माझ्या कलान सयलाओ, अहिजियपुव्वाओ- -सम्म महिजावित्र्यो कुमरो ॥ १११ ॥ पत्तो य सरयकालो - परिपंकुरजल यवलय कलियनहो, प्फुल्ल कमल व एलोल हंसकल रावरम णिज्जो.॥ ११२ ॥ कश्याइ कंद फलजलगवेसगे तावसे तरल संतो, -- ११३ सो रन्नपरिसरअणुसुरता 'मतो कुलवणा --- कुहल्ला सारा मुनिना मनी माफक धोझी बगलीओ जमवा लागी, अन सुजननो समागमनी माफक लोकने दाह निवृत्त थयो. १०८ जगत्ने ऊजवनारी अने आवी के अंधकारने दूर करनारी धर्मिजननी धर्मकथामाफक वीजळी चमकवा लागी. १०० अतिऊंको गर्जारव सांजळी ने होनेली प्रियाओ पर प्रेम लावीने पथिकजना पोताना घरतरफ चालता यवालाग्या. ११० तेने कुपतिए पूर्वे नहि शीखली धनुर्वेद विगेरेनी सघळी कळाबरोबर शीखवी. १११ एवामां शरत्काळ प्राव्यो मां धोळा वादळायी आकाश छवा रहेतो, अने फूलेला कमलोना वनमां हंसो मधुर अवाज करता. ११२ हवे एकवेळा कंदफळ पाणी शोधता तापसोनी पाबळ कुमार चाल्यो, तेने कुळपतिए निवार्यो बतां कुतूहळथी चंचळ नेते अयनीयासपास सुंदर वनोने जोता अंजन गिरि जेवो ऊंचो एक हाथी तेनी नजरे पड्यो. ११३ ११४ v श्री उपदेशपद. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४॥ रंमी---आलोइंतो वणाई रम्माई, अंजणगिरि व्व तुंग-मायंग महो परोए. ॥११॥ घिरधोरकरं मियदसुणकोमियो मिजमाणवणसंमें, निरझरंतमयजल निब्जरलोलालिपरि किम. ॥ ११५ ॥ सत्तंगपश्ट्राणं--कुंजत्थवजियनन्नत्यक्षालोयं, पायघणगहिरगलगजिएहि परिपूरिय दियंत ॥१६॥ सो दवण कुमार--संमुह मिंतं सरोससिग्धगई, चलिओ जिमुदं पञ्चक्ख मेव नजइ जमो जीमो ॥ ११७ ॥ तकेत्रिकोनगणं-तिलतुसमेत्तमपक्षायमाणेणं, पक्खित्त मुत्तरीयं--काऊणं ममत्रागारं ॥११॥ संमुह मिमस्स तेणावि तक्खणादेव गहिय मुक्खित्तं, सुंमादरेण नहंगणंमि जाओ स रोसंधो ॥ ११९ जा सो रणगइंदो---गहियं दक्खत्तणेण विकण, तं कुमरेण अक्खुको-प्तो तं कीनाविन बग्गो ॥ १२० ॥ सुंडग्गनायफुसणवढियवेगस्स तस्स वणकरिणो, अणुहाथीनी सूढ स्थिर अने जयानक देखाती हती, ते पोताना धोळा दांतोयी कामोने मरमतो, अने तेना कुंनस्यळनी नीकरणानी माफक करता मद जलपर जमरायो सपाय रखा हता. ११५ ते साते अंगे मजबूत हतो तेना कुंजस्थळ आका-& शने नरी नाखना हता, अने प्रळयकाळना नेवना माफर ऊंमा गरिवथी ते दिशाओना छमाओने जरी नाखतो. ११६ ते हाथी कुमारने सामे आवतो जोइ गुस्सायी उतावळो थइ जाणे प्रत्यक्ष जयंकर यम होय तेम सामे पायो. ११७ त्यारे तेनी गम्मतना कौतुकथी कुमारे लगार पण हठ्या शिवाय पोताना उत्तरीय वस्त्रने गोळ वीटाळी तेनी सोम नाख्यु, ते तणे तरत उपामीने सुमथी आकाशमा नछाब्यु अने ते गुस्साथी आंधळो बन्यो. ११७–११५ तेटनामां कुमारे चतुराइयो तेने चूकवीने ते वस्त्र बबीy, बाद दोन पाम्यावगर कुमार तेने आ रीते रमावा लाग्यो. १२० कुमार ते जगत्री हाथीनी सूझने अमक्यो एटलेतेहाथी सामे दोड्यो तेवायां कुमार तेना आगळ दोग्यो तेटक्षामां श्री उपदेशपद. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मग्गगामिणो खण---मह कुमरो धाविओ पुरओ ॥ १३१ ता जा सो खझियकमो--- जाओ चलिनण पलिमे जागे, मुदिपहारण हो---विमुक्कहकारवरउदं ॥ १२२ परिवत्त जा तत्तो-----अवराहुत्तं कमे ता इयरो, पायंतरावजागेण-----करयतामुसियतमन्नागो ॥ १३ ॥ एवं कुलाबचकेण---नामिओ जा समं परं पत्तो, तत्तो थंन्नियतदेसचारिमयजूह ममहुरं,---॥ १२ ॥ बग्गो कागबिगीएण गाउं मुक्कसेसवावारो, कुमरो ताव करिंदो-आयमय तरुवियकमो ॥ १२५ ॥ किंचि अपेवंतो तह-- थिरविहियकरो निरुष्कमपसरो, चित्तविहिन व्य जाओ-खणेण सो वारणाहिवई. ॥ १२६ ॥ दसणग्गनग्गपयपंकएण पविमुक्कसव्वतासेण, पिदिपएसे कुमरेण सो तो सुदढ मारुढो. ॥ १२७ ॥ पमिपुन्नकोलगो अह-सणियं सणियं समुत्तमित्ताण, श्री नपदेशपद. हाथी पगे परमायो एटले कुमारे तेनी पाउळ जइ तेने एवा जोरथी मुक्की मारी के ते चारे चीस पामवा लाग्यो.१५११२२ हवे हाथी जेवो एकबाज फों के कुमार तेना पगनीचे जइ हाययो तेना पेटमां आंचकी मारी बीजी बाजु ऊनो रह्यो. १५३ आ रीते कुंजारना चाकनी माफक तेने कुमारे समाव्यो एटले ते खूब याक्यो, त्यारे कुमार शेष काम जोमी काकळिस्वरथी ते ठेकाणे फरता हरणोने ऊना राखे एवा अतिमधुर गोतया गावामाग्यो. त्यारेते हाथी कान टेकवीने ते । सांचळवा लाग्यो १२४ १२५ ते हायी कई पण जोयावगर तया पग स्थिर राखी जाणे चित्रामणमा आलेख्यो होय तेमळनो रह्यो. १५६ त्यारे तेना दांतपर पग टेकवीने वगरवी के कुमार तेनी पूंठपर चीवेगे. १५७ आ रीते कौतुक Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बग्गो गंतुं पहिपहपरायणो मूढदिसिचक्को. ॥ १२ ॥ तत्तो विसंतुणगई–पर। नमंतो नई एगाए, तदेसदिय गिरिणो–कुहराओ नीहरंतीए.-॥ १२ए ॥ तमसंज्यिं पुराणं-पमियगिहं खमन्नित्तिमित्तेण, नवलक्खिजंत नगर-मेग मह पासइ. कुमारो. ॥ १३० ॥ तदंसणंमि संजायकोनहलो निरिक्खिलं बग्गो, जायं ताव वियद-वंसकुमंगं महागुविनं. ॥ १३१ ॥ परिमुक्कपासखेमगखग्गं तो कोनगेण तं खगं, वाहे वंसयात्री ती व्यत्य मायराो. ॥ १३२ ॥ पमियं वंसकुमंग-तं झत्ति तदंतरालनागंमि, पमिपुन्नचंदमंगलसरिसं तह वयणतामरसं ॥ १३३ दट्ठण मुटाट्य-मय विहियं मए ज मेरिसगो, निहा अकयवराहो-कोइ नरो सज्ज णसरूवो. ॥ १३२ हटी मह बाहुबवं-कोनहत मलिय मेरिसं मझं, पबायावपरपूरू करी कुमार हळवे हळवे ते हाथीपरयी ऊतरीने पाछा मार्गे वळवा मांझयो तेवामां ते दिशाचक्रने ओळखवामां मुंफाइगयो. १२० तेथी जेमतेम फरतां ते ते वेकाणे रहेला पर्वतनी खीणमांयी नीकळती एक नदीना किनारे रहेला जूनापुराणा अने परीक्षा घरवाला उतां खंभेरोनी जातोयी ओळखवामां आवता एक नगरने जोवा बा ग्यो. १२५ - १३० ते जोड्ने कुमार कुतूहळयी जीवा लाग्यो एवामां तेणे एक गीच वासन जोयु. ५१३१ त्यारे तेणे ते वांसना बुझने कापवामाटे कौतुकयी पोतानो खा म्यानमाथी खुल्यो करीने वापर्यो, एटले ते वांसनुं बुम अट दप्ने पमयुं अने तेसाथे तेना वचेयी पूनमना चंद्रसरखं एक मनुष्यतुं मुखकमळ पण पम्युं. १३२ -१३३ ते जोऽ कुमार विचारवा लाग्यो के मे आ नूं काम कथु के आ कोई आवो सज्जनस्वरूप निरपराधी माणस श्री उपदेशपद. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७॥ वसो-किं करणिजं ति चिंते ॥ १३५ ॥ आलोयंतण दिसंतराइं दिटै कबंध मुछकम, पारद्वधूमपाणं-विजासंसाहणपहाणं. ॥ १३६ ॥ अहिययरं से अधिई-जाया हा हा मए को विग्यो, एपस्त ता किमित्तो-होजा मे पमिविहाणं ति॥ १३७ ॥ श्य फ़रमाणहियो-जा परिसका निहालए ताव, नजाण मुज्जुयागारसासंदोहसोहिलं ॥ १३० ॥ वियसियसव्वोजयसाहिकुसुमसनारपरिमनविसोलं, जत्यालिजालमश्कलरवरुषदिसं सया सहइ. ॥ १३॥ ॥ तह उच्चतालतरसम्ममली जाइ पवणकयकंपा, कुमरनवरूवदंसन विम्हयरसधुणियसीसव्व ॥ १४० ॥ तत्थय महह्मपसवककिलितरुहि सव्वो चेव, परिकिामं पासायं-सत्ततणं ऊसियपडागं. -॥१४१ ॥ नियन्नित्तिनागपसरंत कंतिपज्जारसवितधोयदिसं, तुंगत्तणगुण घट्टिय मारीनाख्गो.१३४ माटे मारा बाहुबळने धिकार थाओ अने आ मारु जूग कुतूहलेन पण धिकारे यायो एम पश्चात्ताप करता - कुमार चिंतववा लाग्यो के हबे मारे शुं कर्तुं ? १३५ बाद कुमारे आमतेन जोतां विद्या साधवा तत्पर थई ऊंधे पगे टी: गायत्रो अने धूमपान करतो धर जायो. १३६ त्यारे कुमारने वधारे दिलगीरी यइ के हायहाय में एने विघ्न कर्यो, माटे - मारे एनुं शुं प्रतिविधान करतूं? १३७ एम यूरतोयको कुमार आगळ चाब्यो एटले तेणे सोधा शामवृक्षोनी घटाथीशोजतुं । उद्यान जोयुं. १३७ ते उथान सर्व रुतुना फुलोनी सुगंधयी वहेकतुं हतुं अने त्यां नमराओ गुंजारयी दिशाओ जरी ना-3 खता हता एम ते शोजतुं हतुं. १३ए त्यां ऊंचा ताळतरुनी हार पवनयी कंपती थकी जाणे कुमार नव रूप जोवानो विस्मययी माथु धुणावती होय तेम लागती हती. १४० ते उद्यानमां मोटा पांदमावाला अशोकना कामाथी चारेबाज श्री उपदेशपद. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RROR ॥३०॥ रविरहपहसिहरसंताणं. ॥ १४ ॥ पास पासपरिट्रियसरसीजलसीयोण पवणेण, दूरोसारियदाहप्पसरं मणिकम्मरम्मतलं. ॥ १४३ ॥ तत्थ कमेणा रूढो-नूमीए सतमी पेजेइ, एगं कमलदाचं-कहां लायामजनजनहि. ॥ १४ ॥ तो रूवाखित्तमणो–नुप्फुलविलोयणो य पुणरुत्त, तं चेव पासमाणो-विचिंतिनं श्य समाढतो. ॥ १४५ ॥ घेत्तुं के अपुल्वे-परमाणू मीसिऊण अमएण, नियसिप्पदंसणत्थंनूण मिमा निम्मिया विहिणा. ॥ १४६ ॥ णूणं पएहि दनियो-चंदो मुहमच्छरं परिवहंतो, पयनहसान खंडीनावं कह मामहा नवइ. ॥ १४ ॥ स्से नियंबविंबंजियसुरसरिविननवाबुयापुलिणं, नवनाइ तिजयजयसंतकुसुमसरसयणफलगं व.॥१४॥ मम्मे अणंगकरिणो-निविझकरग्गहनिपीमणातणुयं, मऊ मज्कट्रियरामराइमिसदावटियनो' सात माझवाळो, जमती धजावाळो,-पोतानी जीतोनी पसरती कांतिथी दिशाओने ऊजळी करतो' ऊंचाइमा - सूर्यना रथना मार्गने अमकतो.–पखे रहेला तळावना जळथी था यता पवनवझे तापना जोरने दूर करतो, अने मणिोथी जेना मान जमेना हता एवो एक महेल जोयो १४१-१४-१४३ ते महेलपर कुमार अनुक्रने चमवा लाग्यो. त्यां सातमा माळपर तेणे कमळना दसजेवी आंखवाळी अने लावण्यजळना दरिया समान एक कन्या जोइ. १४च त्यारे तेना रूपथी खेंचाइने कुमार आंखो ऊघामी वारंवार तेनेज जातो यको आ रीते विचारवा लाग्यो. १४५ खरेखर विधाताए पोतानी कारीगीरी बताववामाटे कोई अपूर्व परमाणुओ बहने तेमने अमृतथी मिश्र करी आ कन्या बनावेसी छे. १४६ एना पगोए एना मुखपर मत्सर राखताचंद्रने खरेखर चरी नाख्यो छे, नहितो पगना नखोना मिपथी ते ककमाककमा थएलो का देखायछे? १४७ एणीनुं नितंब गंगाना रेतीनाकिनाराने जीतेदं छे अने त्रणे श्री उपदेशपद. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३५ ॥ हमिमं ॥ १४ ॥ एसा सहावगहिरा - नाही एयाहि नज्जर जोण, जयवेहकारिणो कूविगव्वमयरद्वय रसस्स ॥ १५० ॥ तिवली मिसे णिमीए - उयरे रेहति तिसरेहा, मन्ने विह्निविदियाओ - नियतणुनि ज्जियतिदुयणाए ॥ १५१ ॥ उट्टंतपीएयणमंगलस्स वत्थत्यनस्स को सोहं, बहइ इमीए जं समरसारजुयजूयफलगसमं. ॥ १५२ ॥ कप्पतरुणो लया ओव्व दोवि रेहति मी बाहूओ, करपल्लवान कररुहकुसुमान सणिद्धरूवाओ. || १३ || सोहर वयण मिमीए – कसिणुज्जलक लिकुंतल कलावं, ससिमंगलं व जवरिं-- घमंतयइक सिणघणपडलं. ॥ १९४ ॥ दीहरन - नईएम्मदवाहो निरंतरं एहाइ, कद मंन्नहा तमीए - - दीसइ जमुहा धणुलय व्व ॥ १५५ ॥ गोरे मुहंमि एईई - ताइ अहरो निसग्गसोणपदो, रत्तोप्पलपत्तचजगतने जीतवाथी थाकेला कामदेवनुं सूवानुं फळक होय तेम शोने छे. १४८ एणीनुं मध्य कामरूप हाथीमी संमयी पक मेनुं होवाथी पातलुं बनेल लागेछे अने तेमां बच्चे रोम राजिछे ते ते हाथीना दानजळनी रेखा होय एम लागे. १४० आ स्वनावे जंकी नानि तो जयवध करनार कामना रसनी वावकी हाय तेम लोकोने जाणायडे, १५० एपीए पोताना शरीरथी त्राण जगत् जीत्या बे तेथीज जाणे विधाताए एना उदरमां त्रिवळीना मिषे त्रण रेखा करेली लागे छे. १५१ एएणीना उंचा ने मजबूत स्तनमळवा वृक्षस्थळ के जे कंदपनुं जूवा रेवलवानुं मजबूत फलकसमान छे तेनी शोना कोण पामी शके ? १५२ एणीनी वे बांयो कल्पतरुनी वेल्लमीयो जेवी लागेबे, तेमां हाथ बे ते पब्लव वाळा नख े ते कुसुम छे. १५३ एणीनुं काळा अने चळकतावालो वालुं मुख जाणे काळा वादळामां रहडें चंद्रमंगळ होय ते लागे छे. १५४ एणीनी लांबी आंखरूप नदीमां मन्मथ पारधी हमेश न्हाय बे, नहीं तो तेना श्री उपदेशपद. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४ ॥ ओ व्व--धवलकमले कयनिवासो. ॥ १५६ ॥ सवणा सहंति एई नयणसरिपवहपखलणकुसला, नमुहाधणुणो अंते-चम्महवाहस्स पास व्व. ॥ १५७ ॥ अञ्चो जं जं दीस--अवयवरूवं श्मा देहमि, तं तं मणणिव्वुश्कारि--होइ सुरतरखयाए व्व. ॥ १५ ॥ दिदि तीए अट्रिओ य दिलं च आसणं तत्तो, पुठा सा तेण तुमं --का सुंदरी एत्थ परिवससि. ॥ १५ए सज्झसरुज्झंतगलाइ तीइ परिजंपियं महानाग, गरुओ नह वुत्तंतो-न तरामि सयं परिकहे. ॥ १६० ॥ ता कहसु तुमं नियमेव वश्चरं की तुम इह कहवा, गंतु पयो होसि--सोज मेवं तो कुमरो,-- ॥१६१॥तीसे कलकोइलकोमलाइ अइनिळणनणणकुसनाए, वाणीइ रंजियमणो-जहदियं कहि माढत्तो.॥१६॥पंचालसामिणो बंजराईणो सुयणु बंनदत्तो हं,-पुत्तो कऊव किनारापर धनुष्य जेवी चमरो को देखाय छे ? १५५ एणीना गौर मुखमां स्वजावे लाल होउ धोळा कमळमां रहेनराता नत्पाना गुच्छा माफक लागे . १५६ एणीना कानो अांखरूप नदीना प्रवाहने अटकाववाभां समर्थ होइनकुटीरूप धनुषवाळा मन्मथ पारधीना जाणे फांसा होय तेवा लागे . १५७ खरेखर एणीना शरीरमा जे जे अवयव देखाय छे ते ते कल्पवानी माफक मनने आनंदकारी छे. १५७ ते कन्या पण कुमारने आवतो जोइ उनी या अने तेणीए तेने आसन आप्यु. बाद कुमारे तेणीने पूछयु के, हे सुंदरी ! तुं कोण छे अने हां केम रहे। छ ? १५त्यारे नययी गर्छ रुंधातां तेणी बोली के, हे महानाग ! मारो वृत्तांत एटयो मोटो जे के ते हुं पोते । कही शकुंतेम नयी.१६८माटे तमेज पोतानो व्यतिकर कहो के तमे कोण जो अने हां केम आवेला डो? ते सांजळीने कुमार 7 ते कोयाना माफक कोमळ स्वस्यी चतुराश्यी बोलती कन्यानी वाणीथी खुश थइने खरी वात कहेवा लाग्यो १६१-१६५ श्री उपदेशपद. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४१॥ ABRDAN सानो-समागो रमममि. ॥ १६३ ॥ तव्वयणाणंतरमेव-हयिससवित्रण पूरियलिपुमा, सव्वंगुग्गयरोमंचकंसुया सोमवयणा य,-॥ १६४ ॥ पमिया कमकमोसुं -तोय सा तस्स रोविन लग्गा, कारुममहावस मिनेण तेणु नयं कालं,॥ १६५॥ वयणसरोरुह मानासिया य मा रुयसु कनुणरगन्नं, कहसु जहदिय माकंदणस्स जं कारणमिमस्स. ॥ १६६ ॥ परिफुसियनयणसलिना-सा लण कुमारहं तुहम्मेव, चुदणीए देवीए-सहोयरप्पुप्फचूनस्स,-॥ १६७ ॥ नरवणो ध्या तुम्हचेव दिन्ना पमित्रमाणीए, मह वीवाहस्त दिणं जाय तिदिणा घरुजाणे,-॥ १६०॥ पुत्रिणंमि दीहियाए--णाणाकालाहि कोलमाणी ता, विजाहराहमेणं-- श्री उपदेश पैद. १६२ हे मुतनु, हुं पंचाळदेशना ब्रह्मराजानो ब्रह्मदत्तनामे पुत्र बु अने कामयोगे । अटवामां आवेनोवं. १६३ र बोल सांजळतांज ते कन्यानी आंखो हर्पजळयी जराइ आवी, अने तेना सघळा अंगमां ते रोमांचित थइ यकी सौम्य मख धरीने कुमारना पगे पमी रोवा लागी. त्यारे करुणासागर कुमारे तेतुं मुखकमळ ऊंचकी तेने ऊंची करी. १६४१३५ अने कुमार तेणीने कहेवालाग्यो तुं आवाकरुण स्वरे रो मा पण आ रोवानुं जे कारण होय ते खरेखररीते कहे १६६ त्यारे कन्या आंसु बूंजीने बोत्री के हे कुमार हुं तारी चुळणीमाताना सगा नाइ पुष्पमूळ राजानी पुत्री बुं अने ते तनेज अपायली वं. अने त्रीजा दिने मारो विवाह थनार छे तेनी राह जोती हुँ घरपासना बगीचामा वावगीना किनारे अनेक प्रकारनी क्रीमाआयो रमती हती, एवामां को नोच विद्याधर मने ऊपामीने यहां लाव्यो छे. १६७-१६ -१६ए हवे अहीं हुं बंधुविरहरूप आगयी जळती रहेलीबुं तेटझामां अजाणी सुवर्णन दृष्टिसमान तमे वहां Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ केणावि अहं समाणीया. ॥ १६ए ॥ बंधुविरहग्गिज्तमाणसा जाव एत्थ चिदामि, ताव तुमं अवितक्कियहिरणवुटीसमो सहसा,---॥ १७० ॥ कत्तोवि अागो मज्ज--- पुलाजोगेण जीवियवासा, संपुन्ना, तेण पुणो–कुत्ता सो कत्य मह सत्तु ? ॥ १७१ ॥ जेण परिक्खेमि बन्न---तस्स असं, नासियं तो तीए, दिना मे विजा संकरित्ति तणं पढियसिद्धा. ॥ १७ ॥ नणियं च तुन्ज एसा-तुमरियमेत्ता नवित्तु परिवारो, साहियमाणं कजं–काही पमिणीयरक्वं च. ॥ १७३ ॥ साहिस्सइ य वश्यरं--ममसंत, समरिया तए एसा, नामेण नमत्तो-विक्खाओ सोवि जुवर्णमि. ॥ १७ ॥ पुन्नाह समहियाए-मम तेयं असहमाणो संतो, विजासिबिनिमित्तं-मं मोत्तु मिमंमि पासाए,--॥ १७५ ॥ नगिणीण जाणणकए---विजं जाणावणं च पेसेन, बं श्री उपदेशपद. ओचिंता पधार्या छो. १७० मारा पुण्ययोगे तमे गमे त्यांयी पधार्या एयी मने जीववानो आशा पूररी थइ छे. त्यारे कुमारे EX फरीने तेणीने का के, ते मारो शत्रु क्या ? १७१ केमके हं तेना बळनी परीक्षा कर. त्यारे ते कन्या बोलो के, तेणे मने मात्र बोलवाथीज सिद्ध थती शांकरी विद्या आपनी ने. १७२ ते साथ तेणे कहे जे के, आ विद्या संचारतान तुं जे काम कहीश ते तारो परिवार कर आपशे अन वळी ए तने पुश्मनयी वचाव शे-तेयज मारा संबंधी खबर अंतर पण ए पूरी पामशे–तेयी तेणीए ते विद्या संचारी. बाद ते कहेवा बागी के, तेनुं नाट्यमत्त नामे नाम छे अने ते जगतमा विख्यात छे. १७३-१७४ हुं अधिक पुण्यवाळी होबाथी मारुं तेज सहन नहि की शकवायी ते मने आ महेबमां मळी 88 पति विद्या साधवा गएको छ. १७५ ते पातानी बनाने जणाववा माटे झापनी विद्या मोकनावीने आगीच वासना Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४३ || सकुरूंगे गहणंभि-संपयं सो पविट्रो त्ति. ॥ १७६ ॥ मं परिणेही साहियविजो अज च सिधिदिवसो से, सिट्र कुमरेण तो-जहा हो सो मए अज्ज. ॥ १७ ॥ हरिसुस्लसिपसरीरा-सा नासइ सुट्छ सुठ ते विहियं, जं तारिसाण उन्नयपराण मरणं चिय वरं ति. ॥ १७७॥ गंधव्वविवाहेणं--परिणीया तक्खणं पणयखाणी,तीए य समं सहिओ-जा कालं किंचि ता निसुओ,--॥ १७ समए अन्नंमि सुहावुदिसमो सवणतीस मुवणितो, दिव्ववतयाण सहो--पुटा सा तेण किमियं ति. ॥ १०॥ एयायो ताओ तुह----अज्जत्तस्त नटुमत्तस्स, नगिणीओ खंड विसाहनाभगाओ सुरुवाओ. ॥ १८१॥ तस्त विवाहनिमित्तं-छत्तुं नक्गरण मागया एत्य,ता तुम्हे थोव मुबक्कमेह बहु एयगणाओ. ॥ १२ ॥ जाणामि नाव मेयाति---म श्री उपदेशपद. कुंभमां हमणा पेठो छे. १७६ ते विद्या साधीने मने परणनार ने अन आज तेनी विधा सिद्ध यशे. त्यारे कुमारे का के, तेने तो में आज मारी नाखेनो छे. १७७ त्यारे हर्पथी उठळतो ते कन्या बोली के, तम बहु सारं कर्यु. केयके एवा अन्यायिओ मरे तेज तेमनुं नवं जे. १७७ बाद ते प्रेमाळ कन्याने गंधर्व विवाहथी कुमार परण्यो अने ते साथे केटलोक काळ रह्यो, एटलामा एक वेळा तेणे अमृतनी दृष्टि माफक कानने आनंदित करतो दिव्य वळयाने अवाज सांजळयो. एटले ते पूवा लाग्यो के, आ शुंडे ? १७८-१० एओ तमारा आर्यपुत्र नाट्यमत्तनी रुपवंत खंमा अने विशाखा नामनी बेनो छे. १७१ तेस्रो तेना विवाह माटेनु सरसामान बस्ने हां आवे छे, माटे तमे अहीयी उटपट थामा दूर जाओ. १७२ हु एमना मननो नाव पारखीश के तमारापर एमने प्रीति के नहि ? जो प्रीति हश तो राती धना उंची Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४d | त्थिनत्थी तुमंमि अणुरायो, जय होही ता रत्तं-पमाग मुवरि पयानिस्सं. ॥१३॥ अन्नह परिपंडुरमेव-मेस तीए विश्णसंकेओ, थेवाए वेत्राए-धवतपमागं परिचत्रं तं,-॥१॥ दवण मवक्रतो-तो पएसाज गिरिनिगुंजंमि, पत्तो दिदं च महासरोवरं केरिसं तं च. ॥१५॥ सजणमणं व सबं--परपियकरणं व सीयवसहावं, सावेगं संगहचिड़ियं व बहुलोलकबोवं,- ॥१६॥ कामिकुवं व समुज्जलरुवं चंदस्स वियय गणं व, हिययं व फबिहगिरिणो-जलनिहिसविदं व गयपारं. ॥ १७ ॥ गयणंगणोवदप्पणकप्पं गलिएहि केसकुसुमेहि, नयणंजणेहि तणुकुंकुमेहि कमलग्गलत्तेहि. ॥ १७ ॥ तह तिलगचंदणेहिं-इश्रोतयो नयणगोयरगएहिं, संसइयखेयरनारिहाण मलिकुलसमालीढं. ॥ १७ ॥ एहायो तत्य जहिबाइ उिन्नपहबग्गसव्वसं श्री उपदेशपद. फरकावीश, अने नहि तो धोळी फरकावीश एम तेणीए संकेत आप्यो; बाद धोमो वखत जतां धोळी धजा फरकती। EX जोइ,कुमार त्यांची खसीने पर्वतनी खीणमां आव्यो. त्यां तेणे एक सरोवर जोयु. सरोवर केव हतुं ते वर्णवे छे. १७३-१४ १७एसज्जन पुरुषना मन माफक ते स्वच्छ हतुं,परनुं प्रिय करवा माफक ते शीतळ हतुं,धरपकम माफक वेगवाछु हतुं. कामिजनोनी माफक बहु चंचळ तरंगवाळु हाँ, चंद्रना चळकता विवनी माफक नजलु हतुं, स्फटिकना पर्वतनी माफक हितकारी हतुं, दरियाना पाणी माफक जुलु हतुं. १७६-१७७ वळी ते आकाश जोवाना दर्पण जेवू हाँ, तेमज आमतेम नजरपर चमता केशमायी खरेला फूलो, आंखमांथी गळेला अंजन, शरीरपरथी गळेत्र कुंकुम, पगपरथी गळेला असता, तथा तिनकना चंदनयी तेमां विद्याधरनी नारीओ न्हाइ हती एम जणातुं अने त्यां नमराओ नराया हता. १७-१८ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४५॥ तावो, अग्घाश्यवियसियपुंडरीयसुझसुरनिगंधजरो. ॥ १५० ॥ तीमत्तिप्मेण पसोश्या य सरपत्रिमुत्तरे नाए, नवतारूमा नन्नयपोहरा कन्नगा एगा. ॥ १९१ ॥ तकालारोवियचावदंगमुक्केहि मम्महसरहिं, सटिजंतसरीरो--वलेलं सो समाढतो.॥१५॥ अघो सुकयपरिणई-मज्झे सा जं कुरंग सुयनयणा, रमे एयंमि कहिंचि दिदिपहचारिणी जाया. ॥ १९३ ॥ धवनेहि सिणेहसमुजझेहि नयणेहि तं पलोयंती, च. लिया तो पएसा-विज्जु व्व अदंसणीहूआ. ॥ १९ ॥ तत्तो मुहुत्तमेत्तेण पेसिया चेमिया इमाइ हं, पत्ता, समप्पियं वत्थजुयन मश्कोमलमहग्धं. ॥ १५ ॥ तं बोलं पुष्पाणिय-अन्नपि सरीरसंरिजोग्गं, नणियं च ती जा सा-सरपेरंते तए दिदा,-॥ १५६ ॥ संतोसदाणमेयं-पहियं तीए तुहं तहा नणिय, मज्मानि श्री उपदेशपद. ते तळावमां कुमार मरजी मुजब न्हायो, अने रस्ते चालतां लागेलो थाक उतार्यो, तथा तेणे खोलेला कमळोनी सुगंध सूघी १0 ते तळावना किनारापर चढतां तेनी वायु कोणपर कुमारे एक नवयौवन ऊंचा स्तनवाळी कन्या जोइ. १५१ त्यारे तत्काळ धनुषमाया टेवा कामना बाणोथी वांधायझो कुमार आ रोते तेने वर्णववा लाग्यो. ?ए अहो ! मारा सुकृत फळ्यां के, आ अरण्यमां आ हरिणाझी मारी नजरे पकी. १५३ हवे ते कन्या पण धोळी अने स्नेह नरेली - खोयी तेने जोती थकी त्यांची चालती थाने वीजळीना माफक अदृश्य थइ गइ. १ए। बाद मुहूर्त मात्रमा तेणीए दासी मोकझावी, तेणीए त्यां आवीने कुमारने अति कोमळ अने बहु मूला बे वस्त्र प्राप्यां. १९५ तेमज ते दासीए तांबूल अने फूलो तया बीजी पण वापरवा नायक चीजवस्तु तेने आपीने कयु के, जे तमे तळावना किनारे कन्या जोइ हती, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४६॥ मुहं हलि वणवयाइ एसो महानागो,-॥ १९७ ॥ जह महपिन मंतिगिहे--संजायश संगियो तहा कुण पु, ता एह तत्य तुन्ने-नीतो तो मंतिगेहंमि. ॥ १ ॥ मनलियकरकमवाए-नणिो मंती तीइ जह एसो, तुह सामिणो सुयाए-पहिओ सिरिकंतनामाए. ॥ १एए ॥ तो दवो तह गनरवेण विहियं तदेव सचिवेण, बीयदिणे कमवायरबंधुंमि समुट्रिए सूरे. ॥ २०० ॥ नीओ रमो वजानहस्सपासंमि तेण सो दट्टुं, अनुदिओ विदि-धुरंमि अह आसणं तस्स. ॥२०१॥ पुट्रो वुत्तंतं साहियो य तेणवि जहोचियं एसो, सत्तुत्तरकाले नासिओ य जह तुम्ह मम्हेहिं,--॥२॥ अन्नं विसिटसागय किच्चं कालं न तीरए किंचि, सिरिकताए पाणिग्गहणं ता कीरन झ्याणिं. ॥ २०३ सुद्धे दिणंमि वित्तो--वीवाहो पुछिया अह श्री उपदेशपद. तेणीए आ तमने प्रीतिदान मोकलाव्यु ने अने मने ते साये कह्यु के, हे सखी ! वननता पासे जे आ महानाग पुरुष ते जेम मारा बापना मंत्रिना घेर अावी रहे तेम कर. माटे तमे त्यो पधारो एम कही ते तेने मंत्रिना घेर लइ गइ. १८६ PUS-? एG वाद ते दासी हाय जोमाने मंत्रिने कवा लागी के, तमारा स्वामिनी पुत्री श्रीकांताए आ माणस तमारे त्यां मोकनाव्यो . १ माटे एनुं रुकी रीते मान काळवं, एटने मंत्रिए पण तेमन कयु. बाद बीजे दिने कमळोने खीलववा बंधु समान सूर्य जगतां,-२०० मंत्रितेने वज्रायुध राजा पासे लइ गयो, तेने जोइ राजा उठी ननो थयो अने पोतानी नजीकमां तेने आसन आप्यु. २०१ बाद तेणे हकीकत पूछी एटट्ने कुमारे ते यथायोग्य जणावी. ते सांगळ्या बाद राजाए कह्यु के, तमारो अमे बीजो कंश वधार सत्कार करी शकता नथी, तोपण श्रीकांताने तमारे तरतमां परणवी Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४७॥ कयाइ, सिरिता मह एगागिणोवि तं कहणु दिन्नासि? ॥ २० ॥ सियदसणयहापहकरपंमुरविहियाहरा लणइ एसा, मम एस पिया बहुबलदाश्यपरिपीमिओ संतो, ---॥ २०५॥ अविसमपब्लिमग्गं-समसिरो तहय नगरगायाइ, पइदिवसं गंतूणं -मंमि पुग्गंमि पविसे ॥ २०६ ॥ सिरिमझनामाए पणइणीइ जाया चनण्हपुत्ताएणं, नवरि अहं पिजणो ववहा य नियजीवियाओवि, २०७ पत्ता तारुमनरं नणिया सव्वेवि पुत्ति नरवईणो, दूरं मज्ज विरुघा--वति तो श्हएव-२०० जो मणहरणो कक्ष्याइ कोइ जत्ता घमेज्ज तो मज्क, सो कहिय द्यो जेणाह--मस्स काहामि जंजोग्गं. २०९ अनंमि दिणे वरकोनहल्लपरिपेटिनया इमं पटिलं, दिदो तुमं सत्र क्खण सोहग्गिय माणिणीमयणजणणं, श्य एसो परयत्या--जो पुटो आसि पुव्वं. जोशे. २०३-२०३ हवे चोख्खा दिवसे विवाह ययो. बाद कोइ वेळाए कुमारे श्रीकांताने पूज्यु के मारा जेवा एकाकि माणसने तारा पिताए तने केम आपी ? २०४ त्यारे धोळा दांतनी कांतियी होउने अजवाळती ते बोनी के, मारा आ पिताने तेना वधारे बळवान पितराइओए वह दवावेना छे. २०५ तथा ते अति विषमो पट्टिमार्ग पकमीने एटने के, वारवटे चीने दररोज शहेर तथा गामोमां जइ धाम पामी. आ किवामां जराइ रहे छ. २०६ तेनी श्रीमती नामनी राणीनी कूखयी चार पुत्रो जन्म्या पछी हुं जन्मी बुं तेथी मारा पिताने हुं तेना प्राण करतां पण प्यारी बु. २०७ हवे यौवन पामतां मारा पिताए मने कयु के, सघळा राजाओ तो माराथी विरुद्ध वर्ते डे, माटे हांज कोइ वेळा कोइ मनहर ती तने जमे तो मने तेनी खबर आपवी, एटवे हुं तेने जे योग्य हशे ते करीश.२०७-२०ए त्यारवाद एक दिवसे नारे कुतृहना लीधे आ पहिने छोकीने हुं तमे ज्मां न्हाया हता ते सरोवर पास आवी चकी. २१० त्यां में सुलक्षण सौजाग्य अने मानिनीओने मदनजनक सेवा तने जोयो. माटे तमे जे प्रश्न कयों ते बाबतमां बे परमार्थ श्री नपदेशपद. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥1 ॥ ११ सो सिरिकताइसम--विसयसुह निन्जरं अणुहवंतो, वोल काळ मन्नमिवासरे पल्विनाहो सो.-२१शनिययबळेण सणेओ-समीवदेसंतराई दणिउमणो, पल्लीन निग्गयो सोवि तेण सहिं समुच्चलियो १३ हंतव्वगाभबाहिं-कमवसरोवरतडंनि सहसत्ति, आनोइओ वरधणू-तेणावि इमो ततो दोवि.-१४ पढमघणसलिअधारासमूहसित्त व्व मस्थळानोगा, नववधपून्निमा--चंदकंतिणो विम्हकुमुय व्व; ---२१५ किंधि अणक्खेयं दाहपसम मुवगया रोविलं लग्गा, संविओ य कुमारो --वरधणुणा सुहनिसन्योय. २१६ परिपुदो कुमरो सुहय-कहसु किं ते मम प्परोक्खंमि, अणुहूयं तेणाविय–कहियं सव्वंपि नियचरियं. २१७ वरधणुणाविय नणियं ---कुमार सुचान ममाविजं वित्तं, तझ्या हं नग्गाहस्स-हेट्नागे तुमं विनं. २१७ छे. २११ हवे ते कुमार श्रीकांतानी साये मोजविलास करतो वखत गुजारवा लाग्यो, तेवामां अक दिवसे ते पत्रिपति पोतानुं लश्कर लइ पाखेना देशांतरो ढुंटवाने पलिथी नीकळ्या, अटले कुमार पण तेना साथे चालतो थयो. २१२-१३ त्यां जे गाम बूटवानो हतो तेनी बाहेरनां काळ सरोवरना किनारे ओचिंती तेणे वरधनु जोयो, अने तेणे पण कुमारने जोयो. २१४ त्यारे बने जणा पहेमा मेघना पाणीनी धाराओथी सींचायला मरुस्थळना माफक अने पूनमना चंद्रनी कोमुदीने पामी खोलेला उनाळाना कुमुदोनी माफक. २१५ का अवाच्य दाहशांति पामीने तेओ रोवा लाग्या. बाद वरधनुए कुमारने रोतो अटकाव्यो एटले ते शांत थइ बेगे. २१६ पछी तेणे कुमारने पूज्युं के हे सुजग, मारी गेहाजरीमां तें शुं अनुजव्युं ते कहे, त्यारे कु.मारे पोतानुं नघटु चरित्र कहीसंजळाव्यु.२१७ हवे वरधनु बोल्यो के हेकुमार, मारो वृत्तांत पण सांळो. ते करते हुं तने मना जाम हे मेलीनेपाणी जरवा गयो, एवामां मे एक मोटो तलाब जायो, श्री नपदेशपद. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४॥ जळहे जाव गा-दिदं च महासरं नळिणपुगए, घेत्तूण जलं चलिओ-तुहंतिगे ताव दिदो हं.-॥१५॥ दोहपुरिसेहि सन्नछबद्धकवएहि तामिओय बहुं, पुट्रो रेरे वरधणुकहसु कहिं बंजदत्तो सो.॥२॥जणियं मए न याणामि---तेहि तो दढयरं होमि अहं, अइतामिजतेणं-जणियं-जह व ग्घखो सो.॥१२१॥ एत्तोतोनमंतो-कवमेण गओ विसोयणपहंमि, विहिया पक्षायसु मए--तुह सन्ना, तो कया वयणे,-॥२२॥ परिवायगदिन्ना वेयणा संहारकारिणी गुविया, जाओ विचयणो तो-मओ ति णाऊण परिचत्तो. ॥ २२३ ॥ तेसु गएसु चिराओ-गुलिया सा कढ़िया मुहान मए, लग्गो गवेसिलं तं-सुमिणेवि न कत्या दिट्रो. ॥ २१॥ एगं गाम मइगो-- दिदो परिवायगो मए तत्य, सप्पणयं पणमित्ता--कोमलवयणेहि अन्नदो. ॥ २२५ ॥ तेमांयी कमळपुरमां पाणी बहने तारी तरफ चाख्यो एटलामा कवच पहेरी तैयार वनेला दीर्घराजाना माणसोए मने जोयो अने मने खूब मारीने पूछयु के, अरे वरधनु ! बोल के, ते ब्रह्मदत्त क्यां छे ? २१७-२१७-२२० में कह्य के, मने तेनी खबर नथी, त्यारे तेमणे मने वधारे मार्यो, अति मार खातों में कयु के, तेने सिंह खाइ गयो. २२१ बाद कपटथी आमरोम पारता हूं जोड़ शके त्यां आव्यो अने तने में संझा करी के, नाश जा. बाद में परिव्राजके आपेक्षी वेदनाने हरनारी गोळी मोढामां गाली एटले हुं अचेतन जेवो था पमयो त्यारे मने मरेस्रो जोइ तेओए मेत्री दीधो. २२-२५३ तेश्रो गया पनी बांबे वखते में मोढामाथी ते गोळी कहामी. वाद तने शोधवा लाग्यो, पण तुं तो क्या स्वप्नामां पण न देखायो. बाद हु एक गाममां गयो. त्यां मे एक परिव्राजक जोयो. तेने प्रीतिथी वळीने हुं नरम वचनोथी पूजवा लाग्यो. २२५ तेणे कडं के, तारा बापना हुँ वसुजाग नामे परम मित्र , अने ते साये वळी तणे कयु के तारो बाप नाशीने श्री उपदेशपद. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ०॥ तेणुत्तं तुह पिनणो-वसुत्नागो नाम परममित्तमहं, कहियं च तुज्झ जणो--पसायमाणो वर्णमि गो. ॥ २२६ ॥ माया ते चंडालाण पामगे दोहराइणा, उविया तदुक्खगहिरो चोखियो य कंपिवणगरमह. ॥ २२७ ॥ कालं कावावियवेस--मित्थ मत्तो तो पवंचेण, केगवि अमुणिजतेणे पारुगाओ तो जणणी.--॥ २२ ॥ अवहरिया पिनमित्तस्स--देवसम्मस्स माहणस्स गिहे, मुक्का गामे एगंमि--तुम्ह असणपरो हं.-॥ २२९ ॥ इह मागो हि चिदंति जाव सुहखपुबणपयट्टा, ते दोवि ताव एक्को----आगम्म नरो श्य नणे. ॥ ३० ॥ नोनो महाणुनावा----- न किंचि तुम्हाण हिमियत्वेण, जम्हा 'दीहनिनत्ता------पत्ता जमलसिना पुरिसा. ॥ २३१ ॥ ते दोवि बहुं ताओ वणगहणाओ कहिंचि निग्गतुं, महिमंझनं नमंता----- श्री उपदेशपद. जंगलनां जतो रह्यो छे.॥२२६।।तारी माने दीर्घराजाए चमाळाना पामामां राखी. तेना मुःखयी हुं घेलो थइ कांपिढ्यपुर तरफ चाख्यो.२२वाद कापालिकनो वेष कररी हां आवी कोइ पण न जाणी शके एवा प्रपंचयी ते पामामांयी तारी माने हरीने एक गाममां तारा वापना मित्र देवशर्मा ब्राह्मणना घरे मेत्री छे, अने हवे तने शोधतो हुं हां आव्यो बुं. एम ते वे * जण सुखःख पूछता वेग हता. तेवामां एक माणस त्यां प्रावीने आ रीते कहेवा बाग्यो. २२-२२८-२३० हे । महानुनावो! तमारे आधुपा जयं नहि, केमके दीर्घराजाए मोकलेला यम जेवा माणसो आवी पहोंच्या छे. २३१ त्यारे ते बे जण जेमतेम करीने ते जंगलमाथी नीकळी मंमळ फरता कौशांबीनगरीमा आव्या. २३२ त्यां बाहेरना Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्ता कोसंबिनामपुरि. ॥ ३२ ॥ बहिरुजाणे दिदं--सिदिसुयाणं महब विहवाण, सागरदत्तो अह बुद्धिलो य श्ह बूढनामाणं.-२३३ ॥ लग्गं कुक्कुमजुझं-सयसाहस्सो पणो को तत्य, निहलो सागरदत्तस्स--कुक्कुमेणं पयंत्रेणं.----॥ २३४ ॥ सेदोसुयबुधिवकुक्कुमो तओ तेण श्यरओ निहओ, रणनग्गजग्गचित्तो-सागरदत्तस्स कुक्कुडओ. ॥ ३५ ॥ किजंतोवि अनिमुहं---सो बुद्धिवकुक्कुस्स नेबेइ, जुन्झं कहंचि वग्गं---सागरदत्तो जिओ तेण. ॥ २३६ ॥ एत्यंतरंमि नणिया----वरधणुणा सेट्रिनंदगा दोवि, एसो किं नसमजागोवि श्य कुक्कुडो जग्गो. ॥ २३७ ॥ ता पेवामि न कुप्पह-----जइ तुब्ने, नासियं पहिदेण, सागरदत्तेण न मे-सोलो एत्थत्यि दव्वको. ॥ २३ ॥ किंतु अनिमाणसिद्धी कज मम्हें तोय मंतिसुओ, पेव बु श्री उपदेशपद. नयानमा तेमणे सागरदत्त अने बुच्छिन्न नामना बे मोटा पैसादार शेउना पुत्रोना कूकमाओनी बमाइ चालती जोइ. त्यां एक लाखनो पण करेल हतो. हवे त्या सागरदत्तना प्रचं कूकमाए बुद्धिवाना कूकमापर धसारो कर्यो एटने ते कूकमाएतेने एवा पंफा मार्या के, सागरदत्तनो कूकमो समाइयी पागे हो गयो. २३३-२३४-२३५ ते कूकमो बुछिलना कूकमानी सामे वरता पण लमतां अचकातो हतो, बतां जेमतेम करीने समाइ शरु थइ, तेमां ते सागरदत्तनो कूकमो हार्यो. २३६ एवामां वरधनुए ते वन्ने श्रेष्टि पुत्रोन कयुं के आ आवो नची जातनो कूकमो होइ केम नान्या छे? २३ माटे जो गुस्से नहि थानो तो हुँ एमने जोलं. त्यारे सागरदत्त खुश। थइने बोव्यो के, मारे कंऽ द्रव्यनो लोन नथी, पण अमारे अभिमान कायम रहेवानुज काम छ. त्यारे मंत्रिकुमार बुद्धिसना कूकमाने जोवा लाग्यो एटले तेना पगे मां तेणे लोढानी कोणी सोयो तेना नखोमां बांधनी जोइ, । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५५॥ छिलकुक्कुम–मह तच्चवणेसु दिदाओ.- ॥३ए ॥ सएहान लोहमश्यान-सूझआओ नहेसु बचाओ, तो बुद्धिरण णायं-जह विन्नाओ वश्यरो मे. ॥ २४० ॥ सणियं समीवदेसं-तस्सा गंतूण नासियं तेण, मा पयासु वश्यर मेय-मध्यगं ते पयवामि. ॥ २४१ ॥ पणतक्खस्स, वरधणू-नणा मेत्था न किंचि पेन्वामि, तह बुधिलो न याण-जहा तहा सन्निओ श्यरो. ॥ श्व२ ॥ तेणावि कमियाओ सूईओ तह नहग्गग्गाओ, आनेविओ तो पुण–स तंबचूमो, पराजिणिओ॥श्व३ ॥ पमिकुक्कुमो स बुछिललक्खोविय हारि मागो ताहे, जाया दोवि सरित्या-सागरदत्तो य बहुतुदो.-॥ ॥ ते दोवि नेइ नियमंदिरंमि आरोविडं रहं रम्म, विहिओ चियपरिवत्ती-ते तत्थ नयंति केवि दिणे. ॥ ४५ ॥ तन्नेहनि श्री उपदेशपद. र त्यारे बुद्धिन जाणी गयो के मारो प्रपंच एणे जाण। सीघो छे. २३७--२३५--२४० त्यारे बुद्धिने हळवे रहीने मंत्रिकुमार पासे आवीने कयु के, आ वात तु पाधरी नहि करे तो एक लाखनो जे पण छे, तेमांयी अर्धं तने आपुं. त्यारे वरधनु जणाववा लाग्यो के, अहीं कंऽ मने देखवामां आवतुं नथी, अने ते साये बुछिन न जाणे तेम सागरदत्तने संझा करी खरी वात पण जणावी दीधी. २४१-२४२ बाद सागरदत्ते बुद्धिलना कूकमाना नखोमां बांधेसी सोयो खेंची लीधी 5 अने फरीने समाइ शरु करावी, तेमां तेना कूकमाए बुद्धिसना कूकमाने हार खवरावी, एथी बुद्धिन पण एक लाख ॐ हार्यो, एटट्ले बन्ने जण खरखा थया. आयी सागरदत्त घणो खुश थइने ते बन्नेने सुंदर रथपर चमावीने पोताने घेर तेकी गयो. त्यां तेओ यथायोग्य आदरमान पामी केटनाक दिवस रह्या. २४३-२४४-२४५ तेत्रो तेना स्नेहना लीधे त्यां Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || 03 || या आओ यह अन्नया नरा एगो, नीओ एगंते तेण - वरधणू नासिओ एवं. ॥ २४६ ॥ जो सूश्वश्यरे जं पणं मितुह बुद्धिलेण परिवतो, दीणार लक्खो -- तस्स निमित्तं तुहं पहियो - ॥ २४७ ॥ हारो चालीससहस्समोल्लयो वोत्तु मिय समप्येनं, हारकरंग मह सो-गो तो कडूढिग्रो हारो ॥ २४८ ॥ सारयससहर किरकरो व्व परिपंमुरीकय दिसोहो, ग्रामलगथूलनित्तुल निम्मलमुत्ता फलधरो सो. ॥ २४० ॥ सो दंसियो कुमारस्स - तेण निजणं निनाझयंते, दिट्टो नियनामंको-तदेदेस हो. ॥ २५० ॥ विरधणू -- कस्ले स वयंस संतिओ लेहो, सोइ कुमर को मुणाई - एयवुत्तंतपरमत्यं ॥ २१ ॥ जं तुम्हस रिसनामा -- संति राहील, एवं पहियवयणो – कुमरो तो मोण मल्लीणो ॥ २५२ ॥ व रह्या एवामां एक वेळा एक माणस आावीने वरधनुने एकांतमां तेी आ रीते कहेवा लाग्यो. २४६ सोयोनी बाबतमां मला सोना म्होर आपदा कबूलात आपले तेना पेटे तमोने या चानीश हजारनो हार मोकलाव्यो छे, एम कही हारनो करंकीयो सोंपी ते चालता थयो. बाद मंत्रिकुमारे ते हार कहामी जोयो. २४७- २४८ ते मळा जेवा मोटा अनुपम ने निर्मळ मोतीओनो हार शरदऋतुना चंद्रना किरणोनी माफक सघळी दिशाओने उजळी करवा लाग्यो. २४० ते हार ते मंत्रिकुमारे राजकुमारने बताव्यो, त्यारे तेथे तेने बरोबर जोतां थका तेना एक जागमां तेना नाम साये कोतरेला एक लेख जोयो. २५० कुमारे वरधनुने पूछयुं के, हे मित्र ! आा कोनो लेख छे ? वरधनु बोल्यो के हे कुमार ! ए बाबततो परमार्थ कोण जाण । शके ? २५१ केमके तारा सरखा नामवाळा मंगळमां अनेक माणसो रहेला छे. आ रीते वरधनुए कुमारनो प्रश्न उमावी दीधार्थी ते मौन धरी रह्यो. २९२ हवे वरधनुए ते लेख उकेथ्यो तो तेमां प्रति तीव्र श्री उपदेशपद. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४॥ RPORN रधणुणा वि स बेहो--विहाडिओ पेहिया तहिं गाहा, अइतिव्यवस्महुस्साहकारिया एयरुव त्ति. ॥ २५३ ॥--जहा–परियज जइ हियए--जणेण संजोय जणियजत्तेण, तहवि तुमचिय धणियं-रयणवई महइ माणेचं. ॥ २४ ॥वरधणुणो चिंतासंगयस्स कह मेयलेहनावत्थो, णायव्वो, बीयदिणे--पव्वगा आगया एगा. ॥२५॥ कुमरस्स सिरे कुसुमे--तह क्खए निक्खिवे नई य, पुत्तय वाससहस्स-जीवसुतो वरधणुं नेइ,- ॥ २५६ ॥ एगते तेण समं–किंचिवि सा मंतिनं झमित्ति गया, तो पुबई कुमारो-घरधणु मेयाइ किं कहियं? ॥ २५ ॥ ईसीसि हसिरवयणो-तो साहर वरधणू जहा एसा, पव्वक्ष्या पमिलेहं-मं मग्गश्तस्स देहस्स. ॥ २५ ॥ नणि यं मए जहेसो-सेहो निवबंनदत्तनामंकी, दीस ता कहसु तुम–को एसो बंनद. कामने जगामनारी आवी रीतनी एक गाया दोती. २५३ ते गाया आ रीते हतो. जो के नेटवाने प्रयत्न करतो बीजो माणस पोताना मनमां बहुए प्रार्थना करे छे, उतां रत्नवतीने खरेखर तारेज परणवी जोइए. २५५ त्यारे वरधनु विचारमा पड्यो के आ लेखनो नावार्थ शी रीते नालम पमशे ? एवामां वीजा दिवसे एक प्रत्राजिका त्यां आवी. २५५ तेणी कुमारना माथापर फूल तथा अदत नाखीने बोली के हे पुत्र, हजारवर्ष जीवतो रहे. एम कही वरधनुने एकांतमां तेको तेना साये कंइ छानी बात कर ऊट रवाने थइ.त्यारे वरधनुने कुमार पूछवा लाग्यो के एणीए शं कयुं ? २५६-३५७ त्यारे वरधनु जरा हसतामुखे बोल्यों के ए प्रवाजिकाए मारी पासेथी ते लेखनो प्रतिशेख 6 ( उत्तर ) माग्यो. २५७ में कयु के ए लेखमा ब्रह्मदत्तराजानु नाम ले, माटे कह के ए ब्रह्मदत्त ते कोण ? २५० ते श्री उपदेशपद. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५॥ तो ति. ॥ ॥ नणियं तीए सुण सोम-किंतु न तए पयासियव्व मिमं, अत्यि इहेव पुरवरे-रयणवई सेट्रिणो धूया. ॥२६०॥ सा बालकालो निश्च-मइ निका जोव्वणं समणुपत्ता, तिजगजनज्जयमम्महनिबस्स महसनलिसमं. ॥ २६१ ॥ दिदा दिणंमि अन्नंमि-सा मए किंचि किंचि कायंती, पल्हत्यियगंभयवा-चामे करपल्लवे विमणा-॥ २६२ ॥ ती समीवं गंतुं-पमता सा मए जहा पुत्ति, चिंतासायरनहरीहि-हीरमाणव्व तं नासि. ॥२६३॥ तो परियणेण नणियं-बहूणि दिवसाणि एव मेईए, विमणुम्मणा य पुटा---पुणो पुणो जाव न कहे,-॥२६३ ॥ जणियं तस्स सहीए–पियंगुलझ्याइ जगवइ जहेसा, वजंती तुज्ज न किंपि-अक्खि सक श्याणिं. ॥ २६५ ॥ ता साहेमि अहं ते--परमत्यं वोनियंमि, एकंमि,दिवसे कीलाहे श्री नुपदेशपद. बोली के हे सौम्य, सांपळ, पण तारे ए वात खुबी न करवी. आज नगरमां एक शेवनी रनवती नाम पुत्री छ. २६० A ते नानपणथी ज मारीसाये प्रीति राखेछे. अने हात्र ते त्रण जगत्ने जीतवा तत्पर मन्मयरूप जोबना मोटा नालासमान यौवन श्यने पामीछे. २६१ तेणी एक दिवसे अवळा हाये लमणे धर उदास थऽ कऽ ध्यान करती मे जोइ. २६२ तेथी । तेनीपासे जइ मे कयु के हे पुत्रि, तुं चिंतासागरमां डूबेनी देखायरे. २६३ त्यारे तेना परिजने कह्यु के आ रीते रहेतां घणा दिन थया . आम उदास रहेता तेणी पूज्या छतां पण का बोनी नहि, तेवामां तेनी प्रियंगुळतिका नामनी सखी बोली के हे जगवती, ए शरमना बीधे हमणा तमने कई कही शकती नयी. २६४–२६५ माटे हुंज तने परमार्य कॐ हुंलु के थोमा दिवसपर चंद्रावतार वनमा रमवामाटे पोताना बुद्धिळ नामना लाइसाथे ए गइ हती. त्यां कूकमानी लागे Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५६॥ वर्णमि चंदावयारंमि. -॥ २६६ ॥ नियत्नानगेण बुडिखनामेण समं गयाइ एयाए, लग्गमि कुक्कुमाणं--जुज्जमि कोवि तत्थगो.--॥ २६७ ॥दिट्रो अपुठवरूवो-- कोवि कुमारो तया यो चेव, कोणसरीरसिरीया-विबाथमुहा श्मा जाया. ॥२६॥ तं च मए सोकणं-विनायं वम्महो मी मणे, चंदोदए व्व जबही--नव्वसिओ बोलकबोसो. ॥ २६ए ॥ दावियसिणेहवयणा-पत्नासिया सा मए जहा बजे, नियसब्जावं सब्यस्व मक्खाहि तो नणियं.--॥ २७० ॥ तीए नगवइ जणणी--तुमं ममं नस्थि किंचिवि रहस्सं, जंतुज्क नो कहिजइ-ता सुण एगग्गचित्ता तं. ॥२७१॥ एयाइ पियंगुरयाइ--जाणिओ एस बंनदत्तो त्ति, पंचालाहिवपुत्तो--कहियो य सगनरवं मज्ज. ॥ २७ ॥ तप्पहिई मे हिययं--तत्तो नोसर सुविणकालेवि, ता ज श्री उपदेशपद. बी बमाइमां क्यांकयी विनो कोइ अपूर्व रूपवाळो कुमार एणीए जोयो, त्यारथी ए निस्तेज अने कांखी थएबी D. २६६-६७-६७ ते सांजली हुं समजीगइ के एणीना मनमां चंद्रनो उदय यतां जेमं दरियो उंचा तरंगो वाळो । या उबळे तेम काम जवसित थयो छे. २६८ बाद मे तेने स्नेहना बोझ संचलावीने कयु के हे पुत्रि, तुं खररी वात होय ते मने कही दे. त्यारे ते बोबी के.-२७० हे जगवती, तुं मारी मा छे, तेथी एवं रहस्य कोइ नथी के जे तने नहि कहाय, माटे तुं एकाग्र थइ सांजळ. २७१ आ प्रियंगुलताए तेने ओळख्यो के ते पंचाळ देशना राजानो ब्रह्मदत्त नामनो पुत्र डे, अने ते वात तेणीए तेना वखाण करवा साथे मने कही. २७२ त्यारथी मारुं वचन स्वप्नमां पण तेनाथी Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७॥ ३ प न एसो-मरणं सरणं परं मजक. ॥३७३ ॥ तो पुणरवि सा नणिया--मएर जहा धारिमं कुणसु वन्ने, तह काह मुजमं जह--संपज्जा चिंतिय मिमं ते. ॥७॥ जाया सस्थतणू सा-हिययासासणकए मए नणिया, कबे मए स दिट्रो--कुमरो नयरी मज्जमि.॥२७५॥ सोन मिमं साहरिसियहियया वयणं नणे जह तुम्ह, नयव पसायो मज्ज---सुंदरं होहिई सव्वं. ॥ २७६ ॥ किंपुण विस्सासकए-तस्स इमं बुद्धिसरस ववएसा, हाररयणं समपसु-देहं च तदंचने लग्गं. ॥ २७ ॥ श्य एस लेहजुत्तो-हारो घेत्तुं करंमंगस्संतो, पुरिसस्स करे दाउं–तव्वपणाओ मए पहिओ. ॥ २७॥ तो बेहवश्यरो ते-तीए कहिओ श्याणि पुण देहि, पमिलेहं तो दिन्नो--तुहनामको मए लेहो. ॥ २७९ ॥--जहा---सिरिबनरायपुत्तो-----वरधणुक श्री उपदेशपद. A ओसरतुं नथी, माटे जो ए पति न मळे तो मारे मर ज नवं ने. २७३ त्यारे फरीने में तेने कयुं के हे पुत्रि, धीरज राख, हुं एवो उद्यम करीश केतारंचिंतव्यु पार पम्शे. २७४ आथी कंडक स्वस्य थइ एटले तेना मनने आस्वासन करवा मे क के गड्काले मे ते कुमारने नगरना बचे जोयो ने. २७५ ए सांजळी ते खुरख थइ बोली के जगवती, तारा पसायथी मारे सघळू सारं थशे. २७६ पण तेने विश्वास आववाखातर बुद्धिलना नामे आ हार अने तेना साथे बांधेलो लेख आ पाव. ७७ एथी आ खवाळो हार करुंझयामां घाली माणसना हाये आपी तेना कहेवा मुजब में तने मोकला A व्यो जे. २७७ आ रीते तेणीना लेखनी वात तने कही. हवे तुं प्रतिलेख आप. तेथी में तेने तारा नामनो लेख आप्यो. २७ए Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२८॥ लिओ विढत्तमाहप्पो, रयणवई रपिनमणो----कोमुइ मिव पुणहरिणको. ॥ ५० ॥ वरधणुणा कहिय मिणं-वृत्तंतं सोन मुम्मणो कुमरो, जाओ रयणवईए-नवार अणिमालियाएवि. ॥ २१ ॥ मज्जइ नक्षिणीदासत्यरेवि चंदणरसेण सित्तोवि, सो तिव्यविरहजनणालियो णो णिव्वुइ बहइ.॥ २०२॥ अन्नंमि दिणे पुरबाहिराज देसात वरधणू कुमरं, आगम्म लण णो श्ह-तुम्ह मुवदाण मुधियं ति. ॥ २३ ॥ जम्हा कोसनवणा-दीक्षण गवेसवाकए तुक, इह पुरिसा पेसविया-कओ य पुरसामिणा जत्तो-॥ ॥ सव्वत्तो अम्ह गवेसणंमि श्य सुम्मए जणे वाओ, तो णायवश्यरेणं-सागरदत्तेण नूमिहरे.---- ॥ २५ ॥ संगोविया वेवी----पत्ता रयणी श्री उपदेशपद. ते पारीते के, वधता महात्यमवालो वरधनुना साथे रहेलो ब्रह्मराजानो पुत्र, पूनमनो चंद्र जेम कौमदोसाथे रमे तेम रत्नवतीना साथ रमवा चाहे. २० वरधनुए कहेलो आ वृत्तांत सांजळो कुमार अपजोयनी रत्नवती ऊपर पण उत्सुक यह पर पडयो. २०१ ते तीव्र विरहाग्नियी व्याप्त था नलिनी दळना सायरामां सूतो यको अने चंदनना रसे बाप्यो यका पण वळवा लाग्यो अने क्यांपण शांति पामतो न हतो. २८२ एवामां एकदिने वरधनु बाहेरथी फरी श्रावीने कुमारने कहेवा बाग्यो के तारे अहीं रहेवं वीक नयी. १०३ केमके कोशळपति दीर्घराजाए तने शोधवा यहां माणसो मोकट्या छ, अन हांना राजाए पण चोमेथी आपणने पकवा यत्न कयोंचे एम लोकमां वात संजळायछ, आ वातनी सागरदत्तने खवर से पमतां तेणे तेमने यरामां संताड्यो.२०४-२०५ एम तेणे वे जणने पावीराख्या बाद रातपमा एटो काजळ अ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||एए दिसान तिमिरेण, आपूरियान कजन कोइलकुलनीलवमेण. ॥ २६ ॥ नणिो य सेट्रिपुत्तो—कुमरेण जहा तहा कुणसु अम्हं, जह एत्तो निग्गमणं-सिज्म सहुमेव एयं च.-॥ २७ ॥ सोऊण सेटुिपुत्तो-सागरदत्तो विणिग्गयो नयरा, तस्सहिओ भूनागं-तिमिवि थेवं गया जाव. ॥ २७ ॥ सागरदत्तं कहकहवि-विय ते दोवि गंतु मारमा, तीए च्यिय नयरीए-बाहिं जक्खालयसमीवे.-॥ २७ ॥ घणपायवंतरावदियाइ एयाइ तरुणमहिवाए,णाणाविहपहरणनरियरहवरासम्मपत्ताए. -॥ ॥ दतुं सायर मन्तुट्रिऊण तणियं चिरान किं तुब्ने, एत्या गया तो तं-निसुणेत्ता जणिय मेएहिं. ॥ २९.१ ॥ नद्दे के अम्हे सावि-लण किन बनदत्तवरधणुणो, कह मेय सुवगयं ते-सुष्मइ ता तीइ पमिजणियं. ॥ २५२ ॥ एत्येव श्री उपदेशपद. ने कोयनाजेवा कासा अंधकारथी दिशाओ जरागइ.२७६ त्यारे कुमारे शेठना पुत्रने कयु के अहीयी ऊट नोकळी जश्ये तेम करो. ते सांजळी सागरदत्त तेमने बइ नगरथी नीकळी पड्यो ते त्राणे जण थोमाक छेटा अगण साये चासता रह्या२७-२७७ बाद सागरदत्तने समजावी पतावी पाचुं बाळीने ते वे जण स्वाना थया, तेवामां तेज नगरीना बाहेर रहेला के यवना.मंदिरपासे अनेक प्रकारना हथियारोयी नरेखा रथपर चको नजीक आवेनी अने गीच कामीना बचे रहेली एक जुवान स्त्री-२८४-२०० ते तेमने जोइ कतीऊनी था कहेवा लागी के तमे इहां मोमा केम आव्या. ते सांच3ळी तेमणे कधु के-२७१ हे नद्रे, अमे कोण छीये ? ते बोली के ब्रह्मदत्त अने वरधनु. तेमणे पूछयुं के ते तने के मानम पमयुं ? ते बोनी के सांचळो. २५२ आज नगरमा धनपवर नामे शेउ , तेनी धनसंचया नामे जार्याछे. ते Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 80 11 पुरे सेदी1- धणपवरा नाम जारिया तस्स, धणसंचयानिहाणा-जाया कुची ती अहं. ॥ २९३ अदृष्ह मुवरि पुत्ता-पत्तजोव्वणनराइ नो को वि, रुच्च वरो तय - जक्खस्साराहणं विहियं ॥ २०४ ॥ तेणय महनत्तिपरव्वसेण पम्मक्खए दोविच्छे जह तुह नविस्सई चक्कवहिपई ॥ २०९ ॥ नामे बजदत्तो - मए कहं सो वियायिव्वोत्ति, जलिय मणेण पयट्टे – कुक्कुरुजुज्जमि जो दिदो. - ॥ २०६ ॥ बुद्धिल सायरदत्ताण संतिए माणसंमि तुह र मिही, सो बंजदत्तनामा --— तह कुक्कुरुजुज्जकालाओ. ॥ २०७ ॥ जं किंचि तुज्झ वित्तं - वरधगुणा संगयस्स तं कहियं, तह हारपेसलाइवि - किच्यं विहियं मए तुम्ह. ॥ - ― नयी हुं जन्मी बु. ५०३ हुं पुत्रोना पछी जन्मी, छपने यौवन पामतां मने कोइ वर पसंद पड्यो नहि. तेयी नामाटे मे यज्ञनी आराधना करवा मांगी. १०३ - २०४ मा नक्तिथी खेचाइने यह प्रत्यक्ष थर कहेवा लाग्यो के हे पुत्रि, तारो चक्रवतीं पति थशे. २०५ तेनुं ब्रह्मदत्त नाम बे मे पूछयुं के हुं तेने केम ओळखीश ? यक्ष बोल्यो के बुद्धिल ने सागरदत्तना कमाना युद्धमां जे तारा मनमां खूची रहेशे ते तारे ब्रह्मदत्त जाणवा, तेमज कूकमाना युद्ध पछी वरधनुसाये रहेता तमारो जे वृत्तांत बे ते कही संजळाव्याने कां तमोने हार पण मैज मोकलान्यो हतो २०६ - २०७ - २८ रीते वृत्तांत सांजळी कुमार विचारखा लाग्यो के मारा वचामाटे एणी तत्पर लागेने, नहितो हथियारसायेनो रथ मने कां लावी आपे ? एम चिंतनी तेणीउपर पूरो श्री उपदेशपद. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RPIRPRE २९८ ॥ श्य निसुणियवुत्तंतो---मह रक्खाए कयादरा एसा, कह मन्नहा रहवरो--- सपहरणो मज्झ नवणीओ. ॥ शU ॥ इह परित्नाविय तीए-दूरं रत्तो रहं त मारूढो, नाया जह रयणवई-एसा पुदा को हुत्तं ॥ ३०० ॥ गंतव्व मिमीए नणिय मत्यि मगहापुरंमि मह पिनणो, नाया धणानिहाणो–कणिगो सेट्रिपयपत्तो. ॥ ३०१ ॥ विनायवश्यरो सो--तुम्हें मज्कय परंमि संतोसे, वहतो गनरव मायरेण परमं विहे. हि त्ति. ॥३०३ ता तत्थ गमो कीरन--तउत्तरं तुम्ह रुच्चए जं तं, कुणसु ति पयहो तस्स--संमुहो गंतु मह कुमरो. ॥ ३०३ विहिओ सारहिनावो--घरधणुणा तो कमेण गवंतो, कोसंविजणवयाओ--विणिग्गो गजुग्गाओ. ॥ ३०४॥ पत्तो गिरिगहणंतर--मेगं तासिहरहरियसूरकरं, कंटयसुकंटया नाम--तत्थ चोराण महिव श्री उपदेशपद. अनुरक्त थइने रयपर कुमार चड्यो अने जाणी के आ रत्नवती छे. तेथी तेणे पूछयु के हवे आपण क्या चालशं ? २ -३०० ते बोझी के मगधपुरमां मारा बापना धन नामे नानो नाइ शेनु पद पामेन छे' ३०१ ते तमारो अने मारो व्यतिकर जाणीने परम संतोषयी अादरसाथे आपणुं गौरव करशे. ३०२ माटे ते तरफ चासो, त्यारबाद तमने रुचे तेम करजो. त्यारे कुमार ते तरफ चालवा माग्यो. ३०३ वरधनु सारथि बन्यो. पछी तेस्रो चासता अनुक्रमे अनेकदुर्गवाला कौशांबीदेशथी आगन्न वध्या ३०४ तेश्रो कामोनी घटायी सूर्यना किरणोने रोकनार एका एक पहामी वनमां अाव्या. त्यां कंटक सुकंटक नामना वे चोरलोकोना सरदार रहेता. ३०५ ते चोरो नपकादार रय अने सणगारेली सुंदर स्त्रीने Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इणो. ॥ ३५ ॥ निवसंति, पहाण रहं-महिनारयणं च नूसियसरीरं, दटूठूण मप्पपरियरखोयं कुमरं च तो बग्गा. ॥ ३०६ ॥ संनष्बकवया--नुप्पीनियधणुहपहिया होलं, नवनीरवाहधारा सरिसं सरवरिसणं कानं. ॥ ३०७ ॥ कुमरेणवि धारिम मंदिरेण किंचिविअक्खुन्नमाणेण, हरिण व्व हरिणगा तक्खणेण ते हारि माणीया. ॥ ३० ॥ निवडंत उत्तचिंन्ना-णाणानहधायघुम्मिरसरीरा, जाया पक्षायमाणा-- दिसोदिसिं निप्फलारंजा. ॥ ३०९ ॥ तत्तो तमेव रहवर-मारूढो जाव जाइ वरवणुणा, जणिो कुमरो परिसम मसमं तं पावित्रो हि. ॥ ३१० ॥ ता निदासुह मेग -मुहुत्त मुवतन रहवरे एत्यं, सुत्तो रयणवईए-सहेव अश्नेहनरियाए. ॥३११॥ एत्थंतरंमि गिरिनइ-मेगं पावित्तु रहहया थक्का, कहमवि कुमरो निद्दामुक्को--पवि श्री उपदेशपद. जोइ तेमज कुमारने थोमा परिकरवालो देखीने कवचवखतर पहेरी धनुष्यनी पट्टी खेंची नवा मेघना माफक वाणोनो वर7 साद करवा लाग्या. ३७६-३०9 धैर्यना मंदिर कुमारे पण जराए दोन नहि पामतां सिंह जेम हरणोने नशामे तेम तरत तेमने हराव्या. ३०७ तेओना छत्र अने निशानो पता थया, अने तेश्रो अनेक आयुधना पायी जखमी था चक्री मारता फोगटना फांफा मारता चारे वाजुमां नाशता थया. ३०ए त्यारबाद तेज रयपर ची कुमार चालतो थयो एटले वरधनुए कह्यु के तुं हमणा जोर परिश्रम कररी थाक्योछे. ३१० माटे आ रथपर तुं एक मुहूर्तमात्र ऊंघ बने. त्यारे कुमार स्नेहलरेली रत्नवती साथेन सूफ गयो. ३११ एवामां एक पर्वतना नीकरणामां रयना घोमा ऊना रह्या, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६३॥ यंत्रमाणतणू. ॥ ३१५ जाव निन्नाले दिसंतराइं नो ताव वरधणुं नियक्ष, परित्नावियं जना---इओतप्रो होहिश् गन त्ति. ॥ ३१३ नवजवयगहिरघोसेण-तेण सदो करेहुमारदो,-(ग्रंथाग्रं ५००)-पमिवयण मसनमाणेण-कहवि दिदं रहस्स धुरं.३१४ ॥ अश्वहारुहिरधारावितं संजायसंनमो ताहे, वावाश्रो वरधणू-णूणं ति विगप्पिलं पडिओ. ॥ ३१५ ॥ तस्स रहस्सु बंगे-निरुसव्वंगचेयणो धणियं, रयणवईए सीयलजलपवणासासिओ संतो. ॥ ३१६ ॥ नम्मीलियचेयलो-हाहा नाय त्ति रोविजं लग्गो, रयणवईए कहकहवि-नवरमो रोयणस्स को. ॥ ३१७ ॥ सा तेण तो नणिया-सुंदरि नजइ फु न किंचि जो, किं वरधणू मनो जीव ति ता तरस वुत्तंतं.-॥३१७ ॥ उवलकुं जुत्तं गयण-मिम्हि पन्नामुहस्स मे सुयणु, नणियत्यारे कुमारनी इंघ उ.मी जतां ते ध्रुजता शरीरे आजुबाजु जोवा लाग्यो तो वरधनु देखायो नहि. तेण विचार्यु के ते पाणी जरवा आमतेम गयो हशे. ३१५-३१३ बाद तणे नवा मेघना गरिव–अवाजयी बूमो पामी, पण जवाब मळ्यो नहि. एटलामा तेणे स्थनी धूसरी घणा बोहीथी खर मेरी दीठी एटले तेने व्हेम पेनो के खचित वरधनुने कोइए मारी , नाखेल , एम ८पना करी ते मूळ खाइ पड्यो. ३१४--३१५ कुमार ते रयना वचे सर्वांगे चेतना रोकीपमीरह्यो, त्यारे । २ रनवतीए शीतळ जळ अने पवन नाख्याथी चैतन्य पामी ते हा नाइ ! हानाइ एम कही रोबा लाग्यो. उतां रनवतीएर जेमतेम करीने तेने रातो अटकाव्यो. ३१६–३१७ त्यारे ते तेणीने कहेवा लाग्यो के हेसुंदरि, वरधनु मयों के जीवतो र ते कई सुखी र ते जणातुं नथी, माटे ते वातनी शोध क्षेवा हे सुत्नु, मारे पालुंज, एमशे. त्यारे ते बोबी के घणा वीहाम श्री उपदेशपद. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिमीए रो-इममि बहुसावयापो. ॥ ३१७ ॥ कह मंसपेसिसरिसं-बहुसामामं विमुत्तु जियनाह, श्चसि ममं तुमं. तह-नियमे म्मिय वट्टए वसिमं. ॥ ३० ॥ जेण कुसकंटयाई-जणचक्षणवितोलिया इह पएसे, दीसंवि तत्थ गम्मन-तत्तो जुत्तं करेज तुमं. ॥ ३२१ ॥ तत्तो बग्गो गंतुं-मगहानिमुहं उियंमि संधीए, विसयस्स गो गायेएकमि स, नाविएण तहिं.-॥ ३२२ ॥ गामपहुणा विस्रोश्य-रूवं तस्स परित्नावियं मणसा, एस महप्पा दिव्वस-वसगो कोवि एगागी. ॥ ३२३ पडिवत्तो बहुगनरमाणीओ नियघरे सुहासप्लो, पुदो जहा महानाग---किं समुव्विगचित्तो सि. ॥३४॥ परिफुसिय नयण सविनो----सो नण महं सहोयरो बहुओ, चोरेहि समं नंगण--- माढत्तो कान मह तत्य. ॥ ३२५ ॥ पत्तो कि मवत्यंतर-मेत्ता त्तस्ता गवेसणं कालं, श्री नुपदेशपद. रा जनावरांथा रेखा का अरारमा हेप्राए नाथ, तमे मांसनी देशी माफक बहुसामान्य मुज अबळाने मेवीजवापेम इ२ च्छोछो. अनेवळी वसति घणी नजीकमांज होवी जोइए. ३१८-३१४-३२० जेमाटे आ जगोए दर्जना कांटा माएसाना पगोथी देखाय. माटे त्यां चालो. पछी जे युक्त होय ते तमे करजो. ३२१ त्यारे ते मगधापुरी तरफ चालतां देशनी सीमामापर रहेला एक गाममा गयो त्यां जलास्वजाववाळा गामधणीए तेनुं रूप जोइ मनमां विचार्य के आ कोइ देवने वश पमेस्रो महापुरुष बागेजे. ३२६-३२३ ते तेने जारे मानपूर्वक पोताने घरे तेझीगयो. त्यां सुखासनपर कुमारने वेशाम। से पूछवा लाग्यो फे हे महानाग, तमे उदास केम देखाओछो ? ३२व त्यारे कुमार आंखोना आंसु बूबी बोव्यो के मारो नानो नाइ चोरानी खाये कमवा लायो हतो. ३२५ ते केवी अवस्था पाम्योछे तेनी शोध करवा मारे जवंछे. त्यारे गा Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६५॥ गंतव्व मस्थि नणियं तेण तो गामपहुणे वं. ॥ ३२६ ॥ मा एत्य कुणसु खेयं -जइ वणगहणे मंमि सो होही, तं सहिहि धुर्व जम्हा-एसा अमवी वसे मज्क. ॥ ३२७ ॥ तो पेसिया नियनरा-सव्वत्तो आगएहि तेहि इम, सिद्रं जहा न अम्हेहि----कोई आलोश्रो तत्य. ॥ ३० ॥ केवल मेस सुरतो----महीयो पावित्रो पहरिऊण, सुहमरप्त कस्सइ तणुं-जमजिहासन्निनो बाणो. ॥ ३२९ ॥ तव्वयणायमणजायतिब्वखेओ स सोनं सुचिरं, कहकहवि दिवससेसं-गमे रयणीय पत्ताए.॥ ३३० सुत्तो रयणवईए---सम मेसो एकजाममित्ताए, रयणीइ तत्थ धाडी---पमिया चोराण कुमरेण.--॥ ३३१ ॥ दूरायदियधणुणा----सरेहि कडुयाविया दढं जग्गा, चोरा पयंपव___णे---धूणिया जह घणा गयणे. ॥ ३३२ ॥ गामपहुणा सगामेण---दूर मनिणंदिओ पणयसारं, को नाम तुह सरित्यो---जयबबीमंदिरं पुरिसो. ॥ ३३३ ॥ पत्ते पनाय समधणी आ रीते बोल्यो. ३२६ ए बावत खेद म करो. जो आ वनमां ते हशे तो नक्की ते मळी अावशे, केमके आ अट वी मारा कवजामां छे. ३२७ बाद तेणे चोमेर पोताना माणसो मोकझाव्या. तेभणे आवीने एम कडं के अमे त्यां कोइने जोयो नयी. ३२० बाकी फकत कोई सुजटना शरीरने बागीने जमीनपर पम्यो यमनी जीजजवो आ वाण मळीबाव्योछे. ३२५ ते वचन सांगळी कुमार नारे खेद पामी घणो वखत शोक करी जेमतेम बाकीनो दिवस पसार करवा लाग्यो. हवे रात पी. 330 ते स्त्रवतीना साये सूतो. एवामां एक पहोर रात्रि जतां चोरोनी त्यां धाम पी. एट्ले कुमारे धनुष्य खेंची तेमने एवा सख्त बाणो मार्या के तेत्रो आकरापवनयी आकाशमां जेम वादळा नाशे तेम नाशी गया.३३१३३५ त्यारे गामसहित गामधणी तेने वखाणवा लाग्यो के तमारा जेवो जयशाळी पुरुष कोण ने ? ३३३ वाद प्रजात थतां श्री उपदेशद. .. * Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६६॥ मए--गामपहुं पुखिकण परिचलियो, रायगिहसंमुहं तस्सुएण सहियो गो बाहिं. ॥ ३३४ ॥ एगंमि तत्थ परिवायगाण निवए वित्तु रयणवई, नयरब्नंतरदेसं---पविटू ओ दिटू मेगं च. -॥ ३३५॥ अइभूरिखंजसयसन्निविट मविणचित्तकम्मजुयं, धवबहर मेग मुत्तुंगसिंग सोहंतमयमालं. ॥ ३३६ ॥ आनोश्यान नियरूवविजियसुरमहिलिया विसालाओ, दो तत्य सुंदरीओ-दविण कुमार मेयाहिं.- ॥ ३३७ ॥ नाणियं किं तुम्हाणं-सहावो परुवयारकारीणं, नत्त मणुरत्त मुज्झिय जणं समुचियं परिजयेउं. ॥ ३३८ ॥ जणिय मिमिणा जणो को-सो जो चत्तो मए नणह तुम्ने, कीरत आसणगहणं-पसाय मम्हासु काऊण. ॥ ३३॥ ॥ इय विष्णत्तेण कयं--पासणगहणं को य उवयारो, सायर माहारपयाण-माओ तदवसाणंमि. श्री उपदेशपद. श्रममा रत्नवतीने मेसीन करा साथै राजगृह सामे चाव्यो. ३३५ त्यां नगरनी वाटेर । कमार गामधालीनी रजा नाकामा गाजत मासेनाल्यो. त्यांनगानी बार एक परिव्राजकोना आश्रममां रत्नवतीने मेत्रीने कुमार नगरनी अंदर पेठो. त्यां तेणे एक महेल जोयो. ३३५ ते महल सेंकमो स्तनवाळो, ताजा रहेता चित्र कमथी युक्त, अनेचा गोचपर फरकती धजाग्रोथी शोजतो हतो.३३६ त्यां पातानारूपथी अप्सराओने जीतनार विशाळ आंखोवाळी वे स्त्रीओ तेणे जोइ. तेमणे कुमारने जो कयु के, तमारा जेवा स्वनावयी परोपकारी पुरुषने अनुरक्त नक्तजनने मेलीने जटकता रहवं ए शं उचित छे ? 333-330 कुमारे कधु के में कया ज-80 नने मेळी दीधुं छे ते तमे बतावो. तेश्रो बोली के त्यारे अमारा पर महेरबानी करी आसनपर बेशो. 330 आ रीते वीनव्याथी कुमार श्रासनपर बेगो. बाद तेमणे आदरथी आहार वगरेथी तेनी स्वागत करी. 380 तेओ बालं। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ६७॥ ॥ ३४० ॥ नणि तान पवत्तान-अत्यि इत्येव नरहवासंगि, वेयड्ढो नामगिरिऊरंतबहुनिज्जरजमोहो. ॥ ३४१॥ निय आयमगुणाओ-पुव्वावरजनहिरुघमहिमिणणे, जो माणदंमतीवं-विसंवए खनियसूरपहो. ॥ ३४ ॥णाणामणिणियरपहा. पहकरपरिजज्माणतिमिरजरे, जत्थ न सूरो चंदो व्व किंचि परतागमुववनइ. ॥ ३४३ ॥ तलवाहिगंगसिंधूपवाहरेहंतपरिसरुदेसो, गणदाणविलोइज्जमाणमाणोसहिसमूहो. ॥ ३४ ॥ विजाहरेहि कीलापरेहि निव्वुझ्मणे हि सव्वत्तो, परिनुज्जमाणदेसो -दीसंतबरयसहस्सो. ॥ ३४५॥ जो मणि नासुरकूमो-उच्चसियो सह अंबरतलाओ, विज्जुज्जुओ व्व पमिओ-घणनिवहो मोलघट्टणओ. ॥ ३४६ ॥ अच्चं तुच्चासु च मेहमासु सोहंति जत्य ताराओ, पेरंतचरंतीओ-फबिहमणिकिकिणिन PEAK के आज जरतक्षेत्रमा वैताढयनामे पर्वत छ के जेमांयी अनेक नीकरणाना पाणी करेछे. ३४१ ते एटसो लांबो छे के पूर्व पश्चिम रहेवा दरियाना वचे आवेनी जमीन मापवामां ते मानदंग तरीके रहेला छे, अने ऊंचाइमां सूना मार्गने अटकावे छे. ३५२ ज्या अनेक मणिोनी प्रजाना अजवाळायी अंधारी होछे एटने सूर्य चंद्र जराए त्यां शोजता नयी. ३४३ तेनी आजुबाजुनो प्रदेश नीचे वहेता गंगा अने सिंधुना प्रवाहयी शोने. अने त्यां वेरवेर अनेक औषधियो मळी आवेछे. ३४४ तेमां सघनी तरफ शांत मनथी क्रीमा करता विद्याधरा तेनो अमुक नाग वापरे छ, अने तेमां हजारो आर्थय रहेला छे. ३४५ जेना शिखरो मणिोयी ऊळकेछे, अने ज्यां ऊंची ऊंची शिक्षाओ पमेसी छे तेथी जाणे आकाशयी एकबीजामां अयमी वीजळी साथ नीचे पमेझा वादळ होय तेम ते देखाय छे ३४६ जेनी अति श्री नुपदेशपद. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ६८ ।। व्व ॥ ३४७ ॥ जत्यय विज्जाहरका मिणीण मुहमंगणे पसत्ताण, निसि सिहरगयाण ससी - मणिदप्पणील मुव्ह ॥ ३४८ ॥ तह जत्य महोस हिंगंधरुद्धवी रियफणिंदवंदेसु, चंदवणेसु निब्जयमलाई कलंति मिहुणाई ॥ ३४० ॥ यमाहप्पोणामिय समत्थसामत्तमत्थयमणीण, बहलकरजालसलिलेण निच्चसिच्चंत कमकमलो ॥ ३५० ॥ जो तत्थ दाहिणाए-सेढीइ सुदिदृगामनगाराए, सिवमंदिरे पुरे अस्थि-पत्थियो जन्नसिदिनामो. ॥ ३९९ ॥ जोएह व्व सिसिर किरणस्स - तस्स सोहग्गसंपय निहाणं, विज्जु सिहा नाम पिया - अहो तस्से सुया दोवि ॥ ३९२ ॥ अम्हाण नहमत्तो- जेटो या जागो, अग्गिसिहि मित्तसहिओ - अत्य गोदृी जा ताव. - ॥३३ 0. ऊंची मेखलामा ताराय जाणे तेना बेने चालत स्फटिकमणिनी किंकिणी जेवी लागे. ३४७ ज्यां विद्याध - ओ राते घरनी टोचे रही पोताना मुखने शणगारतां चंद्र तेमनो रीसो थइ परेछे. ३४० ज्यां महौषधियोनी गंधथी वळा मेला सवाळा चंदनना वनमां विद्याधरोना जोमझा निर्भय मन राखी रम्या करे छे. ३४९०५ तथा जेना क्रमकमळ ( तलेटी ) पोताना माहात्म्पथी समस्त सामंतोना मस्तकने नमावती मणिना धारा किरणरूप जळयी हमेश सींचायला रहे े. ३५० ते पर्वतनी रुमादेखाता गामनगरवाळी दक्षिणश्रेणिमां शिवमंदिर नगरमां ज्वळन शिखी नामे राजा बे. ३५१ तेनी चंद्रनी कौमुदी जेवी सौभाग्यसंपदानी खाए विद्युत् शिखा नामे राबे ने मेवे तेनी पुत्रीयो बीये. ३५२ नाटयमंत मारो मोटो जाइ थाय. हवे एकवेळा अमारो पिता अग्निशिखी पोताना मित्रो साये गोष्टी मां वेो हतो, तेवामां ते ऐ अष्टापदऊपर जिनमतिमाने वांदवा जता मोटा परिवारवाळा देवदानवोने जोया. ३५३ - ३५४ ते जोइ राजानी श्री उपदेशपद. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेइ गयणे अदावयंमि जिणबिंबवंदणनिमित्तं, देवासुरसंदोहं-गवंत मतुबविछड्डे. ॥ ३५ ॥ तं दळूण पवढियसडूढो राया समं मिय पवत्तो, मित्तेहिं अम्हेहि यकमेण पत्तो य तत्थ नगे ॥ ३५५ ॥ गंधुकुरेट्रि बंधुरबंधेहि मिवंतनसनमालोहिं, मंदारपारिजायाइ तियसतरुकुसुमनियरेहिं.-॥ ३५६ ॥ परिपूश्य नयवंते-कप्पूरागुरुसुगंधधूवं च, उग्गाहिऊण थुणिकण निग्गओ चेश्यहराओ. ॥ ३५७ ॥ निग्गवंतेण परोक्ष्यं च पञ्चक्खपसमपुंजसयं, हेदा असोयसालस्स-संनिविदं पणदमयं.॥ ३५ ॥ चारणमुणिजुयलं पणमिळण नत्तीय संनिविट्रो सो, नीरजरजरियजलहरगहिराए नारई तओ. -॥३५ए ॥ पारद्धा धम्मकहा--एगेणं तेसि समणसीहेण, तेसिं सुराण असुराण खयराणं च जह एत्थ. ॥ ३६० ॥ कदवीदलं व पेनव श्री उपदेशपद. P श्रछा पण वधी एटले ते मित्रो अने अमोन साथे तेही अनुक्रमे ते पर्वतपर अव्यो. ३५५ वाद सुगंधि बरोबर गोउवेबा, जमराथी घेरायला, मंदारपारिजातवगेरे देवतरुना फूलोथी लगवानोने पूजी कपूरअगरनोसुगंधी धूप दइ स्तुति करी ते चैत्यमंदिरथी बाहेर नोकळतो ३५६–३५७ बाहेरमां तेणे अशोकतरुना नीचे बैठेवा मदरहित अने प्रत्यक्ष प्रशमगुणना पुंजसमान वे चारण मुनि जोया. तेमने नक्तिपूर्वक नमीने राजा त्यां वेगे. तेवामां सजळ मेघना जेवी गंजीरवाणीथी -तेमांना एक मुनीश्वरे ते सुर-असुरअने विद्याधरोनी आगळ धर्मकथा करवी शरु करी. ३५०-३५-३६० आ शरीर केळना गर्ननी माफक कोमळ अने अनेकरोगर्नु घर छे. विषयोना सुख बाजळीना ऊबाकानी माफक कण नंगुर छ. ३६१ आ जगतमां जीवोनुं आयुष्य शरदऋतुना मेघामंबरजेवं छे. वहामा सायेनी प्रीति ए किंपाकना रुख मा Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७० ॥ PARMAN मिम कलेवर मणेगरोयगिहं, तमिदंडाबरनंगुराई ही विसयसोक्खाई. ॥ ३६१ ॥ सरयसमुन्नवबहान्नमं जीवियं जियाण जए, किंपागफवं व विवागदारुणा वबहसिणेहा. ॥ ३६२ ॥ नव्वणपवणासोनिय कुसदलतवजनचना सजीओ, अनिमित्तमेव खं-पक्खणं पेक्खा जणो य. ॥ ३६३ ॥ सयलपुरिसत्यकारण-मश्छलहो माणुसो नवो एसो, निच्चं पच्चासन्नो-परिसक्का सव्वो मच्च. ॥३६४ ॥ संसारपरिचायं-कानमणेहि कुसोहि जिणनणिो , सव्वायरेण धम्मो-परिसुको सेवणिजो त्ति. ॥ ३६५ ॥ श्य सुयमुणिंदवयणा-उवाझविसुखबोहिणो संता, जे आगया जनच्चिय तत्तो च्चिय ते नियत्त त्ति. ॥ ३६६ ॥ अग्गिसिहिणा वयंसेण मम्द जणगस्स अवसर बधुं, परिपुत्रियं जहा को-लत्ता एयाण वालाणं. -॥ ३६७॥ जयवं हो हि, नणियं च तेण एयान नायवहगस्त; नजा होहिंति निसा मिनण कसिणाणणो राया.-॥ ३६७ ॥ एत्था वसरे वुत्तो-अम्हेहिं ताय एस संफक परिणाम जयंकर छे. ३६२ तोफानी पवनथी मोळती दननी अणीपर रहेला पाणी नाबिंदुनी माफक लक्ष्मी चंचळ छे. अने लोको ओचिंतीरीते दरेकपळे पुःखमां जइ पो छे. ३६३ वळी सघळा पुरुषार्थनो साधक आ मनुष्यनो नव अतिदुर्लन छे अने मृत्यु हमश नजीकमां नमेछे ३६४ माटे संसार छोमवा इच्छनार चतुरजनोए पूरता आदरथी जिननावित परिशुद्ध धर्म सेवो जोइए. ३६५ ए रीते मुनीदना वचन सांनळी निर्मळ सम्यक्त्व पामी जे ज्यांची प्राव्या दता ने त्यां चाया गया. ३६६ हवे अमारा पिताना मित्र अग्निशिखे अवसर पामी पूछयु के, हे जगवन् ! आ बाळाप्रोनो ती कोण थशे ? मुनिए कह्यु के, एओ एमना नाइने मारनारनी नार्याओ यशे. ते सांजळी राजा M श्री उपदेशपद. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारो, एयारिसो हम्मिय–कहिओ अब मित्थ विसएहिं-॥ ३६९ ॥ दारुणपरिणामहिं–ताएणं मन्नियं इमं सव्वं, नानगवल्सहयाए-विमुक्तनियदहसोक्खाओ. ॥ ३७० ॥ तस्सेव नोयणाई-विचिंतयंतीन जाव चिटामो, ता वालदिणे पुहविं-गामागरसंकुलं तेण, ॥ ३७१ दिदा नमंतएणं--अम्हाणं नानगेण पुप्फबई, तुह मानवस्त धूया-कन्ना ता रुयखित्तमणो. ॥ ३७ ॥ हरिऊण मागो तीइ दिदि मसहंतो गो विजं, साहे वंसकुकंगयंमि जं पुण इनो नवरि. --॥ ३७३ ॥ तं नवओ नायं चिय--तुम्ह सयासान तंमि कामि, आगम्म सामपुव्वं--पुप्फवईए इमं जणियं. ॥ ३७४ ॥ पंचालसामिपुत्त--पई पव्वळेह तुम्ह जो नाया, सो अत्रियख ग्गवावारणेण इमिणा खयं नीओ. ॥ ३७५ ॥ ता सोयनिब्जराओ--बहिरीकयअऊंखवाणो पमीगयो. ३६७-३६७ ए टांकणे अम्हे का के, हे तात ! आ संसार एवोज छे माटे एनी नयंकर परिणामवाळी मोऊमजा बोझवी सारी -ए वधी वात पिताए कबून राखी. अने अमो नानी प्रीतिना बोधे पोताना शरीरना मुखनो त्याग करीने रहेवा लागी. ३६५-७० अमो तेना माटे नोजनादिकनी सजाळ लेती रहेती हती. एवामां एकवेळा गामनगरयी जरपूर पृथ्वीपर फरता अमारा ते नाइए तारा मामानी पुत्री पुष्पवती कन्याने जोइ. तेना रूपथी तेनं मन खेंचायु. 3७१-39२ तथी ते तेने हरी लाव्यो, पण तेनी नजरने नहि सहीशकतो थको ते ४ विद्या साधवा वांसना कुंम्मा पेठो. त्यारवादनी हकीकत तो तमने मालमज जे. हवे ते वखत तारी पासयी अमारी पासे आवी पुष्पवतीए मीग वचनोयी अमने आ रीते कयु. ३७3-3७४ तमो आ पंचानदेशना राजाना कुमारने पति तरीके स्वीकारो. तेणे तमारा नाइने तरवार अजमावतां नूलथी मारेलो . 3७५ त्यारे शोकना श्री उपदेशपद. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #| 99 || विअंतरालाओ, जा रोविनं पवत्तान --ताव अइनिउणवयणेहिं . -- ॥ ३७६ ॥ पुफवए संबोदियान तह नटुटुमंतवयणाओ, विलायवश्यराओ - नत्ता एयासि बंजसु. -- ॥ ३७७ ॥ होहि त्ति तहा नणियं न विगप्पो एत्य को वि कायव्वो, सुमरज्जन मुणिवयणं-- मन्निज्जन बंजदत्तपई ॥ ३७८ ॥ तव्वयणायाण - मयि म म्हाहि सानुरायाहिं, तो रहसपरवसाए - तीए चत्रिया सियपमागा. ॥ ३७० ॥ तो रतासंकेए-विवरीयत्तण मुवागए संते, असत्थ कत्थइ तुमं- -- पत्थ मन्नेसमाीओ. ॥ ३८० ॥ भूमीमंगल माहिंमाणिगाओ बियान नय दिट्टो, कत्थइ तुमं विसप्लान —–एत्थ अम्हे समायाओ. ॥ ३८९ ॥ अविय क्कियजच्चसुवन्नवुट्टिविन्नममचिंत णिज्ज म, जायं तुज्छ निहाल- मज्ज म्हाणं सुदनिहाएं. ॥ ३८२ ॥ ता पत्थियकप्पहुजोरी वीना अंतकाळने बेहेरुं करती अमे रोवा लागी. एवामां अति शालपना वचनाथ पुष्पवतीएमने समजावी, तेमज नाटय मित्रना मुखे तो अमारो व्यतिकर जाऐलो हतो के, एमनो पति ब्रह्मदत्त यश. तेथ तेली कछु के, वातमां कां विकल्प करो नहि, अने मुनिनुं वचन संजारी ब्रह्मदत्तने पति करो. ३७६--399 ३७८ ते वचन सांजळी मे अनुरागवाळी थने ते वात मान्य करी. त्यारे तेलीए हर्षयेत्री बनीने उतावळमां धाळे । धजा फरकावी. 390 तथी रातीनो संकेत फररी जवायी तमे त्यांची बीजा स्थळे जता रह्या; तेथी मे तमने शोधती पी. 300 अमे भूमंगळपर फरती रही, छतां तमे क्यांय देखाया नहि. एटले दिलगीर य इहां यावी. ३८१ माटे त्र्या अजाण। जातीला सुवर्णनी दृष्टि थइ के, अणचितव्यं प्रमोन तमारुं सुखकारक दर्शन थयुं. पूरवा कब्पवृक्क समान हे महा जाग ! तमे पुष्पवतीनो व्यतिकर याद करीने अमारुं इच्छित पूर्वं करो. ३८२ तेथी मागेनुं 33 त्यारे हर्षमाँ श्री उपदेशपद. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥७३॥ म-तुमं महानाग सुमरिऊण तहा ; पुप्फवईए वश्यर--मायरसु समीहियं अम्ह. ॥ ३३ ॥ तो रहसपरवसमणो–ताओ वीवाहिऊण जाणे, रत्तीए ताहि समंवुत्यो, पत्ते विनायमि- ॥ ३० ॥ वुत्तान जह समीवे-पुप्फवईए विणीयस्वाहि, ता गयव्वं जा अम्ह--रजवानो वियंनेइ. ॥ ३५ ॥श्य काहामु ति पयंपिकण तासुं गयासु पासाई; जाव पझोयश् नो किंचि ताव तं धवनहरमाई -- ॥ ३८६ ॥ पासइ, चिंतिय मेएण णणं माया इमा कया सव्वा, विजाहरी हि कह मलहा इमं इंदयालसमं-॥३०७ ॥ जायं विनसिय मह सुमरिऊण रयणवईए संचलिओ, अम्मेसणत्य मासमसंमुह मालोयए न तयं. ॥ ३८ ॥ कं पुनामि पनर्ति-एवं चिंतिय पनोझ्यान दिसा, नय कोई सम्मविओ-रिओ सरंती तयं चेव. ॥ ३८९ ॥ खणमे श्री उपदेशपद. चकचूर थइ कुमार तेमने परणी उद्यानमा राते तेमनी साये रह्यो. प्रजात थतां तेणे तेमने का के ज्यां लगी मने राज्य मळे त्यां लगण तो वियनवाळी बनी पुष्पवतीपासे जइ रहो. ३०-३५ वीक , एम ज करीशं एम कही तेओ रवाने थइ एटट्ने कुमार आजुबाजु जोवा लाग्यो तो महेबवगेरे कइ देखायु नहि. एटले कुमारे विचार्यु के ए विद्याघरीओए आ सघळी माया करेली लागे छे, नहितो आ इंद्रजाळजेवू केम बने ३८६48 पदवे रत्नवतीने याद करी तेने शोधवा आश्रम तरफ चाव्यो तो ते पण न देखायो. 31८ तेणे विचार्य के आटकी कत कोने पूवं ? एम चिंतवी चारेवाजु नजर करी तो कोइ जवाब देनार जड्यो नहि एटो तेने संजारतोज ते ऊनो रह्यो. 4 3८७ एवामां क्षणमात्र पसार थतां एक सुंदरआकारवाळो अने पाकी वयवालो पुरुष त्यां आवी पहोंच्यो त्यारे कुमार तेने Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७४ ॥ ताओ एगो - कल्लाणाकारओ परिणय, पत्तो पुरिसो परिपुछियो य जो जो महानाय ॥३९०॥ एवं विनेवत्या -कल्ले वा अजवान दिट्ट ति? बाला काइ नमती - इमाइ अवीइमज्झमि ॥ ३१ ॥ तेपुत्तं जत्तारो - किं पुत्तय तीइ होसी, ग्रामं ति, जाए कुमरेण णा-सा मए जद रोयंती,- ॥ ३२२ दिदा वरएहसमये - कासि तुमं पुचिया चेह, किं कारणं इमस्सा, सोयस्स कहिंमि गंतव्वं ॥ ३८८३ ॥ कहिय मिमीए गग्गर गिराइ किंची वियाणिया ताहे, जाणिया जण ममच्चिय - तं पुत्ति इहित्तिया होसि. ॥ ३४ ॥ तीए च्चिय चुल्लपिनस्स साहियं सायरं च सगिहंमि, नीया तेा तुमंमिय - गवेसियो ना दिट्टोसि ॥ ३९९ ॥ ता सुंदर मिहजायं - जं मिलि - संपयंति णि, सो सत्यवाहगढ़ - नीओ विहियो य वीवाहो. ॥ ३७६ ॥ पूजा लाग्यो के हे महाभाग, ३०० तमे आज के काल आवा दरवेशवाळी कोइ स्त्री या पटवीमां जमती जोड़ छे ? ३५१ ते बोल्यो के पुत्र, झुं तुं तेनो जत्ती बे ? कुमारे कां हा. त्यारे ते बोल्यो के हे नद्र, में तेने रोती थी वढना वखते जोड़. एसी में पूछ के तुं कोण छे ? क्यांथी आवेली छे ? शा माटे आम शोक करे बे ? अने क्यां तारे जछे ? ३७२ ३७३ त्यारे तेणीए तोतमा अवाजे कांइक कयुं, तेथी मे कांइक तेने ओलखी. एटले मे तेने कहां के हे पुत्र, तुं मा रीज दोहित्री थायछे, ३७४ बाद तेलीना काकाने मे ते बात कही. तेयी ते आदरपूर्वक तेने पोताने घरे तेकी लाग्यो नेता पण तपास करी, पण तुं क्या देखायो नहि. ३०९ माटे सारुं थयुं के हमणा तुं मळ्यो, एम कही कुमारने ते सार्थवाहना घरे तेमी गया. त्यां कुमार रत्नवतीने परएयो. ३७६ हवे रत्नवतीन। सोबतमां लालच यइ कुमार त्यां केटलाक श्री उपदेशपद. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७५ ॥ रयणवइए तस्संगन्नानलो जा गमइ दिवसाई, ता वरधगुमरण दिणो- समागओ कप्पियं जोऊं. ॥ ३७७ ॥ जुंजंति बंनणाई - बनानेवत्यधारगो ताहे, तत्याग वर - जोयकज्जेण जणियं च ॥ ३७८ ॥ जो जो साहिजन जोजकारिणो दूरदेस एगो, चवे चूमारयणसन्निनो सयक्षविपाए. - ॥ ३० मग्गइ जोया मुयरंमि जस्स जत्तं कर्हिवि संपत्तं, नवणमश नवंतरवत्तिणोवि तुम्हाण पियरस्स. ॥ ४०० ॥ सिद्धं कुमरस्त तयं - जोय विनिशएहिं पुरिसेहिं, बाहिं विग जा-ता उमरो वरधं नियइ ॥ ४०१ ॥ किंचि रसंतर मपुव्वमेव सव्वंग मुव्वहंण, लिंग पवो य मंदिरे मजिओ संतो. ॥ ४०२ ॥ कयनोयाकरणिजोय - पुचिते जह वयंस तुहं, बोलीणो कत्थ श्मो - बियरस कालो, जणइ तादे. ॥ ४०३ ॥ गहणंमि तंमि रयणी - ती तुम्हाण सुहपसुत्ताण, एगेण पिओ धादिवस पसार करवा लाग्यो, तेवामां वरधनुना मरणनोदिवस आव्यो, एटले तेनापाटे जोजन क. ३०७ ते नोजन ब्राह्मणवगेरे खावा लाग्या एवामां ब्राह्मणनो वेश घरी वरधनु त्यां जोजन करवा आवीचड्ये!. ते कछु के-३०० हे रसोया, तमो जमानारने कहो के दूरदेशी एक चतुर्वेदी ने बधा ब्राह्मणोनो सुगम आवेलो बे, खावानुं मागेरे. तेना पेटमा जो कोइ रीते जोजन जाय डे तो ते तमारा जवांतर रहेला पित्रोने पण पहाँचेछे. ३००-४०० नोजन पीरसनारा ते वात कुमार कही ने कुमारे बाहेर यावता वरघतुने जोयो. ४०१ त्यारे कुमार के अपूर्वरस पामीने ते सर्वांग जर जेव्यो. बाद तेने मंदिरमां तेी नवराव्यो. ४०२ ते जमी रयावाद कुमारे तेने पूछ के हे मित्र, तुं आटो बखत क्यां रह्यो हतो?त्यारे ते बोल्यो ४० ३ वनमां ते राते तमे सुखेमूता हता तेवामां एक चोरे पाउळ | दोमी वांसना गीच कुंरुमां श्री उपदेशपद. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1॥ १६॥ विजण निवि कुवंगंमि.-॥ ४० ॥ चोरपुरिसेण मऊ-बाणो गाढं निवेसिओ देहे, तग्घायवेयणाए-अमुणंतो महियले पडियो. ॥४०॥ उवलद्धचेयणो ता-तुम्ह अवाए बहू निरिक्खेतो, गोवियनिययावत्थो-विओ तहिंचेव वणगहणे. ॥ १६ ॥ वोबीणंमि रहवरे-त मंतराल मह पायचारेण, सणियं अवकमंतो-पत्तो गामंतरे. तत्य-॥ ४० ॥ जत्थ निसाइ निवसिया-तुब्ने, गामाहिवेण परिकहिओ, तुह वश्यरो विचित्तोसहेहि मह रोहिओ य वणो. ॥ ४० ॥ तत्तो ठाणे गणे तुमं गवेसंतो श्हायाओ, नोयणववएसेण य-दिदा तुब्ने मए इहई. ॥४०९ ॥ चिदंति जाव निव्वुयमित्ता विरहं खणंपि असहंता, ता वाया परोप्पर-मात्रावो एरिसो जाओ ॥४१॥जह कालो केवश्नो-गमियव्वो मुक्कपुरिसगारेहिं, किंचि यो निग्गमणोवायं अणहं नववहामो.॥४११॥ ता महुमासो पत्तो-मम्महपहरिजमाणसयनजणो, आयरहीने मारा शरीरमा जोसयी बाण मार्यो. ते जखमनवेदनाथी हुँ येनाद थइ जमीनपर पो गयो. ४०४-०५ बाद मने चेतना आवतां तमोने घणी हरकतो या पाशे एम विचारतो हूं मारी अवस्था बुपावीने ते ज जंगलमा पमो रह्या. ४०-६तमारोरथ त्यांथी पसार थइजतां हं पो चानी धीमे धीमे ते गाममा आयो के ज्यां तमे रात रह्या हता. त्यां गाम धणीए तमारी हकीकत कही,अने अनेक औषधोथी मारो ऊखम व्यो.109-10 त्यांथी र तने शोधतो शोधतो हं हां आव्यो, अने भोजननामिषे मे तमोने यहां जोया. 100 आरीते उमा थइ विरहने कणचर नहि सहीशकता थका तेओ वेगहता, तेवामां तेमणे अरसपरस आ रीते वात चन्नाव। ४१० अापणे अहीं निरुद्यमी थक्ने केटलो वखत गमाववो ? माटे अहीयी नीकळवानो कोइ सरस उपाय मेळवघो. ११ एवामां सघळाने काय जगावनार अने घसायला श्री उपदेशपद. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७॥ दियचंदणपरिमोहि मलयानिक्षेहि सुहो. ॥ १२ ॥ तत्य पवत्तासु पुरीजणाण णाणाविहासु कोलासु, धणविचड्डविवियकुबेरनयरीविलासासु-॥४१३ ॥ सुमहबकोउहरा-तेवि कुमारा गया पुरुजाणे, दिदो तत्थ गइंदो-गीयज्झणिकरियदाणजबो. ॥ १४ ॥ मूमिनिवामियामो-निरंकुसो सव्वओ परिनमंतो; कदलीयनसमाओ-जणकीसाओ विनोखतो. ॥ ४१५ ॥ हलोहबए वदंतयमि कुझबालिया नजन्नता, गहिया एगा तेणं-करिणा करुणं विनवमाणी. ॥४१६ दिदा सा तेण गइंदघोरकरगोचरा कुमारण, नविबमाणकोमलबाहुमुणाला कमनिणि व्य. ॥१७॥ विनुदंतकेसपासा-नयतरत निहित्तसयलदिसिनयणा, नियरक्ख मपेवंती--सुमरियमरणंतकरणीया. ॥४१७ ॥ हा माइ माइ गहिया-रक्खसु करिरक्खसा मं तुरियं, श्री उपदेशपद. चदननी सुगंधवाळा मळयानिळथी सुख आपतो चैत्रमास आगो. ४१२ तेमां धनना विस्तारयी अळकापुरीनी मोऊने हगवती लोकोनो अनेकजातनी गमतो शरु थइ, एटले त्यारे कुतूहळवाळा ते बन्ने कुमारो नगरना उद्यानमां गया. त्यांना तेमणे गीतनी ध्वनिथी दानजळने करनारो एक हाथी जोयो. ४१३-१४ ते हायी मावतने जमीनपर पटकी निरंकुश थइ चारेबाजु जमतो थको केळना थंनो माफक लोकांनी गमतोने जांजवा लाग्यो. ४१५ ते गमबममां ते हाथीए करुणP विलाप करती अने जयत्रांत बनेली एक कुळवालिका पकमी. ४१६ कुमारे जोयुं तो ते. हायीनी जयंकर सूंढमां तेनी कोमळ बाहुओ कमळिनी माफक पीमाती जोइ. ४१७ तेना केश बूटी गया हता, ते जययी चारेतरफ नजर करती अने पोतानो कोइ बचाव नहिजोयायी मरतीवेळानु कर्त्तव्य संचारती हती. ४१७ हे मा मने हाथीरूप राक्षस पकी जाय Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंतिय मम तु मए–विहिणा अन्नं समाढतं. ॥ १५ ॥ तत्तो कुमरेणावि यकरुणारसपरवसंतकरणेणं, अनिधाविऊण पुरो-सधारमुक्कोसिओ हत्थी. ॥ ४२० ॥ रे उट् करिमाहम-कुजाय संनंतजुवाहणेण, निक्लिव निययस्सवि किं—न लज्जि ओ थूनकायस्स ? ॥ ४२१ ॥ अश्लवाइ निग्षिण–प्तरणविहीणा निरवराहाए, एयाइ मारणाओ-जहत्थनामासि मायंगो ! ॥ ४२ ॥ सावदलत्तणधीरसदप मिसदनरियनहविवरं, सुणिऊण कुमरहक्कं-तस्सानिमुहं पनोएइ. ॥ ४२३ तं बाढ़ मुत्तुणं -रोसारुणनयणजुपनऽप्पेबो, धाव कुमरानिमुह-तब्बयणुक्कोविओ हत्थी. ॥ ४३४ ॥ तडवियकन्नजुयलो-गहीरसुक्कारनरियनहविवरी, दोहपसारियहत्योकुमराणुवहेण सो बग्गो. ॥ ४२५ ॥ श्री उपदेशपद. छे, माटे जनदी बचावो, में कं चिंतव्यु हतुं अनेक वन्यु छे. ४१॥ त्यारे करुणा थी परवश थ६ कुमार हायीना आगळ दोमो तेने धीरतासाये हमकारवा लाग्यो.४३० अरे तुंमा कुजात नीच हायी. अरे निर्दय! जयजीत युवति एकमतां तुं तारी स्थूळकायाथी पण अनातो नया के ? ४२१ अरे निर्वृण ! आ अतिदुर्वळ, अशरण, अने अपराधवगरनी अबलाने मारवायी तुं तारा मातंग नामने खरेखर मातंग ( चमाळ ) करे. ४२ आ रीते ऊजा रही धारशब्दना पदायो आकाशने गरी नाखती कुमारनो हांक सानळी हायी तेनासामे जोड़ रह्यो. ४२३ बाद ते बाळाने पमती मूकी तेज हायो तेना वचन यो कोपित थ६ लानचोळ आंखोथी सामे न जोश काय एवो थइने कुमारसामे दोड्यो. ते कान ऊंचा करी ऊमी गजनाथी आकाशने जस्तो थको बांवी मुंह पसारीने कुमारना पाउळ लाग्यो. १२४-१२५ कुमार पण ते Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 कुमरोवि तस्स पुरो ईसीसि वनंतकंधरो धाइ, करपजंतनिवेसियनियपाणिविदिन्नपचासो. १२६ कमजणियकुमारग्गलगइपयपसरंतकोवबहुवेगो, एसेस पावित्रो झ्य मइए सो धाव गइंदो. ४२७ विवरीयजीमणवसओ-कुमरेणावि च समं तहा नीओ, चित्तलिहिओव्व जाओ-खणेण सो मत्तमायंगो. ४२० नवाजनिसियअंकुसहत्थो करिकंधरं समारूढो, कुमरो नीबुप्पललोयणहिं महिलाहि दीसतो. ४२ए तह चहुराहि गिराहिं—पामत्तो सो करी जहा रोसो, तस्सो सरिओ आलाणखेनलीणो च सो विहिओ. ४३० उच्चलिओ जयसदो-अहो परकमनिही इमो कुमरो, जेण जियाण उहत्ताण-ताणकरणंमि पगुणमणो. ४३१ कहमवि तन्नगरपहू-राया अरिदमणनामगो तंमि, समए समागो निय-कुमरवुत्तंत मियरूवं. ४३३ विम्हियमणो य पु श्री उपदेशपद. KAISE हाथीनी आगळ जरा ढळती मोक करी तेनी सूढना नजीक पोताना हाथ धरी तेने ललचावतो यको दोमवा लाग्यो. प. १६ जेम कमार आगळ चालतो तम हाथी वध गस्से या वध जतावळो यs, आ पकडयो आ पकड्यो एम विचार रा खी ते हाथी दोमतो रह्यो. ४२७ बाद कुमारे उलटचक्रीमा नांखीने तेने एवो ठमो पामीनांख्यो के ते छकेनो मातंग कणवारमां चित्रामणमां चित्रेलो होय तेम स्थिर थइ गयो. ५२७ त्यारे कुमार तीक्ष्ण अंकुश लाइ तेना खांधपर ची वेगे. तेने नीलोत्पनजेवा लोचनवाळी स्त्रोत्रो जोती रही.Uए बादतणे तेने एवी मीठी वाणीथी समजाव्यो के तेनो रोन प ऊतरीगयो, अने तेने आलान स्तनमां बांध्यो. ४३० त्यारे सौ कोइ साये कहेवा लाग्या के आ कुमार केवो पराक्रमी डे के जे मुःखथी पीमायना जीवो बचाववा तैयार. ४३१ ए वखते कोकरीते ते नगरनो अरिदमन राजा त्या आवी Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #| 50 || — को एसो कस्स निवश्णो पुत्तो, तत्तो तव्वश्यरजाणगण सचिवेण सो कहिओ ४३३ निहिलानाओ समहिय - माणद मपुव्व मागयो संतो, नेइ निवो नियनवणंकारावइ मज्जालाईएि. ४३४ नुत्तुत्तरं मि दिन - अदृ कम्पाउ तेण कुमरस्स, सुपरत्यवासरं मिय-विहि वारिजओ तासिं. ॥ ४३५ ॥ कइवयदिणा जहासुह - मिय चिता अन्नया एगा, महिला आगम्म कुमारत्र्यंतियं श्य समुल्ल३. ॥ ४३६ ॥ कुमर स्थि देव पुरे - वेसमणो नाम सत्यवादसुओ, धूया तस्स सिरिमई---साय म ए बालनावाओ -- ॥ ४३७ ॥ आरन पालिया जा--तुमए करिसंनमा सुदय त इया, रक्खियपुव्वा सा तुज्छ -- घरिणिवावं अनिलसइ ॥ ४३८ ॥ तइयचिय जीव कुमार व वृत्तांत जोवा लाग्यो. ४३२ ते विस्मय पामी पूछवा लाग्यो, के आ कोण बे ने क्या राजाना पुत्रछे ? त्यारे ते हकीकतना जानार तेना मंत्रिए ते वात तेने जगावी. ४३३ त्यारे निधान मळे ते करतां अधिक अपूर्व आनंद पामी राजा तेने घरे तेकीगयो. त्यां स्नानादिक कराव्यां. ४३४ जमाड्या बाद तेणे कुमारने या कन्याओ आपी, अने सारो दिवस आता तेमनो विवाह कर्यो. ४३५ त्यां ते सुख साथै केटलाक दिन रह्या, एवामां एक वेळा एक स्त्री कुमार पासे व रीते कहेवा लागी ४३६ हे कुमार ! या नगरमा वैश्रमण नामे सार्थवाहनो पुत्र छेतेनी श्रीमती नाम पुत्री बे. तेीने में बाळपणथी मांगीने पाळेली छे. तेने हे सुनग ! ते वखते हाथीना जयथी बचावेली छे, ते तरी स्त्री थवा इच्छे े. ४३७-- ४३८ तेणीए तेज वखते तने जीवित देनार गली प्रीति नरेली नजरे तने जोयो श्री उपदेशपद. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यदायगो त्ति तं साहित्रासदिट्टीए, अवलोओ चिरं तीए किजन ता मणस्स पियं. ॥ ४३॥ ॥ वोत्रीणे हत्थिनए-णीया कहकहवि परियणेण गिहं, तत्थवि न मजणाईदेहवि कानमनिलस. ॥ ४ ॥ कीलियमुह व्व केवल-मत्थ परिचत्तवयणवावारा, पुत्ति अकं तं कीस—एरिसं पाविया वसणं. ॥ ४४१ ॥ इय नणिए सा साह–तुज्कं सव्वं पयासणिजं मे, बजा इत्य वरज्य-जवि तहाविय जणामि अहं. ॥ 8 ॥ रक्खसरुवान तओ-करिणो नियपाणदाणओ जेण, परिरक्खिया समं तेण-पाणिगहणं जइ न होही. ॥ ४४३ ॥ ता मे अवस्समरणं-सरणं ति तो निसामि कहिओ, पिनणो श्मीइ सव्वो-वुत्तंतो तणवि समीवे.-॥ ॥ तुम्ह महं पेसविया बात मिमं ता पमिबसु तुमं ति, कालोववत्र मेयंति-मन्निया सावि वरधणुणा upतह मच्चेणवि दिला-कामा नंदानिहाणगा विहियं, वीवाहमंगलं जंति वासरा छे. माटे तेना मननी अभिलाषा पूरी पामो 30 केमके हाथीनो जय टळतां तेणीना परिजने तेणीने घरे पोचामी, पण तेणी त्यां स्नान वगेरे शरीरनी संजाळ लेती नयी व तेणीने मुखे खोला जड्या होय तेम बोलती करतीनयी, तेथी में तेने पूज्यु के हे पुत्रि, तुं ओचिंती आवा कष्टने केम पामीछे ? ४४१ एम कहेतां ते बोली के तारी आगळ मारे वधी वात कहेवी जोइये. जो के मने शरम लागे छे, छतां हुं कहुं, के राइसजेवा हाथीथी पोताना पाणना जोखमे मने जेणे बचावी ने तेना साथे जो मारुं पाणिग्रहण नहि थाय तो मारे अवश्य मरकुंज शरण छे. ते सांनळी ए सघळी वात में तेना वापने जणावी. ४४–४४३-४ तेणे पण मने तमारी आगळ मोकलावी छे. माटे आ बाळाने तमे स्वीकारो. त्यारे अवसरे आवेत्री वात गणीने वरधनुए तेने पण कबून राखी. ४४५ तेमज त्यांना मंत्रीए पण नंदा नामे कन्या तेने श्री उपदेशपद. । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ पुण्हवि सुहेण. ॥ ४२६ ॥ सब्बकझकविमुक्का-नवलिया सव्वोविय पनत्ती, जह पं चालनिवसुओ-सव्वत्थ जयं नवज्ञानंतो.-॥ ४ ॥ हिमवंतकाणणगओ-जहा गईदो निरंकुसो जमझ, वरधणुणा धणकुत्रनंदणेण अणुगम्ममाणपहो. ॥ ४ ॥ वाणारसिं गया ते-अहन्नया गवि बहिं कुमरं, कमयान्निसणपंचालरायमित्तस्स पासंमि. -॥ शताए ॥ वरधणुणा गमणं कय-मेसो कमवायरो व्व सूरुदए, जाओ हरिसपरवसो-विनोयणे तस्स पुछो य.॥४०॥ कुमरवनत्तिं, तेणावि-साहियं जह समागओ शहरं, नियवनवाहणसहिओ-से निग्गयो संमुहो तस्स. ॥४१॥ दिको कारण निवान --बंननामान निव्विसेसेण, जयकुंजर मारोविय-सियचामरवीइओ संतो. ॥ ५३॥ पनिपुन्नचंदमंमलनिनेण उत्तेण उवरि धरिएण, उग्गिजमाणचरिओ-पए पए चारणआपी. तेमनुं विवाह नंगळ थयु. एम वन्ने जणा सुखथी दिवसो पसार करवा लाग्या. ४४६ हवे तेमना निष्कलंक समाचार चारेबाजु फेसाया के पंचाळना राजानो पुत्र सघळे स्थळे जय मेळवतो थको हिमालयना वनमा फरता गजेंद्रमाफक निरकुंश या फरछे अने धन मंत्रिनो कुळदीपक पुत्र वरधन तेनी साथेज रहेछ. ४ -४ बाद एकवेळा तेश्रो वाराण सी गया. त्यां कुमारने बाहेरमेळीने वरधनु कटक नामना पंचाळरायना मित्रपासे गयो. त्यारे ते सूर्य उगतां जेम क ES मलाकर खीले तेम तेने जोइ हर्षपरवश थयो अने तेने कुमारनी खबर पृछवा लाग्यो. ४-४५० तेणे कुमारनी खवा पूछी एटले वरधनुए कह्यु के ते यहां आवेझो चे. त्यारे कटकराजा पोताना लश्कर साथे नी साये गयो. ४५१ (कटकराजा) ए तेने ब्रह्मराजा माफकज गणीने जयकुंजरपर चमाव्यो, श्वेतचामरो तेनापर वीजावा लाग्या, पूनमना चंद्रजेवू छत्र तेना नपर धरीयुं, अने पगझे पगो चारणो तेनुं चरित्र गावा लाग्या. ४५-४५३ रीते तेने नगरमां लावी पोताना घरे श्री नुपदेशपद. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ८३ ॥ गणे. ॥ ४५३ ॥ न यो सो नयर अंतरंमि नियमंदिरं भि उवि य, करुगवई नियधूया -पणामिया तीइ वीवाहो. - ॥ ४५४ ॥ लाणा विद्यगयरहवराइसामग्गियापयाण, जुत्तो सत्य दिवसे-पवत्तिय तीइ विसयसुहं ॥ ४५ ॥ सेवंतो जा चिश्ता दूयकारित्र्य समपत्तो, नरनाहपुष्पचूलो धणुमति कणेरुदत्तो य. ॥ ४६ ॥ तहसी नरनाहो - नवदत्तो सोयचंदमाईया, बहवो नराहिवा, मिलिय- तेहि तो रवि - ॥ ४७ ॥ अभिसिंचिय सेणावइपयंमि चठरंगविलबल कलिओ, दीहस्स पेलणकर-कंपील पुरंमि पेस वि. ॥ ४९८ ॥ प्रणवरयं जा गंतुं स पवत्तो ताव दीहनरवइणा, कमगाइनरवईण-दूओ संपेसियो, नणियं ॥ ४५ ॥ तेण जह दोहराया - तुम्होवर अमरिसं परं पत्तो, जं एस बंजदत्तो - तुब्नेहि पुरस्सरो विहि - मुकाम आपने राजा तेने कटकवती नामनी पोतानी पुत्री पगे पामी बाद सारा दिवसे अनेक हाथी घोमा अनेरयनी सामग्री आप सायेनो वीवाह कराव्या. हवे तेली साथ कुमार मांऊविनास करवा लाग्यो. ४९४ - ५०० ते मोजवि - लास करतो रह्यो हतो, एवामां दूतयी बोलावेल पुष्पमूळराजा, धनुमंत्री, कणेरुदत्त, सिंहराजा, जवदत्त, तथा अशोकचद्रं व गेरे अनेक राजा त्यांवी पहोंच्या. तेम एकता यह वरधनुने सेनापतिना पढ़े अभिषेक कर्ये. ४०६ -४०७ वरधनु सेनापति बनावी चतुरंगी जंगी लड़कर आपने दीर्घराजाने दाववा मोकल्यो. ४९८ ते निरंतर प्रयाणे चालतो थयो एवामां दीर्घराजाए कटक वगेरे राजाओं तरफ पोतानो दूत मोकलाव्यो. ४५० ते दूते कां के, दीर्घराजा तमारापर जारे श्री उपदेशपद. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ८४ ॥ ओ. ॥ ४६० ॥ णूं तुम्ह न कल्लाण - मत्थि दीहे समोच्चरंतंमि, पक्षया निलोि यजल हिसा रिस्य विलवले. ॥ ४६१ ॥ ता एत्तो विनियत्तह - खमणिजो ने इमो वराहो मे सप्पुरिसा वियपरे - नरंमि निम्मरा जेण ॥ ४६२ ॥ कयन्नम जिउमीजंगपयम इरुइरोस पसरेहिं, निन्नत्ओिस दूओ-सयंच पंचाल विसयंमि. ॥ ४६३॥ जा पत्ता ताव पुरी ----पत्नीवियासन्नगा मसंदोह, बहिनिग्गा लियसरजल - मंतो य पवि दुधं ॥ ४६४॥ संगहियपनरजवसिंघणं च निस्सार निग्गयजणं च निष्पंक विहियचिरवा विकूवनइ डुग्गपागारं । ४६५ || अपमत्तपुरिसकी रंतपो लिक्खं निरुद्धसंचारं, सययजमंततुरंगमसेणा मुच्चंतपजंतं ॥ ४६६ ॥ वावियपागारोवरिविचित्तजंतं कथं नरिंदेण, दहेरोस - सज्ज परबलन यवसेण ॥ ४६७ ॥ एतो अणुगम्मतो - स बं गुस्से थोडे, केमके तमे ब्रह्मदत्तने टेको आपी आगळपरुतो कर्यो।जे. ४६० माटे प्रलयकाळता वायरायी ऊछळता दरिया जेवा महान् लकरवाळो दीर्घराजा जी बनो यशे तो नक्की तमारुं कथ्याए यनार नथी. ४३१ माटे या बाबतथी अगा रहो. आ तमारो अपराध तमने माफ बे. केमके सारा माणसो विनय करनार माणसपर मत्सर राखता नथी. ४६२ त्यारे नारे कुटि चावीने ऋति आकरो गुस्सो बतावता ते राजा आए ते दूतने निछी खाने कर्मो ने पोते पांचाळ देशपर चमी आवी जोवा लाग्यो तो नगरीना आजुबाजुना गामो बाळी नाखवामां आया हता, तेने बाहेरना तळावोनुं पाणी गळावी नाख्युं हतुं, अने ते नगरीमां खूब धान्य संघरेलुं हतुं, घणुं घास तया वळता संघ हतुं नका - मा माणसाने बाहेर कहामेला हता; अने जूनी वात्रो कूत्रा ने गढ साफ करेझा हता. ४६३–४६४–४६५ श्री उपदेशपद. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५॥ नदत्तो नरिंदचक्केण, कंपिल्लपुरं रंनइ-समंतओ संजसुब्नंतं. ॥ ४६० ॥ तननगसंठियाणं---सालोवरितलगयाण य नमाणं, अम्लोमागयऽस्तहमबरविसवेगविहुराणं॥ ४६९ ॥ अघोरविहियसंहारबाणनोरंध नवनवरिसाणं, कनिदयपहयपहाणतूररवकायरजटाणं. ४० ॥ जंतविणिक्खित्तसुनत्तनिवविहतपत्तिबंधाणं, फरगतिरोहियरक्खममामपागारमूत्राणं-॥४१॥ रोसपरव्वसदोहबंधमुच्चतनिठुरगिराणं, दित्ततणमूलपक्खेवजलियकरिसारिसूराणं- ॥ ४२ ॥ निसियकुहामयताडियवियमपओतीकवासंबंधाणं, कयरोत्रजणासोज्जमाण विहडियकरिघमाणं-॥७३॥ नीमाणि कुऊहलकारगाणि हासावहाणि जायाणि, आओहणाणि पहिण-मझदारुणरोसपसराणि ॥usunदीहलमेसुं निव्वेय-मागएसुपुरस्सरो हो,असहंतो अन्न मुवाय-मत्तणो जीवियते नगीना दरवाजानी रक्षा करवा जागता माणसो राखेना हता, तेमां जवा श्राववानुं बंध करेन हतुं, तेनी चारे वाजुना उमापर घोमेस्वारो फरता राख्या हता, तेना किवापर थंनो गोठव्या हता. एम दीर्घराजाए सामे आवता लश्करना। नारे नयना लीधे तेने घेरो खमवा समर्थ वनावी हती. ४६६-६७ हवे ब्रह्मदत्त ते राजाओन साथै राखी संज्रमथी । बीधेन कापिट्यपुरने चारे बाजुयो घेरो नाखवा लाग्यो. ४६७ त्यां अंदरना सुनटो नीचे रह्या हता अने आ घेराना सुनटो किवापर चड्या. तेश्रो एकबीजापर खूब विष चड्यायी विधुर यइ अति जयंकर संहार करता बाणो अने पयरा फेंकवा लाग्या अने कायर मुनटो खूब वाजाओ वगमावत्रा लाग्या. ४६५-190 कोइ यंत्रमा तपावेन - तेन्न नाखी तेवके पदातिओनी हारने तोमवा लाग्या, कोश्क एकएकना किमाने पाटियामे ढांको चन्नावत्रा लाग्या. ४७१ श्री उपदेशपद. dawn Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ८६ ।। व्वस्स - ॥ ४७५ ॥ दीदो उग्घामिय पुरकवाडपुरुय कमत्ति नयराओ, निक्खंतो विलबलो — अवलं बियपोरिसुक्करिसो ॥ ४७६ ॥ ताण सेवा संगाम सुमहल्लो ग गांमि निवडत सियल्लओ, लग्गु मग्गेसु बलियरयमंमझो. – पोढधाणुक किजंतकुंलो. ॥ ४७ ॥ नेरिजंकाररवन रियनवणोयसे—- कुंत सिल्ला सिसर भी रूनुयकायरो, सत्यसंघट्टच लिय विज्जुब को — पाए निरवेक्ख पहरंतसंमुहन मो. ॥ ४७८ ॥ बद्धकंधारनच्चतवेयालय - साइणीलोय पिज्जंत की लाल ओ, सत्यसंपाय बिजंतबत्तज्जओ कोइ रोषे राहोफफावी कठोर क्यो बोलवा लाग्या, तो कोइ वळतुं घास नाखीने दुइननोना वळतणने वाळवा लाग्या. ४७२ को तीक्ष्ण कुहामा मारीने दरवाजाना कमाको तोरुवा लाग्या, तो कोइ राम्रो पामता लोकोनी नज बच्चे हायप्रोनी हारोने तोमवा लाग्या. ४७३ आ रीते दररोज ते योनी जयंकर कुतूहल जगामनारी, हास्य करा - नारी, नेति दारुण जोरवाली माइग्रोथती रही. ४७४ हवे दीर्घना सुनो नाउमेद यया एटले ते पोताना जीवन वीज उपाय नहि देखतां पोते आगळ पकी लकवा निकल्यो. ४७५ दीर्घराजा नगरना दरवाजा उघाकी ऊट द‍ मोटा लश्कर साथ जारे हिम्मत पक्की बाहेर नीकळ्यो. ४७६. ( लगाइनुं वर्णन ) ते बने सेनानी बेर र मोटी लगाइयो थवा लागी अने तेमां ऊळकता जालाओ वपरावा लाग्या, रस्वामां धूळना कुंमाळा ऊरुवा मांयां, अने मोटा धनुर्धरो मनुष्योने मरमी वांका करवा लाग्या. ४७७ जेरीना नए श्री उपदेशपद. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निन्नगावेगवहमाणजमरत्तो. ॥ ७४९ ॥ वियमविचलंतबहुसूरजणनंडो-वाक्खसं. खोवनविखजनममुमो, जान जमनयरखोयाण परमूसवो-जीसणो ताण उन्हवि बलाणा हवो. ॥॥ तत्तो मुहुत्तमत्ता-दतुं नंगं बलस्स निययस्स, धिट्टत्तणेण दोहो-पहावियो बनदत्तस्स. ॥ १ ॥ वाववनबसेराइएहि सिरिबंनदत्तदीहाण, वट्टते समरजरे-अबेरकरे सुरनराणं-॥ २॥ नवरविमंमलसन्निन-मध्वनिसियग्गधारमश्योरं, परचक्कक्खयकारग-मारुढं करयले चकं-॥४३ ॥ जक्खसहरसाहिटिय-मह पंचालाहिवंगजायरस, तक्खणखित्तणं तेण-दीहसीसं तो विसं. ॥ 8 ॥ गंधव्वसिष्खेयरनरहि मुकान कुसुमवुट्टीओ, वुत्तं जहेस चक्कीबारसमो इण्हि मुववन्नो. ॥ ४५ ॥ कंपिलपुरस्स बहि-बारसवासाणि चक्कवटिमहो, श्रीनपदेशपद. काराथी आकाश गाजी रहां, नाला, इिलाओ, तरवारो अने बाणोथी वीकण माणसोनी बांह्यो धूजवा मांझी. वळी अरसपरसना इस्त्रो अथ मातां तेमांथी वीजळी चमकवा लागी, अने प्राणनी दरकार राख्या वगर सामा उना रही सुजोर एक बीजाने मारवा लाया. १७७ त्या उंचा स्कंध करी वेताळो नाचवा लाग्या, शाकिणीअो लोही पीवा लागी, शस्त्रोना उ.पाटा लायाथी छत्रो ने निशानो तूटवा बागी, अने नदीना वेगे सुजटोनी लाही वहेवा लागी. ए त्यां खुबी रीते घणा शूर लोको हत्वा सान्या अने तेमनी कमीओ थवा लागी, अने लाखोनी संख्यामां सुनटोना मुंभ जमीनपर एमया. डा रीते बन्ने सेनाओनी यमपुरीना बोकोने परमोत्सव समान जयंकर बमाइ थइ. ४८० त्यारे एक मूहूर्त मात्रमांज पोताना सावरमा गाण एम जोड्ने धीगाना लीधे दीर्घराजा एकदम ब्रह्मदत्त तरफ घसीगयो. ४०१ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ८८ ॥ जय महंतों - चोदसरया हिनाहस्स. ४८६ ॥ नवनिदिपदुणो तस्सन्नयान जोगे निसेवमाणस, देसा हिमादिट्टो - समागओ माहणो एगो ॥ ४८७ ॥ सो तस्स असुं - गणेसु विहिय विविहसाहेजो, अच्चंतन त्तिमंतो य - आसि परमं पणयठाणं. ॥ ४८८ ॥ राया जिसेयमहिमाइ - वट्टमाणी वासबारसगं, चक्की ते न दिट्टो - अलदार पवेसेणं. ॥ ४८ ॥ तप्पते बाढं - निसेवमाणेण दारपालनरं, तदो-बारसमे वासरे राया ॥ ४० ॥ असे जणंति जाहे-न सह सो सपि चक्किस, तो जिएणु वाहणाओ - वंसे दीहंमि विलए. ॥ ४१ ॥ बहिनि - गमसमए सो-रो जे चिंधवाहया तेसिं, मिलियो नियचिंधकरी - पहा विप्रो जग्गवे. ॥ ४२ ॥ निज्झायो य रमा - किमियं चिंधं ति चिंतियं तेण, पुट्टो य, तेण वे ब्रह्मदत्त ने दीर्घराजानी तीखा जाला ने शिलाओ वगेरेथी सुरनरने अचंचो पम कनारी लगाइ शरु थइ. ४८३ वामां जगता सूर्य जेवं प्रति तीक्ष्ण धारवाळु अति बीहामणं परचक्रनो जय करनार एवं चक्र के जे हजार पक्कोयी अधिहितं ते पंचाळना राजाना पुत्रना हाथमां प्रगट थयुं, एटने तेवमे तेणे ते क्षणमांज दीर्घराजानुं मायुं कापी नाख्युं ४८३ - ४८४ वखते गंधर्व, सिद्ध तथा विद्याधर मनुष्योए तेनापर फूलोनी दृष्टि करी, अनेकां के हवे आ बारमो चक्रवर्त्ती न थयो छे. ४०५ तेने चौद रत्नो प्रगट थया ने कांपिल्यपुरनी बाहेर वार वर्ष लगी तेनो अति महान् चक्रवर्त्तिमहोत्सव चालु रह्यो . ४०६ ते नवनिधाननो घणी थइ मोजविलास माणवा लाग्यो. तवामां त्यां एक दिवसे तेणे देशाटन करतां दीवेलो एक ब्राह्मण आावी पहोंच्यो ४८७ ते ब्राह्मणे तेने अनेक ठेकाणे अनेक श्री उपदेश पद. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॥ जणियं-तुह सेवाकालमाणमिणं. ॥४९३ ॥ एत्तिय उवहाणाओ-घडाओ तं निसेवमाणस्स, नय दंसणमुवलर्क-कहिंचि तुह देव चक्षणाणं. ॥ एव ॥ सकयएणुयाइ तेणं-पुव्वुवयारे मणे सरतेणं, नणिओ संतुठमणेणं-जद्द मग्गाहि वर मेगं. ॥ ४ ॥ आपुछिय नियत्नजं—पना मग्गामि जं पियं तीसे, श्य जणिकण म गो-नियगेहं. पुचिया सा य. ॥ ४९६ ॥ अइनिनणबुद्धिजुत्ता -पाएण हवंति (इत्थ ) नारीओ, तो चिंतिय मेईए-बहुविहवो परवसो होहो. ॥ Hए ॥ श्री उपदेशपद. प्रकारनी सहायता आपी हती, अने तेनापर ते नारे जक्ति राखतो हतो तेयी तेणे तेनी परम प्रीति मेळवी हती. परंतु ते वखते त्या राज्याभिषेकनो महिमा चालतो हतो एटले तेने दरवाजामा प्रवेश नहि मळवाथी ते बार वर्ष लगी चक्रवर्ति ने जोवा पाम्यो नहि. नए त्यारवाद तणे घारपाळनी खूब सेवा करवा मांझी, एटट्ले तेनी कृपायो बारमे वर्षे राजाने जोयो. ए वीजा आचार्यो एम कहेछे के ज्यारे ते चक्रवर्तिना दर्शनने पण न पामी शक्यो, त्यारे तेणे एक लांबा वांसमां जूना खासमा बटकाव्या. ४ए? पढी राजा बाहेर नोकळ्यो ते समये तेना जे निशानदारो - ता तेमां ते खूब जोरथी दोरीने पेशी गयो. ए२ हवे राजाए ते निशान जोइ विचार्यु के आ ते वळी शंछ ? - थी तेणे तमने पूज्युं एटले ते बोल्यो के ए तमारी सेवामा जे वखत वीत्यो तेना निशान छे. ४५३ तमने सेवतां आटला खासमा घसाया डे पण हे देव तमारा चरणना दर्शन मळ्या नहिं एव त्यारे राजा कृतज्ञपणाथी तेना पूर्वे करेला नपकार मनमां याद लावी संतुष्ट थइ बोल्यो के हे नद्र तुं एक वर माग. ४५ ते वोच्यो के हुं मारी स्त्रीने पूछी तेने जे प्रिय हशे ते मागीश, एम कही ते पोताने घेर गयो. पछी तेणे स्त्रीने पूठी जोयु. ए६ हवे स्त्रीओ पाये अति निपुण बुधिवाळी होय डे, तेथी तेणीए विचार्यु के एना पासे बहु विनव थशे तो ए परवश यइ पम्शे. ए७ तेथी तेणीए कयु के तुं द + Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ८० ॥ एक्केमि गिमी - पदिवस जोयणं तुमं मग्ग, दीणारदक्खिणं तह - पजत्तं एत्तिएणावि ॥ ४८ ॥ इय नलिओ सो तीए - रायाणं विन्नवेश तहचेत्र, राया जणइ किमेवं - तुमग्गियं तुमए ? ॥ ४ ॥ मइ तुट्टे मग्गिजइ-र चलधवलचामराको विष्पकुप्पन्नाणं - कि मह रजे सो जाइ ॥ २०० ॥ पढमं नियहं मिय-- तोरा जोयणं सदीणारं, दिलं तत्र येणं - अंतेन रिगाइलोएणं. ॥ १०१ ॥ बत्तीस सहस्सा नरवईण बहुया कुकुंबकोमीओ, तत्थ निवसंति नयेरे— तप्प जंतं न सो जाइ ॥ २०२ बार गामाणं - कोमीओ तत्य कुञ्जसहस्साई, कइया चार पजंत -- मेस संजाहिहि वराय. ॥ ९०३ ॥ तइया वाससुहस्सं संजय+ ई आयं नराण परं, कह एयकाळजीवी — नयरस्सवि लहइ पर्जतं ? ॥ ए८ ॥ एरेक घरे दररोज जोजन ने एक सोनाम्होरनी दक्तिणा माग एटले आपणने एटलायी बस डे. ४०८ प्रेम तेणी सलाह प्याथी ते राजाने त्यां जड़ तेत्री रीतेज जणाववा लाग्यो. राजाए कयुं के अरे तु आवं तुच्छ कां मागे बे ? ४मारी मेहेरबानी यतां तो तारे वींजाता घोळा चामरवाळु राज्य मागवुं जोइये. ते बोल्यो के अमो ब्राह्मणोने राज्यनुं शुं काम छे ? ५०० त्यारे पहेलां पोतानाज घरे जमामी सोनाम्होरनी दक्षिणा आपी. वाद अनुक्रमे अंतः पुरमा रहेनाराम तेम कर्यु. ५०१ ते नगरमां वत्रीश हजार राजा तथा क्रोमो कुटंबो रहेता, तेनो बेको पण ते पामशे नहि. ५०२ त्यारे बन्तु क्रोम गामो अने तेमां हजारो घरो छे, तेथी ए रांक जरतक्षेत्रनो छेको क्यारे पामी शके ? ५०३ केमके ते वेळा मनुष्योनुं उत्कृष्ट आयुष्य पण फक्त एक हजार वर्षानुं हतुं तो एटलो वखत जीवनार नगरनो छेको पण केम पामी शके ? ५०४. श्री उपदेशपद. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ वं पुणरवि लहं-जह चक्किगिहंमि नोयणं तस्स, तह मणुयत्तं जीवाण-जाण संसारकंतार. ॥ ५५ ॥-- ___ ए रीते जेम फरीने तेने चक्रवर्तिना घरे जोजन मळवू पुर्वज छ तेम आ संसाररूप कांतारमां जीवोने की मनुष्यपणुं मळg झन जाणवू. ५०५. (पहेला दृष्टांतपरनी कथा समाप्त थइ) श्री उपदेशपद. अयंचात्र पूर्वाचार्यकृतो विशेषोपनयो दृश्यते. यथा स साधितसकनजरतो ब्रह्मदत्तश्चक्रवर्ती-तथा निखिलजीवलोकमध्यसमुज्जूनितधर्मचक्रवर्त्तित्वसाम्राज्यः यथासौ महाटवीपर्यटनपटुबटु – स्तया नर आ स्यळे पूर्वाचार्योए आ रोते बळी विशेष उपनय करेल :जेम अाखा जरतने साधनार ब्रह्मदत्त चक्रवत्ती, तेम आखा जगत्मां धर्मर्नु राज्य करनार तीर्थकर जाणवा. जेम ते मोटी अटवीमा फरवा मां हुशीयार ब्राह्मण, तेम नरनारकादि पर्यायवाला छेना विनाना संसारमा अनेकवेळा जमी आवेशो आ जीव जाणवो. जेम चक्रवर्तिना दर्शन अपावनार दरबार–तेम मिथ्यात्व मोहनीयादि कर्मनो विवर जे. जेम ते ब्राह्मणीए ब्राह्मणने बीजी स्त्रीमां आशक्त थवा अणइच्छती यकी खावामाज संतोषी राख्यो, तेम आ जीव ए Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारकादिपर्यायत्नाजि अनर्वाधारे संसारेऽनेकधा वांतपूर्वोऽयं जीवः॥ यथा स चक्रवर्तिदर्शनदायको धारपान-स्तया मिथ्यात्वमोहादिघातिकर्मविवरः ॥ यथा चासा वन्यनार्यासक्तं तमनिबंतीनोजनमात्रे एव संतुष्टं चकार ब्राह्मणी - तयामुजीवमैकांतिकमात्यंतिकं च मुक्तिवधूसुखं प्रति कृतोत्साहं उपस्थितराज्यसमसंयमलालमपि कर्मप्रकृतिजार्या नोजनमात्रतुल्ये वैषयिकसुखे प्रतिबद्धं करोति ययाच तस्य चक्रवर्ति गृहप्रभृतिषु सर्वेषु जरतक्षेत्रगृहेषु कृतलोजनस्य पुनश्चक्रवतिगृहे जोजनमसंजावनीयं-तथास्य जीवस्याकृतसम्यग्धर्मस्य सम्यग्दर्शनादिमुक्तिबीजलाजफनं मानुषं जन्मेति. अथ संग्रहगाथाकरार्थः चोख ति नोयणमिति - प्रायुक्तदृष्टांतघारगायायां यश्चोक इति पदमुपन्यस्तं तद्देशीवशालोजनस्य वाचकमित्यर्थ : कांते अति सुख आपनार मुक्ति वधूने पामवा इच्छे अने राज्य समान संयम मेळवे ते बदले कर्म प्रकृतिरूप नार्या तेने जोजन मात्रना जेवा वैषयिक सुखमां बझचावी राखे छे. जेम तेने चक्रवर्तिना घरयी मांगीने जरतक्षेत्रना बधा घरोमां जोजन करवानु होवाथी फरीने चक्रवर्त्तिना घरे जमवानुं असंजावनीय छे, तेम आ जीव खरा धर्मने नहि करे तो तेने से सम्यग्दशन वगेरे मुक्तिना बीज ज्यां मेळची शकाय ने एवं मनुष्य जन्म मळवू पुर्वप्न छे. हवे संग्रह गाथानो अकार्य करे जे. चोर एटले जाजन छ अर्थात पूर्वे दृष्टांतनी बार गायामांजे चोचक एवं पद राख्युं छे ते देशी प्राकृतमां जो जनवाचक छे. श्री उपदेशपद. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ए३ ॥ तच्च जोजनं— परीवारजारजणंमित्ति सूचनात् सूत्र मिति न्यायात् प्रथमं तावद् ब्रह्मदत्तगृहे, ततोंतः पुरादिपरिवारवेश्मसु ततोपि भारतवासिलोकमंदिरेषु कररूपतया प्रागुक्तब्राह्मणस्य निरूपितं राज्ञा तावद्भोजनपर्यंते च - स्वयमेव तस्यैव ब्राह्मणस्य न पुनः पुत्रपौत्राद्यपेक्षया - पुनर्द्वितीयवारं दुर्लनं डुरापं तन्निरूपितनोजनं यथा येन प्रकारेण तत्र चक्रवर्त्तिगृहे, तथैव प्रस्तुतं मनुजत्वमिति (५) एटले जोजन परिवार ने जारतना जनमां- एटले टुंकामां सूचत्रे ते सूत्र कहेवाय ए न्याययी पहेलां तो ब्रह्मदत्तनाज घरे, त्यार पछी अंतःपुर वगेरे तेना परिवारना घरोमां अने त्यार पछी जरत बसता लोकोना घरोनी लागा तरीके पूर्व कहेला ब्राह्मणने राजाए देखी आप्णुं अने जोजन कराच्या बाद ( दीनारनी दक्षिणा ठेरावी ) पोताने एटले के तेज ब्राह्मण-नहिके तेना पुत्र पात्र कोरेने. फरीने एटले बीजीवार तेथे रवी आपेयुं जोजन जेम ते चक्रवर्त्तिना घरे मळं डर्बन बे, तेम या प्रस्तुत मनुष्यपं जावं. BIEXEK श्री उपदेशपद. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४ ॥ अथ द्वितीयदृष्टांतसंग्रहगाथा. मूसं- जोगियपासिबियपामरमणदीणारपत्तिजूवंमि, जहचेव जओ फुलहो-धीरस्स तहेव मणुयत्तं. ॥ ७ ॥ वृत्तिः-चाणकस्सु प्पत्ती-वत्तव्वा पढमयाइ जा नंदो, पामलिपुत्तेनयरे-- समूबमुम्मूलिओ ताव. ॥१॥ सयमेव नवरि जणिही-नय तेण पवित्यरी श्हं गहिओ, रजंमि चंदगुत्ते-ठियंमि त्यंतेइ चाणको.-॥२॥ बझा न नंदलबी-समु. द्वरा काइ तोइ विरदंमि, रजं केरिस मेवं-करेसु वायं तदजणणे ॥ ३ ॥ · हवे बीजा दृष्टांतनी संग्रहगाया कहे छे. यौगिक पासाओवो इच्छा प्रमाणे पाशा पामीने रमवा मांमयुं. त्यां दीनारनी पात्रानो पण को हतो. तेवा धूतमां जय मळवो उझन छे. बुद्धिमान् पुरुषने तेम मनुष्य पणु उर्खन लागे छे. ? टीका. अही पहेबा चाणाक्यनी उत्पत्ति तथा पाटलिपुत्र नगरमां तेणे नंदने मूळथी त्यां उखेम्या बगीनी तेनो वात कहेवी जोइए. १ पण ते वात ग्रंथकार आगळमा पोतेज कहेनार छे तेयो हां तेनो विस्तार अमे लेता नथी. पण डंकामा र * मुद्दानीवात आ छे के चंद्रगुप्त राज्यपर बेसतां चाणाक्य चिंतववा लाग्यो के नंदनी काइ मोटी बदमी पामी नथी. अने तेना वगर राज्य शा कामन माटे ते मेळवचा कोई उपाय करीश. ३-३ श्री उपदेशपद. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए ॥ तो जंतपासया तेण-निम्मिचा के बिंति अम्ले न, देवयपसायबछा-तो सुदक्खो नरो अगो-॥४॥जणिो तेण जहए-पासे दीमारथासमेगं च, गिबिहत्तु जणाहि तुम-तियमच्चरचनमुहईसु. ॥५॥जो मं जिणाइ जूए-दीणाराणं जिणे थात मिणं, अह कहवि जिणामि अहं तो दीणारो ममं एगो. ॥६॥ एवं च सो पयट्टो–निरंकुसो जूय मुखुरं रमित्रं, न कयाइ सो जिणिजश्-जिण चिय सो परं प्रो. ॥ ७ ॥ जह तस्स जो फुलहो-अइदक्खेणावि केणइ नरेण, तह मणुयत्तणनकोदव्यो तस्स बंनंमि. ॥ ॥ इति. वाद तेणे यंत्रवाळा पासा बनाव्या केटखाक आचार्यों कहे छे के ते देवतानी महेरबानीथी मळेवा जुदी तरेहनाज पासा हता. पछएक हुशियार माणस राख्यो. ४ तेने तेणे कडं के आ पाशा अने सोनाम्होरोथी नरेस्रो एक थाळ लइने लिवाटा, चोक, तथा चौमुखमां जइने तुं कहेजे के-जे मने जुगारमा जीते तेने साळ मळशे, अने जो को रीते हुँ जीतुं तो मने षणे पणे दीनार देवी. ६ आ रीते वे दरकार थइ नारे जुगार रमवा लाग्यो, पण ते कोथी जीती शकातो नहि, किंतुं तेज बीजाओने जीततो. ७ हवे जेम तेनो जय अति चालाक माणसथी पण करावो पुर्बन डे, तेम मनुष्यपणाथी जे पड्यो, तो फरीने तेने ते मळवू मुझन . 0 श्री उपदेशपद. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ गाथारार्थ : यौगिको यंत्रप्रयोगनिष्पन्नो देवतावितीर्णो वा पाशको अनौ-तान्यामीतिपातेन रमणं क्रीडनं प्रारब्धं, तथा दीनारपात्रीपणः कृतश्चाणक्यनियुक्तपुर षेण, द्यूते तादृशे यथाचैव जयो पुर्खनोऽ न्यस्य पुरुषस्य, धीरस्य बुद्धिमतो मानवस्य तथैव मनुजत्वं उसनं प्रतिनासते इति. ___ हवे मूळनी गायानो अकार्य करे छे. 28 यौगिक एटले यंत्रप्रयोग साये बनावेला अथवा देवताए आपेक्षा वे पासा. तेना वो इच्छित पात पाकीने रमत शरु करीन अने त्यां सोनाम्होरोथी जरेली थाळी आपवानो चाणाक्ये राखेला माणसे पण को. एज जुगारमा जेम वीजा माणसने । जय मळवो मुर्मज छे तेम धीर एटले बुद्धिमान् माणसने मनुष्यपणुं पुर्खन लागे . श्री उपदेशपद. अथ तृतीयदृष्टांतसंग्रहगाथा. धामे त्ति नरहधो-सिहत्यगपत्यखेव थेरीए, अवगिंचणमेलणो -अचेव हिओ मणुयनाजो. ॥ ॥ हवे त्रीजा दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे छ, धान्य एटले जरतदोत्रनुं धान्य तेमां कोई सरसवनी थाळी नाखे, बाद कोइ बुट्ठी स्त्री तेने तेनाथी बुटो पामीने ते थाळी पानी मेळवे ए जेम मुश्केर छे तेम मनुष्यपणुं मळ न ले. ७ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७॥ (टीका) किन कप्पणा केणवि-सुरेण कोकहरेण सव्वाइं, धन्नाई मेलियाई-नारहवासस्स तणयाई. ॥ १॥ एगो सरिसवपत्थो-पक्खित्तो ताण मज्जयारंमि, आलोमियाइं ताई लणिया एगा तो थेररी. ॥२॥ अब्बतदेहा दासिहदूमिया किंचिरोयविहुरंगी, तं सुप्पसणाहकरा-विगिंचए ताई धन्नाई. ॥ ३॥ ता जा सरिसवपत्योपुन्नो सोचेव सा तहा कालं, पारखा मेनेजा-किं तं पत्थं सरिसवाण ? ॥४॥ एमेव मणुयजम्मो- अणेगजोणीसु परित्तमंताणं, पत्तो नहो मणुयाण-मुबहो मोहमत्रिणाणं. ॥५॥ श्री नपदेशपद. मानी ट्यो के कोइ देवताए कुतूहळशी जरतक्षेत्रनुं तमाम धान्य अने तृण एकठां कर्या. १ तेना वचे तणे सव रसवनी एक पाळी नाखीने ते नेळवी नाखी. पछी एक स्यविर मोसीने का के एमांयी तुं सरसव बुटो पाकी छे. २ ॐ हवे ते मोसी दूवळा शरीरवाळी, दारिद्रययी दुणायनी, अने कंडक रोगयी विधुर वनेशी कोइने हाथे सूपडू बइ ते धा न्यने उधमवा बागी. 3 तेणी ज्यां अगण ते सरसवनी पानी पूरी नराय त्यां अगण तेम करवा मांझी, हवे शें ते BO मोसी ते सरसबनी पाळी पामी शकशे के ? ४ एज रीते मोहमबिन मनुष्योने अनेक योनियोमां नमतां मळेनुं मनुष्य जन्म एकवार पूरं थइ जतुं रह्यं के ते फररी मळवु पुर्वन छे. ५ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथावरार्थः धन्ने तिहारपरामर्श :-तरहधन्ने ति नरतत्रधान्येषु मध्ये केनापि देवेन दानवेन वा कुतूहविना-सिद्धार्थानां सर्षपाणां प्रस्यस्य सेतिकाचतुष्टयात्मकस्य क्षेपः कृतः, तत : स्थविरयात्यंतवृष्या स्त्रिया कर्तृनूतया-अवगिचण त्ति अववेचनेना शेषधान्येज्य : पृथक्करणेन यन् मीननं प्रस्तुतसर्षपक्षानो मनुष्य प्राप्तिरिति. (७) ___ हवे गायानो अकार्य कर ले. धान्य ए पदयी धार याद कर्यो. जरतधान्य एटने के जरतक्षेत्रना धान्यामा कोइ कुतूहबी देव के दानवे सरसपनो प्रस्थ एटने चार सेतिकामो नाखी. वाद स्थविरा एटने अत्यंत वृध स्त्री तेनु अवगिंचन को एटनेके तमाम धान्यो- 8 थी तेने छूटुं करे, तम करीने ते सरसवनी पात्री मेळवे ( ए जेम सुइकेन बे) तेम मनुष्याणानी प्राप्ति थवी पुर्वन छे. अथ चतुर्थदृष्टांतसंग्रहगाथा. जूयंमि थेरनिवसुयरजसहसययंसि दाएणं, एत्तो जयान अहिओ-मुहाइ नेत्रो मणुयत्रानो. ॥ ए॥ हवे चोय दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे जे :घृत पदयी धार याद कयों के. वृछ राजानो पुत्र-राज्य मेळववा-दरेक असीपर एकसो आउवार दान रमीने–सना जीते, ए जय करतां पण या गमावे@ मनुष्य जन्म मळवू अधिक मुश्केत छे. श्री उपदेशपद. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥एए॥ (टीका) श्व अत्यि वसंतनरं-नयरं नामेण धणकणसमिधं, पोढपरक्कमकलिओ-जियसन्तु आसि तत्य निवो. ॥ १ ॥ चनविहबुछिसमेओ-अनिम्मतविउसकुत्रसमुप्पत्तो, आसि अमच्चो सच्चो-निच्चं सजो निवइकजे ॥२॥ खंनसयणिविटा-सुसिणिन्दा गरूवकनिया य, नरवणो तस्स सहा-अहेसि रिनचित्तखोनसहा. ॥३॥ तत्ये केके थंने-अस्सीण सयं समस्थि अहियं, इद अस्सीण सहस्सा-एगारस उसय चउसट्टा.॥४॥ एवं कालंमि गए-बलुमि रज्जं निसेवमाणस्स, नरवश्णो तस्स सुनो -अहमया चिंतइ कुचित्तो. ॥ ५॥ रजं जहाकहंचिवि-संपत्तं सोहणं ति जणवायो, ता थविरं नियपियरं-मारिय गिहामि रज मिणं. ॥ ६॥ नाओ य तस्स नावो--- श्री उपदेशपद. हा धनधान्यथी चरपूर वसंतपुर नामे नगर हतुं, त्यां प्रौढ पराक्रमी जितशत्रु नामे राजा हतो. १ तेनो चारे त्रुचिवालो, निर्मळ कुळमां जन्यो सत्य नामे अमात्य हतो, ते राजाना काममां हमेश तैयार रहेतो. २ ते राजानी एकसो आठ स्तनवाळी, बीसी, अनेक चित्रामणवाळी अने उइगनना मतने हरवा समर्थ एवी एक सना हती. ३ त्या एक एक थांजनामां एकसो आठ असो एटट्ने धारो हती. एम अग्यार हजार सो अने चोस धारो हती. । श्रा रीते घणा काळनगी ते राजा राज्य करतो रह्यो एवामा एकवेळा तेनो पुत्र कुझबुधि या चितववा लाग्यो. ५ रा. ज्य गमे ते रोते मळे तोपण सारं एम बोकोक्ति ने, माटे मारा बुहा बापने मारीने या राज्य मारे ले. ६ तेनो अनि प्राय अमात्ये जाण। बीधो एटले तण रागाने तेनी खवर आपी. त्यारे राजाए पुग्ने बोनात्रीने कडं के तारे सबूरी रा. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || 200 || मचे निवेश्यं तो रां, आहूय ते सु-नरिओ य कर्म परिक्वा हि ॥७॥ तोरसि रजक - दाए गेण ग्रहसयवारे, जिसु निरंतर मस्सि - एकेकं, देमि तो जं. ॥ ८ ॥ जह तासिं अस्सी तस्स जो बहो चिरेणावि, तह मयत्तं जीवा - जाण जवगहणलीलाएं. ॥ ए ॥ (इति) (छ) जोइए (तो अनुक्रमे राज्य मळशे.) ७ बतां तुं राज्य माटे उतावळा होय तो दरेक धार दी एक एक दावी वार तुं जीते, तो तन हु राज्य आपुं. ८ जेम ए तमाम सीओ पर तेने लांबा बखत बमे पण जय मन्त्रो ते नवरूप जंगलयां फरनारा जीवोने मनुष्यपणं जावं. U अर्थ : एकसो न जूए त्ति द्वारपरामर्श :- स्थविरनृपस्योक्तनामकस्य सुतो नंदनः राज्याकांची संपन्नस्ततोsar पित्रा प्रोक्तः - यथा - सद्सययंसि दोयणेति इयं सन्ना त्वया तदा जिता वष्टितं वारान् एकैकारिकेन दायेन जायते ततश्च राज्यं ल मर्दसि नान्यथा - इतो संभावनीयात् जयान त्ति समाजयात् अधिकः समधिको 5तया - मुहाए तिमुधिकया शुद्धधर्माराधनतया महामूल्य वि रेहणत्यथः नेयो ज्ञातव्यो मनुजलान इति. करे बे : राजानो पुत्र राज्य मेळववा आतुर थयो, त्यारे तेना वार दरेक असी एक एक दाववमे जीते अने वे संग्रहगायन तपदे द्वार याद कर्यो छे. ते जितशत्रु नामना स्थविर के सा तु त्यारे जोत्यो गाय के ज्यारे एकसो ते त्यारेज तने राज्य म नहितो नहि. या असंजावनीय समाजययी पण फोकटमां एटने शुद्धधर्मनी आराधना रूप महामू आप्या वगर मनुष्य जन्म मळवा अधिक दुर्लन जाए वो. श्री उपदेशपद. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०१॥ अथ पंचमदृष्टांतसंग्रहगाथा. रयणे ति जिन्नपोयस्स-तेसि नासो समुहमज्जंमि, आमसणंमि जणियं-तबाहसमं खु मणुयत्तं. ॥ १० ॥ हवे पांचमां दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे छे. ___रत्न एटलेके वूमेना वहाणवटीना ते रत्नोनो समुद्रना बच्चे नाश थयो. हवे ते रत्नोनु अन्वषण करतां तेश्रो जेवा मन्ने तेना माफक मनुष्य जन्म जाणवू. १० (टीका) रयणकयाणगवसउबवंतकित्तीइ तामवित्तीए, आसि अमुदियचित्तो-समुद्ददत्तो त्ति नाश्त्तो. ॥ १ ॥ सो अन्नया कयाई-नाणाविहवत्थतरियबोहित्थो, रयणढीव म गो-विहिओ रयणाण संजोगो. ॥ २॥ पूरियमणोरहो सो-वलिओ जा एइ जलहिमझमि, नयरीइ तामवित्तीइ-संमुहो ताव तं पोयं.-॥ ३ ॥ पुलक्खएण जिन्नं टीका. रत्नना वेपारना बीधे प्रख्यात थएली ताम्रलिप्ती नगरीमा उदार मनवालो समुद्रदत्त नामे बहाणवटी हतो. १ ते एक वेळाए अनेक नाना कपमायी वहाण जरीने रत्नदीप आव्यो, त्यां तेणे रत्नो संग्रह्या. ५ एम ते पोतानो इरादो पूर्ण करी त्यांची ताम्रलिप्ती तरफ वढ्यो. हवे ते जेवो दरियाना बच्चे आव्यो के वहाण नांग्यु. ३ कमनशीबे ते वहाण श्री उपदेशपद. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ -अश्गहिरे तमि सागरजलंमि, सव्वोवि रयणरासी-दिसोदिसिं विप्पलो य.॥ ४॥ सोविय समुद्ददत्तो-पाविय फनगं कहिंचि तीरंमि, बग्गो विसन्नचित्तो-खारजनाकीणव्वंगो. ॥ ५॥ पारद्धं रयणाणं-गवेसणं तेण पनणदेहेण, जह तस्स रयणनिवहो-लहो, तह एत्य मणुयत्तं. ॥ ६ ॥ (इति) 2 अतिनमा पाणीमा डुब्युं. अने तमाम रत्नो चारे बाजु विखराइ गया. ४ हवे ते समुद्रदत्त कोइक रीते पाटियु मेळवी किनारे आव्यो. पण तेनु मम दिशगीरीमा गरकाव थयुं अने खाग पाणीयी शरीर पण समी पम्यु. ५ बाद ते शरीरे र वीक थइ रह्यो त्यारे तेणे रस्नोनी शोध करवा मांझी. हवे जेम तेने ते रत्नो मळवा पुर्बन , तेम इहां मनुष्य जन्म १ उर्खन . ६ अक्षरार्थ : __ रयणे त्ति छारपरामर्शः-जिन्नपोतस्य समुदत्तवणिज इतिविशेषः, तेषां रत्नछीपोपात्तानां (रत्नानां) नाशः समुप्रमध्ये नूतु, ततस्तेन वणिजा अन्वेषणे रत्नानां प्रारब्धे यादृशो रत्नबानो, जाणतं पूर्वमुनिनिस्तानसमं, खु रेवार्थ:-ततस्तवाजतुल्यमेव मनुजत्वं प्रस्तुतमिति. हवे संग्रहगाथानो अतरार्थ कहीये छीये. - फुटेन वहाणवाला समुद्रदत्त वाणियाना ते एट्ले रत्न छीपथी सीधेला रत्नोनो समुद्रमा नाश थयो तेथी ते वाणीयाए तेनी शोध करवा मांझी, तेमा जेम तेने रस्नबान थवानो पुर्खन थे, तेम पूर्व मुनिओए तेनाज सर मनुष्य जन्म कहे छे. श्री उपदेशपद. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३॥ आवश्यकचूर्णौ त्वन्यथापि दृश्यते रत्नदृष्टांतोयया.-आसि सुकोसवनयरे-नयरहिरपनरजणसमाश्मे, इजो अच्चन्चयभूश्नायणं धणयदत्तो त्ति. ॥ १ ॥ जायंमि वसंतमहे-तमि पुरे जस्स जत्तिया अत्यि, धणकोमीन, पगया-तावड्या सो समुस्सेइ. ॥॥ सो पुण इन्नो कोमी. हि रयणमुलं करेन मसमत्थो, तेसि मणग्यत्तणओ-नी नब्न ता पमायाओ. ॥ ३॥ कालेण तंमि वुड्ढे-जायंमि गयंमि कत्यविप समए, कत्तोवि कजवसओ-बहिया देसंतरं दूरं.-॥४॥ तो तरूणबुद्धिणी ते-तणया कोकहलं पागाण, काकण मणे रयणाण-विक्कयं कान मारहा. ॥ ५॥ विहिया धणकोमीओ-पत्तेयमहंमि पंचवमाओ, पवणपणोलिरकणकणिरकिंकिणीजालकलियाओ.-॥ ६ ॥ नियपासा आवश्यकनी चूर्णिमां आ रत्ननो दृष्टांत वीजी रीते पण आपनो छे जेम के:न्यायशालि जनोयी समाकीर्ण सुकोशळ नगरमां अति अजुत ऋद्धिवाळी धनदत्त नामे शेव हतो. ११ ते नगरमां वसंतनो महोत्सव आवतां जेने त्यां जेटली धननी क्रोमो हती ते तेटवी धजाओ बांधतो. २ पण आ शेयर पासे अमूल्य रत्नो होवायी तेनी किंमत नहि अंकाइ शकाता से धजाओ बांधतो न हतो. ३ वखत जतां ते बुढो थयो अने ते एकवेळा कोई कामसर बाहेर दूर देशांतरे गयो. ४ हवे तेना काची बुझिवाळा पुत्रो धजाओगें कुतूहळ मनमां बावीने रत्नोने वेंचवा लाग्या. ५ तेमणे धननी घणं। क्रोमो करी. बाद दरेक महोत्सवमां पांचवर्णी, पवनथी खणखण RSS करती किंकिणीअोवाली, एकसो धजाओ तेमणे पोताना घरपर फरकावी. एम चालतां तेमनो बाप आव्यो. ६– श्री उपदेशपद. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ॥१४॥ यस्सुवार-सयसंखा ऊसिया पडायाओ, एवं वटुंताणं-तेसिं ताओ समायाओ ॥७॥ नणिया तेण, किमयं चेष्ठिय मसमंजसं? जो ताणि, रयणाणि मोहरहियाणि -विक्को ताण कह विहिओ? ॥ ७॥ मोहाणि पमिसमप्पिय तेसिं वणिजारयाण बहुचेव, जह इंति मज्झ गेहं-ताई तुब्नेहि तह कज्जं. ॥ ए ॥ ता ते अहवि असु-दिसासु तेत्थं गवेसणनिमित्तं, पारसकूलाईसुं-पत्ता देसंतरेसु कमा. ॥१॥सव्वायरेण ताई-गवेसियाई, न सव्वसंजोगो, संजाओ वणियाणं-कहिंपि गमणवसा. ॥ ११ ॥ रयणाण तेसि बहो-समागमो जह तहेव जीवाण, मणुयत्तान चुयाणं-पुणोवि माणुस्सयो जम्मो. ॥ १२॥ इति. ५ तणे को के अरे आ केवी गम्बर करी ? जे माटे ते रत्नो अमूख्य हता ते तमे केम वेंची नाख्या ? ७ माटे ते ते 8 वणजाराोने मढ्य पावं आपी, जेम ते रत्नो मारा घरे जलदी पाछां आवे, तेम तमोर करवं. ॥ ते शेग्ना ते आउ88 पुत्रो हता. ते आठे जण ते हुकमयी आने दिशाओमां ते रत्नोनी शोध करवा नोकळी अनुक्रमे पारसकून (इरान ) वगेरे देशांतरोमां पहोच्या. १० तेमणे खूब महेनत अझ ते रत्नानी शोध करी, पण तेमने ते बधां मळी शक्यां नहि, केमके केटलाक वेपारीओ क्यां अने क्या जता रह्या हता. ११ माटे ते रत्नो एका थवा जेम मुझन ने, तेज रीते जीवो मनुष्य जन्मथी एकवार खाना च्या के फरीने तेमने मनुष्य जन्म मळवू मुझेज . १३ P श्री उपदेशपद. Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ अथ षष्ठदृष्टांतसंग्रहगाथा. सुमिणमि चंदगिक्षणे-मंगरजई दोण्ह वीणणो, नाए णुताव सुमिणेतसाहसमं खु मणुयत्तं. ॥ १३ ॥ हवे उग दृष्टांतनी संग्रहगाया कहे छे. स्वप्नमां चंद्र गळता एकने लामु मळ्या, बीजाने राजम मळ्यु. बाद स्वप्न पाठ के तेनुं फळ व्यंजित करता ते जाणी एके पश्चात्ताप कर्यो, अने तेवू स्वप्न मेळववा सूइ रह्यो. हवे तेने फरोने ते मळg जेम उर्सन ने तेनी माफकन मनुष्य जन्म छे. १३ टीका. __ अत्यि अवंतीविसए–समुन्जया जा जिणेन ममरपुरि, अनिम्मन विनववसा --नजेणी नाम पवरपुरी. ॥ १ ॥ नग्गपरकमवसविजियसयसदिसिमंझो कलानिजणो, नामेणं जियसत्त-नरनाहो तंच पावे.॥२॥ तत्यत्यि सत्थवाहो-समत्थदेसेसु पत्तववहारो, अयलो अयत्रो व्व थिरो-चागी लोगी महानागो. ॥ ३ ॥ टीका. अवती देशमां नारे ऋद्धिना योगे अमरापुरीने पण जीतवा तैयार रहेली उज्जेणी नामे मोटी नगरी छे. १ तेने जारे पराक्रमयी सघळी दिशाओने जीतनार कलाबाज जितशत्रुराजा पाळन करतो. ५ ज्यां सघळा देशोमां वेपार - करनार, त्यागी, जोगी, महानाग्यवान् अने अचळना माफक धीर अचळ नामे सार्थवाह हतो. ३ वळी त्यां लावण्य श्री उपदेशपद. DAAR १४ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ तत्यविय देवदत्ता-स्रायलमहोयही कमलनयणा, गणिया गणियागयलोयमाणसा निवस धणड्ढा. ॥ ॥ तहा,-धुत्ताणं तेणाणं-वसणीणं कोनगीण कुसवाणं, विनसाण धम्मियाणं-जो मूत्रसत्राहणं लहइ-॥५॥ रायन्नकुझुप्पन्नो-संपुन्नो रायझक्खणसएहि, तत्यि मूत्रदेवो-धुत्तो पत्तो परं कित्तिं. ॥ ६ ॥ सन्नावसार मण, हं-विसयसुहं तस्स सेवमाणस्त, गणिया देवदत्ताइ-दिन्नतोसस्स जंति दिणा. ॥७॥ अह अन्नया महसवसमए नजाणकात्रणनिमित्तं, अयनेण देवदत्ता--दिट्ठा सह मूबदेवेण. ॥ ७ ॥ सिवियारूढा पोढं-पणयं तक्षण मुवागो तीए, चिंतेइ सत्थवाहो-ता धमाणं घम एसा. ॥ ७ ॥ ता केण उवाएणं-मज्क समीहियकरा नवेजे सा ? आढत्तो दाणाई-नवयारो णेगहा तीए. ॥ १० ॥ नवयारमेत्तगज्मा-गणिया श्री उपदेशपद. निधान, कमळ जेवा नेत्रवाळी, आवनारा लोकना मनने वर्तनारी धनाढय देवदत्त। नामे गणिका रहेता हती. ४ तेमन उगाराओ, चोरो, व्यसनी, कौतु किया, चानाक, विज्ञानो, अन धार्मिकोमा जे मूळरुप गणातो एवो राजन्यकुळमा जन्मेनो, सैकमो राजन्नकणवाळो मूळदेव नामे धूर्त त्यां रहेतो अने ते खूब विख्याति पाम्यो हतो. ५-६ ते देवदत्ता गणिका 39 साथे प्रीतिमयपणे विषय सुख जोगवा दिवसो पसार करतो तो. वे एक वेळा मधमासनो नत्सा यावतां अचळ सार्थवाहे देवदत्ताने न्यानकीमा माटे मूळदेवनी साथे जती जोइ. ८ ते पाळखीपर चको जती.हती. तेने जोइ सार्थवाह तेज कणे तेना जपर मोहित थ पायो, अने विचारवा लाग्यो के श्रा नशीबदारने जेटे, ए माटे कया उपाययो ए मारी इच्छा पुरशे ? एम चिंतवी तेणे तेने अनेक जातनीट सोगाद मोकनवा मांमी. १० हवे गणिकाजेटसोगाद Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ ओजेण तेण सो तीए, आणीयो बहुमाणस्स-गोयरं दावियसिणेहो. ॥ ११ ॥ वरचित्ततित्तिकलिए-निम्मलमणिभूमिए सनबोचे, पऊलियरयणदीवयपहागनत्यियतिमिरपूरे.-॥ १२ ॥ कयनब्जमसिंगारो-पोससमए य वासनवणे सो, पत्तो पमिवालो-आसणाइदाणेण सो तीए. ॥ १३ ॥ एवं तेण समं सा-गमेइ कालं विसासनोगपरा, पर मच्चत्तसिणेहा-णिञ्चंचिय मूत्रदेवंमि. ॥ १४ ॥ अकालएण एसा-न पवेस तं नियंमि गेहंमि, खिजेइ किंचि चित्ते–णायो जणणी तन्नावो. ॥ १५ ॥ नणिया पुत्ति पवेससु--जो रुचर तुज्क भूरसि किमेवं ? समए पवेसिनो सो, नणिओ अक्का तो एवं. ॥ १६ ॥ नारी टोवायी तेणी तेने स्नेह बताव्या साथ मान आपवा लागी. ११ बाद ते सांजे प्रदोषना वखते फक्कर Pाठमाठ सजी सरस चित्रामणवाळा, निर्मळ काचयी जमेना नीयतळबाळा, चंदरवायी सजेना, अने काचना जाज्वळा मान दीवानी प्रनाथी अंधाराने दूर राखता वास नुवनमां आवी पहोंच्या, एटट्ने देवदत्ताए तेने आसन वगेरे आपीने आदर आप्यो. १५-१३ आ रीते ते तेना साये खुब मोज विनास करती काळलेप करवा लागी, बतां तेणी दिलमा हमेशां मूळदेवपरज स्नेह राखती. १४ पण अकाना नयथी तेणी तेने घरमां आववा देती न हती, तेथी दिलमा काश्क दिलगीर रहेती ते वात तेनी माए जाण। बीधी. १५ त्यारे ते अक्का बोली के हे पुत्रि, तने जे रुचे तेने आववा दे, शामाटे आम दिखगार रहे जे ? आ परथी तेणीए अवसरे मुलदेवने आववा दीधो. हवे मूळदेवने अक्का आ रीते कहेवा मागी. १६ श्री नंपदेशपद. - Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ अपात्रे रमते नारी--गिरी वर्षति माधवः, नीचमाश्रयते लक्ष्मी:--प्राज्ञः प्रायेण निर्धनः (१) . स्त्री अपात्र साथ रमे डे, वरशाद डूंगरमां वधु वर्षे डे, लक्ष्मी नीच पासे जराय छ, अने चालाक माणस पाये निर्धन रहे छ (१) पत्नणेइ देवदत्ता-नाहं बुद्धा धणमि किंतु गुणे, सो न गुणो सव्वो च्चिय-- निवस इह मूलदेवंमि. ॥ १७ ॥ नणिया जणणीए सा-अणेगगुणगणसमलिओ अयलो, तत्तो तुह प्पियाओ-सा पत्नण कीरत परिबा. ॥ १७ ॥ तो अयलस्स समीवे-दासी संमेसिया जहा जणसु, तुह वबहाइ जायं-नच्छृणं नक्खणे-चोजं ॥ १ए ॥ तप्पत्थणाइ सोहग्गियाण मग्गेसरं मुणंतो सो, अप्पाण मणेगाइं-संपेसइ नच्छुसगमाई. ॥ २० ॥ नणिया जणणीए सा-अचलस्सो दारयं तुमं पिड, एकवय णण जेणं-महव्वओ एरिसो विहिओ. ॥ २१ ॥ सविसायं सा नासइ-कि महं क___आ सांजळी देवदत्ताए जवाब वाळ्यो के हुं कंइ धनमा बोजाती नथी पण गुणामा बुब्ध बुं. ते सघळा गुणो मूलदेवमा रहेला छे. १७ मा बोली के तारा ते प्रिय करतां अचळज वधता गुणवालो छे. त्यारे देवदत्ता बोली के एन परीक्षा करो. १० बाद तेमणे अचळ पासे दासी मोकन्नी अन तेने नलामण कररी के तुं कहे जे के तारी ववनाने सेन्नमी खावानो शोख थयो छे. १५ ा मागणी थतां अचळ पोताने नशीबदारोनो अग्रेसर जाणी सेझमीना गामा मोकन्नाव। आप्या. २० मा तेने कहेवा लागी के अचळनी उदारता तुं जो के जेणे एक बोसमां आवकुं मोहूं खर्च कर्यु . २१ देवदत्ता दिलगीरी साय बोली के हुं शुं हायणी बुं के जेनी आगळ आवा वगर समारेखा अने मूळ तथा श्री उपदेशपद. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ रिणी जमेव मुवणे, असमारश्यान श्मा-समूलमालान बहोओ. ॥ २५॥ तो न णसु मूलदेवं-किं काही सोवि ताव मिलामो, पहिया चेमी जाणावियो यसोजयखलयंमि. ॥ २३ ॥ तत्तो तेण कवड्डे-घेत्तणं दसु फुगेण तंमज्ज, गहिया दो बट्टी. ओ-गेण दो अहिनवसरावे.-॥२४॥ सेसेण चानजायं-तिक्खेण बुरेण ताठ घमिळण, तह गंमत्रीकयाओ-सूबासुं पोइयाओ य. ॥ २५ ॥ चानज्जाएणं वासिऊण विउं सरावगमज्के, चेमीकह प्पियानो-कालं संपेसिया तीसे. ॥ २६ ॥ जणणीय दंसियाओ-पेबसु विन्नाणअंतरं दोण्हं, अकिनेसेणं नक्खन्न रिहान सं. पेसिया तेण. ॥ २७ ॥ अयवेण पुण महंतो-अत्थवओ कारिओ, नउण मज्ज, एक्कावि उच्छुलट्टी-जहो वजुजइ तहा बिहिया. ॥ ५ ॥ एगतेणेव गुणे---एसा पेमाळी पांदमा सहित सांग मोकनावी दोधा. २२ माटे हवे मूळदेवने कहेबरावा जोइए ते शें कर डे ? ते जुगारीओना । अखामामां हतो, तेयी दासीने त्यां मोकनावीने तेने जगाव्यु. २३ त्यारे मूळदेवे दश कोकी बातेमायो वे कोमीनां बे सांग बीधा, वे कोमीना वे नवा शरावना बीधा अने बाकीनी उ कोमीनो एक रुमान, वाद तीखा चप्पुयी ते छोड़ी तेनी गोरी करी अने तेमां शूळा परोवी. २४ २५ पठी ते गंमेरीने वे शरावा वच्चे मेळी उपर रुमान ढांकी दासीना हाये आपी तेणीने मोकनावी. २६ देवदत्ताए ते माने वतावी कडं के से वेनी हुशियारीनुं अंतर जुवो. एणे वगर महेनते खवाइ शकाय तेवी गंमेरी मोकलावी जे. २७ अचन्ने जो के मोडें । खरच कर्यु छे, तोपण मने एक पण सांगेखप लागे तेम नयी कर्यु. २० मार विचार्यु के देवदत्ता एकांते मूळेदेवना गुणो श्री उपदेशपद. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११०|| बेइ मूत्रदेवस्स, श्य सविसाया जणणी---चिंतेनं एव मारघा. ॥ २९॥ को नाम सो नवाओ---जेणे सो निग्गहं लहेजाहि, अयवान जेण नपुणो---पविसेज्जा मज्क गेहंमि. ॥ ३० ॥ अह अमवासरे अयलसत्यवाहो जणावित्रो तीए, उनमेण गामगमणं-करे-तु एजाहि संझाए. ॥ ३१ ॥ तेण तहच्चिय विहिए-गमणे तुझाइ देवदताए, गेहंमि मूत्रदेवो-पवेसिओ जाव अन्जिरमइ. ॥३२॥ विज्जुकमप्पो व्व तओ -श्रावमिओ कत्ति अयलसत्याहो, गिहमज्के य अगो-श्यरो सेज्जायो बीणो. ॥ ३३ ॥ णाओ य तेण, नणिया-गणिया, एहायव्व मज्झ इत्येव, सेजाए सा पत्नणइ-निरत्यं किं विणासेसि. ॥ ३४॥ मजकंचव विणिस्सइ–णणो तुह किंपि किं विसूरेसि मारझो एहाणविही-अब्नंगुव्वट्टणाईश्रो. ॥ ३५ ॥ कासप श्री उपदेशपद.. नेज जुवे छ, तेथी ते दिलगिर थइ आ रीते चिंतववा लागी. २५ कोइ एवो उपाय छे के जे वो अचळथी मूलदेव हनA को पके के जेथी ते फरीने मारा घरमा पेसेज नहि. ३० हवे एक दिवसे अक्काए अचळ सार्यवाहने कडेवराव्यु के तारे ग्रामांतरे जवानो ढोंग करी सांने पाछा वळी आव@ ३१ तेणे तेज रीते ग्रामांतरे जवानो ढोंग को एटले देवदत्ता * खुश थइ मूळदेवने घरे बोनावी तेना साये रमवा लागी ३२ एवामां वीजळीनी ऊरपे अचळ सार्थवाह आवी पीने घरमां दाखन्न थयो, एटने मूळेदेव पलंग नीचे जराइ गयो. ३३ पण तेने अचन्ने जोश सीधो एटले तेणे गणिकाने का के मारे आज आ शय्या जपरज न्हावं छे. ते बोन्नी के शय्याने फोगटनी कां बगामो बगे? ३५ अचळ बोल्यो के ए मारीज बगो ने, तारे तेमा शंछ माटे का चिंता करे ? बाद तेल चोपमी अंग मसाला वगेरेथी स्नान करवाने Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्रोहणसमए–पारछो चिंतिनं तो इयरो, ही ही वसणाण वसा-वसणांइ जवो जवंतेवं. ॥ ३६॥ कोर्थान् प्राप्य न गर्वितो विषयिणः कस्यापदोऽस्तंगताः-स्त्रीनिः कस्य न खंमितं नुवि मनः, को नाम राज्ञां प्रियः; कः कालस्य न गोचरांतरगतः कोर्थी गतो गौरवं-कोवा पुर्जनवागुरासु पतितः केमेण यातः पुमान्. (१) विन व्व सलिनजिन्नो-निगच्छा जीव ताव अयलोण, अयलग्गकरेण सिरे -गिएिहय केसेसु सो नणियो. ॥३७॥किं ते करेमि इणिह-जं रूच्चइ तं करेसु सो लणइ, नियच्चरियवसाओ-जमहं तुहगोयरे जाओ. ॥ ३० ॥ वयणपउत्तिं सो तस्स-सोन मक्खित्तमाणसो नणइ, ही देवपरिणईए-सुयणाविजमावई इति ॥३॥ शरू कर्यु. ३५ हवे कळा ढोलवाना वखते मूळदेव विचारवा लाग्यो के हाय हाय ! व्यसनोना बीध आवा संकट थाय जे. ३६ (जे माटे का छ के) पैशो मळतां कोण उकतो नयी ? कया व्यसनीने आपदाओ नयी हती ? स्वीओए कोनुं मन आ पृथ्वीमां खेंच्यु नथी ? राजाने कोण प्रिय होय ? मोतना हाये कोण नयी सपमातो ? कयो मागण मान पामे छ ? अने कयो माणस पुर्जननी जाळमां पी केम कुशल रहे ? १ तेपाणीयो जीजायो थको विटपना माफक त्यांयी बाहर नीकळयो एवामां अचळ मजबूत हाथै तेना माथाना वाळ पकमीने कयु के ३७ हवे तने शें करू ते कहे ? मूळेदेव बोल्यो केजे तने रूच ते कर, केमके मारी मूमो चालना योगे हुं तारे हाये सपमायो बु. २० तेनी बोजवानी छटा जोड्ने अचळ अचंवो पामी वोटयों के नशीबनो खेन ने सुजनो पण संकटमा पके श्री उपदेशपद. Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११३॥ ना सियनीसेसतमो - जगचूडामणिपयं पवन्नो य, पाव‍ रवीवि वसणं - गढ़कल्लोला हि कालवसा. ॥ ४० ॥ मज्ज करेऊ कयाइवि – साहेज्जं जद्द वसणपडियस्स, सक्कारिज मुको-लेणं मूलदेवो ति. ॥ ४१ ॥ अपत्तपुव्व निग्गह कलंकलज्जा विलक्खजावेण विनायकपुरसंमुह - मारो एस ग्रह गंतुं ॥ ४२ ॥ संबलमेत्तेण वि वज्जि - यो पत्तो महावीर मुहे, वायासहायगं किंचि - जाव अवलोयए पहियं ॥ ४३ ॥ बोजयंगमडको-ढको जा एइ सङ्घको नाम, जग्गो मग्गपयट्टो - ससंबलो ते तो दिट्टो ॥ ४४ ॥ एयस्स संबलबलेण - जामि शिरींहं न वंचणं काही मज्झं इमो ते चलिया - परोप्परं विट्टियसंनासा ॥ ४५ ॥ पत्तो दिपहर तिगे - निग्गामपहाइ sha, कवि जलपदेसो - विस्सामं काट मारा. ॥ ४६ ॥ नीहारिकए य बे. ३० जुवो सघळा अंधकारने नशामनार अने जगतनो चूकाम णि सूर्य पण काळना योगे केतुथी कष्ट पामे छे. ४० एम कहने ते के हेजला आदमी, हुं जो कोइ वेळा कष्टमां पहुं तो तुं मने मदद करजे, एम बोली तेणे तेने सत्कार आपी जवा दीघो. ४१ या नवासवा निग्रह ने कलंकनी शरमन सीधे मूल्देव विलखो पकी वेलातट नगर तरफ खाने यो वर जाते ते मोटी वीना पासे यावी चमयो, तेथी ते रस्ते वातोवमे टेको आपनार को बेटेमार्गुनो राह जोवा लाग्यो . ४२ ४३ एवामां लोनरूप सर्पथी मशायलो सद्धको नामे जाट जातुं लइने रस्ते दोस्तो आवतो तेथे दी. ४४ मूळदेवे विचार्थी के एना जाताना सीधे हवे अटवीमां चालतां वांधो आवनार नथी. ए कांइ मने दगो नहि देशे, एम धारी ते परस्पर वातो करता चालवा मांड्या. ४५ ते गाम अने समक विनानी अटवीमांत्रीजे पहोरे तेने पालीवालुं स्थळ मळ, त्यां तेोए वीसामो कर्यो. ४६ हवे ते उगे खरचपाली करीने दनपुटमां बांधेन साधवो श्री उपदेशपद. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वश्याइ–सत्तुया तेण पत्तपुझियाए, आवोमिय सलिलेणं-जुत्ता एगागिणा चेव. ॥४७॥ वायामेत्तेणं पि य-श्यरो न निमंतिओ समावेवि, वéतो निरमाणसेण ही किविणचरियाई. ॥ ४ ॥ विस्सरिय मिणं नूणं-एयस्स (णमंतणं न तेण कयं, कवे दाहिश्श्य चिंतिऊण तेणेव सह चत्रिो . ॥ ४ ॥ एवं बीएवि दिहो -न तेण संजासिओ मणागंपि, तो पत्ते तइयदिणे ते अमवि मइत्थिया दोवि. ॥ ५० ॥ पत्ते वसिमसमीव-आसासंपायणेण मम एसो, दूर मुवयारकारि त्ति-चिंतिलं मूलदेवेण.-॥ ५१ ॥ नणिो नद्द पयट्ट-नियकज्जे संजनाहि मं जश्या, संपत्तरज मेजसु-तश्या जं देमि ते गाम. ॥ ५५ ॥ दिणपहरगे गाम-समागओ. तत्थ निक्खणघाए, करकलियपत्तपुमो-अकिलिष्मणो पविछो सो. ॥५३॥ कुम्मा श्री उपदेशपद. पाणीमां पलाळीने एकने खावा मांड्यो. ४७ मूत्रदेव पासे बेखो बतां ते कगेर मनवाळाए तेने वचन मात्रयी पण निमंत्रित न कयों. कृपणोना आचारने धिक्कार छ ! 8 मूळेदेव धार्यु के ए निमंत्रणा करतां नूली गयो लागे , तेयी तेणे ते नथी करी, तो खेर, काले आपशे एम धारी ते तेना साथे चालतो थयो. ए एम बीजे दिवसे पण तेणे तेने बगारे न कह्यु. हवे त्रीमा दिने ते बन्ने अटवी उत्स्या. ५० वस्ती पासे आवता, मूळदेवे विचार्यु के एणे बीजु कऽ नहि तो मने आशामा राखीने खेच्यो ए पण उपकार करुयोज छ तेथी तेणे का के–५१ हे नद्र, हवे जले तुं तारे कामे जा, पण ज्यारे मने राज्य पामेस्रो सांजळ त्यारे मारी पासे आवजे के जेयी हुं तने एक गाम आपीश. ५२ बपोर यतां । मूळदेव गाम पासे आव्यो. त्यां जीख मागवा माटे ते हायमां पानपुमो लइने शांत मनथी ते गाममां पेगे. ५३ तेने फकत । १५ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥ PAGRAT सहि चिय केवबेहि बछेहि पूरिओ पुझो, चलिओ तलागतीरे-अञ्चंतमणुस्सुओ सणियं. ॥ २४ ॥ एत्यंतरंमि मासोववासतववसविसोसियसरीरो, नजाणाओ एंतो-गामानिमुहो मुणी एगो-॥ ५५ ॥ पारणगकए दिह्रो-अणेण पप्फुसलोयणमणेण, तो चिंति पयट्टो-अव्यो मे पुलपरिवामी. ॥ ५६ ॥ चिंतामणीवि अन्नइ-लब्नइ कश्यावि कप्परूक्खोवि, नोयणसमए एसो-न अब्जए नागहीणेहिं. ॥ ॥ श्ह जं जंमि खणे संपजई दान मश्महग्धं तं, ता कुम्मासच्चिय मझ नो अन्नं संपयं दाणं. ॥ २७ ॥ अश्बहलपुत्रयकलिओ-हरिसंसुननसोयणजुगलो, पनणइ जयवं गेएहसु-मम करूणं काउ कुम्मासे. ॥ ५९ ॥ मुणिणावि दव्वक्खित्ताइएहि परियाणिऊण संसुकिं, पजत्तं ते पत्ते-गहिया महियानिहाणेण. ॥ ६० ॥ श्री उपदेशपद. नाफेना अमदज मळयां. ते वसे पानपुमो जरीने ते ऊतावळो नहि थतां धीमेथी तळावना किनारा तरफ चाब्यो. ५४ एवामां मासखमण तपय) सूकावेना शरीरवाळो एक मुनि उद्यानयो गाम तरफ पारणा माटे आवतो हतो तेने मूळदेवे प्रफुश्चित आंखो अने मनवमे जोइने चिंतव्यु के मारां पुण्य मोटां ने ! ५५-५६ जे माटे चिंतामणि तथा कम्पत हजु मळी शके पण जोजन वेळाए आवा मुनि जाग्यहीनोने नहि मळे. ५७ वळी जे वखते जे वस्तु द शकाय एम होय ते अमृट्य तो मारे आ अमदज देवा जोइए. बीजु कंश हाल मारी पासे देवानुं छे नहि. ५८ एम विचारी ते नारे रोमांचित था हर्षना आंसुओथी बे नेत्रो जीजवी बोल्यो के हे जगवन् मारापर करुणा कर। आ अमद तमे ब्यो. एए पूजनीय नामवाळा मुनिए पण द्रव्य क्षेत्रादिकथी ते शुद्ध जाणीने जोइये तेटला पात्रमा बीघा. ६० मुळदेव खुश थइने बोल्यो के । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥86 धमाणं खु नराणं-कुम्मासा हुँति साहुपारणाए,श्य नण मूत्रदेवो-जा परितुहो तो गयणे-॥६१ ॥ मुणिनत्तदेवयाए-मग्ग वरं पत्नणिो वरे तओ, गणियं च देवदत्तं-दंतिसहस्सं च रज्जं च-॥ ६२ ॥ कुम्मासेहिं अवसेसएदि विहियं च लोयणं तेण, अमयमयनोयणेण व-बाढं संपावित्रो तित्तिं. ॥ ६३ ॥ वेन्नायमवरनयरं-पोसकालंमि पावित्रो तत्थ, देसियसहाइ सुत्तो-पत्नायसमयंमि पासेइ.-॥ ६८ ॥ पमिपुन्नचंदममत-मइधवलपहापहासियदिसोहं, पिजंत मप्पणा देसिओवि तं पेन्चए अन्नो. ॥ ६५ ॥ पडिबुद्धा ते जुगवं-हस्रबोझं नटिओ तो कालं, अश्मंदत्लागधेयोतेसिं सो देसियाण पुरो--॥ ६६ ॥ जा पन्नवेश सुविणयफलं च पुलेश् ताव एक्कण, घयगुलसमग्गममयवानो तुज्क त्ति वाहरियं. ॥ ६७ ॥ पत्तो य बीयदिवसे-गजंसाधुना पारणामां अमदो पण जाग्याशाळी जनोज दइ शके ले. एवामां आकाशमा रहेन मुनिजक्त देवी बोली के हे मूत्रदेव, वर मांग. ते सांजळी तेणे देवदत्ता गणिका, हजार हाथी, अने राज्य माग्यु. ६१-६२ हवे बाकी बचेना अमदोथी तेणे नोजन कयु, अने जाणे तेणे अमृतनुं जोजन कयु होय तेम ते तृप्ति पाम्यो. ६३ ते सांजना वखते वेणातट नगरमां आव्यो एटने देशिक सना अर्थात वटेमाणुओनी धर्मशालामां सूतो. हवे प्रजातना समये तेणे अतिशय धोळी प्रजायी दिशाओने प्रकाशती करतो पूर्ण चंद्र पोते पी गयो होय एम स्वप्नामां जोयु, अने बीजा एक वटेमाणुए पण तेमज जोयु. ६४-६५ तेश्रो वे समकाळे जागी उठया. तेवामां अतिमंद लाग्यवाळो वटमा वीजा वटेपाणुओना आगळ गमव करवा मांझीने ते वात कहेवा लाग्यो अने ते स्वप्ननुं शुं फळ थशे ते पुग्वा लाग्यो एटने एक जणे का के तने घी गोळ वाळो लामु मळशे. ६६-६७ बाद बीजा दिवशे कोइ घरपर छाजु नखातां तेना धणीए आपेलो ते श्री उपदेशपद. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ११६॥ तमि किंचिवि गिहंमि, गिहपहुणा निदिको-संपत्तो मंझो तेण. ॥ ६ ॥ अशनिनणत्तमणमश्णान-चिंतियं ताव मूत्रदेवेण, एत्तियफलो म एसो-सुविणो, अवियाणगा एए. ॥ ६९ ॥ अह नग्गयंमि रविमंम्बंमि का पनायकिच्चाई, कुसुमनरियंजली सो-पत्तो सुविणन्नुयसयासे. ॥ ७० ॥ परिपूजियतच्चरणो-कानण पयाहिणं पणयमनली, बद्धंजली निवेएइ-चंदपाणं सुविणयंमि. ॥ ११॥ तो सुविणपाढएणंरज्जफत्रं निविऊण तं सुविणं, बायलामयपुमं-कन्नं परिणावित्रो पढम. ॥ २ ॥ एसो ते रज्जफलो-सत्तदिणब्नंतरे धुवं सुविणो, एवं ति मन लियंजलिपुमेण पमिवाम मेएण. ॥ ७३ ॥ पत्तो कमेण विन्नायमि परिचिंतियं तो तेण, अच्चंतनिघणो हं नमामि कह नयरमज्जमि.॥७॥ तोरयणीए ईसरगिहंमि एगंमि खणियखत्तो सो, आ श्री नपदे शपद. वोन लामु ते वटेमागुने मच्यो. ६७ हवे मूळदेव अति निपुण बुद्धिवाळो होवाथी चिंतववा लाग्यों के ए स्वप्न एटसाज फळवालो न होवो जोइए एओ बेखबरा लागे छे. ६ए बाद सूर्य उगता प्रजातकृत्य करी फुलथी अंजळि जरीने स्वप्ना जाणनार पासे ते गयो. ७० ते तेना पग पूजी प्रदक्तिणा दमायुं नमावी अंजळी जोमी कहेवा लाग्यो के में स्वप्नमां चंद्रने पोधो एम जोयुं छे. ७१ त्यारे स्वप्नपाक ते स्वप्नने राज्य फळवाळु जाणीने पहेलां तेने पोतानी लावण्यरूप अमृतयी परिपूण कन्या परणावी. बाद कह्यु के आ स्वप्न तने सात दिनना अंदर राज्य आपशे. ते वात मूळदेवे बांधी अंजळिए कबूल राखी. ७२ ७३ ते हवे वेणातटमां आव्यो. त्यां तेणे चिंतव्युं के हुं आवो अति निर्धन थइ नगरमां शी रीते न. ७८ तेथी रात परतां तेणे एक पैशादारने घरे खातर पामवा मांझयुं, तेवामा पहेरेगीरोए तेने पकडयो, Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ११७ ॥ रक्ख हि गहि-बद्धो य निओ य करणं मि. ॥ ७९ ॥ चोरस्स वहो हंको ि — सत्यं सतोमो, तं वज्ज माणवेई - निज्ज‍ जा वज्झनूमीए - ॥ ७६ ॥ ता चिंते किमेयं - सव्वं पुव्वुत्त मलियगं होही, तस्से दयागयपोढपुलवस पुरे तत्तो- - ॥ 99 ॥ जग्गाढसूल वियणो विदुरसरीरो अपुतो मर, नरनाहो दिव्वाई - अहिवा सिजंति तो पंच ॥ ७८ ॥ तंबेरमो तुरंगो - उत्रं चामरजुगं च तह कल्लसो, तो देवया बहुरंत एएसु रजस्स ॥ ७० ॥ मग्गिज्जइ नररयणं - जोगं रजस्स चच्चराईसु, दिव्वे हि तेहि नयरी सव्वयो हिंममाणेहिं . - ॥ ८० ॥ दिय खरारूढो– बित्तो सरावमालगलो, रत्तंदणकयराओ - मसिमुद्दयमुद्दियसरीरो॥ ८१ ॥ संमुह तो सो मूलदेवतेो तो गट्टे, पारछा गलगजी - हरण है बांधीने दरवारमां आयो. ७५ त्यां अमात्ये हुकम कर्यो के नीतिशास्त्रमां कहेलुं छे के चोरने मारी नाखवेो एज दंबे, माटे ने मारी नाखो तेयी ते तेने वधभूमिमां लइ जना लाग्या. ७३ मूळेदेव विचारमां परुयो के पूर्वे बनेला घळा बनाव शुं जूता पशे ? एवामां तेना प्रौढ पुण्य उदयमां आववाना सीधे ते नगरमां ते वखते त्यांना राजा आकरा शूळनी वेदनाथ विधुर ने पुत्रियो मरण पाम्पो, एट (नवो राजा मेळावा मांटे) पांच दिव्य तैयार करवामां आव्यां. 999 पांच दिव्य ते ए के हाथी, घोमो, छत्र, चामर अने कळश तेमने अधिवासित कर्या एटझे ऊट तेमां राज्यनी देवताओ दाखल इ. ७७ ते दिव्या आखी नगरीमां फरीने चोक चोरामांयी राज्य योग्य नरने शोधे बे. ८० ते दिव्योए गधेकापर चमे छीतळाना छत्रवाळा सराववान माळाने गळामां लटकावनार, शता रोगालथी रंगेलो, मसीथी चीतरेलो, एवो मूळदेव चोर सामे आवतो जोयो. एटले हाथीए त्यां गर्जना करी, अन घोकाए मोटो खींखारो कर्यो. ८१ श्री उपदेशपद. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ११८ ।। सारवो गरु. ॥ ८२ ॥ घेत्तू करी कलसं - अदिसिंचिय ने निययसंधंमि, ढलियान चापराओ - बत्तं उवरि हियं ऊत्ति ॥ ८३ ॥ पूरियसयलनहंगणमग्गं ताहे पवाश्यं तूरं, अश्मुदलो जयसद्दो- परं जियो वं दिविहेहिं ॥ ८४ ॥ पत्तो रायसहाए — मुत्तामणिमं किए चक्कमि, सीहासणोवरिगयो – पण सामंतचक्रेण ॥ ८५ ॥ जाओ महानरवई - पयावपरिभूयवेरिनरनाहो, सो रज्जं रंजियसुयणमाणसो माइ जहिछं. ॥ ८६ ॥ जाओ जो पत्राओ - जह इमिणा चंदमंडलं सुमिणे, पीयं तस पसाएण - पावियं एरिसं रज्जं ॥ ८७ ॥ सुणियं च तेण देसियनरेण किं एरिसं नमे जायं, नरनादत्तं वीणणदोसानं जणेण सो जणिओ. ॥८८॥ एतो ज मन्नमेवसुमि बन्नामि तं कहिस्सा मि, निजणस्स कस्लाई जेण - होज इय रसं सिद्धी ॥८॥ ८२ बाद हाथी कलश उपामी तैनापर अभिषेक कररी तेने पोताना खांधपर लीधो एटजे चामरो पोतानी मेळे उपमी तेनापर ढळवा लाग्याने छत्र जमीने ऊट तेना उपर जइने थंनायुं. ८३ आ वखते आखा आकाशने गजावता वाजावा याट चारणी जय जयनो जारे घोष करवा लाग्या. ८४ हवे ते राजसज्जामां आवी मोती माथी ढेला चोकमां सिंहासनपर यावी वेगे एटले सरदारोए आावी तेने सन्लाम जरी. ८५ ते महाराजा थइने पोताना प्रतापथी दुश्मन राजाओ ने हराववा लाग्यो ने सुजनजनोना मन राजी करी ते इच्छा प्रमाणे राज्य जोगववा लाग्यो. ८६ बाद लोकोमां वात फेलाइ के एणे स्वप्नमां चंद्रमंगळ पीधुं तेना पसाये एने आनुं राज्य मळयुं. ८७ ते वात पेहेला वटेमागुए सांजळी, एटले ते कहेवा लाग्यो के त्यारे मने एवं राजापाएं केम न मळयुं ? लोकोए तेने कर्त्तुं के तें स्वप्नने बानुं न राखतां उघाकुं पारुयुं तेथी तेम ज थयुं. ८0 ते चितवत्रा लाग्यो के हवे जो एवं बीजं स्वप्न हुं पामीश तो श्री उपदेशपद. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥ दहितकपनरलायणपरायणो सोविरो जहिलाए, सुविणं मग्गंतो सो—किलिस्सिओ कान मबहुयं. ॥ ए ॥ जह तस्स एयसुविणयलानो अश्लहो तहा नई-मणुयत्तं मणुयाणं-अपारसंसारनीरहरे. ॥ ए१ ॥ एसो सेसकहाणयोसो पत्यावमागओ जेण, तण नणिजइ सो अन्नया न चिंतेइ नरनाहो. ॥ ४ ॥ बळ रज्जं मयमंझणाण वरवारणाण य सहस्सो, एगित्थ देवदत्ता--ण अत्यि तो णूण मा नाइ. ॥ ए३ ॥ ४ ते कोइ निपुणनेज ते कहीश के जेथी आवी राज्यऋद्धि मळशे. ८0 एयी ते दहीं छासवाळु जोजन कररी यथेच्छपणे सूतो रही स्वप्ननी राह जोतो घणा वखत लगी हेरान यवा लाग्यो. ए० हवे जेम तेने एबुं स्वप्न मळ्वू अति पुर्वन छ तेम था अपार संसार समुद्रमा मनुष्य जन्म जतुं रह्यं तो फरीने मळवू पुनन . ५१ हवे हा प्रस्ताव होवायी कथानो बाकीनो थोमो जाग जे ते कहीए छीए के ते मळेदेव राजा एकवेळा चिंतववा लाग्यो के मने राज्य मळ्यं, मदकरता हजार हाथी मळया, पण एक शहां देवदत्ता नयी तेथी ते मने जणुं लागे छे. ए२ (3 यतः--नेहलिनिग्ग मेबइ निकारण रसी-वसणसएवि अमूढ विहवि अणुससी, सज्जणि सरबसहावा सूहवि सोमथिरि-माणुससंगमि सग्गु कि सग्गह सिंगुसिरि. (१) जे माटे का छे के स्नेहमां बागीने जे तेने मेळेज नहि, विना कारणे प्रीति राखे, सेंकमो कष्ट पमतां मुंकाय नहि, धनमा बुब्ध बने नहि, सरल स्वजाव राखे, सारी टेववालो होय, चंद्र जेवो शीतळ होय, एवा सज्जन माणसनी सोबतमा स्वर्ग के पहामनी टोचपर स्वर्ग छे ? ? श्री उपदेशपद. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ HODANCE PEO उज्जेणिसामिणा दाणमाणगहिएण विहियपणएण, अन्नथिएण बहुहा-समप्पिया देवदत्ता से. ॥ एव ॥ विसुयं सद्धमनट्टण-मूत्रदेवो समज्जिणियरज्जो, विमायमि नयरे समागो तत्थ बहुचेव. ॥ एए ॥ दिठो राया, दिलो पहाणगामो विसज्जिो तत्तो, मह नयणगोयरे जह-न एहि तह कुणसु श्य नणिो . ॥ ए६ ॥ अह अन्नया कयाइ–नज्जणीओ धणज्जणनिमित्तं, देसंतरं पवालो-अयलो बहुदोयपरियओ. ॥ ए ॥ तत्यो वज्जियबहुविहवनरियसगडो य दिव्वजोएण, विनायडंमि पत्तो-सुंकुं पाडे मारखो. ॥ ए॥ मंजिठाइकयाणंतरेसु गोवियमहग्घबहुरूवो, णाओ सुंकियलोएण-दसिओ नरवश्स्स तो.॥एगातो तेण संलमुब्नंतलोयणेणं पलोओ अयलो, कह एत्थ सत्थवाहो-अव्वो अच्चब्जयं एयं.॥ १० ॥ वाद नज्जेणीना राजाने दानमानथी वश कर्या एटले ते प्रीति करवा लाग्यो एटले मूळेदेव अतिशय प्रार्थना कर्यायी तणे देवदत्ता मोकलावी आपी. एप आणी मेर सद्धमनाटे सांजळयुं के मूळदेव राज्य पाम्यो छे एटले ते जटपट वेणातट नगरमा आवी पहोच्यो. एए तणे राजा जोयो एटले राजाए तेने मोटुं गाम आपी रवाने कर्यो अने का के फरीने मारी नजरे तुं आवे नहि तेम करजे. ए६ हवे कोई एक वेळाए अचळ सार्थवाह धन उपार्जवा खातर बहु परिवार साथे बस्ने उज्जेणीथी देशांतर नीकळी पड्यो जे. ए७ त्यां घणुं धन कमावी गामा गरी दैवयोगे वेणातटमां आव्यो त्यां तणे जकात बचाववानी तजवीज करी. ए तेणे मांघी चीजो मजीठ वगेरे करियाणामां बुपावी ते वातनी दाणिोने खबर पमतां तेश्रोए तेने पकमीने राजा पासे खमो को. एए त्यारे राजाए संम्रम जरेली आंखे तेने जो विचार्यु के आ तो अचंबानी वात लागे जे के यहां आ सार्थवाह ते क्याथी आवी पम्यो ? १०० श्री उपदेशपद. AGO Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥ परियाणेसि महायस-कोहं पहिलणइ देव केण तुमं, नो नजसि सरयससंकतकितीनरियत्नवणो. ॥ १०१ ॥ साहियनियवृत्तंतो-नरनाहो उक्करं करेऊण, सकार मस्स समए-तं तुमणं विसज्जेइ. ॥ १० ॥ पत्तो नजेणीए-अयस्रो मिलिओ य बंधवजणस्स, कहिया य मूलदेवेण जा कया तस्स पवित्ती. ॥ १०३ अह विन्नायमनयरे-चोरेणे गेण चनरचरिएण, पइदिवसं ईसरमंदिरेसु पाहिज्जएखत्तं. ॥ १०४ ॥ दक्खोविय आरक्खियलोश्रो पयोवि तं न बक्खेइ, नरवश्णो तेण निवेइयं च नो देव दीस सो. ॥ १५ ॥ णूण मदिस्सीकरणं-तेणं विहियं सुरो व खयरो वा, सो होऊ अन्नहा कह-केणावि कहिंपि नो दिह्रो. ॥ १०६ ॥ तो नीलपमावरणो–पयंमअसिममंडियकरग्गो, सयमेव मूत्रदेवो-पढमपवेसे विणिक्खंतो. श्रीनपदेशपद. AS राजाए तेने कहां के हे महायश, हुं कोण बुं ते जागे ? ते बोल्यो के हे देव, शरद्कतुना चंद्र जेवी कीर्तियी जगत्ने से नरनार तमोने कोण नहि ओळखे ? १०१ व.द राजाए तेने पातानो वृत्तांत कही तेनो खूब सत्कार करी अवसरे तेने खुश करी रवाने कर्यो. १०२ तेणे जज्जेणीमां श्राव। बंधुजनने मळी मुळे देवे तेनो जे सत्कार कर्यो ते तेमने संजळाव्यो १०३ हवे वेणातटनगरमा एक चतुर चोर दररोज पैस दारोना घोमां खातर पामतो. १०४ तेने घणा हुशियार चोकीदारो सावध रहेता पण जोइ शक्या नहि एटने तेम । रानाने चेतक के हे देव, ते नजरमांज नयी चमतो. १०५ राजाए विचार्यु के खरखर तेणे अशीकरण करखें छे, या तो के. देव के विद्याधर ते होवो जोए, न हि तो कोइ ने 28 पण क्या पण देख वामां केम नहि आवे? १०६ बाद त पातेन अंधार पछामो आढो, हायमां तीखी तन्त्रवार बर १६ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१२॥ ॥ १७ ॥ देवक्षपवासहासुन्नगेहनजाणमाइगणेसु, उवलघु पारखो-बहुएहिं सो जवाएहिं. ॥ १७ ॥ अह एगाइ पवाए-रयणीए मज्झनागसमयंमि, निन्जरतिमिरत्नरवसा-निरूझदिहिप्पयामि ॥ १०॥ ॥ सुत्तंमि सहालोए-कश्यववसओ य मूत्रदेवो वि, तत्येव संपयट्टो सो अह आगो तत्थ. ॥ ११० ॥ मंमियनामा चोरो-सणियं नठाविओ य सो तेण, नणिो य लद्द को तं-सो नण अणाहपहिओ हं. ॥ १११ ॥ मं अणुगलसु जेणं-सिद्धी ते हो वंग्यित्थाण, आमं ति जणिय वग्गो-सो राया तस्स मग्गेण. ॥११॥कत्यह ईसरगेहे-खपियं खत्तं विणिग्गो तत्थ, अपनरो घरसारो-दिन्नो रन्नो य खंधमि. ॥ ११३ ॥ जिएणुजाणब्नंतरदेनसमढमज्मभूमिहरयंमि, नोओ य तत्थ दिघा-तब्नगिणी रूवरयण खणी. ॥ ११४ ॥ सा मंमिएण नणिया-सोयं चक्षणाण कुणसु एयस्स, कूवसमीपहेलेज पहोरे तेने शोधवा नीकळी पम्यो. १०७ ते तेने दवळ, प्रपा, सना, सूना घर अने उद्यान वगरे स्थळे अनेक उपायो वझे शोधवा लाग्यो. १०७ हवे मधरातना समये सख्त अंधाराना लोधे आँखाथी कशुं नहि देखातुं त्यारे एक राप्रपामां मुसाफर सोको- सुतेमा हता कपट करीने मूब्दव पण मुवा लाग्यो. एवामां त्यां ते चोर आव्यो. १०७ ११० ते में मेन नामे चोर हतो. तेणे हळवे रहो राजाने जगाम) कडु के नवा आदमी, तुं कोण छे ? राजाने जवाब दोधो के हुं रांक वटेमा बु. १११ चोरे कडं के तुं मारी पाछळ चान के तने वांछित अर्थ मळशे. राजा हा पामीने तेना पाछ ल लाग्यो. ११२ ते चौरे कोश्क तालेवरना घरे खातर पामयुं एटले त्यां खूब धन मळ्युं ते राजाना कांधे आयुं. ११३ बाद ते तेने जूना उधानना वच्चे रहेला देवळना मग्नी वच्चना नायरामा लइ गयो. त्यां राजाए तेनी रुपनी खाण बेहेन जोइ. ११४ मंमित चौरे बेननें कडं के एना पा पखाळ एटले तेंणी तेने का पासे जत्नों राखी पग पारवा श्री उपदेशपद. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये सा तस्स-गविलं फुसइ जा चरणे. ॥ ११५ ॥ फंसाणुमाणजाणियनिवचरणा पयण मागया तंमि, ता जाणावइ तं तह-जह सो तुरियं विणिक्खंतो.॥ ११६ ॥ जो जण अन्नो सो पायसोयरनमेण तत्य कूमि, अम्मंतगहीरतले-खिप्पर तीए गयदयाए. ॥ ११७ ॥ कोलाहले कए एस जाइ ह निग्गो ममाहितो, तो सो खग्गसहामो-अणुनग्गो मग्गो तस्स. ॥ ११ ॥ नाओ य मूत्रदेवेण--एस जहा एइ तुरियपयचारो, तो नयरच्चरसिवंतरंमि-परिसंविओ जीओ. ॥ ११९ ॥ रोसावेसनमाओ-खग्गेण सिवं विहामिय कयत्यं, अप्पाणं मन्नंतो-स नियंतो पिओ जत्ति. ॥ १२० ॥ गयखधंमि विलग्गो-बीयदिणे जा पुरे जमश्राया, ता कवडविहियपट्टग संश्यतणू तो तेणो-॥ ११ ॥ दिठो रन्ना कंथाइ सेवणं चम्मरे कुणेमाणो, विबागी. ११५ तेना सुकुमाळ पगने फरस्याथी तेणीए जाणी लोधु के आ तो राजाना पग ने एटले तेणीए तेनापर मोहि त थइ तेने एवं जणाव्यु के ते त्यांची जन्नदी नासवा मांझयो. बाकी बीजो कोइ होत तो तेने ते दयाहीन स्त्री पग पखा ळवाना मिषे अतिनमा वामां धकेन्नी आपती. ११६-११७ पाउळथी तेणीए बमो पाम के या तो मारीपासीमा शीने चाल्यो जाय रे त्यारे ते चोर तरवार ना तेना पाछन्न लाग्यो. ११० ते दोड्यो श्रावतो हता तने मळदेश जाणीवी धो एटले ते नगरना चोरामां स्थापना शिवलिंगना नीचे बीकना लोधे जराइ गयो. तेवामां ते चार गुस्साना जोरयी तरवा खमे शिवन फोमी पोताने कृतार्थ मानीने कट पागे वट्यो. ११५---१२० बीजा दिने राजा हाथीपर चमा नगरमां फरवा लाग्यो के तणं कपटथी पाटा बांधोने शरीरन टाकी राखनार ते चारने चौरापर कंथा सावता जायो एटने तरत ओळख। करीने तेने पोताना घरे तेको आएयो. १३१ १२२ परराते वातेवी वात कही एटख्ने बेना मन मख्या. बाद अति श्री उपदेशपद. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ नाओ तक्खणमेव-तो य जवणं बहुं नीमो. ॥ १२ ॥ निसिववहारो पयमीको य मिलियाई दोण्हवि मणाई, विप्रो पयंभि अइनिनणबुधिणा मूत्रदेवेण. ॥१३॥ जणियो जहाणं मम देहि-तेण दिन्ना सगनरवं तस्स, एवं वच्चइ कालो-तीइ समं विसयसत्तस्स. ॥ १४ ॥ विन्नायनवणसारेण-राणा तेण तेणु वाएण, संपामियविस्सासो-को य नवजुत्तसव्वस्सो. ॥ १२५ ॥ सरित्रं पुववराहे-तहाविहं पाविजं उलं किंचि, सूत्रासिरंमि आरोविळण पंचत्तणं नीओ. ॥ १२६ ॥ एत्य विसेसोवणो -एसो दंसिज्जए जहा राया, तह एस धम्मियजणो-जह सो चोरो तहय देहो. ॥ १७ ॥ जह तस्स धणुवओगो-विहिओ विविहेहि तेणु वाएहिं, तह देहान माओ-कजो सामत्यनवोगो. ॥ १२ ॥ जह सो तेणो तेणं-धणरहिओ एस इश मुणेऊणं, आरोविय सूत्राए-पुब्विबवराहदोसेण-॥ १२९ ॥ नीओ जीवियनिपुण बुद्धिवाला मूळदेवे तेने कोक हुद्दा ऊपर स्याप्यो. १५३ हवे राजाए तेने कयु के तारी वेन तुं मने आप, एटले तेणे मान साथे ते तेने परणावी एटले तेणीना साये मोज करतो रही राजा वखत पसार करवा लाग्यो. १५४ राजाने तेनी मानमिनकतनी खबर होवाथी तेणे ते ते जपायोथी तेने विश्वासमा बस्ने तेनी तमाम मिकत पोताना कबजे करी. १२५ बाद राजाए प्रथमना अपराध याद करी कोइछा पामीने तेने शूळीपर चमावी मरावी नाख्यो १२६ श्हां विशेष उपनय श्रेबताववानो ने के जेम राजा तेम शहां धर्मि नीव जाणवो अने जेम ते चोर तेम आ शरीर समजबु. १२७ राजाए जेम ते ॐ चोरनुं विविध उपायोयी स बी, तेम आ शरीरना बळनो उपयोग लेता रहवं. १२७ हवे ते चोर धनरहित थयो छे एम जाणी राजाए जेम तेने पूर्वना अपराधना कारणे शूळीपर चमावी मरावी नाख्यो. १५ तेम आ देहने पण श्री उपदेशपद. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ पजंत-मेस देहोवि कीणसामत्थो, सूत्रासमाणअणसणविहिणा अंतमि मोत्तव्यो. ॥ १३० ॥ इति. . ज्यारे बळ घट जाय त्यारे शूळी समान अणसणनी विधियी अंते छोकी देवं. १३० । (आ कथामां त्रण प्रस्ताविक श्लोको डे ते संख्यामां साये सीधा होय तो १३३ गाथाओ थाय छे.) __ अय गायावार्थः स्वप्ने इति धारपरामर्श:-चंग्रसने स्वप्ने श्व चंपानलक्षणे सति मंडकराज्ये उक्तरूपे संपन्ने घ्योर्देशिकमूलदेवयोः, कुत इत्याह-वीणणो त्ति स्वप्नफसव्यंजनात् कार्पटिकफलस्वप्नपाठककृतात्. ततो देशिकेन ज्ञातव्यंजनप्रस्तुतस्वप्ने राज्यफसेवबुझेनुतापः पश्चात्तापः कृतः, सुविणे इति ततः पुनरपि प्रस्तुतस्वप्ननानाय स्वप्ने शयने प्रक्रांते सति तवाजसमं प्रस्तुतस्वप्नसानसदृशं–खुरवधारणे-मनुजत्वं प्रस्तुतमिति. हवे संग्रह गाथानो अङ्गार्थ कहे . " ___ स्वप्नमां एटले चंद्रपानरूप स्वप्न आवतां देशिक (वटेमा) अन मुळदेवने ए बन्नेने पूर्व वताव्या प्रमाणे लामु अने राज्य मळयां. शाथी एम थयुं ते कहे छे–स्वप्ननुं फळ प्रकाश करवायी अर्थात् कापमी कहेला अने स्वप्न पाठके कहेला तेना फळ प्रमाणे तेम बन्यु. त्यारे वेटेमाटुंग्रे या स्वप्नने शी रीते प्रकाशq ते जाणीने तेनाथी राज्यफळ मळे ते समजी पश्चत्ताप कर्यो. बाद फररीने ते, स्वप्न मेळववा तेणे शयन करवा, मांझयु तेमां तेने ते स्वप्न मळे तेना जेज आ मनुष्यपणुं . श्री उपदेशपद. । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १२६ ।। अथ सप्तमदृष्टांतसंग्रद्गाथा. - चक्केणवि कमाहरण – अफिट्टियम त्यिगचक्कनालाहे, अन्नत्थ तच्छेदोमो मणुयजो ति. ॥ १२ ॥ चक्रवेधव कन्या हरतां जाना बा अन्य बाजु गया माटे हवे सातमा दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे छे. मग प्रांखे चक्रनाळ नीचे रहीने लक्ष्यनुं ग्रहण कर्तुं (तेले राधावेध कर्यो) पण ये पुतळीनी आंख बेदवा सरखं मनुष्यपणुं छे. १२ टीका. इंदपुरेश्वरम्मे – इंदपुरवरंमि यासि नरनाहो, नामेण ददत्तो—दी इव विबुदमह णिज्जो. ॥ १ ॥ सिरिमा लिपमुहपुत्ता – बावीस मणमाचंगरूवधरा, बावीसाए देवी - मत्तया तस्सय अहेसि ॥ २ ॥ एगं मिय पत्थावे – अमन्चधूया रईव्व पचक्खा, दिठ्ठा तेणं-कीसंती विविदकीलाहिं ॥ ३ ॥ ता पुछियो परियणो-कस्पेसा तेण जंमियं देव, मंतिसुया ग्रह रमा - तडुवरिसंजाय रागेण - ॥ ४ ॥ विवि टीका. इंद्रपुरी जेवा रम्य इंदोरनगरमां इंद्र माफक विबुध लोकोने पूजनीय इंद्रदत्त नामे राजा हतो. १ तेनी बावीस राना श्रीमाळ वगेरे कामदेव जेवा रूपवत बावीश पुत्रो हता. २ ते राजाए एकवेळा पोताना घरे आवेली प्रत्यक रति जेवी अमात्यनी पुत्री अनेक रमतोथी रमतं । जोइ. 3 तेणे परिजनने पृछ्युं के या कोन पुत्री छे ? तेमणे कर्तुं के हजूर, पण मंत्रिनी पुत्री बे. हवे राजा तेनापर मोहित थइने मंत्रि पायी अनेक प्रकारे मागणी करी पोते श्री उपदेशपदः Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ हपयारेहिं मग्गिऊण मंतिं सयं समुन्बूढा, परिणयणाणंतरमवि-खित्ता अंतेनरे सा न. ॥५॥ अन्नन्नयवररामापसंगवासंगो य नरवश्णा, विस्सुमरिया चिरेणय-दतुं ओलोयणगयं तं-॥६॥ जंपिय मणेण ससहरसरित्यपसरंतकतिपन्जारा, का एसा कमलबी-सही विव सुंदरा जुर्वई. ॥ ७ ॥ कंचुश्णा संवत्तं-सा एसा देव मंतिणो धूया, जा परिणिनण मुक्का-तुन्नेहिं पुव्वकालंमि. ॥ ७ ॥ एवं लणिए राया-तीसमं तं निसीहिणिं वुत्यो, तउ एहाय त्ति तहच्चिय-पानब्लूओ य से ग़ जो. ॥ ए॥ अह सा पुव ममञ्चेण-आसि नणिया जया तुहं पुत्ति, पानन्नवेज गब्नो-जंय नरिंदो समुल्लवश्--॥१०॥ तं साहेजमु तश्या-तहत्ति तीएवि सव्ववुत्तंतो, सिट्टी पिनणो, तेणावि--जुजखमंमि लिहिओ सो. ॥ ११ ॥ पञ्चयक 8 श्रीउपदेशपद. परणीने तरतन तेने अंतःपुरमा मोकझावी दीधी. ४ ५ बाद ते राजाए जूदी जूदी राणीओनी सोबतमां गुंयायला ले रहीने तेने वीसारी मेली. हवे सांवा वखते ते तेनी नजर पमतां तेणे पूजा करी के आ चंद्र सरखी कांतिवाळी कमळ जेवी आंखवाळी, अने लक्ष्मीना जेवी सुंदर कोण स्त्री छे ? ६ ७ त्यारे कंचुकिए कह्यु के हजूर अ तमे पूर्वे परणीने मोकशावेनी मंत्रिपुत्री के. ८ एम सांजळी राजा ते राते तेनी साय रह्यो, अने ते न्हाएली होवाची तरतज तेने गर्न रो. ए हवे तेणीने अमात्ये प्रथम कहबु हतुं के पुत्रि ज्यारे गर्न रहे त्यारे राजा जे कंइ बोस्यो होय ते तेज वखते मने कहेजे. ते रीते तेणीधे सघळी हकीकत पिताने कही " पण ते जोजपत्रमा सखी राखी. १०-११ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१श्ना एण मम्मो--पदियहं सारवेश अपमत्तो, जाओ तीए पुत्तो--सुरिंददत्तो कयं नाम. ॥ १२॥ तंमिय दिणे पसूयाणि--तत्थ चत्तारि चेरुवाणि, अग्गिरओ पव्वयो-- बहुली तह सागरयनामो. ॥ १३ ॥ उवणीओ पढणत्यं-बेहायरियस्स सो अमच्चेण, तेहिं चेडेहि समं--कक्षाकवावं अहिजे. ॥ १४ ॥ तेवि सिरिमासिपमुहा-रन्नो पुत्रा न किंचिवि पढंति, थेपि कलायरिएण-तामिया निययजणणीए-॥ १५ ॥ साहिति रोयमाणा-एवं एवंच तेण नणिय म्ह, अह कुवियाहि नणिजश्-नज्माओ रायमहिलाहिं.-॥ १६ ॥ हे कूमपंनिय, सुए--अम्हाणं कीस हणसि निस्संकं, पुत्तरयणाणि जहतह-न होंति एयंपि नो मुणसि ? ॥ १७ ॥ हा होउ तु ज्झ पाढणविहीइ अञ्चंतमूढविहलाए, जो नसुए थेवंपिहु-तामंतो वहसि अणुकंपं ॥१॥ खातरी दाखझ ते हकीकतने अमात्य हमेश संचारी राखतो बाद तेणीने पुत्र जन्म्यो तेनुं सुरद्रदत्त नाम पामयुं. १५ तेज दिने त्यां चार गोपीओने त्यां चार पुत्रो जन्म्या हता तेमना नाम आ रीते पामवामां आव्याः-अग्निक, पर्वत, बहुळी, अने सागर. १३ सुरेद्रदत्तने अमात्ये जणवा माटे लेखाचार्यने त्यां आएयो. ते ते गोळानी साथे कळाओ शीखवा लाग्यो. १४ त्यां ते श्रीमाळि वगेरे राजकुमारो पण आवता, पण ते कशुं शीखता नहि, अने कळाचार्य तेमने जराक मारतो के ते रोता जइने पोतानी माताओने कहेता के पंमितजी अमने आवं आवं कहे छे त्यारे राणीओ गुस्से थइने पमितने आ रीते कहेती. १५ १६ अरे कमा पमित, अमारा पुत्रोने बेधाक था केम मारे ? दीकरा कं जेम तेम थता नथी एटलं पण नथी जाणता के ? १७ अति गुंजवण जरेली अने नकामी तारी जणतरने धिक्कार थाओ के तुं अमारा पुत्रोने मारतां जरापण दया लावतो नयी. १७ आम तेणीअोए कठोर वचनोए तरछोमेशा गुरुए तेमने श्री. उपदेशपद. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १२५ ॥ श्य नादि फरुसवणे हि -तजिएणं नवेहिया गुरुणा, अच्चतमहामुक्खा - ताहे जाया नरिंदसुया. ॥ १० ॥ रायावि वश्यर मिणं - अयाणमाणो मांमि चिंतेश, अच्चंत कलाकुसला - मममेव सुया परं एत्थ ॥ २० ॥ सो पुण सुरिंददत्तो - कल्लाकला अहिजिओ सय, अगणती समवयसा - चेडरूवं पि पच्चूहं ॥ २१ ॥ अह मदुरानयरीए – पव्वयन गराहिवो निययध्रुवं, पुछइ पुत्ति तुहवरो-जो रोय तं प णामेमि. ॥ २२ ॥ तीए पयंपियं ताय - इंददत्तस्स संतिया पुत्रा, सुव्वंति कलाकुसबा - सूरा धीरा सुरूवा य. ॥ २३ ॥ तेसिं एक सुपरिक्खिऊण राहाइ वेदविहिणा हं, जइ जसिता सयंचिय - गत्तूण तहिं वरेमि ति. ॥ २४ ॥ (ग्रं० १००० ) - पडवन्नं नरवणा - ताहे पराइ रायरिद्धीए, सा परिगया पयट्टा - गंतुं नयरंमि ईदपुरे. ॥ २५ ॥ तं इंतिं सोडणं- तुट्टेणं तेण इंदनरवणा, कारविया नियनयरी - वेख मेळ्या' एटले तेश्रो महामूर्ख रह्या. ११७ या व्यतिकरनी राजाने कंइ खबर न होवाथी ते मनमां धारतो के केवळ माराज पुत्र प्रत्यंत कळाकुळ छे. २० आ तरफ सुरेंद्रदत्तने तेना सरखी वयवाळा गोपीना पुत्रो हेरान करता तेमनी दरकार राख्या वगर ते सघळी कळाओ शीखी रह्यो. २१ एवामां मथुरा नगरीमां पर्वत राजा पोतानी पुत्रीने पूछवा लाग्यो के पुत्री, तने जे वर पसंद होय ते परणा. २२ ते पुत्री बोझी के पिताजी, इंद्रदत्त राजाना पुत्र कळा कुशल, शूग, धीर, रुपवान् संजळाय बे. २३ माटे जो तमे कहो तो हुं जाते त्यां जड़ तेमांना एकने राधावेधथी पारखीने पसंद करी पर. २४ राजाए ते वात मान्य राखी एटले ते जोर गरमाथी इंदोर जवा नीकळी. २५ १७ श्री उपदेशपद. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ जन्नवियविचित्तधयनिवहा. ॥ २६ ॥ अह आगयाइ तीए-दवाविओ सोहणो य आवासो, नोयणदाणप्पमुहा-विहिया गुरु नचियपरिवत्ती. ॥ २७॥ विनत्तो ती निवो-राहं जो विधिही सुओ तुज्क, सोच्चिय में परिणेहि-एत्तोच्चिय आगयाह मिह. ॥ २७ ॥ रमा नणियं, मा सुयणु-एत्तिएणावि तं किनिस्सिहसि, एककपहाणगुणा-सव्वेवि सुया जो मज्झ. ॥ २५ ॥ नचियपएसे य तो-सव्वेयरनमिरचक्कपंतिल्लो, सिरिरक्ष्यपुत्तिगो बहु-महं पश्चाविमो थंनो. ॥३०॥ अक्खामओ. य रहओ-बझा मंचा कया य नबोया, हरिसुब्बसंतगत्तो-आसीणो तत्थ नरनाहो. ॥ ३१ ॥ उवविको नयरिजणो-आया राक्षणा निययपुत्ता, वरमानं घेत्तूण-समागया सावि रायसुया. ॥३२ ॥ अह सव्वपुत्तजेठो-सिरिमात्री राणा इमं वुत्तो, हे वच, मणो and श्री उपदेशपद. तेणीने आवती सांजळी इंद्रराजाए खुश थइने पोतानी नगरीने अनेक धजाओयो सणगारी दीधी. २६ तेणी त्यां आवी के तेने सुंदर उतारो अपाव्यो अने खानपान वगेरेनी जारे सत्स गोठवण करी. २७ तेणीए राजाने जणाव्यु के तमारोज पुत्र राधावेध करशे तेनेज हुँ परणीश ते खातरज हुं हां आवी बु. २० राजाए कह्यु-हे सुतनु, शामाटे तुं एटली तस्तसे ? केमके मारा सर्व पुत्रो एकएकथी अधिक गुणवान् छे. २५ बाद तरतपां योग्य स्थळे सवळा अवळा जमता चक्रोवाल अने शोजिती पूतळोवाल महोटं स्तन ननं करवामां आव्यु.३० तेने फरतो अखामो बंधाव्यो तेमां खुरसीओ गोठवी पर छत्र बांधवामां आव्युं. त्यां हर्षयी नजसित थ राना आवीने बेगे. ३१ तेना आसपास नगरजनो बेग राजाए पोताना पुत्रोने त्यां बोलाव्या, अने ते राजकुवरी पण वरमाळा लइ त्या आवो पहेांची. ३२ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३१॥ वंबिय -मवंझ मेत्तो कुसु मज्ऊ. ॥ ३३ ॥ धवणेसु नियकुलं परम - मुन्ना नेसु रज्ज, वज्र, जिल्हा हि जयपमागं - सत्तूणं विप्पियं कुसु ॥ ३४ ॥ एवं राय सिरिंपिव-पचखं निog नरिंदसुर्य, परिणेसु कुसलयाए - राहावेहं बहुं काउं. ॥ ३९ ॥ एवंच वोसो रायपुत-संजायओडु निन्नट्टसोहु, परसेय किम् अचित्तसुन्नु - दीपाच्छु पगलं ॥ ३६ ॥ विच्छायगतु नयनविय तु लज्जायमाणु विहलानिमाणु, देवन नियंतु पोरिसु मुयंतु- थिन निजव्व दढजंतिन व्व ॥ ३७ ॥ पुणरवि जणि रा - संषोहं वज्जिल हे पुत्त, कुणसु समीहिय मत्थं - कित्तियमेत्तं इमं तुज्. ॥ ३८ ॥ संखोदं पुत्त कुति - ते परं जे कलासु न वियडूढा, तुम्हारिसाण स क - कककलागुण निहाण. ॥ ३० ॥ श्य संतो धिट्टिम - मवलंबिय सो माग महवे सौथी मोटा पुत्र श्री माळिने राजाए कां के है वत्स, अहीं तु मारुं मनवंछित सफळ करजे. 33 आपण कुळने जवळ, या जला राज्यनी पूरी उन्नति कर, जयपताका उपाम, अने शत्रुओने नाराज कर. ३४ नेमक राज्यश्रीनी साये प्रत्ययानंदनी मूर्ति जेवी आ राजपुत्राने चालाकीथी ऊट वारमां राधावेध करीने परण. ३५ आम कद्देतां ते राजकुमार गजराटमां परुया, तेनी छटा उतरी गई, ते पसीनायी जींजाड़ गया, तेनुं मन शूनुं यड़ गयुं, तेनुं मुख ने आंखो कांखा पी गयां, तेनी बगलो ऊरवा मांझमी, तेना शरीरनी कांति जती रही, ते न्याय नीतिनी बटा ली जा लाग्यो, ते लजामो थइ पड्यो, तेनुं अभिमान ऊत्तरी गर्छु, ते नीचे जोवा लाग्यो, ते हिम्मत हारी ग यो, अने ते यंज्ञायो होय के खूब जकमी लीधो होय तेम ऊनो रही गयो. ३६ ३७ त्यारे राजाए फरीने तेने कछु के हे पुत्र, तुं गजराट मेलीने धारेतुं पार पाऊ, तने या ते शा हिशाबमां छे ? बेटा, गजराय तो ते के जे कलामांकाचा हा य, माटे हे कळा निधान, तारा जेवाने गजराट शेनो ? ३८ ३० एम कह्याथी ते अजाण बतां जरा धीवाइ पकीने, श्री उपदेशपद. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३२॥ विडूढो, कहकहवि धणुं गेहइ – पकंपिरेणं करग्गेणं. ॥ ४० ॥ सव्वसरीरायासेण - कवि सेविण कोदंनं, जत्थव तत्थव वच्चन - मुक्को सिरिमाक्षिणा बाणो. ॥ ४१ ॥ थंने आनिट्टित्ता—फमत्ति सो जंग सुवगो, तयणु लोगो कयतुमुलर ---- निहुयं दसिनं समाद्बो. ॥ ४२ ॥ एवं सेसेदिवि नरवइस्स पुत्ते हि कल विजत्तेहिं, जदतद मुक्का बाणा --- न कज्ज सिद्धी परं जाया ॥ ४३ ॥ बज्जा मिलतनयण ---- वज्जासणिताकि जव्व नरनाहो, विश्वायमुहो विमणो--- सोगं काउं समाढतो. ॥ ४४ ॥ जयि मच्चे----देव विमुंचसु विसाय मन्नोवि --- अस्थि सूत्र तुम्हा---ता तंपि परिक्खह इयाणिं ॥ ४९ ॥ रमा जयिं को पुण ---- समधियं मंतिणा तो जुज्जं तं वाकण रसा----पयंपियं होउ तेणावि ॥ ४६ ॥ अच्यंतपाढिएहि इमे दि भ्रूजते हाये जेम तेम कर धनुष्य ऊंचकवा लाग्यो. ४० तेणे सघळा जोरथ। तेनापर वाए चमायुं ( ने धार्यु के ) हवे ए गत्यां जाओ, एम धारीने श्रीमालिए त्यां बाण फेंक्यो. ४१ ते बाल स्तंनमां प्रथमाइने तमदइने जांगी गयो. ते जोड़ लोको घोंघाट मचावी खूब हसवा लाग्या. ४२ एम ते राजाना कळाहीन बीजा पुत्राए पण जेम तेम करी बाणो मुक्या, कार्य सिद्धिन इ. ४३ त्यारे राजा लाजयी आंखो मीचना लाग्यो अने जाणे तेनापर व जळी पमी हाये तमे ते खोने उदास शौक करवा लाग्यो. ४४ एवामां अमात्ये तेने कछु के महाराज, दिल्लगीरी मेलो, हजु बीजो एक तमारो पुत्र छे, माटे तेनी पण हवे परीक्षा करो. ४५ राजा बोल्यो के ते वळी कोण ? त्यारे मंत्रिए तेने जोजपत्र स युं, तेने वांचीने राजाए कहुं के तेने पण लावो. ४६ पण या खूब जणावेला जुंगा ओए जे कर्यु बे तेज ते करशे. माटे श्री उपदेशपद. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावेदिजं समायरियं, सोविद्दुत मायरिस्सइ-धी घी एवं विहसुएहिं ! ॥ ४७ ॥ जश्पुण तुह निबंध --- विन्नासिज्जन तया सुयो सोवि, तो मंतिणो वणीओ ---सुरिंददत्तो सज्जाओ. ॥ ४८ ॥ ग्रह तं भूमीवणा - विचित्तपहरणपरिस्सम किकं, चंगे विणिवेसिय-मयंपियं जायतोसेण ॥ ४९ ॥ पूरेसु तुमं मम वच - वंबियं विंधिऊण राहं च, परिणेसु निव्वुई रायकागं जिसु रज्जं. ॥ २० ॥ ताहे सुरेंददत्तो - नरनाहं नियगुरुं च नमिऊण, यालीढदाण हो - धीरो धणुदंर मादाय - ॥ २१ ॥ निम्मल तेल्लाऊ रियकुं मय संकंत चक्कगण बिदं, पेहंतो अवरेहिं - दी बिजंतो वि कुमरेहिं. ॥ ९२ ॥ अग्गिययप्पमुहेहिं —रोमिजंतोवि तेहि चेडेहिं, गुरुणा निरूविएहिं - पास विएहिं च पुरिसेहिं.. - ॥ २३ ॥ यट्टियखग्गेहिं - जइ चुक्कसि तात्र एवा पुत्रावेमे धिक्कार छे. ४७ पण तारो आग्रह े तो ते पुत्रनो पारखो ब्यो. त्यारे मंत्रिए उपाध्याय सहित सुरेंद्रदत्तने त्यां आयो ४० हवे अनेक हथियार वापरवाथी परेनी गासोट बाळा ते कुमारने राजाए खोळामां वेसामीने खुशी थइने क के: - ४० दीकरा, तुं मारुं वंछित पूरुं पाम, अने राधा वेध करीने या निरृति नामनी कन्याने परण एटले राज्य तेने मळ शे. ५० त्यारे सुरेंद्रदत्त राजाने तथा गुरुने नमीने आळीढासने रही हिम्मत साथै धनुष्य ऊपामी निर्मळ तेलथी नरेला कुं मां प्रतिबिंबितथला चक्राना बिद्रने जोतो रही, बीजा कुमारोना मश्करी उठा बच्चे बाए फेंका लाग्यो ५१ ५२ तेने विगेरे गोळा हेरान करता रह्या, अने गुरुए तेना पर खे नागी तरवारवाळा वे मालसो ऊना राख्या. ते प्रो वारंवार तर्जना करवा लाग्या के जो तुं चूक्यो तो तन मारी नाखशुं, ते छतां तेणे लक्ष्य तरफ नजर राखी महामुनदिनी माफक एकाग्र मन घरी चक्रानुं छिद्र जोइ ऊट दरने ते बाणवके राधाने बांधा. ए३ ५४ ५५ राधा वधाइ के निवृतिए तेना ग श्री उपदेशपद. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १३४ ॥ तं दणिस्सामो, इइ जंमिरेहि दोहिं - तज्जिजंतो वि पुरूत्तं ॥ ए४ ॥ अक्खुम्मुहकयचक्खू - एगग्गमणो महामुणिंदो व्व, नवसद्धचक्कविवरो - रादं विंधइ सरेण बढुं || || विवाइ तीइ खित्ता -- वरमाला निव्वुईइ से कंठे, आदिओ नरिंदो - यजसो समु.॥ २६ ॥ विदिओ वीवाहमहो- दिसां र च से महीवइणा, जह ते चक्क बि-अ, गहु सेसकुमरेहिं ॥ ए७ ॥ तह कोइ पुलपब्नारनारिओ माणुसत्तणं लहइ, एयं णोरपारं - नवकंतारं परियमंतो. ॥ ५८ ॥ -ज ळे वरमाळा नाखी. राजा खुश खुश थयो, अने लोकोमां जयजय शब्द ऊछळी रह्यो. ए६ तेनो विवाह महोत्स वकरीने राजा तेने राज्य दीधुं. हवे जेम तेथे चक्रोनुं छिद्र मेळव्युं पण वीजाने ते नहि जमयुं, तेम कोइ पुण्यना प्राग्नारवाळो या अपार जवकांतारमां जटकतां मनुष्यपणं पामे बे. २७ ए गाथारार्थः चक्रेणाप्पुपलक्षिते कन्याहरणे निर्वृतिसंज्ञराजकन्यकादृष्टांते - राधावेधे प्रक्रां ते सतीत्यर्थः, अफिनियमचित्ति - अस्फिटितेन लक्ष्यादन्यत्राव्याक्षिप्तेन दणा दृष्ट्या ग्रोवधारणं चक्राष्टको परिव्यवस्थितराधासंज्ञयंत्रपुत्रिकावामा चिलणस्य - वस्येति गम्यते, चक्रनालाहिं ति चक्रनालस्य चक्राधारस्तंजस्याधः स्थितेन सुरेंद्रदतेन कृतः -- तदनु सज्जितशरेण तणमेव राधा विद्धेति सामर्थ्यात् गम्यते. श्री उपदेशपद. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे संग्रहगायानो अकरार्थ करे छ:चक्रथी जाणीता कन्याहरणमा एटने के निर्दृत्ति नामनी राजकन्याना दृष्टांतमां राधावेध करतां, अणफोटेली आँखे एटले के लक्ष्ययी बीजे नहि खूचेनी नजरे आठ चक्रोना ऊपर रहेत्री राधा नामनी कळवाळी पूतळीनी मावी आंख रूप बदयतुं ग्रहण, चक्रोना नाचे रहेला स्तचना नीचे रहेला सुरेंद्रदत्रे कर्यु. अने त्यारकेमे बाण सज्ज करीने तरतज ते 7 णे राधा वींधी एटमी बिना तो सामर्थ्य परथीज जणाइ रहे छे. अन्येषां तु छाविंशतः श्रीमालिप्रभृतीनामशिक्षितहस्तत्वेनालब्धराधावेधबिजाणां अन्नत्यनत्तिअन्यत्र बयाबहिस्तान्नष्टाः ततःप्रस्तुते किमायातमित्याह-तबेदनोपमो राधावेधाझिलेदोपमानो पुराप इत्यर्थः-मनुजलंनो मानुष्यप्राप्तिः, इतिशब्दो गाथापरिसमाप्त्यर्थः पण वीजा श्रीमाळि वगेरे बावीश राजकुमारो अणकेळवायला हायवाळा होवाथी राधावेध करवानुं छिद्र मेळवी शक्या नहि. तेथी तेमना वाणो बढ्ययी जता रह्या. वारुं एयी प्रस्तुत वातमा शुं श्राव्युं ते कहे छः- ते राधानी आं ख वींधवा सरखी मनुष्य जन्मनी प्राप्ति थवी झेन ने. इति शब्द गायानी परिसमाप्ति माटे छे. " अथाष्टमदृष्टांतसंग्रहगाथा.-- चम्मावणदहमज्जउिड्डलिगीवचंदपासणया, अमत्यबुड्डणगवेसणोवमोमणु यसंजो उ. ॥ १३ ॥ हवे आउमा दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे छ:चाममा जेवा सेवाळथी ढंकायना द्रह वच्चे रहेला छिद्रमांची काचबीए पोतानी मोक बहार कहामीने चंद्र दीग बाद बीजा स्थळे डूबीने ते ते छिद्रने शोधवा मांड्यो, तेना सरख आ मनुष्य जन्मनी माप्ति छ. तुं शब्द गाथा पूरवा अर्ये . १३ .श्री उपदेशपद. abor Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (टीका) किस कत्यक्ष वणगहणो-अणेगजोयणसहस्सवित्थिन्नो, आसि दहो अश्गहिरो-अणेगजलधरकुलाइनो-॥ १॥ अश्बहलानविनसेवामपडलसंगलवरिमन्नागो, माहिसचम्मण व सो-प्रवणदो ना सव्वत्तो. ॥२॥ केणवि कालवसेणं-चमुनग्गी वो मुबी-परिनमंतो, संपत्तो नवरितबे-गीवा य पसारिया तेण. ॥३ ॥ सेवालपमन ग्इिं-अह समए तंमि तत्य संजायं, दिही लेणमयंको-परिपुमो कोमुशनिसाए. ॥४॥ जोइसचकाणुगओ-निरब्लगयणस्स मज्झनागमि, खीरमहोयहिसहरीसमंजोण्हापहावियदिसोहो. ॥ ५॥ आणंदपूरियनो-तो चिंतश् कलवो किमयं ति, किं नाम एस सग्गो-किंवा अञ्चन्नुयं किंचि. ॥ ६ ॥ किं मम एगस्स पलोइएण दंसेमि स टीका. धारो के कोइ गीच वनमां अनेक हजार योजन लांबो पहोलो अने अनेक जळचरोथी नरेखो अति ऊमो द्रह हतो. १ ते उपरथी अति घणा घाटा सेवाळना पमयी ढंकायसो होवायी जाणे चौमेरथी नैशना चाममे ढाक्यो होय तेम लागतो हतो. त्यां एक चंचळ मोकवाळे काचबो फरतो फरतो काळयोगे ऊपर आवी मोक पसारवा लाग्यो. ३ हवे ते वखते त्यां सेवाळना पममा एक छिद्र पामयु, तेथी ते काचबाए अजवाळी रात होवाथी पूनमनो चंद्र जोयो. ४ ते चंद्र ज्योतियष्चक्रथी वीटायलो हतो अने चोखा आकाशना मव्यनागमा रहेलो हतो. ते वीर समुद्रना बेहरो जेवी चं द्रिकावळे सघळी दिशाओने जाणे न्हवरावतो होय तेवो लागतो हतो. ५ त्यारे काचबो आनंदयी आंखो जरीने चितवन वा बाग्यो के आ शुं जे ? वारुं ए स्वर्ग छे के वीजं का अद्भुत ? ६ पण हुं एकझो जोन ते शा कामनु माटे सब श्री उपदेशपद. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ यणलोगस्स, इय चिंतिय निब्बुड्डो तेसिं अन्नेसणनिमित्तं. ॥ ७॥ आणीयसयवसयणो–जाव पलोएइ तं किस पएसं, नो पास वानवसेण–पूरियं तत्य तं उिदं ॥ ॥ पत्तेवि कोमुई तमि-उल्लहा ससहरो व नहमज्के, अन्नकओववव जिओ य जह उहहं एयं.-॥ ७ ॥ तह संसारमहदहमज्ने बुड्डाण सयलजंतूण, पुणरवि मा. णुसजम्मो-अश्लहो पुलहीणाण. ॥ १०॥ ७ गावालाने बताव एम चितवी तेमने शोधी आणवा तणे डूबकी मारी. ७ हवे ते जेवो सघळा सगाोने तेझीने त्यां जो वा लाग्यो. तेवामां वायरायी ते निद्र ढंकाइ जवायी ते क्या पण देखायु नहि. ७ कदि छिद्र कोइ वेळा मळे तो अजवाळी रात मळवी उर्खन, तेमज वादळनी नम्तर विनानो चंद्र मळवो उर्बन ए रीतंज आ संसाररूप द्रहमां बूमेला सघळा पु एयहीन जीवाने फरीने मनुष्य जन्म मळवू अति उर्बज ले. ए १० ॥ अथ गायाक्षरार्थः अतिबहलत्वनिविडत्वनावान्यां चर्मेव चर्म सेवालसंचयः-तेनावनकः सर्वथाबादितो यो हृदस्तस्यमध्ये यत् कथंचित् तुबप्रमाणं किं संजातं तेन विनिर्गतया 5सेकनपस्य ग्रीवया गलदेशेन-चंजस्य ननोमध्यनागनाजो मृगांकस्य-पासणय त्ति-लोचनान्यां कदाचिहिलोकनमजूत. ततस्तेन स्वकुटुंबप्रतिबद्धविमंबितेन ग्रीवामवकृष्य-अन्नत्थवुमणत्ति अन्यत्र तत्स्थानपरिहारात् स्थानांतरे ब्रुमनेन निमज श्री जपदेशपद. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ नेन कथंचित् कुटुंबस्य मीलने कृते-गवेसणोवमित्ति या गवेषणा प्रायुपलब्धरंध्रस्यतउपमस्तत्तुल्यो उर्बनतया मनुष्यवानो मनुष्यजन्मप्राप्तिः, तुः पूरणार्थः ___ हवे संग्रह गाथानो अक्षरार्थ कहे जे:अति घणुं अने अति घट होवाथी सेवाळनु पम ते चाममा जे होवाथी चामडं गणवू तेवके बधी बाजु ढंकाय-११ लो जे द्रह तेमां कोश्क रीते जराक छिद्र पम्युं तेमाथी काचबाए मोक बहार कहामीने आकाश वच्चे रहला चंद्रने आंक खोथी एक वेळा जोयो. त्यारे ते काचबो कुटुंबनी पंचातमा पनी मोक खेंची ते स्थान बोकी बीजा स्थाने डूबीने कोक रीते कुटुंबने त्यां लावी ते निद्र शोधवा लाग्यो, ते समान मनुष्य जन्मनी प्राप्ति पुर्बन . तु शब्द पूरणार्थ छे. अथ नवमदृष्टांतसंग्रहगाथा. नदहिजुगे पुत्वावरसमिसाबिहप्पवेसदिलुता, अणुवायं मणुयत्तमिह उल्लहं नवसमुइंमि. ॥१४॥ ___ हवे नवमा दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे छे.पूर्व समुद्रमा धूसरी नाखी अने पश्चिम समुद्रमा समेल नाखी. त्यां ते समेळनो ते धूसरीना छिद्रमा प्रवेश थाय ते टते वगर उपाये आ जवसमुद्रमां मनुष्यपणुं पामवं उर्सन छे. १४ . .. (टीका) ... जह केइ इन्निदेवा-अच्चब्जयचरियकोनहलेण, जुगनिदाओ समिदं-विजोजश्त्ता बहुंचेव-॥ १॥ कह एसा जुगनिद-पुणोवि पाविज इयमणे धरिलं, श्री उपदेशपद. Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३ ॥ पत्ता सुमेरुसिहरे--एको जयं करे काG-॥ ॥ अवरो नण तं समिलं–पहाविया पुत्वअवरजसहीसु, खित्तं जुगं च समित्रा य–पेचिउं ते तो बग्गा. ॥३॥ सायरजले अपारे-सा समिक्षा तं च जुग महोगाढं, अश्चंचकुलपवणप्पणोबियाइंजमंताई-॥४॥ थक्काइं तत्थ बहुकाल मागओ ननण तेसि संजोगो, संजोगेवि न जाओ-पिवेसो न समिक्षाए. ॥ ५ ॥ जह तीए समिनाए-छिडपवेसो अईव पुलंनो, तह मोहमूढचित्ताण-माणुसत्तंपि मणुयाण. ॥६॥ टीका दृष्टांत तरीके कोइक बे देवो नारे कुतूहन्ना बीधे धूसरीना छिमांयी समेळने तरत बूटी पामीने, फरीने आ समेळ धूसरीना निद्रमां शी रीते पेशे ने ते आपणे जोवु एम मनमां ताकीने मेरु पर्वर्तनी टोचे आव्या. बाद एकदेवे हाथ मां धूसरी बने पूर्व समुद्र तरफ दोगी ते त्यां नाखी अने बोजा देवे समेळ बस्ने पश्चिम समुद्र तरफ दोकी जय ते त्यां नाखी अने पछी तेत्रो ( तमाशो) जोवा लाग्या. १-२-३ हवे दरियाना अपार पाणीमां ते समेळ अने धूसरी बू मयां, तेओ जारे प्रचंम तोफानी पवनथी धकेलाया थका घणा वखतसूधी रखमता रही थाकी गया, पण तेमनो संयोग ज न थयो, अने जेवटे संयोग थतां पण समेळनो छिद्रमा प्रवेश न थयो. ४-माटे जेम ए समेळनो छिद्रमा प्रवेश थवो अतिशय उत्रन डे, तेम मोहमा मूंकायमा जीवोने मनुष्यपणुं मळवू पण अति उर्खन छे. ६ . अथ गाथाक्षरार्थः ____उदहित्ति उदधौनद-जुगे त्ति युगं यूपं-पुव्वत्ति पूर्वस्मिन् दिप्त-अवरत्ति अपरस्मिन् जलधावेव-समिला प्रतीतरूपा क्षिप्ता कान्यांचित् कौतुकिकान्यां देवाज्यां, श्री उपदेशपद. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ ततस्तस्याःसमिलायाः -बिद्दप्पवेस दिडंता इति तत्र युगनिजे यः प्रवेशः स एव दृष्टांतस्तस्मात् - अनुपायं तनुकषायत्वादिमनुष्यजन्महेतुलानविकलं मनुजत्वमिह उर्वजं नवसमुजे नवनाजामिति. (७) ___ हवे संग्रह गाथानो अकार्य कहे छे:___ पूर्वना दरियामां धसरी, अने पश्चिमना दरियामां समळे कोइक कौतुकी देवोए नाखी. त्यां ए समेळना जिद्रमा प्रवेश धाय ते दृष्टांते अटप कषायपणा वगेरे मनुष्य जन्म मळवाना उपायो मठ्या वगर आ जवसमुद्रमा जीवोने मनुष्य पणुं मळवू पुर्झन छे. अथ दशमदृष्टांतसंग्रहगाथा. परमाणुखंजपीसणसुरनलियामेरुखेवदिलुता, तग्घमणेवा णुचया-मणुयत्तं नवसमुदंमि. ॥ १५॥ __हवे दशमा दृष्टांतनी संग्रहगाथा कहे जे. परमाणु शब्दयी धार संजाो. स्तंजने कोश्क देवे पीसने नळीमा नाखी मेरुना ऊपरथी चोमेर फेंक्युं ते दृष्टांते । ते एटल्ले के ते परमाणुओ एका करी करीने ते स्तन तैयार करवा माफक आ जवसमुद्रमा मनुष्यपणुं पुर्खन छे. १५ श्री उपदेशपद. (टीका) श्ह केणं तियसेणं-एगो खंजो अणेगखंगाई, काऊण चुन्निओ ताव-जाव अविनागियो जाओ. ॥ १॥ नरिया महापमाणा-नलिया (एगा) करण सा तेण, Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४१॥ 8 पत्तो सुमेरुचूनासिहरे सा मिया तत्तो. ॥ ॥ नईमपवणवसओ-महापयासत्त ओ य तियसस्स, अविनागिमत्तणेण य-दिसादिसिं ते गया अणवो. ॥ ३ ॥ पिन्नामि, कयावि पुणो-मिलिज ते णू हवेज सो थंनो, श्य पेचंतस्सवि से-वाससहस्साई गाई-॥४॥ वोलीणाणि, ण तेसिं-अणूण जोगो, णयावि सो थंनो, संजाओ, तह एसो-मणुयाण चुओ मणुयनावो. ॥ ५॥ टीका हां कोइक देवे एक यांनसो कटके कटका करीने एवो नूको कयों के तेना अविनाज्य परमाणु करी नाख्या. १ बाद ते परमाणुओ के पोताने हाये एक मोटी नळी जरी मेरुनी टोचे जश्ने ते फूंकवा मांझी. २ हवे आकरा पव नना योगे, देवना नारे प्रयासना योगे तथा अति सूक्ष्मपणाना योगे ते परमाणुओं सघळी दिशाओमां विखराइ गया. ३ [ बाद ते देवे विचायु के ] जोड, हवे फरीने क्यारे ते परमाणुओ एकग मळे जे अने ते स्तन तैयार थाय छ ? एम जो - तां थकां तेने अनेक हजार वर्षों वीती गया, पण ते परमाणुओ नेगा न थया अने ते स्तन तैयार न थयो. तेम जीवोने - मळीने जतुं रहेछ आ मनुष्यपणु फरी मळ, मुखन छे. ४५ अथ गाथावार्थः परमाणुत्ति परमाणव इतिधारपरामर्शः-थंजपीसण त्ति स्तंजस्य काष्टादिमयस्य पेषणं चूर्णनं केनचित् कौतकिना सुरेण कृतं ततश्च-नलियामेरूखेवदिटुंता इति–तस्य पिष्टस्तंजस्य नलिकायां प्रवेशितस्य मेरौ मेरुशिरसि वेपो दशसु दिक्कु श्री उपदेशपद. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ यद् विकिरणं देवेन कृतं, तदेव दृष्टांतस्तस्माद् पुर्वन्नं मनुजत्वमिति गम्यते किमुक्तं नवतीति ? आह-तग्घटणवाणुचयत्ति-तस्य पिष्टस्तं नस्य ·घटना श्व निर्वर्तनावत् अणुचयात् तस्मादेव नलिकाप्रदिप्तपिमात् सकाशात्-मनुजत्वं नवसमुझे उर्लन्न मिति.. हवे संग्रहगाथानो अकराय कहे छे. परमाणु शब्दयी धार सन्नार्यो छे. काष्ट वगेरेना स्तननो कोइ कौतुकी देवे चूरो कर्यो. पनी ते चूराने नळि कामां नाखी मेरुना मथाळापर दशे दिशाओमां ते देवे नमामयु. ते दृष्टांते मनुष्यपणु पुर्झन छे एटचं उपरथी बइ से. शी वात थइ ते कहे छे के ते नलिकामां नाखेला परमाणुओ वमेज ते चूरेस्रो स्तन तैयार थाय ते माफक आ जवसमुद्रमां मनुष्यपणु पुर्खन छे. . - अयमपि परमाणुदृष्टांत आवश्यकचूर्णावन्यथापि व्याख्यातो दृश्यते यथाइह काइ सहा महई-अणेगखनसयसंनिवेसिल्वा, कालेण जलणजामाकरानिया पाविया पायं १ किंसो दोज कयाइवि-इंदो चंदो हवा मणुस्सिदो, जो तं तेहि अणूहिं-पुणोवि अग्ध घमिही.॥२॥ जह तेहिंचिय अणुएहि-सा सत्ना मुक्करा श्ह घमेलं, तह जीवाणं विहमिय-मित्तो मणुयत्तणं जाण. ॥ ३ ॥ इति. आ परमाणुनो दृष्टांत आवश्यकचूर्णिमां बोजी रोते पण वर्णवेबो देखाय डे, जेमकेः हां कोइएक सेंकमो थानलाथी बांधेली महोटी सना हती, ते एक वखते आगना सपाटामां आव्याथी नाश पामी. १ हवे एवो कोइ इंद्र, चंद्र, के राजेंद्र छे के जे तेज परमाणुओ व ते अति उर्घट [नहिज बनी शके तेवी] सजान फररीने ऊनी करी शके? 9 जेम तेज परमाणोथी ए सजा फरीने तैयार करवी मुष्कर छे, तेम जीवोने म लेख मनुष्यजन्म जतं रह्यं ते फरीने मळवं पुर्खन ने एम तमारे जाणवं. श्री उपदेशपद. 2 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ दितनावपत्ता-अवि ते होज दसावि पुण अस्था, दळंतियत्नावगयं--न जणो मणुयत्तणं सोम॥१॥इसदुबन्न माणूसत्तणं पाविनण जो जीवो, न कुणइ पीरत्तहियंसो यश्संकमणकावे.॥२॥जह वारिमज ढोव्वगयवरो, मच्उन व्व गलगहिओ, वग्गुर पमिल व्व मो--संवदृइओ जहव पक्खी.॥३॥सो सोय मच्चुजरासमत्या तुरियनिदपक्खि तो, ता पास विदंतो-कम्मन्नरपणोलिओ जीवो. ॥ ४ ॥ काजण मणेगांई-जम्मण मरण परियट्टण सयाई, उक्खेण माणुसत्तं-जइ सहर जहिच्छियं जीवो. ॥ ५ ॥ तं तहबहान-विज्जुनयाचंचलं च मणुयत्तं, अध्धुण जो पमायइ-सो कानरिसो न सप्पुरिसो. ॥ ६ ॥ (उ) श्री उपदेशपद. हां दृष्टांतरुप आपनी ए दशे बावतो हज कदाच बने, पण दार्टीतिकरूप मनुष्यपणुं फरीने हे सौम्य, नहि मळशे. १ 'आ रीते मनुष्यपणुं बन जाणीने जे जीव परजवर्नु हित नहि करे ते नवा जन्ममां जतीवेळा शोक कर शे. ५ जेम पाणी बच्चे खूचाइ रहेलो हाथी कांटामा पकमायनो मत्स्य, जाळमां फसेस्रो मृग, अने तोफानमां सपमाये लो पनी शोच करे, तेम ते मृत्यु अने जरा आगळ साचार थइ चोथी निद्रामा अर्थात् मरण दशामां परशे त्यारे ते शो च करशे. अने त्यारे कर्ममा नरयी पीमातो जीव पोताने जाणीतो थएन जोशे. ३ ४ ज्यारे जीव सेंकमो जन्म मरणना चकरावा करीने इच्छित मनुष्यपणाने पुःखे करी मेळवे डे, त्यारे तेवा पुर्खन अने वीजळी जेवा चंचळ मनुष्यपणाने पामी ने जे गाफळ रहेने ते कापुरुष छे नहि के सत्पुरुष. ५ ६ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ यऽक्तन्नावार्थसारयुक्तान्युपदेशपदानि वढ्ये इति, तत्प्रस्तु तमनुजत्वपुर्बलत्वमधिकृत्यागमसिझोपमत्या दर्शयन्नाह-एयं पुण एवं खनु--प्रमाणपमादोसओ नेयं, जं दीहा कायरिई-जणिया एगिदियाईणं. ॥ १६ ॥ ___ हवे पूर्वे जे कयुं हतुं के नावार्थना सार रहित उपदेशना पदो कहीश, त्यां आ मनुष्यपणानी दूर्घनता वा वत आगममां कहेली उपपत्ति बतावे छे. एवाबत पण एम ज डे, अने ते अज्ञान अने प्रमाद दोषयी जे. जे माटे ते दोषे करी एकेंद्रिय वगैरेनी लांबी कायस्थिति कहेली छे. १६ टीका. श्री उपदेशपद. एतन्मानुजत्वं-पुनःशब्दो विशेषणार्थः ततश्चायमर्थः--प्राक् सामान्येन मनुजत्वद्धभत्वमुक्तं,सांप्रतं तदेवोपपत्तिनिःसाध्यत इति. एव खबुत्ति-एवमेव उर्खनमेवकुतइत्याह-अज्ञानप्रमाददोषतः अज्ञानदोषात् सदसहिवेचनविरहापराधात् प्रमाददोषाच्च विषयासेवनादिरूपात ज्ञेयमवगंतव्यं. टीका ए एटले मनुष्यपणुं पुनः शब्द विशेषणार्थ बे-तेथी आ अर्थ थाय छे के पूर्व सामान्यपणे मनुष्यपणानी दूसनता कही, पण हवे तेज बाबत उपपत्तिओवके साधीये छीये. एमज ने एटले के दुर्लजज छे. शाथी ते कहे - अज्ञान अने प्रमाद दोषयी त्यां अज्ञान दोषथी एटले खरा खोटाना विवेचनना अनावरूप अपराधयी अने प्रमाददो षयी एटले विषयसेवन वगेरेची (आ बाबत बने छ एम ) समजवं. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ एतदाविष्टो हि जीव एकेंजियादिजातिषु दूरं मनुजत्ववित्रणासु अरघट्टघटीयंत्र क्रमण पुनःपुनरावर्त्तते एतदपि कथं सिझमित्याह-यत्कारणादीर्घामाघीयसी कायस्थितिः पुनःपुनः मृत्वा तत्रैव काये उत्पादनक्षणा नणिता प्रतिपादिता सिद्धांते एकेंघियादीनां एकेंघियहींजियादिलक्षणानां जीवानामिति. तामेवैकेजियनेदान् पृथिवीकायिकादीन् पंचैव प्रतीत्य दर्शयन्नाह;-अस्संखो सप्पिणि सप्पिणीन एगिदियाण न चनएहं, ता चेवन अणंता-दणस्सईए न बोधव्वा. ॥ १७ ॥ अज्ञान अने प्रमादी घेरायझो जीव मनुष्यपणाथी तदन विलक्षण एकेंद्रिय वगैरेनी जातिओमां अरहटनी घटमाळ माफक फरी फरीने जन्म्या करे छे. ए पण केम सिद्ध ययु ते कहे जे. जे कारणे सिद्धांतमां एकेंद्रिय बेइंद्रिय वगेरे जीवोनी कायस्थिति एटले वारंवार मरीने तेज कायमा उत्पत्ति दीर्घ एटले नारे लांबी कहेली छे. हवे एकेंद्रियना पृथिविकाय विगेरे पांचे नेदना संबंधे ते कायस्थिति बतावे ... चारे एकेंद्रियोनी असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणीओ कायस्थिति छे. अने वनस्पतिनी तो तेवी अनंत नत्स ॐ पिणी अवसापणीओ कायस्थिति जाणवी. १७ (टीका) अस्संखोसप्पिणिसप्पिणी उ ति–प्राकृतत्वादविनक्तिको निर्देशस्तेनासंख्याता उत्सर्पिण्यसवपिण्यः 8A6ABRRBA श्री उपदेशपद. असंख्य नत्सार्पण। अवसापणी-शहां प्राकृतना बीधे विनक्ति वगर चनाव्युं छे. तेथी असंख्यात उत्सपि की अवसर्पिणीओ एम अर्थ करवो. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४६॥ 00-620 तत्रोत्सर्पयति प्रथमसमयादारज्य निरंतरं वृद्धिं नयति तैस्तैः पर्याय वानि त्युत्सर्पिणी,-तयाच पंचकल्पनाष्यं. समए समए ता-परिवहतोल वलमाया, दव्वाणं पज्जाया-हारत्तं तत्तिया चेव. (१) त्यां पहना समयथी मांझीने पदाोंने ते ते पर्यायांवमें निरंतर वधार्या करे ते उत्सापणी. जे माटे पंचकल्पना जाप्यमां कहेवं छे के-द्रव्योना वर्णगंध वगेरे अनंत पायो समय समय दीउ बदब्याज करे छे, अने रात दिवसमां पण ते प्रमाणे तेक्षाज बदले . [१] तहिपरीतात्ववसार्पणी. तुरेवकारार्थो जिन्नक्रमस्ततो संख्याताएवै केंजियाणां, तुरप्यर्थे निन्नक्रमः-चतुर्णामपि पृथिव्यप्तेजोवायुकायिकानां कायस्थितिर्बोधव्ये ति संबंधः ताचेन इति–ता एवचोत्सर्पिण्यवसपिण्योऽनंताः वनस्पतौ तु वनस्पतिकाये तु पुनर्बोधव्या कायस्थितिरुत्कृष्टेति. उत्सापर्णीयी उलटी ते अवसर्पिणी-तु शब्द एवकारार्थे जे ते असंख्यातना साथे जोमतां असंख्यातीज एम अर्थ याय. एकेंद्रिय शब्द अपि शब्दना अर्थमां ने ते चार साये बगामवानो छे एटले के चारे पृथिवी-अप्-तेजस् अने वायुकायिक एकेंद्रियोन। कायस्थिति जाणवी. किमुक्तं नवति ?—पृथिव्यप्तेजोवायुकायिकेषु जीवो मृत्वा पुनःपुन उत्पद्यमान एकैककाये असंख्याता उत्सर्पिण्यवसर्पिणीयावदास्ते, वनस्पतिकायिकेषु तु प्राणिषू त्यद्यमानस्ता एवोत्सपिण्यवसर्पिणीरनंता गमयत्युत्कृष्ठतः:-जघन्यतस्त्वंतर्मुहू र्तमेवेति. श्री उपदेशपद. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ तेज अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणीओ वनस्पतिकायमा पण उत्कृष्टी कायस्थिति जाणवी. मतलब ए के पृथिवीकाय वगेरे चारमा जीव मरीने फरी फरी नपजतां दरेक कायमां असंख्यात नत्सा पणी अवसर्पिणीयो सूधी रहे. पण वनस्पति कायना प्राणीओमां उपजतां तेवो अनंत उत्सर्पिण। अवसर्पिणी उत्कृष्टपणे गमावे-जधन्ययी तो बधामां अंतर्मुहूर्तज रहे. __ अयोत्सर्पिण्यवसर्पिण्योः किं प्रमाणमुच्यते ? हादशारकालचक्रमुत्सर्पिण्यवसर्पिण्यो. तत्स्वरूपं. उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीन काळमान शुं छे ? बार आरावाळू काळचक्र ते उत्सर्पिणी अवसर्पिणी ने, तेनुं स्वरूप आ प्रमाणे जे. यथा-दस कोडाकोडीओ-सागरनामाण हुँति पुन्नाओ, उस्सप्पिणीपमाणी -तंचेवोसप्पिणीए वि. ॥ १॥ उच्चेव कालसमया-हवंति ओसप्पिणीइ नरहंमि, तासिं नामविहत्तिं-अहक्कम कित्तइस्सामि.-॥ २॥ सुसमसुसमा य सुसमा-तइया पुण सुसमदुस्समा होइ, दुसमसुसमा चनत्थी दूसय असमा उसी. ॥३॥ एएचेव विनागा-हवंति नस्सप्पिणीइ उच्चेव, पमित्रोमा परिवामी-नवरि विजागेसु नायव्वा. ॥ ४॥ सुसमसुसमाइ कालो–चत्तारि हवंति कोमिकोमीओ, तिमि सुसमाश्कासो-दुत्ति नवे सुसमदुसमाए. ॥ ५॥ एका कोमाकोमी–बायाबीसाइ जा सहस्सेहिं, वासाण होइ जणा-दूसमसुसमाइ.सो कालो ॥६॥अह दूसमाई कालोवाससहस्साई एकवीसं तु, तावश्ओ चेव नवे-कालो अश्दूसमाए वि॥७॥ इत्यादि. श्री उपदेशपद. AN Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SONOM ॥१४ दश कोमाकोसी सागरोपम पूरा थाय ते उत्सर्पिणी अने तेटलाज कानी अवसर्पिणी पण जे. १ जरतक्षेत्र मां अवसापर्णीना उ काळसमय थाय जे. तेमना अनुक्रमे नामो कहीये छीये. ५ पहेली सुषमसुषमा, बीजी सुषमा, श्री जी सुषमदुःषमा, चोयी दुःषमसुषमा, पांचमी दुःषमा, अने छठी अतिदुषमा. 3 अवसर्पिणीना पण एज छ विनागो जे, पण ते उलटा क्रमे लेवाना . प सुषमसुषमा चार कोमाकोम सागरोपमनी बे, सुषमा त्रणनी अने सुषमदुःषमा बेनी छे. ५ वेताळीश हजार वर्षे ऊणा एक क्रोमाक्रोम सागरोपम ए नुपम सुषमानो काळ ३.६ एकवीश हजार वर्ष नी सुषमा छे. अने अतिउषमानो काळ पण तेटलोज छ । इत्यादि. एवं घाघ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीज्यां कालचक्रं घादशारं विंशतिसागरोपमकोटाकोटिप्रमाणं. तत्रच यथोत्तरं कालानुनावस्वरूपं ग्रंथांतरादवसेयं. ___एम उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी ए वे मळीने बार बारा वीश कोमाकोकि सागरापमनुं कामचक्र थाय छे. त्यां चमता पमता काळानुनाव, स्वरूप ग्रंथांतरथी जाणी ले. विक-प्रियाणां पंचेंघियतिरश्चां मनुष्याणां च कायस्थितिरनया गाथयाज्ञेया यथा __ वाससहस्सासंखा-विगलाण लिई न हो बोधव्वा, सतह नवा न नवे-पणिं. दितिरिमणुय नकोसा. (१)इति. विकळद्रिय, पंचेंद्री तिर्यच अने मनुष्योनी कायस्थिति आ गाथावमे जाणवी जेमके-विकलेंद्रियनी स्थिति संख्याता हजार वर्षनी छे, अने पंचेंद्रिय तिर्यच तथा मनुष्यना उत्कृष्ठा सात आठ जव थाय छे. १ ।। नवतु नामैकेंजियादीनां दीर्घा कायस्थितिस्तयापि किंनिमित्तासाविति वक्तव्यमित्याशंक्याह एसा य असश्दोसासेवणो धम्मबज्कचित्ताणं, ता धम्मे जश्यव्वं-सम्म सइ धीरपुरिसेहिं. ॥ १७ ॥ श्री उपदेशपद. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ - जो एकेंद्रिय वगैरेनी लांबी कायस्थिति छ, पण ते शा कारणे याय छे ते कहे जाइए तो ते कहे जे. एवी स्थिति जेओ धर्मथी बाहेर मन राखीने वारंवार दोषो सेवे छे तेमने थाय डे, माटे बुद्धिमान् पुरुषोए वारंवार सम्यक ते धर्ममां यत्न करवो. १७ (टीका) एषा चेयं पुनर्काघीयसी स्थितिः असकृदनेकवारान् अनेकेषु नवेष्वित्यर्थः दोषासेवनतः दोषाणां राहुमंमत्रवत् शशधरकरनिकरवातस्पर्डिखनावस्य जीवस्य मालिन्याधायकतया दूषकाणां निविभवेदोदयाज्ञानजयमोहादीनां यदासेवनं मनोवाकायैः कृतकारितानुमतिसहायैराचरणं-तस्मात्-केषामित्याह-धर्मबाह्य चित्तानां श्रुतधर्मा चारित्रधर्माच्च सर्वथा बाह्यचित्तानां स्वप्नायमानावस्थायामपि तत्रावतीमानसानामित्यर्थः. श्री उपदेशपद. टीका . ए लांबी कायस्थिति अनेकवार एट्लेके अनेक नवोमां दोषो सेववाथी थाय छे. दोषो एटले चंद्रना किरणोनी हरीफाइ करनार मलिनकर। राहुना माफक दूषित करनार तीव्र वेदोदय-अज्ञान-जय-मोह वगेरे दोषो, तेमनु मनवचन कायावमे करण कारापण अनुमोदननथीजे सेववू तेनायी ते थाय डे कोने थाय ते कहे छे. धर्म बाह्यचित्तवाळाने । एटले के श्रुतधर्म अने चारित्र धर्मयी सर्वथा बाहेर मन राखनाराओने अर्थात् स्वप्नमां पण त्यां मनने नहि जतारनार जीवोने तेवी सांबी स्थिति थाय ने. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५०॥ SSSORDogpeg यत एवं ता इति तस्माद्धर्मे उक्तलक्षणे एव एकांतेनैवैकेंजियादिजातिप्रवेशनिवारणकारिणि नवोदनवनूरिफुःखज्वलनविध्यापनवारिणि यतितव्यं सर्वप्रमादस्थापनपरिहारेणोद्यमः कार्यः सम्यग् मार्गानुसारिण्या प्रवृत्त्या स्वसामर्थ्यालोचनसारं-सदा सर्वाष्ववस्थासु धीरपुरुषैर्बुद्धिमन्तिःपुंलिः (७) जे माटे एम छे ते माटे एकांते एकेंद्रियादि जातिमां जतां अटकावनार अने आ संसारना अनेक सुखरूप आगने होमववा पाणी समान धर्ममांज सघळा प्रमादस्थान ओमीने सम्यक् रीते एटल्ले के मार्गानुसारि प्रवृत्तिवके पोतानु बळ जोड्ने सघळी अवस्थाओमां बुद्धिमान् पुरुषोए उद्यम करवो. ___ सम्यग् धर्मे यतितव्यमित्युक्तमथ सम्यग्नावमेव नावयन्नाह.-सम्मत्तं पुण इत्थं-सुत्तणुसारेण जा पवित्ती उ, सुत्तगहणंमि तम्हा-पवत्तियव्वं इहं पढम. ॥१॥ सम्यक् रीते धर्ममां उद्यम करवो एम कहा, हवे सम्यक्पणुं ते शुं ते जणाववा कहे जे. अही सम्यक्पाणुं ते सूत्रानुसारे जे प्रवर्त्त, ते छे. माटे यहां पहेबां सूत्र शीखवां जोइए. ॥ १५ ॥ टीका. सम्यक्त्वमवितथरूपता पुनरत्र धर्मप्रयत्ने का इत्याद-सूत्रानुसारेण या प्रवृत्ति-स्तुशब्दोवधारणाओं जिन्नक्रमश्चेति-ततः सूत्रानुसारेणेव सर्वज्ञागमानुसारेणैव या चैत्यवंदनादिरूपा प्रवृत्तिश्चेष्ठा सम्यक्त्वं. श्री उपदेशपद. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ टीका सम्यक्त्व एटले खरापणुं अहीं एटले धर्म प्रयत्नमां शुं ते कहे छे-सूत्रानुसारे जे प्रवृत्ति ते यहां तु शब्द 7 अवधारणार्थे छे अने ते अनुसारपद पछी लगामवानो जे. तेथी सूत्रानुसारेज एटझे सर्वप्रणीत आगमना अनुसारेज जे पत्र १ चैत्यवंदन वगेरे प्रवृत्ति ते सम्यक्त्व जाणवू. एवंसति यद विधेयं तदाहसूत्रस्य परमपुरुषार्थानुकूलनावकलापसूचकस्य असारसंसारचारकावासनिर्वासनकालघंटाकल्पस्य आवश्यकप्रविष्टादिनदनाजः श्रुतस्य ग्रहणे नष्टदृष्टेस्तबानतुष्ठिहष्टांतेनांगीकरणे तस्मात् कारणात्प्रवर्तितव्यं-इह यले विधेयतया उपदिष्टेप्रथममादौ. - एम जे त्यारे शें करखं जोइए ते कहे छे. ते माटे यहां एटले यत्न करवो कह्यो ते बावतमा पहेलाप्रथम परम पुरुषार्थने अनुकूळ रहेला जावा न जणावनार अन संसाररुप केदखानाथी बूटी पामवाना घर समान आवश्यक तया अंग प्रविष्ट वगेरे नेदवाळा श्रुतना ग्रहणमां एटले आंधळाने नजर मळतां जे आनंद थाय तेवा आनंदयी अंगीकार करवामां प्रवर्तवं जोइए. जे माटें कहेलु छे के यतः पढम णाणं तओ दया-एवं चिट्टइ सव्वसंजए, अप्माणी किं काही-किवा णाही डेयपावगं. (१) सोच्चा जाण कहाणं-सोचा जाण पावगं, उन्नयंपि जाणई सोच्चा-जं डेयं तं समाचरे. (२) ७ श्री उपदेशपद. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ पहेलु ज्ञान छे अने पछी दया ने एम सवळा साधुओ प्रवर्ते ने केमके अज्ञानी शें करशे अने शुं न ने शुं जुएं छे ते शुं जाणशे ? ॥ १ ॥ सांनळीने कल्याणने जाणे अने सांजळीने पापने जाणे-ए बन्नेने सांजळीने जाण्या बाद जे सारं होय ते आचखं. ॥२॥ तच्च सूत्रग्रहणं विनयादिगुणवतैव शिष्येण क्रियमाणमनीप्सितफलं स्यान्नान्यथेति समयसिघदृष्टांतेन स्पष्टयन्नाह. देवीदोहल एगत्यंजप्यासाय अनयवणगमणं, रुक्खुवाचदिवासण-वंतरतोसे सुपासाओ. ॥२०॥ ते सूत्रग्रहण विनयादि गुणवाळा थइने ज जोशिष्य करे तोजते अजीप्सित फळ आप वोजी रीते करता नहि आपे-ऐ वात सूत्रमा आपला दृष्टांतके स्पष्ट करे : देवीने दोहळो थयो के एक थंजी मेहेल जोइए, ते माटे अजयकुमारे वनमा जइ तेवं काम मेळवी तेनुं अधिवासन कयु, एटले व्यतर खुशी थइ एक थंनो मेहेन करी आऐज. ॥ २० ॥ कथानकसंग्रहगाथासप्तकं. आ गाथायी मांझीने सात गाथाओ कथानकनी संग्रहगायारूप जे. (टीका) रायगिहमिय नयरे-राया नामेण सेणिो आसि, संमत्तथिरत्तपहिसकवि श्री उपदेशपदः .. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५३॥ प्फा रियपसंसो. ॥ १ ॥ सयलंतेनरपवरा - देवी नामेए चेल्लणा तस्स, चन विहबुद्धिसमेो-मंतीपुत्रो य अति. ॥ २ ॥ एगंमिय पत्यावे - देवीए जायदाद - लाइ निवो, नोि पासा मे - एगक्खनं करावे. ॥ ३ ॥ न्निग्गादेण इत्यीगण संताविए नरवणा, परिवलं तव्वयणं - अजयकुमारो य इहो. ॥ ४ ॥ तो ' वडूढश्णा समगं - थं निमित्तं महाकवीइ गयो, दिट्टो तेहि च रुक्खो - सुसोि महासाहो. ॥ ए ॥ साहिडिओ सुरेां – होहि त्ति विचित्तकुसुमधूवेहिं, अदिवासियोस साही — कोवासे अएण ॥ ६ ॥ ग्रह बुद्धिरं जिणं - - वासिसुरेण निसि पसुत्तस्स, सिहं अजयस्स महाणुभाव मा बिंदिदिसि एयं ॥७॥ टीका. राजगृहनगरमां सम्यक्त्वनी स्थिरता जोइ हर्षेला इंद्रे वखायायलो श्रेणिक नामे राजा हतो. ॥ १ | तेनी आखा अंतःपुरमा श्रेष्ट चलणा नामे राणी हती अने चार बुद्धिवालो अजयकुमार पुत्र मंत्री हतो. ॥ २ ॥ एक वखते देवीने दोहलो थर्ता ते ए राजाने कछु के मारा माटे एक यंजेो मेहेल करावी आपो. ॥ || नहि अटकावी शकाय एवा स्त्रीही मुंजाइने राजाए तेलीने हा पामीने अजयकुमारने ते बाबत हुकम कर्यो. ॥ ४ ॥ त्यारे सुधार साये तेवो थंज मेळवावा अजयकुमार अटवीमां गयो. तेमणे त्यां जळकदार ने मोट । शाखावालुं काम जोयुं ॥ ५ ॥ ए काम देवताथी अधिष्ठित हो जाइए एम धारी अजयकुमार उपवास करी फूल अने धूपथी तेनी पूजा करी. : ६ त्यारे तेनी बुद्धिथी खुश यएला तरुवासि देवे राते अजयकुमारने स्वममां कां के महानुभाव, या जामने नहि काप २० श्री उपदेशपद. Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ वञ्चसु सगिहमि तुमं-काहं मह मेगखंनपासायं, सब्बोजयतरुफलफुलमणहरारामपरिकलियं. ॥ ॥ श्य पमिसिखो अन्नओ-वड्ढरणा सह गओ सगेहंमि, देवेणवि णिम्मविनो-आरामसमयपासाो . ॥ ५ ॥ तंमिय देवीइ सम-विचित्तकीबाहिं कीनमाणस्स, रइसागरावगाढस्स-राणो जंति दिवहाई. ॥ १० ॥ अह तनयरनिवासिस्स पाणवश्णो कयाइ गठनवसा, नजाइ समुप्पन्नो-दोहनमओ अंबयफलस्स. ॥ ११ ॥ तो तंमि अपुजंते-पइदियहं खिजमाणसव्वंगिं, तं दळूणं पुढं ---तेण, पिए, कारणं किमिह ? ॥ १२॥ परिपकंबयफलदोहलो य तीए विवश्नो, ताहे-पाणाहिवेण नणियं-चूयफलाणं अकालो यं.-॥ १३ ॥ जयविहु, तहावि कत्तोवि-सुयणु, संपामिमो थिरा होसु, निसुओ य तेण रब्बो-सव्वोयफलज्मा रामो. ॥ १४॥ तंचारामं बाहिं विएण पेहंतएण पक्कफलो, दिट्टो अंबयसाहीता-तुं तारे घेर चाब्यो जा हुं सर्व ऋतुमा फळफून आपनार मनोहर बगीचावालो एकथंनो महेल त्यां करी आपीश ७ - एम ना थवाथी अजय सुथार साये घेर आव्यो के देवे बगीचासहित मेहेन वनावी प्राप्यो. ए ते मेहेत्रमा राणी साये अनेक क्रीमायो करी रतिसागरमां बेनो राजा दिवसो पसार करवा लाग्यो १० हवे ते नगरमा रहेता मातंगना मुखीनी नार्याने गर्जना योगे आंबानुं फळ खावानो दोहलो ययो. ११ पण ते पूरो न पड्याथी प्रतिदिन घसावा लागेली तेणीने जोस्ने मातंगना मखीए तेने प्रख्यं के हे प्रिये, आम थवान कारण शं ? १५ तेणीए कहुं कमने पाकल केरी खावानो दोहलो थयो ने त्यारे मातंगना मुखीए कह्यु, आंबाना फळ मळवानो आवखत नयी.-१३ जो के एम , तोपण हे सुतनु धीरी रहे, हुं क्यांधी पण ते लावी आपीश. बाद तेणे सां जळयु के राजानो बगीचो सर्वऋतुमां फळता कामोवाळो छे. ११४ त्यारे ते ते बगीचा पासे जा बाहेरथी जोवालाग्यो तो श्री उपदेशपद. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १५॥ . S ताहे जायाइ रयणीए--॥ १५ ॥ ओणामणी विज्जाइ--साहि मोणामिकण गहियाई, अंबयफलाई पुणरवि--पच्चोणामिणिसुविजाए--॥ १६ ॥ साहं विसजिऊणं-समप्पियाई पिया हिण, पमिपुन्नदोहदा सा-गनं वोढुं समाढत्ता.॥१७॥ अह अवरावरतरुवरपत्रोयणं राणा कुणंतेणं, पुवदिणदिट्टफलपडनवियल मवलो इयं मयं. ॥ १७ ॥ नणिया रक्खगपुरिसा--रे केणा सो विबुत्तफलनारो--विहिओ त्ति तेहिं नणियं--देव, न तावेत्थ परपुरिसो--॥ १९ ॥ नूण पविठो, नय नीहरंतपविसंतयस्सय पयाणि--कस्सवि दीसंति महीयसंमि, देव चोज मिणं. ॥२० ॥ जस्सा माणुससामत्थ--मेरिसं तस्स किं पकरणिज-नस्थि त्तिय चिंतंतेण राणा सिक मनयस्स. ॥ २१ ॥ एवं विहत्यकरणक्खमं लहुं बहसु पुत्त चोरं ति, जह ह श्री उपदेशपद. तेणे कहेलो फळ्याचे आंबो जोयो. बाद रात पमतां अवनामिनी विद्याथी तेणे माळ नमावाने केरीओ ऊतारीने फरी प्रत्यवनामिनी विद्याथी माळ ज्या हती त्यां करीने हर्पित थइ ते फळो पोतानी प्रियाने सोप्या, आ रीते दोहलो पूरायाथी ते सुखे गर्व धरवा मागी. १५-१६–१७- हवे ( वळतादिने ) जूदा जूदा कामोतुं अक्त्रोकन करता राजाएर आगला दिवसे जोयेसा फळना जथ्यावगरनो ते आंवो जोयो. १.८ राजाए रखेवाळने कह्यु के अरे! आनां फळ कोणे ऊतारी लीयां छ? तेओए जवाब वाळयो के हजुर, इहां बीजो माणस तो वीलकुल पेठो नयी अने जमीनपर नीकळवाके पेशवानां कोइनां पगनां पण जणातां नथी माटे हजूर, आ अचंबानी ज वात ने. १५-२० राजाए विचार्यु के नापासे आयु अमानुषी (दिव्य ) सामर्थ्य छे, ते बोजु शुं न करी शके, एम धारी तेणे अजयकुमारने कर्यु के-२१ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१२६॥ रियाई फलाइं-तह पया दारुमवि हरिही. ॥ २२ ॥ नूमीयानिहियसिरो,--महापसान त्ति जंपिनं अन्नयो, तियचम्मरेसु चोरं--निरूवित्रं बाढ माढत्तो. ॥ २३ ॥ वोलीणाई कश्वयहिणाइ पत्ता न तप्पनत्तीवि, चिंतावाननचित्तो--ताहे अनओ दढं जाओ. ॥ २४ ॥ पारद्वमहिंदमहे-नमेण नयरी बाहि पेवणयं, मिलिओ पनरनरगणो--अन्जएणवि तत्थ गंतूणं,--॥२५॥ नावोवलक्खणठं--पयंपियं, नोजणा, निसामेह, जाव नमो नागबश्--ताव मम कहाणगं एगं. ॥ २६ ॥ तेहिं पयंपियं नाह--कहह कहंतो कहेज मारखो, नयरंमि वसंतपुरे--आसि सुया जुमसेष्टिस्स. ॥२७॥ दारिदविदुयत्तेण--नेव परिणाविया य सा पिनणा, वझुकुमारी जाया --वरस्थिणी पूयए मयणं. ॥ २७ ॥ आरामाओ सा चोरिजण कुमुमुच्चयं करेमाणी हे पुत्र, आवो वात करवा समर्थ चोरने जन्नदी पकमीपाम,नहीतो हमणा जेम एणे फळो हाँ छे, तेम वीजीवेळा स्वीओने पाण हरीजशे. २२ अजयकुमार जमीनपर माथु धर। बोल्यो के मोटी महेरबानी थइ एम कही आहा जगवीने ते त्रिवाटा तथा चोवाटाप्रोमां चोरने खूब शोधवा लाग्यो. २३ एम करतां घणा दिवस नीकळी गया छतां तेनो को पतो लाग्यो नहि, त्यारे अजयकुमार नारे चिंतामा पड्यो. श्व एवामां इंद्रमहोत्सव शरु थतां नगरीना बाहेर एक नटे तमासो करबो शरु कों, एटले त्यां घणा लोक एकग थया, तथी अजयकुमार त्यां दिल तपासवा खातर कहेवा लाग्यो के हे लोको, ज्यां लगी नट नथी आव्यो त्यांलगी मारी एक वार्ता सांजळो. २५–२६ लोको बोध्या के खुशीथी कथा चत्रावो, त्यारे ते कहेवा लाग्यो के वसंतपुरनगरमां जूनाशेउनी एक दीकरी हती. २७ तेने तेना पिताए निर्धनपणाना बीधे परणावीजनहि एटले ते दृफ कुमारी थइ तेथी वरना माटे तेणी कामदेवने पूजवा लागी. २० तेणीने बगीचामांथी श्री उपदेशपद. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 643 ॥ १५७॥ -पत्ता मायायारेण-जंपियं किंमि सविचारं. ॥ २५ ॥ तीए वुत्तं किं तुज्ज--न गिणिधूयान महस रित्थाओ-नेवत्यि जं कुमारिंपि-मं तुम एव मुखवसि ? ॥ ३० ॥ संपत्तं तेण, तुम-नव्वूढा नत्तुणा अजुत्ताय- एसि समीवे जश् मे-मुंचामी अ नहा नेव. ॥३१॥ एवं ति पमिसुणित्ता-गया गिहं सा, कयाइ तुटेण-मयणेणं से दिलो-मंतिस्स सुओ वरो पवरो. ॥ ३२ ॥ सुपसत्ये हत्यग्गहजोग्गे लग्गमि तेण नव्वूढा, एत्यंतरंमि-अत्थगिरि-मुवगयं नाणुणो बिंब. ॥ ३३ ॥ कज्जलनसलबाया-वियंनिया दिसिसु तिमिरारिंगेली, हयकुमुयसंमजड्डे-समुग्गयं मंझलं ससिणो. ॥ ३४॥ अह सा विचित्तमणिमयभूसणसोहंतकंतसव्वंगी-वासनवणंमि प ता-लत्ता एवंय विमत्तो. ॥ ३५ ॥ त व्वेबुव्बूढाए-आगंतव्वं तिमात्रियस्स मए चोरीबुपीथी फूलो वीणती माळिए पकमीने तेने कंझक फुसझाववा मांझी. ए ते बोझीके अरे तारे शुं माराजेवी व्हनदीकरीओ नथी के जेयी तुं हुं कुंवारी बुं तेनातरफ आबु बकेजे ? ३० तेणे कयु के वीक के, तुं परण्याबाद तारा जारे अणजोगबेली छतां मारीपासे जो आवे तो तो तने जती मे, नहितो नहिन मेंयु. ३१ ते वातने कबूल राखी तेणी घेर गइ. बाद कोइवेळाए कामदेवे तुष्ट थइ तेने मंत्रिनो पुत्र वरतरीके आप्यो. ३२ हवे हयुरो मेळववामाटे सारो ग्रहयोगमागतां ते तेने परण्यो एवामां सूर्यनुं बिंब अस्ताचळे जवामांमयु. 33 त्यारे काजळ अने जमराजेवी अंधारानी टॉछ दिशाओमा र वळवालागी एटलामा कुमुदानी जमता हणनार चंद्रनुं मंगळ जगवा मांमयु. ३४ हवे विचित्र मणिमय नूषणोथी सघळा - अंगे शोलती थकी ते स्त्री वासनवनमा आवी अने तेणीए जारने आ रीते विनति करी. ३५ हे प्रियतम, माळि श्री उपदेशपद. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५ ॥ –पमिवन्न मासि पिययम–ता जामि तहिं विसजेसु. ॥ ३६ ॥ सच्चपइमा एस त्ति-मममाणण तेण णुन्नाया, वच्चंती परिहिमपवरभूसणा सा पुरीनबहिं.-॥३७॥ दिठा चोरेहि,तो-महानिही सो इमो त्ति नणिरेहिं-गहिया नवरंतीए-निवेइओ निययसब्जावो.- ॥ ३७. ॥ चोरेहि जंपियं सुयणु-जाहि सिग्धं परं वलिजाहि, मुसिकणं जेण तुम-जहागयं पमिनियत्तामो. ॥ ३५ ॥ एवं काहंति पयंपिऊण संपठिया, अहरूपहे, तरनतरतारयानलसमुनवंतत्रिविबोहो-॥ ४० ॥ रणमणिरदीहदंतो-दूर पसारियरनद्दमुहकुहरो-चिरछुहिएणं लद्धासि-एहि एहि त्ति जंपंतो-॥ ४१ ॥ अच्चंतनीसणंगो-सुमुडिओ रक्खसो सुउप्पेलो, तेणावि करे ध रिया-कहिओ तीएय सब्जावो. ॥ ४२ ॥ पम्मुक्का, आरामे गंतूणं बोहिओ सुना आगळ में एवी प्रतिज्ञा करेन डे के परएया पछी तरतज तेनापासे आववं, माटे जो तमे रजा आपो तो त्यां जा आ ३६ तेना जाए विचार्यु के आ सत्यप्रतिझावाळी लागे छे एम धारी तेणे तेणीने रजा आपी एटले पहेरेला सरस जूषणोसाये नगरीथी बाहेर जती थकी चोरोए जोइ, त्यारे आ माटो खजानो ने एम बोलता तेमणे: तेने पकमी. त्यारे तेणीए पोतानी खरी हकीकत जणावी. ३७–३७ चोरों बोध्या के नबोबाइ. जलदी जा, पण पाछी आ रस्तेज वळजे के जेथी तु जेवी आवशे के तने खूटीने अमे नाशता. थ शु. ३ए एम करीश एम कही ते आगळ चाली एवामां अर्धे रस्ते चचळ कीकीथी ऊजळती आखोवाळो, रणऊणता सांबा दांतवाळो, ऊघामा राखेला जयंकर मुखविवरवालो, अने सांबा वखतयी नूखेस्रो रह्योबु माटे आवाव एम बोलतो अत्यंत बीहामणाअंगवाळो नजरेन जोइ शकाय एवो जयंकर एक राकस तेने सामे मळयो. तेणे पण तेने हाथमां पकमी त्यारे तेणीए तेने खरी हकीकत कही.४०-५१-१ श्री उपदेशपद. 08 8888 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ हपसुत्तो,-मालागारो नणिो य-सुयणु सा हं हं पत्ता. ॥ ४३ ॥ एवं विहरयणीए-सभूसणा कह समागया तं सि, इय तेणं सा पुष्टा-सिहं तीएय जहवितं. ॥ ४ ॥ अव्वो सच्चपश्मा–महासई म त्ति नावमाणेण-चक्षणेसु निवमिऊणं-मालागारेण तो मुक्का. ॥ ४५ ॥ पत्ता रक्खसपास-सिट्टो से मालियस्स वुत्तंतो, अव्वो महप्पनावा-एसा, जा नज्जिया तेण.-॥ ४६ ॥ नावितेणं निवमिजण पाएसु तेणवि विमुक्का, चोरसमीवे च गया-सिट्टो तह पुत्ववुत्ततो. ॥ ४ ॥ तेहिवि अणप्पमाहप्पदंसणुप्पन्नपक्खवाएहिं-सालंकारच्चियवंदिळण सगिहमी पट्टविया. ॥ ४ ॥ अह आचरणसमेया-अक्खयदेहा अजग्गसीला य, पत्ता पइस्स श्री उपदेशपद. ते सांजळी तेणे तेने छोगी एटले बगीचामां जड़ तेणीए सुखेसूतेला माळीने जगाइयो अने कह्यु के हुं ते सुंदरी हा आवी . ४३ तेणे पूज्युं के आवी रीते तुं घरेणासाये केम आवी शकी? त्यारे तेणीए बनेझी वात कही. ध मालिए विचार्यु के अहो आ तो सत्यप्रतिज्ञावाळी होवार्थी महासती देखायचे एम विचार। तेणे पोपमीने तेने रवाने करी. ४५ त्यांची तेणीए राक्षसपासे आवी माळीनो वृत्तांत कह्यो एटले तेणे चिंतव्यु के अहो, आ कोइ महामनावनावाळी लागे छे F के जेने तेणे जतीमेलीले एम धारी तेणे पण पगपीने तेने मूकीदीधी एटले ते चोरोपासे आवी अने तेमने तेणीए पूर्व नो वृतांत कहीसंनळाव्यो. ४६-४७ त्यारे तेमणे तेनुं नारे माहात्म्य जोइ तेणीना पक्षपाती थने तेने पगेपमीने घरेणासाथे ज तेना घरे मोकलावी. ध हवे ते घरेणा साथे अत शरीर अने अखंमित शीळवाळी रहीने पतिपासे आवी Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ पासे-कहियं सव्वं जहावित्तं. ॥ ४ए ॥ परितुठ्ठमणेण सम-तेण पसुत्ता समत्थरयाणिंपि, जाए पनायसमए-चिंतिय मिय मंति पुत्तेण-॥ ५० ॥ उंदष्टियं सुरूवंसमसुहउक्खं अणिग्गयरहस्सं–धमा सुत्तविबुधा-मित्तं महिलं चपेचंति. ॥ २१ ॥ श्य नातेण कया-घरस्स सा सामिणी समग्गस्स, किंव न कीरइ निक्कवरपेम्मपमिबहिययंमि ? ॥ ५५ ॥श्य पश्तक्कररक्खसमालागाराण मज्झओ केणं-तच्चागेणं कय मुक्करं ति नो मज्ज साहेह. ॥ ५३ ॥ ईसा एहि नणियं-सामी, पश्णा सुउक्करं विहियं, परपुरिससमीये जेण-पेसिया सव्वरीइ पिया. ॥ ५४ ॥ नणियं उहाणुएहि-सुउक्करंचेव रक्खसेण कयं, जेहा चिरं बुहिएणवि--न नक्खिया लक्खणिज्जावि. ॥ ५५ ॥ अह पारदारिएहिं—पयंपियं, देव मासिओ एको-मुक्करकारी HABAR श्री उपदेशपद. सघळी बनेली हकीकत कहेवा लागी. ४0 ते सांजळी ते खुश थतां तेनासाये ते आखीरातसूती. मनात थतां मांत्रिपुत्र आ रीते विचारवा लाग्यो. ५० मरजीमुजब चालनार, रूपवंत, सुखासुखमा साथे रहेनार, रहस्यने बुपावी राखनार एवा मित्र अने एवी स्त्रीने जागी ऊना जाग्यशाळिोज जुवेछ. ५१ एम विचारीने तेणे तेणीने घरनी धणियाणी करी. केमके निष्कपट प्रेममा मन राखनारना प्रत्ये शुं नहिकराय ? ५२ आ बावतमां पति, चोर, राक्षस, अने माळी ए चारमां कोणे तेणीने जतीमेली ने दुष्कर काम कर्यु ते मने कहो. ५३ त्यारे जेश्रो ईर्ष्यालु हता तेश्रो बोल्या के स्वामि, पतिए दुष्कर कयु के जेणे परपुरुषनापासे राते तेने जवा दीधी. ५४ कुधातुरो बोट्या के राक्षसे दुब्कुर कर्यु के जेणे ॐ खूब नूखेलो होवाउतां पोता खाज नहि खाधुं. ५५ पारदारिको बोढ्या के माळीज दुष्करकारी गणाय के जेणे राते पोते Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १६१ ॥ जेणं - चत्ता सा निसि सयं पत्ता ॥ २६ ॥ पाणेण जंपियं होठ ताव चोरे दि डुक्करं विदियं परिक्के वि विमुक्का - ससुवन्ना जेहि सा तश्या ॥ ए७ ॥ एवंवुत्ते चोरो सोए मायंगो, गिएहा विऊण पुट्ठो - कह मारामो विबुत्तोति. ॥८॥ तेांपर्यंपियं नाह-नवर विज्जाबलेण निययेण, कहियो य वइयरो सेणियस्स एसो समग्गोवि ॥ एए ॥ रावि संसियं देइ – मज्ज जइ कवि निययविज्जाओ–सो पाणो तो मुंह - इहरा से दरद जीयं ति. ॥ ६० ॥ परिवन्नं पाणेणं - विज्जादापि, यह महीनादो –— सीहासणे निसन्नो - विज्जाए पढि माढतो. ॥ ६१ ॥ पुरुत्तयय कित्तियावि रह्यो न वंति जा विज्जा, सो ता तज्जइ रुछो-न रे तुमं देसि सम्मं ति. ॥ ६२ ॥ अयेण जयि मिहदेव - नत्थि एयस्त थेवमवि दोसो, चाली वझीने जती मेली. ए६ मातंग वोल्यो के चोराए पुष्कर कर्तुं बे के जेमणे एकांत छतां तेने घरेणा साथे जवा दीधी. २७ मातंग ग्राम बोल्यो ते परथी अजयकुमारे धार्यु के ए चोर छे एटले पक मावीने पूछयुं के तें बगीचो केम बगामयो. ८ ते कधुं के मारा विद्याना वळथी में तेम कर्बुडे. त्यारे आ घळी हकीकत अजये श्रेणिकने कही. ५० राजाए फरमान्युं के जो ए मातंग कोइ रीते मने पोतानी विद्याओ पे तो तेने मूको, नहितो मारी नाखो. ६० त्यारे मातंग विद्या आपका कबूल थयो . हवे राजा सिंहासनपर वेगे रही विद्याओ जणवा लाग्यो. ६१ हवे फरोफरीने बोलतां पण ते राजाने हिले ते गुस्से थइ तेने तरबोमवा लाग्यो के तुं बरोबर रीते शीखवतो नयी. ६५ त्यारे अजयकुमारे कह्युं के हे देव, इहां एनो लगारे वांक नथी, केमके विद्याने विनयथ ग्रहण करतां ते आवके बे ने फळदायक २१ श्री उपदेशपद. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १६२ ॥ वियगदियान विजाउ — वंति फलदाय जायंति. ॥ ६३ ॥ ता पाण मिमं सीहास - मि विकण सयमवि महीए - होऊण विणयसारं - पढसु जहा ठंति सिंहमि. ॥ ६४ ॥ तदचेव कयं रता—संकंताओं बहुं च विज्जाओ, सक्कारिक मुको- पाणो अच्चंतपणश्व्व ॥ ६५ ॥ इय जइ इहलोश्यतुहकज्ज विज्जावि नाव सारेण - पाविज्जइ दी गुरु अच्चंत त्रिए - ॥ ६६ ॥ ता कह समत्थमणवंबियत्यदाक्खमाइ विजाए – जिन लियाए दाई - वियविमुहो बुदो होऊा ? ॥ ६७ ॥ इति. या छे. ६३ माटे या मातंगने सिंहासनपर बेशामी तमे जमीनपर बेशी विनयपूर्वक जणों के ते हजुपण आवमे. ६४ राजा तेज कटलेटद विद्याओ आवरुवा लागी त्यारे मातंगने अत्यंत स्नेहि सगानी माफक सत्कार करी रवाने कप. ६५ आ रीते ज्यारे या लोकना तुच्छ कामनी साधनार विद्या पण जाव राखीने हीनजातिना गुरुनो पण अत्यंत विनय करतांज आवके छे - तो त्यारे समस्त मनवांछित देवा समर्थ जिननापित विद्याना देनार गुरुनो विनय साचववामां समजु माणस शी रीते विमुख रहे ? ६६-६७ अथसंग्रहगाथादरार्थः देवीदोहलत देव्या वेल्लना निधानायाः कश्चित् समये दोहदः समपादि, एगत्यंासायत्ति एकस्तंनप्रासादक्रीडनाभिलाषरूपः, ततो राजादिष्टस्य - अजयत्ति अजयकुमारस्य – वनगमनं महाटवी प्रवेशः समजायत। तत्रच रुक्खुवलद्ध दिवास त्तिविशिष्टवृक्षोपलब्धिरधिवासना च वृक्षस्यैव ततो वंतरतोसोति तदधिष्टायकव्यंतरेण तोषे समुत्पन्ने सति सुप्रासादो व्यधीयत. श्री उपदेशपढ़. Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १६३ ॥ हवे संग्रहगायनो अक्षरार्थ कहेने: देवीदोहळ एटने के चेल्ला नामनी राणीने कोइक समये दोहलो उपन्यो -- एक स्थंज प्रासाद एटने एकयंजा मेहेलमा रमवारूप दोहळो - बाद राजाए फरमावेला अजयकुमारनुं वनमां गमन ययुं. त्यां वृक्षनी उपलब्धि एट ले विशिष्ट वृक्ष मळीयान्यो, तेनी तेणे अधिवासना करी, एटले तेना अधिष्ठायक व्यंतरने तोष यतां तेणे सुंदर महेल बनावी प्राप्यो. उ समवाए अंबग—अकालदो हलग पाणपत्तीए विज्जादरणं रसादिट्टो कोवो भयाणत्ती ॥ २१ ॥ त्यां ऋतुनो समवाय यतो, मातंगनी स्त्रीने काळे आम्र फळ खावानो दोहद ययो. तेणे विद्यार्थी (फळ) हर्या. राजा ते जोइ कोप कर्यो ने अजयने हुक कर्यो. २१ (टीका) तस्यच प्रासादस्य चतसृष्वपि दिवारामे षमामृतूनां वसंतग्रीष्मप्रावृट्शरद्धेमंत शिशिरलङ्गणानां समवायो मीलनं नित्यमेवानवद् व्यंतरानुभावादेव. एवंच प्रातिकाले कदापि बगति आम्रफलेष्वकाले आम्र फलोतत्त्यनवसरे दोहदकः पाणपत्न्याश्चाल्लकल्लत्रस्य समुदभूत् ततो विद्यया आहरणमादानमक्रियत चूतफलानां चंगालेन तत्रारामे तदनु राज्ञा श्रेणिकेन दृष्टे फल विकलैकशाखे चूतशा खिनि विलोकिते सति कोपः कृतः, अथाजयस्याप्तिः चोरगवेषणगोचरा आज्ञा वितीर्णा. (५) श्री उपदेशपद. Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ टीका ते महेलनी चारे बाजुना बगीचामां वसंत-ग्रीष्म-प्राकृट्-शरद-हेमंत-शिशिररूप उ ऋतुआनो समवाय एटले व्यतरना अनुनावयीज नित्य मेळ हतो. एम वखत जतां कोइ वेळाए आंबाना फळनी नत्पत्तिना अकाळमां चंकाळनी स्त्रीने दोहळो थयो. त्यारे चंगाळे ते बगीचामांथी विद्यावमे प्रांवानां फळ हरी बीघां. ते बाद श्रेणिके फळरहित माळी का वाळा आंबाने जो कोप को. बाद अजयने आइप्ति एटले चोर शोधवा बाबतनी आज्ञा आपी. ___ चोरनिरूवण इंदमह बोगनियरंमि अप्पणा विप्रो, चोरस्स कए नट्टिय वड्डकुमारि परिकहिंसु. ॥२॥ चोरनिरूपण करतां इंद्रमहावतां लोकना समूहक्चे पोते ऊनो रही चोरने पकमवा माटे नाटय चालनार हतुं । त्यां वृहत्कुमारानी कथा ते कहेवा लाग्यो. २५ (टीका) ततश्चोरनिरूपणे प्रक्रांते सति इंधमहे समायाते लोकनिकरे जनसमूहमध्ये -आत्मना स्वयं—स्थितक ऊर्ध्वस्थितएव चोरस्य कृते चोरोपवननिमित्तं, नट्टिय त्ति नाट्येन नटने प्रस्तुते सति—वमकुमारित्ति वृहत्कुमारिकाख्यायिकां—पयकथयत् निवेदितवाननयकुमारः टीका. त्यारे चोरनी शोध चालु करतां इंद्रमहोत्सव आवतां जनसमूहना बच्चे पोते जाते ऊनो रहीने ज चोरने पकी पावा माटे, नाटय चाबु थनार हतुं त्यां अजयकुमार वृहत्कुमारीनी आख्यायिका कहेवा लाग्यो. श्री उपदेशपद. - Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ 13 8868686 CONOMORNING कथ मित्याह. काइ कुमारी पइदेवयत्थ मारामकुसुमगहमोक्खो, नवपरिणीयजुवगम-पइकहण विसज्जणा गमणं. ॥ २३ ॥ शी रीते कथा कही ते कहेछे.. कोइ कुमारी पति देवता माटे बगीचामांथी फूल लावतां पकमाइ. नवी परणेन आ एम कबून करता 5 जूटको थयो. तेणीए पतिने कह्यायी तेणे रजा आपतां ते त्यां जवा लागी. २३ (टीका) काचित् कुमारी स्त्री-पश्देवयत्यमिति पत्युःकृते देवतापूजानिमित्तं- आरामकुसुमत्ति आरामे मालाकारस्य संबंधिनि कुसुमान्यवचिन्वाना—गहमोक्खोत्ति मालाकारण कदाचित् गृहीता ततो मोदो मोचनं कृतं तस्या एव-नवपरिणीयब्जयवगम त्ति नवपरिणीतया त्वया प्रथमतएव मत्समीपे समागंतव्यमित्यज्युपगमे कृते सति बृहत्कुमार्या, पश्कहणविसजणागमणंति ततःकायेन तया परिणीतया पत्युर्यथावस्थितवस्तुकथनमकारि, तेनापि विसर्जनं व्यधायि तस्याः, तदनु गमनं मालाकारसमीपे तया प्रारब्धं, टीका कोइ कुंवारी स्त्री पतिना माटे देवतानी पूजासारुं माळीना बगीचामांथर फूल तोमतां माळीए पकी बाद नवी परणेली तुं पहेलां मारी पासे आवजे एम कबूल करावीने तेने जती मेझी बाद अवसरे ते परणी एटझे तेणीए । श्री उपदेशपद. DRON Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १६६ ।। पतिने खरेख हकीकत कही. तेणे पण तेने जवानी रजा आपी. त्यार केमे ते माळी पासे जवा बागी. तेणगरक्खसदंसण – कहण मुयण मेव मालगारेण अक्खयपम्मागय दुक्करंमि पुच्छाई नियनावो. २४ चोरो ने राक्षस दर्शन थतां खरूं कहेवायी छूटको ययो एम माळिए पण कर्यु. अक्षत रही ते पाछी आवी. दुकरपणा माटे पूछतां सौए पोतानो अभिप्राय जान्यो. २४ ( टीका ) मार्गे च गच्छंत्यास्तस्याः स्तेनानां चौराणां राक्षसस्य च दर्शनं संजातं. कहात्ति तयापि तेषां तस्यच यथावस्तुतत्वकथनं कृतं ततो मुयणमिति चौरै राइसेन च तस्या मोचनमधिष्टितं. एवमालगारेणत्ति मालाकारेणापि निवेदितं प्रा च्यवृत्तांते मुक्ता इत्यर्थः तत अता मालाकारेणाप्रतिस्खलिता स्फटिकोपलोज्यलशीला राक्षसेनानकिता चौरै रविलुप्ता च सती प्रत्यागता प्रत्युः पार्श्वे. ततः- दुक्करंमि पुच्छाइ निगनावोति केन तेषां मध्ये दुःकरमाचरितमिति पृच्छायां कृताया मज्जयकुमारेण, सर्वै: सामाजिकजनैर्निजनावः स्वानिप्रायः प्रकाशितः टीका रस्ते चालतां तेणीनें चोरो तथा राकसनुं दर्शन ययुं तेणीए तेमने खरीबात कही, तेथी तेमणे तेने छोमी दी. माळ पण पूर्व वृत्तांत जणावतां बोगी. त्यारे ते मा लिए नहि अकेली होइ स्फटिकजेतुं निर्मळ शीळ श्री उपदेशपद. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ SAY राखीने राक्षसे अणखाधी तथा चोरोए अणबुटायनी ती पति पासे पाठी आवी. बाद, अजयकुमारे पूज्युं के एमां कोणे दुष्कर कर्यु त्यारे सर्व समाजनाए पोतानो अभिप्राय प्रकाशित कर्यो. ईसानुगाश्णाणं-चोरग्गह पुत्र विऊकहणाओ, दमो तदाणासणभूमी पाणस्स परिणामो. ॥ २५ ॥ ईर्ष्यालु बगेरेनुं ज्ञान थयु. चार पकमायो. पूछतां विद्यानी बात कही. ते विद्या प्रापवानो दंम ययो. मातंगने जमीनपर बेशाड्यो. तेथी विद्या नहि परणमी. ५५ (टीका) ईर्ष्यालुकादीनां ईष्यालुकनवकचौराणां ज्ञानं संपन्नमजयकुमारमहामंत्रिणः. ततश्चौरस्य ग्रहः. पुच्छत्ति पृष्टश्चासावनयकुमारेण यथा जो त्वया कथं बहिरवस्थितेनैव गृहीतान्याम्रफलानि ? तदद-विज्जत्ति विद्याप्रसादत इति निवेदितं पाणेन. अथ -कहणाओ अनयकुमारण श्रेणिकाग्रतः पुनः कथना अस्य वृत्तांतस्य विहिता, ततः दंमश्चमाळस्य तदाणत्ति तस्याएव विद्याया दानवक्षणः कृतः, प्रतिपन्नं च त त्तेन, प्रारब्धं च श्रेणिकाय विद्याप्रदानं आसणभूमी पाणस्सत्ति आसनं नूमी पाणस्य दत्तं, आत्मना तु सिंहासने निषामः श्रेणिक,-स्ततश्चापरिणामः सम्यगपरिणमनं विद्यायाः श्रेणिकस्य. टीका. अन्नयकुमारने ईष्यालुक. नक्षक तथा चोरोनी माहिती मळी, एटले चोरने पकम्यो. तेने अजयकुमारे पूज्यु के अरे ते बाहेर रहीनेज शीरीते आंबानाफळ तोड्यां ? ते मातंगे जणाव्युं के विद्याना पसायथी आ वात अजयकु श्री उपदेशपद. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MP Maar मारे श्रेणिक आगळ कही त्यारे चंकाळने ते विद्या आपी देवा रूप दंग को. ते वात तेणे कबूल करीने श्रेणिकन विद्या आपवा मांझी. त्यां मातंगने जमीनपर बेशामवामां आव्यो, अने श्रेणिक पोते सिंहासने बेगे. तेथी तेने बरोबर रीते विद्या आवमी नहि. रमो कोवो एयं वितहं अजयविणन त्ति पाणस्स, आसण नूमी राया-पसि णामो एव ममत्थ. ॥ २६ ॥ राजाने कोप थयो मातंगे का आकं खोटं नथी अजय बोल्यो अविनय थाय ने तेथी मातंगने आसन आप्यु, राजा जमीनपर बेगे, एटले विद्या आवमी एम बीजा स्थळे जाणवं. ६ (टीका) ततः राज्ञः कोपः प्रोदनूतः यथा न त्वं करोषि मम सम्यग् विद्याप्रदानं. ततः प्राह पाणः-नेदं वितथं विधीयते मया विद्यादानं. तदनु नणितवाननयकुमारःअविणनत्ति अविनय इत्येवमात्मनातु सिंहासनाध्यासनलदणस्त्वया राजन् क्रियते इत्यपरिणामो विद्यायाः. ततश्च पाणस्स-आसणत्ति सिंहासनं वितीर्णं, नूमी राया इति राजा स्वयं वसुंधरायामुपविष्टः . तदनंतरं यथावत्परिणामो विद्यायाः संपन्न - ति. एवमन्यत्रापि विद्याग्रहणे विनयः कार्य इति. टीका. बाद राजाने कोप थयो के तुं बरोबर रीते विद्या आपतो नथी. त्यारे मातंग बोल्यो के हुँ का जूठी रीते आपतो मथी.त्यारे अजयकुमार बोल्यो के हे राजन् तुं पोते सिंहासने वेशवारूप अविनय करे ने एट्ले विद्या नथी आवसती. बाद मातंगने सिंहासन आप्युं अने राजा पोते जमीनपर बेगे त्यारे तरतमां बरोबर विद्या आवमवा लागी. एमबीजा स्थळे पण विद्याग्रहण करतां विनय करवो जोइए. श्री उपदेशपद. Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ यतः पठ्यतेविणएण सुय महीयं-कहवि पमाया विसुमरियं संतं-त मुवठ्ठाइ परनवे-केवलणाणं च आवहइ. ॥ १ ॥ विजावि होइ बलिया-गहिया पुरिसेण विणयमंतेण, सुकुलपसूया कुलबालियव्व पवरं पई पत्ता. ॥२॥ (७) जे माटे कहेवायछे के विनयथी शीखर्बु शास्त्र कदाच प्रमादना बीधे नूनी जवाय तो ते परजवे तरत उपस्थित थाय ने अने छेवटे केवळझान पमा छे. (१) रुमा कुळमां जन्मेली कुलीन वाळा रुमा पतिने पामीने वळवान् थाय तेम विनयवंत पुरुषे ग्रहण करेली विया बळवान् रहे छे. (२) . अमुमेवार्थमन्वयव्यतिरेकान्यां जावयन्नाद ;-विहिणा गुरुविणएणं-एवंचिय सुत्तपरिणती होइ, श्हरा न सुत्तगहणं विवजयफळं मुणयेव्वं. १७ आ ज वातने अन्वय अने व्यतिरकथी बतावे छे. विधिपूर्वक गुरुनो विनय कर्यायी ए रीते सूत्रनी परिणति थाय . पण बीजी रीते सूत्रग्रहण करतां विपरीत फळ थाय छे. २७ . (टीका) . विधिना मंमतीप्रमार्जननिषद्याप्रदानकृतिकर्मकायोत्सर्गकरणादिना सिद्धांतप्रसिझेन, तथा गुरोः सूत्रार्थोन्जयप्रदातुः सूरेविनयोऽज्युत्थानासनप्रदानयादपरिधावन २ . श्री उपदेशपंद. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ 8888888 विश्रामणाकरणोचितान्नपानौषधादिसंपादनबक्षणश्चितानुवृत्तिरूपश्च गृह्यते-अतस्तेन गुरुविनयेन, एवंचियत्ति एवमेव श्रेणिकमहाराजन्यायेनैव सूत्रपरिणतिर्गृह्यमाणागमग्रंथानामात्मना सहैकोनावः नवति संपद्यते. नहि सम्यगुपायः प्रयुक्तः स्वसाध्यमसाध्यैवोपरमं प्रतिपद्यते.-इतरथात्वन्यथा पुनरविधिना गुरोरविनयेनचेत्यर्थः सूत्रग्रहणं प्रस्तुतमेव विपर्ययफवं विपरीतसाध्यसाधकं मुणितव्यं विज्ञेयं. श्री उपदेशपद. विधिवके एटने के मंगळी योजी, बेठक गोठवी वंदन दइ, कायोत्सर्ग करी तथा सूत्रार्थ शीखवनार गुरुनो । विनय एटने के अभ्युत्थान, आसनदान, पादपरिधावन, विश्रामणा अने उचित अन्नपानौषध संपादन रूप अने चित्ता* नुवृत्ति रूप, ते वझे-एज रीते एटख्ने श्रेणिक राजाना दृष्टांत माफक जणवामां आवता आगम ग्रंथो दिलमा चोटे बाकी अविधि अने अविनयथी सूत्र शीखतां धारवायी विपरीतफळ थाय छे, एम जाणवू. सूत्रग्रहणफवं हि यथावस्थितोत्सर्गापवादशुषहेयोपादेयपदार्थसार्थपरिज्ञानतदनुसारेण चरणकरणप्रवृत्तिश्च. अविधिना गुरुविनयविरहेण च दूषितस्य पुनः प्राणिनः सूत्रग्रहणप्रवृत्तावप्येतद्धितयमपि विपरीतं प्रजायत इति. (७) ___ कंमके सूत्र शीखवानुं फळ ए डे के खरेखरा उत्सगार्पवाद साये हेयोपादेय पदार्थों ओलखी अने ते प्रमाणे चालवू हालवु.परंतु अविधि अने गुरुविनयना अनावथी दूषित पाणी सूजा शीखे तोपण एवे फळ नबटी - तना थशे. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७१ विपर्ययफलमेव दृष्टांतहारेण जावयति समणीयपि जरुदये-दोसफरचेव हंत सिह मिणं, एवंचिय सुत्तंपिहु-मिबत्तजरोदए णेयं. ॥ ॥ ___ उलटुं फळ दृष्टांत आपीने जणावे छेःतावना जोरमां शमनीय पण दोष वधोर ने ए जाणीती वात छे. तेम मिथ्यात्वरूप ज्वरना जोरमां सूत्र पण जाणवू. २० (टीका) शमय-त्युपशमयति शमनीयं पर्पटकादि तदपि-किंपुनरन्यत्तत्प्रकोपहेतुघृतादि-ज्वरोदये पित्तादि प्रकोपजन्यज्वरोदये-किमित्याह-दोषफलं चैव सन्निपातादिमहारोगविकारहेतुरेव हंतत्ति सन्निहितनव्यसन्यामंत्रणं-सिधं प्रत्यवादिप्रमाणप्रतिष्टितं इंदं पूर्वोक्तं वस्तु. दृष्टांतमुपदर्य दाष्टातिकयोजनामाह. श्री उपदेशपद. टीका दरदने शमावे ते शमनीय पाप वगेरे ते पण- तो पड़ी तेना प्रकोपना हेतु घी वगेरानी शी वात करवीपित्तादिकना प्रकोपयी प्रगटेना तावमा दोषने वधोर ने एटले के सन्निपात वगरे महारोग विकारनो हेतु थइ पमे छे. हे जव्यो, एवात प्रत्यवादिप्रमाण सिकछे. आदृष्टांत आपी दार्टीतिकनी योजना करे छः-एज रीते मिथ्यात्वरूप ज्वरना उदयमां सूत्र पण जाणवू. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ एवंचियत्ति एवमेव-सुत्तपिहुत्ति सूत्रमप्युक्तलक्षणं मिथ्यात्वज्वरोदये. मिथ्यात्वं नाम सर्वज्ञप्रज्ञप्तेसु जीवाजीवादिलावेषु नित्यानित्यादिविचित्रपर्यायपरंपरापरिगतेषु विपरीततया श्रद्धानं. त्यां मिथ्यात्व एटले सर्वझे कहेला नित्यानित्यादि विचित्र पर्यायवाला जीवाजीवादि पदार्थोमां उलटुं श्रद्धान कर ते. तच्च सप्तधा ;अकांतिकसांशयिकवैनयिकपूर्वव्युग्राहविपरीतरुचिनिसर्गमूढदृष्टिनेदात. ते मिथ्यात्व सात प्रकारे छे:अकांतिक, सांशयिक, वैनयिक, पूर्वव्युद्ग्राह, विपरीतरुचि, निसर्ग, अने मूढष्टि. ययोक्तं. पदार्थानां जिनोक्तानां तदश्रधानलक्षणं, अकांतिकादिनेदेन-सप्तनेदमुदाहृतं. ॥ १॥ कणिकोऽक्षणिको जीवः सर्वथा सगुणोऽगुणः , इत्यादिनाषमाणस्य-त दैकांतिकमुच्यते. ॥२ ॥ सर्वज्ञेन विरागेण-जीवाजीवादि नाषितं, तथ्यं नवे ति सं. कल्प-दृष्टिः सांशयिकी मता. ॥३॥ आगमा लिंगिनो देवा-धर्माः सर्वे सदास जे माटे कहे ने के:जिनजाषित पदार्थानु अश्रमान ते मिथ्यात्व. ते अकांतिक वगेरे जेदायी सात प्रकारे कहेंब छे. ( १ ) जी श्री उपदेशपद. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १७३ ॥ माः, इत्येषा कथ्यते बुद्धिः - पुंसो वैनयिकी जिनैः ॥ ४ ॥ पूर्णः कुद्धेतुदृष्टांतै-र्न तत्वं प्रतिपद्यते, मंडलश्चर्मकारस्य - जोज्यं चर्मलवैरिव ॥ २ ॥ तथ्यं मन्यते तथ्यं -विपरीतरुचिर्जनः, दोषातुरमनास्तिक्तं ज्वरीव मधुरं रसं ॥ ६ ॥ दीनो निसर्गमिथ्यात्व -स्तत्वातत्वं न बुध्यते, सुंदरासुंदरं रूपं - जात्यंध इव सर्वथा ॥ ७ ॥ देवो रागी, यतिः संगी- धर्मः प्राणिनिशुंजन:, मूढदृष्टिरिति ब्रूते युक्तायुक्त विवेचकः ॥ ८ ॥ व शर्वथा क्षणिक के क्षणिकज छे, सगुण के निर्गुण ज छे एम बोल ते कांतिक छे. (२) वीतराग सर्व कला जीवाजीवाद खराबे के नहि एम संकल्प करवो ते सांशयिक बे (3) सर्वे आगमो, सर्वे लिंगवाळा सर्व देवो, अने सर्वे धर्मो हमेश सरखाज छे एम जे पुरुषनी बुद्धि छे तेने जिननगवानाए वैनयिक मिथ्यात्व कहेलुं छे. (४) चमारोना टोळाए चामकाना कटकाना नजीया खातां मेव्या नहि तेम जे कुहेतु अने दृष्टांतोथी चमकायलो रही तत्वने कबूल नहि करे तेने पूर्वव्युद्ग्राह मिथ्यात्व बे. ( ५ ) सन्निपातमां चमेलो ज्वरी जेम तीखाने मीतुं रस माने ते खोटाने खरुं माने ते विपरीत रुचि जागवी ( ६ ) जन्मांध पुरुष जेम सुंदर के असुंदर रूपने कोइ रीते ओळखी शके नहि तेम जे विचारो तत्वात्वने मूळी जनहि समजे तेने निसर्ग मिथ्यात्व जाणवं. ( 9 ) मूढदृष्टि मिध्यात्ववाळो पुरुष युक्तायुक्तनो वि वेक नहि करतां रागीने देव कहे छे. संगमां फसेलाने यति मानी बेशे छे, अने प्राणिनी हिंसाने धर्म कया करे बे, माटेए मूढ दृष्टि जाणवी. (G) तदेव पुर्निवारवैधुर्याधायकतया ज्वरो रोग विशेषस्तस्योदय उदद्भवस्तत्र ज्ञेयं. ए मिथ्यात्व जारे वैधर्य करनार होवाथी ज्वर तुल्य छे तेनो उदय होतां तेम याय छे एम जाएं. श्री उपदेशपद. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ अयमत्र नाव: यथा ज्वरोदये शमनीयमप्यौषधं प्रयुज्यमानं न गुणाय किंतु महते दोषाय संपद्यते, एवं सूत्रमपि संसारव्याधिवाधानिरोधकारकतया परमौषधसममपि विनीतप्रकृतेरविधिप्रधानस्य च जीवस्य महति मिथ्यात्वज्वरोदये योजनीयं... मतलब ए के जेम ज्वरना जोरमां शामक औषध पण फायदो नहि करतां दोषने वधारे , एम सूत्र पण संसार रूप व्याधिनी पीमाने अटकावनार होवाथी सरस औषध समान छतां पण दुर्विनीत प्रकृतिवाळा अने अविधीथी वर्त्तनारा जीवने नारे मिथ्यात्व ज्वरनो उदय होवाथी विपरीत कळ आप जे अन्यत्राप्युक्तं.सप्तप्रकार मिथ्यात्वमोहितेनेति जंतुना सर्वं विषाकुलेनेव-विपरीतं विलोक्यते. ॥१॥ तथा अप्रशांतमतौ शास्त्रसद्नावप्रतिपादनं-दोषायानिनवोदीर्णो शमनीयमिव ज्वरे.॥२॥ पउन्नपि वचो जैनं-मिथ्यात्वं न विमुंचति, कुदृष्टिः पन्नगो मुग्धं-पिबन्निव महाविषं ॥३॥ ए बाबत वीजा ठेकाणे पण कडं जे के ए सात प्रकारना मिथ्यात्वथी मुंफायनो जीव विषयी घेरायमानी माफक सघळु विपरीत देखे छे ( १ ) वळी कयुं छे के नवा आवेशा तावमां शामक दवा पण दोप जणी याय . तेम अप्रशांत मतिवाळा आगळ शास्त्रनो सद्जाव जणावतां पण दोष जणी थाय छे. (२) जेम सर्प दूध पीतां पण विषने गंमतो नथी तेम कुदृष्टि पुरुष जिनवचन जणतां पण मिथ्यात्वने छोमतो नथी. ( ३ ) इत्यं शिष्यविषयमुपदेशमनिधाय सांप्रतं तमेव गुरुगोचरमाह. आ रीते शिष्यना संबंधे उपदेश आपी गुरुना संबंधे उपदेश करे छ: श्रो उपदेशपद. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ गुरुणावि सुत्तदाणं-विहिणा जोग्गाणचेव कायव्वं, सुत्ताणुसारो खल्नु,सिहायरिया हाहरणं. ॥ ५ ॥ गुरुए पण विधिपूर्वक योग्यशिष्योने ज सूत्रानुसारेज सूत्र शीखववां हां सिद्धाचार्य उदाहरण रूपे छे. २ए (टीका) गृणाति शास्त्रार्थमिति व्युत्पत्त्या प्राप्तयथार्थानिधानः स्वपरतंत्रवेदी पराशयवेदकः परहितनिरतः यतिविशेषो गुरुः, तेनापि, न केवलं शिष्येण विनयेन च सूत्रं ग्रहीतव्यमित्यपिशब्दार्थः-सूत्रदानं श्रुतरत्नवितरणं विधिना-सुत्तत्यो खल्बु पढमो इत्यादिना आवश्यकनियुक्तिनिरूपितेन क्रमेण, जोगाणचेवत्ति योग्यानामेव विनयावनामादिगुणनाजनत्वेनोचितानामेव कर्त्तव्यं, न पुनरयोग्यानामपि. श्री उपदेशपद. सीका " गृणाति शाखार्यमिति गुरुः ” ए व्युत्पत्ति प्रमाणे नामने खरं करनार, स्वपर शाखनो जाण परना श्राशयने शमजनार अने परहित करवा तत्पर एवो जे यति होय ते गुरु. तेणे पण नहिके फक्त शिष्येज विधि अने विनययी । सूत्र शीखव, श्रुतरत्ननु दान-सुत्तत्यो खबु परमो इत्यादिक आवश्यक नियुक्तिमा बतावेशा क्रमयी विनय वगेरे गुणना जाजन होवाथी योग्य गणाता शिष्योने ज करवं, नहिके अयोग्यो ने यथोक्तं. विणोणएहि पंजलिलमेहि बंद मणुवत्तमाणेहिं, आराहिओ गुरुजणो-सुयं Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहुविहं बहुं दे. ॥१॥ जे माटे का डे के विनयनम्र रही अंजलिबद्ध रही अने मरजी साचवीने आराधेल गुरु जूदा जूदा श्रुतशास्त्रो तरतमां शीखवे . (१) तथा नवहियजोगदव्वो-देसे काले परेण विणएण, चित्ता अणकूलो-सीसो___ सम्मं सुयं बहइ ॥२॥ वळी कधु डे के देशकासने योग्य चीजो पूरा विनययी बाबी आपनार, चित्तने पारखनार, अने अनुकूळपणे वर्तनार शिष्य रुमीरीते श्रुत पामी शके छे. (२) __ कथमित्याह-सूत्रानुसारतः सूत्रस्य व्यवहारलाष्यस्यानुसारोऽनुवर्त्तनं तस्मातु -खसुरवधारणे-ततः सूत्रानुसारादेव तदतिक्रमेण सूत्रदाने तषित्वमेव कृतं स्यात्. गुरुए शिष्यने केवी रीते श्रुत आपq ते कहे जे–मूत्र एटले व्यवहारजाप्य तेना अनुसारेज तेने नबंधीन 3 सूत्र शीखवे तो तेनो दुश्मना करतोज गणाय. जे माटे कहबु ने के: यथोक्तं-तत्कारी स्यात्सनियमा-त्तषी चेति यो जमः, आगमार्थे तमुलंघ्य -ततएव प्रवर्त्तते ॥ १ ॥ आगमात्सर्वएवायं-व्यवहारो व्यवस्थितः, तत्रापि हानिको यस्तु-हंताज्ञानां स शेखरः ॥२॥ - जे जम होय ते तेने करतो थको तेनो दुष्पन थाय छे. ते आगमार्थमां तेने नबंधीने ते वसे ज वर्ने छे. (१) आगमीज आ सघळो व्यव्हार चाले छे, माटे त्यां पण जे हर करे ते अजणनो सरदार जाणवो (२) श्री उपदेशपद. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ सूत्रानुसारश्चायं. तिवरिसयरियागस्स न-आचारयकप्पनाम अज्जयणं, चनवरिसस्स न सम्म -सूयगनं नाम अंगं ति. ॥ १॥ दसकप्पव्ववहारा-संवचरपणगदिक्खियस्सेव, गणं समवाओ चिय-दो अंगे अध्वासस्स. ॥२॥ दसवासस्स विवाहो-एक्कारसवासयस्स उ श्मे न खुबियविमाणमाई-अज्जयणा पंच नायव्वा. ॥ ३॥ वारसवासस्स तहा-अरणुववायाइ पंच अज्जयणा, तेरसवासस्स तहा--नघाणसुयाश्या चनरो. ॥ ॥ चोदसवासस्स तहा-आसीविसनावणा जिणा विति, पन्नरसवासगस्स य-दिट्टीविसनावणं तहय. ॥५॥ सोलसवासाईसु य-एगुत्तरवढिएसु जहसंखं, चारण सूत्रोनु अनुसरण आ रीते :त्रण वर्षना दीक्षितने आचारांग अने प्रकल्प नामे अध्ययन शाखाम. चार वर्षना दीक्षितने सूयगमांग शीखामवं. १ पांच वर्षना दीक्षितने दशाश्रुतस्कंध वृहत्कटप अने व्यववहार सूत्र शीखववा. आठ वर्षना दीक्षितने स्थानांग अने समवायांग शीखववां. ( २ ) दश वर्षना दीक्षितने जगवती सूत्र शीखव. अग्यार वर्षना दीक्षितने झुकविमान । वगेरे पांच सूत्र शीखववा. ( ३ )वार वर्षना दीकितने अरणोपपात वगेरे पांच सूत्र शीखववां. तेर वर्षना दीक्षितने । नत्यानश्रुत वगेरे चार सूत्र शीखववा. (४) चौद वर्षना दीकितने आशीविषनावना शीखामवी एम जिनेश्वरो कहे छे. पनर वर्षना दीक्षितने दृष्टिविष नावना शीखामवी. ( ५ ) सोळ सत्तर अने अढार वर्षना दीक्षितने अनुक्रमे चार श्री उपदेशपद. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ लावण महसुविणलावणा तयगनिसग्गा. ॥ ६ ॥ एगूणवासगस्स न दिट्टीवाओ 5वाससम मंगं, संपुन्नवीसवरिसो-अणुवाई सव्वसुत्तस्स. ॥ ७ इति. श्रमणीस्तु प्रतीत्या कावचारित्वादिपरिहारबक्षणः सूत्रानुसारः-अकालचारित्वलक्षणं चेदं. अहमीपक्खिए मोत्तुं-वायणाकाल मेव उ; सेसकाल मस्तीओ नायव्वा कालचारिओ १ सिघाचार्याः सिद्धानिधानसूरय श्ह सूत्रानुसारतः सूत्रदाने, आह्रियते आदिप्यते प्रतीतिपथेऽवतार्यते दाष्टातिको थों येन तदाहरणं दृष्टांतः . तदेवाह.चंपा धणसुंदरि तामलित्ति वसुणंदसड्ढसंबंधो, सुंदरि णंदे पीती-समए परणनावना, स्वमनावना, अने तेने निर्सग सूत्र शीखामवां ( ६ ) ओगणीश वर्षना दीक्षितने दृष्टिवाद नामर्नु बारमं अंक ग शीखामवं. अने पूरा वीश वर्षनी दीकित होय ते सर्व सूत्रो शीखवानो अधिकारी गणाय . (७) साध्वीओ माटे- एवी परिपाटी छे के अकाळचारिपणानो त्याग करवो अकाळचारिपणुं ते आ छे. आउम पाखी शिवाय वाचनाना वखते ज आव, बीजा वखते आवतां अकाळचारि गणाय जे. (१) हां सूत्रानुसारे सूत्र देवामां सिद्ध नामना सूरि आहरण एटो दृष्टांतरूपे छे. आहरण शब्दनी व्युत्पत्ति आ छे के आकर्षीय अर्थात् प्रतीतिमां ऊताराय दार्टीतिक अर्थ जेनावमे ते आहरण. चंपामां धनशेउनी पुत्री हती. ताम्रलिप्तीमां वसुशेउनो पुत्र नंद हतो. वे शेउ श्रावक हता. तेमणे सगाई करी. श्री उपदेशपद. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १७॥ तीर मागमणे. ॥ १ ॥ जाणविवत्ती फलगं-तीरे नदगत्यि सीहवाणरए, सिरिनररलो सुंदरिंगहरागे निन्न कहधरणा. ॥ २ ॥ चित्तविणोए वाणरणटेंमी जाइसरणसंवरणं, देवपरिबा नियरुवकहण रमो न संबोही. ॥ ३ ॥ सावत्यो सिघगुरुविनव्वदिक्खा परिच सामइए, आलावगा णिमित्ते-अदाण कोवेतरा देवे. ॥ ४ ॥ लोगपसंसा सव्वामसासणं एरिसं सुदिलु ति, बोहीबीयाराहण-एवं सव्वत्थ विप्लेयं. ॥ ५॥ सिघाचार्यकया. एत्थेव जंबुदीवे-नारहवासंमि वासवपुरि ब्व, विबुहजणहिययहरिणी-अणवरयपयठपरममहा-॥१॥ सिरिवासुपुजजिणवरवयणिंउविबुधनवियकुमुयवणा, सुंदरी अशे नंद बच्चे प्रीति थइ. समये वीजा तीरे तेश्रो गया, त्यांथी पाग वळतां- (१) वहाण नांग्यु. तेओ पाटियु मेळची किनारे आव्या. नंद पाणी माटे जतां सिंहे मार्यो को वांदर थयो. श्रीपुरना राजाए सुंदरीने पकमी. ते तेनापर मोहित थयो. तेणीए नामरजी बतावी. वातोवमे राजाए तेने धरी. (२) चितविनोद माटे वांदराए नाच करतां तेने जाति स्मरण थवायी तेणे अणसण कयु, अने केद थयो. तेणे सुंदरीना शीळनी परीका करी पोतानुं रूप प्रगट करी वात कही. राजाने संबोध ययो. (३) श्रावस्तीमां सिद्धसूरिनी वैक्रियरूपे सुंदरीने दीकित करी सामायिकनु आ लायक लेवा माटे देवे परीका करी. तेमणे ते नहि आपतां देवे बाहेरयी गुस्सो अने अंदरथी संतोष कयों. (4) सोको प्रशंसा करवा लाग्या के सर्वइनु शाशन आर्बु सुदृष्ट छे. तेथ। बोधि तथा वीज प्राप्ति यइ. एम बधा स्थळेजाणवू. ५ ___ आ जंबूडीपमां नरत क्षेत्रमा इंद्रपुरी माफक विबुधजनना मनने हरनार, निरंतर प्रवर्तता महोत्सववाळी, श्री श्री उपदेशपद. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ TRAPAMRAPARI बबीइ सोहिया चक्कपाणुिमुत्ति व्व जयपयमा-॥२॥ चंपा णामेण पुरी–आसी, परिहवियधणवइधणोहो—वत्यव्यो तत्थ धणो-अहेसि सिट्टी गुणविसिमो. ॥ ३ ॥ तस्सय वसुनामेणं-निवासिणा तामवित्तिनयरीए, वणिएण समं मित्ती-संजाया निरुवचरियत्ति.॥ ॥ जिणधम्मपात्रणपरायणाण सुस्समणचक्षणनत्ताण, तेसिं वच्चंतेसुं–दिणेसु एगमि पत्थावे-॥ ५॥ अव्वोबिन्नं पीई-पवंउमाणेण निच्चकालंपि, सुंदरिनामा धूया-नियगा धणसेष्टिणा दिन्ना-॥ ६॥ नंदस्स वसुसुयस्सा, को विवाहो य सोहणमुहुत्ते, दावियजुवणबरिओ-महया रिद्धी समुदएणं. ॥ ७ ॥ अह सुंदरीइ सडिं-पुव्वजियपुन्नपायवस्सु चियं, नंदस्स विसयसुहफा-मुवचुंजंतस्स जंति दिणा. ॥ - ॥ अञ्चंतविमनबुद्धित्तणेण विनायजिणमयस्सावि, तस्से श्री उपदेशपद. वासुपूज्य जगवान्ना मुखचंद्रवसे नव्यजन रूप कुमुदवनने विकशित करनार, विष्णूनी मूर्ति माफक सदमीथी शोजती ह अने जयपताकावाळी चंपा नामे नगर। हती. त्यां कुबेरना धनसंग्रहने हगवनार गुणवान् धन नामे शेठ रहेतो हतो. ? -५-३ तेने ताम्रलिप्तीना रहेवासी वसु नामना वाणिया साये खरेखरी दोस्ती बंधाइ. ४ तेश्रो बन्ने जैन धर्म पाळता अने सुसाधुना चरणना नक्त रहेता. एम दिवसो जतां एक वेळाए-(५) धन शेत्रे ते प्रीति हमेश कायम राखवा माटे पातानी पुत्री सुंदरी वसुशेउना पुत्र नंदने आपी, अने सारा मुहूर्ते तेनो नारे गठमाउयी जगत्ने अजायबी पमामनार विवाह कर्यो. ६-७ हवे नंद पूर्वोपार्जित पुण्यतरुना प्रमाणे सुंदरी साथे विषय सुख जोगवतो रही दिवसो पसार करवा र लाग्यो ते अति निर्मळ बुझिवाळो होवायी जिनधर्मनो जाण हतो बतां तेने एक वेळाए प्रारीते विचार आव्यो.ए जे पुरुष Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंमि अवसरे-जाया चिंता इय सरूवा. ॥ ए ॥ ववसायविनवविगलो-पुरिसो लोगंमि होइ अवगीओ, काउरिसो त्ति विमुच्चइ-पुव्वसिरीएवि अचिरेण. ॥ १० ॥ ता पुव्वपुरिससंतश्समागयं जाणवत्तवाणिजं-पकरेमि पुव्वधणविणसणेण का चंगिमा मज्ज. ॥ ११॥ किं सोवि जीवजए—नियनुयजुयनजिएणदव्वेण, जो वंचियं पयबन मग्गणाणं पइदिणंपि. ॥ १२॥ विजा विकमजूणसलहणिज्जवित्तीइ जो धरइजीयं-तस्सेव जीवियं वंदणिज, मियरस्स किं तेण? ॥ १३ ॥ जप्पजति विणस्सति-गसो के जयंमि नो पुरिसा, जसबुब्बुन व्व परमत्यरहियसोदेहि किं तेहिं ? ॥ १४ ॥ कह सोवि पसंसिज्जति-न जस्स सप्पुरिसकित्तणावसरे, चागाइगुणगणेएं-पढम चिय जायए रेहा. ॥ १५ ॥ श्य चिंतिऊण तेणं-परतीरखंजनंगपडह त्यं, पारे पारावारस्स-त्ति पगुणीकयं पोयं. ॥ १६ ॥ गमणुम्मणं च तं पेबिऊण काम धंधा बगर बेठगे रहे ते आ लोकमां निंदाय ठे अने ते कापुरुष छ एम मानी तेनी पासे रहेवी लक्ष्मी पण तेने थोमाज वखतमां छोड़ी जती रहे. १० माटे हुं वापदादानी परंपराए आवेझो वहाणोनो वेपार करूं तो उौक. वेगे रही पू तुं धन खाता मारी शी शोजा गणाय ? ११ जे पोतानी बांद्योयी धन कमावी मागणोने दररोज दान नथी आपतो ते ॐ आ जगत्मां जीवे शा कामर्नु छ ? १५ जे विद्या अने पराक्रमयी वखाणती वर्तणुकवझे जीवे छे तेनुं जीवित वखाणवा योग्य छे, बाकी वीजानुं ते शा कामर्नु ? १३ आ जात्मां पाणीना परपोरा माफक कया अनेक पुरुषो जनमता मरता नथी ? पण तेवा परमार्थ रहित जनोयी शुं वळ्यु ? १४ सज्जनोमा जे दानादिगुणो वो पहेलो पंकातो नहि होय तेना पण शृं वखाण थाय.? १५ एम चिंतीने तेणे बीजा कांठे नहि मळे तेवा मालथो वहाण जरीने दरिया पार जवा ऊट तैयार कर्यु. १६ तेने जवा व्याकुळ यएलो जोइ अति विरहकातरपणाथी अत्यंत शोक करती सुंदरी कहेवा लागी के हे आर्य पुत्र, श्रीनपदेशपद. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ KK6263600DARDandra अविरहकायरत्तण, अच्चंतसोगविहराइ सुंदरीए श्मं नणिो . ॥ १७ ॥ हे अजनत्त अहमवि-तुमए सह नूण मागमिस्सामि, पेमपरायत्त-मिमंचित्तं न तरामि सं. विनं. ॥ १८ ॥ श्य लणिए दढतरपणयनाववक्खित्तचित्तपसरेणं-पमिवम्नमिणं नंदेण-तयणु जायंमि पत्यावे-॥ १५ ॥ आरूढाइं दोन्निवि. ताणि विसिलुमि जाणवत्तंमि, पत्ताणि च परतीरं-खेमेणा णाननमणाणि.॥२०॥ विणिवध्यिं च नंडं-नवङिओ भूरिकणयसंन्नारो, पमिन घेत्तूण य–इंताण समुहमऊमि-॥२१॥ पुवकयकम्मपरिणश्वसेण अञ्चंतपवलपवणेण–विखुमिजंती नावा-खणेण सयसिकरा जाया. ॥ २५ अह कहमि तहानवियव्वाइ नबछफलगखमाणि, एकंमिमेव वेबामि बग्गाणि लहु ताणि. ॥ २३ ॥ अघमंतघमणसुघमियविहमणवावमविहिस्स जोगेण-जायं परोप्परं दंसणं च गुरुविरह विहुराणं. ॥ २४ ॥ ता हरिसविसायवसु. श्री उपदेशपद. हुँ पण नक्की तमाही साथेज चालीश. केमके प्रेमने वश पवु आ मन हुँ रवी शकती नथी. १७–१० एम सांजळी मजबूत प्रेम नाबथी खेंचाइने तेणे ते वात कबून राखी. बाद समय आवतां ते बन्ने जण सारा वहाणपर चीने आनंदना साथे खेमकुशळे बीजा कोठे पहोच्या. १५-२० ते मान वेची घणो पैसो कमावी बीजो माझ लइ तेश्रो पाछा वळ्या एवामां समुद्र बच्चे पूर्वकृतकर्मना परिणामना बीधे सख्त तोफानमां मोला खातुं ने वहाण सेकमो ककमा थ६ गयु. ११-१२बतां तया प्रकारनीजवितव्यताथी ते बन्ने पाटियां मेळवी एकज किनारे प्रावी पमयां. ५३ नशीब नवनवानुं बनावे छे अने बनेनु बगामीदे ने तेना योगे ते विरहपीमित बन्ने जण एक बीजाने नेट्या.२४ त्यारे हर्ष अने शो Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥.१०३| बसंतदढमण्णुपुलगलसरणी-सहसत्ति सुंदरी नंदकंठ मवलंबिलं वीणा-॥२५॥ रोविन मारद्वा निबिरामनिवझतनयणससिवनरा, जलनिहिसंगुवनग्गंबुबिंऽनिवहं मुयंति व्व. ॥ २६ ॥ कहकहवि धारिमं धारिकहा नंदेण जंपियं ताहे-सुयणु किमेवं सोगं-करेसि अच्चंतकसिणमुही ? ॥ २७॥ को नाम मयबि, जए-जो जस्स नेव वसणाई–पाउन्भूयाणि, नवा—जायाणियजम्ममरणाणि? ॥ २८ ॥ कमलमुहि, पेवगयणंगणेकचूमामाणिस्सवि रविस्स-उदयपयावविणासा-पादियसं चिय वियंति. ॥शए॥ किंवा न सुयं तुमए-जिणिंदवयणमि जं सुरिंदावि-पुव्वसुकयक्खयंमी-जुत्यावत्यं नवलहंति. ॥ ३० ॥ कम्मवसवत्तिजंतण-सुयणु किं एत्तिएवि परितावो? जेसिं गयव्वसंर-लममइ उक्खाण दंदोली. ॥ ३१ ॥ इय एवमाश्वय श्री उपदेशपद. - कना वशे ऊउळता नारे गजराटयी गळे जराइने दीन यएली सुंदरी कट द नंदना कंठे वळगी.-२५ ते कंठे वळगी ने अटक्या वगर परता आंसुओयी जाणे दरियाना संगथी लागेना पाणीना बिंदुओ धरती होय तम रोवा लागी. २६ त्यारे जेम तेम धीरज धरी नंदे कयु के हे सुतनु, अति झांखु मुख धरी आम कां शोक करे जे. ? २७ हे मृगादि जगत्मा एवो कोण जन्म्यो डे के जेने संकटो के जन्म मरण नथी थतां. हे कमळमुखी, जो आकाशना चूमामणि 8 समान सूर्यने पण दररोज उदय, प्रताप अने विनाश ए त्रण अवस्थाओ वळगी रही छे. ए अथवा तें जिनप्रवचन मां शुं नथी सांजव्युं हे इंद्रो पण पूर्वकृतकर्मना दाये मुखी अवस्था पामे छे 30 हे सुतनु, कर्मवशवत्ती जंतुओने शो शोक * करवानो ने ? केमके तेमनी साथे छायाना माफक दुःखनी धांधन तो फरती ज रहे छे. ३१ आवा आवा वचनोथी सुंद Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ णेहि-सुंदरिं सासिलं, वसिमहुत्तं-तीइ समंचिय मलिओ-नंदो तोहाछुहकिलंतो. ॥ ३२ ॥ अह सुंदरीक्ष नणियं-पिययम, एत्तो परिस्समकिवंता-अञ्चंततिसानिहया-पयमवि न तरामि गंतु महं. ॥ ३३ ॥ नंदेण जंपियं सुयणु-एत्य वीसमसु तं खणं एकं, जेणाहं तुज्कए-सलिलं कत्तोवि आणेमि. ॥ ३४ ॥ पमिसुय मणार, ताहे-नंदो आसन्नकाणणुदेसे-सलिलावलायणत्थं-तं मोत्तूणं गो सहसा. ॥ ३५॥ दिठो य कयंतण व-विगिंचिनब्नममुहेण सोहेण, तिव्वबुहाजिहएणं-अश्चवानसंतजीहंणं. ॥ ३६ ॥ तत्तो लयसंनंतो-विस्सुमरियणसणाश्कायव्वो-अट्टकाणोवगो-निहो सो सरणओ तेण. ॥ ३७ ॥ एत्तो य सुंदरीए-परिपावंतीय अश्गयं दिवसं, तहविहु न जावनंदो--समागो ताव संबुझा. ३० णिच्छश्यतविणासा श्री उपदेशपदै रीने समजावीने तेनी साथेज नूख्यो नंद वस्ति तरफ वळयो. ३५ एवामां सुंदरी बोली के हे प्रियतम परिश्रमथी थाकेली होइ नारे तरसथी हुं पीमा बुं तेथी हाथी आगळ एक मगळु देवा समर्थ नथी. ३३ नंदे कयुं के हे सुतनु, तुं हां थोमी वार बीसामो ले के जेथी तारा माटे क्याथी पण पाणी लावू. ३४ तेणीए ते कबूल राखी एटले नंद तेणीने र त्यां मेली जंगलमा पाणी शोधवा खातर उतावळो था पेगे. ३५ तेने मोतनी माफक मुख ऊघामता, अति चपळ पणे चालती जीजवाळा, अति नूख्या रहेला सिंहे जोयो. ३६ त्यारे ते जयमां पमी अणसण वगेरे करवा नूली जा आर्तध्यानमा रह्यो एटवामां ज ते विचाराने सिंहे मारी नांख्यो. ३७ आणीमेर सुंदरीने वाट जोतां दिवस पूरो थयो, छतां नंद नहि आव्यो एटले ते गजराटमा पमी. ३० तेणे धार्यु के खचित तेनो नाश धयो हशे तेथी ते घब दइने जमी Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२५॥ धसत्ति सा निवमिया धरणिवट्टे, मुच्छानिमीलियच्छी–मयव्व ठाऊण खणमेगं-- - ३९ वणकुसुमसुरहिमाझयमणागनवाडचेयणा दीणा-रोविउ मारका निविमदुक्खपग्मुक्कपोकारा. ॥ ४ ॥ हा अजनत्त, हा जिणवरिंदपयपनमपूयणासत्त, हा सम्ममहानिहि-कुत्थगयो देहि पमिवयणं. ॥४१॥ हा पाव दइव, धणसयणगेहनासेवि किं न तुट्रोसि ? ज मणज्ज अज्जनत्तोवि निहण मिहि समुवणीअो. ॥ ४२ ॥ हे ताय सुयावबल-हा हा हेजणणि निकवरपेम्मे, उहजतहिनिवमियं की. स-निययधूयं वेहेह ? ॥ ३ ॥ श्य सुचिरं विनवित्ता-निविडपरिस्सम किनामियसरीरा-करयानिहित्तवयणा-सुतिक्खक्वं अणुहवंती.-॥ ॥ तुरगपरिवाह णत्यं तत्यो वगरण सिरितरनिवेण-दिट्ग कहवि पियंकरनामेणं, चिंतियं च इमं. ॥४॥ नपर पी अने मूथि) तेनी अांखो मींचाइ, एम मरेनीनी माफक थोमो वार रही. 30 छतां वनना फूलयी सुगंधि थएन पवन आदतां ते जरा शुद्धिमा आवी के दीन थः नारे दुःखथी पाको मूको रमवा लागा. ४० हे आर्यपुत्र, हे जिवेंद्रना पग पूजवामां आसक्त, हे सद्धर्म महानिधि, तुं क्यां गयो में देखें उत्तर दे ४१ अरे हुँमा देव, धनस्वजन अने। घनो नाश तां प ग तुं धरायो नहि के जेथी हे अनार्य,तें आ वखते आर्यपुत्रने पण मार) नांख्यो. ४२ हे पुत्रीवसन्न पिता, हे निष्कपट प्रेमवाळी माता, दुःखना द रयामा पमेनो तमारी पुत्रीने तमे केम नखो छो ? ४३ एम घणो वखत विलाप कर। नारे परिश्रमथी थाक पामी हाये गळ धरीने नारे मुःखमा गरकाव थइ रही एवामां घोमाने फरववा माटे त्या: । आवेता श्रीपुरना प्रियकर नामना राज.ए तेने जोइ अने आ रोते तेणे विचा. ४५–५५ ते विचारवा लाग्यो के आ श्रीनपदेशपद. ४ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ ॥ सावन्नहा कि मिमा-तियसवढू, मयणविरहिया व रई, वणदेवया व विजाहराण रमणि व्व होज ति. ॥ ४६ ॥ विम्हियमणण पुठा-सुयणू, का तं सि किमिह आवर सि ? कत्तोय आगया, कीस-वहसि संताव मेवं ति ? ॥ ४७ ॥ अह सुंदरी दीहण्हमुक्नीसासतरमियगिराए-सोगवसमनलियबीइ-जंपियं नो महासत्त,-॥ ४८ ॥ वसणपरंपरनिव्वत्तणेक्कपमु विहिविहाणवसगाए-मज्झ पउत्तीए अल-मिमाइ उहनिवहहेकए.- ॥ भए ॥ आवइगयावि नत्तमकुझप्पसूयत्तणण णो एसा-साहिस्सा नियवत्तं-विचिंतिकणं महीवइणा-॥ ५० ॥ अणुणऊणं मंजुलगिराहि नीया कहिं. पि नियगेहे-कासविया य गाढोवकोहओ नोयणाविहि. ॥ ५१ ॥ मणज्यिं च सव्वं-संपीमइ तीइ मेश्णीनाहो-अणुराएणं सप्पुरिसवित्तिनावेणवि सयावि. ॥ ५२ 1 शं शापथी पी गएली अप्सरा हशे ? अथवा कामयी बूटी पमेली रति हशे ? अथवा वनदेवता हशे के विद्याधरनी रमणी हशे? ४६ एम अचंबो पामी तेणे पूज्युं के हे सुतनु, तुं कोण छे. केम इहां रहे? क्यांयी आवेत्री छे!अने केम आवो संताप करे छे. ४७ त्यारे सुंदरीए लांबा नीसासा जरेली वाणीयी शोकना वशे मींचेनी आंखो वके कयु के हे महासत्व, एक पली एक संकट पाम्वामां हशियार एवा नशीबना खेलमां सपमायत्री मजनी सुखदायक हकीकत तमोने संजळाववानी कंड जरूर नथी. ४-४ए राजाए विचार्यु के मुःखमां पमेनी बतां पण उत्तम कुळमां जन्मेनी होवाथी पोतानी वात कहेनार नथी. ५० बाद राजा तेने मीगं वचनोथी जेम तेम करीने समजावी पोताने घरे तेमी गयो, अने त्यां तेणे बह आग्रहथी तेने नोजन वगेरे कराव्यां. ५१ हवे राजा कंश्क अनुरागना श्रीधे अने कंडक सज्जनपणाना श्रीधे हमेशां तेन। इच्छा प्रमाणे सघळु पूरुं पामतो. ५५ तेणे धार्यु के आटयु में एने सन्मान आप्यु डे अने प्रीति साये आटवी वातो श्री उपदेशपद. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ सम्माणदाणसप्पणमसंकदारंजियत्ति मुणमाणो-महुरगिराइ नरिंदो-एगंते सुंदरिं नण.-॥ ५३ ॥ ससिमुहि सरीरमणनिव्वुईहरं पुव्वकालवुत्ततं-सोनूण मए सर्कि-जहिबियं तुंज विसयसहं. ॥ २४ ॥ पविणसोगोवहया-सुकुमारा सुयणु, तुज्क कायबया-ठ्ठीवयसिहोवतत्ता-मालक्ष्मान व्व पमिलाइ. ॥ ५५॥ मा सुयणु जुव्वणं पव्वणिबिंवं व जणमणाणंद-सोयविरुप्पकमप्पुप्पीमिय मुवचिण सोहग्गं. ॥ १६ ॥ अचंतसुंदरंपि हु-मणोनिरामंपि तुवणसहंपि-पन्नटं नटं वा-वत्थु सोयंति नो कुसमा. ॥ २७ ॥ ता होउ भूरिजणिएण-कुणसु मह पत्यणं तुमं सहवं, पत्यावुचियपवित्तीय चेव जुत्तं कुणंति बुहा. ॥ ॥ अच्चंतकामकडुयं-अस्सुयपुव्वं च ती सो च्चे में-वयनंगलयवसट्टाइ--- गाढ उक्खानलमणाए---॥ एए ॥ नणियं नो नरपुंगव करी छ माटे तेथी ते मारापर खुश था हशे एम मानीवे मधुरवाणीथी एकांते सुंदरीने तेणे आ प्रमाणे कयुं. हे चंद्रमुखी, शरीर अने मनने संताप आपनार तारो पूर्व वृत्तांत वीसारी दइने मारी साथे इच्छा प्रमाणे तुं मोऊ विलास कर. केमके हे सुतनु, तारी आ सुकुमार काया दररोजना शोकथी दीवानी शिखायी जेम मालती करमाय तेम करमाइ जाय छे ५४-५ हे सुतनु पुनमना चंद्र माफक लोकना मनने आनंद दायक यौवनने शोक रूप तीखा चप्पुथी कापतां रुकुं लागतुं नथी. ६ चतरजनो खोवायत्री के नाश पामेली अत्यंत सुंदर मनोहर अने दर्लन चीजनो पण शोक करता नथी. ७ माटे । माऊं कहेवानी जरुर नथी, तुं मारी प्रार्थना सफल कर, समजु माणसो वखतने अनुसरती प्रवृत्ति करीने जे युक्त होय. तेज करे छे. ए७ आ रीतर्नु अत्यंत रीते कानमां कमवू लागतुं पूर्वे कदापि नहि सांगळवं सांजळीने सुंदरी व्रतजंग । थवानी बीकथी नारे सुःखमां पसीने कहेवा लागी के हे नरेश्वर सारा कुळमां जन्मेशा जगत्मां प्रसिफ न्यायमार्गना बतावनार तमारा जेवा पुरुषने आबुं बोलघटतुं नथी. ५०-६० परस्त्री साये रमवू ए अत्यंत अनुचित, ननयमोकने । श्री उपदेशपद. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१ ॥ --कुत्रप्पसूयाण जयपसिघाण-नयमग्गदेसगाणं---तुम्हारिसपवरपुरिसाणं---॥ ६० ॥ अचंत मणुचियं उभयसोग विलुसणेकपमुयं च; पररमणिरमण मयं-अवजसपमहो तिहुयणेवि. ॥ ६१ ॥ रमा पयंपियं कमलवयणि चिरपुल विहवनवणीयं, रयणनिहि मणुसरंतस्स-होऊ किं दूसणं मज् ? ॥ ६ ॥ तो वरवनिरुवक मनिबंधं मुणिय तीइ पमिजणियं, जइ एवं ता नरवर-चिरगहियाजिग्गहो जाव-॥ ६३ ॥ पुज ता पमिवावेतु-मक तं केत्तियपि नणु कालं, पन्छा य तुज्ज वंगणुरुव मह मायरिस्लामि. ॥ ६॥ एवं सोया तुटूगे-भूमिवई नट्टएड्डमार्शण, चित्तविणोयत्यं सेदरिसावतो गम कालं. ॥६५॥ अह पुजनणियनंदो-वानर नावेण वट्टमाणो सो -गहियो मकरखेमावगेहि नचिन त्ति काऊण.--॥ ६६ ॥ नव बहुकानायो -सिक्ख विओ परपुरं च दंसेत्ता-ते पुरिसा तं घेत्तु-समागया तप्पुरे कहवि. ॥ ६७ वगामनार अनेत्रण नुवनोमां अपजशनोपमो वगामया सर जे. ६१ राजाए कयुं हे कमळमुखी, बांवा वखतमा पुण्यथी मळेळ रत्ननुं निधान जोगवतां मने शुं दूपण छे? ६२ त्यारे राजानो नहि टळे तेवो आग्रह जाणीने तेणए कह्यु के हे नरेश्वर, जो एम ने तो मारोबांचा वखतमी लीधेलो अजिग्रह पूरो थाय त्यां सुधी मारी वाट जुबो, केमके हवे ते कांदलांचा वखतनो नथी वाद हं तमारी इच्छा प्रमाणे वतीश.६३-६४ एम सांजळी राजा खुस थइ तेणीन चित्त विनोदमां नाखवा माटे तेणीने नाट्य, खेन वगेरे बतावतो रही वखत पसार करवा लाग्यो. ६५ हवे पूर्वे कहलो नंद बांदरो थयो हतो, ते योग्य जाणीने माकमाना खेस्रामोए पकड्यो. ६६ तेने शीखवेलो करवायी ते बहु कळाओ करी नाचतो तेथी ते खेसामीओ तेने अपने दरेक शहरमां तेने फेरवता रही एक वेळा ते शहेरमां आव्या. ६७ तेओ दरेक घरे तेने खेसावी श्री उपदेशपद. A Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१ ॥ ॥ खिवावेत्ता पइमंदिरं च ते रायमंदिरंमि गया, पारद्धो य तहिं सो- पणच्चिजं सबजत्तेण. ॥ ६७ ॥ अह नचंतेण कहिंपि-सुंदरी रायसन्निहिनिसन्ना-दिठ्ठा णणं चिरपणयत्नाववियसंतनयणेण. ॥६५॥ कत्य मए दिखे यं विचिंतयंतेण तेण पुणरुत्तं-जाई सरिया नाओ-सव्वोविय पुव्ववुत्तंतो. ॥ ७० ॥ तो परमं निव्वेयं -समुव्वहंतेण चिंतियं तेण; हा हा अणत्यनिहिणो-धिरत्थु संसारवासस्स. ॥ ७१ ॥ जेण तहाविहनिम्मतविवेगजुत्तोवि धम्मरागी वि–अणुसमयसमयसंसियविहियाणुट्टाणकारी वि-॥ १२ ॥ तह बालमरण वसयो-विसमस्सं एरिसं समणुपत्तो, निरियत्ते वदंतो य-संपयं किं करेमि अहं ? ॥ ७३ ॥ अहवा कि मणेण विचिंतिएण इय अवसराणुरूवंपि-पकरेमि धमकम्म–पजत्तं जीवियव्वेण. ॥४॥ श्री उपदेशपद. राजमंदिरमां आव्या. त्यां ते वांदरो खूब यनयी नाचवा लाग्यो. ६७ हवे नाचतां नाचतां तेणे राजा पासे बेली सुंदरी ने लांचा वखतनी प्रीतिना योगे विकस्वर आंखोयी को रीते सुंदरीने जोइ. ६५ ते विचारवा लाग्यो के में एने क्यां दीपीछे एम वारंवार चिंतवतां ते जातिस्मरण पाम्यो, अने तेणे सघळो पूर्व वृत्तांत जाण्यो. ७० त्यारे ते वांदराए परम निवेद पामीने चिंतव्यु के आ अनर्थना निधान समान संसार वासने धिक्कार के जेना बोधे हुं तेवा निर्मळ विवेकवाळो छतां धनो रागी छतां अने प्रतिसमय सिद्धांतमां कहेब क्रियां करतो यको पण वासमरणना वशे आवी विषमदशा पाम्यो बुं. हवे हुँ तिर्यंचपणामा रह्यो बुं माटे शु करीशकुं ? ७१-७३-७३ अथवा आम चिंतव्याथी शु वळे ? हवे अवसरयोग्य धर्म कर्म करुं अने अणसण करी जीवितनो अंत लावू तो जीक छ. ७४ एम ते विचारतो रह्यो. त्यारे तेने गजरायसो Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्य सो परिभूतो-सुढिओत्तिमुणितु तेहिं पुरिसेहिं-नीओ सहाणंमी-तो तेणं अणसणं गहियं. ॥७५॥ पंचपरमेष्मितं-अणुसमरंतो य शुद्धनावेण-मरिऊणं नववन्नो--दिव्वो देवोमहिड्ढीओ. ॥७६॥तक्खणमेव पनत्तो-अोही अवसोझ्या सिरिपुरंमि-अविचलियसालिसीलालंकारा सुंदरी तेण. ॥ ७७ ॥ सोलामतत्तगुणरंजिएण अप्पा पयासिओ तीसे, कहिओ य वश्यरो पुव्वजम्मविसो नरवश्स्स. ॥ ७ ॥ परिचिंतियं च रमा --जइ जिणधम्मप्पन्नावओ एवं-पसुणोवि होंति देवा-ता किं अम्हारिसा पुरिसा-॥ धम्मत्यकामसाहणसज्जा मज्जायवजिया हो--विबुहजणनिंदणिज्जे विसयसुहे गाढ मणुरत्ता. ॥ ७० ॥ पविसंति उग्गईसुं ? ता वसरो एस धम्मकरणस्स, दूर विरत्तचित्तेण-तेण देवो इमं नणिो . ॥ ०१॥ किं कायव्व मो मे ? एको च्चिजाणी ते खेलामो तेने पोताने मुकामे बइ गया. त्यां तेणे अणसण लीधुं. ७५ ते वांदरो पंचपरमेष्टिमंत्रने शुद्ध जावी संचारतोथको मरण पामीने महर्द्धिक दिव्य देव थयो. ७६ तेणे तरतज अवधियी जोयुं तो श्रीपुरमा अखंशीळालंकारवाळी सुंदरी जोइ. ७७ निर्मळ शीळ गुणथी रंजित थइने तेणी आगल प्रगट थयो, अने तेणे राजाने पोताना पूर्वजन्मनी हकीकत कही संजळावी. ७0 त्यारे राजाए विचार्यु के जो जिनधर्मना जावथी प्रारीते पशुओ पण देव थाय ने, तो त्यारे अमारा जेवा पुरुषो केजे धर्म अर्थ अने काम एत्रणे शाधी शके ने तेस्रो मर्यादा रहित थइसमजुजनोने निंदवा योग्य विषयसुखमांज खूब खूच्या रहे ए योग्य छे के? ७U-50 अने तेम करीने दुर्ग:तमा पेशे एकेटचं शोचनीय जे ? माटे आधर्म करवानो अवसरने, एम चिंतबी नारे वैराग्य पामीरानाए देवने आ रीते कयुं ०१ मारे हवे शें करव? देवे कयु के एकझो जिनजाषित धर्मज तारे श्री उपदेशपद. Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥११॥ य जिणुवोधम्मो संजायपच्चएणं-सत्तणुरूवं पवन्नो तो. ॥ २ ॥ जणिया देवेणं सा-अह सुंदरि केरिसं तुमं काही ? सव्बंधयारपनिबंधकारए जग्गए सूरे॥ ३ ॥ किं दीवेण पोयण-मओ तुमंचिय ममं पमाणं ति—श्य निबियतच्चित्तो -देवो सावस्थिनयरीए--॥ ४ ॥ तकालमुणिपहाणा-सिखायरिया गुरू पविहरंति, तेसिं सीलपरिक्खणनिमित्त मह कवमदिक्खाए-॥ ५॥ दिक्खित्ता नेइ तयं-तेसि समीवे तहाविहअकाले, एगागिणं च सामश्यसुत्तालावगनिमित्तं. ॥ ७६ ॥ नणमो य तीइ सूरी-वंदिय नालयसमेत्रियकराए-जयवं रोगवसाओ-सामश्यसुयं वियलियं मे. ॥ ७ ॥ होठं दयावरा मे देहा लावग मिमं खणं एगं, गुरुणा दिन्नुवोगेण चिंतियं नोचिओ समो. ॥ 6 ॥ एगागिणी ज मेसा तहा अकाले महं 8 श्री उपदेशपद. करवो. त्यारे खातरी मळेबी होवाथी तेणे पोताना सत्य प्रमाणे ते स्वीकार्यो. ७५ हवे देवे सुंदरिने कयुं के सुंदरि, तुं शं करीश ? ते बोली के सघन्य अंधकारने दूर करनार सूर्य ऊगे बते दीवानुं शुं काम पके, माटे मने तमे जे कहो तेज प्रमाण छ. आ रीते तेना चित्तनो निश्चय जाणीने ते देवे श्रावस्ती नगरीमा विचरता ते काळना मुनिश्रोमा प्रधान नूत सिद्धाचार्यना शीळनी परीक्षा करवा माटे सुंदरीने कपटदीवाय दिक्षित करी.७३-७४-७५ एम तेने दीक्षित करीने तथाविध अकाळवेळाए ते एकलीने सामायिकसूत्रनो आलावो बेवा तेमना पासे ते देव बह गयो. ७६ तेणीए सूरिने कपाळे हाथ धरी वांदीने कयु के जगवत, रोगना लीधे हुं सामायिकसूत्र नूली गइ बुं-माटे मारापर दया करी एक क्षणजर ते अनावो आपो. त्यारे गुरुए उपयोग दइ जोतां जाएयु के आ जचित समय नथी. 19--तेमज आ एकत्री Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ तो अविही, तो कह सामझ्यसुयस्स–देमि आवावग मिमीए ? ॥ नए ॥ पमिसिघा सा तेणं- अज्जे नेवोचियं तुहं एयं, दावियकोववियारा-सहसत्ति अदंसणीहूया. ॥ ए० ॥ विहिपक्खबधलक्खं–निनणं जाणितु सूरि मह देवो-अइनत्ती. ए संतोस-मुवगो तम्मि सूरिम्मि. ।। ए१ ॥ तो नियरूवं दंसिय—वंदिय विणएण धरणिनिहियसिरो—कहिलं सव्वं नियपुव्वजम्मवृत्तंत मप्पे-॥ ए ॥ तं सुंदरिं गुरूणं तेवि तहाविहपवित्तिणीइ तो, सामन्नसमासन्नं–काठं सा सग्ग मणुपत्ता. ॥ ए३ ॥ णाओ श्मो वश्यरो स्रोएणं अविहिणा न सुयदाणं-गुरुणा कयं ति अव्वो—समुज्जला जिणमए नोई. ॥ एव ॥ संपत्तबोहिबीओ-कोई अन्नो पवन्नस मत्तो, देसणं सव्वेण य-चरणस्साराहो जात्रो. ॥ ए॥ ॥ एवं अन्नेणवि सुयने अने अकाळे आवीछे, माटे ए मोटी अविधि , माटे एणीने शी रीते सामायिकसूत्रनो आखावो आपुं ? GU तेयो तेणे तेने निषेध पामीने कडं के हे आर्या, आम कर तने नचित नथी. त्यारे ते जरा कोप बतावीने तरतज त्यांयी अदृश्य थइ. एत्यारे देवता सूरिने विधिपक्षमा बदवाळा जोक्ने तेमना विषे नारे नक्तिवंत बनी संतोष पाम्यो. ? बाद तेणे पोतानुं रूप प्रगटावी विनयथी पृथ्वीमा मायुं अमावी वांदीने पोताना पूर्व जन्मनो सघळो वृत्तांत कहीने सुंदरी तेमने सोंपत करी. त्यारे गुरुए ते तथाविध प्रवर्तनीने सौंपी. बाद तेणी श्रमणपणाथी स्वर्गने नजीक करी त्यां पहोची. ए-३ आणी मेर लोकने खबर पी के गुरुए अविधियी श्रुतदान न कर्यु, माटे जिनमतनी जुवों, केवी नीति चोखी छे एव आ वखते कोइ बोधिवज पाम्यो तो कोइ सम्यकत्व पाम्यो अने कोइए देशचारित्र सीधुं तो कोइए सर्व चारित्र स्वीकार्य. एए आ रीमे बीजा श्रुधरे पण स्वपरना उपर अनुग्रह बुधि राखीने विधिमां तत्पर यह श्री नपदशपद. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १०३ ॥ हरेण सइ अपणो परसिं च बाढमणुग्गहमइणा --- पर्याट्टियन्वं विहिपरेण ॥६॥ इति. अत्रारार्थः चंपाधणसुंदरित्ति चंपानगर्यां धनोनाम श्रेष्टी अभूत्, तस्यसुंदरी तनया. तामक्षित्तिवसुनंदन्ति ताम्रलिप्यां पूर्वपारावारतीरवर्त्तिन्यां पुरि वसुश्रेष्टी, तस्यच नंदो नंदनः समुत्पन्नः . – सडूढसंबंधोति तौ द्वावपि श्रेष्टिन श्राद्ध श्रावकाविति संबंध: स्वापत्यवैवाह्यलक्षणः कृतस्ताभ्यां ततः- — सुंदरिनंदेपीइ इति नंदसुंदर्योः . परस्परं प्रीतिः प्रकर्षवती संपन्ना. समये क्वापि प्रस्तावे परतीरं जलधिपरकूनं नंदः ससुंदको ययौ तदन्वागमने प्रत्यावर्त्तने परतीरात्. ॥ १ ॥ यानस्य प्रवहणस्य विपत्ति विनाशः संपन्नस्ततः फलकं काष्टशकलमासाद्य तीरे एकस्मिन्नेव वेलाकूडे के अयुतीर्णे तत उदकार्थी परिक्राम्यन्नंदः सिंहेन हतः सन् वानरः संजातः इतश्च श्रीप्रवर्त्त. ६ " sri संग्रहगायानो अक्षरार्थ करिये छीये. चंपा नगरीमां धननामे शेठ हतो, तेनी सुंदरी नामे पुत्री हती. पूर्व समुद्रनाकांठे आवेली ताम्रलिप्ती नगरी - मां वसुशेव हतो, तेनो नंदनामे पुत्र हतो. ते बे शेठ श्रावक हता. तेमणे पोताना दीकरी दीकरानी सगाई करी. हवे नंद ने सुंदरीने परस्पर मजबूत प्रीति बंधाई. एक वखते सुंदरीने साथ लइ नंद दरियाना पहले पार गयो, त्यांथी पाग वळतां ( १ ) बहाल नाश पाम्युं. त्यारे पाटियुं मेळवी ते बे जा एकज किनारे उतर्या. बाद पाणी माटे फरता नंदने २५ श्री उपदेशपद. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १०४ ॥ पुरराजेन सुंदर्या ग्रहो ग्रहणं कृतं. रागश्चानिष्वंगस्तस्यामेव तस्य जातः . निचकधरणाइति प्रार्थिता च सा तेन सविकारं परं तया न श्वानिपाषरूपा दर्शिता, - तदनु तस्यास्ता निस्तानिः कथा निर्विनोद हेतु निर्धरणं कालयापनं प्रारब्धं नूनुजा. ॥२॥ चित्तविणो इति चित्तविनोदमात्रे च तस्य संपन्ने अन्यदा - वानरनहं मित्ति वा नरे नंदजीवेन नृत्ये प्रारब्धे सति, जातिसरणत्ति जातिस्मरणमासादितं, तदनु संवरणमनशनं विहितं तेन देवत्ति देवस्तदनंतर मनू छानरजीवः परीक्षा कृता तेन सुंदरीशीलस्य ततोय निजरूपमादर्शितं. कहणत्ति कथनं च समग्रस्यापि प्राच्यवृत्तांतस्य. रह्यो न संबोहित्ति राज्ञः पुनः संबोधिः सम्यग्बोधः प्राडुर्भूतः ॥ ३ ॥ ततः श्रावस्त्यां नगर्यां - सिद्धगुरु इति सिद्धानिधानसूरीणां विव्वक्खिा इति वैकि . सिंहे मारी नाख्यो एटले ते वांदरी थयो. आवाज श्री पुरना राजा सुंदरीने लइ गयो. ते तेनापर मोहित थयो, तेथ। तेणे ते की मागणी करी, पण तेणीए इच्छा नहिबतावी. बाद ते तेव। तेवी विनोदकारि वातोथी तेलीनो बखत पसार करवा लाग्यो. (२) तेलीनो चित्तविनोद यतो हतो एवामां एकदा नंदना जीव वांदराए नृत्य करतां जातिस्मरण मेळव्युं. बाद ते एटले ते देव क्यो. तेणे सुंदरीना शीलनी चोकसी करीने पोतानुं रूप बतायुं, तथा सघळी पृहकीकत कही. एथी राजाने पण खरो बोध थयो, (३) बाद श्रावस्ती नगरीमां सिद्ध नामना आचार्यनी सुंदरीने सामायिकना यानावाना निमित्ते परीक्षा करी. गुरुए ते अलावो नहि देतां देवे बाहेरयी कोप श्री उपदेशेपद. Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५॥ REPREPARA यरूपेण विहितदीक्षां सुंदरी विधाय-परिबत्ति परीक्षा. सामइए आलावगानिमित्ते इति सामायिकालापकनिमित्तं विहिता देवेन. अदाणत्ति सामायिकातापकस्याप्रदाने कृते सति गुरुणा, कोवेयरी इति कोपेतरौ-देवे इति देवेन विहितौ बहिर्वृत्त्या कोपः अंतर्वृत्त्या च संतोषः कृत इत्यर्थः . ॥४॥ ततो ज्ञातवृत्तांतेन लोकेन प्रशंसा कृता-यथा, सर्वशासनमीदृशं सुदृष्टं निपुणप्रज्ञापकानिरूपितं इत्यनेनोबेखेन ततो -बोहिबीयाराहणत्ति बोधिः पारगतगदितधर्मप्राप्तिः केषांचिजीवानां समभूदन्येषां च बीजस्य सम्यग्दर्शनादिगुणकनापकल्पपादपमूत्रकल्पस्य देवगुरुधर्मगोचरकुशनमनोवाक्कायप्रवृत्तिलक्षणस्याराधनं सेवनं समपद्यत एवं प्रस्तुतसूत्रप्रदानवत् सर्वत्र प्रव्रज्यादानादौ सूत्रानुसारादेव मतिमतां च वर्त्तनं विज्ञेयमिति. ॥ ५॥ बताव्यो अने अंतरथी ते संतोष पाम्यो. ४ बाद ते वृत्तांतनी लोकने खबर पता तेमणे प्रशंसा करी के सर्वइन शासन आवं सुदृष्ट एटने निपुणप्रझापके बतावेचु जे. आवा उद्देखथी ते टांकणे केटनाक जीवोने बोधि एटने परमेश्वर प्रणीत धर्मनी प्राप्ति था, तथा केशाकने बीज एटोके सम्यग्दर्शन वगेरे गुण रूप कष्पवृदनी मूळ समान एवी देवगुरु धर्म संबंधे कुशळ मन वचनकायनी प्रवृत्ति तेनी प्राप्ति था. आ रीते आ सूत्रप्रदानना माफक सघळे स्थळे एट्ले प्रत्रवादान वगेरे सघळी बाबतोमां बुद्धिमंत पुरुषोए सूत्रना अनुसारेज वर्तन राखg जोइए एम समजवू. ५ . ___अथ सूत्रानुसारप्रवृत्तिमधिकृत्याह. आसन्नसिद्धियाण-विंग सुत्ताणुसारो मेव-नचियत्तणे पवित्ती सव्वत्य श्री उपदेशपद. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ जिणंमि बहुमाणा. ॥ ३५॥ (टीका) ____ आसन्ना तद्नवादिनावित्वेन समीपोपस्थायिनी सिधिर्मुक्तिर्येषां ते तथातेषां नव्यविशेषाणां विंग चिहूं व्यंजकमित्यर्थः धूम इव गिरिकुहरादिवर्त्तिनो वन्हेः , कासावित्याह-सूत्रानुसारादेवागमार्थानुवृत्तेरेव नचितत्वेन तत्तद्अव्यक्षेत्रकालनावानुरूपेण या प्रवृत्तिः स्वकुटुंबचिंतनरूपा अव्यस्तवन्नावस्तवरूपा च., : कुत एतदेवमित्याह. सर्वत्र कृत्ये इत्यं प्रवृत्तौ धार्मिकस्य जिने जगवति सर्वत्रौचित्यप्रतिपादयितरि बहुमानात् गौरवात्. हवे सूत्रानुसारि प्रवृत्तिन उद्देशीने कहेछे. आसन्नसिद्धिवाळाओ- ए विंग डे के सूत्रानुसारेज नचितपणामां तेमनी प्रवृत्ति होय केमके सघळी वावतोमां तेमने जिनमा बहुमान होय जे. ३५ टीका आसन्न एटले तेज के बीना नवे मळनार होवाथी समीपे रहे। सिद्धि जेमने तेवा जव्योर्नु पर्वतमा रहेला अग्निना लिंग धूमनी माफक ए लिंग छे के आगमना अर्थने अनुसरीनेज ते ते द्रव्य क्षेत्र काळ जावना प्रमाणे नचितपणे पो ताना कुटुंबनी संजाळ रूप तथा द्रव्यस्तव अने जावस्तवरूप प्रवृत्ति होय . ___एम शाथी होयछे ते कहे छे. केमके तेमने सघळा कामामां एम प्रवर्तता सघळा स्यळे औचिन्य बतावनार जिनजगवानमां बहु मान होय जे. श्री उपदेशपद. का Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १०७ ॥8 सहि सूत्रानुसारेण प्रवर्त्तमानो – “ जगवतेदमिदमित्य मित्थं चोक्त " मिति नित्यं मनसानुस्मरन् जगवंतमेव बहुमन्यते. संजातजगव बहुमानश्च पुमान विलंबितमेव भगवद्भावनाकू संपद्यते . यथोक्तं. . क्यनावे मिलिओ - नावो तब्नावसाद्गो नियमा, नहु तंबं रस विद्धंवित्त मुवे ॥ १ ॥ इति सर्वत्रौचित्यप्रवृत्तिरासन्न सिद्धेर्जीवस्य लिंगमुक्तमिति. ६ एतद्विपर्यये दोषमाह. आयपरपरिचाओ - आणाकोवेण इहरदा यिमा, एवं विचिंतियव्वं - समंबुद्धि ॥ ३६ ॥ - जे माटे ते पुरुष सूत्रानुसारे प्रवर्त्ततो थको “नगवाने आ आ आवी आवी रीते कहेल डे " एम हमेशां मनवमे संजारतो थको ज़गवाननुंज बहुमान करे छे. अने जेने जगवान्मां बहुमान रहे ते पुरुष तो वगर विसंबे जगवानपणाने पाये. जे माटे कह छे के. अक्षय जावमां जो जाव मळयो तो ते जावनो नियमा साधक थाय छे. जे माटे रसयी मरायचं तांबु फरीने मां नहि रहेशे. ( १ ) एटला माटे घळी बातोमा औचित्यपणे प्रवृत्ति करवी ते आसन्न सिद्धिगामी जीवनुं लिंग क. एयी उलटी रीते चालतां दोष बतावे छे. बीजी रीते वर्त्ततां आज्ञाकोप थतो होवायी नियम स्वपरना उद्वारनो परित्याग थाय छे, एम प्रति निपुण बुद्धियी बरोबर विचारखं. ३६ श्री उपदेशपद: Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१ ॥ (टीका) आत्मपरपरित्यागः आत्मनः स्वस्य परेषां चानुगृहीतुमिष्टानां देहिनां परित्यागः ऽगतिगतर्गतानां प्रोकनं कृतं नवति आझाकोपेन नगवघ्चनवितथासेवनरूपेण-इतरथा सूत्रानुसारप्रवृत्तिरूपप्रकारपरिहारेण प्रवृत्तौ सत्यां नियमादवश्यंनावेन. यथोक्तं. शहलोयंमि अकित्ती-परखोए गई धुवा तेसिं, आणं विणा जिणाणं--- जे ववहारं ववहरंति. ॥१॥ यत एवं ततः एवमुक्तप्रकारेण विचिंतयितव्यं विमर्शनीयं सम्यग् ययावत् अतिनिपुणबुट्या कुशाग्रादपि तीक्ष्णतरया प्रज्ञया. अनिपुणबुद्धिनिर्विचिंतितयाप्यर्थस्य व्यनिधारसंलवात्. पोतानी अने दुर्गतिना खामामा पमेला बीजा के जेमेने मदद करवानी छे तेमनो परित्याग एटले तेमने मूकी आप्यानुं थाय छे ( शायी ते कहे जे ) आज्ञाकोपथी एटख्ने के नगवानना वचनथी नबटुं काम होय तेनु सेवन करवाथी. ( कयारे एम थाय ते कहे डे ) सूत्रानुसार प्रवृत्ति जोमाने वीजी रोते प्रवृत्ति करता. ए वात नियमा एटने के अवश्यपणे बने जे. जे माटे कहq छे के:जेत्रो जिननी आझाविना व्यवहार चनावे ने तेमनी आलोकमां अकीर्ति अने परलोकमां नकी दुर्गति थायछ. (१) जे माटे एम छे ते माटे ए कहेला प्रकारे सम्यग्पणे एटले बरोबर अतिनिपुण बुद्धिवके एट्ले के दर्जनी अणी थी पण वधु तीक्ष्ण प्रज्ञावमे विचार केमके गाफल बुद्धिवाळाओए विचारेल बाबत पण एकनी बीजी या पके जे. श्री उपदेशपद. टीका Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७ HOMM 3681 अत एवाह. बुद्धिजुया खड्नु एवं-तत्तं बुज्मंति, णनण सव्वेवि, ता तीइ नेयणाएवो तव्वुढिहनत्ति. ॥ ३७॥ (टीका ) . वुद्धियुता अतिनिपुणोहापोहरूपप्रज्ञासमन्विताः -खसुरवधारणे-ततो बुद्धियुता एव एवमुक्तरूपेण तत्वं सूत्रानुसारेण प्रवृत्तिरासन्नसिद्धिकजीवानां बणमित्येवंरूपं बुध्यंते व्यवच्छेद्यमाह नपुनः सर्वेपि बुद्धिविकासपीतिनावः बहुबुद्धिबोध्यस्थार्थस्य सामान्यबुद्धिन्निः कृतशतप्रयत्नैरपि बोछुमपार्यमाणत्वात्. एथी ज मूलकार कहे जे के, बुद्धिमानो ज एवी रीते तत्त्व जाणे बे, सघळा नहि जाणी शके. माटे बुद्धिनी वृधिना माटे तेना जेद तथा ज्ञात कहीश. ३७ श्री उपदेशपद. टीका. अति निपुण ऊहापोहरूपप्रज्ञावाला ज ए रीते तत्त्वने एटले के सूत्रानुसारे. प्रवृत्तिए आसनसिद्धिक जीवोनुं बक्षण छे ए वातने समजे छे. ( एवकारर्नु ) व्यवच्छेद्य कहे छ. नहिके सर्वे अर्थात् बुद्धिविकल होय ते. केमके बहुबुद्धि । वोध्य अर्थने सामान्य बुद्धिवाला सेंकमो प्रयत्न करे तोपण समजवा समय थइ शकता नथी. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २०० ॥ तडुक्तं. महतां न बुद्धिविनवः - कृतप्रयत्नैरपीतरैर्लभ्यः, यत्नशतैरपि तामययदि शूची जवति पाराची ॥ १ ॥ यत एवं तत्तस्मात्तस्या बुझेर्भेदज्ञातानि नेदानोत्पत्तिक्यादीन् ज्ञातानि च रोका दृष्टांतान् वदये नणिष्यामि - किमर्थमित्याह -- तव्वुढिहेनत्ति तद्दृद्धिहेतोर्बुद्धिप्रकर्षनिमित्तं—–— इतिर्वाक्यपरिसमाप्त्यर्थः बुद्धिप्रकर्षयोग्या हि पुरुष बुद्धेर्भेदांस्तज्ञातानि च धीमत्पुरुषान्यर्णे सम्यक् समाकर्णयतो निश्चयेन तथाविधबुद्विधन निधानभूताः संपते. यदवाचि - - विमल स्पष्टात्मानः -- सांगत्यात्परगुणानुपाददते, उपनिहितपद्मरागः - स्फटिको मनमा ॥ १ ॥ जे माटे कहलं बे के इतरजनो गमे तेटलो प्रयत्न करे तोपल तेश्रो कं मोटाोना बुद्धि धनने पामी शके नहि. कोयनथी कूटो तोपण सोय कई पाराह बने नहि. ( १ ) जे माटे एम छे ते माटे ते बुद्धिना औत्पत्तिकी वगेरे जेद तथा रोहकादिना ज्ञात एटले तो कहोश, शश मा ते कह के ते बृद्धिना वधाराना माटे. इति शब्द वाक्य समाप्ति माटे बे, कार के बुद्धिना वधाराने योग्य पुरुषो बुद्धिना दो अने तेना उदाहरण बुद्धिमान पुरुष पासेथी बरोबर सांता थका नक्की पणे तेवा प्रकारनाद्विधनना निधानरूप बने छे. जे माटे कहबुं छे के निर्मल ने खुला स्वनाववाळा सोबतना योगे पराया गुणो ग्रहण करीव्ये छे. दाखलातरी के पचराग ( माणे (क) पासे स्फटिकने धर्यो होय तो ते तेना रताशने पकी ये छे. (१) श्री उपदेशपद. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२०॥ यथोद्देशं निर्देश इतिन्यायात् बुद्धिनेदानाह. नप्पत्तिय वेणश्या-कम्मय तह पारिणामिया चेव, बुद्धी चनविदा खानिहिठ्ठा समयकेहिं. ॥ ३० ॥ . (टीका). नत्पत्तिः प्रयोजनं कारणं यस्याः सा औत्पत्तिकी. आह.-क्षयोपशमः प्रयोजनमस्या : . -सत्यं, किंतु स खल्वंतरंगत्वात् सर्वबुद्धिसाधारण इति न विवक्ष्यते. नचान्यबास्रधर्मादिकमपदयते नत्पत्तिं विहाय. यदत्र, नप्पत्तिगीति निर्देष्टव्ये उप्पत्तिय इति निर्देशः स प्राकृतत्वात्. एवमन्यत्राप्यन्ययानिर्देशहेतुर्वाच्यः . ॥१॥ जेम उद्देश कर्यो होय तेम निर्देश करवो ए न्यायथ। बुद्धिना नेद कहे जे. औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा, अने पारिणामिकी एम चार प्रकारे समयना जाण पुरुषोए बुद्धि बतावी छे.३० टीका. ___ उत्पत्ति छे प्रयोजन एटले कारण जेनुं ते औत्पत्तिकी. शिष्य कहे जे के एनुं कारण तो वयोपशम छे. गुरु क-29 हे छे–साची वात पण ते तो अंतरंग माटे सर्व बुद्धिमां साधारण कारण रूप ने एटले तेनी विवदा नथी. यहां नत्पत्ति * शिवाय वीजा शास्त्र के कर्म वगैरेनी अपेक्षा होती नथी. हां उप्पत्तिगी एवं रूप वापरतूं जोइये तेने बदले उप्पतिय एम निर्देश कर्यो छे ते प्राकृतपणाना बीधे जे. एम वीजा रूपोमां पण बीजी रीते निर्देश के तेनु कारण तेज जणाव. ( ? ) विनय एटले गुरुनी शुश्रूषा ते छ Rasabse श्री उपदेशपद. Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १०२ ॥ dus saal गुरुशुश्रूषा सच कारणमस्यास्तत्प्रधाना वा वैनयिकी ॥ २ ॥ कम्मति कर्मशब्देन शिल्पमपि गृह्यते तंत्र अनाचार्यकं कर्म, साचार्यकं शिल्पंकादाचित्कं वा कर्म, शिल्पं नित्यव्यापारः ततः कर्मणो जाता कर्मजा ॥ ३ ॥ तथाशब्दः समुच्चये -- पारिणामिया इति परि समंतात् नमनं परिणामः – सुदीर्घकालं पूर्वापरार्थावलोकनादिजन्य आत्मधर्म इत्यर्थः स कारणमस्यास्तत्प्रवाधा वा पारिणामिकी. ॥ ४ ॥ " चैवशब्दस्तयाशब्दवत्. बुध्यतेऽनयेति बुद्धिर्मतिः - सा च चतुर्विधैवखनुशब्दस्य निर्धारणार्थत्वात् निर्दिष्टोक्ता -- समय केतु निः सिद्धांत प्रसाद चिह्नभूतै स्तीर्थकर गणधरादिनिरित्यर्थः छ कारण जेतुं ते अथवा विनयप्रधान ते वैनयिकी. ( २ ) कर्मथी थाय ते कर्मजा. इहां कर्म शब्दे शिल्प पण लेवं. त्यां पोतानी मेळे करा ते कर्माचार्य पासे शीखीने कराय ते शिल्प. अथवा कोइ वेळा कराय ते कर्म अने दररोज कराय ते शिल्प . ३ तेमज परिणाम छे कारण जेनुं अथवा परिणामप्रधान ते पारिणामिकी. त्यां परि एटले सघळ | तरफथी नमं ते परिणाम अर्थात् लांबो वखत पूर्वापरना बनाव जोवाथ। यती जीवनी खुलावट, ४ चैत्र शब्द तथा शब्द जेवो छे. जेनाथी बोध ते बुद्धि ते चार प्रकारनीज समयकेतु एटले सिद्धांतरूप मेहेल - नाधा समान तीर्थकर गणधर वगेराए कहेली . श्री उपदेशपद. Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औत्पत्तिक्या लक्षणं प्रतिपादयन्नाह. पुवमदिट्टमसूयमवेश्यतक्खणविशुधगहियत्था, अव्वाहयफाजोगी-बुद्धी नप्पत्तिया नाम. ॥ ३५॥ (टीका) पूर्व बुध्ध्युत्पादात् प्राक् अदृष्टः स्वयमनवलोकितः-मसूय इति मकारस्यालाकणिकत्वादश्रुतोऽन्यतोपि नाकर्णितः–मवेश्यत्ति अत्रापि मकारः प्राग्वत् तवोऽवेदितो मनसाप्यनालोचित--स्तस्मिन्नेव कणे विशुद्धो यथावस्थितो गृहीतोऽवधारितोऽयोनिप्रेतः पदार्थो यया सा तथाऽदृष्टाश्रुनावेदिततत्क्षणविशुद्धग्रहीतार्या, अब्वाहयफलजागी इति हैकांतिकमिहपरलोकाविरुद्धं फलांतराबाधितं वाऽव्याहतमुच्यते औत्पत्तिकी बुद्धिनुं लक्षण कहेछे:पूर्व अणदीमा अणसांनळ्या अणविचारेला अर्थने तेज कणे खरेखर रीते पकनार अव्याहतफळवाळी बु. द्धि ते औत्पत्तिकी जाणवी. ३७ टीका. बुद्धि ऊपजवानी अगान पोते न जोयेनो, बोजा पासेयी नहि सांजळेलो, मनयी अणविचारेलो छतां ते जवणे ययावस्थितपणे अजित पदार्थ जेना वो ग्रहण करी शकाय तेवी अने एकांतिक, इहपरलोकथी अविरुष्क फलांतरथी अबाधित एवा अव्याहत फळ साथे जोमायत्री बुधि ते औत्पत्तिकी बुद्धि जाणवी. इहां मदिठ मस्य । • श्री उपदेशपद. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२०४॥ फलं प्रयोजनं - अव्याहतं च तत् फलंच अव्याहतफलं योगोऽस्या अस्तीति योगिनी— अव्याहतफळेन योगिनी, योगिणिति पाठे प्राप्ते योगीति निर्देशः प्राकृतत्वात्, अन्येतु व्वायफळ जोगा इति पठंति - अव्याहतफळेन योगो यस्याः साव्याहतफळयोगा बुद्धि: औत्पत्तिकीनाम औत्पत्तिक्य निधाना बोद्धव्या. सांप्रतमेतद्ज्ञातान्याह. -गोल भरद सिल-पणिय - रुक्खे - खडुग - पम - सरम - काय - उच्चारे, गय- घयण -‍ - खंने- खुड्डग - मगि- त्थि - इ - पुत्ते ॥ ४० ॥ टीका - धारगाया. अस्यां सप्तदशोदाहरणानि - तद्यथा - नरह सिलत्ति नरत शिक्षा ( १ ), पणियत्ति पणितं ( २ ), वृकः ( ३ ), खड्डगत्ति मुषारलं ( ४ ) पमसरमका मवेदिय ए पदमां बधा मकार अल्लाहशिक ( उपरटपेकाना ) े. जोगिणीना बदले जे जोगी एवं रूप वापर्यु छे ते प्राकृ तना सीधे डे, कोइ ए स्थळे अव्वा हयफलजोगा एम पण बोले छे. हवे एना उदाहरण कळे: जरत शिक्षा, पणित, वृक्षुद्रक, पट शरक, काक, उच्चार, गज घयण, गोळ, स्तंज, कुल्लक, मार्ग, स्त्री, पति, अने पुत्र. ४० टीका. धारगाथा मां सतर उदाहरण छे, ते आ रीते जरत शिक्षा, ( १ ) पणित, ( २ ) वृक्ष, (३) कुद्रक एटले मुद्रारत्र, ( ४ ) पट, (५) सरक, (६) कागमा (9) उच्चार, (८) गज, (U) घया एटले नांम, ( श्री उपदेशपद. Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१० ॥ यनच्चारे इति पटः (५), सरमः (६) काकाः (७), जच्चारः (७), गयघनणगोलखंने इति गजः (ए), घयणत्ति लांमः (१०), गोलः (११), स्तनः (१२), -खुड्डुगमग्गिस्थिपरपुत्ते इति कुखकः (१३), मार्गः (१४), स्त्री (१५), छौपती (१६) पुत्रः (१७) इति–एतानि सप्तदशपदानि तत्रज्ञातसूचामात्रफलान्येवेति न सूदो किका कार्या. तत्राद्यज्ञातसंग्रहगाथा. नरहसिन मिंढ कुक्कुम-तिबवाबुगहत्यि अगम वणसंमे, पायस अश्या पत्ते -खामहिना पंच पियरो य. ॥४१॥-टीका. जरतो नटस्तकृत्तांतगता शिक्षा जरतशिक्षा मंढो मेषः १, कुक्कुटस्ताम्रचूमः २, तितत्ति तिवाः ३, वाणुगत्ति वाबु१०) गोल, (११) स्तंज, १२ कुबक, १३ मार्ग (१४) स्त्री, १५ बे पति, (१६) अने पुत्र ? ७.-एम ए सतर पदो ते ते उदाहरणनी सूचना मात्र करे , माटे हां बारीक नजरें अर्य करवानी जरुर नथी. त्यां पहेला उदाहरणनी संग्रहगाथा कहे छे. जरतशिला, मंढ, कुक्कुट, तिझ, वालुका, अवट, वनखंक, पायस, अजिका, पत्र, शिवहमिका, अने पांच बाप. टीका. ... जरत नामनो नर तेनी बातमा आवती शिक्षा ते जरत शिक्षा, मेढ एटले मेष, कुक्कुट एटने कूकमो, तिस्रो, वालुका एटले वाबुकानी वाधर, हाथी, अवट एटले कूवो, वनखंग, पायस आजिका एटले बकरीना गणनी गोळी, प CE श्री नपदेशपद. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०६ ॥ कायाः संबंधिनी वरत्रा ४, हस्ती, ५, अगमत्ति, अवटं कूपः ६, वरखः ७ पायसं अश्या इति जिकाया बगलिकायाः पुरोषगोलिका, ए पत्ते इति पिप्पलपत्रं, १० खालित्ति खिल्लाह मका, ११ पंचपितरश्च तव राजन् पंच जनकाः १२ इयंच संग्रह गाथा स्वयमेव सूत्रकृता व्याख्यास्यते इति न विस्तार्यते. तथा दुसित्य - मुद्दियं -, - णादाए - निक्खु - चेडगनिहाणे, सिक्खा य-यसत्थे - वाय महं-सयसदस्से. ॥ ४२ ॥ ( टीका ) महु सित्यत्ति मधुसिक्थकं मदनं १, मुडिका २, अंकश्च ३, ज्ञानकं व्यवहारारूप लक्षणं ४, निक्खुचेमगनिहाणे इति भिक्षुः ए, चेटक निधानं ६, शिक्षाच 9, त्र एटले पीपळनुं पान, खिलहमिका ( खिलोमी), अने च पेतर एटले हे राजन् तारा पांच वाप चे ते. या संग्रहगाथाने सूत्रकार पोतेज वर्णवनार छे एट इहां अमे एनी विस्तारथी व्याख्या नथी करता. बळी मधुसिक्थ, मुद्रिका, अंक, ज्ञानक, निक्कु, चेटकानिधान, शिक्षा, अर्थ, शस्त्र, मारी इच्छा अने शतसहस्र. ४२ टीका मधुसिक्थक एटले मी, मुद्रिका, अंक, ज्ञानक एटले व्यवहारमां चालतो रूपियो, भिक्षु, चेटक निधान, शि. श्री उपदेशपद. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२०७॥ अर्थः ८, शस्त्रं ए, श्वायमहंति श्वा च मम १०, शतसहस्रं ११.-एतान्यपि स्वयमेव सत्रकृता व्याख्यास्यंते. एवंचायसंग्रहगायायाः संबंधीनि शप्तदशएतानि चैकादश-मीलितानि अष्टाविंशतिर्मूत्रज्ञातानि औत्पत्तिक्यां बुद्धाविति. (१) ५ अथ वैनयिकीस्वरूपमाह. नरनित्थरणसमत्था-तिवग्गसुत्तत्यगहियपेयाला, उन्नोलोगफलबई-विणयसमुत्या हवइ बुद्धी. ॥ ४३ ॥ ' (टीका) हातिगुरुकार्य उर्निवहत्वादनरश्व जरकस्तस्य निस्तरणे पारप्रापणे समर्था नरनिस्तरणसमर्था: त्रयो वर्गा स्त्रिवर्ग लोकरुढेधर्मार्थकामाः-तदर्जनपरोपायप्रतिपाका, अर्थ, शस्ख, मारी इच्छा अने सो हजार.-एम पण सूत्रकार पोतेज व्याख्या करशे. एम पहेली गाथाना सत्तर अने आ गाथाना अग्यार मळी अगवीश मूळ उदाहरणो औत्पत्तिकी बुद्धि पेटे ने. हवे वैनयिकीनुं स्वरूप कहे. जारने ऊपामवा समर्थ, त्रण वर्गना सूत्रार्थना सारने लेनारी, उन्नयलोकमां फळ आपनारी विनययी ऊपजती । बुद्धि होय . ४३ श्री उपदेशपद. टीका. हां अति मोडें कार्य मुखे टकावा शकाय एवं होवायो नार रूप गणाय छे तेने पार पोहोचावा समर्थ, त्रण व ते त्रिवर्ग अर्थात सोकरूढियी धर्म अर्थ अने काम जाणवा तेना अर्जनना उपाय बतावनार ते सूत्र अने तेनी व्या Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२०॥ श्री दनमेव सूत्रं तदन्वाख्यानं तदर्थपेयालो विचारः सार इत्येकोर्थः-ततस्त्रिवर्गसूत्रार्थयोHहीतं पेयालं यया सा त्रिवर्गसूत्रार्थगृहीतपेयाला, ननोलोगफलवत्ति उन्नयबोकफलवती अहिकामुष्मिकफलप्राप्तिप्रगुणा, विनयसमुत्या विनयोदनवा वैनयिकी इत्यर्थः नवति बुद्धिः . अथैतद्ज्ञातानि. णिमित्ते अत्थसत्थे य-लेहे वणिए य कूव आसे य, गद्दनलक्खणगंठीअगए गणिया य रहिए य. ॥ ४ ॥ सीधा सामी दीहं च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स, निव्वोदए य गोणे-घोरगपमणं च रुक्खाओ. ॥ ४ ॥ (टीका) निमित्तं १, अर्थशास्त्रं च ५. सेहे इति लेखनं ३, गणितं च ४, कूप ५, अश्वख्या ते अर्थ तेनो पेयाळ एटले विचार के सार तेने सेनारी अने जजयलोक फळवती एटले आजव परजवना फळने पमारुनारी विनयथी ऊपजती अर्थात् वैनयिकी बुद्धि छे.. ___ हवे एना उदाहरण कहे छ:निमित्त, अर्थ शास्त्र, लेखन, गणित, कूप, अश्व, गर्दन, लक्षण, ग्रंथि, अगद, गणिका अने रथिक. ४ शीत साकी लांबु तृण-अने क्रौंचवें अपसव्यक, नीबोदक तथा गोण-घोहक-अने वृदयी पतन. – टीका. निमत्त अर्थशास्त्र, लेखन, गणित, कूषा, घोको, गधेको, बक्कण, गांउ, दवा, गणिका अने रथिक, शीत सामी पदेशपद. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२०॥ + श्च ६, गर्दनः ७, लक्षणं , ग्रंथिः ए, अगदः १०, गणिका च रथिकश्चेति ११, शीतसाटी दीर्घ च तृणं-अपसव्यकं च क्रौंचस्य इत्येकमेव १२, नीबोदकंच १३, गौः -घोटकः-पतनं च वृतादित्येकमेव १४.-एवं वैनयिक्यां सर्वाग्रेण चतुर्दश ज्ञातानि, एतान्यपि स्वयमेव शास्त्रकृता व्याख्यास्यते इति नेह प्रयत्नः . (२) __ अथ कर्मजायाः स्वरूपमाह. जवोगदिटसारा–कम्मपसंगपरिघोलणविसाला, साहुक्कारफबबई-कम्मसमुत्था हवइ बुद्धि. ॥ ४६ ॥ (टीका) नपयोजनमुपयोगो विवक्षितकर्मणि मनसोऽनिनिवेशः-सारस्तस्यैव कर्मणः बांबुंघास-अने इंजनुं मावी तरफ जवू एम एक उदाहरण नेवा पाणी, तथा बळद-घोमो-अने कामथी ए पावं पण एक उदाहरण.-एम वैनयिकी पेटे कुझे चौद उदाहरण छे. एनी पण शास्त्रकार पोतेज व्यख्या करनार छे, माटे यहां अमे ए:संबंधी तस्ती नथी लेता. हवे कर्मजानुं स्वरूप कहे बे:___ उपयोगयी सारने जोनारी, कर्मना अज्यास अने विचारथी विशाल, अने सानासीवके सफळ कर्मजा बुद्धि होय छे. ४६ टीका उपयोग एटसे अमुक काममां मन, बचाण-ते वके सार एटले ते ज कामनो परमार्थ जेनायी जणाय एवी श्री उपदेशपद. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१० । परमार्थः-उपयोगेन दृष्टः सारो यया सा नपयोगपृष्ठसारा अन्निनिवेशोपनब्धकर्मसामर्येत्यर्थः , कर्मणि प्रसंगोऽन्यासः -परिघोलनं विचारः-आन्यां विशाला कर्मप्रसंगपरिघोबनविशाला अज्यासविचारविस्तीर्णा इति यावत्, साधुकृतं सुष्ठ कृतमिति विघ्न्यः प्रशंसा साधुकारस्तेन फलवतीति समासः-साधुकारेण वा शेषमपि फवं यस्याः सा तथा, कर्मसमुत्या कर्मजा नवति बुद्धिः . ७ अयतैद्ज्ञातानि. हेरलिए करिसए-कोलिय-मोवेय-मुत्ति-घय-पवए, तुपाय-वड्ढई-पूइएय घाचितकारे य. ॥४॥ । (टीका) __ हैरण्यिकः सौवार्णिकः (१) कर्षकः कृषीवळः ( २), कोळियत्ति कोलिक अर्थात् खेंचाणयी कामनु मर्म ग्रहण करनारी, कर्मनी प्रसंग एटले अज्यास अने परिघोसन एटले विचार ते बे वके वि* शाळ थती अर्थात् अन्यास अने विचारथी वधती, अने साधुकार ठीक कर्यु एवी विधानो तरफथी थती प्रशंसा तेणे करीने सफळ अथवा साबासी शिवाय वीजी पण फनवाळी कर्मयी ऊपजती बुद्धि अर्यात् कर्मजा बुद्धि होय छे. हवे कर्मजाना उदाहरण कहे :हैरएियक, कर्षक, कोलिक, दीकर, मौक्तिक, घृतप्रक्षेपक, प्लवक, तुम्नवाय, वर्द्धकि, पूतिक, घटकार अने चित्रकार.19 टीका. हैरणिक एटले सोनारो, कर्षक एटले खेमृत, कोलिक एटले, वणकर, मवींकर एटले पारसनार, मौक्तिक एटने श्री उपदेशपद. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ seaReg स्तंतुवायः (३), मोवेयत्ति दकिरश्व परिवेषक इत्यर्थः (४) मुत्तित्ति मौक्तिकप्रोता (५). घयत्ति वृतप्रक्षेपकः (६) प्लवकः (७) तुन्नायत्ति तुन्नवायः तुन्नं त्रु. टितं वयति सीव्यति यः स तथा (6), वर्द्धकिः (ए), पूइए य इति पूतिकः कांदविकः [१०], घमचित्तगारे य त्ति घटकारः कुंजकारः [ ११ ], चित्रकारश्चितकर्मविधाता [ १२ ].-एवं छादश दृष्टांताःकर्मजायां मतौ एतानपि स्वयं सूत्रकृद्भणिष्यतीति नेह कृतो विस्तरः [३] अथ पारिणामिकीस्वरूपमाह. अणु माणहेनदिइंतसाहिया वयविवकपरिणामा, हियनिस्सेसफलवई-बुही परिणामिया णाम. ४० मोती परोक्नार, धृतप्रक्षेपक (घी नाखनार ) टपक्क ( तारु ) तुन्नवाय एटझे तूटेखाने शीवनार, वर्धकि ( सुधार ) पृतिक । एटले कंदोइ, घटकार एटो कुंजार अने चित्रकार एट्ये चितारो-एम कर्मजा बुद्धिपेटे वार उदाहरणं जे. एमनी पण सूत्रकार पोतेज व्याख्या करनार ने तेथी अमे एनो विस्तार करता नथी. हवे परिणामिकी बुझिनुं स्वरूप कहे जे. अनुमाम हेतु- दृष्टांतबके साधनारी वयोविपक्व परिणामवाळी अने हितनिःश्रेयस फळबाळी बुद्धि परिणामिकी जाणवी. 4G श्री उपदेशपद. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। २१२ ।। [ टीका ] :-अथवा अनुमानहेतुदृष्टांतैः साध्यमर्थ साधयतीत्यनुमानहेतुदृष्टांतसाधिका - इह - गिज्ञानमनुमानं स्वार्थमित्यर्थः तत्प्रतिपादकं वचो देतुः परार्थमित्यर्थःज्ञापकमनुमानं, कारको देतुः; - साध्यव्याप्तिप्रदर्शन विषयो दृष्टांत : - अनुमानग्रहणादेवास्य गतत्वाद्व्यर्थमुपादानमितिचेत् —न - अनुमानस्य तत्त्वतोन्यथानुपपन्नत्वेलणैकरूपत्वान्न गतार्थत्वं दृष्टांतस्य, — कालकृतो देहावस्थाविशेषो वय इत्युच्यते ततस्तेन विपक्त्रः पुष्टिमानीतः परिणामोऽवस्थाविशेषो यस्याःसा वयोविपक्वपरिणामा; तथा हिनिस्सेसफल ई इति हितमन्युदयस्तत्कारणं वा पुण्यं - निःश्रेयसो मो स्तन्निबंधनं वा सम्यग्दर्शनादि - ततस्ताभ्यां फलवती बुद्धिः पारिणामिकी नाम. टीका. अनुमान हेतु तथा दृष्टांत के साध्य अर्थने साधनारी - [ इहां लिंगनुं पोते जावं ते अनुमान, ते अने बीजाने ते जलावनार वचन ते हेतु — अथवा जणावनार ते अनुमान अने करावनार ते हेतु, साध्यनी व्याप्ति ज्यां जगाय ते दृष्टांत — कोइ कहेशे के अनुमान लेतां दृष्टांत आवीज जाय ले माटे तेने फोकट जूदो लीधो बे, तो तमनथी, केमके नुमान तो परमार्थ अन्यथानुपपन्नपणा रूप छे माटे तेमां कं दृष्टांत गतार्थ गणाय नहिः - ] वयोविपक्व परिणामवाळी एके काळकृत देहाबस्था विशेष ते वय तेणे करीने परिपक्व थाय छे परिणाम एटले अवस्था जेनी एवी तथा हित निः श्रेय फळवाळी एटले ति कहेतां स्वर्ग अथवा तेनुं कारण पुण्य अने निःश्रेयस कहतां मोक्क अथवा तेना कारण सम्यदर्शनादिक ते व फळवाळी गणाती बुद्धि ते पारिणामिकी जाणवी . श्री उपदेशपढ़. Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३॥ . अथैतद्ज्ञातानि गाथात्रयेणाह.अन्नए-सेडिकुमारे–देवी नदिओदो हवइ राया, साहू यणंदिसेणेधणदत्ते-सावग-अमच्ये. पए खमए-अमच्चपुत्ते-चाणके चेव शूलनदे य, नासिक सुंदरी णंद-वर-परिणामिया बुद्धि ५० [टीका ] अन्नए इति अन्नयकुमारः [१], सिठित्ति काष्टश्रेष्टी [२], कुमारे इतिकुलककुमारः [ ३ ], देवी पुष्पवत्यनिधाना [ ४ ] नदितोदयो नवति राजा [५], साधुश्च नंदिषणः श्रेणिकपुत्रः [६], धनदत्तःसुसुमापिता [ 9 ], श्रावकः [ 0], अमात्यः [ए], शमकः [ १० ], अमात्यपुत्रः [ ११ ], चाणक्यश्चैव [ १२ ], स्थूबाजप्रश्च [ १३ ], नासिकसुंदरीनंदत्ति नासिक्यनानि नगरे सुंदरीनंदो वणिक् हवेत्रण गाथावके परिणामिकी बुझिना उदाहरण बतावे छे:अजय, शेव, कुमार, देवी, नदितोदय राजा, नंदिपेण साधु, धनदत्त, श्रावक, अमात्य,-शमक, अमात्यपुत्र, चाणक्य, स्थूलनद्र, नासिकनो सुंदरीनंद वैर, अने परिणामिकी बुद्धिवाळी. ४-५० श्री उपदेशपद. टीका. अजयकुमार, काष्टशेव, झुबककुमार पुष्पवती देवी, उदितोदय राजा, श्रेणिकनो पुत्र नंदिषेणसाधु, मुंसमानो पिता धनदत्त' श्रावक, अमात्य, शमक, अमात्यपुत्र, चाणक्य, स्यूसनद्र, नाशिक्यनगरनो सुंदरीनंद नामे वाणिो , वैर Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१४॥ [१४], वश्र इति वैरस्वामी [ १५ ] परिणामिकी बुद्धिरित्यनेन वाक्येनात्र परिरिणामिकीबुधियुक्ता ब्राह्मणी देवदत्ता च गणिका गृह्यते [ १६ ]. चलणाहण-आमने-मणी य-सप्पे य-खग्ग-यूनिंदे, परिणामिएबुछिएएमाई होंतु दाहरणा. ॥५१॥ [टीका] चरणाहननं १७, आमंड इति कृत्रिमामनकं १७, मणिश्च १ए, सर्पश्च २०, खग्गत्ति खड्गः २१, स्तूपेंजः २५–पारिणामिक्यां बुझौ एवमाश्यत्ति एवमादीनि नवंत्युदाहरणानि. एवं च पारिणामिक्यां बुखौ सूत्रोपात्तानि घाविंशतिज्ञातानि एतान्यपि स्वयमेव सूत्रकृता जणिष्यंते इति नेहाश्रितो विस्तरः . [३] ७ रोहानी कथा सांप्रतमुद्दिष्ठज्ञातानां स्वरूपं बिनणिषुरादावेव नरहसिलेतिज्ञातसंग्रहगाथां स्वामी, अने परिणामिकी बुद्धिवाळी ए शब्दे करीने हां ब्राह्मणी तथा देवदत्ता गणिका लेवी.. चरणाहनन, आमम, मणि, सर्प, खम्ग, अने स्तूपेंद्र-ए वगेरे परिणामिकी बुद्धिना नदाहरण छे. ५१ टीका. चरणाघात, आमंग एटले बनावटी आमलकफळ, मणि, सर्प. खा, अने स्तूपनो इंद्र-ए वगेरे परिणामिकी बुद्धिना उदाहरणो छे. आ रीते परिणामिकी बुद्धि पेटे सूत्रमा बावीश उदाहरण सीधां छे. एमनी पण सूत्रकार पोतेज व्याख्या करशे एटले शहां अमे तेनो विस्तार नथी करता. श्री उपदेशपद. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ११५ ॥ जरह सिल- मेंढ - कुक्कुत्यादिकां अष्टाविंशतिगाथा निर्व्याचष्टे : उज्जेणि सिल्लागा - बोयर रोह- समावसणंमि, पितिकोवेतर -गोहे5-बायाकदणेण मब्नुदओ. ॥ ५२ ॥ ( टीका ) मालवमंगलमरुणनूया नयर समुद्धुरधणो हा, नामेणं उजणी - समस्थिवि - सुरजणा. ॥ १ ॥ तत्थ रिपक्ख विक्खोहकार सगुणी सुदढपणओ; आसी जिस नामा - नरनादो नयगुणसाहो. ॥ २ ॥ सो जुंजई निरवजं - नियरजं चोकारगं जुवणे, धम्मत्थकामपुरिसत्य सुंदराराहणपहाणो - ॥ ३ ॥ नाडयनकहायगीयासु कोसलं परं पत्तो — कोऊदल तरलमणो - सविज्जजजोग्गकज्जेसु. ॥ ४ ॥ वे कहेला उदाहरणों स्वरूप बताववा खातर शरुत्र्यातमां जरह सिल मेंढकुकर ए आदि पदवाळी संग्रह गायाने वावी गाथाओवमे वर्णवी बतावेजेः नजेण । पासेना सिलागाममा रोहो नामे ढोकरो हतो. तेनी ओरमा तेने दुःख आपती तेथ। तेणें बापने पर पुरुष कही कोपमा परुयो बाद छाया बतावीने तेणीने मानीती करवी. ५२ मालव देशनी सणगार रूप, जारे धनवाळी अने मोटा देवमंदिरवाळी उज्जेणी नामे नगरी बे. १ त्यां दुइमनोना पहने तोकी नाखनार ' सदा गुणवान् ' दृढ प्रेमी अने न्याये वर्त्तनार जितशत्रु नामे राजा हतो. २ राजा धर्म अर्थ अने काम ए त्रणे पुरुषार्थने बरोबर शेवतो यको पोताना चोखा अने अचंबा नरेला राज्यजोगवतो हतो. ३ वळी ते नाटक, नृत्य, कथानक तथा गीत वगेरे विद्यावानजने योग्य कार्योंमां कुतुहुळना सीधे मन रा श्री उपदेशपद. Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २१६ ॥ ग्रह उज्जेसिमी अस्थि सिलासंग सिझागामो, गुणनिष्काश्यनामो - गामो, ज रहो च तत्थ नमो. ॥ ५ ॥ सो नामय विजाए - बद्धपसंसो बहूय तग्गामे, लामे रोहयो सोदयो य ग्रामस्त सु. ॥ ६ ॥ ग्रह अन्नया कयाइवि - रोहयमाया मया, तो रहो - मंतणणि संवेइ घरकज्जकरकए. ॥ ७ ॥ बालो य रोहयो साय - तस्स हीनपरायणा दवइ, उप्पत्तियबुद्धिसमन्निएण तो तेण सा लिया. - ॥ ८॥ अम्मा ममं न वट्टसि - जं सम्मं, सुंदरं न तं होरी, तह काह महं एत्तो--- ----जह तं मामेसि ॥ ॥ एवं वच्चर कालो - अहसाया सन्निपयासधवळाए रयणीइ जागसहिओ - पासुत्तो एगसिजाए. १० तो स्यणिमज्झनागे – उहित्ता उन्नए होउण, दहूण नियं बायं - काउं परपुरिससंकष्पं ११ उच्चसरणं जाओ --- उड खी मां खरी कुशळता पाम्यो हतो. ४ हवे उज्जेलीना पासे शिलाओथी जरायल शिल्लागाम नामे गुण निष्पन्न नामवो एक गाम हतो. त्यां जरत नामे नट रहतो. ए ते नाटय विद्याना सीधे ते गाममां बहु वखातो हतो. तेनो रोहिक नाम पुत्र हतो जे गामनी शोना वधारनार हृतो. ६ हवे एक वखते रोहनी मा मरी गई, त्यारे जरते घरनुं कामकाज करवातेनी बीजी मा आणी. ७ रोहो हजु नानो हतो तेथे ते ओोरमा तेनी हीला करवा लागी. त्यारे औत्पत्तिकी बुद्धिवाला राहातेीने कां के – ८ मा, तुं मारी साथे ठीक नथी वर्त्तती ते सारुं नहि यशे हुं एवं करीश के जेयी तुं मारे पगे परुशे. ए आ रीते वखत जातां एक वेळा जाळी राते रोहो पोताना बाप साथै शय्यामां सूतो हतो वामां मधरा ऊठी जयनीत यइ पोतानी छाया जोइ परपुरुषनो संकल्प धरी तेणे ऊंचा स्वरथी बापने जगादी कह्युं के पिताजी, जुवोचितो ऊठीने कोइक परायो माणस जाय छं. १०-११-१२ तेनो पिता निद्रा दूर क श्री उपदेशपद. Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ विय नासियो जहा ताय, पेक्खसु नरपुरिसो एस जाइ सहसुटिओ कोइ. ॥ १२ ॥ जाव स निदामोक्खं काकणं लोयणेहिं जोएइ, ताव न दिठो, पुट्ठो य-वला, सो कत्थ परपुरिसो? ॥ १३ ॥ भणिओ तेण श्मेणं-दिसाविनागेण तुरियतुरियं सोगवंतो मे दिछो-मा ममसु अमहा ताय. ॥ १४ ॥ परिकलिय नहसीलं-महिवं सिढिवा यरो तो तीए-नरहो सन्नावपयंपणारहिओ तो जाओ. ॥ १५ ॥ पळायावपरिगया—सा नासइ कुणसु वढ मा एवं, सो नण न मम लठं-वट्टसि, सा बेश् वहिस्सं.-॥ १६ ॥ तह कुणसु जहाएसो-तुह जणो मज्ज आयरं कुणइ, पमिवन्न मिमं रोहेण–सावि तह वहिन बग्गा. ॥ १७ ॥ तहचेव रयणिमज्जेकयावि सुत्तुष्ठिो नण जणगं, सो एस एस पुरिसो–कहिंति पुठो य पि नणावि. ॥ १० ॥ तो निययं चिय गयं-दंसित्ता नण पेबह श्मं ति, स विक्षरी आंखोयी जोवा माग्यो के कोइ देखायो नहि' त्यारे तेणे पूछयु के दीकरा, ते परायो माणस क्यां ने ? १३ रोहाए कडं के आ दिशा तरफ ते ऊतावळो थइने जतो में जोयो. हे पिता ए वात खोटी जाणोमा. त्यारे नरत पोतानी नवी स्त्री बगमेती धारीने तेनापर प्रीत ओठी करीने तेनी साथे खरेखरी वातचीतो नहि करतां वेगलो रहेवा लाग्यो १४ -१५ आयी ते ओरमां पश्चात्ताप करी रोहने कहेवा लागी के दीकरा आई म कर. ते बोल्यो के तुं मारी साथे सीधी 2 वर्तती नथी ते बोलीके हवेथी सीधी वतीश, पण एवं कर के जेथीए तारो बाप मारो आदर करे रोहाए तेम करवा कबूट्युब 2 अने ते पण तेना साथे सीधी वर्त्तवा लागी. १६–१७ बाद एक वखते मधराते तेज रीते सूतो ऊठीने ते बापने कहेवा । र लाग्यो बे आ रह्यो पुरुष. बापे पूछयु के ते क्यों डे ? १७ त्यारे तेणे पोतानीज गया बतावी कयुं के आ जुवोने. आयी श्री उपदेशपद. Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ क्खमणो जाओ-पुबन किं एरिसो सोवि ? ॥ १५ ॥ आमंति तेण नणिएअव्वो बालाण केरिसु हावा; इय चिंतिऊण नरहो घणरायो तीइ संजाओ.॥३॥तो विसपपाणनीओ-पिनणो सह रोहए सया जिमइ, अह नजेणि मश्गो -कयाइ जणएण सद्धिं सो. ॥ २१ दिट्ठा नयरी तियचच्चराश्देसोवसोहिया सव्वा, दिवसावसाणसमए–गामानिमुहं पमिनियत्ता. ॥ २२ ॥ सिप्पानईई पत्ता-वाबुयपुलिणंमि तो सुयं पवित्रं, पम्हुगहणहेनं-पुणोवि नयरिं गओ जणओ. ॥ २३ ॥ तो रोहेण अनिनणबुद्धिणा मि वा यापुलिणे, तियचच्चराइकलिया-लिहिया नयरी सपायारा. ॥ २४ ॥ अह जियसत्तू राया-नयरीबाहिं गो पमिनियत्तो, पंसुलए णेगागी--तुरयारूढो तहिं देसे-॥॥ जा वेइ तुरियवेगो-जणिो ता रोहवापे विनखा पी पूछयु के शुं ते वखते पण आवोज पुरुष हतो के ? १७ रोहाए हा पामी एटने वाप विचारवा बाग्यो के वाळकोना बोल ते केवा होय ! एम चितवी ते पोतानी स्त्रीपर घणो राग धरवा लाग्यो. २० त्यारे रखेने तणी विष आपे तेथी मरीने रोहो बापना साथेज हमेशां जमतो, वाद बापने साये एक वेळा ते नज्जेणीमां गयो. ११ तेणे त्रि त्वरना गम्थी शोजती सधळी नगरी जोइ. बाद सांजे तेओ गाम तरफ पाग वळ्या. २२ तेश्रो शिपानदीना रेताळ कांगपर आव्या. आ स्थळे रोहाने बेशामी तेनो बाप वीसरेनीचीज लेवा पागेनगरी तरफ गयो.५३ दरम्यान अतिनिपुण बुदिवाळा रोहाए त्यां रेतीमां त्रिकचोक वगेरेनी साये कोट किल्लावाळी नगरीनो नकशो चीतयों. २४ एवामा जितशत्रु राजा नगरीथी बाहेर गएको हतो ते धूळना जयथी एकमो घोमे स्वार थइ पागे वळतां त्यां आव्यो. २५ ते जेवो न श्री उपदेशपद. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ H AMROP गेण मा वच्च, पुरओ किं न नियबसि-रायनलं तुंगपासायं. ॥ २६ ॥ कत्तो रायनवं श्ह-जा जण नराहिवो तो जाओ-सनणो अश्लूरिगुणो-सवियको तो निवो जाओ. ॥ २७॥ तो रोहएण नयरी-सवित्यरं तं च रानलं कहियं, तुब्नंकत्य निवासो-भणिो रन्ना, तो नण-॥ २७ ॥ इत्येव सिखागामे-जरहस्स सुओ वसामि कजेण–पिउणा सद्धिं श्ह आगओम्हि, संपइ तहिं जामि. ॥ २॥ रमो पंचसयाई–मंती एगूणगाइं अह संति, जो चूडामणिसरिसो तेसिं तं मग्गए एकं. ॥ ३० ॥ तत्तो खणमेत्ताओ-काचं कजाई आगो नरहो, तेण समं संपत्तो –स रोहओ निययगामंमि. ॥ ३१ ॥ आरडं नरवणा--बुद्धी परिक्खणं तओ, तस्स, जणिो गामो बाहिं-सिला विसाल स्थिजा तीए-॥ ३२ ॥ मंमियपरिसतावळी चाल त्यांची पसार थवा लाग्यो के रोहाए तेने त्यांथा चालवा ना पामी अने कयु के आ जंचा महेलवाळा दर वारने केम तुं नथी जोतो. २६ राजाए कह्यु के श्हां ते दरबार क्याथी ? एवामां घणो सरस शकुन थयो तेयी राजा विचारमा पमयो. २७ त्यारे रोहाए त्यां चीतारेली नगरी तया विस्तारवाळो दरबार बताव्यो. राजाए पूज्युं के तुं क्यां रहेछ? रोहो बोल्यो के–२० पासेना शिक्षागाममां हुं जरतनटनो दीकरो रहुंचु. कामना माटे बाप साये यहां आवेलो बुं, अने हवे पाछो त्यां जान बुं. २ए हवे राजाने एक ऊणा पांचसो मंत्रि हता तेथी ते वधाना सरदार जेवा एक मंत्रिने ते शोधतो हतो, ३० एवामां तरतमांज जरत काम पतावी आव्यो एटले तेना साये रोहो पोताने गाम आव्यो. ३१ बाद राजाए तेनी बुद्धिनी परीक्षा करवी शरु करी. तेणे गामना लोकोने फरमाव्यु के बाहेर जे मोटी शिला ने तेनो ३५ आजुबाजु श्रीनपदेशपद. Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३२० ॥ रदेसं - मंरुव मुद्दमथंजपब्जारं, कुणदत्ति एव नणिए - गामो सो आली हूओ. ॥ ३३ ॥ पनिया जोयणवेला - स रोहगो नो जिमेइ पियरदियो, मामे विससंजोगं - विराहिया दाहिही जणी. ॥ ३४ ॥ ग्रह सो पसलवणो — उस्सूरसमागयं नाइ पियरं, मछं मदल्लवेला – छुदा पिवासापरस्स. ॥ ३५ ॥ सुहि सिपुत्त, दारुणेत्थ आणा समागया रतो, तो तीए वाढलमाणसा संजाय मुस्सूरं ॥ ३६ ॥ सुलियाए आाए - अवरहस्सेण तेण संवत्तं - गुंजह ताव जहिचं - पच्छा जुत्त करिस्सामि ॥ ३७ ॥ जुत्तु त्तरेण जणिओ - सो गामो रोहण जह खणहदेहा सिलातलं तह - थंने उत्यंनए देह ॥ ३८ ॥ एवं विदिए संते —स मंगवो सि तत्क्खणं जाओ, आवेश्यो य रो— कद केण कयो ? निवो जणइ ॥ ३० ॥ जनको करीने ऊंचा थांजलावाळो मांरुवो बनावो. आ रीते राजाए फरमाव्याथी ते गाम मुंकाइने आकुळ थइ परुयो. ३३ हवे जमवानो वखत थयो, पण बाप वगर रोहो जम्यो नहि केमके ते करतो हतो के रखेने तेन। ओोरमान मा खीजेली थने तेने विष आप देशे. २४ वाद असूरे तेनो बाप आव्यो एटले ते हसते चहेरे कहेवा लाग्यो के हुं घणो वखत थयों भूख तरसथी हेरान बुं. ३५ बापे कर्तुं के दीकरा तुं सुखी छे, वाकी अमने तो इहां राजानी बहु मुश्केलआशा आवी े तेय। तेमां मुंजाइ पड्या बीए तेथी सूरुं ययुं छे. ३६ ते आज्ञा सांजळतां रोहो तेनुं रहस्य समज बोढ्यो के पहेला खूब जमी ढ्यो पछी ठीक हशे ते करीशुं. ३७ जम्या पछी तेणे गामना लोकोने कनुं के शिलान नीचे खोदाने थांजलाना ठेका देता आवो. ३८ तेम करवायी तेओए तरतमां ते मांगवो तैयार करी राजाने जान्युं. राजा क के ए शीरीने को तैयार कर्यो ? ३५ तेश्रो बोल्या के भरतना पुत्र रोहानी बुद्धिना प्रतापे अमे नी श्री उपदेशपद. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २२१ - तलभूमीखणणेणं – थंजयनत्थंजणेण य को सो, नरहतणयस्स रोहगनामस्स मइप्पनावे. ॥ ४० ॥ विदिओ संवाओ से - अन्नं आणि संनिहियं, इय रोहगस्स बुद्धि – नणिया उप्पत्तिया नाम ॥ ४१ ॥ एवं अन्नसुवि मेंढगाइ नासु जोया कज्जा, उप्पत्तियबुद्धिए - जा एयकहापरिसमत्ती ॥ ४२ ॥ अथ पूर्वोक्तसंग्रहगाथाचतुष्टयस्याङ्करार्थः – उज्जे एसिलागामे— गेयररोह हम मानवसणं मि—पितिकोवेतर गोहे - बायाकदए मन्नुद. ॥ २ ॥ पितिसम मुज्जेणीगमणिग्गम पम्दुष्णदिणियत्तणया, सइदिट्ठनयरिविणं - राय णिसेहो घिरं मि. ॥ ९३ ॥ पुन्हा साहु निमित्तं - मंतिपरिछा सिलाइमं वए, यादोसुं चेनी जमीन खोदी यांजलाना टेका दइ तैयार कर्यु बे. ४० त्यारे बीजा पासे ऊनेलाने पूरी राजाए ते वात नक्की करी. एम रोहानी बुद्धि ते औत्पत्तिकी जावी. ४१ एम ए रोहनी कथा पूरी थाय त्या लगण मेंढा वगेरे दृष्टांतामां औत्पत्तिकी बुद्धिनी योजना करी लेवी. ४२ हवे पूर्वे की चार संग्रहगाथानो अक्षरार्थ करीये बीये. उज्जे पासेना शिलागाममां रोहो नामे छोकरो हतो तेने तेनी ओरमा दुःख प्रापती तेथी तेणे तेना, बापने परपुरुष कही कोपमां पामयो बाद बाया बतापी तेने संतुष्ट कररी माने मानीती करावी. ए२ ते बाप साथे उज्जेणी जइ पाठो वळयो. कंइ काम वी सर्याय । तेने नदी पर मेली बाप पाछो गयो. तेणे एक वार दीवेली नगरी प्रोलखी, त्यां ओळखेला राजकुळमांथी पसार थता राजाने अटकाव्यो. ५३ राजाए पूछयुं एवामां सारो शकुन थयो. मंत्री श्री उपदेशपद. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२२॥ पितिनुंज गमणखणणेगणनो उ. ॥ २४ ॥ कहणे चालण संबद्धनासगो तसि अमहा सेयं, माणुसमेत्तस्सुचियं–तयपुत्रण पुन्च रोहेणं. ॥ ५५॥ (टीका)-नजयिन्याः समीपे शिलाग्रामे-जोयररोहत्ति करो मृतस्वमातृकः रोहकनामा नरतसुतः समजूत. तस्यच अन्यमात्रा व्यसनेऽसम्यगुपचाररूपे कियमाणे सति पितुः कोप इतरश्च संतोषोऽन्यमातृगोचर एव तेन संपादितः कथमित्याह-गोहस्य परपुरुषस्य प्रथम, पश्चात्स्वदेहबायाया गोहत्वेन परिकल्पितायाः कथनेन पितुर्निवेदनेन ततोज्युदयः सम्यगुपचाररूपोऽन्यमात्रासंपादितोस्य.(७)॥१॥ पित्रा सममुज्जयिनीगमो रोहकस्य कदाचिदभूत्. तदनु दृष्टोजयिनीवृत्तांतस्य करवा माटे राजाए तेनी परीक्षा करवा शिलानो मांझवो करवा हकम कर्यो.लोको अाकुळ थतां रोहनो बाप असूरो जमवा आव्यो बाद खोदीने थांजला लगामवानी रोहाए सलाह आपी. ते प्रमाणे मांझवो तैयार थतां राजाने ते वात कोइए कही एटने राजाए तेमां शक दर्शाव्यो के तुं असंबद्ध बोलनार छे. तेणे कयु के नहि, ए वात एमज जे. राजाए कां शुं मनुष्य एवं काम करी शके ? बाद तेने नहि पूछतां बीजाने पूछी जोयुं तो तेणे पण कयुं के ए काम रोहाए कर्यु जे. ए४-५ टीका-उजेणी पासेना शिलागामामांगेकरो एटले मरेनी मावाळो रोहो नामे जरतनो दीकरो हतो. तेने ओरमाए पुःख आपतां तेणे बापने मा तरफ कोप तथा संतोष कराव्या. ते शी रीते ते कहेछ- पहेला गोह एटले परपुरुष आव्यो कयो बाद गोहरूप कल्पेली पोताना शरीरनी छाया वतावीने तेम करता तेनी मा तेनी रूमी रीते चाकरी करवा लागी. १ नाप साथे रोहो एकवेळा उज्जेणी गयो. बाद त्यांनो वृत्तांत जोइ ते वाप . साथेज पागे वळ्यो. तेवामां AAN श्री उपदेशपद. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३ निर्गमः पित्रैव सह. ततः पम्हुत्ति विस्मृतस्य कस्यचिदर्थस्य निमित्तं-णइनियत्तणया इति नदीपुलिनात् पित्रा निवर्त्तनं कृतं. तत्रच सकृदृष्टनगरीलेखनं रोहकणतदनु तद्देशागतस्य राज्ञो निषेधो निजगृहे आलिखितराजकुलमध्ये प्रविशतः सतः कृतः . (७)॥॥ ततो राज्ञा पृष्ठा कृता. अत्रांतरे साधु निमित्तं शोलनशकुनपरूं संजातं. तदनु -मंतिपरिवा इति मंत्रिपदनिमित्तं तस्य परीक्षा प्रारब्धा यथा शिखाया मंझपः कार्यः ततः-आदोसुत्ति आकुत्रेषु ग्रामवृष्षु सत्सु–पिलुजगमणत्ति रोहकपितुर्नोजनार्थमुत्सूरे गृहगमनं संपन्नं. ततो रोहकबुद्ध्या खनने संपादिते एकमहामूलस्तंनः शिलामंझपः संपादितः. तुः पादपूरणार्थः (७)॥३॥ ततो रास्तद्ग्रामवासिना केनचित् कयने कृते सति-चालणत्ति चालना कोई काम नूनी जवायी नदी किनारेथी बाप पाछो वळयो. दरम्यान त्यां रोहाए एकवार जोयत्री नगरी चीतरी. बाद ते ठेकाणे राजा आवी तेणे चीतरेखा राजमहेलमा पेशवा लाग्यो एटले तेणे तेने अटकाव कों. ५ ___बाद राजाए परपूछ कररी एवामां सारं शकुन थयु त्यारे मंत्रिपदना माटे तेनी परीक्षा करवा मांझी. तेणे हुकम कयों के शिलानो मांझवो बनाववो. आथी गामना मुखीओ आकुळ थतां रोहानो बाप मोमो जमवा आव्यो. बाद रोहानी अकनायी जमीन खोदीने तेमणे एक मोटो मूळयंजवाळो शिलामंझप तैयार कर्यो. तु शब्द पादपूरणार्य छे. ३ पछी राजाने ते गामना कोइक रहीशे ते वात कही त्यारे तेणे शक लावा कयुं के तुं जूतुं बोलनार . पेक्षा श्री उपदेशपद. Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४॥ विहिता पार्थिवेन यथाऽसंबछनाषकस्त्वमसि. तेनाप्युक्तं अन्यथा नेदं. ततोलूजुजा काक्वा प्रत्यपादि-माणुसमेत्तस्सुचियंतिमानुषमात्रस्योचितं किमेवंविधार्थकरणं? ततः तदपुचण पुत्ररोहेणंति तस्य प्रथमनिवेदकस्य पुरुषस्याएबनेन तमपृच्छयमानं कृत्वेत्यर्थः अन्यस्य कस्यचिन्मध्यस्थस्य पृच्छा कृता. तेनाप्यावेदितं यथा रोहकेणा यमाश्चर्यजूतो मंझपः कारित इति. (७)॥४॥ ___ अथ मेंढेति द्वार:-तत्तो मेड्ढगपेसण-मएणूणाहिय मह द्वमासेण, जवसविगसणिहाणा-संपामण मान एयस्स. ॥ २६ ॥ (टीका)-ततस्तदनंतरं मेढकप्रेषणं मेढकस्य मेषस्य प्रेषणं कृतं राज्ञा ग्रामे, नक्ताश्च ग्रामवृद्धा यथासु मम मेषमन्यूनाधिकं च धारयध्वं अथार्षमासेन समर्पा माणसे कह्यु के ना ए वात एमज छे. त्यारे राजा काकु करी बोल्यो के शुं मनुष्य प्राणी आवं काम करी शके के ? बाद ते माणसने डोकी बीजा कोइ मध्यस्थ माणसने पूछयु एटो तेणे पण जणाव्युं के रोहाएज आ चमत्कारिमांझवो कराव्यो . हवे मेंढार्नु घार कहेछे. वाद मेंढो मोकलावी कडं के अर्ध मास लगी तेने अन्यूनाधिक राखवो. त्यारे घास अने वरु सामे राखी ते प्रमाणे करवामां आव्यु. ५६–टीका-बाद राजाए मेंढो (बकरो ) मोकलावीने गामना मुखीओने कह्यु के आ मारा बकराने वैजनमां कणो अधको न थाय तेम राखीने पंदरमे दामे पागे मोकलावजो त्यारे तेमणे रोहानी सलाह प्रमाणे तेने लीखं घास खावा आपी तेना सामे वरु नामे जंगली जानवर बांधी राख्यो ए रीते हुकम बजाव्यो. कारण के ते ब श्री उपदेशपद. Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५॥ येध्वमिति. ततस्तै रोहकादिष्टैर्यवसवृकसन्निधानात यवसस्य यवहरितकलक्षणस्य वृ. कस्यचाटव्यजीवविशेषस्य समीपस्थानात्-संपामणत्ति संपादनं-मो नत्ति पादपू. रणार्थः-एतस्यादेशस्य कृतं. मेंढो हि यवसं चरन् यावद्वज्ञ बनते, सततं वृकदर्शनोत्पन्नजयात्तावदसौ मुंचतीति अन्यूनाधिकबलता संजातास्येति. () ५ ___अथ कुक्कुत्तिघारं-जुज्मावेयव्वो कुक्कुमोत्ति यमिकुक्कुडं विणा आणा, आदरिसगपमिबंबप्पोगसंपादणा णवरं. ॥ ७ ॥ (टीका )-योधयितव्यो युद्धं कारणीयोयं मम कुक्कुटस्ताम्रचूमः, इतिशब्दो जिन्नक्रम उत्तरत्र योज्यते-प्रतिकुक्कुटं द्वितीयकुक्कुट विनांतरेण इत्येषा आज्ञा राज्ञा प्रहिता. तत आदर्शके दर्पणे यन्निजमेव प्रतिबिंब प्रतिकुक्कुटतया संन करो घास खाइ जेटलुं बळ मेळवतो तेटवं हमेशां सामे देखता वरुना जयथी खोइ देतो ए रीते तेनुं बळ वजन वधघट २ नहि थतां सरखं रह्यु. एहां मोन ए पद पादपूराणार्थे जे. ५ _ हवे कूकमानुं धार कहे छ.-राजाए हुकम कयों के सामा कूकमा विना कूकमाने समाव. त्यारे फकत आरीसामांनुं प्रतिबिंब बतावी ते हुकम पूरो पाड्यो. ५७ आ मारा कूकमाने वीजा कूकमा विनाज समाव एवी राजाए आज्ञा मोकशावी. त्यारे रोहाए आरसामां तेनुं जे प्रतिबिंब परतुं अने तेने ते सामेनो हरीफ धारतो ते ज फकत बतावीने ते आझा पूरी करी, नहिके बीजो कोई प्रयोग कर्यो. केमके कूकमो जोळो होवाथी पोताना प्रतिबिंबने हरीफ धारी नारे मत्सरथी उत्साह पूर्वक तेना साये - श्री उपदेशपद. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नावितं तेन–तस्य प्रयोगो व्यापारः तेन संपादना घटना आझायाः कृता रोहकेण-नवरं केवलं नान्यप्रयोगेणेत्यर्थः स हि मुग्धतया निजप्रतिबिंबमेव प्रतिकुक्कुटतया संजावयन् संपन्नतीमत्सरतया संजातोत्साहो युध्यति नच कथंचिद्लज्यते इति. (७) ॥ ६ ॥ तिबसममाणगहणं-तिलाण तत्तो य एस आदेसो, आदरिसगमाणेणं-गहणा संपाडण मिमस्स. ॥ ७ ॥ _ (टीका) तैत्रसमेन मानेन ग्रहणं तित्रानां-इदमुक्तं जवति-येन मानेन मदीयानेतांस्तिवान् कश्चिद्गृह्णाति तेनैव तैलमप्यस्य दातव्यं, आत्मवंचना च रक्षणीया.-ततश्च पूर्वोक्तादेशानंतरं पुनरेष आदेशः प्रेषितो महीपालेन. रोहकबुध्या च आदर्शकमानेन दर्पणलक्षणेन प्रमाणेन ग्रहणात्तिलानां, उपलक्षणत्वात्तैनप्रदानाच्च संपादनमस्यादेशस्य कृतं ग्रामवृकैः मतां कोइ रीते जागतोज नथी. इहां इति शब्द जिन्नक्रम तेथी आज्ञा शब्दना पछी ते जोमवो. ६ ___ बाद हुकम कयों के तेवना मापे तन्त्र ल्यो, त्यार आरीसाना मापे ते लइ हुकम बजाव्यो. ए७ टीका-तेवना जेवा माने की तन सेवा एटने के जे मापवो मारा आ तन्त्र कोइ ट्ये तेणे ते न मापवळे एनं तेल पण आपवं अने पोते वगावं पण नहि.-एम प्रथमना हकम बाद आ हुकम राजाए मोकव्यो. त्यारे गामना मुखीओए रोहानी सलाहथी दर्पणवमे तनो बा तेल आपीने हुकम बजायो, केमके दर्पणंयी तन्त्र लेतां अने तेन दे श्री उपदेशपद. Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२७॥ आदर्शकेन हि तिक्षेषु गृह्यमाणेषु दीयमाने च तैसे ग्रामेयकाणां न कदाचिदात्मवंचना संपद्यते, यदि परं तिलस्वामिनो राज्ञः (७) ॥ ७ ॥ वा गवरहाणत्ती-अदिट्टपुवोत्ति देहपमिबंद, किं एस होइ कत्थर, नणह, श्मं जाणइ देवो. ॥ एए॥ (टीका)-ततो वाबुकावरहस्य सिकतामयवरत्रावकणस्य आज्ञप्तिराज्ञा, दत्ता राज्ञायया-चाबुकावरहकः कूपसनिलसमुद्धरणार्थमिह प्रेषणीयाः रोहकव्युत्पादितैश्चतैनणितं---यथा-ऽदृष्टपूर्वोयमस्माकमीशो वरहकः इत्यस्मात्कारणात दत्त समर्प यत देव यूयं प्रतिच्छदं वाबुकावरहकप्रतिबिंबकं. एवमुक्तो राजा प्रतिनणति यथा -किमेष प्रतिच्छंदो नवति कुत्रापि इति जणत यूयमेव ग्राम्याः. ततो रोहकशिक्षितैरेव तैरुक्तं-यथेदं वालुकावरहकः कुत्रापि नवति नवेत्येवंरूपं वस्तु जानाति देवः (छ)॥॥ AA तां गामझीयाोने केइ नुकशान थतुं नयी, वाकी तमना मालिक राजाने नुकशान थाय खरो. ७ वात्रुकानी वाधर मोकलवानो हुकम कर्यो. गाममियाओए कह्यु ए अमे जोइ नथी माटे नमूनो मोकलो. राजाए । कयु शुं नमुनो क्या पण थाय छे ते जाणोछो के ? तेश्रो वोट्या के ते तो तमेज जाणोगे. एए टीका-बाद रेतीनी वाधरनो हुकम राजाए कर्यो एट्ले फरमाव्युं के कूवामांथी पाणी कहामवा माटे रेतीनी 3 ॐ वाधर बनावी हां मोकझावो त्यारे रोहाए शीखवेळा गाममियाओए कयु के एवी वाधर अमे अगान जोइ नथी तेयी तमे एनो नमूनो मोकनावो. आम कहेतां राजा बोल्यो के झुं एवो नमूनो कोइ ठेकाणे थाय ने ते तमे जणावो. त्यारे रो हाए शीखवेना तेओ बोल्या के रेतीनी वाधर थाय छे के नहि ते वात आपज जाणो बो ७ श्री उपदेशपद. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २२८ ॥ अप्पानहत्यित्र्यप्पण – पत्ति अणिवेयणं च मरणस्स आहारादिनिरोहापतिको पदो. ॥ ६० ॥ ( टीका ) - ततः - अप्पानहत्थियप्पत्ति अल्पायुषः पारप्राप्तप्रायप्राणस्य दस्तिनो गजस्यार्पणं ढौकनं तेषां राज्ञा कृतं – इदं चोक्तं — यथा — प्रयुक्तिर्वार्त्ता प्रति. दिनमस्य देया — निवेदनं चाकथनमेव मरणस्य - एष मृतः सन्न कथनीय इत्यर्थः. तथेति प्रतिपन्नमेतत्तैः अन्यदा च मृतो हस्ती. व्याकुलीभूतश्च ग्रामः . रोहकादेशेन आहारादिनिरोधात् आदारादिनिरोधमाश्रित्येत्यर्थः प्रयुक्तिकथनेन प्रतिनेदः प्रत्युत्तरं ग्रामेण कृतं. – यथा देव, युष्मदीयो हस्ती - नो जानीमः किं तत्कारणमद्य नोत्तिष्टति, न निषीदति, न समर्पितमपि चरणं चरति, जलंच न पिबति, नोआयुषवा हाथी आपी फरमायुं के खबर आपो पण मरण न जावो. त्यारे आहारादिकनी मनाइ जणावी खबर मोकली जवाब वाळयो. ६० . टीका - बाद राजाए तेमने मरणतोल हाथी मोकझावीने कछु के दररोज एनी खबर देवी पण ए मरे ते न कहवं. ए वात ते कबूल राखी. बाद हाथी मर्यो के गाम मुकायो. त्यारे रोहनी सलाहथी प्रहारादिक मोकलवानीना जणावीने खबर आप्या साये उत्तर मोकब्युं के हे देव, तमारो हाथी कोण जाणे शा कारणायी आज ऊठतो नथी, बेशतो नथी, आलो चारो खातो नथी पाणी पीतो नथी, उश्वास निःश्वास लेतो नथी, आंखोथी जोतो नथी ने पू वगेरे ही - लवतो नथी. त्यारे राजाए कछु के शुं ते मरी गयो ने के? तेयो बोल्या के आवी हकीकत होतां जे थाय छे ते आप श्री उपदेशपद. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 290 11 च्छ्छ्वसिति, न निःश्वसिति नाकिन्यां निरीक्षते, नच पुच्छादि चालयतीति ततो भूमीभुजोक्तं - किमसौ मृतः ? तैरुक्तं - एवंविधव्यतिकरे यद्भवति तद्देवएव जानाति, किंवग्रामीण विद्मः. (५) ॥ ए॥ --- आह सगं अगडं - उदगं मिहंति मी आणाए, आरागोत्ति पेसह - कूविय माकरण मित्त. ॥ ६१ ॥ ( टीका ) -- तत आनयत स्वकमवटं कूपं अत्र, कुतः, - उदकं जलं तत्संबंधि मिष्टं मधुर मित्यस्माद्धेतोः . - अत्रहि नगर्यामतिसंभारजनवासवशेन कालादिरससंक्रमाद्विरसानि कूपजलानीति कृत्वा ग्रामावटानयनमादिष्टं जवता मिति. अस्यामाज्ञायां पतितायां सत्यां तैर्ग्रामेयकैः आरण्यको ऽरण्योद्भवोऽज्ञ इत्यर्थ; इत्यस्माद्धेतोः प्रेषयत एतदाकर्षिकां कूपिकां नगरी संबंधिनीं सुदक्षामेकां, तेन तदनुमाजाणो, अगामीया शुंजा लिये ? मी पाणी होवाथी तमारो वो इहां लावो एवो हुकम थतां तेमणे कछु के ते जंगली होवाथी तेने खंचनारी तमारी वामी मोको. ६१ टीका — बाद तमारो कूबो इहां लावो केमके तेनुं पाणी मीतुं छे, एटले के अहीं नगरीमां गीच वस्तीना कारणे खातर वगेरेनो रस जवाथी कूवाना पाणी बगमी गयां बे तेथी गामकाना कूवा लाववानुं तमने फरमायुं बे. आ हुकम थतां ते गामीया ते आझा ए रीते अटकाव के अहींनो कूवो जंगली बे माटे तेने खेचना। तमारी नगरी नी एक सारी वाव मोकलावो के तेना मार्गे लावीने मारो कूवो नगरी तरफ यावे. मतलब के राजा जेम वावकी न श्री उपदेशपद. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ गबग्नोऽसावस्मदीयकूपः-पुरीं समन्येतीति. अनेन प्रकारेण निवर्तनमस्या आशायाः . यथा न राजा कूपिकां प्रेषयितुं पटुस्तयातेऽपि स्खकमवटमित्यनपराधतैव तेषामितिनावः . (७)॥ १० ॥ ___ गामा वर वणसं-पुव्वं कुणहत्ति सीयय इमं तु, तत्तो वरेण उवणं तेण निवेसेण गामस्स. ॥ ६॥ . टीका-ततः ग्रामात् अपरस्यां दिशि यो वनमस्तं पूर्व पूर्वदिग्नागवर्त्तिन ग्रामात् कुरुत इत्येवंरूपायामस्यां च नृपाझायां पुनः इदं त्विदमेव वदयमाणलक्षणमुत्तरं तैः कृतं, यथा ततो वनमादपरेण पश्चिमायां दिशि स्थापनं कृतं तेन निवशेनैवाका रेणेत्ययः ग्रामस्य. एवंहि कृते पूर्वेण वनषमो ग्रामात्, अपरेण ग्रामश्च वनखंमात् संपन्नः . (छ) ॥ ११ ॥ मोकनी शके तेम तेश्रो पण पोताना कूवाने मोकनी शकता नथी माटे तेश्रोनो तेमां वांक नथी. १० गामनी पश्चिम बाजुना बगीचाने पूर्व बाजुपर करो आम हुकम थतां तेमणे आ ज काम कर्यु के ते बगीचाथी पश्चिम तरफ गामने जे आकारमां ते हतो ते आकारमा वसाव्यु. ६२ टीका.--पाट गायी पश्चिम दिशामा जे बगीचो तेने गामथी पर्व दिशामां कोरीतनी राजानी आका थतां पानीचे प्रमाणेज तेश्रोए काम करीने जवाब वाळयो ते ए के जे आकारे गाम हतो तेज आकारे ते बगीचाथी श्राथमणी बाजुए तेने वसाव्यु. एम कर्यायी गामन। पूर्वे बगीचो थयो अने बगीचाथी पश्चिमे गाम थइ रह्यो. ११ श्री उपदेशपद. Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३१॥ अग्गिं सूरं च विणा-चाललखीरेहि पायस कुणह, आदेसे संपामण-मुक्कुरुमुम्हाइ एयस्स. ॥ ६३ ॥ (टीका)अग्नि वैश्वानरं सूरं चादित्यं विना अंतरेण—चाननखीरेहिंति -चानतदारैः चानस्तंमुवैः वीरेण च पयसा पायसं परमान्नं कुरुत. अस्मिन्नादेशे राजाज्ञारूपे आपतिते सति संपादनं कृतं, कथमित्याह-नत्कुरुटिकोष्मणा नकुरुटिका नाम बहुकालसंमिलितगोमयादिकचवरपुंजस्तस्योष्मा नष्णस्पर्शवक्षण स्तेन एतस्यादेशस्य. रोहकादिष्टैस्तैर्निविझ मृन्मयत्नाजनं मध्यनिक्षिप्तसमुचिततंउन उग्धं विधायागाधे नत्कुरुटिकाक्षेत्रे निक्षिप्तं. ततः कतिपयप्रहरपर्यंते सुपक्चं पायसं संजातं राज्ञश्च निवेदितमिति. (७). ॥१२॥ “एमाइ रोहगाओ-मं ति नाऊण आणवे राया, आगबन सो सिग्धं आग अने सूर्य वगर चोखा अने दूधयी दूधपाक करो एम हुकम थतां ऊकरमोनी वाफ के ते बनाव्यो. ६३ __टीका.-आग अने सूर्य वगर चोखा एम दूधवके दूधपाक करो. आ हुकम थतां ऊकरकी एटो घणा काळथी। एकग करेला छाण वगेराना कचर ने ढगलो तेनी वाफथी ते हुकम बजव्यो. एटो के रोहानी सलाहथी तेमणे माटीनू मजबूत वासण लइ तेना अंदर दूध चोखा जरी ऊमा ऊकरमामा दाटयु. बाद केटशाक पहोरे ते बरोबर पचीने दूधपाक ययुं एटले राजाने खबर आपी. १५ श्री उपदेशपद. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २३२ ॥ परिवतो इमे थाने. ॥ ६४ ॥ ( टीका ) - एवमादि शिलामंरुपसंपादनप्रभृति रोहकात्सकाशादिदं पूर्वोक्तं कार्य संपन्नमित्येवं ज्ञात्वा आज्ञापयत्यादिशति राजा जितशत्रुः कथमित्याह. - तु मम समीपे स रोदकः शीघ्रम विलंबमेव परं परिवर्जयन् परिहरन्निमानि स्थानानि एतानर्था नित्यर्थः ॥ १३ ॥ " तान्येवाद.—पक्खडुगं दिणराई — बाउण्डे बत्ताद पहुम्मग्गे, जाणचलणे य तह हामलगो सदा ग. ॥ ६५ ॥ (टीका ) - पाकिं शुक्लकृष्णपक्षघ्यलक्षणं, दिनरात्री प्रतीतरूपे, बायोष्णौ बायामात पानावरूपामुष्णं च चंमकर किरणलक्षणं, उत्रननसी बनमातपवारणं नवगेरे सघळां कामो हाथी थया जाए। राजाए फरमाव्यं के रोहाए नीचे प्रमाणे स्थानोनो परिहार क रीने इहां जलदी व. ६४ ए टीका. - ए वगेरे एटले के शिक्षामंरुप बनाववा वगेरे ए पूर्वे कलां कामो रोहा मारफत थया के एम जाणीशत्रु राजा फरमाव्यं के ते शहाए मारा पासे वगर विसंबे यावं, पण आ स्थानो एटले वातोने परि हरतां वj. १३ ते बाबत बतावेळे - बे पक्क, दिनरात, छाया तमको, नत्र आकाश, मार्ग उन्मार्ग, यान चलन, तथा स्नान मबिन, एटलायी अन्यथा यइने आव. ६५ टीका - पटले सुदिवदि, दिनरात छाया एटले तमकानो अभाव ने उष्ण एटले सूर्यना किरण, छ श्री उपदेशपद. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश्व शुधमाकाशं, तथा पंथा मार्ग उन्मार्गश्चोत्पथः मार्गमुन्मार्गच परिहत्येत्यर्थः, यानचलने च यानं गंठ्यादि चलनशब्देन चरणचेष्टा परिगृह्यते ततस्ते परिहत्येत्यर्थः, तथाशब्दः समुच्चये, स्नानमलिनकः स्नाने सत्यपि मलिनको मलिनदेहः स्नातो मसाविलकलवरश्च सन्नित्यर्थः, अन्यथा पदध्यादिपरिहारवता प्रकारेणागच्छतु मत्समीपमिति. (छ) ॥ १४ ॥ ततोऽसौ रोहक एवमाज्ञापितो नरपतिना तदादेशसंपादनार्थमागंतुं प्रारब्धः-यथा, ___ अमवस्सासंधीए-संझाए चकमज्झनूमीए, एमक्कगाइहांगो हादिं च कानण संपत्तो. ॥ ६६ ॥ ___(टीका)-इह चंद्रमासस्य छौ पनौ, तत्राद्यः कृष्णो द्वितीयश्च शुक्लः, तत्र च कृष्णपक्षोऽमावास्यापर्यंतः शुक्लश्च पौर्णमासीपरिनिष्टितः ,-एवंचामावास्या 3 एटो आतपत्र अने नजर एटो खुट्यो आकाश, मार्ग अने जन्मार्ग तथा यान एटले गामी वगेरे अने चान एटले पगे चालवु ते ।। ए वधानो परिहार करीने अने स्नान कर्या उतां मेला शरीरवाळो रहीने अन्यथा एटले ए सघळा प्रकार परिहार करीने मारी पासे तेणे आव. १४ हवे रोहाने राजाए आ रीते फरमावतां ते तेनो हकम बजाववा माटे आ रीते आववा लाग्योःअमासनी संधिमां सांजना वखते वे पैमानी वचेनी जमोनमां थाने घेदो वगेरे बइ अंगोमी करीने त्यां आव्यो.६६ र टीका-हां चंद्रमासना बे पक्ष थाय नेत्यां पहेलो कृष्ण अने बीजो शुकझ. त्यां कृष्णपक्चना बेमे अमा श्री उपदेशपद ३० Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३ ॥ पक्षसंधितया व्यवह्रियते, पौर्णमासी च माससंधितया, ततोऽमावास्यैव संधिरमावास्यासंधिरतनपक्षात्यंतसन्निधानलक्षणस्तस्मिन् संप्राप्त इति योगः,-एवंच किव तेनपतघ्यं परिहृतं नवति. संध्यायामादित्यास्तमयलक्षणायां, अनेन दिनरात्रिपरिहारः .-चक्रमध्यनूम्या चक्रयोगत्रीसंबंधिनोर्गबतोर्या मध्यनूमिःप्रसिद्धरूपा तया,-एतेनापग्रमार्गपरिवर्जनं-सोहि न पंथा नाप्युत्पथः .–तथा एमक्कगायणंगोहलिं च काउत्ति एमक्कादिना एमकेन आदिशब्दादिनावसानसंजूतातपेन चालनिकाउत्रेण चोपलक्षितः सन्, ---अनेन यानचक्षनयोगयोग्णयोःउत्रननसोश्च परिहारो विहितः . -अंगोहनि मंगाववासनं-चः समुच्चये----कृत्वा विधाय, सर्वांगप्रक्षालने हि स्नानमिति लोवास्या आवे ने अने शुकझपकना से पूनम आवे ने. एथी अमावास्या ते पानी संधिरूपे गणाय छे, अने पूनम ते मास नी संधि गणाय छे. तेथी अमावास्या संधि एटो के आगन्ना पानी अमोअमनो दिवस आवे. छते ते त्यां आव्या. एम करतां तेणे व पक्कनो परिहार को साबित था शक जे. . संध्या वखते एटने सूर्य आयमती वेळाए, आय दिनरातनो परिहार कॉ. चक्रमध्य नूमिमां चालीने एटा के गामीना वे पैमा चाझे तेनी बच्चे जे जमीन रहे ते रस्ते, ए हो करीने मार्ग उन्मार्ग परिहार कर्या गणाय-केमके तेमाग पण न गणाय अने उन्मार्ग पण न गणाय. तथा एमकक एट्ले घेटापर चीने अने आदिशब्दथी दिवसना छ में रहेला तमकामां तथा चालणीने त्र तरीके धरीने ते अोलखवा लाग्यो.-एणे करीने यानचान, गया तमको तथा त्र अने आकाशनो परिहार कर्यो. तेमन अंगोमो एटने के अंगप्रकासन करीने ते आव्यो. केमके लोकमां बधां अं श्री उपदेशपद. Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५॥ करूढिः-शिरः प्रकासनपरिहारेण चांगाववासनं. ततो अंगाववासनमात्रे कृते न । स्नातो नापि मलिनकः-संप्राप्तो राजनवनझारे. (७) ॥ १५॥ राजनवनधारप्राप्तेन च तेन "कयं रिक्तहस्तो राजानं प्रदयामि यत इत्यं नीतिविचनं,-रिक्तहस्तो न पश्येत्-राजानं देवतां गुरुमिति, नच नटानामस्माकमन्यत् पुष्पफलादि राजोपनयनयोग्यं मंगलभूतं किंचिदस्तीति विचिंत्य पुढवीदरिसणविनखंजलीइ घेत्तु नरिंदवंदणया , आसणदाणावसरे-चपाढो मणहरसरेण. ॥ ६७ ॥ (टीका)—पुढवीदरिसणत्ति पृथिव्याः कुमारमृत्तिकालदणाया दर्शनं पश्यतः सतो राज्ञः प्रयोजनं विपुलांजलिस्थितायाः तेन कृतं. घेत्तुं नरिंदवंदणया इति ततो ग पखाळवा ते स्नान गणाय छे अने मायुं नहि पखाळतां वाकीना अंग पखाळवा ते अंगोमी गणाय डे, तेथी अंगोमी करतां नहि न्हायो नहि मेस्रो गणाय.-ए रीते थइने ते राजमंदिरना दरवाजे आवी पहोच्यो. १५ तेणे राजमंदिरना दरवाजे ऊना रही विचार्यु के खाली हाये राजाने केम जोनं जे माटे नीतिवाला एम कहे छ A के राजा, देवता अने गुरुना खाली हाये दर्शन न करवा. परंतु अमो नटोना पासे कंद फूल फन वगेरे राजाने जेटणा योग्य मंगलरूप चीज होय नहि एम धारीने तेणे पहोली अंजलिमां पृथ्वी वतावी, तेने अपने राजाए तेने नमस्कार को. बाँद सिन देवा वखते रोहाए मनोहर स्वरथी चटुपाठ कयों. ६७ टीका-पृथ्वी एटख्ने कुंवारी माटी पहोसी हथेलीमा धरीने राजाने बतावी. त्यारे राजाए ते हायमां बइ ते श्री उपदेशपद. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २३६॥ गृहीत्वा करेण नरेंजेण वंदना प्रणामः कृतो मृत्तिकायाः . तदनंतरं च प्रणामादिकाया मुचितप्रतिपत्तौ विहितायां सत्यां रोहकस्यासनदानस्य विष्टरवितरणस्यावसरे प्रस्तावे रोहकेण चटुपारः प्रियवाक्योच्चारणं मनोहरेण स्वरेण मधुरगंनीरध्वनिना कृत मिति. (छ) ॥ १६ ॥ चटुपारमेव दर्शयति-गंधव्वमुरवसखो-मा सुच्चन तुह नरिंद लवणम्मि, वंकम्मतविलासिणिखलंतपयणेनररवेण. ॥ ७ ॥ (टीका)-गंधर्वस्य गीतस्य मुरवस्य च मृदंगस्य शब्दो ध्वनिर्मा श्रूयतां समाकर्यतां केनापि कृतावधानेनापि तव नवतः हे नरेंज राजन नवने प्रासादे.-एवमुच्चरिते राजा यावत् किंचित् सवितर्कमनाः संजातस्तावदनेन ऊगित्येव बब्धराजानिप्रायेण परितं,-चंक्रमंतीनां कुटिलगत्या भृशं संचरंतीनां विनासिनीनां स्खलंतो विसंस्थूलनावनाजो ये पदाः पादास्तेषु यानि नूपुराणि तेषां यो रवः सिंजितलक्षणमाटीने नमस्कार कर्यो. त्यारबाद एटले प्रणाम वगेरे नचित प्रतिपत्ति पूरी थतां रोहाने आसन आपती वेळाए तेणे चटुपाठ एटझे प्रियवाक्यतुं जच्चारण मनोहर स्वरथी एटने मधुर अने गंजीर ध्वनिथी को. १६ चटुपार केवी रीते कर्यो ते बतावे जे-हे नरेंद्र, तारा महेसमां गवैया अने मृदंगनो अवाज न संजनाओ (केम तो कहेछे के ) त्यां फरती विलासिनीअोना अयमाता पगोमां रहेली नेवरीओना अवाजने सीधे. ५० टीका.-गवयानो एटने के तेना गीतनो तथा मृदंगनो अवाज को सावधान माणसथी पण म संनळाओ, हे राजन् तमारा महेलमां. आम बोन्नता राजा जराक विचारमा पड्यो के रोहाए कट तेनो अभिप्राय जाणी न कह्यु श्री उपदेशपद. Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१३७॥ TOTOEN स्तेन चंक्रमहिलासिनीस्खलत्पदनूपुररवेण. व्याजस्तुतिनामकोऽयमलंकारः.(उ)॥१७॥ सकारंतियसोवण–विनछानवकंबिपुत्रजग्गामि, किं चिंतिसि अश्यालिंमिवट्टयं सा कुतो जलणा. ॥ ६ए॥ (टीका)—एवंच रोहकेण पठिते तुष्टमना नरनाथः-सकारंतियसोवणत्ति सत्कारं वस्त्रपुष्पनोजनाबदनादिप्रदानरूपं तस्य चकार, रात्रिवृत्तांतोपखंननिमित्तमंतिके स्वस्यैव समीपे स्वप्नं निजाताभरूपमनुज्ञातवान्. ततोऽसौ मार्गखेदपरिश्रांततया प्रथमयामिन्यामेव निरनिशानाक् संपन्नः . विनानिवकंक्षित्ति प्रथमयामिनीयामांते च तउत्तरदानकृतकौतुकेन विबुधेन कृतनिजामोशेण नृपेणाविबुध्यमानोऽसौ कंबि कया बोलायष्टिरूपया स्पृष्ट-स्तदनु-पुबत्ति जागरितश्च सन् पृष्टः “ किं स्वपिसि के वांकी टेमी फरती विलासिनीअोना बथमता पगोमां रहेली नेवरीअोना खणखणाटना बीधे.-ा व्याजस्तुतिनामे अलंकार छे. १७ ___ सत्कार करी पासे सूवामयु. जागेझा राजाए कंबा अमकाबी पूछतां ( तेणे कडं के ) जागुं . शुं चिंतवेचे (एम पूछतां तेणे कयु के ) बकरीनी बीम। गोळ केम थाय छे ? ते केम थाय ? पेटनी अग्निथी. ६५ टीका.-एम रोहाए चटुपाठ करतां राजाए खुश थइ तेने वस्त्र पुष्प जोजन वगेरथी सत्कार कररी रातनी हकीकत जणावी पोताना पासे सूवाड्यो. हवे रोहो रस्ते चानी थाकेनो होवाथी रातना पेहेला जागमांज जर ऊंघमां पी. गयो. बाद पेहेने पहोरना छो जागेला राजाए ते के उत्तर आपे ने तेना कौतुकथी तेने बूम मारी बतां ते न जाग्यो त्या श्री उपदेशपद. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ त्वमिति.” स च किन निषापराधनीरूतया प्राह-" जागर्मि,—को हि मम तव पादांतिकस्थस्य देव शयनावकाशः". ... राजा.-यदि जगर्षि तर्हि कृतालापस्यापि मम ऊगिति किमिति नोत्तरं दत्तं त्वयेति ? रोहकः . -देव, चिंतया व्याकुलीकृतत्वात्. राजा--किं चिंतयसि ? रोहकः .-अश्यानिंडियवट्टयंति अजिकानां उगलिकानां या सिंमिकाः पुरीषगोलिरूपास्तासां वृत्ततां वर्तुवन्नावं चिंतयामि. राजा. सा वृत्तता कुतोनिमित्तादिति निवेदयतु नवानेव. रोहकः -देव, ज्वलनाऽदरवैश्वानरात्. स हि तासामुदरे ज्वलंस्तथाविधवातसहाय नपजीवितमाहारं खंभशो विधाय तावत्तत्रैवोदरमध्ये बोलयति यावत् सु पक्वाः सवृत्ताश्च पुरीषगोलिकाः संपन्ना इति: (७)॥ १० ॥ रे कांब अमामी एटले ते जागी उठ्यो. त्यारे पूछयु के केम सूचे छ के ? रोहो ऊंघना अपराधयी मरीने बोल्यो के जा* गुं बु साहेब, तमारा पासे रहेतां मने ऊंघवानो अवकाश क्याथी होय. राजा बोल्योः --जो जागेचे तो मे बोलाव्या बतां तें ऊट केम उत्तर नहि आप्यो ? रोहो बोल्यो साहेब हुं चिंतामां व्याकुळ हतो. राजा बोल्योः-शुं चिंतवतो हतो ? रोहो बोल्योः बकरीओनी बीमियो गोळ केम होय ते चिंतववतो. राजा बोटयोः-चारुं त्यारे कहे के ते केम गोळ होयछे. रोहो बोल्योः-साहेब, पटनी अग्निथी. केमके ते तेमना नदरमा वळतां थकां तेवी किसमना वायुनी मददयी खाधेना आहारने नूके नूकां कररी त्यां तेटली वार फरतुं राखे छ के जेटनामा तेनी बरोबर पाकेत्री अने गोळ बीमियो थरहे छे. १७ श्री उपदेशपदः Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२३॥ एवं पुणोवि पुबा-आसोत्यपत्तपुबाण किं दीहं ? किं तत्त मित्थ, दोलिवि -पायं तुवाणि न हवंति. ॥ ७० ॥ (टीका)—प्रथमप्रहरपर्यवसाने इव द्वितीययामांते पुनरपि कम्बिकास्पर्शधारेण प्रतिबोध्य तं, राज्ञा पृचा कृता यथा-किं चिंतयसीति ? रोहकः .-आसोत्थपत्तपुत्राण किं दीहमिति अश्वत्थः पिष्पक्षस्तत्पत्रस्य तत्पुत्रस्यच किं दीर्घमिति, राजा.-किं तत्वमति कथयतु नवानेव रोहकः . - अपि प्रायो बाटुट्येन तुल्ये एव नवतः:-प्रायोग्रहणं कस्यचित् कदाचित् किंचिदतुलानावेपि न विरोध इति ख्यापनार्थ. श्यंच गाथा प्रयमा. पंचमात्रासप्तमांशा एव “ बहुला विचित्र” इति वचनान्न पुष्यति. बहुक्षेति पंचमात्रगणयुक्ता इति. (छ) ॥ १५ ॥ एम फररी पूजतां तेणे कयु के पीपसना पान अने पूछमीमां कोण लांबु छ ? त्यां शुं तत्व छ ? पाये वे तुट्यछे. ७० टीका-पेहेला पहोरना बेमा माफक बीजा पहोरना छमें फरीने कांब अमकामी तेने जगामीने राजाए पूछयु 1 के शुं चिंतवे छे ? रोहो बोल्योः-पीपळना पान अने पूनमीमां कोण लांबु होय जे ते राजा बोल्योः तुं ज कहे के ते. मां शुं तत्व जे ? रोहो बोल्योः-घj करीने वन्ने सरखांज होय . मारे कहेबानी ए मतन्नव के कोकमां कदाच कं फरक होय तो पण बांधो न पसे. आ गाथामा पूर्वार्धमा सातमो गण पांच मात्रानो छे, छतां ते बहुवा जातिनी होवाथी 3 तेमां दोष नथी केमके बहुला विचित्र प्रकारे थाय ने एम कहवें बहुला एश्ले पांच मात्रावाळा गणवाळी. ?ए. श्री उपदेशपद. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H98011 एवं पुणोवि पुबा-खामहिलाकिएहसुक्करहाण, का बहुगा, का, तुला ? पुछसरीराण मन्नेन. ॥ १॥ (टीका )-एवं पुनरपि तृतीयप्रहरांते प्रजा पूर्ववत्. रोहकः-खामहिलायाः खिसहमिकेति लोकप्रसिद्धनामकस्य नुजपरिसर्पजीवविशेषस्य शरीरे कृष्णरेखाणां शुक्ररेखाणां च मध्ये का अधिका बढ्यः राजा.-का इति कास्तत्र बहु का इत्यनिधेहि त्वमेव. रोहकः-तुल्याः समानसंख्याः कृष्णाः शुक्लाश्च रेखाः ... ___अत्रैव मतांतरमाह.-पुनसरीराण मन्नेन इति अन्येपुनराचार्याः पुनशरीरयोः खामहिवाया एव संबंधिनोः कतरदीर्घमिति चिंतितं रोहकेण.-राज्ञा पृष्टेनच तेनैव के अपि समे इति प्रतिपादितमित्याहुः ()॥२०॥ चरिमा का पिया ते-के, पण, के, रायधाणयचंमाला, सोहागविच्युग जणा___एम कररी पूछतां तेणे कयु के खीलोमीनी काळी धोळी रेखाअोमां कोण काकी ? सरखी छे ? बीजा कहे छे के पूछकी अने शरीरमां कोण बांबु छे. ७१ टीका–एम फरीनेत्रीजापहोरना के राजाए पूछ्युं रोहो बोल्योः-खीलोमी नामे लोकमां प्रसिद्ध नुजाचा र जीवना शरीरमां काळी रेखाम्रो अने धोनी रेखाओ होय छे तेमां कोण अधिक हशे ? राजा बोल्यो:-तुंज कहे के कोण काकी जे. रोहो बोल्योः-काळी अने धोळी रेखाओ बन्ने सरखीज - होय छे. इहां मतांतर कहेछ:-वीजा आचार्यो एम कहेछे के खीलोमीना पूछ अने शरीरमां कोण लांबु एम रोहाए चिंतव्यु, अने राजाए पूछतां तेणे बेसरखांज जे एम कडं.२० श्री उपदेशपदः Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २१ ॥ णी पुला एवंति कहणाय ॥ ७२ ॥ (टीका)—चरिमाय इत्यादि चरमायां यामिन्यां पश्चिमप्रहरपर्यंतनागरूपायां पूर्वरात्रिबहुजागरणाबब्धातिस्वाऽनिजो रोहकः कम्बिकास्पर्शनातिरेकवशेन प्रतिबोधितः सन्नवदत् यथा-कइ पिया ते इति कति कियंतः पितरो जनकास्तव हे राजन् वर्त्तते इति चिंतयामि. राजा.-के इति कति मे जनका इति निवेदयितुमईसि त्वमेव. रोहकः-पणत्ति पंच राजा.-के इति किंरूपाः रोहकः .-राजधनदचंमालाः-सोहगविच्चुगत्ति शोधको वस्त्रप्रक्षालको वृश्चिकश्चेति ततो राज्ञा संदेहापन्नचेतसा जननीचा कृता यथा किमेवं मे पंच पितरः ? तथापि एवमिति यथा रोहकः प्राह कयनाय तयैव निवेदनं कृतं पुनः (७) ॥१॥ छेखी राते पूछतां तारा वाप केटला बे; ते केटझा ? पांच, कोण कोण ? राजा, कुबेर, चांमास, धोबी, अने वींछी. तेपरयी राजाए जननीने पूछतां तेणीए एमज छे एम कडं. ७२ टीका-बेबी राते एटले बेम्बा पहोरना मे आगळी राते बहु जागवाथी अति मीठी ऊंघमां पमेनो रोहो जरा वधारे कांब अटकवाथी जाग्यो थको बोटयो के हे राजन् , तारा बाप केटना छे ते विचारुं बुं राजाए काः—र्केटला छे ते तारज कहे जाइए. रोहाए कह्युः-पांच छे. राजाए कह्यं ते कोण कोण ? रोहाए कह्यु:-राजा, कुबेर, चांमाल, धोबी अने वींछी त्यारे राजाए शकमां पड़ी माताने पूछ्यु के शुं मारा आ रीते पांच पिता ने ? त्यारे तेणीए पण हा पामी जेरोहाए कडं तेमन हकीकत जणावी. २१ श्री उपदेशपद. ३१ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४॥ तानेव सहेतुकान् सा दर्शयति-राया रवीएणं-धणो उनएहायपुज्जफासेणं, चंगासरयगदसण-विच्चुग म रहस्सनक्खणया.॥ ३॥ (टीका)-राया इत्यादि राजा तावपतिबीजेन सुरतकाले बीजनिदेपरूपेण, धनदः कुवेरः ननण्हायपुज्जफासेणं ति ऋतुस्नातया चतुर्थदिवसे तस्य पूजायां कृतायां मनोहरतदाकाराप्तिचित्तया यः स्पर्शस्तस्यैव सर्वांगमालिंगनं तेन (२) ___ चंगावरयगदसणत्ति चंकालरजकयोः ऋतुस्नाताएव तथाविधप्रघट्टकवशादर्शनमवलोकनं मनाक्संयोगानिलाषश्च मे संपन्न इति तावपि पितरौ. (४) विच्चुगम रहस्सनक्खणया इति अत्र मकारोऽझाक्षणिकः ततो वृश्चिको रहस्यनकन रह एकांतस्तत्रनवं रहस्यं तच्च तद्नकणं च तेन जनकः संपन्नः मम हि ते माता ते पांचने कारण साथे दर्शावे छे. रति बीजयी राजा छे, ऋतुस्त्रात थइ पूज्य स्पर्श करतां धनद ने, चां मान अने धोबी दर्शन मात्रथी , अने बुपी रीते नक्षणथी वीडीछे. ७३ टीका रतिवीजयी एटने सुरत वखते बीज नाखवायी तो राजाज तारो पिता ने, (१) अने हुं ऋतुस्नात था चौथा दिवस कुवेरनी पूजा करती हती तेवामां तेनो मनोहर आकार जोइ खेंचाइने मे तेनो सर्वांगे आलिंगन करी मर्श कयों ते रीते ते तारो पिता छे. (२) वळी हुं ऋतुम्नात थइ एवामां तेवी गम्मथनना योगे चांमाम अने धोबी मारा जोवामां आव्या अने जराक संयोगनी इच्छा पण था हती तेथी ते बे पण तारा बाप गणाय. (४) विच्चुगमरहस्स नक्खण्या ए पदमां मकार अनाक्षणिक एटने फालतं होवाथी ते पदनो ए अर्थ छे के एकांतमां श्री उपदेशपदः Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४३॥ Baba * पुत्र त्वय्युदरगते वृश्चिकनवणदोहदः समजनि, संपादितश्चासौ रहसि कणिकामयस्य तस्य नकणेनेत्यसावपि मनाग् जनकत्वमापन्नः . (७) ॥॥ कारण पुबा, रजं–णाएणं. दाणरोसदं हिं, कंविचिवणा य तहा----रायादी णं सुतो सित्ति. ७४ (टीका)-एवं जनकसंख्यासंवादे संपन्न विस्मयेन राज्ञा कारणगोचरा पृष्ठा कृता यथा केन कारणेन त्वयायमर्योत्यंतनिपुणधियामपि बुद्धेरगोचरो ज्ञात इति ? रोहकः .-राज्यं प्रतीतरूपमेव न्यायेन नीत्या सामादिप्रयोगरूपया यत् परिपाबयसि, तथा दानरोषदः दानेन कृपणादिजनस्वविनववितरणरूपेण कुवेरधनत्यागानु कारिणा, रोषेण कचिदविनयवर्तिनि जने चंमासचामिक्यकल्पनासहिष्णुतालक्षणेन, दंवॉछीन में जकण कोल तेयो ते पण बाप थयो गणाय-ते ए रीते के हे पुत्र, ज्यारे तुं मारा पेटे हतो त्यारे मने वछी खावानो दोहलो थयो तेथी एकांतमां लोटनो वनावेल वीठी खवरानीने मारो दोहलो पूर्ण करवामां आव्यो हतो तेथा ते पण जराक बाप थयो गणाय.२२ कारण पूजतां रोहाए कडं के न्याय पूर्वक राज्य पाळवाथी, दानथी, रोपथी, दमयी, अने कम्बिका लगामवाथी तुं राजा वगेरेनो पुत्र के एम मे जाएयु. ७४ टीका-ए रोते बापन। संख्या मळतो आवतां विस्मय पामेला राजाए कारण संबंधे पृच्छा करी के शा कारणथी तें आ अत्यंत बुद्धिवानोनी बुछिन पण अयोचर वात जाणी ? रोहो वोटयोः-राज्यने तुं न्यायथी एटले सामादिकप्रयोगरूप नीतिथी पाळे छ तेथी, तथा कृपण वगेरे जनोने कुबेरना दान माफक तुं पोतानुं धन आपे छे तेयी, तथा रोषयी श्री नुपदेशपद. । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२४॥ मेन पूर्वराजनिरूपितनीतिपयप्रमाथिनोजनस्य सर्वस्वापहाररूपेण वस्त्रशोधकविधीयमा नवस्त्रकासनतुव्येन कम्बिनिवणायत्ति कम्बिकाबोपनाच्च कम्बिकया बीलायष्ट्या पुनः पुनर्मम विघटनाच्च, तथाशब्द नक्तसमुच्चये, राजादीनां सुतोऽसि त्वं हे राजनिति. नयेनैवंविधप्राज्यराज्यपरिपालनात् ज्ञायसे यथा राजपुत्रस्त्वं. नहि अराजजाता एवंविधानवद्यराज्यनारधुराधरणधौरया नवितुमर्हति.–एवं दानेन धवदजातः -रोषेण चंगाबपुत्रः -दंडेन वस्त्रशोधकप्रसूतः . -कम्बिकाघातेन च वृश्चिकापत्यं. -कारणस्वरूपानुकारित्वात् सवकार्याणां. ॥ २३ ॥ ___ साहु परिग्गह संधण-कोवो अमोण सज्क पेसणया, धम्मोवायणसाहणबुग्गह (णवकियगकोवो न. ॥ ५ ॥ एटले कोइ अविनयथी चालता माणसपर चंमालनी चंमिमा सरखी असहिष्णुता धरे ले तेथी, तथा दंगयी एटने के A पूर्वना रानामओए स्थापन नीतिमार्गने अोलंघनार माणसनुं धोवी जेम कपमाने नीचोवे तेम सघळु धन बुंटी व्ये डे तेथी, तवा कंबिका लगामवाथी एटोके मन तुतारी रमतनी बाकीची वारंवार अमकतो तेयो हे राजन् , तुंराजादिकनो पुत्र. . न्याययी आधुं महान् राज्य पाळे डे तेयी जणाय के तुं राजपुत्र डे केमके जे राजबीज न होय ते आवा चोखा राजकारनारनी धूसरीना धोररी थऽ शकता नयी. ए रीते दानथी तुं धनदनो पुत्र जे. रोषयी चंमालनो पुत्र छे, दं मयी धोबीनो पुत्र छ, अने कविका मारवायी वींछीनो पुत्र जे. केकके सघळां कार्य कारणने मळतां होय छे. २३ ठीक जाणी तेने राख्यो संधि इच्छी. ते न थतां कोप थयो. बीजाथी ते असाध्य जाणी रोहाने मोकळ्यो. तणे धर्म आपवानी कबूबात आपी तेने पकम्यो. राजाए कत्रिम कोप बताव्यो. ७५ श्री उपदेशपद. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २४५ (टीका ) - ततस्तदीयबुद्धिकौशलावर्जितेन नृपतिना साहुपरिरग्गदत्त साधुः शोजनोऽयमिति मत्वा परिग्रहः स्वीकारः कृतस्तस्य. तस्मिंश्च समये केनचिदनंतर भूमिवासिना भूपालेन सह कुतो पि निमित्ताद्वैरं - नमासीन्नृपस्य तत्रच संधणत्ति संधानं कर्तुम जिल्लपितं राज्ञा नचासौ तत् प्रतिपद्यत इति तंप्रति — कोवोत्ति - कोप: समजनि जितशत्रोः ततः अन्नणसज्जपे सणया इति अन्येन रोहव्यतिरिक्तेनासाव साध्यः साधयितुमशक्य इति कृत्वा रोहकस्य तत्र प्रेषणं कृतं नूनुजा प्राप्तश्च तत्र रोहकः पृष्टश्च स प्रत्यर्थी नृपः समयेचम्मो वासाहति-यश्च तैस्तैरुपायैरुच्यमानोपि अविश्वासान्न संधानमनुमन्यते तदा धर्म एवोपायनं ढौकनीयं तेन साधनं स्ववशीजावकरणं रोहकेण तस्य कृतं -ध · टीका. -त्यारे तेनी बुद्धिनी कुशळताथी खुश थएला राजाए या सारो छें एम जाए। तेने पोतानी नोकरीमां राख्यो. ते वखते जिपशत्रु राजाने तेनी पोशनी जमीनमां रहेता कोइ राजाना साथे कोइक कारणना योगे वैर जाम्युं हं. त्यां राजानी मरजी एम थइके संधि करवी. पण ते सामेनो राजा कबूल करतो न हतो, तेथी तेना ऊपर जितशत्रुने गुस्सा चड्यो एथी ते विचार्य के रोहाशिवाय बीजार्थी ए वश थाय तेम नयी एम धारं । तेणे रोहाने त्यां मोकयों. हवे रोहो त्यां प्रावी पहोच्यो. तेणे दुश्मन राजानी साथे पर पूछ करी. बाद समय आावतां ज्यारे ते ते उयायोथी समजावतां छतां पण विश्वासना सीधे संधिने कबूल करवा न लाग्यो त्यारे रोहाए धम रूप जेटाणुं बच्चे घरीने तेने पोताना वशमां लीधो श्री उपदेशपद • Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५६। SHOBeadorabad अयमत्र नाव: इदमुक्तं रोहकेण तं प्रति-यदि स मदीयो नृपो नवन्तिः सह संधाय पश्चात् किंचिद्व्यनिचरति तदा तेन यस्तीर्थगमनदेवनवनसंपादनहिजादिप्रदानवापीतमागादिखननादिना विधानेनोपार्जितो धर्मः स सर्वो मया नवते दत्तः, ताहितश्चासाविहलोकपरलोकयोन किंचित्कल्याणमवाप्स्यतीति-करोतु नवांस्तेनसह संधानं. नोवंविधां प्रतिज्ञां कश्चिदननक्ति. एवं विश्वासिते तस्मिन्-वुग्गहत्ति व्युद्ग्रहोऽवस्कंदो धाटिरित्यर्थः बखेन तत्र गत्वा राज्ञा संपादितः स्वहस्तगृहीतश्चासौ कृतो हिषन्, आनीतश्चोजयिन्यां. तत्रच चिंतितं तेन “ कथमनेन राज्ञा आत्मीयधर्मस्य मत्प्रदानेन व्ययः कृत इति".-तस्य मिथ्याविकल्पापनोदाय निवकियगकोवोत्ति नृपेण जितशत्रु आ वातनो आ खुशासो छ.:रोहाए तेने आ रीते कयुं के जो मारो राजा तमारी सलाह करें। पाछळथी कई करे तो तेणे जे तीर्थ यात्राओ करी होय, देव मंदिर बंधाव्यां होय, ब्राह्मणो वगेने दान आप्यु होय, वावतलाव खोदाव्या होय–एम जे कांइ धर्मक यो होय ते सघळो हुँ तमोने आपुं बु. तेथी ते तेनायी रहित यश आलोकमां अने परलोकमां कंइ पण कल्याण पामी शकशे नहि, वास्ते तमे तेनी साये सलाह करो. केमके भावी प्रतिझाने कोइ नांगे नहि. आम तेने विश्वास पमाड्यो एवामां राजाए गुपचुप त्यां आवी धाम पामी अने ते दुश्मनने पोताना कबजामां अनजेणी एयो. त्यां तेणे चिंतव्यु के आ राजाए पोतानो धर्म मने दइने केम तेनो नाश कर्यो. आवी रीतना तेना वहमने टळाववा श्रीनपदेशपद. Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४७॥ णा रोहकं प्रति कृतकः कत्रिमः पुनः कोपः कृतः . ॥२४॥ धष्मो मे हारविप्रो-काऊण, नत्तणो नो दिन्नो, कह होइ मज्जएसोएसो----जह तुहतणो न तस्सव. ७६ टोका-ततो रोहणन्यधायि-किमर्थमस्मानिरपराधानपि प्रतीत्य देवेन इयान् कोपः कृत इति. तत्रोक्तं पृथिवीपतिना--धम्मो मेहावित्रओ काऊणत्ति धर्मों मम हि यस्त्वया हारित इति कृत्वा. ततो रोहकेणान्यसत्को महर्षेः कस्यचित् संबंधी वको धर्मो दत्तो राझे. अयमजिप्रायः-देव यदि मया दत्तो धर्मस्त्वदीयोऽन्यत्र प्रयाति तदानेन महर्षिणा आबालकासाद् यदनुष्टितो धर्मः स मया तुन्यं वितीर्ण इति -नास्ति मयि कोपस्यावकाशः प्रनोः. माटे जितशत्रुराजाए रोहा प्रत्ये खोटो कोप कर्यो. २४ मारो धर्म तें गमाव्यो तेथी करीने (गुस्से बु ). त्यारे धर्म (तमने ) आप्यो. ए मारो केम ? जेम तारों तेने थ-3 यो तेम. ७६ टीका-त्यारे रोहाए कहूं के शामाटे अमो निरपराधी ऊपर आप साहेबे आटो कोप को बे ? राजाए कयुं के मारो धर्म तें गमाव्यो तेयी करीने. त्यारे रोहाए बीजा कोइ महर्षिनो धर्म राजाने आप्यो-एटो के तेणे कह्यु के महाराज जो मे दीधेलो तमारो धर्म बीजाने पहोचतो होयतो आ महषिए नानपण्थी मांगीने जे धर्म करलो छ । ते हुं तमोने आब-एटले हवे मारापर गुस्सो राखबानु तमोने सबब नथी. श्री उपदेशपद. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४॥ राजा.-कथं नवति मम एष धर्मों महर्षिसको यतो मया न कृतो नापि कारित इति ? रोहकः.-यथा तवतनकस्त्वत्संबंधी पुनर्धर्मः तस्यैव विपक्षभूपतेरभून्मया वितीर्णः सन्निति. जीवण दाणे पेसण-तदणबुग्गहगहाण, तेसिं तु; अथुत्तग्गहगोग्गहनिमित्त तित्यं तो धामी. ७७ टीका-ततः सुप्रसन्नमानसेन जितशत्रुणा रोहकाय जीवनदाने परिपूर्णनिर्वाहस्थान वितरणे कृते सति प्रेसणत्ति प्रेषणं कृतं रोहकस्यैव, किमर्थमित्याह.-तयन्नबुग्गहगहाणत्ति व्युग्रहे विवादे कुतोऽपि हेतोरुत्पन्ने सति ग्रहो लोकप्रसिधएव उज. यिनीविषयमध्यवर्त्तिनो छिपदचतुष्पदादेरर्थस्य येषां ते व्युद्ग्रहग्रहाः पर्वतवनादिव्यवस्थितपहिवासिनो बोका-स्तस्मान्नृपादन्येच तदन्ये ते च व्युद्ग्रहग्रहाश्च तदन्यव्युग्रहग्रहास्तेषां संग्रहनिमित्तमिति गम्यते. राजा बोटयोः-महर्षिनो धर्म ते मारो केम थाय ? जे माटे ते में कयों के कराव्यो छे नहि. रोहो बोल्यो:जेम तारो धर्म में सामेना राजाने आप्यो एटले ते तेनो थयो तेम. २५ त्यारे जीवन आपी फरीने तेने बीजा हुदम करी धरपकम करनाराओने पकमवा माटे मोकलवामां आव्यो तेणे तेमने समजाव्यु के अपुत्रिया अने गायोने पकमतां अटकाव ते तीर्थ के एम कही त्यां धाम पामी. ७७ टीका-त्यारे जितशत्रुरानाए खुश था रोहाने पृरतो निवाह चाले तेवी जागीर आपीने तेने फरीने मोकबाव्यो,-शा माटे ते कहेडे-को कारणयी तकरार उत्पन्न यतां नजेणीनी हदमांथी विपदचतुष्पद वगेरे मालनी - ट मचावनारा पर्वत अने जंगल वगेरेमां पद्वि बांधीने रहेनार लोकने पकमवा खातर तेने मोकलाव्यो. श्री उपदेशपद. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५४॥ यदा च ते सुखेन संग्रहीतुं न शक्यते तदा तेषां तु संग्रहनिमित्तं पुनरपुत्रग्रहगोग्रहनिमित्ततीर्थ प्राप्तमिति गम्यते-यथा-"अपुत्रस्य गृहीतस्य शत्रुनिर्गवां च यन्मोचनं तन्महत्तीर्थमिति पूर्वमुनयो व्याहरंति" इति प्राप्ते उज्जयिनीराजबलेन रोहकप्रयुक्तेन बलघातिना पविसंबंधिनीषु गोषु गृहीतासु तन्मोचनाय पसीनिखेषु निर्गतेषु शन्यासु पलीषु ततो धाटी निपातिता,- बहिर्निगताश्च ते गृहीता इति. (७) ॥ २६ ॥ ततः-वीसासाणण पुना-सिह हियएण मप्पमतो न; तह धम्मिगो सपुमो---अजओ परचित्तनाणीय. ॥ ७ ॥ ___ (टीका)-विश्वासानयने सर्वेषां सामंतमहामात्यादीनामात्मविषये विश्वासे हवे ज्यारे तेश्रो सहेलाइथी पकड़ी नहि शकाया त्यारे तेमने पकमवा माटे तेमने एवं जणाव्यु के अपुत्रियाने अथवा गायोने दुश्मन पकमी जाय तेने छोमाववं ते मोटं तीर्थ डे एम पूर्वना ऋपियो कही गयाछे एम समजावी तेणे नजेणीना राजाना बळवान् बरकरना मारफत ते पश्विनी गायो पकमावी त्यारे तेमने जोमववा पसीना नीलो नोकळी 4-0 ड्या एटले पसीओ शूनी थतां त्यां तेणे धाम पामी अने ते बाहेर नोकसेवाओने पकड़ी पाड्या. २६ ____वाद-रोहाए विश्वासमां प्राण्यायी राजाए पूछी जोतां सघळाए खरा दिलथी. कहुं के रोहो अप्रमत्त तेमज । ते धार्मिक पुण्यवान् निर्जय अने परिचित्तने तरत पारखनार छे. ७७ . ____टीका-रोहाए संघळा सामंत तथा महामंत्रिोने ऊपजावतां राजाए तेमने पूछी जोयुं के तमारा मनमां रोहो श्री उपदेशपद. का Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५०॥ समुत्पादिते सति रोहकेण, पृवा राज्ञा तेषां कृता-यथा-कीदृशो रोहको जवतां चित्ते वर्त्तत इति ? तैश्च शिष्टं हृदयेन नावसारमित्यर्थः , यथा देव, एकांतेनैव देवकार्येष्वप्रमत्तस्त्वप्रमत्तएव, तथाशब्दः समुच्चये धार्मिकः स्वपकपरपश्योरप्यनुपजवकरः , सपुण्यः पुण्यवान्, अन्नयो निर्जयो निःशंकं विपकमध्ये प्रवेशात्, परचित्तज्ञानी च अन्यानध्यवसेयपरानिप्रायपरिज्ञानवांश्च. (७) तुझो राया सव्वेसि-मुवरि मंतीण गविओ एसो ; परिपालियं च विहिणा -तं बुधिगुणेण एएणं. ॥ ७॥ - (टीका)—एवं तस्य विचित्रैश्चित्रीयितविधजनमानसैश्चरितैस्तुष्ट आक्षिप्तचेता राजा जितशत्रुः संपन्नस्ततस्तेन सर्वेषामेकोनपंचशतप्रमाणानामुपरि अग्रेसरतया शिरसि नायकत्वेनेत्यर्थ मंत्रिणाममात्यानां स्थापितः प्रतिष्टितः एष रोहकः परिपाकेवो लागे छ ? तेश्रोए खरा दिलथी कयुं के हे देव! ते एकदम आपना काममां सावधानज छे, तेमज ते धार्मिक एटले स्वपक्क तथा परपकने पण नुकशानमां नहि उतारनार , पुण्यवान जे, वगर बोके विपकमां आवजा करतो होवाथी निमर ने अने बीजाने अगम्य एवा परना अभिप्रायने जाणी सेनार छे. राजाए खुशी थइ सघळा मंत्रिोनो तेने ऊपरी बना-8 व्यो, अने तेणे बुद्धिना गुणथी ते ऊपरीपणुं विधि पूर्वक परिपालित कर्यु. ७0 टी-श्रा रीते तेना विधानोना मनने अचयो पमामनार विचित्र चरितोयी जितशत्रु राजाए खेंचाइने तेने चारसे नवाणु मंत्रिनो नायक बनाव्यो. ते नाटकपणाने तेणे विधियी एटले पोतानी अवस्थाने नचितपणे बुद्धिगुणवमे ए श्री उपदेशपद. 8 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५१॥ वितं च निष्टां नीतं पुनर्विधिना स्वावस्थौचित्यरूपेण तन्मंत्रिनायकत्वं बुद्धिगुणेन औत्पत्तिकीनामकमतिसामर्थेन करणजूतेन एतेन रोहकेण, सर्वगुणेषु बुधिगुणातिशायित्वात्,-यतः पठ्यते, श्रियः प्रसूते विपदो रुणद्धि–यशांसि पुग्धे मलिनं प्रमार्टि, संस्कारशौचन परं पुनीते-शुद्धा हि बुद्धिः कुत्रकामधेनुः ॥ १॥ उदन्वबन्नानूः, स च निधिरपां योजनशतं-सदा पांथः पूषा गगनपरिमाणं कबयति, इति प्रायो नावाः स्फुरदवधिमुप्रामुकलिताः-सतां प्रशोन्मेषः पुनरसमसी मा विजयते. ॥२॥इति. ॥२॥ टने के औत्पत्तिको नामनी बुद्धिना वळवमे पार पहोचामडे केमके सघळा गुणोमां बुद्धिगुण चढियातो छ, तर जे माटे कहेवाय छे के पवित्र बुद्धि खरेखर कामधेनु छे. ते बदमी वधारने, विपदाओने रोके छे, यश पेदा करे, अपकीर्ति से छे, अने संस्कारशाचथी बीजाने पण पवित्र करे . १ पृथ्वी दरियाथी परिछिन्न , दरियो सो योजननो गणायछे, अनेर आकाशनो पण हमेश फरतो रहेनार सूर्य माप करे , ए रीते पाये सघळा पदार्थोने हदनी छाप लागेली , पण सज्जनोनी प्रज्ञानो विकाश तो हदविनानोज जगमगे . २ रोहानी कथा समाप्त थइ. जरतशिला रूप धार विस्तारथी वर्णव्यु. हवे पणित रूप धार कहे डे. श्री उपदेशपद. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २५२ ॥ औत्पत्तिकी बुद्धि - व्याख्यातं सप्रपंचं नरह सिलेत्तिद्वारं - अथ परिणयत्तिद्वारं. – पएि पनूतलोम सि- नक्खणज्य दारणिफिरुगमोए, चक्खण खधा वि-नुयंग दारे अप्फेिमो. ॥ ८० ॥ कय ( टीका ) - पणिए इति द्वारपरामर्शः । कश्चित् ग्रामेयकः स्वनावतएव मुग्धबुद्धिः क्वचिन्नगरे धूर्तलोकबहुले - बहूयलोम सित्ति बहुकाः शकटजरमाणा लोमसिकाः कर्कटिकाः समादाय विक्रयार्थं गतवान् तासु च विपणिपथावतारितासु केन चिच्छूर्तेन स उक्तः यथा नक्खणजयत्ति यदि कश्चिदेताः सर्वा नयति तदा त्वं किं तेन जीयसे ? तेन चासनाव्योयमर्थ इति मनसि मत्वाऽसंभवनीयमेव पणितकं निबद्धं यथा दारफिमगमोए इति यो नगरद्धारेण मोदको न निर्गच्छति तं तस्य प्रयच्छामि. पति घीकाको खावाथी जय वेरव्यो. ते बदल दरवाजामांथी न नीकळे एवो लाऊ देवा ठराव. • बाद चाखीने सघळी काकमी ओ खाधी. वेचवा मांगी तो लोको कहे के खाली छे. त्यारे जुगारीओनी सल्लाहथी दरवाजाना मगरापर लाऊ राखतां ते नीकळ्यो नहि. ८० टीका. – पतिना उदाहरणमां ए वात बे के कोइक गाममियो स्वनावथीज जोलो होइ घणा धूताराथी बसेको नगरमा कानुं गाऊं जरी वेचवा गयो. ते काकमीओ बजारना रस्तामां ऊतारी एटले कोइ धूर्त तेने कहेवा लाग्यो के जो कोइ या बधी खाइ जाय तो तुं जीताय खरो के ? ते गाम कियाए या वात न बनी शके तेवी मानीने न बनी शके एवं पण बांध्युं के तेवाने हुं नगरना दरवाजामांथी न नीकळी शके तेवो लालु आ.. श्री उपदेशपद. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बए ततस्तेन तहोमासकाशकटमारुह्य चक्खणत्ति दंतनिर्जेदमात्रेण खद्धत्ति सर्वासामपि तासां लक्षणं कृतम्. विक्कयत्ति विक्रेतुमारब्धश्चासौता:-नाच लोको गृह्णाति " नक्षिताः केनाप्येता” इति प्रवदन् सन्. ततो धूर्तेन लोकप्रवादसहायेन जितो ग्रामयकः . तदनु तं मोदकं याचितुमारब्धः . ग्रामेयकश्च अशक्यदानोयं मोदक इति कृत्वा तस्य रूपकं प्रयवति, स नेति, एवं के त्रीणि यावचतमपि नेबत्यसौ. चिंतितं च ग्रामेयकण-" नैतस्माध्धूर्त्तान्मम कथंचिन्मुक्तिरस्ति इति निपुणबुधिपरिजेद्योयं व्यवहारः ,-चतुरबुध्यश्च प्रायो द्यूतकारा एव नवंतीति तानेवावलगामि " तथैव च कृतं तेन. पृष्ठश्चासौ तैः–यथानक किमर्थमस्मान्निरंतरमासेवसे त्वं ? जणितं च तेन यथा ममैवंविधं व्यसनमायातमिति.-ततो-नुयंग दारे अनिफेमो इति नु श्री उपदेशपद. हवे ते धूर्ते ते काकीपोना गामापर चली ते सघळी दांत बगावीने चाखी. बांद तेने वेचवा मांगतां लोको " ए तो कोकनी खाधेशी छे " एम कहो लेता अटक्या. त्यारे लोकना प्रवादनी मददथी ते धूर्ते गामझीयाने जीतीने ते लाकु मागवा लाग्यो. गाममियाए धार्यु के एवको लामु केम दशकाय तेथी ते तेने रुपियो आपवा लाग्यो, पण धूते न बीधो एम वे त्रणने जेवटे सो रुपिया पण न लीघा. त्यारे गाममियाए विचार्यु के आ धूर्त मने गेमनार नथी. आ. वातनो खुलासो जेनो निपुणबुद्धि होय ते करी शके अने तेवी बुद्धिवाला पाये जुगारियो होय छे माटे तेमने सेवं, एम चिंतवी तेणे तेमज कर्यु. त्यारे तेमणे पूछयु के अमारी तुंहरहमेश शा माटे सेवा करे छे! तेणे कर्बु के मारा पर आवी रीतनी आफत पकी जे.त्यारे तेमणे शीखव्यु के कंदोइने त्यांची मूठमां आवे तेवको एकलाकुला ते धूर्त तथा नगरना लोकोनी साये Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२४॥ जंगै तकारैरसावेवं शिक्षितो यथा पूतिकापणे मुष्टिप्रमाणमेकं मोदकं गृहीत्वा तफुर्तसहायः शेषनगरलोकसहायश्च प्रतोत्रीधारे गत्वा इंधकीलस्थाने तं विमुच्य प्रतिपादय यथा निर्गन नो मोदक इति. विहितं च तेनैवं परं झारे मोदकस्य अनिप्फेडो निःकाशनानावः संपन्नः . प्रतिजितश्चासौ तेन. एवं च द्यूतकाराणामौत्पत्तिकीबुद्धि रिति. (७) अथ रूक्खे इति झारं. रूक्ख फलपनिबंधो वाणरएहिं तु बेठ्ठुफलखेवो, अम्मे अन्नवस्वणिजा-इमे फसा पंथवहणाओ. ॥ १ ॥ (टीका)रूक्खे इति घारपरामर्शः फलानां गृह्यमाणानां प्रतिबंधः प्रतिस्खबना, केन्य इत्याह-वानरकेन्यस्तु कपित्य एव. श्द मुक्तं नवति–क्वचित् पथि फपोळना दरवाजे जय अमगरा पासे तेने मेली बोलजे के अरे बाफ इहांथी नोकळ. तेणे तेम कर्यु पण मोदक कंऽ त्यांयी नोकळयो नहि. तेथी ते जीत्यो. ए रीते जुगारीओनी औत्पत्तिकी बुद्धि जाणवी. हवे वृत रूप धार कहे:__ काममा वांदराओए फल लेता अटकाव कर्यो. तेमने पथर मारतां तेमणे फल फेंक्यां. बीजा कहे जे के बहेतो मार्ग होवाथी आ फळो अजय छे. ०१ टीका.-चांदाराओए फळ लेतां अटकाव कयों एटने के कोइक रस्तामा फळना जारथी नमेली माळवाळो को-8 E आंवानें काम हतुं तेना पासेथी हमेश ते ते कामना बीधे जता आवता वटेमाणुओ तेना पामेला फलो जोड़ने नूरबथी गली कूरख होवाथी ते लेवा लाग्या पण ते माळपर रहेला अतिचपन वांदराओ सामे थवाथी ते ला शक्या न श्री उपदेशपद. Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५५५ ॥ अप्राग्नारनम्रशाखासंजारः कश्चिदाम्रादिमहाडुमः समस्ति तत्समीपेन च निरंतरं तत्तत्प्रयोजनादितः पथिकलोको गन्नुन्नागश्च पक्वान्यवलोक्य तत्फलानि बुनुका - कामकुतिया गृहीतुमारभते, परं तच्चाखासमारूढा तिचपल कपिकुलेन प्रतिस्खलितो न तानि गृहीतुं शक्नाति. लेट्वुफखेवोत्ति - अन्यदा च केनचिन्निपुण बुद्धिना पथTag: कृतो मर्कटा निमुखं तदनु कोपावेगव्याकुलीकृतमानसैस्तैस्तत्प्रतिघाताय तानि फलानि तानि एवं च परिपूर्णमनोरथः समजनि पथिकः इति तस्योत्पत्तिकी बुद्धिरिति ( ५ ) अत्रैव मतांतरमाह - अन्ये आचार्या वृक्षद्वारमित्यं व्याख्यांत-यथा कैश्चित्पथिकैः क्वापि प्रदेशे केनाप्यनुपजीवितफलान् वृङ्गानालोक्य चिंतितं यथा अन यान इमानि फलानि वर्त्तते, कुतः — पंथवहाणाओ इति पांथवहनात् पथिकलोकस्यानेन मार्गेण गमनादागमनाच्च यदि ह्येतानि फलानि नक्कयितुं योग्यान्यभवि हि. बाद एक वखते कोइ हुशियार बटेमागुए आवी ते वांदराओ सामे पथर फेंक्यो एटले तेयो गुस्से थइ तेने मारवा फलो फेंका लाग्या एटले तेना मनोरथ पूरा थया. एनी औत्पत्तिकी बुद्धि जावी. गोमतांतर बतावे छे: - वीजा आचार्यो वृधारनी आ रीते व्याख्या करे छे के केटलाक वटमाओए को ठेका कोइए पण नहि वापरेला फळवाळा कामोने जोड़ने विचार्य के या फळो अजय लागे छे. केमके या मार्गे टेमा जाय आवे छे, तेथी जो ए फळो खावा योग्य होत ते कोइ पण तेने अवश्य खात, पण या तो कोइए श्री उपदेशपद. Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्तदा केनाप्यवश्यमनदायियंत, न च केनापि नक्षितानि. तन्नूनमनदयाणीति,पथिकानामौत्पत्तिकी बुधिरिति. (छ) अथ खड्गत्ति झार.-खड्डगमंतिपरिच्छा- सेणियगम सुमिण सेष्टि एंद नए, मुद्दा कूवतमग्गह-गणुद जणली पवेसणया. ७२ . टीका-रायगिहं श्ह नयरं-समस्थि नयरम्मपरिसरुदेसं राया तत्य पसेणश्यनामगो पालइ य रऊ. ॥ १॥ सेणियनामा पुत्तो-जुत्तो निवलक्खणेहि सव्वेहिं, सयलसुएसु पहाणो-तस्सासि सहावओ गुणवं. ॥२॥ पोरिससजं रजं—पुन्ने संतेवि एस जणवाओ, तो काहामि परिक्ख-सुयाण श्य चिंतिउं रमा-॥ ३ ॥ अन्नदिणे सव्वेविहु-नणिया तणया जहामिलियगेहिं, तुब्नहिं जोत्तव्वं–एवं पीई कखाधेशां नथी,-माटे ते नकी अनदय जे. आरीते वटेमाणुओनी औत्पत्तिकी बुद्धि जाणवी. हवेखमंगधार कहे छ:-खम्गधारमा मंत्रिनी परीक्षामां श्रेणिकनुं नीकळवू, शेठने स्वप्न, नंदानी कूखे अजय कुमारनो जन्म, तेणे कूवाना कांठे रही छाण अने पाणी जरीने वीटी कहामी. बाद माताने राजग्रहीमा आणी. ७२ टीका.-आसपासमा पर्वतायी रमणीय लागतुं राजगृह नामे नगर हतुं. त्यां प्रसेनजित् नामे राजा राज्य करतो. १ तेने सघळा राजलक्षणथी युक्त अने स्वजावयीज गुणवान् श्रेणिकनामे पुत्र हतो. ते सघळा पुत्रोमां प्रधान हतो. राजाए विचार्य के लोकमां एवो प्रवाद छे के पुण्य उतां पण पराक्रमयीज राज्य मळे माटे हुं मारा पुत्रोनी परीक्षा करी जोनं. ३ तेथी एक दिवसे तेणे सघळा पुत्रोने का के तमो बधाए साये मळीने जमवं केमके एम कर्यायी प्रीति व श्री उपदेशपद. Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२७॥ POOR या हवई.॥४॥ नण महाराओ-तं कायव्वं ति मनत्रियकरहिं, पमिसुय मिमेहि समए–नवविष्ठा नोयणस्स कए. ॥ ५॥ तत्तो य नायणाई-पायसन्नरियाई तेसि दिन्नाई, जाय पवत्ता नोत्तुं-मुक्का पारधिसुणगाओ. ॥ ६ ॥ सवरुदचरणा -थालानिमुहं समागया जाव, सेणियवज्जकुमारा-ताव नएणं पनाया ते. ॥ ७॥ सेणियकुमरेण पुणो–घेनूणं तेसि ताई थालाई, खित्ताइं अग्निमुहाई-बग्गा ते पायसे तम्मि. ॥ ७ ॥ जुत्तं नियथातगयं—पायस मेएण धीरचित्तेण, दिछो एस वश्यरो-निवेण तो तंमि संतुट्टो. ॥ ९॥ नूणं सुनिनणबुद्धि--एस कुमारो जमेव वसणेवि, नो चुको नियकज्जा-धरिया सुणगावि संतोसे. ॥ १० ॥ एवं रज्जान इमो -खोहिजंतोवि अन्नराहि, नो रजपरिच्चायं-काही दाणप्पयाणाओ. ॥ ११ ॥ धशे. ४ तेमणे हाय जोगी कबूट्युं के तमो कहोगे तेम करशुं बाद समय थतां तेश्रो जमवा बेगा. ५ त्यारे दूधपाक NT थी नरेला नाणा तेमने देवामां आव्या. हवे जेवा तेश्रो जमवा लाग्या के पारधीना कूतरा बूटा मेळववामां आव्या. ६ तेओ सिंहजेवा पंझावाळा होइ जेवा थालो पासे आव्या के श्रेणिक शिवाय बीजा कुमारो मरीने त्यांची ऊठी नाग. पमतु श्रेणिक कुमारे तो तेमना थाळ खेंची कूतराआनी सामे धकेच्या एटले तेओ तेमानुं दूध पाक खावा वळगी गया. एटवामां तेणे थमे कलेजे पोतानी थाळमा रहेलो दूधपाक खाइ बीधो. आ बनाव जाणी राजा तेनापर खुश थयो. U राजाए विचार्यु के आ कुमार खरेखर ऊमी बुधिवाळो बागे ने केमके आवी आफतमां पण ते पोताना काळथीचूक्यो नहि.ते साये कूतराअोने पण संतोषमा राख्या. १० ए रीते राज्यथी पण ए बीजा राजाओए रुंध्यो थको दानप्रदान क-1 री राज्य खोइ नहि वेशशे ११ माटे हाल एने मार्छ मान देवं नहि केकके नहितो बीजा कमारो मत्सर धरी एने मारी श्री उपदेशपद. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५७ ॥ ता संपइ नो गोरवजोग्गो एसो जो श्मे कुमरा-उपन्नमबरा मारिहिंति एयंति पु णिनण-॥ १२॥ दिट्टो अवधूयगई सिणिओ, तोन जुत्त मिहमज्क, इय चिंतिय परिचलिओ-कुमरो देसंतरा निमुहो. ॥ १३ ॥ पत्तो विन्नाइ नई तीरनागप्पष्ट्रियत्तेण-विनायमानिहाणे--पुरंमि परपनरजणकलिए. ॥ १४ ॥ परिनियनिच्चहिंपसंगो संगो पविठोय-अजितरंमि तत्तोपत्तो एगस्स सेष्टिस्स-॥ १५ ॥ खीणविहवस्स हटमि-तत्य बघासणो समुवइट्टो, दिट्टो आसि निसाए--जहा ग ओ मम गिहे जलही. ॥ १६ ॥ सुविणो मणोहरो श्य--णूणं तप्फल मिमं ति चित्तेण-संतुट्रो सो सेट्ठी-तमि दिणे तस्स पुत्रेहिं-॥ १७ ॥ पट्टणसंखोहकरोमहो पयहो तो जणो बहुओ-कुंकुमचंदणधूयाइकिणणकजेण ददमि-॥ १० ॥ प्रोन्नो अबहुयं-विढत्त मसढाइ तेण नीईए, पचा नोयणकाले-नहिलकामेण नाखशे एम धारीने ( राजा चुप रह्यो.) १२ तेणे श्रेणिक तरफ जरा अनादरयी जायुं एटख्ने श्रेणिके विचार्यु के मारे । इहां रहवं नहि एम चिंतवी ते देशांतर नीकळी पड्यो. १३ ते वेणा नदीना कां रहेला वेणातट नामना घणां पेसादार वसनिवाळा गाममा श्राव्यो. १४ वाद काम प्रसो पोताना थोमा चाकरो साये दाखल्न थइ एक कोए विजय शेठना हाछटे आच्यो एटने तेणे तेने आसन प्राप्यु ते पर ते वेगो. त्यारे ते शेने विचार्य के राते मे जे मारा घरे दरियो आव्यो एबुं मनोहर स्वप्न जोयुं तेज आ फल के एम धारी ते शेउ मनमां संतुष्ट थयो. हवे ते दिवसे तेना पुण्ययोगे नगरने खळजळाटमां आणनार महोत्सव चाल थयो तेयी घणा लोक केशर चंदन तथा धूप बगरे लेवा सारं ते हाटपर आववा लाग्या. १५-१६-१७-१७ घणा लोक ऊतरी पड्याथी ते शेठे निष्कपटदी नीतियी घj धन कमाव्युं बाद जम श्री उपदेशपद. S Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२५ सो पुट्ठो. ॥ १४ ॥ कस्स श्रं पाहुणगा-तुम्हे, तेणावि तुम्ह जणिय मिणं, नीओ घरंमि नचिया–विहिया सव्वत्थपडिवत्ती. ॥ २० ॥ तो तस्स वायणकोसलसुलगत्तण विणयसुयण नावेहिं, अक्खित्तमणो सिट्टी-धूयं नंदं नियं देइ. ॥२१॥ परिणाविश्रो पबंधेण-भूरिणा जणियजणपमोएणं, तक्कासोचियसंपन्नसव्वकज्जो समं तीए. ॥॥ अञ्चंतणुरत्ताए-सुविणंमिवि विप्पियं मुणंतीए, एत्तोच्चियविणयपरायणइ मिउमहुरवयणाए-॥ २३ ॥ बग्गो नोगे तोत्तुं-मोत्तुं सव्वाज सेसचिंताओ, अइजामाग्यवचनससुरजणाणीय सम्पाणो. ॥ ॥२४ सुहपासुत्ता पेव-अहन्नया सुविणयंमि सा नंदा-हरहासकासधवलं-वनदसणं जसियकरं च-॥ २५ ॥ नियवाना वखते ऊठवानी यैयारी करतां तेणे तेने पूछयु के. १0 तो हां कोना परोणा थइ आव्यागे ? तेणे का के तमारा. तेयी ते शेव तेने घरे तेकी गयो त्यां तेनी सघळो वाते योग्य स्वागता करी २० बाद तेनी बोलबानी चतुराइ, सुजगपणु, विनय, तथा सौजन्य नावथा खेंचाइने शेने तेने पोतानी नंदा नामनी पुत्री आपी अने लोकोने आनंददायकजारे गठमाउथी वखतने अनुसरती सघळी गोठवण करी तेना साये तेने परणाव्यो. ३१-२२ नंदा तेनापर अत्यंत अनुरक्त होइ स्वप्नमां पण तेनो अयराध नहि करती अने एयीज ते विनयमां तत्वर रहेती अने मृदु तथा मधुर वाणी बोलती हती.१३ तेणी साये श्रेणिक बीजी सघळी चिंताओ छोमीने नोग विनास जोगवा माग्यो. केमके जमा कार नारे हेत राखता सासरीया तेनुं रुकी रीते सत्कार सन्मान साचवता हता. २४ हवे ते नंदा एकवेळा सुखे सूतीयकी स्वमनां महादेवना हास्य अने काशना कूल जेवो धोळो चार दंतोसलवाळो, ऊंची सुंदवाळो, एवो हाथीशो बच्चो पोताना मुखमा पेशतो जोश जागी ऊतीने तरतज पतिने जणाधा बागी त्यारे तेणे तेने आ प्रमाणे कड्यु. २५ २६ हे प्रि श्री जपदेशपद. Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २६० ॥ वयणे पवितं - मत्तंगयकलह मेग मह बुद्धा - तक्खणमेव निवेश्य पइणो तेणावि सा लिया. ॥ २६ ॥ उचियसमएण होही - ते पुत्तो पुन्नलक्खाणो दइए, सुवासा चविणं- - स पुन्नसेसो सुरो एगो ॥ २७ ॥ तो सुहलग्गे लग्गे -सुपसत्थे वा - सरंपि संलग्गो-गोतीए अएपोढपुन्नपन्नारलब्जो ति. ॥ २८ ॥ एवं वच्च काबो- जा ताव पसेणईच नरनाहो, जाओ असमत्थतणू - गवेसणा से पियस्ल कया . ॥ २ ॥ नाउ जहा विन्नायमपुरंमि सो संपयं सुहं वसई, तो तस्सा एायणकए - वि. सज्जिया तक्खणं चरया ॥ ३० ॥ पत्ता तस्स समीवे - निवेश्यो वश्यरो य रायगओ, गमणुम्मणो यजाओ - तो तक्खणमेव सो कुमरो. ॥ ३१ ॥ ग्रह असेि नियजगगिदं पत्र्यावसाओ, वच्चामि संप अहं - संतुमणा विसजेह. ॥ ३२ ॥ णिया य ते नंदा - अम्दे रायग्गिहंमि योवाला, बाले पंकुरकुड्डा- जइ करूं ये, दववाकयी को एक पुण्यशाळी देव चमीवे उचित समये तारे संपूर्ण लक्षण युक्त पुत्र यशे. २७ हवे ते ते शुन लगनमां शुभ दिवसमां तेणीने प्रति जारे पुण्ययोगे मळे एवो गर्भ रह्यो. २८ आ रीते वखत पसार यतो हतो तेवामां प्रसेनजित् राजा मांदो पमयो एटणे ते श्रेणिकनी शोध करावी. २० तेम करतां मालूम ययुं के ते हमला वेट नगरमा सुखे रहेछे तेथी तेने बोलाववा तरत दूतो मोकलाव्या. ३० तेो तेना पासे आवी राजानी सघळी कवा लाग्या, तेथी ते तरतज त्यांज जवा उत्सुक थयो. ३१ तेथी तेले शेवने पूछ के जबरी कामना सीधे हूं हाल वापना घरे जनार बुँ, माटे तमो खुश थी रजा आपो. ३२ वळी तेणे नंदाने कधुं के अमे राजगृहना गोपाळ छीये श्री उपदेशपद. Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। २६१ ।। जयं - तत्थ एजाहि ॥ ३३ ॥ पत्तो जणयसमीवं मि- सेओि पावियं च तं रजं, सव्वो आणासजो- सज्जो जाओ परियो वि ॥ ३४ ॥ नंदाए पुण तए – मासे गन्नानावओ जाओ - अविमझो दोहण - कहियो तीए य से डिस्स. ॥ ३५ ॥ जताय हत्यिखंधारुढा बत्ते धरिज्जमानयरे सबाहिरनंतरंमि हिंमामि च - ॥ ३६ ॥ घोसितं मया सरेण निसुणामि तो ममं तोसो, संपज्जइ अश्वदुओ - अन्नह मे जीवियच्चाओ. ॥ ३७ ॥ तो सुबुतु चित्ते – सेहिणा नरियरयणजाणे, दिट्ठो राया तेणावि मन्नियो कुह जहवं. ॥ ३८ ॥ वरकरिखंधगया सा - सियबत्तन्छन्ननदयाजोगा, निसुणं अन उग्घोसणं च परिहिंगिया नयरि ॥ ३७ ॥ संमाणियदोहलया — निम्म पणुव्विग्गमाणसा धणियं सा साहियनवमासा - वसाणसमयमि य पसूया. ॥ ४० ॥ देवकुमारागारं - दारग मरेगलोयणाणंद, विहिने हे बाळा, अमारा धोळा कुबा (भूंपका) बे, माटे काम परे त्यां आवजे. ३३ बाद श्रेणिकः पिता अने तेने सधळु राज्य मळ्युं तथा सघळा परिजनो आज्ञावती थया. ३४ हवे आणी मेरे नंदाने त्रीजे मासे गर्जना अनुजावे अति उत्तम दोहो थयो ते तेणीए बापने को. ३५ ते ए रीते के पिताजी, हुं हाथीना खां ने ऊपर छत्र धराय एम नगरना अंदर तथा बाहेर फरूं. ते साये मोटा अवाजथी अजय घोषणा थती सांजळु तो मने खूब आनं द थाय, नहितो हुं मरी जइश. ३६-३७ त्यारे शेठ घणो खुशी यइ रत्ननो यास नरी राजाने नेट्यो एटले तेणे रजाप के मरजी मुजब करो. ३८ हवे नंदाने मोटा हाथीना खांधे चमाववामां आवी ने ऊपर श्वेतत्र धरवामां आव्युं, अने अजयनी उद्घोषणा कराववामां आवी तेने सांजळी ते नगरीमां फरी. ३० आरीते दोहलो पूर्ण थयाथी आव्यो श्री उपदेशपद. Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ ओ जम्ममहो सेष्ठिणावि तकाल जोग्गोजो. ॥ ४१ ॥ पत्तमि पवित्तदिणे-विहियं ना मं सुयस्स अनो त्ति, संजाओ जणणीए-इमस्स जं अन्नयमोहनओ. ॥ ४ ॥ तो सुकपक्खससिमंमलं व सो वढिलं समाढत्तो, जाओ य अट्टवरिसो-बहुबंधुरबुजिरिखिलो. ॥ ३ ॥ पुबइ पत्थाववसा अम्मो मे कत्थ परिवसइ ताओ ? नणियं रायगिहपुरे-सेणियनामा स नरनाहो. ॥ ४ ॥ ताहे नणिया जणणी-अम्मो नो एत्य अस्थिउं जुत्तं, सुपसत्थसत्थसहियो-पिनगेहं पत्यिो तत्तो. ॥ ४५ ॥ पत्तो रायगिहबर्हि-सिबिरनिवेसेण गविया जणणी, तत्थ प्पणा पुण गयो -नगरस्त ब्नंतरं अजो . ॥ ६ ॥ तंमि समयंमि राया-अञ्चब्जयभूयबुधिसं पन्नं, मंतिं मग्गइ सव्वायरेण तो तस्स लानकए-॥७॥ निययं अंगुलिमुदारय१ तेणीए निरंतर आनंदमां रही कांइक अधिक नवमासनी आखरे देवकुमारना जेवो आंखोने आनंद आपनार पुत्र ज एयो त्यारे शेरे वखतने अनुसरतो तेनो जन्मोत्सव कर्यो. ४०-४१ बाद पवित्र दिवसे एनुं अजय एवं नाम पामयु केमके तेनी माने अजयनो दोहलो थयो हतो. ४२ हवे ते शुकन्न पदमां चंद्रमंमळना माफक वधतो थको आठ वर्षनो थयो, अने ते नारे सरस बुद्धिनो मार थयो. ४३ हवे प्रस्ताव आरता अजयकुमारे माताने पूछयु के मारो बाप क्यां रहे छ ? तेणीए कडं के ते तो राजगृहनगरमां श्रेणिकनामे राजा छे. पन त्यारे तेणे माने का के आपणे हां रहीशु नहि, एम कही सारा साथ साये ते वापना घर तरफ चायो. ४५ ते राजगृह आवी पोतानी माने बाहेर तंत्रुमां मेवी पोते नगरनी अंदर गयो. ४६ ते समये राजाने अद्युत बुद्धिवाळो मंत्री जोइतो हतो तेथी बनती महेनते तेने मेळाववा खातर तणे पोतानी आंगनीयां पहेरवानी वीटी एक अत्यंत सूकामणाना सीधे पाणीथी रहित थयेना ऊंमा कुवामा नांखी श्री उपदेशपद. Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २६३ ॥ ! XXXXXXXXXXXXXXXX ए वित्तं महावने गहिरे, अच्चतं सुकसिरत्तणेण जलव जियतलं भि. ॥ ४८ ॥ नणियो यस लोगो - तमे निविट्टो करे जो गहिदी, एयं तस्स जहित्रिय वित्तिपयाणं करेमि . ॥ ४ ॥ लग्गो लोओ लाडं - विविहोवायप्पयोगसंजुत्तो, नय फुर वाओ को वि-तारिसो, जेण तग्गहणं. ॥ ए० पत्तो अजयकुमारो - तदेसं, पुच्चियं कति ? कहि जणेण सव्वो-वृत्तंतो जो कओ रन्ना ॥ ५१ फुरियो तक्ख मेयरस - एप मिग्गाहगो नवाओ त्ति, खित्तो य गोमयपिंको तस्सोवरिं सहसा. ॥ ५२ ॥ खुत्तं तं ऊत्ति तहिं - जयंतगो तणमओ तो पूलो - खित्तो तस्मुएहाए - सुक्को सो गोमय सव्वो ॥ २३ ॥ तीरप्रियकूवंतरसार सिलिलेण पूरियो अगो, तो ते सो गोमयपिंको उचालियो दूरं ॥ ९४ ॥ पत्तो उवरिपए से - गदि दीधी. ४७-४८ बाद राजाए सधळा लोकने कछु के किनारे रही जे हाथव एने काढे तेने मनमानी वृत्ति आापीश. ४९० त्यारे लोको विविध उपाय अने प्रयोगो करी तेने लेवा लाग्गा, पण कोइने तेवो उपाय सूज्यो नहि के जेथी ते लइशके. ए० ए वखते त्यां अजयकुमार यावी चड्यो तेणे पूछयुं के आशी गरुवम बे ? त्यारे लोकोए राजाए करेलो सघळो वृत्तांत तेने जपाव्यो. २१ अजयकुमारने तरतज वींटी कहावानो उपाय सूज्यो तेणे ऊट लीलाछाएनुं पिंक बइ तेपर नांख्युं. २ ते तळियामां वींटीपर खूच्युं एटले वळता तणखणानो पूनो लइ तेना ऊपर नाख्यो तेनी गरमी थी ते बाण बरोबर सुकाइ गयुं. ५३ बाद तेणे पासे रहेला वीजा कूवाना पाणीनीनीक तेमां वाळीने ते कूवो पाए थी जर्थो, एटले ते पाणी साये ते छापनुं पिंक ऊंचे ऊंडळयुं. ५४ ते वेव ऊपर न्युं एटले किनारे वेळेला अजये तेने बइने ते श्री उपदेशपद. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६४॥ ANDED ओ अन्नएण तमनिविटेण, आयट्टियं च तत्तो-तं खित्तं मुहियारयणं ॥५॥नीओ रायसमीवे -तकन्जनिजत्तगेहि पुरिसेहं, आपुचिोयरमा-पयपणो कोसि वच्च तुमं? ॥५६॥ सो जण तुम्ह पुत्तो--किह कत्यव पूच्छिो निवेचे, सव्वं विलायम नयरसंतियं पुत्ववुत्तंतं. ॥७॥ हरिसजलपूरिच्छो-नज्मंगेऊण नियववस्वमि, पुणयंकुरपरियरिओ-पुणो पु, णो त मवगृहेइ. ॥॥ पुट्टो कत्य तुहंवा ? –सो नणई देव नयरबाहिमि, चलिओ सपरियरो तप्पवेसहेलं तो राया. ॥५॥ निन्नायवश्यराए-नंदाए मंमिश्रो तो अप्पा, अन्नएणं सा विनिवारियायनो अंब जुत्त मिणं.॥६॥पविरहियान सुकुयुग्गमान रापान जेण नेवत्यं-अच्चुब्ज न गिण्डंति-किंतु सुपसत्थमेव त्ति. ॥ ६१ ॥ तो तक्खणान तीए-वयणं पुत्तस्स मन्नपाणीए-गहिओ सोच्चिय वेसो-जो पु श्री नपदेशपद. ॐ मांथी वाटी कहा। लीधी ५५ त्यारे पछी ते कामपर राखेशा माणसो तेने राजा पासे तेही गया. त्यां ते राजाने पगे लाग्यो एटले राजाए पूछयु के वच्चा तुं कोण छे ? ५६ ते बोल्यो के हुं तमारो पुत्र बु. राजाए पूछयु ते शी रीते ? त्यारे तेणे वेणातटनगर संबंधी पूर्व वृत्तांत संजळाव्यो. ५७ त्यारे राजा हर्षना आंसुथी आंखो जरीने तेने पोताना खोलामां बरोमांचित थ वारंवार तेने वाथ जीमी जेटवा लाग्यो. ए राजाए पूछयु के तारी मा क्यां ? तेणे कयु के नगरी बाहेर जे. त्यारे राजा परिवार साये तेने लेवा चाल्यो. एए नंदाने ते वातनी खबर पमतां येणीए सणगार सजवा मांम्यो त्यारे अजये तेने अटकावी के एम करखं युक्त नथी..६० जे माटे पतिना वियोगवाळी कुलीन स्वीओ अति उत्कट वेष नथी पहेरती पण सादो वेषज पहेरे जे. ६१ त्यारे तेणीए पुत्रनुं वचन मानी तरतज ते ज वेष राख्यो के जे पहेला पहेरेस्रो ह Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३६५।। CON दिवं आसिपरिजुत्तो. ॥ ६ ॥ संपामियपवरमहं-सियणाणा पायरेहिल्वं, अभयो रन्ना नयरं-पवेसिओ जणणिसंजुत्तो. ॥ ६३ ॥ लछो पवरपसायोविनो सव्वेसि वरि मंतीणं, नप्पत्तियबुद्धिगुणेण- एस एवं सुही जाओ. ॥ ६ ॥-इति. अथ संग्रहगायावार्थ:-खड्डगत्ति घारपरामर्शः . मंति परिबा इतिमंत्रिणः परीक्षायां प्रक्रांतायां अन्नयो दृष्टांतः . कथमयं जात इत्याह-सेणियगमति श्रेणिकस्य कुमारावस्थायां पित्राबज्ञातस्य विन्नातटे गमो गमनमजूत् सुयिणसेटिनंदनए इति तत्र चैकेन श्रेष्टिना निशि स्वप्नो दृष्टो यथा रत्नकरो मद्गृहमागतः . ततस्तेन नंदा निधाना पुहिता तस्मै दत्ता. तस्यां चासावनयकुमारं पुत्रमजीजनत. प्रस्तावे व श्रेणितो. ६५ बाद लारे महोत्सववाळा अने फरकती विचित्र धाोधी शोजता नग मां अजय अने तेनी माने राजाए तेमी आएया. ६३२णे राजानी पूरती महेरवानी मेलची अने तेने सघळा मंत्रिोनो ऊपरी करवामां आव्यो. आरोते और त्तिकी बुछिना गुणे करी ते एवी रीते सुखी थयो. ६४ । हषे संग्रहगाथानो अक्षरार्थ करे छ:-रमगधारमा मंत्रिनी परीक्षा पेठे अजयनो दृष्टांत छे ते शीशते ते का हे . श्रेणिकन कुमारपणामां पिताए अवज्ञा करतां ते विनातटमां गयो. त्या एक शेठे गतना स्वम जोयु के दरियो मारे र आयो. तेयो तेणे नंदा नामनी पुत्री तेने परणावी ते नी कूखयी अजयकुमार पुत्र पेदा थयो. अवसरे श्रेणिक पोताना राज्यमांगयो. अवसर प्रावतां अजयकुमार पण पोतानी माताने शहेर बार राखीने पोते राजगृहमा पेसतो थको कूवामां पमेबी वीटीने जोवा लाग्यो एटाने तेणे लोकोने पूछतां तेमणे कयुं क जे किनारा पर रही आने कहा तेने राजा । श्री उपदेशपद. Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६६॥ कः स्वराज्यं गतः . अजयकुमारोपिसमये स्वजननीं बहिर्व्यवस्थाप्य राजगृहं प्रविशन् सन् मुद्दाकूवत्ति मुषां खड्डकमंगुलीयकमित्यर्थः कूपे पतितं ददर्श, बोकं च पप्रच. स चावोचत् यस्तटस्थित इदमादत्ते तस्मै राजा महांतं प्रसादमाधत्ते इति. ततोजयकुमारेण गणुगत्ति गणको गोमयस्तउपरि प्रक्षिप्तः नदकं च प्रवेशितं. ततः कथानकोक्तक्रमेण गृहीतं तत. राज्ञा च दृष्टः . तदनु जणणीपवेसणया इति जनन्या अन्नयकुमारसवित्र्याः प्रवेशनं नगरे कृतं राज्ञा इति. पर जुल्मादंगोहलि-वच्चय ववहार सीसोविहणा, अम्ले जायाकत्तणतदत्तसंदसणा णाणं. ॥ ३॥ (टीका)—पट इति झारपरामर्शः . जुन्नादंगोहमित्ति-किल कौचित् छौ पुरुषौ, तयोरेकस्य जीर्णः पटो न्यस्य चादिशब्दादितरः प्रावरणरुपतया वर्त्तते. तौ च माटो प्रसाद आपो. त्यारे अन्नयकुमारे छाण लइ तेना पर नाख्यु अने पछी तेमां पाणी यु. ए रीते कथामां कहेला ॐ क्रमथी ते वींटी कहामी. ते बनाव राजाए जोयो. बाद राजाए अजयकुमारनी मानो नगरमा प्रवेश कराव्यो.. हवे पटकार कहेछ:–पट ते एम के जूना नवा वे वस्त्र, अंगोमतां बदलाय. तेनो इन्साफ मायां ओळीने कर-3 वामां आव्यो. वीजा कहे के स्त्रीओना कतणा तपासतां तेमां ते जूदा जणाया. ७३ टीका.-पटधारमा एम वात चे के कोइ बे पुरुष हता. तेमांना एकनुं जूनुं ओढण हतुं अने बीजानु आदि ES एटले नवं ओढण हतुं. ते वे जण कोइ नदी वगेरे स्थळे समकाळे न्हावा लाग्या एटले आंढण ऊतारी कांवे राख्या. हवे श्री उपदेशपद. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १६७ ।। क्वचिन्नद्यादिस्थाने समकालमेवां गावकालं कर्तुमारब्धौ तदेवं मुक्तौ पटौ. वञ्चयत्ति तयोर्जीर्णपटस्वामिना लोजेन विपर्ययो व्यत्यासश्चक्रे नूतनपटमादाय प्रस्थित इत्यर्थः - तीयश्च तं निजं पटं याचितुमारब्धः - अवलदश्चानेन संपन्नश्च तयो राजजवनद्वारे कारणिकपुरुषसमीपे व्यवहारः . ( ग्रं. २००० ) कार कैश्च मित्र तत्वमित्यजान निः-- सीसओ लिहणा इति - शीर्षयोस्तमस्तकयोः क्कतन अवलेखना पररोमनानार्थं कृता, लब्धानि च रोमाणि ततस्तदनुमानेन यो यस्य स तस्य वित्तीर्ण इति कार शिकानामौत्पत्तिकी बुद्धिरिति. अत्रैव मतांतरमाह – अन्ये आचार्या ब्रुवते - जाया कत्तल तितौ पुरुष कारकैः पृष्टौ यथा केनैतौ जवतोः पटौ कर्त्तितौ ? प्राहतुः, निजनिजजायाभ्यां ततो द्वयोरपि जाये कर्त्तनं कारिते. ततस्तदन्यसंदर्शनात् व्यत्ययेन सूत्रकर्त्तनोपलंजात् जूना ओवाळा बोनाइने अदला बदली करी एटले के नवं प्रदेश ऊपामी ते चालतो थयो . त्यारे बीजाए पोतानुं ते मायुं, पण पेलो तेने ोळववा लाग्यो. तेथी तेोनो दरबारमां न्यायाधीश पासे मुकरदमो चाल्यो. त्यारे कार कि पुरुषो मां खर। वातशी हशे ते नहि जाएी शकवायी ते बेना मायाना वाळ कांसकी थी व्या. ते एटला खातर के तेमांथी ते वस्त्रना तांतला मळी यावे. ते प्रमाणे तांतला मळी यावतां तेना अनुमानथी जे जेनुं हतुं ते तेने आयुंए बाबतमां कार शिकोनी औत्पत्तिकी बुद्धि जालवी. या स्थळे मतांतर कहे बे. - बीजा आचार्य कहेंडे के ते बे जलने कार पिकोए पूछयुं के या तमारां ओढणनुं सूत्र को कांतेल छे ? तेप्रो बोया के अमारी स्त्रीओए. त्यारे ते बेनी स्त्रीयो पासेयी सूत्र कंतान्युं. ते जलटी रीते श्री उपदेशपद. Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥६७ ॥ ज्ञानं निश्चयः कारणिकानां संपन्नो, वितीर्णश्च यो यस्य स तस्येति. (५) .. अथ मरमेत्तिछारं.-सरमहिररणे सन्नावो सिरदार वाहि दंसणेविगमो, अपण तवलिग चेखणाणपुवाइ पुरिसादी. ॥ ४ ॥ (टोका)-इह किन कश्चिणिक् क्वचिद्वहुरंध्रायां नुवि पुरोषमृत्तृष्टुमारब्धः . तत्र च दैवसंयोगात्-सरमहिगरणे इति-घ्योः सरन्योरधिकरणं युधमनूत् . तत्र चैकः-सन्नावोसिरदरित्ति-संज्ञा व्युत्सृजतो वणिजः पुडोनापानरंध्रमाच्छोद्य तदधोनागवर्तिन्यां दर्यां प्रविष्टः, अन्यस्तु तदृष्टएव पनाय्यान्यत्र गतः. एवं च तस्यात्यंतमुग्धमतेः शंका समुत्पन्ना-यदयमेकः सरटो नोपमन्यते तन्नुन ममापान रंध्रेणोदरं प्रविष्टः-इत्येवं शंकावशेन-वाहित्ति व्याधिस्तस्यानृदुदरे. जणायायी कारणिकोने निश्चय थयो अने ते प्रमाणे तेमणे जे जेनुं ओढण हतुं ते तेने अपाव्यु, हवे सरमाई घार कहे :-सरमानी समाइमा एक संज्ञा सूकवाना स्थळे दरमा पेगो. देना शकयी व्याधि थ. तेने पाईं जोयायी टळी. बोजा कहे जे के शाक्यजिनुए चेत्राने पृढतां तेणे कह्यु के पुरुष छे के स्त्री . U टीका-एक वात चाले छे के कोइक वाणियो घणा दरोवाळी जमीनमा खरच करवा वेतो. त्यां दैवयोगे वे सरकानी समाइ थइ. तेमांनो एक ते खरचु बेला वाणियानी गांकमां पूछ मारी तेनी नीचेना दरमा पेसी गयो अने बीजो ते देखे तेम नाशीने बाजे स्थळे जतो रह्यो. हवे ते वाणियो बहु मुग्धबुद्धवालो होवार्थी तेने शंका थ६ पकी के एक सरमो नथी देखातोते नवी मारी गांममा थने मारा पेंटमां पेसी गयो. आवी शंकाने लीधे तेने पेटमा व्याधि थवा लागी. श्री. उपदेशपद. Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २६ए निवेदितं च तेन तयाविधवैद्याय यथा ममायं वृत्तांतः संपन्नः वैद्येनापि स प्रतिपादितः " यदि मम दीनारशतं वितरसि तदा त्वामहं नीरुजं करोमीति. " अम्युपगतं चैतत्तेन. ततो वैद्येन बाकारसविलिप्तमेकं सरटं विधाय घटमध्ये च प्रतिप्य विरेचकौषधप्रयोगेण पुरीषोत्सर्गप्रज्ञौ कारितस्तत्र ततः - दंसणावगमो इति पुरीपाहतसरस्य घटान्निर्गतस्य दर्शनेपगमो विनाशः संपन्नो व्याधेरिति (छ) अत्रैव मतांतरमाह अन्ये आचार्या एवं ब्रुवंति-तव्वन्निगचिल्लाणाण पुछाए इति- तृतीयवर्णिकः शाक्य निक्षुः क्षुल्लकश्च लघुश्वेतांबरत्रती तयोः परस्परं पृच्छायां प्रवृत्तायां सत्यां क्षुल्लके - पुरुषादि इति - किमयं पुरुषः जत स्त्रीत्युत्तरं दत्तं. अयमत्र नाव: क्वचित्प्रदेशे केनापि शाक्यनिक्षुणा सरटो नानाविकारैः " तेणे कोइ हुश्यार वैद्यने जणान्युं के आ रीते मारा संबंध हकीकत बनी बे. त्यारे वैद्ये तेने जगान्युं के जो सो सोना म्होर आपे तो तने हुं नीरोगी करूं. तेथे ते कबूल्युं एटले वैधे एक सरकाने लाखना रसमां ऊबोळीने घमामां नाखी ते वाशयाने जुझाव प्रापीने ते घसायां खरनु करवा बेसाड्यो तेने खर धावता देना बेगथी हणायलो सरको मानी बाहेर नको ते जोर देने मांदगी टी. इहां मतांतर कहे बेबीजा आचार्यो आम कहे छे के ताकि एटले पैद्धमती जिक्षु अनेक एa नानकको वतांवर यति, ते वे जहनी पूम्परमां कुहके " या पुरुष के के स्त्री छे ?". . एम उत्तर वाल्यो. कोई बौद्ध भिक्षुके सरकाने अनेक चाला साथे मायुं धुणावतो जोतेने तेथे मरकरी साये पूछ 'अरे चल्ला तुं सर्वज्ञपुत्र बे तो क या वातनी मतलब आ बेः – कोक का यो. एवामां त्यां कोइ कारणे जैननो चेलो आवी चड्यो श्री उपदेशपद. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२७॥ शिरश्चातयन्नुपलब्धः . तदनु कथंचित् तत्प्रदेशे समागतः कुलकः तेन सोपहासमेवं पृष्टः-" जो नोः कुबक, सर्वज्ञपुत्रकस्त्वं, तत्कथय किं निमित्तमेष सरटः शिरो धून्यत्येवं ?" तदनु तत्क्षणोत्पत्तिकीबुधिसहायः कुत्रकस्तस्यैवं. नत्तरं दत्तवान् यथा “नोजोः शाक्यवतिन्नाकर्णय-अयं सरटो नवंतमालोक्य चिंताक्रांतमानसः सन्नूमधश्च निनावयति-किं नवान् निकु-रुपरि कूर्चदर्शनात्, नत निकुकी-बंबशाटकदर्शनादिति. (७) ___कागे संखे वंचिय–विमाया सहि नण पवसादी, अम्ले घरिणिपरिबा-णिहिफुट्टे रायगुणाओ. ॥ ५॥ (टीका)—काक इति घारपरामर्शः-संखे वंचियत्ति-संख्याप्रमाणं एवहे के शा माटे सरमो आ रीते माथु धुणावे जे?' त्यारे ते चेन्नो तरतत्रुद्धिवाळो होवाथी उत्तर देवा लाग्यो के अरे ज्ञाक्यजिक्नुः सांजळ, आ सरमो तने जो चिंतामां पकी ऊंचे नीच जुवे ने के तुं मोढा पर दाढीमूछ होवाथ जितने के लांबी सामी पहेरेली एटने निक्षकी छ ? एमज कागमानी संख्या विन्नातटमा साउहजार जे. कणा थाय तो परदेश गया . बीजा कहे जे के निधि माटे स्त्रीनी परीका करतां वात फूटतां राजानी रजा या नए टीका-पूर्वना नदाहरण माफकन कोक राना कपमावालाए चेन्नाने पूछयु के विनातटनगरमां केटना कागमा छे ? त्यारे चेलाए कह्यु के अरे जिव ! साठ हजार कागमा आ नगरमां ने जिनु बोल्यो के जो काणा अधिका यशे तोश करीश ? चेलाए कडं के जो ताररी गणतीमां ऊणा थाय तो प्रोपित एटने देशांतरमां गया छ एम जाणवू, अने जो श्री नपदेशपद. Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७॥ मेव प्राच्यकज्ञाते व रक्तपटेन कुलकः पृष्टः यथा विनायमसहित्ति विन्नातटे नगरे कियंतः काका वर्त्तते ? ततः कुलकेनोक्तं-अहो निको षष्टिः काकसहस्त्राणि अत्र नगरे वर्त्तते.--निकुः-ननु यद्यूना अधिका वा काका नविष्यति तदा का वार्गेति? क्षुल्लकः-ऊणपवासाई इति उना उपलक्षणत्वात् अन्यधिका वा यदि नवतो गणयतः काकाः संपद्यते तदा प्रोषितादयः प्रोषिता देशांतरं गताः आदिशब्दादन्यतो वा देशांतरात् प्राघुणकाः आगताः-इदमुक्तं नवति-यदि ऊनाः संजायते तदान्यत्र गता इति ज्ञेयं,-अथान्यधिकास्तर्हि प्राघुणकाः समायाता इति. तदनु निरुत्तरी वभूव शाक्यशिष्यः . अत्रैव मतांतरमाह.-अन्ये आचार्या ब्रुवते यथा केनाचदूणिजा तथाविधाद्व अधिक थाय तो देशांतरथी पाहुणा आवेशा समजवा. आधी ते शाक्य निकु निरुत्तर ययो. हां मतांतर कहे छ:-वीजा आचार्यो कहे छे के कोक वाणियाने तेवा पुण्यना योगे कोई बुपी जग्यामां निधान मळ्यु. बाद तेणे ते निधिने राखवा खातर पोतानी स्त्रीनी परीक्षा करी के ते बुपी वात छानी राखी शके छे । के नहि ? एटने के तेणे पोतानी स्त्रीने कह्यु के हु कामे फरतो हतो तेवामां मारी गांझमां धोलो कागको पेसी गयो. ह. वे स्वीपणानी चपळताथी तेणीए ते हकीकत पोतानी सहीयरने जणावी, तेणीए वळी त्रीजीने जणावी एम छेवटे राजाए पण ए वात जाणी. त्यारे ते वात फूटतां राजाए तेने बोलावी पूछयु के अरे वाणिया! तारी गांझमां धोळी कागको पेसी से गयो एम संजळायने ते साची वात छे ? त्यारे तेणे जणव्युं के स्वामिन् ! मने निधान मळेल छे तेयी स्त्रीनी परीक्षा माटे । श्री उपदेशपद. Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ७।। चुतपुण्यप्राग्जारोदयेन क्यापि विविक्तप्रदेशे निधिदृष्टो गृहीतश्च. तदनु धरिणिपारवाणिहित्ति-गृहिण्या नार्थायाः परीक्षा तेन निधिरक्षणार्थं कृता-किमियं रहत्यं धारयितुं शक्नोति न वेति बुद्ध्या. इदमत्रैदंपर्य-तेन निजजाथैवं प्रतिपादिता, यथा मम पुरीपोत्सर्ग कुाणस्य श्वेतवायसोपानरंध्र प्रविष्ट इति. तया तु स्त्रीत्वचापत्योपेतथा निजसख्याः ख्यापितोयं वृत्तांतः . तयाप्यन्यस्थाः .-एवं यावत्परंपरया राज्ञापि ज्ञातैषा वार्ता. ततः-फुट्टे रायणुन्नाओ इति स्फुटिते प्रकटंगतेस्मिन् व्यतिकरे पार्थिवेनसमाहूय पृष्टोसौ, यथा वणिक् किमिदं सत्यं ? यतः श्रूयते त्वदधिष्टाने पांमुरांगो ध्वांदः प्राविवदिति. ततो निवेदितं तेन-यथा देव, मया निधिः प्राप्तस्ततो महिनापरोक्षणार्थमिदमसंन्नाव्यं मया तस्याः पुरतः प्रतिपादितं, यदीयमिदं रहस्यं धारयिष्यति तदा निधिलाजमस्या निवेदयिष्यामि इति मत्वानेनेति. एवं च सजावे निवेदिते राज्ञा तस्य निधिः पुनरनुज्ञात इति. (१) नच्चार वुड्ढतक्षणी-तदामनग्गत्ति नायमाहारे, पत्तेय पुबसबकुलि-सामावोसिरण णाणं तु.॥ ६॥ आ असंजवित वात में तेना आगन करी. एवं धारीने ने के जो ते आ वात छानी राखशे तो निधाननी वात एने कहीश. आम खरी बात कही आप्याथी राजाए निधाननी तेने रजा आपी. उच्चारना दृष्टांतमां वृद्धनी तरुणी बीजामां लागतां न्यायमा प्रत्येकनो आहार पूउतां शकुनिनो आहार करता खरच कराव्यायी तेनी खातरी करी.०६ श्री उपदेशपद. Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २७३ ॥ (टीका ) – उच्चार इति द्वारपरामर्श: . – बुड्ढतरुणी इति कस्य चिवृद्धाह्मणस्य तरुणी जाया समजनि. अन्यदा चासौ तथाविधप्रयोजनवशात्तया सह ग्रामं गंतुं प्रवृत्तः साचाजिनवतारुण्योन्मत्तमानसा तस्मिन्ननुरागं स्वप्नेप्यकुर्वाणा — तदन्नन्लग्गत्ति-तस्मान्निजनर्त्तुरन्यस्मिंस्तरुणे धूर्त्ते लग्नानुरागं गता स्वं जत्तीरं परिमुच्य तेन सह प्रस्थिता इत्यर्थः - इति वाक्यपरिसमाप्तौ नायत्ति ततो न्यायो व्यवहारः क्वापि - ग्रामे तयोर्ब्राह्मण धूर्त्तयोरनूत्. आहारे पत्तेय पुछत्ति- -- ततः कारणिकैः प्रत्येकं त्रीण्यपितान्यतीत दिवसाहाराज्यवहारं पृष्टानि. सक्कुलित्ति ततो ब्राह्मणेन तद्भार्यया च सत्कुक्षिका लक्षण एकएवाहारः कथितस्तदनु सन्नावो सिर गां तु इति विरेचकप्रदाने कृते तेषां द्वितयस्यैकाकारसंज्ञाव्युत्सर्गोपनात् ज्ञानं पुनरजायत का - futai satयैव ब्राह्मणस्येयं जार्या, नास्य धूर्त्तस्येति. (छ) टीका - उच्चारना धारमां कोइ वृद्ध ब्राह्मणनी जुवान स्त्री हशे हवे एक वेला कामकाज माटे तेनी साथे ते ब्राह्मबीजागामे चाल्यो. पण तेली नवयौवनयी छकेल होइ तेना पर स्वमामां पण प्रीति नहि लावतां वीजा जुवान ठगारामां अनुराग घरी पोताना तीरने बोमी तेनी साथे चालती थइ. बाद कोई गाममां ते ब्राह्मण ने धूर्त्तनो न्याय थयो. त्यां कार को दरेकने गया दिवसे शुं खाधुं हतुं ते पूछयुं. त्यारे ब्राह्मण ने स्त्री शक्कुलि खावानुं सरखं जणान्युं. बाद जुलाब आप खरच करावतां वञेनी एकज आकारवाळी संज्ञा देखायार्थी तेमने खातरी थ‍ आ स्त्री या ब्राह्मनीज नार्या छे, पगारानी ते नथी. ३५ श्री उपदेशपद. Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२७॥ अथ गज इति घारं.-गयतुत्रणा मंतिपरिक्खणत्थ नावाइ उदगरेहाओ, पाहाणतरणतुणाएवं संखापरिमाणं. ॥ ७ ॥ (टीका)—गजस्य कुंजरस्य तुबना प्रारब्धा मंत्रिपरीक्षणार्य. अयमन्निप्रायः --वापि नगरे मंत्रिपदप्रायोग्यविशदबुध्ध्युपेतपुरुषोपत्रकणार्थं राज्ञा पटहप्रदानपुरस्तरमेवमुद्घोषणा कारिता-यथा यो मदीय मतंगजं तुझयति तस्याहं शतसहस्रं दीनाराणां प्रयबामीति. नावाए उदगरेहाओ इति ततः केनापि निपुणधिषणेन नावि प्रोएयां गजं प्रतिप्यागाधे उदके नीतासौ नौर्यावच्चासौ गजन्नाराकांता सती अमिता तावति नागे रेखा दत्ता. ततो गजमुत्तार्य-पाहाणतरणत्ति पाषाणानां भृतासौ ता. वद्यावत्तां रेखां यावज नमध्ये निमग्ना. ततस्ते पाषाणास्तुश्रिताः .-एवं संख्याया गजगोचरत्नारपत्रादिप्रमाण लक्षाणायाः परिज्ञानमभूत्तस्य.-यावती संख्या पाषाणप्रति ___ हवे गनकार कहे छ:-मंत्रिनी परीक्षा माटे हाथीनो तोन्न करवा मांड्यो. नाव पाणीमां डूब्युं त्यां निशानी कररी. बाद तेमां पाहाणा जरी तोन्न करी एम वजन, ज्ञान मेळव्यु. ७ टीका-मंत्रिनी परीक्षा माटे हायीनो तोल करवा मांड्यो एटले के कोइ नगरमां मंत्रिपदयोग्य उत्तम बुद्धिवाला पुरुषने ओळखवा सारु राजाए पो फेरवी उद्घोषणा करावी के जे मा। हायर्याने तोळे तेने हुं लाख सोना म्होर आपुं. त्यारे को हुश्यार माणसे हायीने नावमां नाखीने ते नाव ऊंमा पाणीमां पाण्यु. सात हायाना नारथी जेटलं बमयुं तेटला नाममा निशानी करी सीधी. बाद हाथी ने उतारी तेमां ते निशानी सुधी पाणीमां ते डूबे त्यां बगए पथ श्री उपदेशपद. Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२७॥ बद्धनारादीनां तावत्येव गजस्यापीति ज्ञातं तेनेति नावः . ततः परितुष्टमानसेन धराधिराजेन मंत्रिपदमस्यै वितीर्णमिति. घयणे णामयदेवी-राया ह ण एव गंधपारिबा, णति हसणा पुत्रण-कह रोसे धामुवाहरिती. ॥ ७ ॥ (टीका )-घयण इति हारपरामर्शः .-अणामयदेवी रायाहत्ति-कोपि राजा सर्वराहसिकप्रयोजनवेनुः स्वकीयत्नांमस्याग्रत इदं प्राह,-यात मम देवी पट्टराझी अनामया नोरोगकायततिका कदाचित् सरोगता सूचकं वातकर्मादि कुत्सितं कर्म न विधत्ते इति-घयणः . - न एवत्ति देव नैवायमर्थः संनवति यन्मानुषेषु वातादिन संजवतीति ततो राझोक्तं,-कथं त्वं वेत्सि? राजर्या. बाद ते पथरा तोळी जोया एटो हायाना वजननी खातरी थइ. एटले के जेटg वजन ते पयरामोनुं थयुं तेर टर्बुज हाथीनुं वजन ने एम तेणे जाएयु. तेथ। राजाए खुशी थइ तेने मंत्रिनुं पद प्राप्यु. घयणना दृष्टांतमां राजाए कह्यु के राणी नीरोगी .घयणे कडं के एम होय नहि. गंध आपतां परीक्षा करी. बुचाइ जणातां हसवू आव्यु. पूछतां वात कही. गुस्से थइ रवाने को. तेणे जोमा उचक्या एटले अटकावी राख्यो. 0 टीका.- घयणना धारमा कोइक राजा पोतानी सर्वे छानी वातो जाणनार मश्करा आगळ आ रीते वोब्यो । के मारी पटराणी एवी अनामय एटने नीरोगकायावाळी छ के कोइ वेळा सरोगतासूचक वातकर्म विगेरे निंदित काम करती नथी. मइकरो वोल्योः हे देव ! ए वात बनेज नहि के माणस थइ वात विगेरे करे नहि. त्यारे राजाए कयुं के ते तुं केम जाणी शके छ ? श्री उपदेशपद. Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।।१७६ ॥ घयणः:-गंधपरिबा इति महाराज, यदा देवी तव गंधानुपक्षणत्वात् पुप्पादि च सुरतिव्यमर्पयति तदा परीक्षणीया सम्यक्-वातकर्म विधत्ते नवेति ? कृतं चैवमेव धराधिपेन. ततो ज्ञाते देव्याः शठत्वे हसणा इति राज्ञा हसनं कृतं. पुवणत्ति तयाप्यकामे एव हसंतमालोक्यं तं पृष्टोसौ, यथा किमर्थं देव हसितं त्वया प्रस्तावे एवेति ? कहत्ति ततो ययावृत्तं निवेदितं देव्या नरनाथेन-अथ-रोसे धामुवाहत्ति-तां प्रति रोषे जाते देव्या घाटितो निर्घाटितो घयणः . ततो महती वंशयष्टिं निबद्धप्रभूतोपानदजरामादाय देवीप्रणामार्थमुपस्थितोसौ. पृष्टश्च तया यथा किं रे एता नपानहस्त्वया वंशे निबधाः ? तेनाप्युक्तं तावकी कौति निखिनां महीवलये ख्यापयित्वा एता घर्षणीया इति. ततो लजितया देव्या स्थितिः तस्य कृता-विधृतोसावित्यर्थः . (छ) मश्करो बोड्यो के महाराज !ज्यारे राणी तमोने अत्तरफून विगेरे सुगंधी द्रव्य आपे त्यारे तेनी बरोबर तपास करखी के वातकर्म करे छे के नहि ? राजाए तेमज करतां देवीनी बुच्चाइ जणाइ आव्याथी तेने हसवू आयु. त्यारे वगर प्रस्तावे तेने हसतो जोइ तेणीए पूछ्युं के तमे वगर प्रस्तावे केम हस्या ? त्यारे राजाए देवीने बनेत्री वात जणावी. तेथी मश्करा ऊपर गुस्से थइ राणीए तेने जतो रहेवा फरमाव्यु: एटले ते मोटी वांसनी नाकमोमां घणां पगरखां बांधी देवीने नमवा आव्यो. आ परयी राणीए तेने पूछ्यु के अरे!शा माटे पाटलां पगरखां तें आ वांसमां बांध्या छ ? तेणे कद्यु के तारी तमाम कीर्त्तिने नूमंगळमां जणावीने आ बधा मारे घसावा. तेथी देवीए शरमाइने तेने रोकी राख्यो. . श्री उपदेशपद. Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१७॥ गोलग जलमयणक्के पवेसणं दूरगमणमुक्खंमि, तत्तसमागाखोहो-सीयस गाढत्ति कट्टणया. ॥ नए॥ (टीका)-गोरगत्ति घारपरामर्शः -जलमयनके पवेसणमितिजतुमयस्य बाकामयस्य गोलकस्य नक्के नासिकायां क्रीमतः कस्यचित्रशोः प्रवेशनमभूत्. दूरगमणउक्खंमित्ति दूरंगते च गोलके तस्य गाढं फुःखमुत्पन्नं, तस्मिन् सति तत्पित्रा वार्ता कथिता कलादाय. तेनापि-तत्तसलागाखोहोत्ति तप्तया यः शलाकया दोनो नेदः कृतो गोलकस्य नासिकामध्यगतस्यैव. तदनु-सीयतत्ति पानीयं विवा शीतसा कृता शलाका. ततश्च गाढत्ति कट्टणया ति-जनावसिक्ता सती गाढा लग्ना सा शलाका गोलके इति कृत्वा आकर्षणं कृतं शबाकायाः . तदाकर्षणे च गोलकोप्याकृष्टः . तदनु सुखितः समजनि दारकः . (७) बाखनी गोळी नाकमा पेसतां अने लांबी जतां सुख ययायी तपावेशी सल्ली खोसी भी पानी वळगी रहेता खेंची सीधी. ए टीका-साखनी गोळी कोइ रमता बाळकना नाकमां पेसी गइ. ते सांबी उतरता तेने सखत पीका थवा या एगी ते वात तेना बापे कलादने कही. तेणे तपावेल लोढानी सळी नाकमा रहली गोळामा खोसी. बाद पाणी रेकी तेने थकी पामी. एटले ते पाणीथी जीजायली थने ते गोळीमां वळगी गइ. एथी करीने तेने खेंची एटझे गोळी पण खेंचाइ आवी. तेथी ते वाळक सुखी थयो. भी उपदेशपद. BREAMERICA Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २७८ ॥ खंजे तलागमज्जे- तब्बंधण तीरसंविएणे व खोंटग दीहा रज्जू - नमामणे बंधणसिद्धी ॥ एं ॥ ( टीका ):-स्तं इति द्वारपरामर्शः केनचिद्राज्ञा क्वचिन्नगरे सातिशयबुद्धिमंत्रिज्ञानार्थं राजभवनद्वारे पत्रमवलंबितं यथा तमागमध्ये इति नगरपरिसरवतिनोस्य तमागस्य मध्ये य स्तंनो वर्त्तते, तब्बंधपत्ति तस्य स्तंजस्य बंधनं नियंत्रबुद्धवलेन तारस्थितेनैव तमाग जलमध्ये नवगाढेनैव क्रियते दीनारशतसहस्रमदं तस्मै प्रयवामि एवं च सर्वत्र प्रवादे प्रवृत्ते केन चिन्मतिमता - खुंट - यत्ति - तमागतटनुवि खुंटकः स्थाणुरेको निखातस्तत्र च दीर्घा तमागायामव्यापिनी रज्जुः प्रतीतरूपा बद्धा. ततस्तस्या मानेन भ्रमणेन प्रवृत्त्याने सति बंधनप्रसिद्धिः स्तंनगोचरा संपन्ना लब्धं च तेन यत्राज्ञा प्रतिपन्नमासीत् तथा मंत्रि तळावमा रहेला थांजनामां किनारे रही बंध पारुवो खूंटामां लांची दोरी बांधी चोमेर जम्यायी ते · बंधायो. ए० टीका - स्तंनधार ते ए के कोइक राजाए कोइक नगरमां चमत्कारि बुद्धिवाळो मंत्रि मेळवावा राजमहेलना दरवाजे नोटिस लटकाव के नगर पासे रहेला या तळावना बच्चे जे स्तंन छे, तेने जे कोइ बुद्धिमान् तळावना पाणीमां पेया वगरज बांधी आपशे तने हुं लाख सोना म्होर आपीश. आ बात सघळा स्थळे जाहेर थतां कोइक बुद्धिमान् माणसे तळावना कांटा पर खूंटो खोमी तेमां तळावना घेरावा जेटली लांबी दोरी बांधी. बाद तेने लइ चोमेर फरी आव्यो श्री उपदेशेपद. Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदमपीति. (७) खुड्डुग पारिव्वाई-जो जं कुणइत्ति कागा पनमं, असे न कागविद्या पुत्राए विण्हुमग्गणया. ॥ ए१ ॥ (टीका)-खुड्डग इति धारपरामर्शः . पारिवाई जो जं कुणतित्ति-काचित संदर्पप्रकृत्तिः परिवा जिका प्रसिद्धरूपा “यो क्तिचित् कुरुते ज्ञानविज्ञानादि तत् सर्वमहं करोमीत्येवं प्रतिज्ञाप्रधाना पटहकं नगरे दापितवती. कुलकेन केनचिन्निवार्थ नगरमध्ये प्रविष्टेन श्रुतोयं वृत्तांतः . चिंतितं च तेन “न सुंदरावधारणास्याः." --स्पृष्टश्च पटहकः , गतश्च राजकुत्रं, दृष्टा च तत्र सा राजसनोपविष्टा. तया च तं बघुवयसं कुलकमवलोक्य नणितं,-कुतस्त्वां गिटामि ? नूनं एटले थांगलामां बंध आधी गयो. तेथी तेने राजाए कबूबेवं धन मळ्युं तथा मंत्रिपद पण मळ्युं. हुबक के एम के परित्राजिकाए जाहेर कर्यु के जे जे कां करे ते हुं करूं. कुखके मूत्रीने पद्म आलेल्यु. बी जा कहे जे के कागमानी विष्टा बाबत पूजतां विष्णुनी मागणी दर्शावी. ५१ . . टीका-झुबक घारमा ए वात छे के कोइक गर्विष्ट परित्राजिकाए नगरमां एवी प्रतिज्ञा साये पमो वजमाव्यो के जे काइ जे कंइ हुन्नर करशे ते हुं करी आपीश. हवे ए वातनी नगरमां निकायें आवेना कोइ एक चेलाने खबर पी, त्यारे तेणे विचायुं के आने जती मेलवी ए ठीक नहि. तेथी ते पमाने छिवी दरवारमा गयो. त्यां तेणे तेने राजसजामां केली दीवी. तेणीए ते नानकमा चलाने जोड़ने कहूं:-तुं खरेखर. मारा खोराक माटेज नशीवे मोकलावेल डे, माटे तने क्या श्री.उपदेशपद. Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २८० १६ त्वं मम क्षणनिमित्तमेव दैवेन प्रेषितोसि तेन चानुरूपोत्तरदानकुशलेन झगित्येव स्वं मेहनं दर्शितं. एवं च प्रथमत एव जिता सा. तथा - काश्या पठमंत्ति—का थि या प्रतीतरूपया शनैः शनैस्तद्वाररूपं जुवि पद्मं विलिखितं जणिताच - " धृष्टे, संप्रति सर्वसज्यपुरुषप्रत्यक्षं स्वप्रतिज्ञां निर्वाहय यदि सत्यवादिनी त्वमसि न च सा तलिखितुं शक्नोति — प्रत्यंतसज्जनीयत्वात् सामग्र्यनावाच्चेति. -मतांतरमाह . - अन्ये पुनराचार्या ब्रुवते यथा— काग विद्या पुछाए इति काकः कश्चित् क्वचित् प्रदेशे विष्टां विकिरन् केनचिद्भागवतेन दृष्टः . तत्कालदृष्टिगोचरापन्नश्च क्षुल्लकस्तेन पृष्टः, यथा जो लघुश्वेतांबर, किमिदंarat विष्टां विपन्नतस्ततो निजालयतीति वद - सर्वज्ञपुत्रको यतस्त्वं. स्यां च पृछायां णितं क्षुल्लकेन - यथा - विण्डुमग्गणया इति एष हि काकः - यी खाउं ? तेने मळतो उत्तर देवामां कुशळ ते चेल्लाए ऊट पोतानुं लिंग बतान्युं एटले पहले बीज ते जीता. बाद मूत्रनी लेखी ते तेली ने कहेवा लाग्यो के अरे लुच्च ॥! जो तुं साचाबोली होय तो हवे तातेम करी शकी नहि. केमके ते काम प्रति लज्जामं हतुं तेम तेनी पासे तेन । सा धारथी धीमे धीमे तेनुं योनिकमळ री प्रतिज्ञा पार पाऊ. पण तेली कं मी पण न हती. इहां मतांतर कहे छे. बीजा आचार्यों कहे छे के कोइक जागवते कोइक ठेकाणे कागमाने वीठ फेंकतो जोयो. वामां एक चेलो तेनी नजरे पकतां तेने ते कर्तुं के अरे नाना चेलका ! तुं तो सर्वज्ञनो दी करो बे माटे कहे श्री उपदेशपद. Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 190? " जले विष्णुः स्यलेविष्णुर्विष्णुः पर्वतमस्तके, ज्वालामालाकुने विष्णुः-सर्वं विष्णुमयं जगत्-" इति श्रुतस्मृतिशास्त्रः संपन्नकौतुहलश्च किमत्र विष्णुर्विद्यते न वेति संशयापनोदाय तं मार्गयितुमारब्धः . (७) मगंमि मूवकंमरि--अज्जुवाए कुडंगि पसवत्यं, जायण पेसण रमणे-आगमहासे पमग्गहणं. ॥ ए॥ (टीका)—मार्गे इति घारपरामर्शः .--मूलकंमरित्ति मूत्रदेवकमरीकधूर्तों कदाचित्कुतोपि निमित्तात् पथि व्रजतः . तत्र चैकः पुरूषस्तरुणरमणीसहायो गंत्र्यारूढः सन्मुखमागबन्नवलोकितः. अझुववाए इति अध्युपपन्नश्च कंकरीकस्तस्यां यो षिति, निवेदितश्च स्वाभिप्रायो मूत्रदेवाय. तेनचोक्तं-मा विषीद, घटयाम्येनां ते. के आ कांगमो वीउ फेंकतां आम तेम शुं जुवे ने ? आ स्वालमा चेलाए उत्तर वाळ्यो के ए तो “ जम्ने विष्णुः स्थो । विष्णुः" ए स्मृति सांजळी कुतूहलमा पीने आहिं विष्णु छे के नहि ए संशय टालवा माटे तेने शोधवा बाग्यो छे. (मार्ग धार)-मार्गमां मूळेदेव अने कमरीक चाव्या. आशक थतां वासना कुंम्मा सुवावर कराववा माटे याचना करी. वटेमाणुए स्त्री मोकनावी. कमरीक ते साये रम्यो. तेणीए आवीने हसते मुखे मूळदेवनी पाघमी ऊतारी लीधी. ए टीका–मार्गधारमा ए वात डे के मूळदेव अने कमरीक नामना बे उग एक वखते कोश्क कारणे मुसाफरीएनीकट्या. त्यां तेमणे एक माणस जुवान स्त्री साथे गामी पर चमी तेमनी सामे आवतो जोयो. कमरीकनुं मन ते स्त्री श्री उपदेशपद. Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ ततः-कुगिपसवत्थं जायणत्ति-मूलदेवेन कंझरीक एकस्यां कुमंग्यां वृक्षगहनरूपायां निवेशितः , स्वयं च मार्गस्थ एवासितुमारब्धः . यावदसौ पुरुषः सन्नार्यः तत्प्रदेशमागतः ,-लणितश्च मूलदेवेन-यथैषा मम जार्यात्र वंशकंग्यां प्रसरितुमारब्धास्ते, एकाकिनी चासौ, ततस्तस्याः प्रसवार्य स्वनार्या मुहूर्तमेकं प्रेषयेत्येवं याचनं कृतं तस्याः . पेसणत्ति-प्रेषणं च कृतं तेन तस्याः . ततः-रमणे इति-अंबं वा निंब वा ----आसन्नगुणेण प्रारह वही, एवं इत्यीयो बिहु-जं आसन्नं तमिवंति.-इति न्यायमनुवर्तमानायास्तस्याः कंमरीकेन सह क्रीमने रमणे संपन्ने सति,-आगम हासे पग्गहणमिति-मूलदेवांतिकमागत्य सहासमुखी “ प्रिय तव पुत्रो जात" इति च वदंती मूत्रदेवमस्तकात् पटग्रहणं कृतवती सा. पवितंच तया निजनारं प्रति, तरफ खेंचायुं एटले तेणे मूळदेवने पोतानो अभिप्राय जणाव्यो. मूळदेवे का, धीरो रहे, हुं एने मेळवी आपुं. बाद मूळA देवे कमरीकने एक कुंभमां बेसाड्यो अने पोते रस्तापर बेसी रह्यो. एटवामां ते ठेकाणे ते माणस तेनी स्त्री साये - वी पहोंच्यो. तेने मूळदेवे कह्यु के आ मारी स्त्री आवांसना ऊममा प्रसववा लागी छे अने ते एकनी , माटे तेने सुवावममा मदद करवा खातर तमारी स्त्रीने थोमी वार मोकझो. ए रीते तेणे याचना करी. र ते परयी तेणे तेणीने त्यां मोकवावी. हवेएवी कहेवत ने के अांबो के लींको जे नजीकमां होय तेना ऊपर वे बझी चमे छे तेम स्त्रीश्रो पण जे नजीक होय तेने चाहे जे ए न्यायने अनुसर। ते स्त्री कमरीकना साथे रमीने मूळ श्री नपदेशपद. Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३॥ TO खमि गड्डमी बइल्युतुहूं-बेटा जाया तांह, राणिवि डंति मिलावडा-मित्त सहाया जांह. इत्यी वंतरि सञ्चित्थितुब तीयादिकहण ववहारे, हत्थाविसए गवण-गह दोहा गरिसणे गाणं. ॥ ए३ ॥ (टीका) स्त्रीति घारपरामर्शः . वंतरिसच्चिस्थितुबत्ति-कश्चिद्युवा गंत्र्या मारूढः सत्नार्योध्वनि ब्रजति. नार्या च प्रस्तावे जलनिमित्तमुत्तीर्णा शकटात्. तत एका व्यंतरी तस्य यूनो रूप बुब्धा सती सत्यतत्स्त्री तुल्यरूपमाधाय गंच्यामारूढा. प्रस्थितश्चासौ तया सह. तदनु सत्यनार्या पश्चादवस्थिता विलपति यया--प्रिय तम किमिति मामेकाकिनी कांतारे परित्यज्य प्रचलितोसि ? तीयाकहणत्ति तेनापि १ देव पासे आनीने हसते मुखे बोली के रुतुं ययुं के तमारे पुत्र पेदा थयो छे. --एम वोलीने तेणोए मूळदेवना.माथा परथी पाघकी ऊतारी सीधी. अने पोताना जतारने या प्रमाणे कयु. गामी, बळदो, तया तुं पोते खमा ऊना हता, तेवामां त्यां बेटो पेदा थयो. केयके जमने मित्रोनो टेको होय ते । मनो जंगलमां पण जेटो थाय छे. स्त्रीधारमा व्यंतरीए साची स्त्री सरखी थइने अतीतादि कह्यां. इनसाफ करता हाथ न पहोंचे त्यां कोई वस्तु राखीने लेवा जणावी. लांबेथी खेंची लेतां व्यंतरी जाणी. ए३ टीका.-त्री शब्दे घार संगार्यो. कोश्क युवान पुरुष स्त्री साथे गामोपर चकी रस्ते खाने थयो. अवसरे ते श्री उपदेशपद. Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ निश्चयार्थ के अपि स्वगृहवृत्तांतमतीतमादिशब्दाद् वर्तमानं च पृष्टे—तदनु यथावत् झाल्यामपि कथनं कृतं समग्रस्यापि तस्य. . व्यवहारे इति तदनु कारणिकाग्रतः प्रारब्धे व्यवहारे कारणिनिपुणोत्पत्तिकीबुधियुक्तैः-हत्या विसए गवणं ति हस्तस्याविषयेऽगोचरे स्थापनं कृतं कस्यचि-. त् पटादेवस्तुनः-गहत्ति या एतरस्थितैव गृहीष्यति सा एतद्नार्येति वदन्तिः दोहा गरिसणे इति तदनु व्यंतर्या वैक्रियतब्ध्या दीर्घ हस्तं कृत्वा आकर्षणं कृतं तस्य वस्तुनः . तस्मिंश्च सति ज्ञानं संशयापनोदः संपन्नः कारणिकानां यतेयं व्यंतरीति. तदनु निर्घाटिता सा तैरिति. श्री उपदेशपद. नी स्त्री पाणी पीवा गामी परयी ऊतरी तेवामां एक व्यंतरी ते युवान पुरुषना रूपमां लोजाइने तेनी ते साची स्त्रीना जे2 रूप धारण कररी गामी पर चही वेळी एटले ते तेणी साथे रवाने थयो. त्यारे खरी स्त्री पाबळ रही रमवा लागी के हे प्रियतम, आ जंगलमां मने एकत्री डोमीने केम चाव्या जाओ गे ? त्यारे तेणे खात। करवा बन्ने स्त्रीओने पोताना घरनी पूर्वे बनेली हकीकत अने आदि शब्दयी वर्तमान काळनी हकीकत पण पूछी. त्यारे वे ए ते वधी बरोबर कही. ___वाद कारणिक पुरुषो पासे इनसाफ करावतां तेश्रो रुकी रीते औत्पत्तिकी बुद्धिवाला होवाथी तेपणे कोइक वस्त्र वगेरे चीज हाथ नहि पहोंचे त्यां रखावी, अने कह्यु के जे आने सांवे रहीनेज अश्ले शे ते एनी स्त्री साबित थशे. त्यारे व्यंतरीए वैक्रिया ब्धियी लांबो हाथ करीने ते वस्तु खेंची सीधी. तेम थतां कारणिकोने संशय जवा साये खातरी था के आ व्यंतर। छे. बाद तेने तेमणे धमकावी कहामी मेली. Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२५॥ अथ पतिरिति घारं.-पतिगतुलाण परिब–पेसणा वरपियस्स आइयो, शहरासजव जुऊो–समगगिताणे असंघयणी. ॥ ९४ ॥ (टीका)-क्वचिन्नगरे कुतोपि प्रघटकात् कस्याश्चित् स्त्रिया छौ पती संपनौ, चातरौ च तो परस्परं. बोके महान् प्रवाद उद्घाटितो यथा अहो महदाश्चर्य यदेकस्या छौ पती तथापि पश्गतुलेत्ति पतिघ्येपि तुल्या समानप्रतिवद्धा एका स्त्री. एष च वृत्तांतो जने विस्तरन् राजानं यावद्गतः .-तुझोपचारसारा च किल सा तयोर्वर्त्तते नेति ?–अमात्येनोक्तं-न नैवायं वृत्तांतः संभवति यत समानमानसिकानुरागा घ्योरपीति.-ततः प्रोवाच महीपतिः–कयमेतत् ज्ञायते ? हवे पतिनुं धार कहे. जे. चे पति तरफ तुल्य जे तेनी परीक्षा माटे प्रिय पतिने तेणीए पश्चिममां मोकथ्यो. सूर्य तेनी पाछळ रह्यो. ए वात अजाणे पण बने एम धारी फरीने बे एक वखते मांदा पवानी खबर अापतां तेणी प्रियपतिने नवळो जणाववा लागी. ए४ टीका-कोक नगरमां कोई संयोगना लीधे कोइ स्त्रीना वे पति थया. ते बे अरस्परसमां जाइ हता. हवे लोकमां महोटो घोंघाट उठ्यो के केवी मोटी अजायबीनी वात के के एक स्त्रीना के पति ने बतां ते बन्नेमां सरखी प्रीत राखे बे. आ वात लोकोमा फेवाती थकी राजा सूधी पहोंची. ( राजाए सवाल कर्यो ) तेणी खरेखर वे पति तरफ सरखी सेवा चाकरी करती हशे के नहि ? मंत्रिए कह्यु-ए वात नहिज बनी शके के ते वे पति तरफ मनयी सरखी प्रीत राखती होय. त्यारे राजा बोब्यो के ते शी रीते मालम पके? श्री उपदेशपद. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२६॥ मंत्रिंणाप्युक्तं—परीला इति–देव, तस्याः परीक्षार्थमेतामाज्ञां देहि यथा द्य त्वदीयत्नर्तृभ्यां नगरात् पूर्वापरदिग्नागवर्तिनोामयोगंतव्यमागंतव्यं चाद्यैव. ततो वितीर्णा चेयमाझा राज्ञा.-तयापि—पेसणा वरपियस्सत्ति—यः प्रियः पतिस्तस्यापरस्यां दिशि यो वर्त्तते ग्रामस्तत्र प्रेसणं कृतं, सामर्थ्यादितरस्येतस्र-ततः प्रोक्तममात्येन-आइम्मो इति-देव, योपरस्यां दिशि प्रहितः स तस्याः समधिकं प्रियः , यतः तस्य गबत आगबतश्चादित्यः पश्चाद्नवति, इतस्य तूजयथापि ललाटफलकापतापकारीति. राजा-इहरासजवत्ति इतरथाप्यनाजोगतोप्येवं प्रेषणे संजवो घटते. अतः कथं निश्चिनुमो यजुतायमेव प्रेयानिति ?-ततोमात्येन नूपः पुनःपरीक्षार्थं ग्रामे मंत्रिए कडं के हे देव, तेनी परीक्षा माटे तेणीने एवी आझा करो के आज तारा चतरोए आ शहेरथी ऊग१२ मणा आयमणा गामे जर्बु तथा आजेज पाछा आवg. त्यारे राजाए ते आझा आपी. तेणीए जे प्रिय पति हतो तेने आ थमणी तरफ जे गाम हतुं त्यां मोकव्यो त्यारे बीजाने बीजी तरफ मोकळ्यो ए वात सामर्थ्यीज जणाइ रहे छे. त्यारे मंत्रिए कां के हे देव ! जेने पश्चिम तरफ मोकन्यो ते तेने अधिक प्रिय छ, केमके तेने जतां आवतां सूर्य पाछळ रहे , अने वीजाने तो बे टांकणे कपाळना पट्टने तपावनार . राजा बोल्यो के एम तो कदाच अजाणतां पण मोकने ए संभव छे, माटे ए परयो आपणने खातरी शी रीते थाय के एज एने प्रिय ले ? त्यारे मंत्रिए फरीने बीजी परीका माटे गामे गएला ते बनेनी एक वावतेज मांदगी जाणावी पर draba6682688 श्री उपदेशपद. Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गतयोरेव तयोः-समगगिलाणे इति समकमेककासमेव खानत्वं सरोगत्वं निवेदितं. तौ तदीयो घावपि पती ग्रामगतौ खानीभूतौ इत्येककालमेव तस्या ज्ञापितमितिनावः तस्मिंश्च ज्ञापिते तया प्रोक्तं योपरस्यां दिशि गतो मदन सौअसंघयणीत्ति-असंहननी अदृढशरीरसंस्थानबलः-इति तत्प्रतिजागरणार्य गवामि तावत्. गता च तत्र.-ज्ञातं च सुनिश्चितममात्यादिनियतायमेव प्रियो विशेषत इति. पुत्ते सवत्तिमाया-मिजग पइमरण मज्ज एसत्यो, किरियानावे लागा-दो पुत्तो बेइ णो माया. ॥ एए॥ (टीका)-इह आसि कत्यवि पुरे-निवमंती सेहिसत्यवाहाण, पुत्ता पवित्तचित्ता-चत्तारि कलाकलावविऊ. ॥ १॥ अन्नोन्नदढप्पणया–पत्ता तरुणत्तणं जले के तेना वे पति गाम गया हता ते मांदा पड्या छे एम एकी वखते तेणीने जणाव्यु. तेम जणावतां तेणी बोलीके मारोजे जर्ता पश्चिम तरफ गयो छे ते नवळा बांधानो ने माटे पहेबां तेनी सारसंचाळ लेवा जश एम कही ते त्यांनी १ गइ. आ परथी मंत्रि वगेरेए खातरी साये जाणी लीई के एज तेणीने विशेष प्रिय छे. पुत्रमा सावकी मा नाना बाळकनो बाप मरतां आ अने पैसो टको मारो छ एम कही वेठी. बीजो उपाय न होवाथी पुत्रना बे नाग करवा मांड्या एटले खरी मा बोली के ना. एक टीका-इहां कोइ नगरमा राजा, मंत्रि, शेठ अने सार्थवाहना पवित्र मनवाला अने कळाना जाण चार पुत्रो हता. १ तेश्रो एक वीजामा जारे हेताल रही यौवन पाम्या तोपण कणजर वरखूटा रहेतां दिलगीर थता हता. श्री उपदेशपद. Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २७८ ॥ मणुन्नं, खणमेत्तंपि न विरहं—सहंति, तत्तिं चियं वदंति. ॥२॥ पणंति अन्नया ते - परोप्परं एकमाणसा होनं, किं सोवि नरो गणणं - बहे जणमज्झयारंमि ? ॥ ३ ॥ जेा न अप्पा देसतरंमि तंतूण तोलियो होइ, को मे कज्जारूढस्त - अस्थि सामत्थ संजोजो. ॥४ ॥ नियसामत्यपरिक्खा हे चलिया पजायसमयपि, नियत मेतसहाया - एगं देनंतरं सव्वे ॥ ५ ॥ पत्ता दिन सपए - एगंमि पुरे अनायकुलihar, यन्ना कत्य देवनवाटाणे अइ पहाणे. ॥ ६ ॥ कह अज जोयणं, होहिनिणिराण सत्थवाह सुझो, अज मए जो जोयण - मुप्पाश्य देय मिइ नाइ ॥७॥ बाविन्नु तिन्नितिहिं-बाणे एगरंतरं हे गागी, पत्तो पुराणवयिस्स आवणे समुवइहो . ॥८॥ तंमि दिने किल कस्सर - देवरस महूसवो अह पयट्टो, लग्गो धूवविजेवणवासाई विमिय ॥ ए ॥ जाहे सो पुरियाणं - बंधं कार्ड न पारए वणिओ, २ ते एक वेळा एक मन घरी एक बीजाने कहेबा लाग्या के जे माणसे परदेशमां जड़ काम करवामां पोतानुं झुं सामछे ते नहि तपास्युं होय तेनी माणसोमांशुं गणती थती हशे के ? ३-४ ते पोताना सामर्थ्यनी परीक्षा करवा मात्र पोतानुं शरीर साथै स प्रजाते देशांतर जवा नीकळी पड्या. ए वपोरे तेयो एक नगरमां याव्या पण त्यां प्रोaa विनाना होवाथी को उमदा देवमंदिरना स्थानमां उतर्या. ६ जे खावानुं केम करीशु एम सवाल थतां सार्थवानो पुत्र बोल्यो के आज हुं ते पेदा करी बावीश. ७ हवे ते त्रण जाने त्यां वेसामी पोते एकलो नगरमां पेसी एक यानी दुकाने यावी वेगे. ८ हवे ते दिने त्यां कोइ देवनो महोत्सव चालु थयो हतो एटले अगरचंदन तथा सुगंधी वस्तुओनो खूब विकरो थवा लग्यो. ए ते वालियो पीओ बांधतां मुंजाइ परयो. एटले सार्थ. बुट्टा श्री उपदेशपद. Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्न ताहे सत्याहसुओ—साहेजं कान माढत्तो. ॥ १० ॥ पत्ते लोयणकाले जणिो वणिएण पाहुणो होहि, पमिजणिय तेण कहं–एगागी होमि जं मज्झ-॥ ११ ॥ अम्ले तिलि वयंसा-संति बहि, तो नणाश् वाणियो, आकारजंतु बहुं-तेविय ते निव्वसेसा मे. ॥ १२॥ दिमं तेसिं नोयण-मश्गनरवसार मायरं कालं, बग्गं च पंचरूवर्ग मेसि किन नोयणवयंमि. ॥ १३ ॥ बीयदिणे सेन्सुिओ-लोयणदाणे पश्म मह कालं, निजाओ सोग्गियजणेसु सिररयणसारित्यो. ॥१४ ॥ पत्तो ग णियावामगमज्मध्यिपवरदेवकुलमगं, नवविको तत्थ तया-पेडणगखणो महं श्रासि. ॥१५॥एगाए गणियाए धूया नवजोव्वणुब्नमा पुरिसं, कंपि न श्वश्रमिन-नियसुलगत्तण मनम्मत्ता. ॥ १६ ॥ सा तं दर्बु अक्खित्तमाणसा पेचिन: समाढत्ता, स श्री उपदेशपद. ॐ वाहनो पुत्र तेने मदद करवा लाग्यो. १० नोजन वेळा थतां वाणियाए कयु के मारो पाहुणो था. तेणे का के हं एकलो के म पाहुणो थालं ? केमके मारा बीजा त्रण मित्रो बाहेर छे. त्यारे वाणियाए कडं के ऊट तेमने बोलावी लाव, केमके तेश्रो-3 पण मारे तारा जेवाज छे. ११-१२ तेणे नारे आदरथी तेमने जोजन आप्यु अने तेमां तेने पांच रुपिया खरच ययं. १३ बीजा दिवसे शेउनो पुत्र के जे सौनागिक जनोना मुगटमणि समान रूपवान् हतो ते जोजन लावी आपवानी - ॐ तिझा लश् नीकळी पड्यो. १४ ते गणिकाना पामामां रहेबा एक देवा पासे आवी बेगे. ए वखते त्यां तमाशो जो-23 वामां आवतो हतो. १५ हवे एक गणिकानी पुत्री नवयौवनयी छकेल होइ पोतानी सुंदरताना मदथी कोइ पुरुष साथे रमवा इच्चती न हती. १६ ते तेने जो खेंचाइने कटाक्ष करी अति स्नेहथी गाफन बनी वारंवार जोवा लागी. १७ ए Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ए कमक्खखेव मनिझमुदिट्टी पुणोपुणवि. ॥ १७ ॥ मुणिमओ एस वश्यरो-गणियाए तो सतोसचित्ता सा, आमंतिय नियगेहं–नेइ पणाम य सा धूयं ॥ १० ॥ विहिओ चनण्हवि तो-तोयणतंबोलवत्यमाईओ, रूवगसयमोहोऽकिवणनावकलियाइ जवयारो. ॥ १५ ॥ तइयदिणे मच्चसुओ-बुद्धिपहाणो गो निवघरंमि, जत्य विवाया वहृति-बहुविहा नूरिकाला य. ॥ २० ॥ तत्थय दो महिलाओएगं पुत्तं नवष्टिया घेत्तुं, जणियो ताहि अमच्चो-जो सामिय सुणसु विणत्तिं. ॥ २१ ॥ एत्थागयाणमहं-दूरा देसंतारान पइमरणं, संजायं, दविणमिमं-पुत्तो य इमो समस्थित्ति. ॥ ॥ ता जीइ एस पुत्तो-दविणंपिहु तीइ निवयं होइ, बग्गो य बहू कालो-अम्हे तुम्हं सरंतीण. ॥ २३ ॥ ता जह अज विवाओ-एसो श्री नपदेशपद. वातनी गणिकाने खबर पता ते हर्षित थइ तेने बोनावीने घरे तेकी गइ अने त्यां तेने पोतानी पुत्री पगे पामो. १७ बाद चारे जण माटे नोजन, तांबूल तथा वस्त्र वगैरेनी उदार दिनथी सो रूपिया खरचोने गोठवण करी. १५ त्रीजा दिने बुद्धिमान मंत्रिकुमार राजदरवारमा जः पहोच्यो के ज्या लांबा वखतना अनेक तरेहना कनीया तपासवामां आवता हता. २० त्यां बे स्त्रीओ एक पुत्रने वा कनी हती. तेमणे मंत्रिने कडु के साहेब, अमारी विनंति सांजळो के दूर देशांतरयो अमे हा आवतां अमारो पति मरण पाम्यो, हवे आ पैसो अने आ पुत्र छे. २१-२२ माटे जेनो ए पुत्र हशे तेनोज आ पैसो पण . तेना खुलासा माटे अमोने तमारी पाउल पमतां वणो वखत नोकळी गयो छे तो हवे अा8. जना आज आ कजीयो तोमीने पुत्र अने धन एकज जणीने सोंपो. त्यारे अमात्य आ प्रमाणे बोब्यो. २३-२४ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||२१ PPPPM परिबिजई तहा कुणसु, पुत्तं धणं च दाऊण-नासियं तो अमच्चेण. ॥ २४ ॥ अच्चो एस अनब्बो-कह निजिस्सइ सुहं विवानत्ति, श्य नणिरंमि अमञ्चे-नाणिय महा मच्चपुत्तेण.-॥२५॥ जइ तुम्हाण मणुन्ना-विवाय मेयं अहं खु बिंदामि, अणुमन्निएण तेणं-जणिया महिलान ता दोवि. ॥ २६ ॥अत्य मुंवठ्ठवण धणंपुत्तं च, तो तहाकए ताहिं, नवणीयं करवत्तं-धणस्स नागा य दोवि कया. ॥ २७ ॥ पुत्तस्स नानिदेसे—करवत्तं जा ऊनागकरणाय, आरोवियं, न अन्नह-जिइ एसो विवानत्ति. ॥ २७ ॥ ता सुयजणणी निकित्तिमेण नेहेण बंघिया नणइ,दिजउ पुत्तो वित्तं विमाश्मा होन सुयमरणं. ॥ २९ ॥ नायममञ्चसुएणं-जह एस सुओ इमाइ, न श्मीए, निहामिया तो सा-पुत्तो य धणं च श्यराए. ॥ ३० ॥ श्री उपदेशपद. , अहो! आ अपूर्व तकरार शी रीते त्रूटशे एम मंत्रि बोसवा लाग्यो. तेवामां ते मंत्रिकुमारे का के जो तमारी रजा होय तो हु तकरार त्रोमी आपुं. मंत्रिए रजा आपी एटले तेणे ते वे स्त्रीओने कह्यु के, २५-२६ तमे धन अने पुत्र श्हां सावो; त्यारे तेश्रोए तेम कयु, एटले तेणे एक करवत मंगावी. बाद धनना वे जाग कर्या. ५७ अने ते छेकराना बे नाग करवा तेनी नाभि पर करवत चमावी; (अने कह्यु के आम कर्या शिवाय) बीजी रीते आ तकरार त्रूटे एम नथी. २७ त्यारे ते छोकरानी खरी माता खरा प्रेमथी खेंचाइने बोली ऊठी के पुत्र अने पैसो आ मारी सोक्यनेज आपो, पण आ पुत्रने मारो मा. २ए आ परथी मंत्रिकुमारे जाणी ली के आ पुत्र आनो डे अने आनो नथी. तेथी पेनी ढोमी माने देशनिकाल करी बीजी खरी माने पुत्र अने.धन सोप्या. ३० त्यारे तेणीए ते मंत्रिकुमारने पो Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ एत्तो नीओ नियमंदिरंमि तो तीइ सो अमच्चसुओ, दीणाराण सहस्सं—कयन्नुयत्तेण स दिन्नं. ॥ ३१ ॥ पत्ते चनत्थदिवसे-रायसुओ निग्गाओ नयरमज्ने, लणियं च संति जइ मज्झ-रजसंपत्तिपुमाई.-॥ ३२ ॥ तो उग्घमंतु बाढं-अह तप्पुमोदएण तत्थ खणे, तप्पुरराया अनिमित्त-मेव जाओ मरणसरणो.-॥ ३३ ॥ अप्पुत्तो य, पनत्ता-गवेसणा रजजोगपुरिसस्स, नेमित्तिओवश्ठो-विश्रो सो तस्स रजंमि. ॥ ३४ ॥ चत्तारि वि तो मिलिया-पत्नणंति परोप्परं पहिडमणा, सामत्थमेत कित्तिय -- मम्दाणं तो नणंतेवं. -॥ ३५ ॥ दक्खत्तणयं पुरिस्सपंचगं, सइयमाहु सुंदरं, बुद्धी सहस्समुखा-सयसाहस्साई पुणाई. ॥ ३६ ॥ सत्याहसुओ दक्खत्तणेण सेठीसुओ य रूवेण, बुद्धी अमञ्चसुओ-जीव पुणेहि राय श्री उपदेशपद. ताना घरे तेकी करेला उपकारनो बदलो वाळवा हजार सोना म्होर आपी. ३१ हवे चोथो दिवस जगतां राजकुमार नगरमा फरवा नीकळयो अने तेणे कयु के जो राज्य मळवानां मारा जाग्य होय तो ते जरुर खुल्या थाओ. हवे तेनां पुएयो ऊधमतां ते वखते ते नगरनो राजा प्रोचिंतो मरी गयो. ३४-३३ ते अपत्र हतो तेथी राज्ययोग्य पुरुषनी शोध थवा मांगी; त्यारे निमित्तियाना कह्याथी ते राजकुमारने ते राज्य पर स्थापित को. ३४ बाद ते चारे कुमार मळ। आनंदित मनथी मांहो मांहे वात करवा लाग्या के आपणु केटलं सामर्थ्य छे ते तपासीए, एम कही तेश्रो आरोते बोलवा लाग्याः-३५ माणसनी हायकारीगरीनी कीमत पांच टकाने, सुंदरतानी कीमत सो टका छे, अकानी कीमत हजार टका छे, अने पुण्योनी कीमत लाख टका छे. ३६ आ रीते सार्थवाहना पुत्रे हायकारीगरीथी निर्वाह Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३॥ R सुओ. ॥ ३७॥ एत्थय पत्थुयमेयं-अमच्चपुत्तस्स तस्स किस बुद्धी, नप्पत्तियत्ति नेया-सेसं तु पसंगो जणियं. ॥ ३० ॥ इति. ___ अथ गाथावरार्थः-पुत्त इति घारपरामर्शः .-इह कश्चित् प्रचुरजव्यसहायो वणिक् नार्यायुगलसमन्वितो राष्ट्रांतरमवागमत्. तत्र चैकस्यास्तत्पत्न्याः पुत्रः समजनि. एवं च-सवत्तिमायामिंजगत्ति-तस्य मिलकस्य बालस्य तयोर्मध्यादेका माता सवित्री अन्या च सपत्नी संपन्ना. पश्मरणत्ति दैवयोगाच्च बघावेव तस्मिन् पुत्रके यशःशेषतां ययौ स वणिक्. मिंजकश्च न जानाति का मम जननी तदन्या वा. तदनु निविममायासहाया प्राह सपत्नी,-ममैषार्थः पत्युः संबंधी आनाव्यः यतो मया जा तोयं पुत्रः इतिः जातश्च तयोध्योरपि व्यवहारः प्रभूतं कालं यावत.-न च विद्यचलाव्यो, श्रेष्ठीना पुत्र रूपयी निर्वाह चलाव्यो, मंत्रिकुमारे अक्काथी निर्वाह चन्नाव्यो अन राजकुमारे पुण्योथी निहि चलाव्यो. ३७ आ जगोए प्रस्तुत ए के ते मंत्रिकुमारनी जे बुधि ते औत्पत्तिकी बुछि जाणवी. ते शिवाय बाकीनी वात प्रसंगयी कही बतावी छे. हवे गाथानो अक्षरार्थ कहीये छोये.-पुत्रधारमा आ वात छे के कोइक पुष्कळ पैप्तादार वाणियो बे स्त्रीओ साथे देशांतरमा दाखल थयो. त्यां तेनी एक स्त्रीने पुत्र थयो. एथी ते बाळकनी ते वे स्त्रीओमां एक सवित्री ( सगीर मा) अने बीजी सपनी ( सोक्य मा) थइ. बाद कमनशीवे ने बाळक नानो छतांज ते वाणियो मरण पाम्यो. हवे ते नानो बाळक तो करे जाणतो नहि के कोण मारी सगी मा छे अने कोण बीनी . एथी पेली चारे कपटी सोक्य मा । श्रीनपदेशपद. Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २०४ ॥ . सौ ततः किरियाजावे इति क्रियाव्यवहारस्तस्याः नावे तयोः संपन्ने सति निपुणबुद्धिना प्रागुक्तकथानको द्दिष्टेन मंत्रिपुत्रेण प्रोक्तं. जागा दो पुतो इति एष नौ पुत्रो द्विनागी क्रियतां करपत्रकेण तदर्द्धम पुत्रार्थयोर्भवत्यो दास्यामीत्यानीतं च करपत्रं यावत् पुत्रकोदरोपरि दत्तं तावत्नो माया इति-या सत्या माता सा ब्रवीति सस्नेहमानसा सती प्रतिपादयति यथा नैवमात्य त्वयैतत् कर्त्तव्यं, गृह्णात्वेषा मत्पुत्रमर्थं च अहं तु अस्य जीवतो मुखारविंददर्शनेनैव कृतार्था भविष्यामीति ततो ज्ञातं मंत्रिनंदनेन यडुतेयमेव माता, दत्तश्च सपुत्रार्थ एतस्यै, निर्घाटिता चापरा इति. (छ) महु सित्य करुना मिय— रयजाली दिट्ठ किणण पतिकहणा, गमप्रदंसण तह बोली की के पतिनी मात्र मिलकत मनेज मळवी जोइये, केमके आ पुत्र में जऐलो छे. आ प्रमाणे ते वेजनीलांना वखत लगी दरवारमां तकरार चाली, पण तेनो खुनासो ययो नहि. त्यारे ते बेनो खुल्लासो नहि मळतां पूकल कथामां जगावेला निपुएबुद्धिवाळा मंत्रिकुमारे या रीते कधुं. · तमारा पुत्रना करवतथी वे जाग करीशुं अने तेनो केक अर्ध पुत्र मागती तमोने आपीशुं, एम. बोली ते करवत मंगावीने जेवी ते छोकराना पेट पर चमावी के तेटलामां जे साची माता हती ते मनमो स्नेहवाळी होवाथी क | हेवा लागी के हे अमात्य, तारे ए काम नहिज कर. या मारी सोक्यज जले मारा पुत्रने तथा पैसाने ब्ये, हुं तो ए जीवतानुं मुखकमळ जोइनेज आनंदी रहीश. त्यारे मंत्रिकुमारे जाएयुं के एज माता बे; एथी तेलीने पुत्र साथै पै श्री उपदेशपद • Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५॥ ठाण-पासणा फुटसीसत्ति. ॥ ए६ ॥ (टोका)--मधुसित्य इति धारपरामर्शः .-करुन्जामियत्ति केनापि राज्ञा सर्वस्मिन्निजदेशे मदनकरः पातितः यकृत सर्वेणापि लोकेन ममैतावत् मदनमानी य दातव्यमिति. इतश्च क्वापि ग्रामे कस्यचित् कोलिकस्य उद्ञामिका कुलटा वर्तते जाया. रयजानी दित्ति अन्यदा च तया केनचिउपपतिना सह रतं निधुवनमासेवमानया जाल्याः पीबुककुडंग्या मध्ये त्रामरं दृष्ट. ततः-किणणपइकहणा इति राजदेयमदनं क्रीणतः सतः पत्युः कथनं कृतं तया यथा मा क्रीणीहि त्वमेतत् यतो मया तत्र स्थाने ब्रामरमालोकितमास्ते स्वयमेव, अतस्तेदव गृहाण, किमनेन निः प्रयोजनेन प्रविणव्ययेन कृतेन प्रयोजनमिति. गमणे दंसणत्ति तदनु तेन सन्नार्येण र सो सोंप्यो अने बीजीने देशनिकास कहामी. हवे मधुसिक्यतुं धार कहे छे.-मधुसिक्थ ते एम के मीणनो कर पाड्यो. हवे कोइनी उद्ञामिका एटले । र कुन्नटा स्त्री हशे. तेणीए कोइ साये रमण करतां पेरुनी एक जारमा मधपूमो जायो. बाद तेना पतिए मीण खरीदवा ममतां तेणे ते वात कही. तेणे ते साये जा जाय तो नहि दी, त्यारे ते स्त्री रमती वेळा जेम पकी हती तेम पीने बताववा लागी. ए परथी पतिए जाण्यु के ते दुष्टशील छे. ए६ टीका-कोइक राजाए पोताना सघळा मुल कमां मीएनो कर पाड्यो के सौए आटर्बु मीण मावी आप. हवे कोइ गाममां कोइ कोळीनी बैठेव स्त्री हती. तेणीए एक वेळा कोइ जार साये रमतां पेरुनी जारना कुंममा मधपूमो जोयो. बाद श्री नपदेशपद. Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१६॥ कुडंग्यां गमनं कृतं मदनोपवलाय.-यदा चादर्शन निपुणं निजालयतोपि अनवलोक नं मदनस्य संपन्नं तस्य, तदा नणिता तेन सा यथा हले न दृश्यते तत्. ततः तहगण पासणा इति तथास्थानं चौर्यनिधुवनकालनावी आकारस्तया धृतः दृष्टं च तद्ञामरं गृहीतं च छुट्टसीवति तदनु ज्ञातं कोसिकेन यजुत दुष्टशीता विनष्टशीला इत्यस्मात् स्थानकरणकणातोरिति. (७) मुदिय पुरोह णासावताव गह मंति रम परिपुबा, सिट्टे जूए मुद्दा-गह लान परिचय प्पिणणा. ॥ ७ ॥ टीका-मुषिकेति घारोपलेपः-पुरोहत्ति पुरोधा पुरोहित इत्यर्थः तस्य राजाने आपवानुं मीण खरीदता धणीने तेणीए कहुं के ए खरीदो मा, केमके में एक ठेकाणे जाते मधपूमो जायेलो ने मा-3 टे ते लावीशं. आ फोकटना पैसा खरचवानुं शं काम जे? अाथी कोळी स्त्री संघाते मीण मेळववा ते ऊम्मा गयो. तेणे त्यां खूब जाळयु पण मीण दी नहि, त्यारे ते स्त्रीने कहेवा लाग्यो के अली, ते तो देखातुं नथी. त्यारे तेणी रमती वेळा जेम सूती हती तेम तेणीए आकार धर्यो एटले ते जोयुं अने ली . आ आकार ऊपरथी कोळी चेती गयो । के ते बामंत्री छे. मुद्रिकाधार ते एम के पुरोहिते थापण ओळव्यायी तेनो धणी गांको बन्यो. मंत्रि तथा राजाए परपूछ करी. १ तेणे हकीकत कही. बाद राजाए पुरोहित साथे द्यूत रमी तेनी मुघा बइ थापण मेळवी परीक्षा करी तेना असत मालेकने सोंपी. ७ ____टीका–कोइक नगरमा कोइक जीखारीए परदेश जता पोतानुं द्रव्य पुरोहितने त्यां थाप्युं. ते पागे भावी श्री उपदेशपद. Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ७॥ गृहे क्वचिन्नगरे केनचिदमकेण देशांतरं यियासुना, नासत्ति-न्यासो निक्षेपो निजअव्यस्य कृतः . प्रत्यागतश्च यदासौ याचते तं तदा पुरोधसा अववावत्तिअपलापोपहवो न किंचित् त्वया मम समर्पितमेवं लक्षणो विहितः. ततस्तस्य स्वकीयं अव्यमलनमानस्य ग्रहो अहिलत्वं संजातं. मंतित्ति अन्यदा राजमार्गे व्रजन्मत्री तेन दृष्टः , जणितश्च पुरोहितग्रांत्या यथा देहि मे पुरोहित दीनारसहस्रं यन्मया प्राग् तव समर्पितमासीदिति. चिंतितं च मंत्रिणा. नूनं अयं वराकः पुरोहितेन अनाथ इति संभाव्य मुषितः . कृपा चास्य तं प्रति संपन्ना. निवेदितश्चायं वृत्तांतस्तेन पार्थिवाय. ततः रम परिपुबा इति राज्ञा पृष्टः पुरोहितः तदग्रतोप्यपहनुतमतेने. जमकश्च सर्व सप्रत्य श्री उपदेशपद. मागवा लाग्यो एटले पुरोहिते अखामा कर्या के तें कंइ मने आप्युज नथी. आ रीते ते नीखारीने पोतातुं धन नहि मळतां ते घेलो बनी गयो. एक वेळा तेणे रस्ते जता मंत्रिने जोश पुरोहित मानीने तेने कर्दा के हे पुरोहित, में जे तने हजार ॐ सोनाम्होर पूर्वे सोंपी जे ते आप मंत्रिए धार्यु के खरेखर आ रांकने पुरोहिते अनाय जाणी मुसाव्यो लागे छे. आथी तेने तेना पर दया आवी, एटझे ते हकीकत तेणे राजाने जणावी. त्यारे राजाए पुरोहितने पूछयुं पण तेना आगळे पण तेणे ते वात ऊमावी. बाद राजाए जीखारीने खानगीमां खातरी साये दिवस, मुहूर्त तथा राखती वखतना साक्षि वगेरे पूछतां तेणे ते वधी हहकीकत कही. हवे राजाए एक वेळा पुरोहित साथे जुगार खेलतां तेने खबर न पके तेम तेना नामवाळी वीटी लली ३७ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२ ॥ यं दिवसमुहूर्तस्थापनासमयसाकिलोकप्रभृति नृपेण निर्विजने पृष्टः . सिढे इति शिष्टे कथिते तेन सर्वस्मिन्नपि वृत्तांते-जूए इति अन्यदा राजा पुरोहितेन सह द्यूतं रंतुमारब्धः . तत्र चालतितमेव केनाप्युयायेन मुद्दागहत्ति पुरोहितस्य नामांकं मुजारत्नं गृहीतं नूमीजुजा. तदनु पूर्वमेव व्युत्पादितस्यैकस्यात्मपुरुषस्य हस्ते न्यस्तं तद्,जणितश्चासावकाते यथा पुरोहितगृहे गत्वा अनेनानिज्ञानेन पुरोहितेन प्रेषितोहमिति निवेदनपूर्वं जमकसंबंधिनं दीनारनकुलकं याचस्व. गतश्चासौ तत्र. लाजत्ति बब्धश्च नकुलकः , निक्षिप्तश्चान्यनकुलकमध्ये. आकारितश्च प्रमकः जणितश्च,गृहाणामीषां मध्यात् स्वकीयं नकुलकं. गृहीतश्च तेन स्वकीय एव. परिचियप्पिणणा इति एवमौत्पत्तिकीबुद्धिबलेन परिक्ष्याप्पणं ढौकनं कृतं राज्ञा तन्नकुलस्य. जिह्वा च छिन्ना पुरोहितस्येति. अंकेवंचिय पनयंमि तह सीवणा विसंवयणं, अहो जुयंगगेहिय -अंकियधी, अने ते पूर्वे शीखवेना पोताना एक माणसने सौंपी एकांतमां तेने जाणाव्यु के पुरोहितना घरे जइ आ निशानी साथे पुरोहिते मने मोकलेन जे एम कही जीखारीनी सोनाम्होरवाळु नोर्बु मागी लाव. तेणे त्यां जइ ते मेळव्यु. बाद राजाए ते नोलाने बीजा-नोलाअोमां नेळवी द्रमकने बोलावी कां के प्रामांची तारूं नोखं सरले. तेणे पोतार्नु नोर्बुज श्रीधं. आम औत्पत्तिकीबुद्धिव परीका करी राजाए ते तेने सोप्यु अने पुरोहितनी जीन कपावी. अंकघार ते पूर्वनी माफकज नीलं पलटावी पहेला माफक सीवी राख्युं. तेमां खरा रुपीया जरता समाया नहि. की उपदेशपदः Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MAHARRAMRPAPEPARHARE ॥शUR गोचेमिगामुयणं. ॥ एज ॥ (टीका)-अंकेवंचियत्ति-अंके इति धारपरामर्शः एवमेव प्राच्यज्ञातवत् केनापि कस्यचिश्मनि खरकदीनारसहस्रभृतो नकुलको निक्षिप्तः , मुजा च स्वकीया दत्ता. पट्टयंमित्ति तेनापि कूटरूपकनरणेन परिवर्त्तने कृते-तह सीवणा इतितथैव सीवनं कृतं नकुत्रस्य. आगतेन स्वामिना याचितोसौ नकुलको लब्धश्च. याव निनालयति तावत् कूटकाः सर्वे दीनारा इति. कारणिकप्रत्यहं च व्यवहारः प्रवृत्तः. तैश्च बन्धदीनारसंख्यैस्तथैव सत्यदीनाराणां स नकुलो भृतः त्रुटितश्च. तदनु विसंवयणमिति संत्यदीनाराणां अव्याधिकत्वन पुष्टरूपत्वात् तत्र अमानलक्षणं संपन्नं. त तो दापितोसौ खरकदीनारान् दंमितश्चेति. बीजा कहे.जे के हेरान थयेलाए जुगारीओनी सन्नाह सइ हरीफनी दीकरीने अंक आपी अटकावी एटले पछी बेनी पतावट क्ट थतां गाय दीकरी मोकलावी. ए७ टीका-अंकघारमा पूर्वना दृष्टांत माफक कोइके कोश्कना घरे हजार सोनाम्होरथी नरेखें नोर्बु थाप्यु, अने ते पर पोतानुं सील कर्यु. हवे पेलाए तेमां कूमा रुपीया जरी ते पलटावी जेम हतुं तेम सीवीराख्यु. तेना मालेके आवी ते माग्युं एटले ते तेणे आप्यु हवे ते मालेक जैवो जुवे डे के बधी खोटी म्होर जणाइ एटले तेणे दरबारमा जइ फरीयाद करी. त्यां न्याय आपनार अधिकारिआए म्होर केटली हती तेनी संख्या पूठी. बाद ते नोलामां साची म्होरो नरी के त्रूटी गयुं, केमके साची म्होरोमां अधिक द्रव्य होवाथी से कामी होतां माइ शकी नहि. आप विसंवाद आववायी तेनी पासेयी खरी म्होरो कहामवी पेक्षान अपावी अने दमित कर्यो. श्री उपदेशपद. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३० ॥ __ अन्ये आचार्या ब्रुवते यथा केनचित् पुरुषेण निजमित्रगोकुझे स्वकीया गाव श्चरणार्थ प्रक्षिप्ताः . मित्रेण च बुब्धेन स्वकीयास्ताश्च गावः स्वनामांकाः कृताः याचितश्च प्रस्तावे तेनासौ यथा समर्पय मदीया गाः . तेनापि प्रत्युक्तं यथा गृहाण यासां नास्त्यंकस्ताः . ज्ञातं च तेन यथा वंचितोस्मीति. ततः जुयंगगेहियत्ति नुजंगा द्यूतकाराः गेनितेन परिजूतेन सता बुझेानार्थमवनगिताः दत्ता च तैरौत्पत्तिकोबुद्धिसारैर्बुद्धिः यथा तस्य पुत्रीः केनाप्युपायेन स्वगृहमानीयमात्मपुत्रिकानिः सह अंकियत्ति अंकिताः कुरु. कृतं च तथैव तेन. याचितश्च मित्रेण स्वपुत्री. प्रतिनणितं च तेन याः काश्चिदपातितांकाः सुतास्ता गृहाण. ततो घान्यामपि वंचितप्रतिवंचितान्यां-गोचेडियामुयणंति गवां चेटिकानां च मोचनं कृतं. श्री उपदेशपद. बीजा आचार्य कहे जे के अंकनो दृष्टांत ते एम के कोक माणसे पोताना मित्रना गोकुलमा पोतानी गायो चरवा मोकलावी. हवे ते मित्र खोजमा पमी पोतानी अने तेनी गायो पर पोताना नामर्नु अंक लगामी दीधुं. बाद अवसरे पेनाए पोतानी गायो मागी त्यारे तेणे जवाब आप्याक जेआ अक वगरनी छे ते ले. आथी मित्र समजी गयो के एणे मने उग्यो छे. तेथी तेणे पराजाव पामी अक्का मेळववा खातर जुगारीओनी सलाह लीधी. त्यारे तेओ ओत्पत्तिकीबुद्धिवाळा होवाथी तेमणे ए अक्कल बतावी के तेनी दीकरीओने तारे कोइ उपायथी पोताना घरे तेकी पोतानी दीकरीओ साथे तेमना अग पर छाप लगामी देवी. तेणे तेमज कयु. हवे पेलाए दीकरीओ मागी एटले तेणे कडं के जेमना पर गप न होय ते दीकरीओ लइ जा. आम बे जण उगाया एटने पेलाए गायो मोकवावी अने बीजाए दोकरीओ मोकलावी. Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ li३०१॥ णाणेवंचिय पबह णासकारण नवर विप्लाणं, अन्ने नरिंददेवय-नघाणं टंको झत्ति. ॥ एए॥ (टीका) नाणेवंचियत्ति ज्ञानके इति धारोपलेपः–एवमेव प्रागज्ञाते श्व किल केनचित् कस्यचिन्निक्षेपकः समर्पितः . तेन च पट्टत्ति-नकुलकमध्यगतानां पणानां परिवर्तः कृतः. प्रत्यागतेन तेन याचितोसौ. लब्धश्च नकुत्रकः . यावउद्घाटयति तावन्नवान्निदिप्तपणान् पश्यति. विवदमानौ च तो कारणिकानुपस्थितो. अब्धवृत्तैश्च तैः संपन्नोत्पत्तिकोबुद्धितिः-नासकालेण नवर विमाणति न्यासकालेन निवेपसंवत्सररूपेण नवरं केवलं पणानां ज्ञानं कृतं यथान्ये श्मे पणा अल्पव्यत्वात्, निक्षेपकाले च टंककसाम्येपि अन्ये आसन् बहुप्रव्यत्वात् . तस्मात्प्राच्यपणापनापकारी एष इति निगृहीतः श्री उपदेशपद. ज्ञानकधारमा एज रीते पलटामण थतां थापण राखवाना काळथी फकत खातरी थइ. वीजा कहे छे के राजाए करावेल देवतानी प्रतिमां टोंचयी ऊट सामे दोमवानुं करावती. एए टीका.-झानकधारमा पूर्वना दृष्टांत प्रमाणेज कोइए कोइने त्यां थापण मेली. तेणे नोलामा रहेल सिको * बदली नाख्यो. थापण मेलनारे पाग आवी नोखं माग्यु के तेणे आप्यु. तेणे ऊघामयुं के अंदर नवो सिक्को जोयो. तेथी वे बमता बमता न्याय करनारा पासे गया. तेश्रोए हकीकत पूजी औत्पत्तिकोबुद्धिथी क्या वर्षमा थापण मेली ते वो करी सिकानी खातरी करी के सिक्को वीजो ने अने तेमां कमती मान छे. अने सरखी छाप उतां पण थापण रा Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३० ॥ अत्रैव मतांतरं.-अन्ये ब्रुवते नरिंददेवयत्ति नरेंण केनचित् अव्यलोनिना क्वापि पर्वतविषयमप्रदेशे मार्गतटवर्तिनि यंत्रप्रयोगेण विचित्राजरणनूषिता देवताप्रतिमा कारिता. ततः सार्थवाहादिलोकस्तेन प्रदेशेन गवन् कौतुकेन तदर्शनार्य देवकुनगर्नगृहे प्रविशति,—यदा चासौ तद्वारि पादनिक्षेपं करोति तदा-नहाणं टंकओ जत्ति इति–नत्थानं संमुखं चननं टंकात्ततो विषमपर्वतप्रदेशात झगित्येव तस्य देवता करोति. एवं च बलेन प्रतिमाचारैस्त्वमिति कृत्वा गृह्यतेसौ प्रबन्ननियुक्तराजपुरुषैराविद्यते च सर्वमपि धनं ततः सकाशात. एवमौत्पत्तिकोबुध्ध्युपायेन राजा प्रव्यसंग्रहं कृतवानिति. (५) निक्खुमिवि एवंचिय-नुयंग तव्वेस णास जायणया, असे वानड वसही खती वेळा जूदो सिको हतो केमके तेमां वधु मात्र हतो. तेयी ते जूना सिक्काने बदलावनारने पकी तेने सजा करी. अहीं मतांतर कहे जे-बोजा आचार्य कहे डे के कोइ पैसाना लोजी राजाए कोइ पहामनी रस्ता पर आवती टोंचमां यंत्र गोठवीने अनेक आचरणोथी शणगारेली देवमूर्ति करावी. बाद ते रस्ते जता शेउ साहुकार वगैरे ॐ कोतकथी तेना दर्शन करवा देवलना गनारामां पग मेलता के ते मूर्ति तेमने कट त्यांथी पोता सामे खेंची लेती. एवामां छाना रहेबा सिपाइयो तेमने प्रतिमाना चोर कही पककी लेता अने तेमनुं तमाम धन तेमना पासेथी खूटी लेता. आ रीते ओत्पत्तिकीबुद्धिना बळथी राजाए द्रव्य एक कर्यु. निकुधारमां पण पूर्वनी माफक जुगारीओए तेनो वेष लइ थापण राखवानो ढोंग कर्यो एटलामां पेलो मागवा आव्यो. बीजा कहे छे के कोइ नित नागाना मठमा रहेतां तेमणे त्यां गधेमी पूरी एटो पेलाए कपमा बाळी तेमनीज श्री उपदेशपद. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -खरिचीवरमाह जमाही. ॥ १० ॥ (टीका) निक्खुमिवि एवंचियत्ति निवाविति झारपरामर्शः-एवमेव प्राम्यज्ञातवत् केनापि निकुणा कस्यचित्पुरुषस्य संबंधिनो न्यासस्यापद्वः कृत इत्यर्थः . ततस्तेन वंचितपुरुषेण जुयंग इति जुजंगानां द्यूतकारिणां निवेदितं यथायं रक्तपटो मदीयं निक्षेपकमपक्षप्य स्थित इति. ततस्तैस्तस्योपरि कृपां कुर्वाणैराद्यबुद्धिसहायैः-तव्वेहनासत्ति तस्य निदोषं कृत्वा रकतपटैर्भूत्वेत्यर्थः तस्यैव निदोः समीपे गमनं कृतं, नणितश्चासौ यथा___ वयं तीर्यवंदनाथ गमिष्याम इत्येनमस्मदीयं सुवर्ण निक्षेपकं गृहाण, प्रत्यागतानामस्माकमर्पयस्त्वमिति. एवं च ते यावदर्पयितुमारब्धा न चार्पयंति तावजेनी करी. १०० टीका-निकुधारमा पूर्वना दृष्टांत माफक कोइक जिकुक कोइ माणसनी थापण ओखवी. त्यारे ते माणसे जुगारीओने जणाव्यु के आ गेरुकीओ मारी थापण ओलवी बेगे छे. त्यारे तेआए तेना पर कृपा करी औत्पत्तिकीबुदिया जगवो वेष पहेरी बावा वनीने ते निक्कु पासे गया अने तेने आ रीते कहेवा लाग्या. अमे तीर्थ वांदवा जशं, एथी करीने अमारु सोनु तुं थापण तरीके राख अने पाला वळीये त्यारे अमने आपजे एम कही तेओ आपवानी तैयारी करवा लाग्या पण हजु ते तेमणे आप्युं न हतुं तेटलामा ते उगायला माणसे संकेत प्रमाणे ते दरम्यानमा आवीने पोतानी थापणनी मागणी करी के हे निकु, मारी पहेलां बीधेली थापण श्रीनपदेशपद. Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ तेन वंचितपुरुषेण तत्संकेतितेनैवावांतरे समागत्य जायणया इति याचनं कृतं स्वकीयनिक्षेपकस्य यथा मदीयं प्राग्गृहीतं निक्षेपकं तावदर्पय नो नो निदो . ततस्तेन यद्यहमेतस्य न्यासं न ढौकयिष्यामि तदा एते न समर्पयिष्यंति मम स्वीकीयनिदेपकान वंचकं मां मन्यमाना इति तत्क्षणादेव समर्पितः . द्यूतकारनिकुन्निरपि मिषांतरं कृत्वा नार्पिता निक्षेपका इति. अत्रैव मतांतरं. __ अन्ये ब्रुवते यथा कश्चिबाक्यनिकुः क्वचित् संनिवेशे संध्याकाले मार्गश्रांतः सन्–अवानमवसही इति अव्यापूतानां दिगंबराणां वसतौ मरूपायां रात्रिवासायोपस्थितः . तत्र च प्रागेव निकुदर्शनं प्रति संपन्नमत्सरैस्तउपासकैः सकपाटं सदीपं चापवरकमेकं प्रवेशितः-खरिचीवरदाह नड्डाहो इति ततो मुहूर्तांतरे शयनीआप. त्यारे तेणे विचायुं के जो हुँ एने थापण नहि आपीश तो एओ मने उगारो गणीने पोतानी थापण नहि आपशे. एथी तरतमांजतेने ते आपी दीधी. बाद पेत्रा जुगारी बावाआऐ पण बीजं मिष करीने पोतानी यापण तेने नहि आपी. हां मतांतर कहे जे. बीजा आचार्य एम कहे जे कोइक बौद्ध निकुक रस्ते चालतां थाक्यो थको सांजे कोइक गाममामा दिगंबरोनी वसतिमां रातवासो करवा आव्यो. हवे तेमना उपासको प्रथमयीज बौद्धनिकुत्रो तरफ इालु होवाथी तेमणे तेने कमाम अने दीवावाळी एक ओरमीमां ऊतारो आप्यो. बाद एकाद महतं ते जेवो शय्या पर सूतो के तेमणे त्यां गधेमी ने दरवाजो बंध कर्यो. त्यारे तेणे विचार्य के नक्की एनओ मने फजेत करवा इच्छे छे तो कडेवत ने के सौ जीवोने पो-3 ताना नाव प्रमाणेज फळ मळे छ एटले एमनेज फजेत करवा एम धारीने तेणे बळता दीवानी शिखानी अग्निथी सघ श्री नपदशपदं. Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ यस्थस्य तस्य खरीबदरिका प्रवेशिता, कारं च स्थगितं. ततः परित्नावितं च तेन “ननमेते मामुड्डाहयितुमिति”. ततो नावानुरूपफझनाजः सर्वे जीवा इत्येतेष्वेव पतत्ववसाय इति विमृश्य प्रज्वलत्प्रदीपशिखानलेन दग्धानि सर्वाण्यपि चीवराणि, अवलंबितं च नाग्न्यं, दैवाच्च प्राप्तापवरकमध्ये एव विचिका. प्रनाते च दिगंबरवेषधारी गृहीत्वा दक्षिणकरण खरिकां यावन्निर्गतुमारब्धस्तावन्मीलितस्तैः सर्वोपि तसंनिवेशलोकः . जणितं च तेनोमुरकंधरेणोच्चस्वरेण च भूत्वा-" यादृशोहं तादृशाः सर्वेप्येते " इति निवारोत्पत्तिकीबुद्धिरिति (७) चेम्गनिहाणलाने-लद्ददिणंगारगहण पुणत्ति, इयरेण लेप्पवाणरणिमंतणा चेमपुमत्ति ॥१॥ श्री उपदेशपद. Rळां कपमां बाळीने नग्ननणुं धारण कर्यु, तथा दैवयोगे ते ओरमामाथीज तेने मारपीछ पण मळी आवी, सवार थतां ते दिगंबरनो वेषधारी थइने जमणा हाथे गधेमी पकमी जेवो नीकळवा मांड्यो तेवामां तेमणे सघळा गामना लोक त्यां आ लो ते वचे तेणे ऊंचा कंधे ऊंचे स्वरे बूम पानी के जेवो हुं बुं तेवाज ए सघळा . ए बौद्ध निकुनी औत्पत्तिकीबुदि जाणवी. चेटकछारमा ए वात डे के निधान मळतां सारो दिन जोवराव्यो. तेवामां एके अंगारा जरी धन अश्ली , अने वळतो बोल्यो के आपणे अपुण्य छीये. त्यारे बीजाए तेनी मूर्ति करी ते पर वांदराने खवराववा मांड्या. बाद तेना चेटक एटले छोकरा संतामी कडं के आपणे अपुण्य बीए. १ ३ए Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०६॥ (टीका)-चेग इति घारपरामर्श:-किन क्वचित् कौचित् छौ वयस्यौ परस्परं प्रणयपरायणौ वसतः . तयोश्च कदाचित् क्वचित् शून्यगृहादौ हिरण्यपूर्णनिधानवानः समजनि-जददिणंगारगहणपुन्नत्ति परित्नावितं च तद्ग्रहणोचितं न दिनं तान्यां-अब्धं च तदिनात् द्वितीयदिने. गतौ च तो स्वगृहं. तत एकनाशुलानिसंधिना तात्रावेवांगाराणां भृत्वा ग्रहणमुपादानं कृतं प्रविणस्य. प्रनाते च यावदागतो तावत् पश्यतोगारान्–किमिदमित्यमकस्मादेवान्यथा संवृत्त-मिति यावत् परस्परं जल्पतस्तावदनणितं निधिग्राहकेण-"अहो अपुण्यमावयोरिति रात्रिमात्रांतरे एव निधिरंगाररूपतया परिणत इति”. ततो ज्ञातमितरेण नूनमस्य मायाविनः कर्मेदं. ततः-लेप्पवानरनिमंतणा चे पुमति लेप्यं तस्यैव वंचकमित्रस्य प्रतिबिंब भी उपदेशपद. टीका–चेटककार ते एम के कोइक स्थळे अरस्परस प्रीतिवाला बे मित्रो रहेता हता. तेमने एक वखते कोइ शूना घरमां सोनाथी नरेन निधान जमी श्राव्यु. त्यारे तेमणे ते लेवा माटे सारा दिननी तपास करी तो वळतो दिवसज सारो जणायो. आधी ते दिने तेश्रो घेर अाव्या. बाद एक जणे दानत बदलावी रातेज धन बस्ने ते निधानमा अंगारा जरी दीधा हघे नाते तेओ त्यां आव्या के त्यां अंगारा दीग. तेश्रो अरस्परस बोड्या के आ ओचितुं ते केम बदमाइ गर्यु, तेवामां निधान लइ जनार बोव्यो के अरे आपणे अपण्य के एक रातना आंतरामा निधान अंगारारूप यश गयु. आ परथी बीजाए जाण्यं के नक्की आ काम ते कपटीनंज करेखं छे. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०७|| मन्मयं निजगृहमध्ये तेन कारितं, तन्मस्तके च नित्यमसौ नक्तं मुंचति, छौ च वानरौ तन्मस्तकोपरि नक्तं ग्राहयति. तदच्यासौ च तौ संजातो. अन्यदा च तथाविधोत्सवप्रवृत्तौ निमंत्रणा नोजननिमित्तं वंचकवयस्यचेमकयोः कृता, गोपितौ च तो तेन, न समर्पयति च पितुः, उत्तरं च कुरुते " किं मंदनाग्या वयं कुर्मः येन पश्यत एव मे त्वसुतौ वानरौ जातो." अश्रद्दधानश्च तद्गृहमागतः-उपवेशितो क्षेप्यस्थाने अग्रत एव प्रसारिततत्प्रतिबिंबेन तेन. मुक्तौ च वानरौ किनकिनारावं कुर्वाणावारूढी तबिरसि. नणितश्च स तेन-यथा पुण्यैर्निधिः परावृत्तः तथैतावपि त्वत्पुत्राविति. ज्ञातं च तेन-शवंप्रति शठं कुर्या-दिति वचनमनुष्ठितमेतेन तदनु दत्तो निधिजागः, प्रतिसमर्पिता वितरेणापि पुत्राविति. बाद तेणे पोताना घरे ते उगारा मित्रनी माटीनी मूर्ति करावी, तेना माया पर ते दररोज खोराक मेलतो, अने बे वांदराने तेना माथा पर बेसामी ते खवरावतो. एम करतां तेमने देव पकी रही. हवे कोइ तेवो उत्सव आवतां ते पोताने त्यां उगारा मित्रना बे छोकराने तेकी खाव्यो, अने तेमने संतामी मेल्या. तेमनो बाप मागवा लागतां ते तेणे आप्या - नहि पण जवाब दीघो के आपणे मंदनाग्य शुं करीये के जे माटे हुँ जोतो रह्यो एटनामां तारा दीकरा वांदरा थइ गया. त्यारे ते वात नहि मानतां ते तेना घरे आव्यो, एटणे तेणे अगाजयीज तेनी मूर्ति खसेकी मेली हती तेना स्थळे तेने बे-- * साड्यो. वाद वांदरा बूटा मेव्या एटले तेश्रो किन किन करता तेना माथा पर चकी बेग. त्यारे ते उग मित्र समज्यो के - कपटी सामु कपटी वनवं ए वचन एणे नजव्युं . बाद तेणे तेने निधाननो नाग आपी दीपो एटणे तेणे तेना करा तेने सोप्या. श्री उपदेशपद. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||3000 R सिक्खा य दारपाढे-बहुलाहवरत्तमारसंवाए, गोमयपिंगणदीए-गितित्ति तत्तो अवक्कमणं. ॥३॥ (टीका)-शिक्षा चेति झारपरामर्शः-शिक्षा चात्र धनुर्वेदविषयोन्यासः . तत्रचैकः कुलपुत्रको धनुर्वेदाज्यासकुशलः पृथ्वीतबनिन्जालनकौतुहलेन परिनाम्यन् क्वचिन्नगरे कस्यचिदीश्वरस्य गृहमवतीर्णः . गृहस्वामिना च सप्रणयं परिपूज्य दारपाढे इति स्वकीयदारकपा नियुक्तः . तस्य च तान् पाठयतो बहुानः संपन्नः . ततः-अवरत्तमारसंवाए इति अपरक्तेन दारकपित्रा तदीयार्थवानबेदनार्थं मारो मरणं संकल्पितं यथा केनाप्युपायनामुं निर्गमकाले मारयित्वार्थो ग्रहीष्यते इति. श्री नपदेशपद. शिवाधार ते एम डे के छोकराअोने शीखवतां बहु कमाणी थइ तेटलामां छोकराना बापे नाखुश थइ मारी नाखवानो इरादो कर्यो. तेणे पोतानुं धन गणांमांजरी पोतानी कुळस्थिति जणावी ते छाणां नदीमांतरतां मेली घरे पहोंचाड्या बाद त्यांची रवाने थयो. २ . टोका-शिक्षाघारमा शिक्षा ते धनुर्वेदनो अज्यास जाणवो. त्यां ए वात छे के एक धनुर्वेदना अभ्यासमा हुशियार कुळपुत्र पृथ्वी जोवाना कौतकथी जमतो जमतो कोइ नगरमां कोइ सत्तादारना घरे ऊतयों. हवे तेणे तेने प्रीतिपूर्वक पूजीने पोताना छोकरा नणाववामां रोक्यो. ते काममां तेने घणो लान थयो. एवामां ते छोकराना बाप साथे तेने अएबनाव थयो एटले तेणे तेनी कमाणी जीनवी देवा माटे तेने मारवानो इरादो कर्यो के ज्यारे ए नीकळो त्यारे कोइ पण नपायथी एने मारीने एनी कमाणी बालेशं. Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०ए। .. न बनते चासौ गृहान्निर्गतुं. संपादितश्चासौ तेन निजस्वजनानां वृत्तांतः यथा नूनमयं मां मारयितुमजिवांतीति. तदनु च गोमयपिंम नईए वित्ति त्ति गोमयपिमेषु सर्वोपि निजोर्थः संचारितस्तेन, शोषिताश्च ते पिंमाः , नणितश्च स्वजनलोकः यथाहं नद्यां गोमयपिकान् मध्यसंगोपितार्यान् प्रक्षेप्स्यामि-भवन्निश्च ते तरंतो ग्राह्या इति. ततोसावस्माकं कुने स्थितिर्नीतिरीतिरेषा इत्युक्त्वा तिथिषु पर्वदिवसेषु च तैर्दारकैः समं तान् नद्यां निक्षिपति, निर्वाहितवानेनोपायेन सर्वोप्यर्थः . तत्तो अवकमणंति-तत एवं कृतेपक्रमणं ततः स्थानान्वब्धावसरण तेन गमनं कृतमिति. (७) अत्थे बासमाया-ववहारे देविपुत्तकालोत्ति, अम्मे न धानवाश्यजोगो सि श्री उपदेशपद. - हवे ते त्यांची नीकळी शके तेम न हतुं एटले तेणे ए हकीकत पोताना सगांओने जणावी के मने नक्की ए मारवा इच्छे छे. बाद तेणे पोतानुं तमाम धन बगणांमां घाली ते सूकव्यां, अने सगांओने जणाव्यु के हुं नदीमां अंदर - पावेन धनवाळां छणां रवाने करीश ते तमारे ताता व देवां. बाद ते आ अमारा कुळ्नी स्थिति में एम जणावी तिथि अने पर्वना दिवसोमां ते छोकराओ साथे नदीए जइ ते छाणांओने नदीमां नाखतो. आ रीते तेणे पोतानुं तमाम धन मोकलावी आप्युं. बाद ते ठेकाणेथी लाग आवतां रवाने थयो.. अर्थ पेठे एम के बाळकनी के माताओना इन्साफमा राणीने पुत्र अावनार हतो ते जणाव्यो. बीजा कहे के धातुभमनारा मळतां राजाए तेनी असिद्धिथी मालम कर्यु. ३ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ३१० ।। श्री निवाणं ॥ ३ ॥ ( टीका ) - अर्थ इति द्वारपरामर्श: - बालकुमाया इति कस्यचिद्वालस्य छौ मातरावभूतां पिता च मृतः ववहारे इति संपन्नश्च द्वयोरपि जनन्योर्विवादःन चान्यः कोपि तत्र साकी समस्ति, दूरदेशांतरादागतत्वात्तयोः - ततो राजद्वारे उपस्थिते ते. देविपुत्रकालोत्ति तत्र च पट्टमहादेवी गर्भवती - श्रुतश्च तयैष वृत्तांत : - उपायांतरं चापश्यंत्या प्रतिपादिते यथा ममैष गर्ने यः पुत्र उत्पत्स्यते, सोशोकपादपस्याधः उपविष्टो व्यवहारं नवत्योः वेत्स्यतीति तावंतं च कालं यावद् नवती ज्यां संतुष्टमानसाज्यां उचितान्नपानवस्त्रादिजोगपराज्यां च स्थातव्यं. तुष्टा च सपत्नी यथा लब्धस्ताव दियान् कालः पश्चात्किं भविष्यतीति को " टीका - अर्थकारमां कोइ बाळकनी वे माताओ हती अने बाप मरी गयेलो हतो तेथी बन्ने माताओने ऊग को थयो . त्यां बीजो कोइ साक्षी न हतो केमके ते दूर देशथी आवेला हता. तेथी तो वे दरवारमां गइ. एवामां पहराणी गर्नवाळी हती तेणे ए वृत्तांत सांगळ्यो, त्यारे बीजो ऊपाय नहि मळतां तेणीए कछु के गर्भमां मारो जे आ पुत्र यज्ञे ते शोकना काम नीचे बेसी तमारो खुल्लासो करशे. त्यां लगी तमारे संतोषी रहीने योग्य खान, पान तथा कपमांलतां वापरतां रहें. त्यारे जे अरमान माता हती ते राजी थइ के एटलो वखत तो मळयो अने पछी शुं थशे ते कोण जाणे छे. या वाती पट्टराणीने तेनो हर्ष जोवाथी खबर पकी एटले तेणीए तेने धमकावी खरी माताने पुत्र ने पैसो सोंपाव्यो. श्री उपदेशपद. Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३१ ॥ जानीत इति. ज्ञातं च यथावस्थितं देव्या-तदीयहर्षावनोकानात, निर्घाटिता चासौ, समर्पितश्च स्वजनन्या एव पुत्रोर्थश्चेति. अन्ये त्वाचार्या एवं ब्रुवते यथा धाउवाश्यजोगो सिझी निवणाणमिति केचित् धातुवादिकैः क्वचित् पर्वतनिगुंजे सर्वः सुवर्णसिधिसंयोगो विहितः न च सुवर्णसिद्धिः संपद्यते-विषन्नाश्वासते ते यावत्तावदत्रांतरे प्रागेव शैलासत्रं निवेशितकटकसान्निवेशापात्रौ ज्वलंतं ज्वलनमवतो. क्य कौतुकेन राजा तत्रकाकी गतः-पृष्टाश्च ते किमिदमारब्धं नवद्भिः? कथितं च सप्रपंचं तैः . ज्ञातं चौत्पत्तिकोबुधियुक्तेन राज्ञा " सत्त्वसाध्योयं व्यवहारः-न च तदेतेषु समस्तीति, तत् स्वकीयं शिरश्चित्त्वा विपाम्यत्र ज्वलने”—तयैव कर्तुमारब्धो यावत्तावदाकृष्टासिस्तजितो दादणजुजस्तदधिष्ठायिकया देवतया राजपौरुषादिप्तचित्तया. जातं सुवर्णमिति. श्री उपदेशपद. बीजा आचार्यो एम कहे छे के केटलाक धातु धमनाराओए कोइ पर्वतमां सोनू मळेवानी सघळी खटपट करी पण सोनुं तैयार थयु नहि, तेयी तेो दीलगीर थइ रह्या हता एवामां त्यां आगळथीज रहेवी लश्करी गवणीमांथी राजा राते त्यां नही बळती जोड्ने कौतुकथी एकलो जोवा आव्यो. तेणे पूछ्युं के आ शु करवा मांझ्यु छ ? तेमणे विस्तारथी बधुं कहुं त्यारे औत्पत्तिकीबुद्धिवाळा राजाए जाएयु के श्रा काम हिम्मतथी सिद्ध थाय तेवू छे अने तेओमां ते जे नहि. माटे हुं मारुं माथु कापी आ आगमा होमा, एम धारी ते तेमज करवा लाग्यो एटलामां तेनी अधिष्ठायक देवी तेनो तरवारवाळो सवलो हाय योनी राखीने तेनी हिम्मतथी खुश थइ एटझे तरत सोनु थइ गयु. Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यो बग्ग परिबा-अदाणं गम थेवदाण गहणंति, अम्मे न पक्खवायाचनसत्य विसेस विमाणं. ॥४॥ (टीका)-शस्त्र इति घारपरामर्शः . किन कस्यचित्राज्ञः शस्त्रप्रधाना अक्सगका अवज्ञगितुमारब्धाः-परीक्षार्थं च अदाणत्ति राजा तेषां न किंचिद्ददाति ततः गमत्ति अन्यत्र गंतुमारब्धं तैः . ततः थेवदाण गहणमिति स्तोकदानेन परिमितजीविका वितरणरूपेण ग्रहणं स्वीकरणं कृतं केषांचित्, अन्ये तु स्वपौरुषानुरूपां वृत्तिमसलमानाः अन्यत्र गताः . ज्ञातं चौत्पत्तिकीबुद्धिसारेण राज्ञा-" नूनमेते महापराकमा इति. . अन्ये त्वाचार्या इदमित्थमभिदधति.-पनवादात् प्रतिज्ञापूर्वकपदावादकरणा शस्त्र ते एम के परीक्षा माटे काइ नहि देतां केटवाक जता रह्या अने वीजाप्रोने थाएं दइ राख्या. वीजा कहे छे के है चारे शास्त्रना पवनो वाद करावतां विशेष विज्ञान मेळव्यु. ४ ... टीका-शस्त्रधार ते एम के कोइक राजाने त्यां हथियारबंध सेवको आवी तेनी सेवा करवा लाग्या. तेमनी परीक्षा करवा खातर राजाए तेमने कंइ आप्युं नहि, एथी तेश्रो बीजे स्थळे जवा मांड्या त्यारे थोमोक पगार दश्ने तेमांथी केटनाकने राख्या, पण बीजाओ पोताना पराक्रमने लायक पगार नहि मळता बीज जता रह्या. आ ऊपरथी औत्पत्तिकीबुद्धिवाळा राजाए जाणी लीधुं के खरेखर ए गेमी जनारा महा पराक्रमवाळा छे. बीजा आचार्यो आ दृष्टांत आ रीते कहे छे के आत्रेय, कपिनः बृहस्पति अने पांचाळ नामे ऋषिओए कहेला श्री उपदेशपद.. Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SOKAR श्चतुणां शास्त्राणां वैद्यकधर्मार्थकामगोचराणां आत्रेयकापिलवृहस्पतिपांचालनामकऋषिविशेषप्रणीतानां विशेषेण परिज्ञानमवबोध औत्पत्तिकीबुट्या कृत्तं. किन क्वचित् पाटलिपुत्रादौ नगरे कस्यचित्राज्ञः क्वचित्समये वैद्यकादिशास्त्रहस्ताश्चत्वारः प्रवादिन उपस्थिता बनणुश्च यथैतबास्त्रावबोधानुरूपां प्रतिपत्तिमस्माकं कर्तुमर्हति महाराजः . परित्नावितं च तेन यथा न ज्ञायते कः कीदृशं शास्त्रमवबुध्यत इति. तत्परीक्षार्थं प्रतिझोपन्यासपूर्वकं परस्परं वादं कारयितुमारब्धाः . ज्ञातं च तत्र प्रज्ञाप्रकर्षाप्रकर्षों. कृता च तदनुरूपा प्रतिपत्तिरिति. अत्र च सत्थेत्ति निर्देशस्य प्राकृतशैलीवशेन शस्त्रशास्त्रयोरविरोधादित्यं व्याख्यानध्यं न पुष्टमिति. (७) इवाइ महं रंगा-पइरिण तम्मित्तसाहुववहारे, मंतिपरिवा दोनाग-तयणु श्री उपदेशपद. वैद्यक-धर्म-अर्थ-अने काम संबंधी चारे शास्त्रोनो प्रतिझापूर्वक पकवाद करावीने औत्पत्तिकीयुद्धियी विशेष परिझान मेळव्यु. कोइ पाटलिपुत्र जेवा नगरमां कोक राजाने त्यां कोक वखते वैद्यकादि शास्त्र हाथमा लइने चार वादिओ आवी कहेवा लाग्या के आ शास्त्रना अमारा ज्ञान प्रमाणे अमार। प्रतिपत्ति तमारे करवी जोइए. राजाए विचार्यु के कोण केवं शास्त्र जाणे ने ते कंऽ आपणे जाणता नथी. तेथी तेमनी परीक्षा सारु तेमने पतिझा करावी अरस्परस वाद कराव्यो अने तेमां कोनी बुद्धि वधती घटती ते जाणी बइ ते प्रमाणे तेमनी प्रतिपत्ति करी. शहां " सत्य" एवो प्राकृत शब्द होवाथी तेना शस्त्र अने शास्त्र एम वे व्याख्यान वगर विरोधे थइ शके जे माटे वे व्याख्यान को ते वाजवी जे. इच्छाए मोटुं ए घारमा एक विधवाने पतिना करज माटे तेना बुच्चा मित्र साये तकरार थइ त्यारे मंत्रिओए वे Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३९४ ॥ अप्पस्स गाण्या. ॥ ए ॥ ( टीका ) - इचाइ महंति द्वारपरामर्शः - किल्ल कवचिन्नगरे कस्यचित्कुayकस्य पत्नी नर्तृमरणे रंडेति वैधव्यमनुप्राप्ता. सा च - परिणत्ति पत्युर्भर्तुः संबंधि यद्वृत्तिप्रयुक्तं धनं लोकस्य च देयत्वेन ऋणतया संपन्नं तद्ग्राहयितुमारब्धा, न चासौ किंचिल्लते, सर्वपुरुषापेचत्वात्सर्वसज्यानां जणितं च तया तस्य पत्युर्मित्रं ययोद्ग्राहयाधमर्णलोकान् मे वित्तं जणितं च तेन “ कोत्र मे जागः ? " याच सरल स्वभावमवलंब्य निगदितं “ उग्राय तावत् पश्चाद्यते रोचते तन्मे त दयास्त्वमिति." उद्माहितं च तेन तत्संर्व. जागवेलायां च- - असाहुत्ति असाधौ वंचके - जाग करावी नानो जाग ते मित्रने पाव्यो. ए टीका. - इच्छाए मोडं ए घारमां ए बात छे के कोइ नगरमां कोइ कुलीन माणसनी स्त्री जर्तार मरी जतां विधवा थइ. ते जतीरे वेपारमां जे धन जोमेयुं ने लोकोने धीरेलुं होवाथी लेणा तरीके नीकल्युं ते ऊघराववा मांगयुं, पण सघळी दाद माणसनेज मळी शके एम होवाथी तेणी कं मेळवी शकी नहि. त्यारे तेलीए पोताना पतिना मित्रने कां के मारुं धन जे लेणदारो पासे छे ते उधरावी आपो. तेणे कां के मने तेमां शो जाग आपशो ? त्यारे तेलीए सरल जावी कां के उघरावी तो ब्यो, पछी तमने रुचे ते मने पजो. तेणे ते वधुं उघरान्युं. बाद जाग वखते ते लुच्चाइ करी थोमोज जाग देवा लाग्यो एटले दरबारमां तकरार श्री उपदेशपद. Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1३१५॥ नागदानात्तस्मिन् संपन्ने व्यवहारो राजधारि प्रवृत्तः . लब्धवृत्तांतेन च-मंतिपरिवा शति मंत्रिणा परीक्षार्थं पृला कृता " कीदृशं त्वं नागमिबसि ? स प्राह महान्तं. ततो व्यस्य छौ नागौ कृतौ अल्पो महांश्च. तदन्वल्पस्य नागस्य गाहणयत्त्यल्पं जागं ग्राहित इत्यर्थः-किलानया प्रागेवेदमुक्तमास्ते यस्ते रोचते स नागो मे दातव्यःरोचते च ते महानित्ययमेवास्या दातुमुचित इति–प्रतिपन्ननिर्वाहित्वाविष्टानां. यतः पठ्यते-अनसायंतणवि सज्जणेण जे अक्खरा समुलविया, ते पत्यरटंकुक्की रियव्व नहु अन्नहा हुँति. __सयसाहस्सी धुत्तो–अपुब्बखोरम्मि लोगमंजणया, तुज्झ पिया मज्झेवं तदामधुत्तेण क्षणत्ति. ॥६॥ चाली. हकीकत जाणीने मंत्रिए परीक्षा माटे तेने पूछयु के तारे केवो नाग जोइये बीये ? ते बोब्यो के मोटो. त्यारे तेणे द्रव्यना बे जाग कराव्या एक नानो अने बीजो मोटो. बाद ते बुच्चाने नानो नाग पकमाव्यो ते एम कहीने के आ बाइए प्रयमयीज कहेढुं छे के में तने रुचे ते नाग मने आपवो. हवे तने तो मोटो नाग रुचे ले माटे तेज एणीने देवो जोइये, केमके सारा माणसो जे कबूले ते पाळेज . जेमाटे कयु डे के सज्जन पुरुष आळसमां पण जे अकरो मुखे बोले छे ते पत्थर पर टांकणाथी खोदी कहाड्या होय तेम फे- रफार वगरना रहे ... बपति उग बोलतो के अपूर्व लावे तेने लाखना मूढयवाळु कचोढुं आपीश एम कही लोकोने उगतो. बाद बीजा धूर्त कह्यु के तारा बापे मारी पासेथी आटवू लीधुं छे एम कही तेने ठेकाणे आण्यो. ६ श्री उपदेशपद. Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. . सयसहसत्ति घारे शतसहस्री लक्षप्रमाणधनवान् कश्चितः समासीत्. तेन च अनव्वखोरंमि लोगडंजणया इति “ यः कश्चिदपूर्व किंचन मां श्रावयति तस्याहं खोरकं वदाव्यमूल्यं कच्चोलकमिदं ददामि.”–एवं च लोकं मंजयितुमारब्धः-यतो यः कश्चिदन्निनवकाव्यादि श्रावयति तत्रापि स " पूर्वमेतन्मे” इति मिथ्योत्तरं कृत्वा तं विलक्षी करोति, प्रवर्तितश्चात्मनि प्रवादो यथाहं सर्वश्रुतपारग इति. श्रुतश्चैष वृत्तांतस्तत्रस्थेनै केन सिद्धपुत्रेण. तत्कालोत्पन्नबुधिना च तेन तदग्रतो नूत्वा पक्तिं, यथा तुज्क पिया मह पिनणो-धारे अणूणयं सयसहस्सं, जश् सुयपुव्वं दिजन-अहन सुयं खोरयं देहि. एवमनेन प्रकारेण तदन्यधूर्तेण सिहपुत्ररूपेण उखना बुद्विपरित्नवरूपा तस्य कृतेति. (७) समाप्तान्योत्पत्तिकीबुद्धिज्ञातानि. (७) टीका-शतसहस्रकार ते एम के कोइ लपति धूरी हतो तेणे जणाव्यु के जे कोइ मने कंश अपूर्व सजलावशे तेने हं लाख मूलनुं आ कचोळु आपीश-एम कही ते लोकोने उगवा लाग्यो एटलेके जे कोइ नवं काव्य वगेरे तेने संजळावतो तेने कहेतो के ए तो मारी पासे प्रथमथीज ने एम खोटो नत्तर आपी तेने विलखो पामतो, अने पोताना माटे ते एवो बुमाटो नमामतो के हुं सर्व शास्त्रनो पारंगत बुं आ वात त्यां रहेला एक सिमपुत्रे सांनळी, त्यारे तेने तरत अ68 कम ऊपनी ते प्रमाण ते तेना आगळ हाजर थर आ रीते बोल्यो के तारो बाप मारा बापनी बरोबर एक लाख ( सोनाम्होर) उधारी लावेलो . जो आ वात तें पूर्व सांगळी श्री उपदेशपद. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३१७॥ नमः श्रुतदेवतायै. अथ वैनयिकीज्ञातानि वित्रियंते. वेणझ्याइ निमित्ते-सिद्धसुया हत्थिपयविसेसोत्ति, गुम्विणिदाहिणपुत्ते-थेरी तज्जायणाणादी. ॥ ७॥ (टीका)—वैनयिक्यां बुद्धौ निमित्ते इति झारपरामर्शः . सिद्धसुयत्ति कस्यचित् सिद्धपुत्रस्य पार्श्वे छौ सुतौ-पुत्ता य सीसा य समं विहत्ता-इति वचनात् शिष्यावित्यर्थः निमित्तशास्त्रं शिक्षितौ, अन्यदा च तृणकाष्ठाद्यर्थमटव्यां प्रविष्टौ. दृष्टानि च तान्यां तत्र-हत्यिपय विसेसोत्ति-हस्तिपदान्यादिष्टश्चैकेन विशेषो, यथा—हस्तिन्या एवैतानि. कथं ज्ञायते इति चेत् ? कायिकोत्सर्गविशेषात्. सा च काणा—एकपा धैन तृणानां खादनादिति. तथा गुब्विाणिदाहिणपुत्तत्ति तत्र च कायिकोत्सर्गविशेषाहोय तो ते रकम आप, अने नहि सांजळी होय तो बाखनु खोरुं आप. आ रीते ते सिद्धपुत्ररूप वीजा धृतं तेनी बुदिने हरावी छळना करी.-औत्पत्तिकोबुद्धिनां उदाहरणो पूरां थयां. श्रुतदेवताने नमस्कार थाओ. ___ हवे वैनयिकीनां उदाहरणो वर्णवीए छीए.-वैनयिकीमा निमित्तनी ए वात जे के सिझना चेलामांना एक हायीनां पगला जोइ विशेष कही बताव्यु तथा कयं के तेना पर एक सगर्जा स्त्री डे, तेनुं जमणु पगबु जारी होवाथी ते पुत्र जणश. वळी. एक मोशीने तेनो पुत्र आव्यानी तेणे खबर आपी वगेरे. ७ __टीका-वैनयिकी बुद्धि पेठे निमित्तधारमा ए वात छे के कोई सिद्धपुत्रना पासे बे सुत एटझे चेझा हता के श्री उपदेशपद. 1 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव एका स्त्री पुरुषश्च विलग्न इति ज्ञायते. पीवरगर्जा च सा,-भूमौ हस्तस्तंननेनोत्यानात्. दारकश्च नविष्यति तस्याः येन दक्षिणपादो गुरुको निविमनिवेशाबदयते-दक्षिणकुदयाश्रिते च गर्ने किल पुरुषो नवतीति. तथा रक्ता दशिका मार्गतटवर्तिनि वृक्ष यतो बग्ना दृश्यते ततोपि ज्ञायते पुत्रोत्पत्तिः–मार्गवृक्षलग्ना हि रक्तदशिका मार्गगमनप्रवृत्तगर्नवत्स्त्रीसंबंधिती निमित्त शास्त्रेषु पुत्रोत्पत्तिसूचिका पठ्यते इति. तथा थेरी तजायणाणाई इति तावेव सिहपुत्री नदीतीरे जलमापीय यावत् मके दीकरा अने शिष्य सरखाज एम कहेलु छे. तेओने तेणे निमित्तशास्त्र शीखव्यु. हवे एक वेळा तेओ तृणकाष्ठ सेवा अटवीमां पेग. त्यां तेमणे हाथीनां पगलां जोयां त्यारे एक जण जणाववा लाग्यो के आ पगलां हायणीनांज जे. केम मालम पम्युं तो कहुं बुं के एनी मूतरवानी ढवयी. बळी ते एक आंखे काणी छे केमके तण एक बाजुनाज तृण खाधेना ने. तेमज तेना पर एक स्त्री अने पुरुष चमेला , ते पण तेमनी बघुनीति करवानी ढब परथी जणाय छे. वळी जे स्त्री ने ते पूरा यएला गर्नवाली छे केमके जमीन पर हाय धरीने उठीशकी ने अने तेने छोकरो आवनार , जे माटे २ तेनु सवऱ्या पगबुं वधारे वेसवायी नारे लागे छे अने सवळी कूखे गल रहे तो पुरुष थाय जे. वळी रस्ता पर रहेला काममा राती दसिओ बागेली देखाय छे तेथी पण पुत्र यशे एम जणाय डे, केमके रस्ते चालती गर्भवती स्त्रीनी रस्ताना वृक्तमां वळगेली राती दसिओ पुत्रनी उत्पत्ति सूचवे एम निमितशास्त्रमा कहेवाय छे. ___ वळी तेज बन्ने सिद्धपुत्रो नदीना कांठे पाणी पीने वेग हता तेवामां एक मोशीए हाथमां पाणीयी नरेन श्री उपदेशपद. Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३२५ ॥ स्थितावासाते तावदेकया स्थविरया जलभृतहस्तघटया संपन्ननैमित्तिकसुतत्वज्ञानया चिरप्रोषित प्रियपुत्रया तदागमनं पृष्टौ - " कदा मे पुत्रः स्वगृहमायास्यतीति. " तस्मिंश्च ऋणे पृवाव्यप्रायास्तस्या हस्तात् स घटो भूमौ पतित्वा जग्नः नणितं चैकेन – “ तज्जाए य तज्जायं तन्निने य तन्निनं ” – इत्यादिश्लोकमुच्चार्य यथा - मृतस्ते पुत्रः, कथमन्यथायं सद्य एव घटजंगो जायेत इति . " द्वितीयेन तु प्रतिपादितं यथा ग वृद्धे, सांप्रतमेव स्वगृहमागतस्तिष्ठति तेऽसौ पुत्रः गता च सा. दृष्टपुत्रा च तुष्टा चेतसि वस्त्रयुगलकं रूपकांश्च गृहीत्वा सगौरवं सत्कारितोसौ द्वितीयः सिद्धसूनुस्तया. इतरश्चादेश विसंवादा लिनूतो गुरुमुपस्थितो निगदति यथा " किं न मम इतरतुल्यं सनक्तिकस्यापि निमित्तशास्त्रसद्भावं कथ hi निमित्ताने ओळखी लांबा वखतथी परदेश गएला पुत्रनी खबर पूछी के क्यारे मारो पुत्र घेर आवशे ? हवे ते क्षणे पूछ्वामां ते व्यग्र वनी तेथी तेना हाथमांयी ते घको भूमि पर पकी जांगी गयो. त्यारे तेमांनो एक बोली उठ्यो के " ते यतां ते याय अने तेना जेवं थतां तेना जेवं याय " - एम श्लोक डे, माटे तारो पुत्र मरी गयो छे नहि तो आम आ चिंतो घमो केम जांगे ? aaja बुढी, जा, तारो पुत्र हमणांच घरे प्रावेलो छे. या सांजळी ते घरे यावी के पुत्र जो खुशी यइ बे कपम अने रुपिया लइ ते बीजा सिद्धपुत्रनो सत्कार करवा लागी पहेलो सिद्धपुत्र पोतानो - देश जुठो पड्याथी किलखो पकी गुरु पासे आवी कहेवा लाग्यो के हुं जक्तिवाको छतां मने तमे बीजाना जेवं निमित्त श्री उपदेशपद. Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३२० ॥ यसीति. " पृष्ठौ च तौ तेन कथितं च ताभ्यां सर्वं यथावृत्तं गुरुणा च णितं - कथं त्वया तस्य मरणमादिष्टं ? स प्राह - घट विपत्तिदर्शनात्, द्वितीयेन चोक्तं- “त जाये य तज्जायं इत्यादिश्लोकमुच्चार्य एवं — घटो नूमेरेव सकाशात्पन्नो भूम्या एव च मिलितः - एवं स पुत्रो मातुरेव सकाशात्पन्नो मातुरेवच मिलित इति नितं मयेत. " तश्चासौ गुरुणा यथा न नाहमपराध्यामि किंतु जवत एव प्रज्ञाजाड्यं यो विशेषादिष्टमपि न निमित्तशास्त्ररहस्यमवबुध्यसे, किं न श्रुतं त्वया सूक्तमिदं यथा . " वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जमे - ननु खलु तयोर्ज्ञाने शक्तिं करोत्यपति वा, नवति च पुनर्भूयान् नेदः फलं प्रति तद्यथा - प्रभवति मणिविग्रा शास्त्रनुं रहस्य केम शीखवता नथी ? त्यारे गुरुए बन्नेने पूछ जोतां बन्ने जाए बनेली हकीकत कही. गुरुए कर्तुं के तें तेनुं मरण शा उपरथी कछु ? ते बोल्यो के घमो जागी पड्यो ते जोवाथी. त्यारे बीजाए पण तेज श्लोक बोलीने क के घको माटीमाथी पेदा थइ माटीने जड़ मळ्यो एम ते पुत्र मातामांयी उत्पन्न थयो अने माताने मळयो एम में नियि कर्यो. त्यारे गुरु पेक्षा शिष्यनेकधुं के जला माणस, मारो एमां कशी वांक नथी पण तारीज, बुद्धिनी जस्ता छे जेथी तुं खुलासा साये जाणावेला निमित्तशास्त्रना रहस्यने समजी शकतो नथी. शुं तें आ सूक्त नयी सांजळ के 66 गुरु प्राज्ञ तथा जमने सरखी रीते विद्या आपे छे खरा पण तेमनी समजशक्तिने वधारी घटामी श श्री उपदेशपद. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३११ ही शुचिर्न मृदादयः” इति. . अत्र च येषां सम्यक् शास्त्रं परिणमितं तस्य वैनयिकी बुछिरितरस्य तु तदाजासेति. (७) एत्यव अत्थसत्थे–कापगगंमाश्छेदनेदणया, जक्खपनत्ती किञ्चप्पोय अहवा सरावंमि. ॥ ॥ (टीका) सेणियराए तह कोणिए य पंचत्त मुवगए संते, कोणियसुओ नदाई-पामलिपुत्तं पुर मकासि. ॥ १॥ चंपयावो दिसिममलाई सव्वाई तविन मा छो, मनलावियरिखुकश्रवखंको सो चंम किरणो व्व. ॥२॥ परिपूरियनमारो-गयाकता नथी, एथी करीने फळमां मोटो फरक पके . दाखला तरीके निर्मळ मणि होय छे ते प्रतिबिवने पक डे पण कांई माटी वगेरे तेने पकझी शकता नथी." माटे यहां जेने रुमीरीते शास्त्र परिणम्युं तेनी वैनयिकी बुद्धि जाणवी, पण बीजानी बुद्धि तो तेनी नकन जेवी छे. - हां अर्थशास्त्रघारमा कम्पक मंत्री उदाहरण छ, गोरी ( शेखमी) वगेरेना बेदन चेदने करीने. वळी यानी वार्ता पण उदाहरण छे, कृत्यानुं उपशमन करवायी अथवा नवो शराव बनावतां चीताराना पुत्रे यदने शांत करवानो नपाय कर्यो ते उदाहरण . ७ टीका-श्रेणिकराजा अने कोणिकराजा मरण पाम्या वाद कोणिकना पुत्र नदायिराजाए पाटलिपुत्र नगर वसावी त्यां पोतानी राजगादी स्थापी. १ ते उग्र प्रतापी थइने सघळी दिशाओने तपावी सूर्यना माफक दुश्मनरूपी कुमुदोने खीलता अटकाववा लाग्यो. २ तेनो जमार जरपूर हतो, तेनी पासे हाथी, घोमा वगेरे चतुरंग लश्कर मोजु हर श्री उपदेशपद. NASA' 4--XXMOM 9888888baap REPORTERRORNER Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३२॥ इचनरंग साहण सणाहो, सामाइनीइनिनणो-परिपाल रऊ मणवज्जं. ॥ ३॥ तह तविहगुरुपायारविंदसेवोवाघसंमत्तो, पसमाश्गुणमणीणं-पच्चक्खो रोहणगिरि व्व. ॥४॥ तंमि पुरे कारवियं-पुरवाहीए मणोहराकारं, हिमगिरिसिहरुत्तुंग-सुवणं सिरि बीयरायस्स. ॥ अमाहियाश्महिमानिञ्चारंजेण मणनिरामेण, साहुपयपूयणेण य दीणाणाहादाणेण. ॥ ६ ॥ सम्म मणुव्वयपरिपालणेण तह पोसहाश्करणेण, तेए जिणिंदपणीयो-धामो परमुन्नई नीग्रो. ॥ ७ एत्तोच्चिय जो तित्ययरनामकम्म तिलोयमहिमंग, बंधिसु जेणं भणिया-ठाणे तब्बंधिजियसंखा. ॥ ७ ॥ -जहा " सेणिय-सुपासपोहिल---दढाउ---संख सधगा उदाई य, सुलसा य साविया रेवई व नत्र वीरतित्यमि.” (१) सब्वे दमनिवणी--लेणु गाए नियाइ आणाए, श्री उपदेशपद. अने ते सामादिक नीतिमा निषण रही रुमीरीते राज्य करवा लाग्यो. ३ तेमज ते तथाविध गुरुना चरणकमळनी सेवाथी सम्यक्त्व पामीने प्रशमादिक गुणमहिनोनो ते प्रत्यक जाणे रोहिणाचन होय तेवो जणातो हतो. ४ तेणे ते नग रनी बाहेरमा हिमालयना शिखर जेई ऊंचु अने मनोहर आकारवाळु वीतराग मनु मंदिर बंधाव्युं हतुं.५ ते हमेगा मनोजिना अष्टाहिक महोत्सव करावतो, साधुना पग पूजतो, तथा दीन अनाथ बोकने दान आपतो-वळी ते रुमी रीते प्राणुव्रत पाळता अने पौपधादिक करतो. एम तेणे जिनेंद्रप्रणीत धर्मने खूब उन्नति पर आएयो हतो. ६-७ एथीज तेणे । बोकमा महिमा मेळववानं कारण तीर्थकरनामकर्म बांध्यं. जे माटे गणा प्रकरणमा ते पद बांधनार जीवोनी आ रीते गणतरी कहीजे- जेमके श्रेणिक, सुपाच, पोलि, दृवाय. शंख, शतक. उदायि, अने मुझसा तथा रेवती एम नव *जणे वीरना तीर्थया तीर्थकरनाभगोत बांध्यांचे. (१) ते उदयराजाए पोतानी उग्र आझायी सपळा खंमिया राजा Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३३॥ आणाविजंता निचमेव खिजति चित्तेण. ॥ ए॥ कत्तोचिय अवराहा-एगो भूमीवई सपरिवारो, उदालियनियदेसो-विहिओ देसंतरावासी ॥ १० ॥ पत्तो उजेणीए --जायो सेवापरो तदहिवणो, जणियं च अमया तेण निचाणाश्नग्गेण.॥ ११ ॥ उज्जेणिराइणा-" नत्यि एत्थ सो कोइ अंकुसं अहं, जो इममुदाधिरायं-अवणेजा सिरसमारूढं. ॥ १२ ॥ तो तस्सेवगरन्नो-जणियं पुत्तेण गरुयखारेण, साहमि इमं कजं-जइ विहिबलं तुमं वहसि. ॥ १३ ॥ तो तेण अणुन्नाओ-स कंकलोहस्स कत्तियं व्वेत्तुं, चनिनो पारविपुत्ते--पत्तो य कमेण तो रन्नो-॥ १४ विहिया सबाहिरब्नंतराइ परिसाइ सेवगजणस्स, जचिया सेवावित्ती-नय बद्धो चिं. तियावसरो.॥१५॥ सो पुण उदायिराया-अमिचनदसिदिणेसु सव्वाई, मोत्तूण रजक श्री उपदेशपद. श्रो पर हुकम चन्नाव्याथी तेस्रो हमेशां मनयां खिन्न रहेता हता. ए एवामा कोइएक राजाए कंइ अपराध कर्यो एथी तेनो देश खालसे करी तेने सपरिवार देशनिकाल करवामां आयो. १० ते राजा जज्जेणीमा प्रावी त्यांना राजानी सेवामां रह्यो. बाद एक वखते हमेशां हुकम ऊगववाथी कंटाळेना नज्जेणीना राजाए जणाव्यु के एवो कोइ अमोने अंकुश मळतो नथी के जे आ माया पर चमी वेला उदायिने दूर करे. ११-१२ त्यारे ते सेवक राजाना अति खारीला पु जणाव्यु के जो तमे मारी पूठ पकमो तो ए काम हुं कररी आपुं. १३ त्यारे राजाए तेने मंजुरी आप) एटले ते तीखा लोखंमनी छर। लश्ने पाटलिपुत्र नगरमां आवी अनुक्रमे राजानी बहारनी अने अंदरनी बेठकमां चाकर रही चाकरी करवा लाग्यो, पण तेने जोइतो लाग मळी शक्यो नहि. १४-१५ हवे ते नदायिराजा आउम अने चौदशना दहामे स Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४॥ जाई-पोसहं कुणइ उवनत्तो. ॥ १६ ॥ सिरिधम्मघोसनामा- सूरी अञ्चंतखीणजंघबनो, गणंतरे विहारं-कालं असहो वसइ तत्थ. ॥ १७ ॥ साहुसमीवे पोसहकरणे रन्नो बहू अवाओत्ति, तत्येव रायनवणे-पोसह दिवसेसु सो जाइ.॥ १०॥ जणिो नियपरिवारो-रना, साहूण इंतजंताण-रयणीए दिवसंमि य खलणा के ण न कायव्वा. ॥ १५ ॥ नाओ एस वइयरो तेणं उद्यान्निसंधिणा धणियं, रायसुएणं एए-इत्थं अनिवारियप्पसरा ॥ २० ॥ तो सो वज्जिय सेवा वित्तिं आवजिऊण गुरुचित्तं, अइदढसढत्तविणाओवयारसारो गहियदिक्खो-॥२१॥ नावसमणो व्व जाओ विणचरो त्तिय पध्यिं तस्स-नामं वच्च कालो–एवं उचिंतणप रस्स. ॥ २५ ॥ सूरीविय गीयत्ये—थिरव्वए नायजाइकुलसीले, साहू अप्पसहाए घळां राजकाज छोकी एकाग्र चित्तथी पौषध करतो हो. १६ ए वखते त्यां धर्मघोष नामे आचार्य वृद्ध होवाथी अति कीण जंघावन थतां स्थानांतरे विहार करवा असमर्थ बनी त्यांज वसता हता. १७ ते आचार्य विचार कर्यो के साधु पासे पौषध करतां राजाने घणा जय रहे जे तेथी पौषधना दिवसोमां ते राजाना घरेज जता हता. १७ आयी राजाए पोताना परिवारने हुकम कर्यो हतो के राते के दिवसे साधुअोने त्यां जतां आवतां कोइए अटकाववा नहि. १५ आ वात ते अति दुष्ट लागणी राखता राजकुमारने मानम थइ के आ लोको आ रीते यहां यूटयी आवजा करी शके छे. २० एथी ते राजानी चाकरी गेमी गुरुना मन पर पी अति नारे कपटथी विनयोपचार साचवी दीक्षित थयो–अने जावश्रमण जेवो बनी रह्यो एटले तेनु विनयरत एवं नाम पामवामां आव्यु. हवे ते वखत पसार थवानी साये लाग शोधतो रहेवा । माग्यो. २१-२२ ते आचार्य पोता साये त्यां गीतार्य स्थिरवत जाणीता वंशवाळा थोमाक साधुअोने मददगार तरीके श्री उपदेशपद. Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३२५18 SKYMS -अप्पे निवनवण माणेइ. ॥ २३ ॥ सो निच्चचिय पगुणत्त मप्पणो आयरेण दंसेति, पर महिणवधम्म नाविऊण वारे तं सूरी. ॥ २४ ॥ अन्नंमि दिणंमि मुणीकजेण गिलाणपाहुणाईण, अञ्चंतवानवत्तं पत्ता-पनणो य सो जाओ. ॥ २५ ॥ बहुदिवस दिक्खियो च्चिय–ता सोवि सहायत्रो गुरुहि कओ, पत्ता रायकुलब्नंतराबसालाइ रयणिमुहे. ॥ २६ ॥ पमिवन्नं पोसह मोसहंव रोगानरेण नरवश्णा, विहियो तकालोचियववहारो वंदणाईओ. ॥ २७ ॥ सुत्तेसु झाणसज्झायमाइकिच्चेण रीणदेहेसु–सूरिनिवेसु स पावो समुडिओ कढिया कत्ती. ॥ २७ ॥ सा पुव्वंचिय गूढा -आसि रजोहरणमाइनवहिमि, दिन्ना कंठपएसे—रन्नो, नछो य संनंतो. ॥ ५॥ सा रुहिरेण विनग्गा–पासेणं बीयगेण निक्खम, उिन्नो खणेण कंगे-तो तीइ अ श्री उपदेशपद. लावता हता. २३ हवे ते कपटी साधु हमेशां आदरपूर्वक त्यां श्राववा तैयार होवानुं जणावतो, पण आचार्य तेने नवो8 सवो गर्णीने अटकावता हता. १० बाद एक वेळाए मनियो मांदा परोणा साधुओना काममां गुंथाइ गया हता एटझे ते 9 १ कपटी साधु त्यां साये आववा तैयार थतां गुरुए घणा दिवसनो दीक्षित धारी तेने साथमां सीधो अने तेश्रो सांजना समये दरबारनी अंदरनी शाळामां आव्या. २५–२६ त्यां रोगातुर जेम औषध बीए तेम राजाए पौषध लीधो अने ते अवसरने नचिन वंदनादि व्यवहार साचव्यो. २७ हवे सूरि अने राजा ध्यान, सज्काय वगेरे कृन्य कररी थाकेला शरीरे सूइ गया एटले ते पापिष्ट उठ्यो अने तेणे छरी कहामी. २० ए बरी पहेबांज तेणे रजोहरण वगेरे उपकरणमा संतामी राखी हती. ते जरी तेणे राजाना गळामां बगामी अने पोते उतावळे नासी गयो. २५ ते बरी लोहीए जराइने गळानी ) Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५६॥ कुंवारण ॥ 2 ॥ लवचियतणुत्तणाओ-रन्नो रुदिनमादि वियमाहि, सित्तो देहे सूरी-सहसा निक्खयं पत्तो. ॥ ३१ ॥ असमंजसं नियबह-सव्वं तं चिंतियं । तो तेण, णूण कुसीसेण कयं-कहमहा सणं तस्स ॥३२॥ कह कबाणकलावेकमूत्र मुस्सप्पणा जिणमयस्त पगया, कह मात्रिमं-अखानणिजं इमं पतं. ॥ ३३ ॥ नणियं च-"अन्नह परिचिंतिजइ-सहरिसकं उज्जएण हियएण, परिणम अन्नदच्चिय-कज्जारंनो विहिवसेण." ॥३४ ता किं एत्तो चियं-नूणं नियपाणचागकरणेणं-एसो धम्मकलंको-पुरंतो मे समुत्तर. ॥ ३५ ॥ काऊणं तकालोचियाइं कज्जाई धीरचित्तेणं, दिन्ना सा नियमि-कत्तिया कंकलोहस्स. ॥ ३६ ॥ जा व पनाए सेज्जापालगोगो निन्जालए सालं, दिह्रो राया सूरी-दोविय पंचत्तणं पबीजी वाजु नीकळी एटले तेनी तीखी धारथी राजा- गर्छ कपाइ मयु. ३० हवे राजानु शरीर सोही नरेखं होवार्थी तेमाथी बूट खोही नोकळवा लाग्युं एटले तेनो रेखो चाव्यो. ते आचार्यना शरीरे लागतां तेओनी तरत ऊंघ ऊमी ग अने तेगणे आ सधळं असमजस जोइ विचायुं के नक्की आ चूमा चेलानुज काम छ, नहि तो ते नासी केम जाय ? ३१ -----३२ का तो सस्त व्याबहेतु एवं। जिनशासननी प्रनावना करवानी हती, अने क्या श्रा नहीं धोवाइ शकाय मासिन्य प्राची पy :: के-आप दुर्जय मन हर्ष सायका विवि ने काय शरु करता देवना योगे तेनु के पीगी रोग परिणाम आवे छे. ३४ माटे आ वखते शु पर चिा ? खरेखर जो हुँ पाण त्याग करूं तोज था दुरंत धर्मकलंक भारा परथी ऊतरे एम छे.३५ बाद ते आचार्ये शांत मनयी ते समयने उचित कार्यो करीPRO ने ते तीखा लोखमनी जरी पोताना गळे अगावो. ३६ हवे प्रनाते शय्यापानके शाळामां आवो जोयु तो राजा ने आ श्री उपदेशपद. Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३२॥ त्ता. ॥३७ ॥ तत्तो संखुखो सो-अम्ह पमायो श्मो त्ति मन्नतो, तुण्डिको चिय चिट्ठ-जा ता सहसा पुरे तत्य-॥ ३० ॥ जाओ जणप्पवाओ-जह एय मणुट्टियं कुसीसेण, गुणमजव्वो एसो-कवरेण वयं पवन्नो ति. ॥ ३७॥ पत्ता ते दोवि दिवं,—इओय एहावियज्यक्खरो नंदो-न्हावियसामाइ गनो---पत्थावादागस्स बहिं-॥४॥ उज्जायस्स निवेयश जहा मए अज्ज सुविणो दिछो, रयणी विरामसमए-जह नगरमिमं समंतेहिं-॥४१॥ आवेढियं समंता-एत्तो सुविणयफलं परिकहेहि, सो सुविणयसत्थान-तं नेइ घरं तो तत्य-॥ ४२ ॥ धोयासरस्स निया से–दिन्ना धूया परेण विणएण, जग्गबंतो व्व रवी-सहसा सो दिप्पिलं नग्गो. ॥ १३ ॥ सिबियाइ समारूढो-हिंमइ जा सो पुरस्स मज्जमि, तावंतेनरसज्जा श्री उपदेशपद. चार्य बन्ने मरेला दाग. ३७ त्यारे ते पोतानी गफलती गणीने गजराइ जइ चुपचाप रह्यो एटनामां ते नगरमा ओचीती अफवा चाली के नूंमा शिष्ये आबु काम कर्यु छे, माटे ते नक्की अजव्य होइ कपथ्थी दीक्षित ययो हतो. ३७-३0 आ रीते राजा तथा आचार्य बन्ने स्वर्गमा पहोंच्या. हवे आणीमेर नापितनो ( नाइनो) दीकरो नंद नापितशाळामा हतो त्यां प्रस्तावयोगे उपाध्याय (शिक्षागुरु ) आवी चरतां ते तेने जणाववा लाग्यो के आज रात्रिना डेमे में स्वप्न जोयुं छे के आ नगर सामंतोए मळीने कबजे कर्यु छे, ४०-४१ अने तेमणे तेने चारे बाजुथी घेर्यु ले. हवे ए स्वामन फळ तमे कही बतावो. (आ, सांजळीने) ते स्वमशास्त्रनो जाणनार होवाथी तेने घरे तेकी गयो. ४२ त्यां तेने नवरावी धावरावो नार विनय करवा साये तेने पोतानो दोकरी आपी, एटले ते ऊगता सूर्यना माफक ओचीता दीपा तान्यो. Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३२॥ वालीहि मो निवो दिलो. ॥ ४ ॥ सहसुक्कूश्य मेयाहि रजचिंताकरेण सो आसो, अहिवासियो पुरोहियलोएण पुरंतरे णीओ. ॥ ४ ॥ अवलोइयो स पहावियज्यक्खरा फुरियफारतणुकिरणो, नग्घमियपुवपालो-आसणा रोवित्रो पिडिं. ॥ ४६॥ चलियं चामरजुयलं-धरियं उत्तंबरं महाउत्तं, सयलाई वाश्याई-तूराणिवि नद्दसहाई. ४७ रायानिसेयसारं-स रजचिंताकरेण लोएण, विप्रो उदाइरन्नो-पयंमि सुन्ने मणुन्नंमि. ॥ ४ ॥ तयस्स ऽयक्खरनावेण ते य नमा दंमनोया सव्वे, न करेंति विणय, मेसो-अह चिंतइ कस्स हं राया ? ॥ ४ ॥ अत्थाणीमगओ -अहन्नया नऊिण निक्खंतो, पुण अगो न तेहिं-एसो अब्जुडिओ किंचि. ॥ ॥ दावियकोववियारेण तेण एए हणेह नो गोहे, नणिय मवरोपार मिमे PROoad श्री उपदेशपद. A हवे ते पालखी पर चीने नगरमा फरवा नीकट्यो. एवामां आणीमेर अंतःपुरनी शय्या साचवनारी बाइओए राजाK ने मरेलो जोयो. ४४ आ परयी तेओए ओचीती बूमगण करी के राज्यनी चिंता करनार पुरोहितोए घोमाने अधिवासि त करी नगरमा फरतो को ते घोमाए पहेला नपकादार नाना दीकराने जोयो अने तेनुं नशीब ऊघमवायी तेने पोतानी पीठ पर सीधो. ४५-४६ तेना पर वे चामर ढोळावालाग्या, आकाशने ढांकनारूं मोढे छत्र धरवामां आव्यु, अने जला अवाजवाळां सघळां वाजां वगामवामां आव्यां. ४७ पठी राज्यने संजाळनार लोकोए तेने राज्याजिषेक करावी नदायि राजानी खानी पमेनी गादी पर स्थापित कयों. 1 (परंतु ) ते हजामनो पुत्र होवाथी सघळा सुजटो अने सरदारो इतेने सलाम जरवा न लाग्या, त्यारे आ नंद विचारवा लाग्यो के हुं ते कोनो राजा बुं ? Hए बाद एक वेळा ते सनामां Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३२॥ -सोलं हासानला जाया. ॥ २१ ॥ तो तिव्वरोसविसपरवसेण अत्थाणमंझवजुवारे, लेप्पमए पडिहारे-अवलोश्य नासियं तेण. ॥ ५२ जङ्नामेए विणयं न करेंति, किमंग तुम्ह विणयस्स-संपन्ना परिहाणी-समुठिया ते तो सहस्सा. ॥ ५३ ॥ गयपाणा के कया-हत्यख्यिनिसियखग्गघाएहिं ते नदंमाझ्या-अन्ने नठा न ओ तट्टा. ॥ २४ ॥ तो मनलियकरकमला-नूवीढबुठंतमत्थया सव्वे, खामित्ता रायाणं-विणीयविणयत्तणं पत्ता. ॥ ५५ ॥ तस्स कुमारामच्चो–न कोवि सव्वो तहाविहो अस्थि, तं आयरेण मग्ग-नय बग्ग कोवि से हत्थे. ॥ १६ ॥ एयं ता एवंचिय-नगरवहिं कविलनामगो विप्पो, निवस बंजणजणसमुचियाइं कजाई कुणमा श्री उपदेशपद. आवी ऊठीने बाहेर जइ पागे आव्यो, त्यारे पण तेओ तेना सामे लगारे ऊठी ऊना नहि थया. त्यारे तेणे गुस्सो बताकीने तेमने कह्यु के अरे सुनटो, गोधाओने मारी काढो. ते सांनळी तेओ परस्पर हसवा लाग्या. ५०-५१ त्यारे नारे शेषमां चीन तेणे ते सनामंझपना दरवाजा पर वे लेप्यमय (माटीना बनावेना) बझीदार जोइने तेमने कडं के–५२ ज्यारे आ लोको विनय नथी करता, तो शु तमारो पण विनय जतो रह्यो डे के? त्यारे ते लेप्यमय उमीदारो ऊट ऊठ्या.५३ तेमणे हाथमां धरेली तीखी तरवारोना घाथी केटयाक सुट सरदार वगेरेने त्यां गर कर्या एटखे वीजाओ जय पामी त्यांथी नासता थया. ५४ बाद तेश्रो सघळा हाय जोमी जमीन पर माथु लगामी राजाने खमावी विनीत थइ विनय करवा लाग्गा. ५५ हवे तेने जोइये तेवो कोइ पण त्यां युवान मंत्री न हतो तेथी तेथी ते खंत राखीने तेनी शोध करवा लाग्यो, पण तेना हाथे कोइ तेवो मळी शक्यो नहि. ५६ आ बात एमज चाख्या करती. हवे ते नगरनी बाहेर कपिल नामनो ए ५३ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३३० ॥ णो ॥ ७ ॥ पत्ता वियालसमए - यह केई साहुणो, डुहं इव्हि— नगरंतो पविसि - इ-विया तो तस्स होमगिहे. ॥ ए८ ॥ सो पंकिया निमाणी -कविलो पुछा न का माढतो, अवणी अनिणो - विणिचओ पुत्रियत्थाए ॥ एए ॥ जाओ य सावगो सो - जिवयांचिय परंतिमन्नंतो, एवं काले वच्चंतयंमि ग्रह अन्नया - न्ने - ॥ ६० ॥ वासावासं साहू -ठिया, सुमो तस्स जायमेत्तोवि-गहिओ दारुणरुवाई – रेवईए वायरीए. ॥ ६१ ॥ ता माया साहूणं - नावाकप्पं करेंतियाण महे, जावे तं काई कप्पा पाव सज्जो - ॥ ६२ ॥ संजाओ सो, नहा य-वयरी, तयणु से सजायाणि सव्वाणि थिरीनूयाणि - तेण कप्पोत्ति नाम कथं ॥ ब्राह्मण तेनी जातिने योग्य काम करतो थको रहेतो हतो. ए७ त्यां सांजना वखते कोइ साधुओ आव्या. तेमले विचार्य के या वखते नगरमां पेसतां दुःख थाय एम धारी ते तेनी यशाळामां रातवासो रह्या. ५८ हवे पोताने पंकित मानतो ते कपिल ने करवा लाग्यो त्यारे तेपणे पूढेली वावतोनो अति महापण जरेलो खुलासो आप्पो ए एथी ते श्रावक वनी जिनवचननेज उत्तम मानवा लाग्यो. एम केटलोक वखत जतां एक वेळा तेने त्यां वीजा साधुओ यावी चतुर्मास रह्या. ए वखते तेनो पुत्र जन्म्यो के तरतज तेने जयंकर रेवती नामनी वनचरी ( माकण ) वळगी. ६० - ६१ त्यारे तेनी माता जावनाकल्प करता साधुयोनी नीचे रही ते वाळकने जावित करवा लागी एटले ते कल्पोना प्रजावधी ते साजो यो पहेली वनचरी ( माकण ) नासी गइ. त्यारकेने तेना सघळा संतानो स्थिर रह्या, एथी तेनां मातपिता सारा दिवसे स्वजनसत्कार करीने तेनुं कल्प एवं नाम पामयुं. हवे ते श्वतपक्रमां जेम चंद्र वधे तेम शरीरे करवा लाग्यो. ६२–६३–६४ बाद तेनां माबाप काळधर्म पाम्यां. हवे ते ब्राह्मणकुमार ब्राह्मणजनने जणवा योग्य चौद विद्यास्थान श्री उपदेशपद. Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३३१ ॥ ६३ ॥ अम्हा पिईहिं सुपसत्थवासरे विहिय सयणसक्कारं, - परिवडूढिन माढत्तो— देहे सव्वि सिपक्खे. ॥ ६४ ॥ कालगए जगजणे — हिज्जा गणाणि तेण चउदसवि, माहाजण जोगाई – पढियाई विलंबर दियाई.- १.―॥ ६५ ॥ तानि चामूनि. “ अंगानि, चतुरो वेदा-मीमांसा न्यायविस्तरः, पुराणं धर्मशास्त्रं च -स्थानान्याश्चतुर्दश. ॥ १ ॥ शिक्षा कल्पो व्याकरणं - निरुक्तं ज्योतिषं तथा बंदचेति मंगानि - प्राहुतानि कोविदाः .॥२॥ सो सव्वमादणाणं-उवरिं नामं बदेइ, नय लेइ, अइसंतोषमुग-निदाणं दिज्जमाप ॥ ६६ ॥ पत्तो वि जोव्वानरं - विजागुओ य परमसोहग्गं, कन्नं सुरुवपुन्नं पि-नि किंपि परिोउं ॥ ६७ ॥ सो गत्तस्य परिगयो पुरं हिं ने सपाटा जी तैयार थयो. ६५ 35 ते चौद विद्यास्थान या रीते बेः “ अंग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण अने धर्मशास्त्र ए चौद स्थान बे. - त्यां शिक्षा, कल्प, व्याकर, निरुक्त, ज्योतिष ने बंद ए शास्त्रोने पंकितो अंग तरीके कहे छे. " १-२ हवे ते घळा ब्राह्ममां पंकावा लाग्यो, छतां ते अति संतोषवान रहीने राजाए आपका मांगेलुं दान पण लेतो नहि. ६६ वळी ते यौवन पाम्यो अने विद्याना गुणथी परम सौभाग्य पाम्यो तोपण सुरूपवाळी कन्याने पण परणवा इच्छतो न हतो. ६७ ते हमेशां सेंकको छात्रोनी साथे नगरमां फरवा नीकळतो हतो. हवे तेना जवा आववाना मार्गमां एक ब्राह्मण श्री उपदेशपद. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९११ ॥912 मए सयाकालं,अह तस्सागमनिग्गमपहंमि एगो दिओ वसइ. ॥ ६०॥ धूया तस्स जबू सगनामगवाही विहुरियसरीरा, थूलत्तण मणुपत्ता-अश्व रूवस्सिणी, तं च-॥ ६ए ॥ न वरेइ कोवि, एवं वएण सा अइमहटिया जाया, जाओ रिजसमओ सेनाय मिणं ती जणएण. ॥ ७० ॥ सो चिंतिनं पवत्तो-सत्ये पढिया न बनवज्झेसा, जं कन्नगा कुमारी-रिजरुहिरपवाह मुम्मुयश्. ॥ ७१ ॥ सच्चपइन्नो एसो कप्पगबमुओ तो उवाएण, केणावि देमि एयस्स-अन्नहा नत्थि वीवाहो. ॥ ७ ॥ नियगिहदारे खणिओ-तेणगमो तत्य गविया एसा, महया सदेण तओ-पकूवि ओ निवझिया अयडे. ॥ ७३ ॥ नो नो एसा कविता-जो नित्यारेइ तस्स मे दिन्ना, तं सोऊणं करुणापरायणो कप्पगो तत्तो-॥ ७ ॥ तं उत्तारे तो-नाणरहेतो हतो. ६७ तेनी दीकर। अति रूपाळी छतां जब्रूप नामनी व्याधियी पीमाती हती तेथी बहु जामी थइ जवायी तेने कोइ पसंद करतो न हतो. आ कारणथी ते वयमां पण बह मोटी थइ गइ अने तेने ऋतुकाळ प्राप्त थयो ते तेना वापना जाणवामां आव्यु. ६०-७० त्यारेते विचारवा लाग्यो के शास्त्रमा कह्यु के जे कुंवारी कन्याने ऋतुकाळ आवी रुधिरप्रवाह वहे ते ब्राह्मणने परणवी वर्जित .७१ माटे या कल्प नामनो बटुक (ब्राह्मणपुत्र) सत्य प्रतिझावाळो छे तो 3 तेने कोइ उपाययो आ कन्या आपुं, ए शिवाय बीजी रीते एनो विवाह थनार नथी. ७२ पड़ी तेणे पोताना घरना दरवाजा पासे एक कूवो खोदावी तेमां ते कन्याने ऊतारी अने पछी मोटे अवाजे बूम पामवा लाग्यो के ते कूवामां पी गए डे. ७३ हे कपिल, जे एने कूवामांथी कहामीने वचावे तेने में ते आपी. ते सांजळीने करुणावान् कम्पके तेमाथी तेने बाहेर कहामी. त्यारे ते ब्राह्मण तेने कहेवा लाग्यो के हे पुत्र, हवे तुं सत्य प्रतिकावान् छे (माटे एने तु परण). त्यारे अपय श्री उपदेशपद. Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणेण जह सञ्चसंधो सि, पुत्त, तो तेणं अजसन्नीरुणा कहवि पडिवन्ना. ॥ ७५ ॥ दाऊण ओसहाई-नीरोगसरीरगा कयाणेण, निसुयं रन्ना पंमियसिरोमणी कप्पगो एत्थ. ॥ ७६ ॥ सदाविय तो नणिरो-रन्ना, जह रजचिंतगो होहि, तं कप्पय असरिससेमुहीइ नवहसियगुरुबुद्धी. ॥ ७ ॥ तह सव्वंचिय रज्झं तुज्क वसे जेण जद मम्हाणं, गासबायणमेत्तं-मोठे नहु कज्जमन्नेण. ॥ ७ ॥ कह किब्विस मेय महं पविजेजा जणे सो ताहे, एसो न निरवराहो-चिंते निवो वसे होही. ॥ ७९॥ नणिो रन्ना साहीइतीजो धोयगो परिव्वसइ, किं कप्पगवत्या-तं धोवसि अहव अन्नोत्ति ? ॥ ७ ॥ अहमेव तेण जणिए–एत्ताहे जइ समप्पई वत्ये ता सव्वहावि मा देज-एवमेसो पमिनिसिझो. ॥ १ ॥ अह इंदमहे पत्ते-नशयी मरीने तेणे ते कबूल करी. ७४-७५ बाद तेणे औषधो आपी तेने रोगरहित करी. एवामां राजाए सांजल्यु के आ नगरमां कटपक सघळा पंमितोनो शिरोमणि छे. ७६ तेथी राजाए तेने बोलावी कडं के हे कम्पक, तुं तारी अनुपम बु द्विथी बृहस्पतिने हसी कहामे एवो छे, तो तुं मारुं राज्य संजाळ अने आ सघळु राज्य तारे आधीन छ के जेथी सा38 रु थाय, बाकी अमने तो खावा तथा पहेरवा मळे एटने वीजें जोऽतुं नथी. ७७-७० तेणे उत्तर वाळ्यो के ए पाप नरेला कामने हुं केम कबूल करूं ? त्यारे राजाए विचायु के आने अपराधमां सपमाव्या शिवाय ए वश यनार नयी. ७ए पछी राजाए ते बाजुमा जे धोबी रहेतो हतो तेने कयु के कटपकनां कपमा तुं धोवे जे के बीजो कोइ धोवे छे ? ७० तेणे कबु के हुँन धो बु. त्यारे राजाए तेने हुकम कर्यो के हवेथी ते जो वस्त्र आपे तो ते तारे तेने बिलकुल देवां नहि. १ हवे इंद्रमहोत्सव आवतां कल्पकने तेनी स्त्री कहेवा लागी के हे प्रियतम, तमे मारां कपमां सुंदर रीते रंगावी आ श्री उपदेशपद. Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३३४॥ + भ RO जाए कप्पगो इमं जणिो , मम पिययम वत्याई चंगाई तुम रयावेह. ॥ २ ॥ असंतुट्टमणो सो-निबइ ता जा पुणोपुणो लणइ, नीयाणी ताणि रयगस्स मंदिरे ताणि वत्थाणि. ॥ ३ ॥ सो जण अहं मोवंविणावि रंगेमि ते श्माणि त्ति, सो मग्गिो उणदिणे-अजहिजो समप्पेमि. ॥ ४ ॥ श्यनणिरो सो कालं गमे जा बीय मागयं वरिसं, एवं तश्यपि तो-गाढं सो मन्गिलं बग्गो. ॥ ५ तहवि न अप्पेइ जया-ताहे सो रोसरत्तसव्वंगो, तं नण तुज्म रुहिरेण-जइ न रंगेमि. वस्थाई.-॥ ६ ॥ तो जलियनीमजालानलंमि पविसामि निवयं जाण, तो पत्तो नियगेहे-गहिया असिपुत्तगा निसिया. ॥ ७ ॥ ग्यगगिहंपि अगो -ताहे रयगेण नारिया नणिया, आणेहि देहि वत्थाणि-जाव सा तं तहा कुणइ. ॥ ७ ॥ श्री उपदेशपद. पो. ७२ कम्पक अति संतोषवृत्तिवाळो होवाथी तेम करवा कबूल नहि थयो तोपण ते वारंवार कहेवा लागी तेथी आखरे ते ते कपमा बस्ने धोबीना घरे देवा गयो. ७३ धोबीए कडं के हुं तमारा आ वस्त्रोने मफत रंगी आपीश. बाद उत्सवना दिने ते मागवा आव्यो एटो तेणे आजकाल देवाना वायदा कर्या. ४ एम वायदा करता करतां वीजें वर्ष आव्यु अने डेक्टे चीजें वर्ष आव्यु त्यारे कष्पक आकरी रीते ते मागवा बाग्यो. ७५ तेम करतां पण तेणे ते नहि आप्यां त्यारे ते रोषथी लानचोळ थइ तेने कहेवा लाग्यो के जो तारा लोहीथी ए कपमा नहि रंगुं तो हुं वळती आगमां पेसीश ए तारे नक्की जाणवू. बाद तेणे घेर आवी तीखी तरवार ऊपामी. ७६-७७ पड़ी ते धोबीना घरे गयो त्यारे धोबीए तेनी स्त्रीने कां के कपमा लावीने दे एटले ते कपमा मा आवी. 16 एवामां ते कल्पके ते धोबीन पेट Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्पेण तस्स उदरं-फालित्ता ताणि रुहिररत्ताणि, विहियाणि तस्स नजाइ-कप्पगो नणिन माढतो. ॥ नए ॥ किं एस निरवराहो-हो तए जेण वारिओ रन्ना, तेणेसो चिरकालो-जाओ वत्याण मप्पिणणे. ॥ ए॥ चिंतियमिमेण नूणं- नरवइमाया श्मा नन इमस्स, हा धी कहं. असंबद्ध-मेरिसं चिहियं सहसा. ॥ ए१ ॥ जं तश्या मच्चत्तं-दिज्जतंपि हु पमिबियं न मए, तं एयफवं जायं-जइपुण पव्वश्गगो होतो-॥ ए ॥ तो नो एवंविहवसण नायणं होतो, निवसमीवे, ता वच्चमि सयंचिय-जा नो गोहा बला नेति. ॥ ए३ ॥ इय चिंतिय रायन-गो तो सविणयं निवो दिह्रो, नणिो संदिसह ममं किं कायव्वं ? निवो नण. ॥ एव ॥ पुव्वंचिय जनणियं-विभो तो रजचिंतगपयंमि, तक्खणमेवो वगया—कयारवा रा श्री उपदेशपद. फामी ते वस्त्रो सोहीथी रातां कर्या. त्यारे तेनी स्त्री कल्पकने कहेवा लागी के:-तें आ बिनगुन्हेगारने शामाटे 1 मार्यो ? केमके एने राजाएज मनाइ करी हती तेथी वस्त्रो देतां आटलो वखत नीकळी गयो. ए. त्यारे कल्पक विचारवा लाग्यो के खरेखर आ राजानोज प्रपंच छे, एनो एमां वांक नथी. माटे हाय हाय, मे वगर विचारे केम आवू नूं काम कर्यु !!!. ए१ ते वखते मने अमात्यपद मळतुं हतुं छतां ते में न लोधु तेनुं आ फळ थयु, पण जो हुं प्रत्रजित थयो होत तो आवा संकटमा फसात नहि. खेर हवे पोतेज चानीने राजा पासे जालं, नहितो पछी सिपाइयो खेंचीने त्यां लइ जशे. ए–५३ एम चिंतवीने ते दरबारमा जइ विनयपूर्वक राजाने नेव्यो अने कहेवा माग्यो के फरमावो, मारे शें करवं ? त्यारे राजा बोब्यो. एव पूर्वे जे कहेलु ने ते करो. ते परथी ते राज्यचिंतकना पदे रह्यो. एवामां Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उले रयगा. ॥ ९५ ॥ टुं रणासह नासमाण मेयं परूढपणयं च, नट्ठा दिसोदिसिं ते-श्यरो बहुजजो जाओ. ॥ ए६ ॥ जायाणि पुत्तरयणाणि-अन्नया पुत्तपाणिगहणंमि, संतेनरस्स रनो-जतं दानं समाढत्तं. ॥ ९७ ॥ आचरणाणिं घमिजतितत्थ विविहाणि पहरणाणि तहा, उवाद्धं गिद्द मिणं-पुवामन्चेण कुण. ॥ए॥ बघावसरेण निवो-विन्नत्तो देव सुंदरो न इमो, कप्पो जेण विरूवं-कावं तुम्हं सुयं रजे-॥एए ॥ श्बइ गवे एव मेव एयं न अन्नहा किंचि, संगामजोगमुवगरण-मन्नहा कह घमावेइ ? ॥ १० ॥ सारणिजलसारित्या-रायाणो होंति जेण पाएण, जत्तो निज्जति तो-धुत्तेहि तहिंचिय वलिंति. ॥ १०१ नियपुरिसपेसणे णं-सच्चवित्रं कप्पगो सपरिवारो, खित्तो गनीरकूवे-अश्कोहपरेण नरवइणा. ॥ त्यां बूमराण करता धोबीओ दरबारमा आवी पहोंच्या. एए तेत्रो कल्पकने राजा पासे प्रीतिथी वातचीत करतो जोइने आमतेम नासी गया. हवे कटपक घणी स्त्रीओ परण्यो. ए६ तेने घणा पुत्रो यया. बाद एक वेळा पुत्रना लग्नमां तेणे राजाने तेना अंतःपुर साथे जमावानी तैयारी करवा मांझी. ए७ एथी तेणे पोताना घरे अनेक आजरणो तथा हथियारो घमाववा मांड्यां. ते वात तेनी पूर्वेनो मंत्री जे तेना पर गुस्सो राखतो तेना जाणवामां आवी. एक तेणे लाग जोइ राजाने जणाव्यु क हे देव, आ कम्पक सारो माणस नयी. जे माटे ते तमने मरावीने पोताना पुत्रने राज्य पर बेसामवा मागे छे. आ वात खरेखरीज छे, एमां लगारे फेर नथी, नहितो बमवाना बरनां हथियारो ते केम घमावे के ? US -१०० हो राजाओ पाये नीकना पाणी जेवा होय ने तेथी तेओने उगाराओ ज्यां दोरवा मागे त्यां तेओ दोराय छे. 3 १०१ तेथी आ राजाए पोतानो माणस मोकशाची खातरी करीने कम्पकने तेना परिवार साये केद करावी अति गुस्से PROD श्रीनपदेशपद.. SAMAY 682684 Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३३७ ॥ १०२ ॥ तत्य वियस्य दिज्जइ – कोदवकूरस्स सेइगा एगा, जलवाहमिया य तहा - निययकुळंबं तो जणइ. ॥ १०३ ॥ पत्तो कुलपल मे - सत्तो का कुलस्स उद्वारं, निजामणं च वेरस्स - सो इमं जेमन न अन्नो. ॥ १०४ ॥ जयिं कुरूंबलो - ए - नत्थ· सत्ती तुमं पमोत्तूण, अन्नस्से यारिसिया - तुंज तुमंचिय इमं जत्तं ॥ १०५ ॥ पञ्चखायं नत्तं — सेसेहिं पावियंच देवत्तं तन्नत्तनोयणेणं - धारेई कप्पगो पाणे. ॥ १०६ ॥ जाया पञ्चतनरादिवेसु वत्ता जहा गयो निहणं, कप्पो सपुत्तदारोबहुबाहा यति ॥ १०७ ॥ ते रोहंति समंता - पालिपुत्तं महंतसेणाहिं, जाओ य निरखकासो - नंदो सहसा निराणंदो. ॥ १०८ ॥ अन्न मुवायं सो अलमागो चारगादिवे, किं कोवि अस्थि कप्पगसंबंधी तत्य कूवंमि ? ॥ १०९ ॥ थइने तेने क्रमा कुवामां नाख्यो. १०७ त्यां तेने फक्त वाफेला कोद्रवान) एक वामां आवती; तेथी कल्पक पोताना कुटुंबाने या रीते कहेवा लाग्यो. १०३ आव्यो बे, माटे जे कोइ कुलनो उद्धार करी शके तथा वेरनो बदलो वाळ शके ते या कोद्रवा खाया, बीजा नह खावा. १०४ त्यारे कुटुंबीओ बोल्या के तमारा शिवाय बीजा कोइनी एवी शक्ति नथी, माटे तमेज या जोजन खाओ. १०५ आम कही ते जेोजननुं प्रत्याख्यान करी मरणशरण थया, अने कल्पक ते जोजन खातो रहीने जीवतो र, ह्यो. १०६ एवामां आजुबाजुना राजाओोमां वात फैलाइ के कल्पक तेना स्त्री पुत्रो साथे म परवा हिम्मत घरी तरतोतरत पाटलिपुत्र नगर पर मोटां लश्करो लावी चांमेरथी घेरो घाट्यो, तेथी नंदराजा चिंतो सपफाइ जवाथी बेबाकझो ययो. १०७-१०८ त्यारे तेने बीजो कशो उपाय नहि सूऊतां तेणे केदखानाना ऊपरीओ सेतिका तथा पाणीनी एक काव आपणा कुळनो प्रलय यवानो ४३ श्री उपदेशपद. Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३३ ॥ पुत्तो वा महिला वा-दासो वा अपहाणबुद्धिजुओ, जं तस्स परियरो बुधिनायणं सुच्चइ जणंमि. ॥ ११० ॥ नणियं चारगपालगपुरिसेहिं देव अस्थि कोवि तहिं, जो जत्तं पनिगाहइ-खित्तो आसंदो तत्थ. ॥ १११ ॥ तंमि समारोवेत्ता-कूवाओ कड्ढिो किससरीरो, नाणाविहोसहेहि-पनणसरीरो य संजाओ. ॥ ११॥पागारोवरि कान---गहिओजनवेससुंदरागारो, राईण दरिसिओ सोते नीयमणा खणे जाया.॥ ११३ ॥ तहविय नंदं परिहीसाहणं जाणिकण सुठ्ठयरं, कान मुवद्दव महिगं-ते पारघा, तो बेहो.॥ ११४॥ देणसिं दिनो-जो तुब्नं सव्वअणुमत्रो कोइ, तं पेसेह जमुचियं-संधिं अन्नंचं काहामो.॥ ११॥ कप्पो नावारूडो-गंगाइ म हानई मज्जमि, तप्येसिओ य पुरिसो-मिलिया थेवंतरेण उिया.॥११६॥ करसन्नाए ने पूछयु के पहेला कूवामां कटपकनो कोई संबंधी जेवो के पुत्र, स्त्री के नारे बुद्धिवाळो चाकर नफर हयात जे के केम ? केमके तेनो परिकर पण बुद्धिशाली तरीके दुनियामां संजळाय जे. १00-११० तेश्रो बोड्या के हे देव, कोक छे खरो के जे खावानुं खेतो रहे छे. त्यारे कूवामां मांची ऊतारी तेमां तेने चावी कूवायो बाहेर काढ्यो तो ते शररीरे कृश थइ । 8 गएलो कल्पकज जणायो, एटझे तेने अनेक जातनां औषधोया साजो करवामां आयो. १११-११२ पर) तेने नज्वन कामां पडेराव गाउमाठ करावीने किवा ऊपर चमावी घेरो घालनार राजाओने बताववामां आवतां ओ तरत मनमा मर खावा लाग्या. ११३ तेम उतां पण नंदने अोग पमेला साधनवाळो गणीने तेश्रो जोर पर रही अधिक हबो करी वा लाग्या. १४ त्यारे नंदे तमने लेख मोकमाव्यो के तमो बधाने पसंद होय तेवा माणसन मोकझो तो पतावट वगरे करीए. १ ५ बाद वहाण पर चमेलो कल्पक मंत्री तथा तेमणे मोकलावेन माणस गंगा नदीना बच्चे थोमा छेटे ऊना रही श्री नपदेशपद. ए Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PMARPRAPX तत्तो—कप्पगमती बहुँ नण तेसिं, जह उच्छृण कलावे हेहा नवीरं च निमि॥ ११७॥ एवंच दहियकुंमे-हेका नवरिं च विहियव्यंमि, सहसत्ति भूमिपमियंमि हो। तं लणसु किं नद. ॥११॥ वामोहजणग मेयं-नासित्ता कप्पगो तओ कत्ति, पायाहिणी करेता-नियत्तो आगो तुरियं. ॥११॥ श्यरोवि अविनक्खो-नियत्तो पुच्छिो सनजो य, नय किंचि अक्खिनं तरह-नणश्वो बहुं लव. ॥१२॥ मु. णियंच तेहि एसो—कप्पेण वसीको न अम्हहिओ, कह मन्नह असलो-बहुप्पनावी को कप्पो. ॥११॥ संजायचित्तनेया-दिसोदिसिं ते पलाइलं लग्गा, नाण ओ कप्पेण निवो-पच्छा एसिं विनग्गेहि॥१श्शागहिया हत्यी आसा य-बहुधणं सिबिरसंतियं तेसिं, उविबो निवेण सो तंमिचेव कप्पो नियपयंमि. १२३ सव्वंपि रजकजंएका मळ्या. ११६ त्यारे कम्पक मंत्रीए हाथना चात्रा कररी घणुं समजाव्यु के जेम सेबमीना सांगने हे अने ऊपयी कापी. कहाड्यो होय, अगर एज रीते दहिना वासणमां नीचे तथा ऊपर काणुं पामो एकदम जमीन पर पानी दी होय तो हे मला माणस, बोल के शुं परिणाम थाय ? ११७-११७ आ रीते गुंचवण रेखं कहीने कटपक मंत्री त्यांयी तरतज चकरावो बइ पाखो वळीने जतावळे आव। पहोंच्यो. ११ए हवे पेस्रो दुश्मनोनो माणस ( ते निशानीोनो नेद नहि समजायायौ) वनखा पौने पालो कन्यो तेने तेपणे पूछतां ते शरममा पकी कं बोन्त्री शक्यो नहि, मात्र तेणे ढुंके पताव्यु के वटुक ( कम्पक ) बहु अपनप करतो हतो. १२० आ परथी तेमणे धार्यु के आने कलपके लांचेसो छे, माटे ए आपणुं नखोद वाळशे नहितो कम्पक जेवा अति हुशियार माणसने ए लपलप करतो केम जणावे? १२१ आम शकमा परी तेओ नाशनागमा पड्या तेटले कटपक मंत्रए राजाने कयुं के हवे एमनी पूठ पकमो. १२२ राजाए तेम करी तेमना हायी, घोमा तथा मानमता हाथ कर अने कल्पकने तेना असझना पद पर मुकरर को. १३३ बाद श्री उपदेशपद. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||३४ BODOOT NaDOTCK वसीकयं तेण निययबुद्धीए, मंती पुवविरुधो-धणियंच निरुद्धओ विहिओ.॥१॥ अतिक्खो वि दवग्गी-दहंतो मूत्ररक्खणं कुणइ, मिनसीयत्रो जनोहो-समूत्र मुम्मूत दुमोहं. ॥१२॥ परिभावितेण श्म-तेण ततो केवरेण सामेण,नियमच्छि मसहमाणा-समूत्र मुम्मूलिया रिउणो.॥१६॥जह जमणान सुवन्नं-उत्ति नूरिनासुरं होइ, तह सो वसणान तो-पत्तो असमहियं तेयं. ॥ १२७ ॥ अच्चुग्गयवेरग्गेणतेण परमं समुन्नई नीओ, धम्मो जिणाण जिणचेश्याण पुयाश्करणण. १२८ सुश्सीलाओ कुत्रबालियान वीवाहियान नियवंसो नीओ विसावन्नावं-परमं तोसं च बंधुजणो. ॥१॥ तस्सेसा वेणगी-बुद्धी बुझाखिनत्थसत्थस्स, कालेण समाराहि यजिणवयणो सो दिवं पत्तो. ॥१३॥ (७.) इति. कटपक मंत्रीए पोतानी बुधिना बळे सघळो कारनार स्वाधीन करी पोताना विरोधी मंत्रीने मजबूत रीते केदमां घाख्यो. १२५ " दावानळ अति आकरो थइ वळे तोपण कामोनां मूळ वची जाय छे, पण पाणीनो प्रवाह नरम अने थंमो रही तेमने मूळथी जखमी शके जे." आ कहवतने अनुसरी तेणे केवळ सामनीति वापरीने तेनी मोटपने नहि सही कता दुश्मनोने मूळयी ऊखेकी नाख्या. १२५–१५६ वळी जेम आगमांयी पसार थएन सोनू वधारे; चळकतुं थाय तेम ते संकटमाथी पसार थइने अधिक तेजस्वी थयो. १२७ ते साये तेणे नग्र वैराग्यवान् थइने जिनमंदिरोमां पूजाओ वगेरे करीने जैन धर्मने पूर्ण नन्नति पर आएयो. १२ तेणे पवित्र शीलवाळी कुन्नीन बाळाोने परणी पोताना वंशने विस्तार्यों अने बंधुजनने संतोपित कर्या. १२५ आ रीते ते अखिन अर्थशास्त्र एटले नीतिशास्त्रनो जाणनार होवाथी तेनी बुद्धि ते वैनयिकी बुधि जाणवी. ते अवसरे जिनवचन आराधीने स्वर्ग पहोंच्यो. १३० श्री उपदेशपद. Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४१॥ अहवा सोममनामो-चित्तयरसुओ माइ आहरणं, जह तस्सेसा बुद्धी-संजाया वोच्छ मह मित्तो. ॥ १ ॥ सागेयं नामपुरं-समत्यि सव्वत्थसाहणसमत्यं, नत्तरपुरच्छिमाए-दिसाइ अरेगरमणिज-॥॥ सुरपियजक्खाययणं-तत्थतियपट्टनिच्चरम्ममहं, थवणपणोल्बणचळवळ धयवमा मोवरमणिज्जं. ॥३॥ सन्निहियपामिहरो—सो जक्खो विविहचित्तकम्मेहि, पश्वरिसं चित्तिजइ-कीर य महामहो तस्स. ॥ ४॥ नवरं चित्तियमेत्तो-तंचेवय चित्तकारगं हणइ, जइपुण नो चित्तिजइमारिमपारं पुरे कुणइ. ॥ ५ ॥ पाणनएण पनाया-चित्तयरा चिंतियं च नरवश्णा, एस अचितिजंतो-होही अम्हाणवि वहाय. ॥ ६ ॥ सव्वे जत्ति निरुघा-पहायमाणा पहंतरावंमि, संकत्रिया एगहा, तेसिं सव्वेसि नामाइं-॥७॥ लिहिया (कम्पक मंत्रीनी कथा समाप्त थइ.) अथवा सोमठ नामे चितारानो पुत्र आ बुधिमां उदाहरण जे. तेने बुद्धि शी रीते प्राप्त थइ ते हवे हुँ कही वता बु. १ सर्व अर्थने साधवा समर्थ साकेत नामे नगर हतुं. तेनी उत्तरपूर्व दिशामां एट्ले के ईशानकोणे अति रमपीय सुरप्रिय नामना यतुं आयतन (दे5) हतुं. त्यां ते यवनो जे पट्ट हतो तेना आगळ हमेश रमणीय महोत्सव थता हता. वळीते देरुं पवनथी ऊमती चंचळ धोळी धजाना गठमाउथी शोलायमान लागतुं तुं.-३ त्यां दर वर्षे ते यह तेना परिकर साये चितरवामां आवतो हतो; अने तेनो उत्सव पन्नातो. ४ पण ते या चितराइ पूरो थयो के तेना चितरनारनेन मारी नाखतो हतो, अने अगर नहि चितराय तो शहरमां ते जारे मरकी पेदा करतो. ५ त्यारे मरवानी बीकथी चितारा नासवा मांड्या एटले राजाए विचार्यु के जो ए या चितरवामां नहि आवशे तो ते अमोने पण मारी नाखशे. ६ श्री उपदेशपद. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३४२ ॥ - पत्तए अह घर्ममि बूढाइ मुद्दिओ घमओ, जो जस्स जंमि वरिसे - नामुग्धाको तओमि. ॥ ८ ॥ चिते जक्ख मेयं - एवं कालो गयो बहू जाव, ता अन्नया कयाई कोबीरपुरी ॥ ए ॥ एगो चित्तयरसुयो - जांगघराम्रो पलाइ यो तत्थ, सागेयचित्तगरगढ़ - मागो सो य थेरिसु. ॥ १० ॥ एसोय निव्विसेसो- दिडो थेरी निययपुत्ता, मित्ती जंति दिवसा - तेसिं (नयकम्म निरयाणं ॥ ११ ॥ अह कवि तंमि वरिसे - थेरीपुत्तस्स वारओ जाओ, सावित्रायमुही - पुणो पुणो रोविनं लग्गा ॥ १२ ॥ जलिया तेण म रोयसु - अम्मे, सच्चं जनामि अह मेत्य, किं 'तुमं न पुत्तो - अप्पाणंतेसि जं वसणे ॥ १३ ॥ इयजं पिरी व थेरी - वयणेहिं तेहि तेण संविया, तेणुज्जियसोगजरा-जह अंब निराकुला चिह्न ॥ १४ ॥ नाओ एथी ते घळा नासता चिताराने ऊट करीने अर्धे रस्ते पकमी पामी एका कर्या. बाद ते सघळानां नामो पत्रमां लखीने एक घामांनाखी ने सील लगामयुं. हवे जे वर्षे जेनुं नाम नीकळे ते ते वर्षे ए यकने चितर एम करतां घणो काळ पसार थयो, तेवामां एक वेळा कौशांबी नामनी नगरीथी एक चितारानो दीकरो वापना घरथी जागीने ते साकेत पुरना चिताराने घरे व्यो, केमके त्यां तेनी मानी मा रहेती. ७-८ - ० - १० त्यां तेनी नानीए तेने पोताना पुत्र सरखो ग एने राख्यो . हवे ते पोतपोताना कामे वळग्या रही दिवसो पसार करवा लाग्या. ११ एवामां जोगजोगे ते वर्षे ते मोशीनाद करानो वा आव्यो एटले ते कोशी विलखे मुखे वारंवार रोवा लागी १२ त्यारे ते चिताराना दीकराए कछु के माजी, तमे रुवो नहि, हुं पोते जइश. त्यारे ते बोली के तुं शुं मारो पुत्र नथी के जेने आवा कष्टमां जेळ ? १३ एम बोलती कोशीने पण ते एवां वचनोथी समजावं के माताजी, तमे शाक मेलीने निश्चिंत रहो. १४ बाद तेणे उपाय जाएयो के श्री उपदेशपद. Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ॥३४३ 13 तेण नवाओ-विणएण जहा सुरा पसीयंति, तो उत्तमविणयसमन्निएण मे इत्थ हो य व्वं. ॥ १५ ॥ विहियं उठक्खमणं-बंतच्चराइओ तहा विणो, वन्नगकुञ्चगमनग–माइ सव्वं नवं च कयं. ॥ १६ ॥ हाम्रो सदसे वत्ये-परिहित्था पोत्तियाइ मुहवंधं, काऊणगुणाए-कलसेहिं नहिं एहावित्ता.-॥ १७ ॥ तं चिंतेइ सपणयं -पना पाएसु निवमिओ लणइ, खमह जमेत्थ वरवं-मए तो तोसमावलो.-॥ १०॥ जक्खो नणेश जं तुज्झ-रोयए तं वरेहि वरमेगं, सो नणइ लोगमारिं-मा कुण एसुच्चिय वरो मे. ॥ १५ ॥ नणियं जक्खण जहा-जं तं न हओ हणामि नो अन्ने, तो अन्नं वरचेत्तो—मग्गसु दूरं पसन्नो ते. ॥ २०॥ तो जस्स एगदेसंपि-क हवि पासामि उपयमाश्स्स, चित्तमि तस्स दिठाणु-सारिरूवं समग्गंपि.-॥२१॥ * के देवो बिनयथी प्रसन्न थाय छे, माट मारे यहां अति उत्तम विनय साचववो. १५ तेणे वे उपवास कर्या तया ब्रह्मचर्य र वगेरे पाळी विनय साचव्यो, तेमज त्यां नवो रंग लगाव्यो अने वालाकुंची तथा सरावळां वगेरे सघळां नवां दाखल कर्या. १६ बाद स्नान करी दशीवाळां वे वस्त्र पढेरी आठ फमना रुमालथी मुख बांधी नवा कळशोयी याने नवराव्यो. १७ पनी प्रीतिपूर्वक तेनुं चिंतन करी पगे पर ने कहवा लाग्यो के में जे तमारो अपराध कर्यो होय ते माफ करो. आ उपरथी यक संतोष पाम्यो. १० ते या कहवा लाग्यो के जे तने रुचे ते एक वार माग. त्यारे तेणे कर्दा के हुं एज वर मागुं बु के तारे लोकोने मारवा नहि. १ए त्यारे यह कयु के तन में न मायों एटले हवे बीजाप्रोने पण नहि मारुं. माटे तुं हजु ए उपरांत वीजें कंडक माग, केमके हुं तारा पर खूब खुशी थया बुं. १० त्यारे तेणे माग्यु के हुं जे कोइ धिपदादिकनुं एक र देशनाग जोडं तेनुं सघळु रूप दीवानी माफक चितरी शकुं एम करो. २१ एम तणे मागतां यह ते वात बरोबर कबूल श्री उपदेशपद. Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४॥ Home श्य नणिए तेणेसो-एवं होजत्ति मन्नए सम्म, तो रन्ना सकारं साहुकारं च सो नीओ. ॥ २॥ पत्तो कोसंबीए-सयाणिो तत्य नरवई अस्थि, सो अन्नया सुहासण-मारूढो पुत्लए दूयं. ॥२३ ॥ जं राईणं अन्नेसि-अस्थि किं तं न अस्थि मह रज्जे ? तेणुत्तं चित्तसहा-एकच्चिय देव ते नत्थि. ॥ २४ ॥ तो मणसा देवाणंवायाए पत्थिवाण सिझंति, कजाइं उसकावि-आणत्ता तक्खणा सव्वे-॥ २५ ॥ नगरीए चित्तयरा-तेहिं पुण सा सहा विनजिऊणं, आढत्ता चित्तेजं-सव्वुवगरणोववेएहिं. ॥ २६ ॥ बख्वरस्स य चित्तयर-दारगस्सा जो न अवरोहो, तहिसिन्जागो, जाओ-अहन्नया जालकमगगो-॥ २७ ॥ दिट्टो मिगावईए-पायंगु हो वरा य सा देवी, अश्परमपेमपत्तं-नरवइणो तस्स निचंपि.॥ २८ ॥ दिट्ठाणुसाराखी. बाद त्यांना राजाए तेनो सत्कार करीतेने साबाशी आपी. त्यांची ते कोशांबीमां आव्यो. त्यां शतानीक नामे रा जा हतो तेणे एक वेळा गादी पर बेसी दूतने पूछयु के–२३ एवी का चीज डे के जे बीजा राजाओने त्यां छे अने मारे त्यां नथी ? ते कां के हे देव, तमारे त्यां फक्त एक चित्रसजाज नयी. व त्यारे कवत ने के " देवोना दःसाध्य कामो मनवमे चिंतवतां सिद्ध थाय छे अने राजाओनां तेवां कामो वचन उच्चरतां सिद्ध थाय छे" ते प्रमाणे तेणे तत्काळ नगरीमा वसता सघळा चिताराकोने हुक्म को एटले तेमणे अरस्परस वाँचण करीने सघळी सामग्रीवमे सजा चितरवी शरु करी. २५-२६ हवे पेसा वर पामेला ते चिताराना बाळकने जे बाजु अंतःपुर हतुं ते नाग आव्यो. त्यां एक बखते तेपो. जाळीमांथी-मृगावतीना पगना अंगूठो दीगे अने ते घणी रूपवंत तथा राजाने हमेशां अति प्रिय हती. २७-२ बाद तेणे दीक्षा अंगूठाने अंनुसरीने तेनुं सघळु रूप आलेख्यु. त्यारबाद तेनी आंखोना जन्मीलनना श्री उपदेशपद. Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३४॥ स PROMOTION . .S.03aman रिणा तेण-तयणु चित्तयरसूणुणा सव्वा, आलिहिया सा चक्खुस्स-तीइ उम्मीलणावसरे-॥ २९ ॥ तस्सायरसारस्सवि-हत्याओ कज्जलस्स अह बिंद्र, नरंतरे निवडिओ-फुसियो जाओ पुणोवि तओ. ॥ ३० ॥ एवं जा वारतिगं-विहियमणेणं विनावियं मणसा, एएणेवं होयव्व-मेव ता उवरमो सेो. ॥ ३१ ॥ निम्माया चित्तसहा-विन्नत्तो नरवई जहा देव, पासह चित्तं, सुपसन्न—माणसो पासिजं लग्गो. ॥३॥ निनणं निव्वन्नतेण तेण दिडं मिगावरूवं, बिंदू य णूणमेएण-धरिसिया मज्म पत्तित्ति. ॥ ३३ ॥ काउण मणे रोसं—चित्तयरसुत्रो निरूवित्रो वज्झो, चित्तयराणं सेणी–नवठिया एस लघवरो. ॥ ३४ ॥ नो जोग्गो मारे-सा मि, निवो नण पच्चो को णु? खुजयदासी मुहमेत्त-दरिसणा पञ्चओ विहिरो. अवसरे खवरदारी राखतां उतां पण तेना हायमाथी काजबर्नु बिंदु ते राणीना चित्रना सायलमां पी गयुं ते तेणे जूसी नाख्यु छतां फरीने बीजी वार पम्यु. २५-३० एम ज्यारे त्रीजी वार पण पमयुं त्यारे तेणे मनमां विचायु के ए ॐ त्यां हशेज तेथी तेणे ते त्यां रहेवा दीवु. ३१ हवे चित्रसजा पूरी थतां चिताराआए राजाने वीनंती करी के हे स्वामि, ॐ हवे खुशीथी चित्रसना जोश ब्यो. त्यारे राजा खुशी थइ ते जोवा लाग्यो. ३२ हवे राजाए लक्षपूर्वक निहाळ्तां नि-28 हाळतां मृगावतीनुं चित्र जोयुं तथा ते बिंदु जायुं, एथी तेणे धायु के नकी एणे मारी स्त्रीनी लाज बीधी छे. ३३ तेथी 3 तेणे मनमां गुस्सो नावीने ते चिताराना बाळकने मारी नाखवानो हुकम को. त्यारे चिताराओ एकग थइ कहेवा माग्या के ए वरदानी . माटे हे खामि, ए मारवा योग्य नथी. राजाए कडं के तेनी खातरी शी? त्यारे तेमणे कुब्जा दासीन फक्त मुख बतावीने तेनु आबेहूब चित्र करावी पापी खातरी करावी. ३४-३५ तेम छतां राजाए क के मारो रोष श्री उपदेशपद.. १४ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४६॥ ॥३५॥ रोसो अवज्झओ मज्झ-तहवि संकास मस्स मवणेह, आणतो- निविस्स.. ओ-गओ य सागेयनयरंमि. ॥३६॥ विहियं पामिच्चरणं-तस्सेवय सुरपियस्स जक्खस्स, पढममुवासस्संते-नणिो वामेणवि सिंहेसि. ॥ ३० ॥ श्य पुणरवि बछवरो-जक्खाओ सो सयाणिए रोसं, अश्स्स हं पवन्नो-वसणुववाएवि चिंतइ य. ॥३०॥ विहियं मिगावईए-रूवं फनयंमि अश्सयसरूवं, नजेणीए पजोय-राणो तं च दरिसेइ. ३० ॥ दिउं सिहं च निवेण-पुत्रिए तेण तक्खणाचेव, कोसंबीनरवइणो -दूनो अतिदारुणो पहिओ. ॥ ४० ॥ एसा मिगावई ते-जा नजा तं बहुं ममं देहि, अन्नह संगामसहो–होज ममं एजमाणस्स. ॥ ४१ ॥ तो निनमिन्नंगनीसण -निमालवट्टो सयाणिओ दूयं, दूरमसक्कारेत्ता-निष्मणेणं निसारे. ॥ ४२ ॥ तो खानी होयज नहि माटे हुकम कयों के एनुं जमाणुं कामु कापीने एने देशनिकाल करो. एथी ते देशनिकाल या साकेतपुरमा आव्यो. ३६ तेणे त्यां तेज सुरप्रिय यदनी प्रतिचरणा ( उपासना ) कर। एटले पहेबाज उपवासना अंते यके कह्यु के जा तुं हवे मावा हायथी पण चित्री शकीश. ३७ एम फरीने तेणे ते यक पासेयी वर मेळव्युं, अने तेने शता. नीक ऊपर अति गुस्सो रहेवा लाग्यो तेयी ते तेने दुःखमां नाखवाना उपायो चितववा लाग्यो. ३७ तेणे मृगावतीनुं अतिशय शोजितुं रूप पाटीया पर आलेखीने ते उज्जयिनी नगरीना प्रद्योतन राजाने वताव्यु. ३५ ते जोड राजाए पूछतां तेणे ते संबंधी बात कही एटले राजाए तरतोतरंत कोशंबीना राजा तरफ एक बीहामणा दूतने मोकझाव्यो. ४० ते साथे कर * हेबराव्यु के आ तारी मृगावती नामनी जे नार्या ने ते जलदी मने पहोंचाम नहितो हुं ची आई बु माटे सवा तैयार थजे. ४? त्यारे शतानीकराजाए ते वात सांजळी जमर जांगी जयंकर कपात्र धरीने ते दूतने फजेत करी धक्का मारी रवाने श्री. उपदेशपद. Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३४७ ॥ दूयवय परिकुविय - माणसो सो अवंतिनरनाहो, सव्वबलेण साहो – को संबिं प‍ समुच्चय. ॥ ४३ ॥ तं जमदंमागारं सोऊणं इंतयं पतुरंतं, अप्पबलो सो राया — म अईसाररोगे. ॥ ४४ ॥ इथिरचित्तताओ - मिगावई ए एस पुत्तोवि, उदयनामा बालगोत्ति मे ना सिही सहसा ॥ ४९ ॥ इय परिनाविय पज्जोयगस्स-: पेमचिरे, ओ एस कुमारो - बालो अम्देहि तुज्फ घरे. - ॥ ४६ ॥ संपत्तेहिं सामंतराइणो- - नाम परिजवं बहिही, अन्नेवि संनिहिए –— केाई मान पेलेका ॥ ४७ ॥ तो संपयं न कालो – पत्थुयकज्जस्स सहसु य विलंब, सो जामए चिंता - गरंमि को किं खमो काउं. ॥ ४८ ॥ जणियं मिगावईए-सीससमी मि कर्यो. ४२ दूते आवी ते बात प्रद्योतनने जलावतां ते गुस्से यह सबकुं लश्कर लइ कोशंबी तरफ रवाने थयो. ४३ हवे ते यमना दांगा जेवा राजाने जलदी जलदी यावतो सांजळीने आग लश्करवाळा शतानीकराजाने अतिसारनो रोग लागु पड्यो तेथे ते मरण पाम्यो. ४४ च्या वखते मृगावतीए विचार्य के प्रद्योतन राजा मजबूत मननो होवाथी मारा अति नानकका उदयनकुमारनो पण ऊट नाश करावशे. ४५ एम विचारीने तेथीए प्रद्योतन तरफ तरत दूत मोकलावी कहेबराव्युं के हुं तारा घरे आवीश तो आ नाना कुमार सामंतराजाश्रयी पराभव पामशे अने वखते बीजो पण कोइ समीपवर्त्ती एने हैरान करशे माटे तेम न थवा दीयो. ४६-४७ माटे प्रस्तुत कार्यनी हाल समय नथी तेथी थोको विलंब राखो. प्रद्योतने जवाब वाळ्यो के हुँ एनी चिंता राखनार बेगे बुं तो कोण एनुं नाम लइ शकशे ? ४८ मृगावती ए कहेवराव्यं के सर्प माथानी नजीक होय अने गारुमी सो योजन पर होय तो ते ते टांकणे शु करी शके ? - ४० एम कहेवराव्या छतां ज्यारे ते अतिरागने ली अटकी शक्यो नहि त्यारे तेलीए तेने एम कड़ेवराज्यं के वारू, त्यारे कोशंबी पुरी ने मजबूत करावी यापो. ५० प्रद्योतने ते बात कबूल' राखी पत्राव्यं के तेनेशी रीते मजबूत, करवी ? राणी करे श्री उपदेशपद. Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४॥ निवसई सप्पो, गारुमिओ पुण जायण-सयंमि किं कुणन सो वसरे ? ॥ ४ ॥ जाहे जणिोवि न गश्—सो दढं रागमागओ ताहे, जणियं जहा सुसजं–कोसंबिपुरं करावेदि. ॥ ॥ पमिवन्नं कह कीरन नणिओ नजेणिश्टगा बलिया, कीरन ताहि विसालो-सानो बलवं इहपुरीए.॥५१॥ पुरिसो मयणविहुरियो-पत्यिज्जतो मणप्पियजणण, किंकिंन दे किं किं करेइ नहु बहुअकजंपि.॥५२॥ तस्स तया रायाणो -चोदस वसवत्तिणो सपरिवारा, विया दोण्ह पुरीणं-पहंमि गुरुअंतरालंमि ॥ ५३ ॥ पुरिसपरंपरएणं-आणीया इट्टगा तओ तेहिं, विहिओ कोसंबीए-पायारो हिमनगागारो. ॥ एव तत्तो श्मीइ नणियं-किमिमीए धमाश्रहियाए, सहापुन्नण तो-जरिया धणधन्नमाईणं. ॥ ५५ ॥ उसना वेद यबास्त्रं, यच्च वेद वृहस्पतिः वराव्यु के उज्जेणीनी इंटो मजबूत होय छे, माटे तेमनावमे आ नगरीनो मजबूत कोट करावी आपो. ५१ हवे कहेवत छे के "कामातुर पुरुष तेना प्रियजननप्रार्थनाथी शुं शुं नहि आपे तथा शुं शु नहि करवा योग्य काम पण नहि करेए । ए कडेवत प्रमाणे प्रद्योतन राजाए पोता पासे ते वखते जे चाँद वशवत्ती राजाओ हता तेमने ते बे नगरी नालांबा मार्गन) बच्चे राख्या. ५३ तेमणे माणसोनी हार करीने त्यांथी इंटो आणी एटल्ले कोशंबीने फरतो हिमालय जेवो । कोट तैयार कराव्यो. ५४ त्यारे फरीने राणीए कहेवराव्युं के आ नगरीमा धान्य वगेरे कंइ नथी माटे शा कामनी गणाय: एटले विश्वास पामेला पद्योतनेते धनधान्ययी पण जरावी आपी. ५५ कहबुंछे के "शुक्राचार्य जे शास्त्र जाणे छे तथा वृहस्पति । जे शास्त्र जागे जे ते वधुंस्त्रीओनी बुद्धिमां स्वनावेज रहेg जे." ५६ आ वचनने अनुसरती तेणीए विशेष मजबूतोपापी. हवे ते सरस नगरी घेरो सहेवाने समर्थ थइ पी.५७ ए वखते मृगावती विचारवा लागी के ते गाम तथा नगरोने धन्य के ज्यां । सर्व जगतना जीवो पर वात्सव्यजाव राखनार चरमतीर्थकर वीरपत्नु विचरे छे. ५७ बळी तेोज्यां विचरं छे त्यां परचक्र, दुकान तथा अकान मरण वगेरे अनर्य दूर थता रहे अने लोकोना मनमा आनंद थतो रहेछ एवाते जगवान् छे.एछ तेज श्री उपदेशपद. 8 Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३४ए खन्नावादेव तत् सर्वं, स्त्रीणां बुझौ प्रतिष्ठितं. ॥ ५६ ॥ इयवयणमणुसरतीइ–तीए विहिओ विसेससंवाओ, रोहगसज्जा सज्जा—संजाया सा पुरी पवरा. ॥ ७ ॥परिचिंतियं च णाए धन्ना ते गामनगरमाश्या, सव्वजगजीववचन-चरित्रो चरमो जिणो वीरो. ॥ २८ ॥ विहर जत्थ अणत्ये-परचक्कासकालमरणाई, उबारितो दू. रे-जणियजणमानसाणंदो-॥ एए ॥ जइ इज मज्क पुन्नेहि-एत्य सामी करेमि पव्वजं, तो तस्स चरणकमलसियमि परिचत्तपनिबंधा. ॥ ६० ॥ परउवयारेकरई -नाचं तच्चिंतियं महानागो, उत्तरपुरत्यिमाए-दूरा देसंतरागम्म.-॥ ६१ ॥ ओइमो नजाणे-सामी चंदावयारनामंमि, जाओ वेरोवसमो-सगया चनविहा देवा. ॥ ६ ॥ सव्वजियाणं सरणं व–ओसरणं तत्य निम्मियं तेहिं, आजोयणमेगवान् जो मारा पुण्ये इहां पधारे तो हुँ प्रतिबंध छोकी तेना चरणकमळनानजीकमां प्रव्रज्या अंगीकार करु.६० हवे परोपकारपरायण महानाग वीरफ्नु तेनो ते मनोरथ जाणीने दूरदेशांतरथी आवीने ते नगरीनी उत्तरपूर्व दिशामां ( ईशान कोणमां ) रहेला चंद्रावतारनामना उद्यानमां ऊतर्या तेथी वैरनी शांति थइ अने चारे निकायना देवताओं त्यां एकग थया. ६१-६२ तेमणे सर्व जीवोनु जाणे शरणरूप होय तेव योजन प्रमाण पृथ्वीने शोजावतुं समवसरण तरतोतरत रची तैयार कर्यु. ६३ ते समवसरण आ रीते छे के मणि, सुर्वण, अने रूपाना त्रण गढ रच्या के जेमना ऊपर धजात्रो अने * निशानोनाएटला जथा ऊमता राख्या के सूर्य ढंका जतो हतो.६४ वळ। सेंकको शाखाओयी जमीनने ढांकतुं अने घणां पदिमांओथी आकाशने जरी नाखतुं एबुं वे प्रकारनी गयाथी युक्त अशोक नामे उत्तम काम त्यां खतुं कर्यु. ६५ । तेमन शरदऋतुना चंद्र जेवां शोनतां अने वैदूर्यरत्ननां दांमावाला त्रण उत्र ऊनां कर्या. ६६ वळी देदीप्यमान रत्नोनां श्री उपदेशपद. Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३०॥ त्तमहीमंडणजूयं खणाचेव. ॥ ६३ ॥ मणिहेमरूप्पमश्यं-पागाराणं तिगं समारश्य, ऊसियपमागळयचिंध-नियरनिम्महियचिहिरकर.-॥ ६४ सालासरण संगममहियतो बहनदनहरालोगो, उविहबायाणुगो—असोगनामो य पवरमो. ॥ ६५ ॥ सरयससिकंतरूवं-दूराऽमुक्कमोत्तिनजनयं, वेनियरयणद-च उत्तत्तयं च कयं. ॥ ६६ ॥ अइनासुररयणकरोह–सोहियं हरियतिमिरसंन्नारं, सीहासणं च विहियं -हिमगिरिसिहरं व अतुंगं. ॥ ६७ ॥ जवविको तत्य जिणो-सियचामरचारुवीइयसरीरो, तामियगहीरउंहि-लंकाराऊरियदियंतो. ॥ ६७ ॥ मिलिओ मिगावई पमुहनय-रिसोओ निवो य पज्जेओ, विहिओ पूयापमुहो—सकारो तित्थनाहस्स. ॥ ६॥ पारका धम्मकहा-पीऊसावरिससरिसवाणीए, धम्मे कहिज्जमाणे-सबरकिरणोयी शोजित होइ अंधकारने दूर करतुं एवं हिमाचलनी ढंक जेवं ऊंचं सिंहासन रच्यु. ६७ त्यां जिनेश्वर बेग एटझे तेना ऊपर श्वत चामर ढोलावां लाग्यां अने गंजीर दंदुनि वागतां दिशाओना जेमा गाजी रह्या. ६० त्यां मृगावती XX वगेरे नगरना लोको आव्या तथा प्रद्योतन राजा पण आव्यो. तेमणे तीर्थनाथ पनुनो पूजा प्रमुख सत्कार को. ६ए हवे * त्यां जगवाने अमृतनी वरसाद जेवी वाणीवमे धर्मकथा शरु करी धर्म कहेवा मांड्यो एवामां नील जेवो एक माणस हा* जर थयो. ७० तेणे लोकनी वाणीना अनुसारे धार्यु के आ कोइ सर्वज्ञ छे एटले ते निश्चय धरीने ते मनयी पूजवा बा ग्यो. ७१ त्यारे जगत्ना जीवोना बंधु जगवान् बोल्या के हे सौम्य, तुं वचनथी पूछ के जेयो घणा जीवो बोधि पामी श कशे. ७२ एम कद्या उतां पण ते शरम खातो थको बोध्यो के हे नगवन्, जे ने हती ते ते छ के ? त्यारे जगवाने हा पाम.७३ ते परयो गौतमस्वामिए पूछयु के हे जगवन् पो “जा सा सा सा " बोलवमे शु पूछयु ? त्यारे जगवाने श्री उपदेशपद. Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३१॥ सरुवो नरो एगो-॥ ७० ॥ लोयप्पवायवसओ-एसो किक्ष कोई एत्थ सव्वन्न, निच्छयमिमं धरंतो-मणंसि पुच्छेन माढत्तो. ॥ ७१ ॥ ताहे जणिो जयजीवबंधुणा जगवया जहा सोम, वायाइ पुच्च बहवे सत्ता जं बोहि मुवति. ॥ ७॥ एवं नणिोवि स सज्जमाणमाणसवसेण पमिन्नणश, जयवं जा सा सा सा-आमति परूविए पहुणा-॥ ७३ ॥ पत्नण गोयमसामी-जासासासत्ति किनणिय मिमिणा, उहाणपारियावणिय-माह एयस्स तो जयवं. ॥ ४ ॥-जहा-जंपा णामेण पुरी-पुरोगमा पुरवराण मिह अस्थि, इत्योसोलो परिवस-तत्य एगो सुवमारो. ॥ ७॥ सो पंच सुवालसए-दाऊणं कामगाण जा जत्य, रूवगुणमणहरायो -सगनरवं तान परिणे, ॥ ७६ ॥ एवं पंचसयाइं–तासिं संपिंझियाई, पत्तेयं, कारेनीचे मुजब तेनी आयंत सूधीनी हकीकत कही बतावी.-७४ ते आ रीते के यहां चंपा नामे सरस नगरीओमा प्रथम पंक्तिए गणाती नगरी छे. त्या स्त्रीओ तरफ अाशक रहेनार एक सोनारो रहेतो हतो. ७५ ते सोनारो ज्या ज्यांनी कन्या प्रोमा जे कन्या अधिक रूपवाळी जणाती तेने माटे पांचसो सोनाम्होर आपीने तेने परणतो. ७६ एम ते पांचसो कन्यायापरण्यो अने दरेकना तिक्षक पर्यंत चौद चौद अलंकर कराव्या. ७७ हवे ते जे दिवसे जेणीना साये लोग जोगववा इच्छ तो ते दिवसेन तेणीने सर्व अलंकार आपतो पण बीजा दिवसोमा आपतो न हतो. ७० वळी ते अत्यंत वहेमी होवाथी क्यारे पण पोतानुं घर छोकी बाहेर जतो नहि तेमज बीजा कोइ मित्रने पण घरमां पेसवा देतो नहि. ७ एक वेळा ते तेना मित्रना घरे अति आग्रहने लीधे कोइ उत्सवप्रसंगे गयो. त्यारे तेनी स्त्रीआए विचार्य के घणा लांबा काळे आज जेमतम करी एकांत मळी छे, माटे चालो न्हाइए, सारां कपमा पहेरिए तथा अलंकार सजीए. ७०-७१ श्री उपदेशपद. Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५ ॥४ इ अबंकारं तासिं सो तिलयचउदसमं. ॥ ७॥ जंमि दिणे जी समं लोग मुं. जेन मिव तंमि, सव्वमवंकारं देश-ती नो अम्मदिवसेसु. ॥ ७ ॥ सो अच्चंत ई.' सानुओत्ति गेहं कयाइ नो मुयश, नय अन्नस्स पवेसं—वियर मित्तस्सवि गिहंमि. ॥ ए ॥ अन्नदिणे मित्तगिई-अच्चतुवरोहपरिगो संतो, वदृतंमि पगरणे-गो तो चिंतियमिमाहि-॥ 6 ॥ पइरिकमज्ज मुवलक-मेय मभूरिकालओ कहवि, ता एहामो ममेमो-आविद्धमो अलंकारे. ॥ ७१ ॥ विहियं ताहिं तवचेवसव्व मादरिसवग्गहत्थाओ, जा पति समंगं-सहसा सो आगो ताहे. ॥ २ ॥ अरोसारुणनयणो-द~णं तान अन्नरूवाओ, गिन्द करेण एकं-पिट्टे इ य जा गयं जीवं. ॥ ३ ॥ अन्नाहि चिंतियं नूण-मेस अम्हेवि मारिही रुटो, ता आबाद तेत्रो तेम करीने हायमा आरिसा बइ पोताना अंगोने जोवा लागी एटनामां ते ओचिंतो भावी पहोंच्यो. ७२ तेतेमने बोजा ड्रेसमांजोइने अतिरोपयी लाल थयो, अने तेश्रोमांनी एकने पकीने ज्यांलगी मरण पामी त्यांलगी मारवा । मांड्यो.७३ त्यारे बीजी वीओए विचार्यु के आ रुलो छ एटले अमने पण नक्की मारी नाखशे माटे एने आरिसाना ढग । नेगा करी दइए एम धारीने तेमणे चारसो नवाणुं आरिसा तेना तरफ फेंक्या तेयो ते पण मरण पाम्यो, एटले ते ऊंखवाणीपी के हाय हाय आ ते के ऊंधु थयु ! ४-५ तेमणे विचार कर्यो के “एओ पतिने मारी नाखनार " एवी रीते आपणी लोकमां फजेती फेलाशे, माटे आ अवसरे आपणे मखं वाजवी छे. ७६ एम एकमत करीने तेमणे दरवाजो मजबूत रीते बंध कररी घरमां आग सळगावी, पोताना प्राणनो त्याग कर्यो. ७७ ते वधी पश्चात्ताप करवायी तथा श्री नपदेशपद. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ th दरिसगपुंज-एयं कुणिमो तो मुक्का-॥ ॥ एगूणा पंचसया-अदागाणं तो मो सोवि, तक्खणमेव विसमाउ तान ही केरिसं जायं. ॥ ५ ॥ पश् मारियान एया-श्य असलाहा जणे परिन्नंमिही, तो पत्तकालमेयं-जं किजइ मरण मिएहंपि. ॥६॥ श्य एगीभूयमणाहि-ताहि दारं घणं पिहित्ताणं, दिन्नो गिहंमि अग्गी-को य नियजीवियच्चाओ. ॥ ७ ॥ पढायावेणं साणुकोसनावेण कामनिजारया, बझो मणुस्सनावो-एयंमि गिरिंमि सव्वाहि. ॥ 1 ॥ सो पुण सुवन्नगारो -अट्टवसट्टो तिरिक्खो जाओ, जा सा पढमं पहया-सा एग नवंतरंतरिया. ॥ नए ॥ बंजणकुलंमि चेमो-आयाओ सोय पंचमे वरिसे, जा वट्टर ता सो हेमकारजीवो तिरिक्खत्तं-॥ ए ॥ नज्जित्तु कुठे जाया-तंमिय धूया अश्व रूववश्, बालत्तणेवि वेो-तीए अउक्कमो नदिओ. ॥ ए१ ॥ जाओ सरीरदाहो-निच्चंचिय रुयश नो धिई बहइ, ता चेमेणं तेणं-पोप्पय मुअरे कुणंतेणं-॥ ए२ ॥ पहया जोणिमारी नाखनार " एवी रीते आपणी लोकमां फजेती फेनाशे, माटे आ अवसरे आपणे मरखं वाजबी . ६ एम एकमत करीने तेमणे दरवाजोमजबूतररातेबंध करी घरमां आग सळगावी, पोताना पाणनो त्याग कर्यो. ७७ ते बधी पश्चात्ताप करवा थी तथा कंशक दयाजाव नाववाथी तथा अकाम निर्जराथी आ पर्वतमा मनुष्यपणुं पामी पेनो सोनारो आर्तध्याने मरीने ति- बचपणाने पाम्यो अने जेणीने तेणे पहेला मारी तेणीए एक जव कर्या बाद ब्राह्मणना कुलमा पुत्ररूपे जन्म सीधो.ते पुत्रज्यारे पांच वर्षनो थयो त्यारे ते सोनारानो जीव तिर्यचनो जव पूरो करीने ते ज कुलमा अति रूपवान् पुत्रीरूपे जन्म्यो, तेने नानपणमा - ज वेदनो तीव्र उदय रहेवा लाग्यो. GU-ए-५१ ते कारणथी तेना शरीरमां बळतरा थवा लागी एटले ते हमेश श्री उपदेशपद. ४५ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३५४ ॥ -: -ज दारे - हत्थे कवि नो रुयइ ताहे, नायं तेणुवनको - चिरा मए एरिसोवाओ. ॥ ९३ ॥ सो रत्ती दिवाविय - लज्जाचाएण तं तहा काउं, आढत्तो जागेहिं – नाओ नाम दओि ॥ ए४ ॥ अइनकमवयवसा - अपत्ततरुणत्तणावि सा नछा, चेको अचिरेण - सीलत्तणं पत्तो ॥ ९९ ॥ जाओ य चोरपल्लीत्थ एगूगाणि चोराण, तेसिं पंचसयाई - सिहबाई निवसति ॥ ए६ ॥ सा पुण माहधूया - परिक्कं हिंममाणगा एगं, गामं गया स चोरेहिं - तेहिं परिमुसिमारो ॥९७॥ गहिया य तेहिं नवजोव्वणत्ति पायमियनिपरूई किंचि, जुत्ता कमेण सव्वेहिं — एवमेसा गमइ कालं. ॥ ए८ ॥ जाया तेसिं चिंत्ता - कदवर म्ह सुरयसम्म, एगागिणी इमा सहइ - बीयमाणेसु तासं ॥ एए ॥ प्राणीया कश् सो पु रोया करतो, पण चुप नहि रहेती. तेवामां ते ब्राह्मणना दीकराए तेणीने पोताना पेट पर चमावी तेनायो निधारमां प्रणजाएयो कोई ते हाथ लगाव्य एटले ते छानी रही गई. त्याने तेणे विचायुं के मोमो वेल्लो पग में आ उपाय मेळव्यो छे. एश् - १०३ पछी त राते तथा दिवसे पण लाज मूकीने तने तेम करवा लाग्यो, तेन तेना मावापोने खबर परुतां तेमणे तेने धक्काद कहानी मेल्यो. ए४ वाद अति उत्कट वेदने सीधे ते वाळिका तरुणावस्था नहि पाम्या व्रतां पण घर छोमी नासी गाने पेलो छोकरो पण तरतमां दुष्टाचारी थइ गयो. ए ते एक चोरनं । पर्व्व ।मां आव्यो के ज्यां चारसे नवाएं चोरो अरस्परस प्रीति राखीने रहेता हता. ७६ हवे ते ब्राह्म एनी पुत्री एकझी हिंमती हिंमती एक गाममां गइ. एवामां ते गामने ते चोरो लूंटवा आाव्या. ए७ तेम ये ते छोम ने पककी साथ लीध।. ते नवयौवनवती होवाथी तेणे कंइक इच्छा श्री उपदेशपद. Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२५॥ यावि-विझ्या तंच पदमेई से, मनरवसमुबलिया-बग्गा बिदे निहालेनं. ॥ १०० ॥ घमहत्याग्रो इन्निवि-कूमि गया जलाणयणहेलं, नणिया बीया कूवेपेच हवा दीसए किंपि. ॥ १०१ ॥ दठ्ठं सा आरधाबूढा तत्थेव पेखिवं पला, गिहमागया नणेइय-ते नियमहिनं गवेसेह. ॥ १०२ मुणियं तेहिं इमीए-एसा जह मारिया न संदेहो, माहणचेमस्स तो-मु हिययंमि खुक्कियं एयं. ॥ १३॥ एसा सा मे भइणी-पावोवहया न अन्नहा एयं, सुच्चश् नगवं वीरो-सव्वन्नू सव्वदरिसी य. ॥ १०४ ॥ कोसंबोइ पुरीए-समागओ जामि ता अहं तत्य, आगम्म पुबइ श्मो-जासासासत्ति वयणेणं. ॥ १०५॥ एवं नणिए पहुणा--संवेगं तिव्वमा गया परिसा, हदी मोहवियारो-कहं विलंब नवे नविणो. ॥ १०६ ॥ सो पव्ववतावतां अनुक्रमे सर्व जणाए तेने लोगवी. एम ते वखत पसारवा लागी. ए बाद ने चोरोने विचार थयो के आ रांक छोमी एकली होइ अमो बधानो बोनो केम सही शकशे ? माटे ब'जो पाग एक स्त्री लावी राखीये तो ठीक थाय. एए ते प्रमाणे तेमणे कोइ वेना बोजी स्त्री आणी. तेने जोइ पेली छोमाने तेना ऊपर मत्सर आव्यो एटले ते जिद्रो जोवा लागी. १०० हवे एक वेळा ते बन्न जणीओ घमा हाथमा बस्ने कूवा ऊपर पाणं। जरका गइ. त्यां ते ब्राह्मणनी पुत्री तेनी शोक्यने कह्यं के अली, कूवामां कंश्क देखाय छे ते जो. १०१ ते परथी बीजी स्त्री कूवामां जोवा लागी एटले तेणीए तेने हमसेस्रो मारी कूवामां नाखी दोधा. बाद घरे आवी ते चोरोने कवा लाग। के तमारी नवी स्त्रीने शोधी नावो. १०२ तेयो समजी गया के नको एणे तेने मारी नाखी ने एमां शक नथी. एवामां पेक्षा ब्राह्मणना कराने मनमा खटको पेदा थयो के–१०३ आ पापणी तो तज मारी बेन लागे छे तेमां फेर नथी. छतां जगवान् वीरस्वामि सर्वज्ञ अने सर्वदशी श्री उपदेशपद. Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५६ ओ जयवंतपायमूणे अणालबो मणसा, संबुझा बुद्धिधणा-बहवे अन्नेवि जव्वजिया. ॥ १७॥ देवी मिगावईविय-वंदित्ता एवमाह जं नवरं, पुनामि अवंतिनितुब्नंते लेमि तो दिक्खं. ॥ १७ ॥ जा पुबइ पज्जोयं-मज्झमि सन्नाइ तीइ महईए, तक्खणकिसाणुराओ-सो सजापरवसो जाओ. ॥ १०॥ ॥ नतर तं वारे विसजिया तेण सा तओ कुमरं, निक्खेवयनिक्खित्तं-काऊण वयं पवजेति. ॥ ११० ॥ अंगारवईपमुहान-अदेवीन तस्सवि निवस्स, सहिया मिगावईए-तम्मी समयंमि पव्वइया. ॥ १११॥ चोराणय पंच सया-तेणं गंतूण ताइ पबीए, संबोहिया, मिगावश्-अजा सा चंदणजाए. ॥ ११ ॥ लवणीया जयगुरुणा- साहुसमायारपरिणई जाया, अह अन्नंमि विहारे-रविससिणो नियविमाणेसु. -॥ ११३॥ एसुंचिय आरूसंजळाय छे–१०४ ते जगवान् कोशंबी नगरीमां पधारेख छे, माटे हुं त्यां जइ तेमने पूवं, एम धारी तेणे हा आवीने "जा सा सा सा" ए बोलयी मने पूछयुं छे. १०५ आम जगवाने कद्यायी पर्षदामां बेसनाराअोमां नारे संवेग पेदा थयो । अने सौ बोलवा लाग्या, धिक्कार पमो मोहना विकारने के जे संसारमा जमता जीवोने केवी विटंबना आपे छे ! १०६ बाद ते शबररूपे आवेत्रो ब्राह्मण नगवान् पासे शांत मनयी दीक्षित थयो अने वीजा पण घणा बुद्धिशाळी नव्यजीवो प्रतिबोध पाम्या. १०७ हवे मृगावती राणी पण जगवान्ने वांदीन बोत्री के हुं अवंतीना राजाने पूछी तमारी पासे दीका लक्ष्श. १०० एम बोलीने ते तेज मोटी सन्नामां प्रद्योतनराजाने पूछवा लागी एटले ते राजानो तेना ऊपर रहेलो रागोगे पस्या मांड्यो अने ते लज्जामां परवश थइ पड्यो. १० तेथी ते तेने अटकाव शक्यो नहि, तेथी तेणे तेने रजा आपी एटले ते कुमारने राज्य पर स्थापीने दीका स्वीकारवा लागी. ११० तेनी साये ते राजानी अंगारवती प्रमुख श्री उपदेशपद. Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ३५७॥ ढा-समागया वंदिलं नुवणनाहं, अवरोहकालसमए-अजाओविहु समग्गाओ. ॥ ११४ ॥ नायनियट्टणसमया-सेसज्जाओ समागया वसहिं, अजा मिगावई पुणनजोयपवंचिया संती-॥ ११५ ॥ तत्थेव गिया जा चंदसूरदसण महाइवेगेण, पत्तेसु दूरदेसंतरंमि जायं महातिमिरं. ॥ ११६ ॥ तो सा किंचि विवरखा-जा जाइ नवस्सयंमि ता विहिया, आवस्सयकिरिया साहुणीहिं नणियाय गुरुणीए. ॥ ११७ ॥ अकलंककुनपसूया-जगसिरमणिणा जिणेण दिलवया, एयारिसं तमज-रय णिविहारं कह पवन्ना ? ॥ ११ ॥ तो सा पायनिवमिया-पवत्तिणीए खमाविलं बग्गा, एसो ममावराहो-मरिसिज्जउ नपुण काहामि. ॥ ११९ ॥एमा महाणुना वा–पवत्तिणी सयवनोयनमणिज्जां, कह मज्ज पमाएणं-एवमसंतोष माणीया. वीजी आठ राणीओ पण तेज वखते प्रव्रज्या लेती थइ. १११ पठी ते सवर साधुए ते पदीयां जश्ने बीजा चारसे नवाणुं चोरोने पण प्रतिबोध्या. आणीमेर मृगावती आर्याने नगवाने चंदनवाळाने सोंपी. त्यां ते रुकी रीते सामाचारी शीखी हुशियार थइ. हवे एक अन्य विहारना समये सूर्यचंद्र पोताना मूळविमानमांज आरूढ थइने वरांठे जमवानने वांदवा आव्या. अने सघळी आयाओ पण ते वखते वांदवा आवी हती. ( ११५–११३–११४ ) त्यां बीजी सघळी आर्या त्यांची पाग वळवानो वखत थयो जाणीने पोतानी वसतिमां आवी पहोंची, पण मृगावती आर्या अजवाळाथी बेतराइने ज्यां लगी सूर्यचंद्र देखाता रह्या त्यां लगी त्यांज अटकी रही. एवामां सूर्यचंद्र अति वेगे लांबा प्रदेशमां नीकळी गया एटले घोर अंधारूं थइ रह्यं. (११५-११६) त्यारे ते जरा विलखी थाने जेवी उपाश्रयमां पहोंच। के त्यां बीजी साध्वीओए आवश्यकनी क्रिया करी लीधी हती अने तेनी गुरुणीए तेने उपको दीधो के–११७ हे आर्या, तुं कलं श्री उपदेशपद. Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १५० ॥ एवं संवेगपरा-नियउच्चरियं पुणो पुणो जाव, गरिहेइ ताव जायं-केवसनाणं जयपहाणं. ॥ ११ ॥ निदावसीइ बाहू-अज्जाए चंदणाइ सेज्जाओ पमि ओ बहिं अही पुण-तदिसिमागंतुमारखो. ॥ १५२ उविओ सेज्जाइ मिगावई सो जाव ताव पमिबुझा, किं मे बाहू चलिओ-जणे नयवइ हं नागो. ॥ १५३ ॥ संचरित्रो किय नायं-नाणाश्सएण सो य परिवाई, किं होज्जा श्यरो वा-सा नगव नण अन्नोत्ति. ॥ १२४॥ सम्मं मिबाउकडपरायणा सायणा मए विहिया अप्पन्नकेवलाए श्मोइ निदापमायाओ. ॥ १५५ ॥ श्य वेरग्गमुदग्गं-खणमेक मुवागया तो तीए, लोयालोपविलोमो-णणासो समुप्पामो. ॥ १६ ॥ निग्घाश्यकम्ममता कालेण सिवं अणंतममलं च, सिडिगइनामधेयं-परमं ठाणं गया दोवि. ॥१२७ ॥ क वगरना कुळमां जन्मेवी छे अने जगत्ना शिरोमणि नगवाने तने व्रत आप्यां छे, माटे तुं एवी छतां रात पामीने केम आवी ? ११७ त्यारे मृगावती ते प्रवर्तिनीना पगे पी खमाववा लागी के आ मारो अपराध माफ करो अने हु फरीथी एम नहि करीश. ११७ पड़ी ते मनमां चिंतबवा लागी के बधा लोकने नमवा योग्य एवी आ महानुनाव प्रवर्तिनीने में आज प्रमाद करीने शा माटे नाराज कर ? १५० एम संवेगमां चकी पोतानी नूबने वारंवार निंदवा बागी, एटलामां तेणीने जगत्मां सौ करता उत्तम केवळझान प्राप्त थयु. ११ एवामां निद्राना योगे चंदनवाळानो हाथ शय्यायी बाहेर की गयो अने ते तरफ सर्प आववा मांड्यो. १२२ तेयी ते हाथ मृगावतीए ऊपामीने शय्यामां राख्यो तेटले चंदनवाका जागी यकी पूजवा लागी के मारो हाथ केम चलायमान थयो ? त्यारे मृगावती बोली के हे जगवती, आणीमेर सर्प हता. १२३ ते हाय तरफ आवतो हतो. गुरुणीए पूछ' के ते ते केम जाए ? मृगावतीए कयुं के अतिशय ज्ञानथी. गुरुणी श्री उपदेशपद. Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५ पायं पसंगसारं-जाणयमिमपत्थुयं च पुण एत्यं, वेणश्यबुद्धिसारेण-सोममेणं न अनेणं. ॥ १२ ॥ इति. अथ गाथाङ्कार्य :-अत्रैव वैनयिक्यां बुझौ अर्थशास्त्रेयोपार्जनोपायव्रतिपादके सामोपप्रदाननेददंगलक्षणे नीतिसूचके वृहस्पतिप्रणीते शास्त्रे पूर्वमेव मारतयोपन्यस्ते-कप्पगत्ति-कटपको मंत्री ज्ञातमिति गम्यते-केनेत्याह-गमा डेयनेयणया इति - गंगादिपवेदनेदनेन गंमादीनामिकुयष्टिकलापरूपाणामादिशब्दादधिनांडस्य च यथाक्रममुपर्यधस्ताच्च बेदननेदनेन च प्रतिपक्षप्रहितप्रधानपुरुषस्य मतिमोहसंपादकेनोपन्यस्तेनेति-यक्षप्रयुक्तिः सुरप्रिययकवार्ता नक्तलक्षणा ज्ञातं कथमित्याह-किच्चपनीय अहवा सरावमित्ति-कृत्याया नागरिकलोकवयवदाणायाः ४ ए पूज्यु के ते ज्ञान प्रतिपाती ले के अप्रतिपाती. मृगावती बोली के अप्रतिपाती छे. १२४ आ सांजळी गुरुणीए तरत रुको रीते मिच्छादुक्का कर्यु अने बोली, अरे में निद्राना प्रमादमां आ केवलज्ञान पामेली आयर्यानी आशातना करी.१२५ प्रारीत चंदवाळा पण एक क्षण नर नारे वैराग्यमां चमी के तरत तेने पण लोकालोकने प्रकाश करनार अतिशयज्ञान (केवळझान ) ऊपन्यु. १५६ बाद समय आवतां बन्ने जणी कर्ममल दूर करी शिवरूप अनंत अने अचळ एवा सिद्धिगति नामना परम स्थाने पहोंची. १५७ आ बधी पाये प्रासंगिक वात कही बतावी, पण एमां प्रस्तुत वात तो वैनयिकी बुद्धिवाळा सोमाम नामे चित्रकारना पुत्रनीज . १५७ हवे गायानो अक्षरार्थ आ रीते जे. अहीज एसे आ वैनयिकी बुद्धिमां अर्थशास्त्रना पटे एटलेके पैसो पैदा करवाना उपाय बतावनार अने सा श्री उपदेशपद. Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३६० ॥ प्रयोग उपशमनोपायव्यापाररूपः — अथवा यदिवा - क्वसतीत्याद—शरावे मल्लके उपलचणत्वात् कलशकूर्चिका वर्णकादौ च प्रत्यये चित्रकरदारकेण यो मल्लकादौ नूतने विहिते सति यज्ञोपशमनोपाय उपलब्धः स चात्र ज्ञातमिति भावः अत्र चार्थशास्त्रत्वनावनैवं. – परो वशीभूतः सामादिनिन तिनेदैः सम्यकूप्रयुक्तैर्ग्रहीतव्यः यथा अधीष्व पुत्रक प्रात – दस्यामि तव मोदकानू, तान्वान्यस्मै प्रदास्यामि – कर्णावुत्पाटया मिते. इति. साम च चित्रकरदारकप्रयुक्तो विनय इति. लेहे लवी विदा - बट्टाखेड्वेण मक्खरालिहणं, पिट्ठिमि लिहियवायणमक्खर विदाइ सुयाणं. ॥ ॥ म दाम जेद दंमरूप नीतिने जगावनार बृहस्पतिप्रणीत शास्त्र के जे पूर्वे धाररूपे लील जे ते पेटे कष्पकमंत्री उदाहरण े. शी रीते ते कहे छे के सेलमीना गंगा तथा दहिंना जाजनने अनुक्रमे ऊपर तथा नीचे छेदन नेदन कर्यु तेव शत्रु मोकलावेल मुखी माणसने गुंचवणमां नाखी दीघो ते रीते. तथा सुरप्रिय यनी पूर्वे कली वार्त्ता पण उदाछे, हे छे के नगरना लोकनी कतलने अटकाववानो जे व्यापार कर्यो ते रीते, अथवा शरावळु, वाळाकुंची तथा वर्णक वगेरे चिताराना पुत्रे नवा करीने यहने उपशमाववानो उपाय मेळव्यो ते पण इहां उदाहरण बे. इहां अर्थशास्त्रपणानी भावना आ रीते छे के सामो माएस वश यतो न होय तो सामादिक नीति बरोबर वापरीने तेने वश करवो जेमके दीरा, तुं सवारेणीश तो तने लामु आपीश अगर तेम न करीश तो ते बीजने आपीश नेतारा कान ऊपामीश. त्यां साम एटले चिताराना पुत्रे जे विनय वापर्यो ते जावो. मूळगाथा लेखमां लिपिविधान ते पासाओनी रमतमां अक्षरो चितरी शीखामनुं तेमज पृठे लखेल वांचं तथा र श्री उपदेशपद. Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३६१ ॥ लेख इति द्वारोपक्षेपः तत्र लिपिविधानं लिपिनेदो ज्ञातं. तच्चाष्टादशधा - हंसली भूलिवी - जक्खी तह रक्खसी य बोधव्वा, उड्डी जवाणि फुरुक्की - कीमी दविमीय सिंधविया ॥ १ ॥ मालविणी नम नागरि--नाम लिवी पारसी य बोधव्वा, तह अनिमित्ता या — चाणक्की मूलदेवी य. ॥ २ ॥ तद्देशप्रसिद्धाश्चैताः तत्र कि केनचिद्राज्ञा कस्य चिडुपाध्यायस्य निजपुत्रा लिपिशिक्षणार्थं समर्पिता:-ते च डुर्ललिततया आत्मानं नियंत्र्य न शिक्षितुमुत्सहते, अपि तु क्रीत्येव. ततो राजोपासंननीरुणा उपाध्यायेन - वट्टक्खेमे मक्खरा विदति - वृत्तानां खटिकामयगोलकानां खेलनं कीमनं तैः सह कृतं तेन चारपातानुरूपपतद्गोलकके बिंदु पी गया होय ते वांची सेवा. त्यां लेख शब्दथी धारने याद करेल छे. लिपिविधान एटले जूदी जूदी लिपियो प्रहार े. हंस लिपि, भूतलि पि, लिपि, राक्षस लिपि, नड्डी, यवनलिपि, फुरुकी लिपि, कीम लिपि, द्राविमी, सिंधी, माळवी, नटलिपि, नागरी लिपि, लिपि (गुजराती), फारसी ; तेमज अनिमित्तलिपि, चाणाकी लिपि तथा मूळदेवी (मूमी) लिपिएम अढार लिपि बे.. एबी ते ते देशमां चालती प्रसिद्ध छे. त्यां एक राजाए एक शिक्षकने पोताना पुत्रो लिपि शीखानवा माटे सोप्या. तेयो रमतियाळ होवाथी कब जामां रही शीखवा तैयार यता नहि, किंतु रमतमांज मन राखता. त्यारे राजाना उपकाथी मरता शिक्षके माटीना ४६ श्री उपदेशपद. Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1॥३ 58265688 प्रतिबिंबधारणाकराणामकारीदामालेखनं कारितास्ते ते हि यदा शिदयमाणा अपि न शिक्षामाप्रियते तत उपाध्यायेन तत्क्रीमनकमेवानुवर्तमानेन तया गोलकपातं शिकितं यथा भूमावकराण समुत्पन्नानीति-यघा-पिविस्मित्ति-भूर्यपृष्टादौ लिखितानामकराणां यहाच तद् वैनयिकी बुद्धिः–तथाकरबिंधादिच्युतज्ञानं अक्षरस्य वर्णरूपस्य बिंदोः प्रसिद्धस्यैवादिशब्दान्मात्रायाः पदादेश्च च्युतस्य पत्रादवलिखितस्य यत् ज्ञानं तदपि वैनयिकी. ताक्षरस्य च्युतं यथा-गोमायोर्वदरैः पक्वै-यः प्र=दो विधीयते स तस्य वर्गवापि–मन्ये न स्यात् कदाचन. बिंबुच्युतं यथा-सोष्माणं कोमलं नव्यं जनः शीतनिपीडितः हिमर्त्तावी. श्री उपदेशपद. * गोलान । रमत तेमना साथे रमवा मांझी. तेमां जे अक्षर पाम्बो होय तेवा गोलानी छापया अकारादि अकरो जमीन पर वितराव्या. मतलब के तेमने शीखामतां पण तेश्रो नहि शीखता त्यारे शिक्षके तेमनी रमतने ज कायम राखीने तेवी रीरे । गोळा पामवा शीखव्या के जेयी जमीन पर अवरो थवा लाग्या. अयवा जोजपत्रनी पूठ पर बखेना अकरोतुं जे वांच न ते वैनयिकी बुद्धि जाणवी; तेमज अक्षर एटले वर्ण तथा बिंदु तथा आदिशब्दयी काना मात्र तथा पद वगेरे पी गया होय ! स्टले पत्र पर नहि लखाया होय तोपण समजी लेवा ते वैनयिकी जाणवी. त्यां अरच्यत ते आ प्रमाणे छे-पाकेला बोरवके शीपाळने जे प्र -द (प्रमोद) थाय छे ते ९ धारु बु Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हते को न—कबलं मार्गमाश्रितः इति.. . (मूत्रगाथा)-गणिए य अंकनासो-अप्लेन सुवामजायणं दंगे, आयव्वयचिंता तह-अमेन हियायरियसंखा. ॥ १० ॥ - गणिते चेति झारपरामर्शः-इह च चत्वार्युदाहरणानि तद्यथा अंकनाशः (१), सुवर्णयाचनं (२), आयव्ययचिंता (३), हृता लौताचार्याश्चेति.(४). तत्रांकनाशः संपन्नः पुनर्बब्धः सत् ज्ञातं-द्यूतकाराणां द्यूतं रममाणानां तलेख्यकं च कुर्वतो यदा कुतोपि ःप्रयोगात् कस्यचिदंकस्य नाशो नवति तदा प्रस्तुतबुद्धिवशेन तेषां पुनरप्यसावुन्मीयतीति.-अन्येतु ब्रुवते-सुवर्णयाचनं चामीकरप्रार्थनं दंने राजसंबंधिनि सर्वनगरसाधारणे पतिते सति ज्ञातं-किन क्वचिन्नगरे केन श्री उपदेशपद. के तेने स्वर्ग मळतां पण कोइ वेळा नहि याय. (हां प्रमोइ शब्दमां " मो” पी गयो छे. ) बिंदुच्युत ते या प्रमाणे:-शीअाळामा टाढथी हेरान यतो मुसाफर हुंफाळा अने पशमदार नवां कंचनने के म नहि इच्छे ? ( हां कंबलने बदले कवन डे ते बिंदुच्युत छे.) मूलगाया-गणितघारमा अंकनाश, वीजा कहे छे के सुवर्णयाचन तया आयव्ययनो चिंता अने वीजा कहे ने के आचार्यतुं हरण. ? . गणित शाब्दे घोर याद कर्यु ३. गणित पेटे चार उदाहरण बे. ते ए के अंकनाश, सुवर्णयाचन, आयव्ययचिं ता अने जौताचार्य, हरण. Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३६ ॥ चिन्नरनाथेन दंमः पातित: कारणिकैश्च चिंतितं, मा लोक नजितामिति व्युत्पत्त्यासौ ग्राह्यः ततो जणिता नागरिकास्तैः परिमितकामव्यवधानेन सुवर्ण हिगुणत्रिगुणादिबालमुत्प्रेक्षमाणेर्यथा,-" दंडमूल्यप्रमाणं नवतां विनज्य सुवर्ण राज्ञो दातुमुचितं, स्वल्पकालादेव तच्च तत्तुल्यरूपमेव अव्यं यथा हस्ते नवतां चटिष्यते तथा विधास्यते, न कश्चिदसंतोषो विधेयः.” दत्तं च तत्तैः कालांतरेच महर्षीभूतं विक्रीय कारणिकैस्तद्धिगुणादि बालो राजनांमागारे निक्षिप्तः मूबधनं च तेषामेव समर्पितमिति.. अन्ये स्वित्युनुवर्त्तते-राज्यचिंतकानां कुटुंबचिंतकानां च प्रस्तुतबुधिप्रधानानां त्यां अंकनाश यतां फरीने ते मेळववा ते उदाहरण ए प्रमाणे ले के जुगार रमता जुगारीओ तेनी नोंध करता रहे छे तेमां कोई गमवमयी कोई अंक जूसाइ जाय तो आ प्रस्तुत बुद्धिना योगे तेश्रो फरीने याद कररी व्ये छे. बी जा आचार्यों कहे डे के राजा संबंधी आखा नगरपर दंग परतां सोनुं मागी ली ते उदाहरण . ते ए रीते के को ॐ नगरमां कोइ राजाए दंग पाड्यो. त्यारे अधिकारोए विचार्यु के बोको नाराज नहि थाय तेटलाखातर तेमने समजावी पतावीने आ दम लेवो घटे छे. तेथी तेमणे थोमा वखत बाद सोनु बमणुं त्रमणुं मोंधू थनारुं धारीने नगरना लोकोने कडं के तमारे बहेंचण करी राजाने दंपनी कीमत जेटवू सोनुं आप, अने तरतमांज तेटली कीमतना पैसा जेम तमारा हाथे चशे तेम करशुं माटे तमारे नाराज य नहि. नगरजनोए ते आप्यु. बाद योमो वखत जतां सोनुं माधु ययुं एटल्ने अधिकारिओए ते वेची तेमांथी जे बमणा नावनो नफो थयो ते राजाना जमारमा दाखल कर्यो अमे मूळ धन तेमने पाळ जरपाइ कयु. बळी त्रीजा आचार्यो कह डे के राज्यचिंता करनार तथा कुटुंबचिंता करनार आवी प्रस्तुत बुझिवाळा पुरुषो श्री उपदेशपद. Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुषाणां राज्येषु कुटुंबेषु च आयस्यापूर्वधनलालबकणस्य व्ययस्य च अब्धधनविनियोगरूपस्य या चिंता सा ज्ञातं-तथेति ज्ञातांतर समुच्चयार्थः.-मतिमंतो हि ताम्राबुकावदायव्यययोः प्रवर्तते-तथाहि-ताम्रानुका घृतजलादिमुत्कोन मुखेन गुलाति व्ययं चातिसंकीर्णमुखेन नासकेन करोति, यतो बहुळयकालोटपश्चायकालः-इतीत्यमेव व्यवहरतां सांगत्यमुत्पद्यते इति.-अन्ये तु हृतनौताचार्यसंख्या प्रस्तुतबुधिविषयतया वर्त्तते इति व्याख्यांति-यथा केनचित्कृपाबुना केचिौताचार्याः कांचिनीरजलां सरितमुत्तरंतो जलपूरेण ह्रियमाणाः समुत्तारिताः . तेषां च प्रागेव समवधारितदशादिप्रमाणं स्वसंख्यानां समकानमेव जमत्वेनात्मानं विमुच्य परिगणयितुमारब्धानां यदा प्राक्कृतसंख्या न पूर्यते तदा सविषादमुखास्ते विलपितुमारब्धा यथैकोस्मासु न Remopera श्री उपदेशपद. राज्यमां तथा कुटुंबमां जे नबुं धन केटबु आवे छे तेनी अने पासे रहेढुं धन शी रीते खरचवू तेनी चिंता राखे छे ते उउदाहरण छे. कारणके बुद्धिवान् माणसो तांबानी वारोटी माफक आवक तथा खरचमां वर्ते छे. एटले के जेम ते वारोटी घी के पाणीने मोकला मुखथी ग्रहण करे ने अने अति सांकमा म्होवाळा नाळाथी तेनो वपरास करे जे. जे माटे खरच-3 वाना वखत घणा आवे के अने पेदा करवानो वखत तो थोमोज होय . माटे ए रीतेज वापरवाथी सगवा रही शके. चोया आचार्य कहे जे के हरेखा जौताचार्यनी संख्या आ बुद्धिना पेटे उदाहरण छ. ते ए रीते ले के कोई दयाळु माणसे केटलाक चौताचार्यो (नुवा) को ऊमी नदीमाथी पसार थता पाणीथी तणाता जोइ किनारे ऊतार्या. तेओए पूर्वे पोताने साथे गणीने " दश छीए " एम मुकरर करेलु हतुं पण जपणाथी हमणा पोताने मूकीने गणवा मांड्या एटने पू Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 दीपूरेण हृत इति–जणिताश्च ते संप्रति समीपवर्त्तिना केनचित् यथा नो नवतामात्मा विस्मृतो यदेवं गणनमारब्धमिति... ( मूलगाथा)-कूवे सिराणाणं-तुले तत्थवि तिरिमाहणणं, अम्ले णिहाणसंपत्तु-वायमोविंति एवं तु. ॥ ११ ॥ .... _____ कूप इति झारपरामर्शः . शिराया जसोद्गमप्रवाहरूपाया ज्ञानमवगमः-कथमित्याह-भूमिमध्यगततथाविधकूपकारादिष्टखातप्रमाणरूपाराधनेपि खातकानां यदा जलं न प्रवर्त्तते तदा तुल्ये खातप्रमाणसदृशे नागे तत्रापि तस्मिन्नेव कूपे तिर्यग्वामदक्षिणादि रूपे आहननं पार्णिप्रदारादिना तामनं कृतं. -अयमत्र नावः क्वचित कैश्चिद् ग्रामयकादिन्निरतीस्वाऽजलार्थिनिरनन्योपायं जलमवबुध्यमानैः कश्चित् कूपर्वे करेली संख्या पूराइ नहि त्यारे तेश्रो विषाद पाथे विनाप करवा लाग्या के अमारामांनो एक जण नदीमां तणाइ गयो । छ. त्यारे ते वखते पासे ऊबेला कोइए तेमने कयु के अरे जला माणसो, तमे पोताने केम वीसरो छो के अावी रीते गणती करोगे? कूवा पेटे तेनी शीर जाणवी त्यां पण सरखा नागमां तिर हणावं. अन्य कहे छे के एवी रीते निधान पामवानो उपाय ते उदाहरण छ. ११ कूप शब्द घार सन्नायु छे. शीर एटले पाणीनो प्रवाह तेनी समज ते ए रीते डे के जमीनमां तेवा कोइ कूवा करावनारना हुकम प्रमाणे खामो खोद्या छतां पण ज्यारे पाणी न मळ्युं त्यारे खोदनाराओ पासे तेज कूवामां ते खणावेना नागमां तिरछी सवळी अवळी झातो मरावी. एटले के कोश्क स्थळ कोक गाममियाआए अति मी पाणी मेळ श्री नपदेशपद. Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ कारस्तथाविधांजनवशेन नूमिगतानि जलान्यवलोकमानः पृष्टः-"किमस्यां नुवि जलमस्ति नवेति "-नक्तंच तेन " निश्चितमस्ति” . तर्हि कियत्प्रमाणे खाते सति तदन्निव्यक्तिमायास्यतीति? स प्राह-" पुरुषदशादौ. प्रारब्धश्च तैः कूपः खनितुं. संपादितं चोक्तप्रमाणं खातं, तथापिजलानामनागमने निवेदितमस्य किं जलं नोद्गबतीति? तेनापि स्वांजनावंध्यरूपतामवगम्य नणितं खातप्रमाणसंमितं वामं दक्षिणं वा कूपनागं पायर्यादिना प्रहतं कुरुत. विहितं च तव तैः . उद्घटितं च विपुलं जनमिति. अन्ये ब्रुवते इत्युत्तरेण योगः–एवमेवांजनवशेन भूमिगतानि विधानानि कश्चित् पश्यन् केनापि पृष्टः-" किमस्मदीयं निधानमत्रास्ति न वेति " ? अस्ति चेत किंयत्यां जुवि ? ततस्तेनापि कूपे नूविवररूपे प्राग्वत् खानिते-निहाणसंपत्तुवायमो इतिववा बीजो कोड नपाय नथी एम धारी को कवा करावनार के जे कोड तेवी जातां अजनयी जमीनमा रहेला पाणी जोइ शकतो हतो तेने पूज्यु के आ जूमिमां पाणी छे के नहि ? तेणे कर्तुं के नक्की छे. त्यारे फर ने तेमणे पूज्यु के ते र केटली माइए नीकळशे ? तणे कयु के दश मायोमा पर नीकळशे. त्यारे तेमणे कूवो खोदाववा मांझयो अने। तेणे कर्तुं हतुं ते प्रमाणे खामो खोयो तेम छतां पाणी न नोकळ्युं एटले तेमणे तेने कर्यु के केम हजु पाणी नथी नीकळतुं? ते कूवा खोदनारे पण पोतानी अंजननी सच्चाइ धारीने कां के जेटर्बु खोदेवं ने तेटला जागमां सवळी के अवळी सातो मारो. तेमणे ते प्रमाणे कर्यु एटो बूट पाणी नीकळतुं ययु. बीजा आचार्य कहे छे के एज रीते अंजनना योगे करी जमीनमा रहेला निधानने जोनार को शख्सने कोइए पूछयुं के हां अमारं निधान डे के नहि ? अगर । तो केटली माइए छे ? त्यारे तेणे पण पूर्वना माफक कूवो खोदाव्यो. त्यां निधान मेळववा छेवटे तेणे सूचव्या प्रमाणे एर श्री उपदेशपद. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३६॥ निधानसंपत्तेरुपायो हेतुर्वामस्य दक्षिणस्य वा पार्श्वस्य अद्यातरुपस्तदादिष्टेनैव प्रवर्तितः . लब्धं च निधानमिति एतत्विदं पुनः . (मूलगाथा)-आसे रक्खियधूया-धम्मोवनरुक्खधीरजायणया, अम्ो कुमारगहणे-सक्खणजुयगहणमाइंसु. ॥ १५ ॥ (अश्वपति कथा)-इह अस्थि समुदतमे-पारसकूलं जणाणुकूवगुणं, एगो अस्साहिवई–तत्कासि विसाल विहवजुो. ॥ १॥ अह अन्नया हयाणं-एगो कुनदारओ को रक्खो, अनिनणविणयसंपामणेण आणंदिओ तेण. ॥॥ त स्स य धूया अहरूव-मणहरा तंमि राय मणुपत्ता, पजणेश जया तुह देश-वेयणं एउपाय कर्यो के तेना सवळा के अवळा नागमा सातोना घा कर्या एटले निधान मळी आव्यु ए उदाहरण बे. मूळगाथानो अर्थ. अश्वरघारमा घोमानो रखेवाळ बाळक अने अश्वपतिनी दीकरी. ते बालके काम परथी धर्मनापथरावके मजबूत बे घोमानी मागणी करी. बीजा कहे छे के बीजा कुमारोए ज्यारे जामा घोमा बीघा त्यारे कृष्णे लक्षणयुक्त पातळो घोमो ग्रहण कयों. १५ । हां समुद्रना कांठे बोकोने माफक आवतो पारस नामे कांगनो प्रदेश , त्यां एक जारे पैसादार अश्वपति रहेतो हतो. १ तेणे एकवेळा काई कुबीन बाळकने घोमाअोनो रखेवाळ राख्यो तेणे अतिशय विनय करवे करीने ते । अश्वपतिने खुश कों. २ ते अश्वपतिनी एक अतिरूपवान् दीकरी हती ते ते डोकरा उपर शक थइ तेने कहेवा लागी के ज्यारे आ मारो बाप तने पगार चूकावे त्यारे तुं खूब परीक्षा करीने वे घोमा मागजे. त्यां परीक्षा करवानो न पाय ए कह्यो के घोमा उन्ना होय तमां जे घोमो जमके नहि ते घोमो मागवो. त्यारे ते वात ते गेकराए खुशीनी साथे श्री उपदेशपद. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३६॥ स मे ताओ.-॥३॥ तइया तुमं विमग्गसु-तुरयं कालं परिक्ख मानिनणं, कहि ओ य एसुवाओ-वीसत्थेसुं तुरंगेसु. ॥ ४॥ जो तुरओ संतासं–नो वच्चइ तत्थ तं विमग्गसु, तेणावि पमिसुयं तीइ-वयण माणंदियमणेण. ॥ ५॥ वेयणधणावसरे -पुष्विपि परिक्खिए उवे तुरए, सो मग्गइ तो नास-अस्साहिबईवि सप्पणयं. ॥६॥ एएसिं अस्साणं-मज्के एए तुरंगमा लठा, ता जइ एए गिण्हसि-ता सव्वे किं न गिण्हेसि ? ॥ ७॥ सो नण न सव्वेहि-पोयणं मज्ज, चिंतियं ताहे. अस्साहिवेण जहएस-दारो लक्खणनिहाणं. ॥ ७ ॥ कहमन्नह एएसिं-अस्सेसु श्मस्स वीसमइ दिठ्ठी, ता नियधूयादाणेण-गेहजामानो कज्जो. ॥ए॥ कहियं नियनजाए-सा नेबइ तो नणाइ हे मुझे, बक्खणजुत्तो एसो-होही मे गेहवुढिकरो . ॥ १० ॥ सुण एत्थमुदाहरणं-जह वट्टइ एत्य दारगो कोवि, नियधूया मा श्री उपदेशपद. मान्य करी (३-५-५) बाद पगारना टांकणे तेणे अगाजयी परखेना बे घोमा माग्या. त्यारे अश्वपति प्रीतिपूर्वक बालवा लाग्यो के-६ आ बधा घोमाओमां ए वे घोमाज सौयी सरस डे, माटे जो ए वे तुं ले तो बधा कां लेतो नथी? ते बोन्यो के बधातुं मने का काम नथी. त्यारे अश्वपतिए विचार्यु के आ बाळक बनणवंत लागे जे. ७ नहि तोए घोमा। ओ ऊपर एनी नजर केम खूचे, माटे एने आपणी दीकरी आपीने घरजमा करवो जोइए. ए ते वात तेणे पोतानी स्त्रीने कही त्यारे तेणीए नामरजी बतावी एटले अश्वपति तेने कहेवा लाग्यो के अरे जोळी, आ लक्षणवंत शख्स ने, माटे । आपणा घरनी आबादी करशे १० हां एक उदाहरण आपुं बुं ते सांजळ:–कोइ एक छोकरो हशे तेने तेना मामा ४७ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७018 नलगेण-तस्स दिन्ना परं गेहे-॥११॥ न करे किंपि कम्म–अमवी गओ विरत्तो एइ, खिसिज जजाए–तमकिंचिकरो कहं होसि ? ॥ १२ ॥ बढे मासे लछ-तं दारु समक्खणं हवा जत्य दम सय सहस्समुलो–कुमवो घडिओ य सो विहिणा. ॥ १३ एगस्स धन्नवणिणो-दिन्नो लचं जहिचियं मुलं, तस्स गिहे तेणेगा-जाया तस्साणुनावाअो. ॥ १४ ॥ एवं लक्खणजुत्ते--गिहे पविलुमि वड्ढइ कुमुंब, दिन्ना नियया धूया-बक्खणजुतस्स तस्स तो-॥ १५॥ अहवा बारवईए-पुरीइ कएहमि रजमणुपत्ते, कश्यावि अस्सवाणिय-हत्याओ किणिजमाढत्ता-॥ १६ ॥ हरिणा कुमरेहिं तहा-तुरया, कुमरोहिं तत्थ थूलतणू, एए किन बनवतो-कविकणंगीकया तेन.-॥ १७॥ कण्हणेगो अइब्बलोवि गहिरो सब PM श्री उपदेशपद. ए पोतानी दीकर आपी पण ते घरमां कंश काम करे नहि अने जंगलमा जाय तो गले हाये आवे त्यारे तनी स्त्री पपण तेने उपको देवा लागी के तुं शा माटे आवो अकिंचित्कर ( आळसु ) यह रहे छे ? ११-१२ हवे तेणे (अटवी मां नमतां जमतां ) ज्यां अक्षणवंत लाकहुं हतुं त्यां ते छठे मासे मेळव्युं अने तेमांथा तेणे एक लाख म्होरनी विधि प्रमाBणे एक पानी घर १३ ते तेणे एक धान्यना वेपारीने आपीने धारेत्री कीमत मेळवी अने ते पानीना प्रतापे ते वाणिहम याना घरे घणा बालबच्चा थइ पड्या. १४ ए रीते बक्षणवाळी चीज घरमां पेसतां कुटुंबनी वृद्धि थाय छे. ( ए रीते तेणे । पोतान) स्त्रोन समजावीने ) ते लवणवंत छोकराने पोतानी पुत्री परणावी. १५ अथवा धारिकामां ज्यारे श्री कृष्ण राज्यगादी पर बेग त्यार एक वेळा को घोमाना वेपारी पासेथी कृष्णे तथा तेना कुंवरोए घोमा खरीदवा मांड्या. त्या कुंवरोए Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्खणो कालं, तो ते तं हसमाणा-नणंति कहमे रिसो गहियो ? ॥ १० ॥ पमिन(णयं अह हरिणा-जह कज समत्थो इमो न श्मे, अन्नेसिपि बहणं-श्मेसि संपायगो होही. ॥ १७ ॥ अस्सवश्णो हरिस्सय–पत्थुयबुद्धी, विलसियं एयं, जं सो- . घरजामाया-अस्सो य वसित्तणं नीओ. ॥ २० ॥ इति. अथ गाथारार्थः-अश्व इति घारपरामर्शः–रक्खियत्ति-रक्षकोश्वरक्षावान् दारकः-धूयत्ति-मुहिताचाश्वपतेरेव-तत्प्रेरितेन च तेन-धम्मोवलत्तिधर्मोपदैः कुतपमध्यक्षिप्तपाषाणखमरूपैर्ववान्मुक्तैः-धीरत्ति-धीरयोरत्रस्तयोस्तुरंगयोर्वेतनदानकाने-जायणया इति—याचनं कृतं. शेषस्तु प्रपंच नक्त एव.-अन्ये कुमारगहणइति-कुमारैः शांबादिनिः स्थूवाश्वग्रहणे सति विष्णुना यबकणयुतस्याजे जामा शरीरवाळा घोमा हता तेमने बळवंत धारीने ते खरीद्या. १६–१७ श्री कृष्णे तो एक दूबळी पण सलखणो घोमो खरीबो. त्यारे कुंवरो तेना तरफ हसता थका कहेवा लाग्या के आवो घोमो केप खरायो ? १७ श्री कृष्णे जवाब आप्यो के काम करी शके तेवो आ ज डे पण पेक्षा नथी; तेमज आ वळी एना जेवा बीजा पण घणाघोमा बाबी आपनार थशे. १७ श्रारीते अश्वपति तया श्री कृष्णनी वैनयिकी बुद्धिनो विलास के जेथ पेनाए घरजमाइ तथा घोमो बन्ने पोताने कबजे राख हवे गायानो अदार्थ करीए छीए.-अश्वशब्दे धार संजायें. रक्षक एटने घोमाने संजालनार करो. धूया . । एटले अश्वपतिनी ज दीकरी. तेनी प्रेरणाथी ते छोकराए मवामां धर्मना पत्थरा जरीने काम परथी पमता मेली कया बे घोमा नमकता नथी ते शोधी तेमने पगारना वखते माग्या. बाकीनी वात तो कथायी कहीज जे. बीजा आचार्यो शांब श्री उपदेशपद. Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७॥ YY श्वस्य पुर्बलस्यापि ग्रहणं कृतं तदाहुद्देष्टांततयेति. (मूलगाया )-गद्दनतरुणो राया-तप्पियवुड्ढाण दंसणं करगे, पिश्नत्तणयण वसणे-तिसाइ खरमुयणसिरसविलं. ॥ १३ ॥ गर्दन इति घारपरामर्शः-इह तरुणः कश्चिताजा-तप्पियत्ति ते तरुणाः प्रिया यस्य स तत्प्रियः-अन्यदाचासौ विजययात्रायां प्रचलितः . जणितश्च तेन स वॉपि लोकः-यथा-वुड्ढांणदसणं कमगे इति-मदीयकटके यथा वृछानामदर्शनं नवति तथा नवद्भिः कर्त्तव्यं-वृधः कोपि नानेतव्यो मदीयकटके इति नावःतयेति प्रतिपन्नं च तैः . गतश्च सपरिवारोसौ विजययात्रायां-पिइनत्तणयणत्ति-पितृ जक्तेन चैकेन कटकवासिना नरेण पितुर्गुप्तस्य नयनं कृतं कटक–वसणे तिसा वगेरे कुमारोए जामा घामा खरीदतां विष्णुए जे दूझो पण लक्षणवंत घोमो खरीद्यो तनुं दृष्टांत इहां आपे छे. (मूळगाथानो अर्थ )-गर्दनना धारमा तरुण राजाने तरुणोज पिय हता तेयी तेणे लश्करमा वृद्धो न देखाय १ तेम हुकम कर्यो. छतां कोइ पितॄनक्ते बापने साथे छानो राख्यो. बाद पाणोन संकट परतां तरसना वखते ते बुढ्ढाए गधेमाने झूटो मुकाव। पाणीनी सीर शोधी आपी. १३ गर्दनशब्दे धार याद कर्यु छे. यहां कोई युवान राजाने युवानोज प्रिय हता. हवे ते एक वखते विजययात्राए नीकब्यो त्यारे तणे सघळा लोकोने हुकम कयो के मारा लश्करमा जेम कोइ बुट्टो न देखाय तेम तमारे करवं, मतलब के बुढाने 4 मारा लश्करमां नहि आणवो. तेमणे ते वात कबून राखी. बाद ते परिवार सहित विजययात्राए चाख्यो. त्यां कोई एक श्री उपदेशपद. Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३७३ ॥ इति-अन्यदा च तथाविधविजलकांतारांतर्गतस्य सैन्यस्य दिनप्रहरघ्यसमये तृषः संबंधिनि व्यसने आपतिते सति राजा तांस्तरुणान् पप्रच-यथा-आकर्षयत नोः केनाप्युपायेन सजलां नुवमवगम्य जनमिति. ते च तरुणत्वेनापरिणतबुझ्यो न जानति तउपायं. ततो वृक्षगवेषणा कृता-नोपलब्धश्च केनापि कोपि-ततः पटहप्रवादनपुरस्सरं समुद्घोषणा कारिता-यथा-आगत्य कोपि वृक्षः कथयतूपायं. ततस्तेनानीतजनकेन छत्तः-आनीतश्च तत्र पिता. तेनापि कथितं यथा-खरमुयणत्ति—खरान मुंचताटवीमध्ये—यत्र च ते नत्सिंघनं कुर्वति तत्र सिरति सिराः प्रतीतरूपाएव संनवंति. कृतं च तयैव-तदनु सलिलमुपलब्ध मिति. अन्ये तु व्याख्याति ते गर्दनास्तावऽसिंघनं कुर्वतो गचंति यावन्नीरपरिपूर्ण सरः संप्राप्तमिति. पितजक्त सिपाइए बापने छानी रीते लश्करमां लीधो. बाद एक वेळा कोइ निर्जन अटवीमांथी पसार थता लइकरने बपोर थतां तरसतुं संकट आवी पम्युं त्यारे राजा ते युवानोने पूछवा लाग्यो के नला माणसो, कोइ पण उपायक्के पाणीवाली जमीन शोधी कहामीने पाणी खेची काढो. हवे ते बधा तरुण होवायी काची बुद्धिवाळा होवाथी का उपाय जाणी शक्या नहि. त्यारे बुढानी तपास करावी; छतां कोऽने पण कोइ बुढो मळ्यो नहि. त्यारे पमो वगमावी उद्घोषणा करा वो के कोइ पण बुझ्ढो आवीने उपाय बतावो. त्यारे जेणे बापने साये आण्यो हतो तेणे ते पमो छिबीने पोताना बापने । ॐ त्यां आएयो. तेणे कयु के गधेमाअोने जंगलमा फरता मूको अने तेश्रो ज्यां जमीन सूंघशे त्यां पाणीनी सीर हशे. ते सांनळी तेमणे तेम कर्यु एटने पाणी मळी आव्यु. बोजा छेवा पदनी एम व्याख्या करे छे के ते गधेमाओ त्यां सूधी जमीन सूंघता चाव्या गया के ज्यां सूधी पाणीयो जरेल तळाव हाथ लाग्युं. श्री उपदेशपदः awab Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७४॥ (मूलगाथा) सक्खणराये देवी हरणे सोगंमि आलिहे चलणा, उवरि ण दिठ्ठजोगो-अत्यित्ता सासणे चेव. ॥ १४ ॥ ( कथा )--ओज्का जरीइ दसरह-राया रघुवंसनंदणो आसि, अच्चब्जयनियचरणा-वज्जियसुरअसुरखयरपहू. ॥ १ ॥ तस्संतेनरसारा-तिमि अनविंसु पिययमा रम्मा, कोसल्ला य सुमित्ता-तहावरा केकई नाम. ॥॥ जाया तिमि पहाणा-तासिं पुत्ता कमेण ते एए, सिरिमं रामो तह लक्खणो य नरहो य नय निनणा. ॥३॥ तो दसरहराया केकई कइयावि तोसिओ संतो, देइ वरं, तीएवियसमए मग्गिस मिश् नणिओ. ॥४॥ वयपरिणामे किन दसरदेण रामो पयंमि निययंमि, आढत्तो गवे तो वरो मग्गियो तीए. ॥५॥जह नरहो मज्म सुत्रो श्री उपदेशपद... ( मूळ गाथानो अर्थ) लक्षण धारमा रामचंद्रनी राणी सीतार्नु हरण थयु. बाद ते मळी त्यारे रामे तेने त्याग करी ते वखते तेनी शोक्ये सीता पासेयी रावणना हाथ चितराव्या. सीताए कह्यु के पग उपरांत में कई जोडें नथी । माटे बीजु चितरी शकुंतेम नथी. छतां शोक्ये तेनी गरज बतावी. १४ (कथा)-अयोध्या नगरीमा रघुवंशी दशरथ नामे राजा हतो. तेणे पोताना उत्तम आचरणथी सुर असुर । तथा खेचरना इंट्रोने खुश कर्या हता.? तेना अंतःपुरमां तेनी त्रण राणीओहती.एक कौशल्या, बीजी सुमित्रा अने त्रीजी FE केकयी. ते त्रणे राणीओना अनुक्रमे राम, लक्ष्मण तथा जरत ए नामे त्रण न्यायवंत पुत्रो थया. ३ हवे एक वेळा के कयीए दशरथ राजाने खुशी करवाथी तेणे तेने वर आप्यु. त्यारे तेणीए कह्यु के अवसरे ते मागीश. ४ बाद वृद्धावस्थाए Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७ ॥ g MINS -कीरन राया, विज्ञक्खओ जाओ-राया, विनायमिणं-रामेणं विणयरामेणं. ॥ ६ ॥ पायप्पणामपुव्वं-जणगं विन्नव ताय सच्चगिरो, तं होसु, वणविहारं-काह महं लक्खणसहाओ. ॥ ७ ॥ सुयवचनोवि राया-अमुवायं मणे अवलमाणो, अणुमन्नइ सुयविरहे—सुन्नं मन्नंतो पुहविं. ॥ ॥ चलिया दोवि कुमारासीयासहिया दिसा जम्माए, अश्गरुयं रणरणयं-जणयंता सयवनयरीए. ॥ ए॥ पत्ता मरहट्टयमंमदमि गहिरे वणंतरे तत्थ, संजाया बछठिई-हिमगिरिरले मसूदव्व. ॥ १० ॥ फलफुलकंदनोयण-रयाण निज्झरजनं पियंताणं, चिंताणं सहलत्त-मप्पणो जणगविणयाओ. ॥ ११ ॥ परनवयारे चित्ते-तहा तहा निच्च मायरताण, सी याविहियसरीरध्ईिण संतुचित्ताण. ॥ १२॥ वच्यंति वासरा ताण-जाव, लंकाहिपरोंचतां दशरये रामने पोतानी गादी आपवा मांझी त्यारे केकयीए वर माग्यु के–५ मारा दीकरा जरतने राज्य आपो. त्यार दशरथ राजा मुंफाइ पड्यो. ते वात विनयथी रमता रामचंद्रना जाण्यामां आवी. ६ त्यारे रामचंद्र पिताने पगे लागी विनववा लाग्या के हे तात, तमे तमारो बोल पालो, अने हं बक्ष्मणने संघाते राखी वनवास करीश.७ राजाने रामचंद्र पर प्रीति छतां पण बीजो कोई उपाय नहि रहेता तेणे ते वात कबूल राखी; बतां पुत्रोना विरहमां तने पृथ्वी शून्य जेवी नासवा लागी. हवे बन्ने कुमार सीताने साथै बदक्षिण दिशा तरफ रवाने थया त्यारे नगरीना लोक बहु नारे दिनगार थवा लाग्या. ए तेत्रो चालता चालता महाराष्ट्र देशमा एक गहन अटवीमा आवी पहोंच्या. त्यां तेमणे जेम बकेलो हायी हिमानयमां रहे तेम निवास करवा मांड्यो. १० त्यां तेश्रो फळ, फूल तथा कंदमूळनो आहार करता अने नीकरणानुं पागी पीता हता छतां बापनो विनय साचव्यायी पोताने कृतार्थ मानता हता. ११ वळी हमेशां तरेहवार परो श्री उपदेशपद. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७६॥ वेण तो नायं, पुब्बिंपिय सीयाए-आरूढदढाणुराएण.-॥ १३ ॥ जह रामो जणगनिवंगयाइ जुत्तो वर्णमि परिवसइ, पारद्धो तग्गहणोवाओ बसचारिणा तेण. ॥ १४ ॥ कत्थर समए अश्वानलाण तेणेव तेसि विहियाण, पुप्फगएणं सा रावणेण संकानरिं नीया. ॥ १५ ॥ नियगणमागया जाता ते सायं कहिंवि न निचंति, सव्वस्सवंचिया श्व-सोगं च पराभवं च गया. ॥ १६ ॥ सुग्गीवसहाएहिं-हणुवंतचरोवनद्धवुत्ता, गंतुं लंकानयरिं-सबंधवो रावणो निहो. ॥ १७ ॥ नवलखा जणगसुया-तिब्रतुसमित्तं अखंमियारा, चोदसवरिसाणंते-समुवजियपोढजसपसरा. ॥ ॥१७॥ उज्झारिं च पत्ता-परस्रोगगएण विरहियं पिडणा, नरहेणं निरवण परिचिंतिय-रजकऊं ते-॥ १७ ॥ जाओ रजनिसेओ लक्खणकुमरस्स रामणुन्नापकार करता रहेता अने फक्त सीताजीज तेमनी शुश्रूषा लेतां उतां तेश्रो घणा संतुष्ट जणाता हता. १५ एम तेश्रो दिवसो पसार करता हता तेकामां संकानो अधिपति रावण के जे प्रथमथीज- सीता कपर राग धरतो हतो तेने मालम पम्युं क–१३ सीता साये राम वनमा रहे छे तेथी तेणे तेने लाग जोड्ने हरण करवानी युक्ति रचवा मांझी. १४ एक वेळाए नेणे ते बन्ने नाइओने अति व्याकुळपणामां नाखी सीताने पकड़ी पुष्पविमानमां ऊपामी लंकामां आणी. १५ हवे रामलक्ष्मण पोताना मुकामे आवी जोवा लाग्या तो कोइरीते सीतानो पत्तो न लाग्यो, त्यारे जाणे एकदम बधा धनमानयी खूटाया होय तेम शोक अने परानव पाम्या. १६ बाद हनुमान नामना दूत पासथी बातमी मेळवी सुग्रीवनी सहाययी लंकामां जश्ने तेमणे नाश्नांमु सहित रावणने मार्यो.१७अने तेम करीने अखंग शीलवंत सीता पाठी मेळवी. एम चौद वर्षनी आखरे नारे यश उपार्जीने-१० ते राम अने लक्ष्मण अयोध्यापुररीमा आव्या.त्यां तेमना पिता परलोकवासी श्री उपदेशपर्द . Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७॥ ARXOOD ए, रजसुह मणुरयाणं-जा जंति दिणा सुहमणाण-॥२०॥ अविएणय-बलिएणय-ताहे लोएण जणगतणयाए, आरोवित्रो महंतो—सीसक्खनणाक्खो अयसो. ॥ २१ ॥ जहा परमहिवा बोलमणे-सव्वत्थेसुवि विरुघसंचारे, कह रावणं मि तग्गिहगयाइ सुश्सील मेयाए. ॥२॥ नियजायासुश्नावं-रामो जाणंतयोवि जणवाया, किंचि अवन्नं दंसेइ-सा गया बहु तो सोगं. ॥ २३ ॥ अंतेनरम जळगया-अहन्नया मबरं वहंतीए, होन खए खारो श्य-चिंततीए सवत्तीए-॥ २४ ॥ नणिया हो स रावणराया रूवेण विजियतेल्लुको, श्य वट्टजणवाओ-ता लिहसु स केरिसो आसि. ॥ २५ ॥ निययाणुमाणकप्पियपरासओ सथया हता अने राजकाज रुकी रीते जरत संजाळतो हतो. १७ बाद रामचंद्रजीना हुकमयी लक्षमणकुमारने राज्यगादी पर बेसामवामां आव्या. एम राज्यसुख जोगततां तेमने आनंदमां दिवसो जवा लाग्या. २० एवामां जूग आळ चमाववामां वळवान् एवा लोकोए सीताजी उपर शीळयी नष्ट यवानो मोटो अपजश नराड्यो. २१ तेओ एम बकवा लाग्या के व पर स्वीमां संपट अने बधी बावतोमां ऊंधा चालनार रावणना घरे रहली आ सीतार्नु पवित्रपणुं शी रीते रहे ? २२ * हवे रामचंद्र पोतानी स्त्री पवित्रपणुं अंदरयी समजता हता तोपण लोकोपवादथी गरीने बहारथी कंक अवज्ञा दर्शा ववा लाग्शा तेथी सीताजी जारे शोकमां पड्या. २३ हवे अंतःपुरमा रहेतां थकां सीता उपर मत्सर करनारी शोक्ये जखममां कार नाखवो ठीक पमशे एम चितवी तेणीने कडं के अली, रावण रूपे करी त्रणे लोकने जीत्यो छे एम लोka कोमा वात चाले ने माटे तुं तेनुं चित्र करी बताव के ते केवो छ ? २४-२५ हवे एवी कहेवत छे के सौ कोइ पारका श्री नपदेशपद. पन Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७॥88 व्वहा जणो सव्वो, नीयाण नाखंलोना-महाणुनावो महंताण-॥२६ ॥ इय मगमणुसरंती-ती लिहियं पयाण पमिबिंब, उवरि मए न दिट्ठो-अो न जाणे किमागारो ? ॥ २७ ॥ तं पमिबिंब संगोविऊण रामस्स दंसियं तीए, अजवि इमा न तं पइ-पमिबंधं मुयश यह पेच्छ. ॥ २७ ॥ सीयावरिं रामस्स विप्पियं तीइ संजणं तीए, किन वेणझ्या बुद्धि-तेणोवाएण सच्चधिया. ॥२९॥ एवं रामायणसंकहाइ अवित्यरेण पन्नत्तं, तो तत्तो विनेयं-तयत्यिणा सोवोगण . ॥३० ॥ इति ____ अथ गाथादरार्थः-अङ्गदर्शनांकनयोरिति वचनात् लक्ष्यतः पश्यतो रामस्य । सीतालिखितचलन–प्रतिबिंबं यत् सपल्या प्रयोजनं कृतं तबक्षणमित्युच्यते. तत्र च रामे इति रामदेवः तस्य च देवी सीता-हरणे तस्या रावणेनापहरणे कृते प्रत्यागमने च आशयने जेम बने तेम पोताना अनुमाने कल्पे छे तेथी नीच माणसने सामो माणस नीच लागे ने अने मोटा मनवाळाने । सामो माणस मोटा मनवालो लागे जे. ५६ आ कहेवतने अनुसरी तेणीए रावणना पगर्नु प्रतिबिंब चितर्यु अने बोली । के ए उपरांत उपर तो में जोएल नथी माटे ते केवो ने ते हुं जाणती नथी. २७ वद ते शोक्ये ते प्रतिबिंब बुपी रीते रामने बताव्यु के हजु पण सीता रावणना नपरथी मन उतरती नयी. २७ एम सीता ऊपर रामनो मनफेर कराववामां १ तेणे पोतानी वैनयिको बुद्धि वापरी. ए आ वधी वात रामायणन। कयामां अति विस्तारे कहेब छ माटे तेना अथए । ध्यानपूर्वक ते वात त्यांथी जाणी लेवी. ३० हवे गाथानो अकरार्य करे छे:-सक धातु जोवामां तया आंकवामां चाले छे. तेथी बन करता एटने के जोता रामन सीताए चितरेन पगर्ने प्रतिबिंब जे तेणीनी शाक्ये वताव्युं ते बक्षण जाणवू. त्या राम एट्ले रामचंद्र तेनी देव श्री उपदेशपद. ...............handawoolod Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।।३७ Nuwaiawaanlunuwwdnbrobvobidos دهکده کرکره برقی مکینک लोकापवादजयेन रामेणावज्ञायां कृतायां शोके च संपन्ने कदाचित् सपत्नी प्रयुक्ता सीता--प्राबिहे इति-आलिखितवती चरणौ रावणसंबंधिनौ-नपरि पादप्रदेशाद क् न दृष्टो मया असावित्ययोगो लेखनस्य सीतया कृतः . ततः सपत्न्या लब्धलिपया-अस्थित्तासासणेचेवत्ति-अथितायाः अर्थित्वस्य शासना कयना च समुच्चये एवं पादाले-खदर्शनन्यायेन कृता . अत्र च अर्थिताशासने व्याख्यातेपि अस्थित्ता सासणे इति यः पाठः स प्राकृतलक्षणवशात्. ___तच्चेदं—नीया लोय मभूया य-आणिया दोवि बिंदुदुब्जावा अत्यं वहंति तंचिय-जो एसिं पुव्वनिदिछो. ॥ १॥ (मूळगाथा)-गंही मुरुंगूढं-सुत्तं समदंग मयणवट्टो य, पावित्त मयणगाएटले सीता तेनु रावणे हरण कर्यु. बाद ते पाठी आवतां बोकापवादनी बोकथी रामे अवज्ञा करी एटले तेणीने शोक थयो. एवामां कोई शोक्यनी प्रेरणाथी सीताए रावणना पग चितर्या अने कां के पायी ऊपर में जोएन नथी तेथी तेणे वाको चित्र नहि चितयु. बाद शोक्ये लाग जोइ ते पगनां रामचंद्रने बतावी कयुं के हजु पण ए रावणनी इच्छा राख्या - करे छे. यहां अर्थिताशासने " ए संस्कृत पदनुं प्राकृतमां " अत्थियासासणे " एवं रूप थाय तेना बदले अत्थितासासणे एवू रूप कर्यु ले ते प्राकृतना प्रयोगोनी विचित्रताना लीधे छे.. प्राकृतमा एम कहे छ के बिंदु (अनुस्वार) अने हिर्जाव लोप कया होय अगर न होय त्यां प्राण्या होय तो पण अर्थ तो जे पूर्वे रहेलो होय ते ज कायम रहे छ. ? .. ( मळ गायाना अर्थ )-ग्रंथिना घारमा मुरुंगराजाने गूढ छेमावाळु सूत्र, सरखी करेली लाकरी अने मीणनो श्री उपदेशपद. Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०॥ बाण-बट्टी तर बाबुसिव्वण या . ॥ १५ ॥ ( व्याख्या )-ग्रंथिरिति घारं-स चात्र गूढाग्रसूत्रपिलक्षणो ग्राह्यः-तत्र पामलिपुत्रे नगरे मुरुंगो नाम राजा तस्य कुतोपि स्थानात् कैश्चित् ज्ञानिनमात्मानं मन्यमानैर्मुझंकराजपरिषत्परीक्षार्थं गूढमिति गूढाग्रं सूत्रं--समदंमत्ति-समः समवृत्तो मूझे उपरि च दंगकः-- मदनवृत्तश्च मदनपोपलिप्तवृत्तसमुद्गकश्च प्रेषित इति . दर्शितानि च तानि तथाविधको विदानां . न लब्धं तत्वं. ततः पादलित्पाचार्यस्य तत्र पर्यायात् कृतविहारस्य दर्शितानि राजकुलागतस्य.-ततः-पावित्तत्ति—पादनि ताचार्येण-मयणगालणत्ति-मदनगालना गूढसूत्रे नष्णोदकेन कृता, ततः सूत्राग्रमुन्मीलितं. सट्टोतरत्ति--यष्टर्नदीजले प्रवहति तारणं कृतं तत्र यो नागो गुरुतर एव श्री उपदेशपद. दावलो मोकलाव्यो. तेणे पादलिप्तसूरिने बतावतां तेमणे मीण गळावी सूत्रनो मो शोधी प्राप्यो, लाकमीने तारी तथा तुंबमाने बारीक रीते सीवाव्यु. १५ __(गाथानी व्याख्या) -ग्रंथिधारमा गृढ छेमावाला सूत्रनी दमी लेवी ते ए रीते के पाटलिपुत्रमा मुरुंभ नामे राजा हतो. तेना ऊपर कोइक ठेकाणेथी कोइक पोताने हुशियार मानता लोकोए तेनी सन्नानी परीक्षा करवा गुप्त छेमावाळु सूत्र तथा सरखी रीते गोळ ऊतारेल लाकमी तया मीणना लेपय। बीपेस्रो गोळ दाबलो मोकलाव्यो. राजाए ते केटयाक तेवा पंमितोन बताव्या पण का खुलासा मळ्यो नहि. एवामां पादलिप्तसूरि विहार करता त्यां दरबारमा आव्या तेने ते बताव्या. त्यारे तेमणे सूत्रनी दमीने गरम पाणीमां नखावी एटले मीण लपटेवं हतं ते गळी जतां सूत्रनो छेमो मेळवी - Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * बहुजुमति स मृलमिति ज्ञातं. ___मदनवृत्तगोलकश्चात्युषणे जले निक्षिप्य मदनगाबनेन व्यक्तीनूतघारदेशः समु. द्घाटितः-स्वयं च-बाबुसिव्वणया इति-अविषं महाप्रमाणमेकमबाबु गृहीत्वा सूक्ष्मां च राजिरेखामुत्पाद्य मध्ये रत्ननिक्षेपः कृतः-ततो जैनशास्त्रप्रसिधचोरसेवन्या स्यूता-जणिताश्च ते यथा-" एतदबाबु अविदारयद्भिः रत्नग्रहः कार्यः "-न शक्तिश्च तैः सोर्थः संपादयितुं प्रस्तुतबुधिविकलैरिति. ७. ( मूलगाथा)-अगए विसकर जवमेत्त-वेजसयवेह हस्थिवीमंसा, मंतिपमिवक्खअगए-दिढे पना पनत्ती न. ॥ १६॥ श्री उपदेशपद. केली आपी तथा लाकमीने नदीना बहेता पाणीमां नाखी तारी जोइ त्यां जे जाग जारे हावोयी वधारे चूड्यो ते ते3 नुं मूळ छे एम शोधी आप्यु तेमज मीणथी जमेलो दावतो अति गरम पाणीमां नाखी मीण गळावी तेनो ऊघामवानो प्रदेश खुबो करी * ऊघामी प्राप्यो. ते साये वधारामां पोते एक मोठं काणा वगरनुं तूंबहुँ सइ तेमां एक कीणो काप पानी तेमां रन नाखी दीधुं. बाद जैन शास्त्रमा वर्णवेल बुपी सिक्षाथी ते काप सीवी बीधो. बाद ते माणसोने एवं जणावी मोकव्यु के आ 3 तूंबडं फाड्या तोड्या वगर तमारे तेमांथी रत्न कहामी ले; पण तेश्रो आ वैनयिकी बुद्धियी विकल होवाथी ए बाबत करी शक्या नहि. (मूळ गाथानो अर्थ.)-अगदधारमां विषनो कर पाड्यो. त्यां कोई वैद्य एक यव जेटलं विष लाव्यो. तेणे ते Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७॥ (माया)-अगद इति झारपरामर्श:-कश्चिषाजा निजपुरोपरोधकारि प.. रखवं स्वदेशांतः प्राप्तं श्रुत्वान्योपायेन तन्निग्रहमनीक्षमाणस्तदागममार्गजनानि वि.. षेण नावयितुमिच्छः सर्वत्र नगरे–विसकरत्ति-विषकरं पातितवान् यथा पंचपत्रकादिप्रमाणं सर्वेणापि मम लांमागारे विषमुपढोकनीयं. जवमित्तत्ति—यवमात्रं-विजत्ति-कश्चि द्यो विषमानीतवान्. कुपितश्च राजा-" किंत्वमेवं मदाझानंगीकारी संवृत्त इति? " स वाह-" तुबस्याप्यस्य देव-सयवेहत्ति-शतवेधः आत्मनः शकाशात उपलक्षणत्वात् सहस्रादिगुणवस्त्वंतरस्य च वेधः आत्मना परिणमयितुं शक्तिः समस्ति.”–ततो-हत्यिवीमंसत्ति हस्तिनि वीणायुषि पुबैकवासोत्पाटनं कृत्वा तस्मिन्नियोजनेन विमर्शः कृतःसोगj काम की शके एम सूचव्यु. पठी तेनी हाथी पर अजमायस करी. मंत्रिए ते विपनु प्रतिपक्षी औषध परखी जोयुं अने ते बाद ते विष वापर्यु. १६ __ (व्याख्या)-अगदशब्दथी हार याद कर्यु ने. त्यां वात ए छे के कोक राजाए पोताना नगरने घालनार शत्रुनु बइकर पोताना देशमा आवतुं सांनळी बीजा कोइ उपाययी तेने हरावववानुं नहि सूजतां तेने एम विचार थयो के जे रस्ते ते आवे उ त्यांना पाण। विषवाळा करी नाखवा, तेयो तेणे आखा शहेरमां विषनो कर पाड्यो एटले क जणाव्यु के पां13 च पन्न प्रमाण विष सघळा लोकोए मारा जमारमा पहोंचतुं कर. ___त्यारे कोइक वैध फक्त यव जेटQ विष बइ आव्यो एटले राजाए गुस्से थइ तेने कह्यु के केम तें मारी आझा श्री उपदेशपद. wwwwbi Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३८३ ॥ · लग्नं च तद्विषं क्रमेण दस्तिनमनिनवितुं मंत्रिणा चोक्तं - " प्रतिपक्षोगदः एतस्य निवर्त्तकमौषधं किं किंचिदस्ति न वेति ? अस्ति चेत् प्रयुक्त " प्रयुक्तं च ततो यावद्विषेणानिभूयते तावत् पश्चात्प्रयुक्तेनौषधेन प्रगुणीक्रियते एवं दृष्टे विषसामर्थ्य पश्वान्मंत्रिणा प्रयुक्तिस्तु प्रयोगः पुनर्व्यापारणलक्षणः कृतः - अत्र च वैनयिकी बुद्धिर्यमंत्रिणा दृष्टसामर्थ्यं विषं व्यापारितमिति. ( मूलगाथा ) - गणियार रहिए एवं —सुकोससढित्ति थूल नद्दगुणे, रहिए त्र्यंबकुंबी - सिद्धत्य गणदृदुकरया ॥ १७ ॥ ( स्यूलिन कथा ) - ह नवमनंदकाले - कप्पगवंसंमि ग्रासि सुपसिद्धो, नोकर्यो ? ते बोढ्यो के महाराज, ए थोकुं वे छतां एनायी सोगणी बहके हजार के लाखाणी बीजी वस्तुने ए पोताना जेवी करी शके छे. त्यारे राजाए एक बुट्ठा हाथीना पूछकानो वाळ नखेमावी ते विष न्यां लगावी जोयुं. हविष त्यांचीने हाथीना शरीरमां व्यापत्रा लाग्यं त्यारे ते राजाना मंत्रीए कछु के ए विषनो पाठो ऊतार करे एवं औषधको के केम ? ते होय तो ते पण वापरी वताव. त्यारे वैदे ते वापरी बताव्युं तो जेटला जागमां विष चमयुं मां ते पाहुं ऊतरी शक्युं त्यारे ते विष मंत्रीए वापरवा मांग. इहां मंत्री ते विषनुं सामर्थ्य शुं ते तपासी जोड़ने ते वापर्य ए वैनयिकी बुद्धि जावी. (मूळ गायानो अर्थ. ) गणिका तथा रथिकनुं मळी एक उदाहरण. त्यां सुकोशा गणिका श्रद्धावंत यः स्थूलजद्रना गुण प्रशंसती. त्यारे रथिके यांवानी लुंबी कापी बतावी एटले सुकोशाए सरसवना ढगना पर नाच करी बताव्यो मांशी दुष्करता छे ? १७ श्री उपदेशपद. Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३ ॥ PROPERSOT सयसंखावच्चत्तण-गुणान सयडालगो मंती. ॥ १ ॥ तस्स पहाणकरत्तंमि-मुस्लि जाया सुया सुयवरिघा, सिरिथूलनदनामो-पढमो बीओय सिरिन त्ति. ॥३॥ जक्खा य जक्खदिन्ना-नूया तह भूयदिन्नया नाम, सेणा वेणा रेणा-तह सत्त इमान धूयाओ. ॥ ३॥ एया कमेण श्ग-दो-तिगाहिं वाराहिं सुणियगहणसहा, जिणवयणरत्तचित्तो-एगंतेणेव सड्डालो. ॥ ॥ तत्थत्यि वररुई नाम-माहणो सयनविप्पकुलकेऊ, असएण सिस्रोगाण-नंद मुवचरइ सो निच्चं. ॥५॥ राया सगमालमुहं-पास मिबत्त मिय मुणंतो सो, जा न पसंसइ एसो वि-तस्स न पसनो होइ. ॥ ६ ॥ तन्नजाए सेवापरायणो सो तो दृढं जाओ, जणिो ती किमत्थं-तमेव माराहिसि ममंति? ॥७॥ परिकहिए सब्जावे-तह काहं जह (स्थूलजद्रनी कथा )-नवमा नंदना वखते कल्पकमंत्रीना वंशमा सो संतानना कारणे तेवा नामयी प्रसिद्ध थएलो शकटाळ नामे मंत्री हतो. १ तेनी मुख्य स्त्रीना पेटथी व विद्यावंत पुत्रो थया हता जमांना एकनुं नाम स्थूलनद्रहतुं अने बीजानुं नाम श्रीयक हतुं. २ तेमज यशा, यकदिन्ना, जूता, जून दिन्ना, सेणा, वेणा अने रेणा ए नामनी सात दीकरीओ हती. ३ तेओ अनुक्रमे एक वे त्रण वगेरे वार जे सांजळती ने ग्रहण करी लेती; अने शकटाळ मंत्री पोते । एकांते जिनवचनमां रक्त हतो. ४ त्यां सौ ब्राह्मणोमां पंकायस्रो वररुचि नामे ब्राह्मण हतो. ते हमेश एक सो आठ नवा श्लोक रची नंदराजाने अर्पण करतो. ५ त्यारे शकमान तरफ जोवा लाग्यो, पण तेणे तेने मिथ्यात्व नरेखं धारी प्रशंस्यु नहि एटल्ने राजा तेना ऊपर तुषमान नहि थयो. ६ त्यारे वररुचि ते मंत्रीनी स्त्रीनी सवा करवा लाग्यो एटले तेणीए पूछयु के तुं शा माटे मने सेवे ? ७ वररुचिए खरी हकीकत कही जणावी त्यारे ते बोली के हु हवे तेम करीश के जे श्री उपदेशपद. Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REO ||३ || पसंसए एसो, श्य पमिवजिय तीए-लणिो नत्ता किमत्थं तं---॥ ॥ न पसंससि वररुश्कव्व-माह एसोवि मिमिय कालं, अइनिब्बंधुवरुद्यो-महिलाए कारि ओ करणं. ॥ ५ ॥ अम्मदिणे रायपुरो-वरमाणा गाहियं नियं कव्वं, पासहियो अमच्चो-जणाइ अब्बो सुपढियं ति. ॥ १० ॥ तो अट्ठसयं रन्ना-दीनाराणं दवावियं तस्स, जाया पइदिवसंचिय---एत्तियमित्ता य से वित्तो. ॥ ११ ॥ अत्यक्वयं पलोइय-लणिय ममञ्चेण देव कि मिमस्स, देहित्ति तेण बुत्त--समाहिओ जं तए एसो. ॥ १२ ॥ नणिय ममचेण मए-अविठं पढ पुवकध्वंति, सलाहिय मेयस्स तो-रत्ना पुटो कहं एवं. ॥ १३ ॥ तेणं नणियं मज्ज-धूयावि पढंति पढ जं एसो, नचियसमएय पत्तो-पढणत्थं सो निवस्संते,--॥ १४ ॥ जबणियअंतरियाए थी ए प्रशंसा करशे. एम कबूनात आपीने तेणे पोताना स्वामिने कडं के तमे वररुचिना कायनी केम प्रशंसा नथी करता ? शकमाले कहां के तेम करतां मिथ्यात्व लागे-त्यारे तेनी स्त्रीए बधु आग्रह करी तेम करवा हा पहावी.ए वळता दिने राजानी आगळ वारुचिए पोतानुं काय कही बताव्यु एम्ने पासे केलो ते मंत्री बोल्यो के ठीक कडं. १० ते परथी राजाए तेने एकसो आउ सोनाम्होर अपात्र अने ए रीते दररोज तेने एटा इनाम मळ्वा लाग्युं. ११ आम पैसानो व्यय थतो जोऽ मंत्रीए राजाने कह्यं के एने आटवू इनाम शा माटे आपो जो ? राजाए कडं के तें एने वखाएयो माटे आपुं बु १२ मंत्रीए कह्यु के में तो ते जूनां काव्य बरोबर बोनी बतावे छे तेटवा खातर तेने वखाण्यो हतो. त्यारे राजाए पूछयु के एम केम होय ? १३ मंत्रीए जणाव्यु के जे ए बोझे जे ते तो मारी दोकरीओने पण आवमे छे. बाद उचित समये वररुचि राजा पासे काव्य बोलवा आव्यो त्यारे राजाए मंत्रीनी साते दीकरीओने पमदामां त्यां बेसा श्री उपदशपद. RENER Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३८६ ।। । - धरिया मंतीए सत्त धूयाओ, जक्खाइ पढमवारा — अहिगयं से पढंतस्स ॥ १ए ॥ तो तीए नरवणो - पुरो विमुच्चरंतीए, वाराहिं दोहिं हियं - बीए ती ॥ १६ ॥ तझ्याए वाराए - तझ्याए अहिगयं च वृत्तं च, एवं वारावुड्ढी - सगार्दिपि नवलद्धं ॥ १७ ॥ तो कुविएणं रन्ना - 5वारमवि वारियं वररुइस्स, पच्छा सो गंगाए – जंतपयोगेण दीणारे.- -- ॥ १८ ॥ ठविऊण बेइ नाइ य थुट्टा देइ मज्झ गंगत्ति, कालंतरेण रन्ना- - सोउं सिहं अमञ्चस्स ॥ १५ ॥ तेणं जयिं जइ गह - पुरो इमा देइ ता वरं देव, बच्चामो य पनाए – गंगाए पनिसुर्य रन्ना ॥ २० ॥ ग्रह मंतिणा वियाले - पच्चयो नियन नो--सुजं वररुई सलिले. - ॥ २१ ॥ किंपु समाइलो, गंगाए पचवंश तं गिरिहऊण मह जद्द न मी. त्यां या पहेली बार सांजळीने ते शीखी सीधुं. १४-१५ तेथी त गजा आगळ बरोबर बोल्ली गइ एटले तेलीएते उच्चार्यायी वे वारमां बीजीने ते कंत्रस्थ यइ गयुं. १६ ऋण बार सांनळाने त्रीजीए शीखाने ते कही बतान्युं . एम दरेक वर वधतां घळी ओए ते कही बतायुं. १७ त्यार राजा वररुचि पर पटलो गुस्ले थयो के तेने दरवाजामां पण पेसवानी मनाइ करी. त्यारे वररुचिए गंगामांयंत्र गांठव । त्यां सोनाम्होरो राखीन ते लड़ कहेवा लाग्यो के मारी स्तुतिथी गंगाजी प्रसन्न थइ मने सोनाम्होरो आपे छे. ते वातनी कोइक वखते राजाने खबर पकी एटले तेथे मंत्रीने ते वात कही. १८ - १७ मंत्रीए कघुं के जो मारी सामे गंगा तने ते आपे तो खरी बात. माटे काले प्रजात आपले गंगा पर चाल. ते वात राजा कबूल राखी. २० पछी मंत्रीए सांज पाताना खातरीदार माणसने कछु के गंगा पर छानो बेटो रहे श्री उपदेशपर Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३७॥ वणमेजामि, गंतूण नरेण तो-प्राणीया दम्मपादृत्रिया. ॥ २२॥ गोसंमि गो नंदो-मंतोइ पनोइनो थुणंतो सा, गंगजबंमि निबुड्डो-युझ्यवसाणे य तं जंतं॥ २३ ॥ करचरणेहिं सुचिरंपि-घट्टियं जाव वियरइ न किंपि, अच्चंतवित्रक्वत्तणमणुपत्तो वरसई ताव. ॥ २४॥ पायमिया सयमानण-राश्णो सा य दम्मपोलिया, हसियो य राणा सो-कुवित्रो मंतिस्स नवरि तो. ॥ २५ ॥ आरखो रिहाई -पलोइन अन्नया य सयमालो, वीवाहं काउमणो–सिरियस्स नरिंदजोग्गाई.॥ २६ ॥ विविहाई आउहाई-पवलं कारवेश एवं च, नवयरियाए कहियं-वरसइणो मंतिदासीए. ॥ २७ ॥ पावियबिदेण तो तेणं किंजाणि मोयगे दानं, सिंगाडयतियचच्चर-गणेसुं पाढियाणि मं. ॥ ॥ एन बोउ न वियाणइ-जं सअने त्यां पाणीमां वररुचि जे कइ राखे ते तुं लइने हां मने पहोंचामजे. ते प्रमाणे ते माणसे जइ त्यांची सोनाम्होरनी पोटली आणी. २१-१३ मनात थतां नंदराजा मंत्री साये त्यां जा पहोंच्यो. त्यां वररुचिने पाणीमा रही स्तुति करतो 8 तेमणे जोयो. बाद स्तुतिना अंते पेक्षा यंत्रने वररुचिए हाथ पगवो खूब हलाव्युं पण तेणे कंश आप्यु नहि, त्यारे वररु चि जारे ऊंखवाणो पकी गयो. १३-२४ ए टांकणे शकमालमंत्रीए ते पोटनी राजा आगळ खुबी करी, तेथी राजा वररुचि तरफ खूब हसवा लाग्यो; तेथी वररुचि मंत्री ऊपर बहु क्रोध नरायो.२५ एथी ते तेना जिद्रो जोवा लाग्यो. एवामां शकमालमंत्रोए पोताना श्रीयक नामना पुत्रनो विवाह करवाना इरादाथी राजाने योग्य एवा अनेक हथियारो छानी रीते घमाववा मांड्या. २६ आ वातनी खबर वररुचिए मंत्रीनी दासीने कई चीज वस्तु आपी वश करीने तेणोनी पासे , थी मेळवी. २७ आ छिद्र पामीने तेणे नाना छोकराओने लाडु आपीने शृंगाटक-त्रिक–चोक वगरे नगरना स्थानोमां श्री उपदेशपद. Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३ ॥ गमायु करस-नं रान मारेवि णु-सिरियन रजि उवेस. ॥श्ए ॥ सुणियं च इमं रणा-चरेदि पेहावियं च मंतिगिहं, दवूण कीरमाणाई-आनहाई पनूयाई-॥३०॥ सिट रन्नो तेहिं-कुविओ राया विंडो पराहुत्तो, सेवागयस्स चनणेसु-निवममाणस्स मंतिस्स. ॥ ३१ ॥ कुवियंति निवं नाउं-सयमानो मंदिरंमि गंतूण, कहश् सिरियस्त पुत्तय-राया मारे सव्वाई.-॥ ३२॥ ज न मरिस्सामि अहं,-ता रन्नो पाय निवमियं वच, मं मारिजासि तुमं-गिया (सरिएण ता सवणा. ॥ ३३ ॥ सयमानेणं नणियं-तासनमे नक्खियंमि मइ पुव्वं, निवपायपमणकाले-- मारेजसु तं गयासंको. ॥३४॥ सव्वविणासासंकियमणेण पमिसुय मिमं च सिरिएण, तहमेव पायपमियस्स-सीत मेयस्त छिन्नंति. ॥ ३५ ॥ हाहा अहो अकजंति-जंपिनीचेनो दोहरो बोत्रातो कराव्यो. - आ दुनिया जाणे नहि-करशे जे शकटान; नंदराजने मारीने–श्रियाने राज्य देनार. : 0 आ दोहरो राजाए पण सांजळ्यो एटले तेणे गना माणसो मोकसी मंत्राना घरनी तपास करावी. तेमणे त्यां अनेक जानना हथियारो घमाता जोइ ते दात राजाने कही, तेथी ज्यारे मंत्री सत्राम नवा राजाना पगे पड्यो त्यारे रा-29 जा पूठ फेरवी ऊनो रह्यो. ३०--३१ आरीत राजान कोपेझो जागीने शकमान मंत्रीए घरे जइ श्रीयक नामना पुत्रने का के द करा, जो हुं नहि मरूं तो राजा आपण वधाने मरावशे, माटे हुँ जेवो राजाना पगे पहुं के तुं मने मारी नाखजे. त्यारे श्रीयके कान आमा हाथ धर्या. ३२-३३ त्यारे शकमाझे कर्दा के हुं पहेलाथीज तामपुट विष खाइने परी राजाने 1 पगे पहुं ते वखते तुं शंका लाव्या वगर मने मारजे. ३४ त्यारे बधाना नाशनी वीके श्रीयके त वात कबून राखीने ते ज पगे पता बापर्नु मायुं नमाव्यु. ३५ ते जो हाहाकार करतो नंदराजा जी बोलवा लाग्यो के आ तें शं अकार्य श्री उपदेशपद. Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। ३०ए रो नहिओ य नंदनिवो, जणिो सिरिएण ता-देव अलं वानवत्तेण. ॥ ३६ ॥ जो तुन्हं पस्कूिलो-तणं पिनणावि नत्यि मे कजं, तो सो रणा वुत्तो-पभिवजसु मंतिपयविं ति. ॥ ३७ ॥ तेणं नणियं नाया-जेठो मे थूवनद्द नामो त्ति, बारसमं से वरिसं-कोसाइ गिहे वसंतस्स. ॥ ३० ॥ सहावियो य रणा-वुत्तो य जयाहि मंतिपयविं ति, तेणं नणियं चिंतेमि-राणा पेसिओ ताहे. ॥३५॥ सन्निहियअसोगवणेतत्थय सो चिंतिनं समाढत्तो, परकजवावाणं-के नोगा किंच सोक्खं ति. ॥ ४० ॥ लोहिंवि गंतव्वं-नरए वस्सं अनं तदेतेहि, श्य चिंतिऊण वेरग्ग-मुवगओनवविरत्तमणो. ॥ ४१ ॥ काऊण पंचमुठिय-स्रोयं सयमेव गहियमुणिवेसो, गंतूणं नण निव-इमं मए चिंतियं राय. ॥ ४२ ॥ उबवूहिओ निवेणं-नीहारओ मंदिरान स त्यारे श्रीयके जवाब वाळ्यो के महाराज, तमे कंइ व्याकुळ म थानो. ३६ केमके जे तमने प्रतिकूळ रहे ते वापनुं पण मने काम नथी. त्यारे राजाए तेने कयु के ठीक, त्यारे हवे तु मंत्रानी पदवी स्वीकारः३७ श्रीयके कयुं के मारो मोटो जाइ स्थूलनद्र आन बार वर्ष थया कोशा नामनी वेश्याना घरे रहे जे. ३७ त्यारे राजाए तेने बोलावीने कडं के तु मंत्रीपदवी स्वीकार. स्थूलनद्रे का के हु विचार कर। जवाब आपुं. त्यारे राजाए तेने नजीकनी अशोकवामीमां मोकलाव्यो. त्यां ते विचारखा लाग्यो के पराया काममां मश्गुल रहेनारने शी मोज अने शं सुख होय ? ३५-४० वळी जोगयी अवश्य नरके 2 जवू पसे तेम छ, माटे हवे ए जोगथी दूर रहेवू सारं छे एम चिंतवी ते नारे वैराग्य पामीने संसारथी विरक्त थयो. ४१ तेणे पंचमुष्टि सोच करीने पोतानी मेळे मुनिनो वेष लइ राजा पासे जश्ने कयुं के हे राजन्, में आ विचार्यु जे. U राजाए तेना वखाण कर्या एटले ते महात्मा घर गेमी चालता थया, त्यारे राजाए तेने कर्बु के गणिकाना घरे थइने श्री उपदेशपद. Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३ ॥ महप्पा, गणियाइ गिहे जाहि त्ति पहिलो राणा जतो. ॥ ४३ ॥ दवण मयकलेवरघुग्गंधपहेण वच्चमाणं तं, रन्ना नायं निविन्नकामनोगो धुवमिमो त्ति. ॥ ४ ॥ वित्रो पयंमि सिरिओ-इयरो संभूयविजयपामूले, पव्वो अच्चुग्गं-करेइ विविहं तव्वच्चरणं. ॥ ४५ ॥ अह विहरतो कश्यावि-पानीपुत्त मागो एसो, संभूयविजयगुरुणा-सम् िसम्मनिरयमणो. ॥ ४६ ॥ पत्ते वासारत्ते-तिल मुणी तिव्वनवजनबिग्गा, गिण्हंति कमेणेए-अजिग्गहे उग्गहसरूवे. ॥ ४ ॥ एगो सीहगुहाएअन्नो दारुणविसाहिवसहीए, कूवफनयंमि अन्नो-चानम्मासं कयाणसणा. ॥ ४ ॥ जयवं स यूनजद्दो-कोसागेहमि अतवकम्मरो, निवप्सिस्सामि स गुरुणा-अहिग यसत्तेण णुन्नाओ. ॥ ४ ॥ संपत्तो घरदारे-तुट्टाए नटिजण जह जग्गो-एसो परीजाओ. ४३ त्यारे ते मरेला कलेवस्वाळा दुर्गंधी रस्ते चालतो थयो. ते जोइने रानाए जाण्यु के खरेखर ए कामनोगथी विरक्त थयो लागे छे. ४ तेथी राजाए श्रीयकने मंत्रीपदे स्थाप्य अने स्यनजद्र संतृतविजय प्राचार्य पासे प्रवजित थ डग्र तपश्चरण करवा लाग्यो. ४५ हव एकवेळा विहारक्रमे ते पाताना गुरुनी साये पाटलीपुत्रमा आव्यो, छतां तेनुं मन तो खरेखरा धर्ममांज रहे हतु. ४६ त्यां वाकाळ आवतां नवना आकरा जययी नभिन्न थएना त्रण मुनिए नीचे मुजब त्रण पुष्कर अजिग्रह सीधा. ४७ एके सिंहन। गुफामा रहेवानो, बीजाए नयंकर सर्पना दर जपर नजा रहे वानो अने त्रीजाए कूवाना नारोंट पर नन्ना रहेवानो. एम अणसणपूर्वक चार मास नन्ना रहेवाना अनिग्रह बीधा. - त्यारे नगवान् थूलनद्रे एवो अग्रिह लेवा मांड्यो के कंइ पण तप कर्या वगरज कोगाना घरमां मारे रहे. तेनी हम्मतनी गुरुले खातरी होवायी तणे तेने रजा आपी. ए ते कोशाना घरना दरवाजे आव्यो एटने तेणए धार्यु के श्री नपदेशपद. Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३५१|| ASOPAR सहेहि-जणाहि जं काह मेत्ताहे. ॥ ५० ॥ पुव्योवनुत्तरमंदिरंमि नज्माणमज्जयारंमि, देसु निवासं, दिन्नो--जुत्तो सव्वेहिंवि रसेहिं. ॥ २१ ॥ शहाणगुणसुश्सरोरासव्वाबंकारज्जूसिया राओ, पत्ता दीवयहत्या-कयत्य मप्पाणमिळती ॥ ५५ ॥ चाटुपटूपारखा-सा तं रमिचं न सकिया जाव, तत्तो पसंतमोहा-सुयधामा साविया जाया. ॥ ५३ ॥ रायानिओगविरहेण-कोइ परिसो मए न मियव्वो, इय सा अबनविरती-पमिवज वज्जियवियारा.॥ २४ ॥ नवसमियसीट्सप्पा-चनमासोवासिया गुरुसयासे, कयकूवफनावासो-तोवि मुणी समायाओ. ॥ ५५ ॥ अब्तुठिया मणागं-उक्करकारीण सागयं तुब्नं, आभासिया कया जा-गुरुणा ता यूवनदोवि ॥ ५६ ॥ गणियागिहंमि पश्वासरंमि गिएिहय मणुन्नमाहारं, मुंजतो रम्मतणू- सए परीषहोयी नग्न थयो लागे जे, तेथी तेणीए ऊठी ऊजी थाने को के हवे जे बोलो ते करु. ५० यूशनद्रे का के वगोचानी वच्चे पूर्वे आपणे ज्यां विनास करता ते घरमां मने ऊतारो आप. ते मुजव ताग ए तेने त्यां ऊतारा प्राप्यो । अन तेणे सर्व रस खावा चालु राख्या. ५१ हवे कोशा वेश्या न्हाइ धोइ पवित्र थइ सर्व प्रकार सजी राते हाथमा दीवो लइ पोताने कृतार्य करवा इच्चती थकी अनेक कामावाला करवा लागी, पण तेने माझ्या समर्थ था शकी नह, त्यारे तेनो मोह शांत परतां धर्म सांनळी ते श्राविका थइ. ५५-५३ तेणीए एवी प्रतिज्ञा लीधी के राजाभियोग शिवाय मारे कोइ पुरुष साथे रमवू नहि. एम तेणीए विकारजाव मूकोने अब्रह्मनी विति स्वीकारी. ५४ हवे चारे मासना नपासवान वे साधुओ सिंह तथा सर्पने उपाशमावी गुरु पासे आव्या तया त्रीजो कूवाना जारोंट पर ऊनो रहनार । साधु पण आवी पहोंच्यो. २५ तेमना सामे जरा कठीने " तमे दुःकर काम करी जाने पर्या"-एम गुरुए कह्यु, एट श्री उपदेशपद. Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहिगुणो य संपन्नो-॥ १७ ॥ अश्उक्करउक्करकारयस्स अन्तुष्टिकण सप्पणयं, नणियं गुरुणा तव सागयं ति ते मबरं पत्ता. ॥ १७ ॥ तिन्निवि नणंति खमगा-पेबह सूरी कहं इमं नणइ, एस अमच्चस्स सुओ-अतवोवि पसंसियो एवं. ॥ एए॥ मणमज्ववियरोसेण-पानसंमी समागए उइए, सीहगुहाखमगेणं-नणिो सूरी अहं जामि. ॥ ६० ॥ नवकोसाइ गिहमी कोसावेसाइ बहुगनश्णीए, तं बोहेमि किमूणो कोवि इहं थूलभद्दाओ. ॥ ६१ ॥ उवउत्तेणं गुरुणा-णायं पारं न पाविही एसो, पडिसिको तहवि गो-तो मग्गियसवमहीओ.-॥ ६२ ॥ बग्गो वासारत्तंकाचं सा नदिगा सुण धम्मं, अफारसरीरा नृसिया य अविभूसिया चेव. ॥ ६३ ॥ सो मयणगोलगो श्व-जवणसमीचे तो पलायंतो, जाओ अईवदढ नाववजियो फुल बामां थूवन्द्र पण त्यां आवी पहोंच्या. ५६ ते जगवान् गणिकाना घरे दररोज मनपसंद आहार बइ खाता एटले शरीरे ताजा थइ आव्या हता अने तेम छतां समाधि साचवीने आया हता. ५७ तेना सामे गुरुए बरोबर ऊठी प्रीतिपूर्वक कहां के अति दुष्करमां दुष्करना करनार एवा तमे जले पधार्या. ते सांजळी पेनालणे साधुन मन्सर प्राप्त थयो.ए७ ते त्रणे कहेवा लाग्या के जुवो, आपणा गुरु एने के कहे जे ? ए मंत्रीनो दीकरा डे एटो वगर तपे पण एना आ रीते गुरु वखाण कर जे. ५० हवे मनमा रोष राखीने बीजं चोमासु आवतां सिंहगुफावासी तपस्वी मुनिए गुरुने कयु के हं कोशानी नानी बेन उपकोशाना घरे जाचं चुं अने तेने प्रतिबोधी आवीश एटने खबर पम्शे के थूलनद्र करता कोइ ऊतरतो नयी. ६०-६१ गुरुए उपयोग आपी जोतां तेमने जाणयुं क ा कंइ पार पहोंचे तेम नथी, एटन तेमाणे तेने ना पामी. तेम छतां ते चान्नतो थयो अने त्यां तेणे वसति मेळवी. ६२ त्यां ते चोमासु पसार करवा मांड्या. ते उपकोशा नद्रिक होवा श्री उपदेशपद. Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOKHOTO ॥३३॥ रियकामसरो. ॥ ६४ ॥ कजियलज्जो अज्कोववालो मग्गिनें तो बग्गो, निउण मईए तीए-जणिओ किं देसि तं अम्हं ? ॥ ६५ ॥ सो नण नत्यि मे किंचि-जेण गिंयो अहं नहे, तहविय नणसु किमिबसि-अक्खं, निसुयं च तेणेवं- ॥ ६६ ॥ नेवालजणवए जह-राया पुव्वस्स साहुणो देश, कंबारयणं सयसहस्समो मेसो तहिं जाइ.॥ ६७ ॥ अहं तं तत्य महापमाण वंसस्स नूमियं मझं, उश्यं बिदे जह नं-न कोवि किंचिवि वियाणाइ. ॥ ६८ ॥ नगिणप्पाओ जा एइ–एको विस्सम अकुणमाणो, ता कत्यविय पएसे-सनणो वासइ जहा लक्खो. ॥ ६ए ॥ एसो इहेति बुत्तं-चोरवई सनणरुयवियारं तु, जा पासइ ता पास–एकंचिय इतयं समणं. ॥ ७० ॥ अवहीरियसनणरुओ-जा चि ता पुणोवि वाहरइ, हत्यगो सयसहथी धर्म साजन् वा आवती. ते शरीरे एवी रूपवान हती के वगर सणगारे पण सणगार सज्या होय तेवी लागती. ६३ A हवे ते साधु आगना पासे जेम मीणनो गोलो गळे तेम तेणीने जे तो थको पोतानी दृढता मूकीने कामबाणथी बांधायो ६४ ते शरैम मेलीने तेना ऊपर आशक थइ तेनी मागणी करवा लाग्यो त्यारे माही गणिकाए कयु के तु मने शं श्रापी श? ६५ ते बोल्यो के हे नद्रे हुँ निर्गय बु एटले मारी पासे कंइ नथी, छतां तुं शुं मागे छे ते कहे तेणीए कह्यु के एक लाख त्यारे ते साधुए एम सांजव्यु हतुं के–६६ नेपाळदेशमां त्यानो राजा नवा साधुने लाखनी कीमतनु कसरत्न आपे ने तेयी त्यां गयो. ६७ त्यां तेणे ते मेळवी एक मोटी वासनी लाकमीने वच्चेयी पोकन करी तेना विवरमां ते धर्यु र जेथी तेने कोइ जाणी शके नहि. ६० पछी पोते लगजग नागा जेबो थइने क्यां पण वीसामो नहि लेतां पागे वळ्यो तेवामां अमुक स्थळे आवतां त्यां पदी बोलवा लाग्या के यहां लाख आवे छे, त्यारे चोरोनो सरदार ते पतीना अवाजने । श्री उपदेशपद. Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३८४ ॥ सो – एसो तुब्नं अगओ ति. ॥ ७१ ॥ संजायकोडगेणं – नओि चोरादिवे सो गंतुं, जं इत्यमत्थितत्तं - नयर दिओ तं कहेसु तुमं ॥ ७२ ॥ कदयं कंबलर - - संतो एत्थ प्रत्थि तो मुक्को, आगंतुं गणियाए – समप्पई जाव ता तीए - ॥ ७३ || गिहखामि निहित्तं — निरिक्खमाणस्स तक्खणं तस्स, जाइ तो कह मे - यं - रणमिणं मइलियं तुमए ? ॥ ७४ ॥ मुझेोसि तुमं सोयसि -ज मेय मप्पा गं नउण समण, एयाओवि विली - रयणसमो मं जमणुसरसि ॥ १ ॥ - निप्पवास मेसो- तीए पमिचोइओ पडिनियत्तो, इच्छामो अणुसट्ठि - नयि गोगुरुसमी म. ॥ ७६ ॥ अइडुक्कर डुक्करकारगो त्ति एवं स्थूलजद्दी, चिरपरिचिया असद्धी —सम्मं अहियासिया इमिणा ॥ 99 ॥ तुमए दिग्दोसा - नवकोसा जापासा लाग्यो वाम एक श्रमण आवतो तेने देखायो. ६०-७० ते परथी ते सरदारे ते अवाज़नी अवज्ञा करी एटले पक्षी फरीने बोलवा लाग्या के तमारा हाये आवेनुं लाख चाली गयुं छे. ७१ त्यारे चोरोना सरदारे कौतक पामी ते पाळजक के तारी पासे जे सार होय ते तुं वगर बीके कही दे. ७२ ते साधुए कर्छु के आवांसनी अंदर करन पावेल एम तेथे सामुं कही दीधुं तेथ । तेणे तेने जतो मेट्यो एटले तेणे आवीने ते गणिकाने सौंप्युं के त रत तेणीए तेनी रूबरूमांज ते घरनी खाल्लमां नांखी दीधुं, त्यारे साधु बोल्यो के तें आ रत्न केम मेनुं कर्यु. ७३–७४ गणिकाए जवाब वाळ्यो के अरे श्रमण, तुं मुग्ध लागे छे के जेथी तुं या कंबलनी चिंता करे बे ने तुं पोते रत्न समान होइ मारी पाछळ पकी पोताने या कंबल करतां वधु मलिन करे छे तेनो विचारज करतो नयी. ७ए या रीते तेलीएतेने कंड़ पण पिपासा राख्या वगर फाटक्यो एटले ते समजीने बोड्यो के तारी शीखामण वाजवी बे एम कही ते गु XXXX श्री उपदेशपद. Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.CODA इया कचवया य, निलचिओ पवन्नो-पचित्तं चित्तसारंति. ॥ ॥ कश्याइ नंदरमा-दिना तुद्रण नियगरहियस्स, कोसा सा पुण निच्चं-पसंसए थूलभद्दमुणिं. ॥ पए ॥ कह अन्नो तह इत्यापरीसहं जिण जिय मयणपसरो, जो न ममाओ तिनतुसतिभागमित्तंपि संखुको. ॥ ७० ॥ संतिच्चिय अबेरंगकरा जणा नूरिणो हं लोए, नहु थूवनइसरिसो लूओ होनच्चिय कयाइ. ॥ ७१ ॥ एवं तग्गुणगनरवखित्तमणा उवचरेइ तं न तहा, नियसोहग्गुप्पायणहेलं सा अन्नया नीया-॥ २॥ नियविन्नाणस्सयदंसणत्य मावाससोगवणियाए, आरोवियधणुदमो-अंबगपिंडीइ कमाणि॥ ३ ॥ अणुपुंखं लायंतो-ता खिव जाव निंयकरन्नासं, आणीया खिविहीणं जिन्ना सा अडचंदेण. ॥ ४ ॥ सा लण सिक्खियस्सेह-मुक्करं किंव पेच्छसि मरु पासे अाव्या. ७६ प्रार्थी गुरुए तेने उपको दीधो के ते स्यूलचद्रमुनि, खरेखर अति दुष्कर दुष्करनो करनार हतो के जेणे चिरपरिचित अने अणश्रद्धालु कोशाने रुकी रीते प्रतिबोधिन करी. ७७ अने तें तो दोष जोया विनानी अने व्रत पानती उपकोशाने जइ मागणी करी. एम गुरुए तेनी निर्नबना कररी एटप्ने तेणे चित्त आप्या पूर्वक प्राश्चित्त स्वीकार्यु. बाद एक वेळा तुष्ट थएला नंदराजाए पोताना रथिकने कोशा आपी. हवे ते कोशा तेनो आगळ हमेशां स्थूलनद्रमुनिना वखाण करती हती. ७५ ते आ रीते के स्थूनजद्र के जे माराथी तिमना तुष जेटलो पण दोन पाम्यो नहि तो तेना माफक बीजो कोण कामना जोरने हगवी स्त्रीनो परीषह जीती. शके ? bo-आ जगत्मा आश्चर्यकारक घणा लोको छे पण स्यूचनद्रना जेवो कोइ थयो नथी अने कदापि यशे पण नहि. ७? एम ते कोश्या तेना गुणना गौरखमां मन राखती थकी ते रथिकनी काजी दरकार करती न हती ते पोतार्नु सौजाग्य थवा खातर तथा पोतानी हुंक्यारी श्रो उपदेशपद. Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंपि; नहविहिं तो सरिसवरासिष्टियसृश्यग्गेसु.॥ ५ ॥ कयनहा हरिसमुही-जणाइ तो कस्स मबरो गुणिसु ? तंचिय मणे वहंती-तह जण सुनासियं एयं.॥ ०६ ॥ न उक्करं अंबयबुंबि तोमणं-न उक्करं नच्चय सिक्खियाए, तं उक्करं तंच महाणु नावं,-जं सो मुणी पमयवणंमि वुत्थो. ॥ ७ ॥ पुव्वं सव्वंचिय से निवेश्यं ती तस्स वुत्ततं, तच्चरियाक्खित्तमणो-विहिओ सो सावगो परमो. ॥ 6 ॥ जाओ य तम्मि समए-उकालो दोय दसय वरिसाणि, सव्वो साहुसमूहो-गो तो जबहितीरेसु. नए तवरमे सो पुणरवि-पामलिपुत्ते समागओ विहिया–संघेणं सु. यविसया–चिंता किं कस्स अत्यित्ति. ॥ ए ॥ जं जस्स आसि पासे-नसज्ज यणमाइ संघमिजं-तं सव्वं एकारय अंगाई तहेव वियाई. ॥ ए१ ॥ परिकम्मं सुबताववा खातर तेने अशोक वामीमां ला गयो. त्यां तेणे धनुष्य वाण चकावीने केदीमोनी जुमखीने दरेक बाण लगावीने पोताना हायनी नजीक आणी तेने अर्द्धचंद्र (वाकिया ) नामना हथियारथी कापी सीधी. ७२-७३-७४ त्यारे कोश्या बोली के शीखेशाने हां शुं दुष्कर होय ? दाखलातरीके मारूं नाच जुवो एम कही तेणे सरसवना ढगन्ना पर सूॐ सो गोठवी तेमनी अणीओ ऊपर नाच करी बताव्यो. ए एम ते नाच करी हसते मुखे बोली के जला माणस गु वंतो ऊपर कोने मत्सर होय ? एम बोनीने तेनेन मनमा तामीने नीचे मुजब सुनाषित कहेवा लागी. ७६ “शीखेनाने आंबानी बूंख तोमवी अगर नाच करवं ए काइ पण दुष्टकर नयी, पण जे ते मुनि मदजनक वनमा अमग रह्या ते ज मुष्कर अने मोटुं काम जे."पछी तेणीए तेने पूर्वनी सघळी हकीकत संजळावी रथूलनद्रना चरित्र तरफ तेनुं मन खेंची तेने परम श्रावक कर्यो. आ वखते बार वर्षी पुकाल पड्यो तेथी सघळा साधुओ दरिया कांठे जा रह्या. श्री उपदेशपद. Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ३७७ ॥ ताइ – पुव्वयं मूलिया णुयोगो य, दिट्ठीवाओ श्य पंचदावि नो अस्य तत्थित्ति. ॥ २ ॥ नेपालवत्तिणीए - विसए किस नद्दबाहवो गुरवो, विहरंति दिद्विवायंधरति श्य चिंतियं ते. ॥ ७३ ॥ संघे साहुजुयलं - पदियं तस्संतिए पत्राएहि— दट्ठीवायं जं संति अस्थियो साहुणो एत्थ ॥ ९४ ॥ कढ़ियंमि संघकज्जे - परियि ते संपइ पयट्टो - साहेन महापापज्जाणं - पुव्विच क्कालो - ॥ एए ॥ सियो - नाद मेयंमि जवरए संते- दाहामि वायां जं-न जाइ एवं मिसा दाउं.॥ए६॥ आगम्म तेण संघस्स सादियं तो पुणोवि संघाको तस्संतिए विसडूढो - संधा जान मन्ने ॥ ९७॥ को तस्स होइ दंगो-एयं जणावियो जाइ तस्स, बग्घामणं तया सो— तुब्नचेवा गया मिणं ति. ॥ ९८ ॥ मा उग्घामद पेसह साहुणो ज ८ बाद दुकाल मटतां ते फरीने पाटलीपुत्रनगरमा आव्या एटले सर्वे मळीने तपाश करी के श्रु रधुं छे. ए० हवे जेना पासे जे कांइ उद्देश तया अध्ययन याद हता ते सर्वे एकठा कर र्या. १ परंतु परिकर्म -सूत्र— पूर्वगन - चूलिका अने अनुयोग एम पांच प्रकारनो दृष्टिवाद त्यां २ त्यारे पंधे विचार्य क नेपाळदेशमां भद्रबाहुस्वामि विचरे बे तेमना पासे ते बे. ७३ तेयी तेणे तेमना पासे बे साधु मोकली कहेबराव्यं के तमारे इहां आवी दृष्टिवादनी वाचना देवी जोशे केमके इहां तेना अथीं साधु रहेला छे. [४ आए संघ काम फरमावतां जद्रबाहुस्वामिए उत्तर वाळयो के में हमणा महाप्राण नामे ध्यान साधवा मां बे, केमके पूर्वे दुकाल प्रवर्त्ततो हतो तेथी हवे ए ध्यान पूरुं नहि थाय त्यां लगण वाचना आपीश नदि केमके काममां ते आप। शकाय तेम नयी ५ - ७६ त्यारे ते वें साबुए संघसमीपे आवीने संघने ते बात कही एटले फरीने सं कोना पासे कयुं कयुं ग्यार अंग स्थापित क कोइ पासे नहि मळ्यो. श्री उपदेश पद. Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३ ॥ जुया सुमेहाए, दिवसेण सत्त परिपुचणान दाहामि जा झाणं. ॥ एV ॥ एगा नि क्खान समागयस्स दिवसबकासवेणाए, बीया, तश्या सामावोसग्गे कासवेलाए-॥ १०० ॥ दिवसस्स लावणीओ-चनस्थिगा वासए कए तिन्नि, तो थूलनदपमुहामेहावीणं-सया पंच-॥ १०१ ॥ पत्ता तस्स समीवे-पमिपुबाए य वायणं विंती, एकसि दोहिं तिहिंवा न तरंतवधारिलं जाहे. ॥ १० ॥ ताहे ते ऊसरियाएकं मोत्तुण थूवजहमुणिं थोवावसेसए सइ काणे अह पुलिओ गुरुणा. ॥ १०३ ॥ न किलिम्मसि तं स जणइ-कोवि जगवं ममं किलामेत्ति, तो खमसु किंचि कादं -तो दिवसं वायए सव्वं. ॥ १० ॥ पुबइ सारं जयवं-कित्तियमित्तं मए श्हाधी. यं, अठासी सुत्ताई-नवमा मेरूसरिसवेहि. ॥ १०५॥ एएकालाओ कणगेण कालेघे तेना आगळ वे साधु मोकनावी कहेवराव्यु के जे संवनी आण न माने तेनो शो दम लागे नद्रबाहुए तेमने कयु के " उद्घाटन " नामे प्रायश्चित्त लागे त्यारे तेमणे जणाव्यु के ते तमोनेज लागु थयुं छे. ए–ए जद्रबाहुए कह्यु के मने संघबाहेर नहि करो, पण जे सारी बुद्धिवाळा साधुओ होय तेमने यहां मोकलावो तो हुं मारा ध्यान पर्यंत दररोज सा. - तवार तेमनी पृठाना जवाब आपतो रहीश.ए एक प्रतिपूछा निवाए जतां आवतां करीश, वीजी मध्यान्हनी काळवेलाए करीश, त्रीजी संझाए जतां करीश, चोथी सांजनी काळ वेळाए करीश, अने बाकीनी त्रण सूती वखते करीश. त्यारे संघे स्यूवनद्र वगेरे पांचसो बुद्धिमान् साधुओने त्यां मोकझाव्या. तेओ तेमना पासेयी प्रतिपृच्छावके वाचना खेवा लाग्या. तेश्रोमांना घणाओ एक वार बे वार तया त्रण वार सांजळतां पण अवधारी-शक्या नहि.-१००-१०१ -१०३ त्यारे तेत्रो एक स्थूलनद्रमुनिने त्यां मेशीने वीजा बधा पाग वख्या. हवे ध्याननो थोमो काळ बाकी रह्यो ह यो उपदेशपद. Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३पए ण पढिहिसि सुहेण, सव्वंपि दिध्विायं-पढिया य कमेण दसपुवा. ॥ १०६ ॥ वत्यूहिं दोहिं ऊणा-सथूवनदा गुरू विहरमाणा; पत्ता पामलिपुत्तं-ठिया य बाहिं तज्ज्काणे. ॥ १०७ ॥ जक्खाश्यान सत्तवि-लश्णीओ थूबलदसाहुस्स, गुरुणो जे जस्सय–समागया वंदणनिमित्तं. ॥१७॥ वंदिय गुरूं कहिं सो-जिज्जो पुलिओगुरू नणइ, देवलियाइ इमाए-गुणमाणो चि पहिठो. ॥१०९॥ आयंतीओ दठूण ताज इड्ढी देसण निमित्तं, सीहागारो जाओ-सो तं ताओ नियश्चित्ता॥ ११० ॥ नझान गुरुसयासे-लणंति सीहेण खश्यगो नंते, नाया, गुरुणा जणियान थूवनदो न सो सीहो. ॥ १११ ॥ पडियागया य वंदिय चिया तो पुलिया कुस बवत्तं, कहियं जह पव्वश्ओ सिरिओ पव्वोववासेणं. ॥ ११ ॥ काराविएण अम्हेतो त्यारे गुरुए तेने पूछ्यु के–१०३ तुं थाकतो तो नथीने ? स्यूळनद्रे कह्यु के हे जगवन् मने कोइ थकवनार नथी. त्यारे । गुरुए कह्यु क थोमो वखत सबुरी राख तो पछी तने आखो दिवस वाचना आपीश. १०४ स्थूलनद्रे पूछयु के जगवन हुँ एमांयी केटचं शीखी रह्यो बुं ? गुरुए कह्यु के तुं हजु अत्यासी सूत्र शीख्यो डे एटले सरसव जेटलु थयु के अने हनी । मेरु जेटबुं बाकी छे. १०५ छतां एटटुं शीखतां जे तते वखत लाग्यो उ तेनां करतां योमा वखतमांज तुते सघळो दृष्टिवाद सुखे शीखी रहीश. बाद तेणे अनुक्रमे बे वस्तुळणा दश पूर्व जणी लीधा. एवामां तेने साथे लइ तेना गुरु १ विहरता विहरता पाटलिपुत्रमा आवी बाहेरेना उद्यानमा उता. १०६-१०७ त्यारे स्थूलजद्रमुनिनी यदा वगेरे सात बेनो ते गुरु तथा ते मोटा नाइने वांदवा माटे त्यां प्रावी. १०७ तेओए गुरुने वांदीने पूछयु के अमारो मोटो लाइ क्या ने ? गुरुए कबुं के पेत्री देव कुलिका ( देवकी ) मां आनंदित मने सूत्रपाठ गणतो थको रहेलो छे. १०७ हवे पोतानी श्री उपदेशपद. Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥4001 हिं-सो मओ अमरवास मणुपत्तो, सिरिवज्कानीयाहिं-तवेण जह देवया खित्ता. ॥ ११३ ॥ नीया महाविदेहं-जह पुट्ठा तत्य तित्थरायाणो, दो अज्झयणा णीया -एगं नावण विमुत्तवरं. ॥ ११४ ॥ एवं वंदित्ताणं गयान बीए विणंमि संपत्ते, नवसुत्तदेसत्यं वष्टिओ सो, न उदितइ-॥ ११५ ॥ जा सूरी, को हेल-तमजोगोसि त्ति तेणिमं नायं, कवे को पमानो-जो सो एवं वियंनेइ. ॥ ११६ ॥ न पुणो काहामि नण-सूरिणो जवि नो तुमं कुणसि, अन्ने काहिंति तो-किल्लेण कहिंचि पमिवन्नं-॥ ११७ ॥ चत्तारि नवरिमाइं पुव्वाणि पढाविलं ननण अन्नं -पाविजसु, वोचिला तो तंमि उवेय वत्थूणि. ॥ ११७ ॥ दसमस्त अंतिमाई सेसं अणुमन्नियं सुयं सव्वं, श्ह गणियारहियाणं-पगयं वेणश्यबुद्धीए. ॥११॥ ७ बनाने त्यांावती जो ने तेमने पोतानी ऋद्धि शक्त बताववा माटे स्थूलनद्रे सिंहनो आकार धारण कर्यो तेने जोइने तेओ गुरु पासे नाशी जड़ कहेवा लागी के हे पूज्य, अमारा जाने तो सिंह खाइ गयो लागे ने. गुरुए कह्यु के जे सिंह खरेखर सिंह नथी पण स्थलनद्रज छे. ११०-१११ त्यार तेश्रो त्यां पाछी आवीने तेने वांदीने त्यां रही त्यारे स्यूलनद्रे तेमने कुशळवार्ता पूछ। एटले तेमणे कयु के श्रीयके दीक्षा लीधी. वाद अमे पर्वना दिवसे तेने अपवास कराव्यो तेयी ते मरीने स्वर्गवास पाग्यो तेथी तेना घातथी मराने अमे तप करी शासन देवीने बोलावो. तेणी यशाने महाविदेहलइ गइ. यहाए त्यां रहेला तीर्थकरने ते वात पूर्वी. वळतां तेणी त्यांची नावना तथा विमुक्ति नामे बे अध्ययन लइ आवी. ११५–११३-११५ एवी रीते ते बेनो तेने वांदीने स्वस्थाने गइ. बाद वीजा दिने स्थूलभद्र नवा श्रुतनो- मद्देश देवा गुरु पासे ऊनो रह्यो, बतां गुरुए नद्देश्यु नहि, त्यारे तेणे कारण पूछतां गुरुए कह्यु के तुं अयोग्य उ. ते ऊपरथी श्री उपदेशपद. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ गाथादरार्थः-गणिका तथा रथिक उक्तरूपः-एकं ज्ञातं न पुन के . --सुकोससड्ढित्ति-सुकोशा प्रागेव या कोशानामतयोक्ता-श्राधा जिनशासनातिरूढातिशयश्रधाना-इति अस्माद्धेतोः स्थूलनगुणान्निरंतरं प्रशंसंती तां दृष्ट्वा रथिकेन तदाक्षेपार्थं आम्रलंबी प्रायुक्तप्रकारेण उिन्ना . तयाच-सिछत्थगरासित्ति -सिद्धार्थकरा शिस्थितसूच्यग्रेषु नाटयमादार्शतं, नणितं च शिक्षितस्य का :करतेति. (७) (मूळगाथा )-सीता सामी कजं-दीहं तण गब कुंचपश्वाणी, लेहायरियपणामण-अवहंमि तहा सुसिस्साणं. ॥ १० ॥ (व्याख्या )-सीया सामी दीहं च तणं अवसव्वयं च कुंचासोत्तिधारे केनचिणे जाणी बीईं के काले जे प्रमाद कयों तेनुं आ फळ मळ्युं छे. ११५–११६ स्थूलनद्रे कयुं के फरीने एम नहि करूं, त्यारे गुरुए कह्यु के जो के तुं फरी नहि करे तो पण बीजा करशे. बाद बहु कालावाला करतां तेमणे उपरला चारपू र्व जणाववा कबूट्युं पण कडं के ते बीजाते नहि नणाववा तेथी ते तथा दशमा पूर्वनी छेनी बे वस्तु स्थूलनांना साये विच्छेद पाम्या. ते शिवाय बाकीनुं सघळु श्रुत बीजाने जणाववा अनुझा आपी. इहां गणिका तथा रथिकनी वैनयिकी AA बुद्धि प्रस्तुत जाणवी. ११७–११७-११५... __(कथा समाप्त थइ.) हवे गायानो अक्षरार्थ करे छ.गणिका तथा रयिक जे कथामां वर्णव्यो छे ते मळीने एक उदाहरण गणवू, नहि के बे सुकोशा एटले पूर्वे जे कोशा नामे कहेली छे ते श्राद्धा एटले जिनशासनमा अतिशय अधावाळी थइ ए हेतु श्री उपदेशपद. १ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४०२ ॥ तू कलाचार्येण क्वचिन्नगरे कस्यचिन्नरनायकस्य पुत्रा अतिसन्मानदानगृहीतेन लेख्यादिकाःकळा ग्राहिताः - - संजातश्च कालेनातिभूयान् अव्यसंयोगः - बुब्धश्च राजाति तं व्यपरोपयितुं तत्र ज्ञातंच पुत्रैः -- - पंचैते जनेता चोपनेता च - यस्तु विद्यां प्रयच्छति, अन्नदाता जयत्राता - पितरः स्मृताः ॥ इति नीतिमद्वाक्यं कृतज्ञतयानुस्मरद्भिः - परिभावितंच तैः ( ग्रं. ३०००) यथा केनाप्युपायेन तमेवामुमतःस्थानान्निःसारयामः ततो यदा जेमिमा तोसौ तदा स्नानशाटिकां याचमानस्तैरुक्तः शुष्कायामपि शाटिकायां यथा शीता शिशिरा शाटी - किमुक्तं नवति - शीतकार्यं ते इति तथा दीर्घं तृणं द्वारा निमु · यी ते स्थूलभद्रना गुणांने हमेशा प्रशंसती ते जोड़ने रथिक तेने खेंचवा माटे आंबानी लूंब पूर्वे कहेली रीते कापी - ने कोशाए सरसवनी राशि ऊपर सूइयो गोलवी तेनी अणीओ ऊपर नाच करी बतायुं, अनेकां के शीखेलाने शं पुष्कर बे. ( मूळगाथानो अर्थ ) - की सामी तथा लांबु घास बतावी जणान्युं के चालतो था अने कूंजने प्रतीप एटसेमी ऊतारी जा के दरबार नाराज बे एम लेखाचार्यने हजु मारवामां आव्यो न हतो तेटलामां तेने ते चीजो आपीने जाते ते एवा सुशिष्योनी वैनयकी बुद्धि जावी. १८ की सामी - बांबु - घास अने अवळी कुंज ए धारमां कोइ कळाचार्यो कोइ नगरमां कोइक राजाना दी - राजा सन्मान तथा दानयी खुश थइने लेख्य वगेरे कळाओ शीखामी. बाद वखत जतां तेना पासे घणो पैश श्री उपदेशपद. Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४०३ ॥ खं दत्वा सूचयति यथा दीर्घ मार्ग प्रतिपद्यस्वेति. तथा कौंचस्य मंगनाथ स्नानस्य प्रदक्षिणतयोत्तार्यमाणस्य प्राक् तदांनी पइवाणित्ति प्रतीपुरूपतयोत्तारणं कृतं –प्रतिकूनं संप्रति ते राजकुसमिति लेख्याचार्यप्रणामनं कदाचार्यस्य शाट्यादीनां समर्पणं कुर्वतां अवधे अव्यापादनेद्यापि राज्ञा वधेऽकियमाणे इत्यर्पः–तथा शीता शामी इत्यादिना प्रकारेण सुशिष्याणां कृतज्ञतया सुंदरांतेवासिन्नावं प्राप्तानां वैनयकी बुद्धिःसंपन्ना . निःसृतश्चासावनुपहत एव. (७) (मूळगाथा)-णिव्वोदे पोसियजार-खुरकए रत्तितिसियदगमरणे, उज्ज णणावियपुबा–णाए तयगोणसुद्धो. ॥ १५ ॥ - (व्याख्या )-निव्वोदे इति नीबोदकेशाततयोपन्यस्ते-पोसियजारखुरकए जमा थयो तेयी राजाए बोलाइने तेने मारवानी इच्छा करी ते वातनी ते राजाना पुत्रोने खबर पनी त्यारे तेमणे विचार्य के जन्म आपनार, जनोइ आपनार, विद्या आपनार, अन्न आपनार, तथा जयथी बचावनार ए पांच बाप कहेवाय छे एम कृतझपणायी नीतिनुं वाक्य याद करीने तेमणे विचार्यु के कोइ पण उपाये एने वगर जोखमायो आ ठेकाणेयी रवाने करवो. तेथी ते ज्यारे जमवा आव्यो अने तेणे नावानुं कपहुं माग्युं त्यारे ते सूकेलु होवा छतां तेमणे कडं के सामी तो थेमी छे एटने के तने यहुँ पामवानुं छे तथा दरवाजानी सामे लावू घास धरी सूचव्यु के सांवे रस्ते रवाने थइ जा, तया पूर्वे मंगळ माटे न्हाएलाने सवळी बाजु ऊतारवामां आवता कौंच ( कुंजना आकारना कलश ) ने अवछं ऊतायु. ते वके सूचव्यु के दरबारनी तारा पर इतराजी छ. आ रीते ते कळाचार्यने हजी राजाए मार्यो न हतो तेटला श्री उपदेशपद. Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४॥ इति–कयाचित् प्रोषितनर्तृकया जारो विटो गृहे प्रवेशितः तस्यच कुरकर्म नखा - धुधरणादि कृतं . कृतेच रत्तितिसियदगमरणे इति-रात्रौ तृषितःसन्नुदकं स निहितान्यजलानावे नीबसविलं पायितस्तत्क्षणादेव मरणं तस्य संपन्नं . निश्चिते च तत्र नऊनं बहिर्देवत्रिकायास्त्यागः कृतः . दृष्टश्च लोकेन गवेषितश्च कथमसौ मृत इति . सजावं चालनमानेन तत्र के नचित् सप्रतिभेनोक्तं-" नवमेवास्य कुरकर्म नापितविहितं च दृश्यते " ततो लो. केनास्य नापितानां पृचा कृता-"केनास्य कुरकर्म विहितमिति ? ” कथितंचैकेन यथा मयामुकस्यगेहे इति . ज्ञाते च पृष्टा सा किं त्वया मारित इति ? साचाह " तषितो मया नीबोदकमेव केवलं पायितः ” . ततो लोकस्य नीवस्थितत्वग्विषगोनसोपमां शामी वगेरे आपनार ते सुशिष्यो कृतइपणाथी सारा शिष्य थया. तेमनी ए वुद्धि ते वैनयिकी जाणवी. एम ते कुमार जोखमायो त्यांची नीकळी शक्यो (मूळगायानो अर्थ )-पोषितनतका स्त्रीए जास्ने कोरकर्म ( हजामत ) करावी. राते तरस लागतां नेवनुं पाणी आप्यु तेथी ते मरण यतां तेने बाहेर फेंकाव्यो. बाद हजामोने पूछतां खबर पमी के त्वचामा निषवाळा गोनस सर्पना फेरथी ते मरण पाम्यो . १५ (व्याख्या )-नीबोदरेकना उदाहरण पेटे ए वात छे के कोश्क स्त्रीनो नो परदेश जतां तेणीए कोइ जारने घरमां बोलावी तेनी हजामत वगेरे करावी. बाद राते तेने तरस लागतां बीजं पाणी नहि मळवायी तेणीए तेने नेवानु पाणी पीवराव्युं. तेथी ते तरतज मरण पाम्यो. ते मरी गयो छेएम खातररी थतां तेणीए तेने देवकुलिकानी बाहेर नांखी दीधो. श्री मुपदेशपद. . Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४०५ ॥ धः प्रस्तुतबुद्धिप्रभावात् संपन्ना. (५) ( मूलगाया ) - गोरणं - घोडगजी हाइपमणमो उवरिं, मंदमई - हारे - रिजत्ति मंतिस्स अणुकंपा ॥ २० ॥ ( व्याख्या ) - गोत्ति गोणो घोरुगपडणं च रुक्खाओ इतिद्वारपरामर्शः. -तत्र क्वचिद् ग्रामे केन चिन्मंदभाग्येन निर्वाहोपायांतरमन्यदजमानेन मित्राद् या चितैर्बल वर्देनं वाहयितुमारब्धं विकालेच तेनानीयैते गावो मित्रस्य संबंधिनि गोटके हिप्ताः . तच्च मित्रं तदा जे मितुमारब्धं. लज्जया चासौ नोपसर्पितः दृष्टाश्च तेन ते वाटके क्षिप्यमाणाः -- अकृतततयश्च निर्गतास्ते ततो हताश्चौरैः – गृहीतश्च मंदनाग्यो - तेनुं ममनुं लोकोना जोवामां आवतां तेम तपाश करी के ए केम मरेलो बे ? पण तेनो कंइ पत्तो नमक्यो. एवामां त्यां कोइक बुद्धिमान् माणसें कां के आनी नवीज हजामत थएली देखाय छे, ते परथी लोकोए हजामोबोलावी पूछ के यानी हजामत कोणे करी छे ? त्यारे एके कछु के मे एनी हजामत अमुक ठेकाणे करी छे. ते जालोको ने पूछकेम तें एने मार्यो ? ते स्त्री बोली के एने तरस लागतां मे एने फक्त नेवानुं पाणीज पीवराव्युं छे. तेथी लोकोए तपास करतां त्यां विषमय चामकीवाळो गोनस सर्प मळी आव्यो एम प्रस्तुत बुद्धिना प्रजावधी - घळो पत्तो लाग्यो. ( मूळगायानो अर्थ ) - गोएना धारमां मंदमतिनो इन्साफ करतां मंत्रीने तेने सरल जाएगी मंत्रीने तेना पर - नुकंपा यावतां तेणे एवो जय प्राप्यो के मालेकनी आंखो कहाकवी' घोमावाळानी जीन कपावी अने मंदमतिना क श्री उपदेशपद. Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४०६ ॥ मित्रेण यथा समर्पय मे बलीवर्धन. असमर्पयमाणश्च राजकुझे नेतुमारब्धो यावत्तावत् प्रतिपथेन तुरंगमारूढः एकः पुरुषः समागच्छिति सच कथंचिचुरगेण भूमौ पातितः प लायमानश्च तुरग आहत आहतेति तटुक्ते तेन मंदभाग्येन कशादिना तामितः क्व - चिन्मर्मणि मृतश्च तत्कुणादेव – गृहीतश्च तुरंगस्वामिनाप्यसौ. संपन्नश्च गछतामेव विकालः उषिताश्च नगरबहिरेव तत्रच केचिन्नटा आवासिताः संति-सुप्ताश्च ते सर्वेपि. चिंतितं च तेन रात्रौ मम नास्ति जीवतो मोक इति वरं आत्मा उद्दद्धः इति प रिजाव्य देखिन वटवृक्षशाखायां आत्मा नलंबित:- :- साच निर्दुर्बला टित्येव त्रुटिता. पतितेन च तेन नटमत्तरको मारितः - तैरप्यसौ गृहीतः नीतिकरणे पर कोइ नटे ऊपरथी परुयुं. २० व्यायख्या. — गोण शब्दथी धार संजायुं छे. त्यां या वात ए बे के के कोइ गाममां कोइक नाग्यहीन माणसे पोतानो निर्वाह चलाववानो कोई बीजो उपाय नहि सूऊतां मित्र पासेयी वेल मागीने खेमवा मांगयुं. सांजे तेथे ते बे लो ते मित्रना वामामां बांध्या. ते मित्र ते वखते जमतो हतो तेथी पेलो मंदजाग्य शरमना लीघे तेना पासे नहि गयो उतां तेणे वेल वामामां पूर्या ते ते जोया हता. तो पण तेनी संचाळ न बीधी एटले तेओ बाहेर नीकव्या एटले चोरोए हरण कर्या. त्यारे ते । मत्रे पेला मंदनारगने पकमयो के मारा बेल मने सौंप. ते ज्यारे नहि सोंपी शक्यो त्यारे तेणे तेने दरवारमां खचवा मांड्यो. एवामां सामेथी घोभा पर चकीने कोइ माणस आवतो हतो तेने घोकाए कोइक रीते जमीन पर पानी दीघो घोको नाशवा माड्यो त्यारे तेो ब्रूम करी के “ मारो मारो ” ते परथी मंदभाग्ये घोकाने ताजाणो एवा ठेकाणे मा. श्री उपदेशपद. Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४०७ ॥ १ कथितं च यथावृत्तं तैः — पृष्ठोसावमात्येन प्रतिपन्नश्च सर्वं ततो मंत्रिणा निःप्रतिनोयमिति महतीमनुकंपां तं प्रति कुर्वता प्रस्तुतबुद्धिप्रावान्न्यायो दृष्टः– यथा — नेतुःकरणमिति — बलीवर्दविषये नेत्रोद्धरणं लोचनोत्पाटः कर्त्तव्यः - प्रथम निप्रायः — बलीवर्दस्वामी मंदनाग्यश्च नणितौ मंत्रिणा यथा द्वावपि जवंतावपराधिनौ. तत एकस्य बलीवर्दान् वाटके प्रक्षिप्यमाणान् दृष्टवतो नेत्रोत्पाटनं द्वितीयस्य च वावर्दानसमर्पिततो बलीवर्दप्रदानं दंग इति. – घोमगजीदाइ इति — अनेन घोटको दातव्यः घोटकस्वामिनंश्च घोटकमहताहतेति णितवतो जिह्वायाः बेदो दमः - पमणमो उवरित्ति—नटमत्तरकश्च तथा कश्चित् दंमीखंमेनात्मानमुद्दध्य पतनमस्योपरि करोतु एवं मंदजाग्यो व्यपहारे प्रवृत्ते - ऋजुरिति कृत्वा मंत्रिणोनुकं " र्यो के ते तरतज मरण पाम्यो. तेथी घोकाना मालके पण तेने पकड्यो तेप्रो बधा दरबार तरफ चालता थया तेलामां रात पी एटले ते नगरना बाहेरज रह्या. त्यां केटलाक नट ऊतरेला हता. हवे ते वधा सूइ रह्या त्यारे मंदभाग्ये राते विचार्य के जीवतां तो मारो बूटको नथी माटे मारे फांसो खावो सारो छे एम विचारीने दोरीना कटकायी पोताने वरुनी माळमां लटकतो कर्यो पण ते दोरी नवळी होवाथी ऊट दइ त्रूटी पकी तेथी ते मंदभाग्य नटना सरदार पर पड्यो एटले ते सरदार मरण पाम्यो तेथ। तेमणे पण तेने पककीने कचेरी मां ऊजो कर्यो. addalana ही संजळावी. ते परथी मंत्रिए मंदनाग्यने पूछतां तेणे ते सघळी कबूल राखी. त्यारे या निर्बुद्धि छे एम जाणीने मंत्रिने तेना ऊपर बहु दया आवतां तेणे या प्रमाणे व्यायाप्यो त्यां बेलनी बाबतमां आंखो काढवी ठरावी एटले के बेलना धणी अने मंदभाग्यने मंत्रिए कहां के तमे बन्ने गुन्हेगार छो, माटे जेणे बेल्लो - श्री उपदेशपद. Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ पा संपन्ना. नपुनरसौ दमित इति. (७) समाप्तानि वैनयिकीबुद्धिज्ञातानि. (७) नमः श्रुतदेवतायै. अथ कर्मजाबुझिज्ञातानि–कम्मयबुद्धीएविहु-हेराणियमातिया तदन्तासा; पगरिस मुवेति तीसे-तत्तो णेयंमि बहु सिद्धी. ॥ २१ ॥ (व्याख्या )-कर्मबुद्धावपि ज्ञातान्युच्यते. तत्रच हेरन्नियमाझ्या इतिहैरणियकादयः सौवार्णिकप्रभृतयः कारवः-किमित्याह-तदन्यासात सुवर्णघटनाॐ ने वामामां पूराता जोया तेनी आंखो काढवी जोइए अने बीजाए जबानथी वेव सोप्या नहि तेणे वीजा बळद बइ सों पा एम दंग करवामां आवे छे. वळी आ मंदनाग्य घोमो आपवो अने घोमीनो धणी के जेणे घोमाने मारो मारो पो कार्यु छ तेन जीन कापवी. तेमज कोइ नटनो मेतर दोरीथी पोताने बांधीने एना ऊपर पमो एम इन्शाफ चालतां मंद नाग्यने सरन जाणी मंत्रिने तेना पर दया लावी. तेथी तेनो दंम नहि कर्यो. . आ रीते वैनयिकी बुद्धिना दाखन्ना पूरा च्या . श्रुतदेवताने नमस्कार थानो. हवे कर्मजा बुद्धिना उदाहरणो कहे जे.-कर्मजा बुद्धि पेठे ए उदाहरण छे के सोनारा वगेरे तेवा अन्यासना योगे एटो के सोनु घमवा वगेरे कामना वारंवार करवामां आवता अभ्यासथी ते बुधिनी अतिशय हुश्यारी मेळवे छे. तेथी तेओने सोनु वगेरे पारखवामां ऊट फतेह प्राप्त थाय बे. तेज वात कही बतावे छे-सुवर्णनो वेपारी अज्यासना योगे राते पण सोनाने पारखे छे तेमज खेकुत पण श्री उपदेशपद. Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४०‍ ॥ दिकर्मणां पुनः पुनरनुशीलनात् प्रकर्षमतिशयमुपयांति प्रतिपद्यते तस्याः प्रस्तुतबुद्धेततः प्रकर्षात्- ज्ञेये सुवर्णादौ लघु ऊटित्येव सिद्धिः सुवणघटर्ना दिगोचरा तेषां संपद्यत इति. (छं) एतदेव जावयितुमाह-हेर मित्र हिरां - अन्नासाओ (सिंपि जाणेइ, एमेकरिसगो विदु - बीक्खेवाति परिसुद्धं ॥ २२ ॥ ( व्याख्या) - हैर एयकः हिरण्यपण्यप्रधानो वणिक् हिरण्यं दीनारा दिरूपकरूपं अभ्यासात् पुनः पुनरनुशीलनान्निश्यपि रात्रावपि जानाति यथेदं सुवर्णं पलादिप्रमाणं च वर्त्तते – एमेव त्ति - एवमेव — करिसगोविदुत्ति—कर्षको पि कृषीवललोक: बीजपादि बीजपं मुद्गादिबीजवपनरूप - मादिशब्दात क्षेत्रगुणान् तुल्यांतरतया च बीज निपातमुईमुखमधोमुखं पार्श्व जानाति — कीदृशमित्याह - परिशुद्धम विसंवादि - अभ्यासादेव. पूरती रीते बीज वाववा वगेरेना कामते जाणी शके बे, २२ हैर एक एटले सोनानो वेपारी दीनार वगेरे सोनाना चलणनो वारंवार कयल पायल करतो होवाथी राते पजा शके के सोनुं छे अने ते आटला वजननुं जे. एज रीते खेकु माणस पण मग वगेरे वाववानुं काम तथा यदि शब्दयी खेतरना गुणी तथा सरखे अंतरे बीज वात्र ते तथा अमुक बीज ऊंचं मुख राखी वा अमुक नीचामुखे वा ने अमुक पमखानुं राखी बाब ते बाबत अभ्यांसना सीधे चोकश रीते जाणे बे. एश् श्री उपदेश पाद Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ अत्रचेदमुदाहरणं-क्वचिन्नगरे केनचित् म्लेबाचरिणा मलिम्बुचेन कस्यचिविणपतेर्वेश्मनि रात्रौ छात्रं अष्टपत्रपद्माकारं पातितं निःकृष्टश्चार्थसारः-प्रनाते च स्वकर्मणा विस्मयमागतः स च शुचिशरीरः कृतशिष्टलोकोचितनेपथ्यश्च तदेशमागतो जनवादं श्रोतुमारब्धः-" अहो कुशलता धृष्टता च चौरस्य य इत्यं प्राणसंकटस्थानप्रविष्टोपि व्युत्पत्तिमान् वर्त्तते." .. प्रहृष्टश्चासावतीव समागतश्चात्रांतराने कर्षकः स्कंधारोपितकर्षणोचितकुशीयूपादिसामग्रीस्तदर्शनार्थं. दृष्ट्वाचोक्तमनेन—“ किं शिक्षितस्य करमिति” ? श्रुतं तस्करण-रुष्टश्च मनसा-अग्नो गृहीतशस्त्रस्तदनु मार्गेण-गतः क्षेत्रं-गृह हां आ उदाहरण :-कोक नगरमा कोइक म्लेच्छोना आचारवाळा चोरे कोइक पैशादारना घरमां राते अष्टदळ कमळना आकारे ख तर पामीने कीमती माल चोर्यो. मनाते पोताना ते कामयी विस्मय पामीने ते न्हाइ धोइ सारा माणसने ये ग्य कपमा पहेरीने ते ठेकाणे आवी लोकोनी वाणी सांजळवा मांड्यो. लोको कहेवा बाग्या के “ आ चोरी करनार चोरनी हुश्यिारी अने निमरता जुवो के जेणे आवा पागना जोखममा पेशीने पण आवी चतुरा श्री उपदेशपद. है वतावी छे." . तेयी ते खूब राजी ययो. एवामां त्यां खने खोयो तथा दांता वगेरे खेमनो सामान बने एक खेडुत ते जोवा आव्यो. तेणे जोड़ने कयु के शीखेलो करी शके तेमां शुं नवाइ छे ? ते वात चोरे सांनळी एटले गुस्से या हथीयार बइ तेनी पाउळ पड्यो पड्यो तेना खेतरमा पहोच्यो. त्यां तेणे तेनो चोटलो पकझी कयु के तने मार मारीश. खेकुते का Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४११ ॥ १ तोसौ केशेषु जणितश्च यथा त्वां मारयामि – पृष्टश्च तेन निमित्तं. निवेदितंचानेनात्मकृतपद्माकारज्ञात्रावज्ञारूपं. ततः कृषीवलेन - “ मुंच ऋणं दर्शयामि ते कौतुक मित्युक्त्वा पटं प्रस्तार्य स्ववचनं सत्यं कर्तुकामेन बीजानां मुष्टिभृता - नणितश्चौ - रः – “ पराङ्मुखान्यधोमुखानि ऊर्धमुखानि पार्श्वतोमुखानि एकाद्यंगुहांतराणि वा एतानि बीजानि विपामीति वदेवानुरूपं च तदिच्छानुरूपेण तुष्टश्च चौर इति. (६) ( मूलगाथा ) - एमेव कोलिगोविदु – पुंजा माणाइ विग मुइ, मोए परिवेसंतो- तुलं अन्नासो दे३. ॥ २३ ॥ -- "" ( व्याख्या ) - एमेव त्ति एवमेव को सिगोविदुत्ति को लिकोपि पुंजात् सूत्रपिंकरूपात् दृष्टास्तगृहीताघा- मानादिमानं तंतुप्रमाणं - आदिशब्दात्तन्निः पारण पूछयुं त्यारे तेणे पोते करेला पद्माकार खातरनी तें अवज्ञा करी ते कारण जणाव्यं. त्यारे खेडुए कहुं के योकी वार मने बूटो मूक तो हुं तने कौतुक बतां एम कहीने पोतानो बोझ खरो करवा माटे तेणे कोयल ऊधामी वीजनी मूत्र जरीने चोरने कछु के तुं कहे तो एमन अवळां वायुं, कहेतो नीचा म्हो करी वायुं, कहे तो ऊंचा म्हो करी बाबूं, कहे तो पखाना वा ने कहे तो एक एक आगळना आंतरे वावुं. माटे तारी मरजी प्रमाणे बाद तेनी इच्छा प्रमाणे तेथे ते वावी प्राप्या एटले चोर खुशी थइ चालतो थयो . ( मूळगायानो अर्थ ) - ए प्रमाणेज वणकर पण सूत्रनी दीथी तेनुं बरोबर माप जाली व्यञ्ज तेमज रसोयो दोथी परसतां थकां बधाने सरखं पिरसे बे. २३ ( व्याख्या ) - एज रीते कोलिक एटले वणकर पण पुंज एटले सूत्रनी दमी जो अथवा हायम-लते श्री उपदेशपद. - Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४१ ॥ द्यपटप्रमाणं च अविकन्नमव्यभिचारि मुणति जानीते. तथा मोए इति–दा परिवेषयन् निपुणसूपकारः तुल्यं महत्यामपि पंक्तो समं अन्यासतो ददाति नपुन हीनमधिकं वा. - (मूलगाथा)-मोत्तियनक्खेवेणं-- अन्जासा कोलवालपोतणया, घमसगमारूढस्सवि-एत्तोच्चिय कूवगे धारा. ॥ ॥ (व्याख्या)-मोत्तिएत्यादि-मौक्तिकोदोपेण मुक्ताफलस्योोत्पाटनेन अज्यासात पुनःपुनः प्रोतनानुशीलनरूपात्-कोतवालपोतणया इति–कोलवाले शकरकंधराकेशरूपे प्रोतना प्रवेशनं मौक्तिकप्रोतका हि सिझतक्रिया अधस्तादूर्ध्वमु खं क्रोडकेशं धृत्वा ऊर्ध्वमुखं मौक्तिक विपति यथा नूनं तत्र प्रवेशं बंजत इतिऊपरथी ते मान एटने केटलां तांतणा थशे तेनु माप तथा आदि शब्दथी तेमाथी कपहुं वणाशे ते बरोबर जाणी ये ने. तेमज कोइ वमे पिरसनार हुरियार रसोयो मोटी पंगतमां पण अज्यासना योगथी जणुं के अधिक नहि पिरसतां सरखंज पिरसे छे. (मूळगायानो अर्थ )-वळी मोतीने ऊगळीने सूवरना वालमां परोक्यूँ तथा गामा पर रहीने झवामां सरखी धार पाझवी ते पण ए बुद्धिथीज थाय छे. २४' ... मोतीने ऊंचे ऊछाळीने अभ्यासथी एटने वारं वार परोक्वाथी शुवरना गलाना वाळमां परोववं. जे माटे मोती र ने परोवनारनी एवी हथरोटी पी रहे छे के नीचे वाळ ऊतुं धरीने ऊपरयी मोती एवी रीते नाखी धे जे के खरेखर ते तेमांज पेशी जाय छे. श्री उपदेशपदः Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ४१३ ॥ तथा धृतशकढारूढस्यापि निपुणवणिजः - एत्तो च्चियत्ति — अतएवान्यासादेव कुतपे धारा घृतप्रवाहरूपा उपरिष्टान्युक्तवतोपि निपतसि. (छ) . ( मूलगाथा ) - पवए तरंचागा — सम्मं तरणं नमि वा एयं, तुलाए पुण तुम्ह - मणायसंधिंडुयंचेव ॥ २९ ॥ ( व्याख्या)—प्लवकस्तारकस्तर कांकत्यागान्नदी सरोवरा दिजलेषु सम्यकू - यमब्रुवन्नेव तरणं प्लवनं नसि वा आकाशे तत्तरणमन्यासात् करोति. तुन्नाए ३ति तुन्नावायस्तुटितवस्त्रादिसंधानकारी पुनः तुम्हाणति तुम्ह्मणं वस्त्रसंधानं अ ज्ञातसंधि परेरनुपलक्षितविनागं हुतं चैव शीघ्रमेवान्यासात् करोति यथा गवता स्कंधवस्त्रस्य - वळी घीनों गामा पर चमेल हुशियार बेपारी एज अभ्यासना योगे दबामां घीनी धार ऊपरथी मूंके छे तो पमांज के बे. तय ( मूळगाथांनी व्याख्या ) - तारुओ तरवानुं साधन पकतुं मेल्ली बरोबर तरे छे ते अथवा आकाशमां तेरे छे ते तथा संघ मालम नहि पये ते रीते ऊट वारमां कपकुं तुबुं ते कर्मजा बुद्धि छे. are तरवारना साधन बोकी नदी तथा तळावर्मा बुडया वगर बरोबर तरे छे अगर आकाशमां पण महावरा थी कमी शके छे तेमज तूटेयुं सांधनार बीजाने सांधानी खबर नहि पमे तेम ऊट वस्त्रने ऊटवारमां सांधी ये छे जेमके नगवान्ना खांधनुं वस्त्र संधायुं हतुं ते एम वात छे के जगवान् महावीर संवच्छरीदान दइ दीक्षित यया ते वखते इंद्रे तेमना स्कंधपर श्री उपदेशपद. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४१४॥ SORBAD तथाहि लगवान महावीरः सांवत्सरिकदानपूर्व प्रतिपन्नव्रतस्तत्कालमेव शकारोपितस्कंधप्रदेशदेवदूष्यःकुंग्रामाद्बहिर्देशे विहरन् दानकालासन्निहितगृहस्यपर्यायमित्रब्राह्मणेनागत्य प्रार्थनयोपरुछ सन् तस्मै देवदृष्यार्द्ध ददौ. साधिकवाते च सुवर्णवानुकानदीतटप्ररूढवृतकंटकापात् नूमौ पपात द्वितीयम:. गृहीतं च तत्तेनैव पृष्टसग्नेन ब्राह्मणेन. समर्पितं च खंहितयमपि तुन्नवायस्य. तेनापि तथा तदात. संधि योजितं यथा लब्धप्राच्यवनप्रमाणमूल्यं संजातमिति. (७) (मूलगाय)-वड्ढश्रहारदारुग-पमाणणाण महवेहदक्खत्तं, एमेव पूश्यंमिवि-मसादले मुणेयव्वं. ॥१६॥ ( व्याख्या)-वर्षके रयकारस्य रयादिदारुकप्रमाणज्ञातं रथादेः रथशिबिका देवकूष्य मेट्युं तेश्रो कुंमग्रामयी बाहेर विहरवा साग्या. हवे दानना वखते गेरहाजर रहेल एक ब्राह्मण जे * गृहस्थ पणामांचगवाननो मित्र यतो हतो तेणे जगवान्ने खूब प्रार्थना करी एटले तेमणे तेने देवदूष्यमांयी फामी अझै आ प्यो. बाद कंशक काफेरो एक वर्ष व्यतीत थतां सुवर्णवालुका नदीना कांठे जगेला कामना कांटाथी खेंचाइने बीजो नागजमीन पर पो गयो ते पण पूठे फरता ते ब्राह्मणे बस्ने बे कटका कोइ तुणनारने आप्या. तेणे ते कोइने सांधनी खबर न प तेम सांध्या तेयी ते प्रथम प्रमाणे लक मूल्य थया.. . (मूळगाथानो अर्थ ) सुतार जे रयादिकना लाकमानुं माप अगाउयी जाणे छे ते तथा ते तैयार करवामां तेनी हुशियारी तेमज कंदोइने अमद वगेरेना बोटना मापनी जे खबर होय जे ते पण ए वुद्धि जाणवी. ५६ (व्याख्या)-वर्द्धकि एटले रथ घमनारने स्थ, पालखी, गामीनी धुसरी वगेरे घमतां तेमां जोइता लाकमाना श्रो उपदेशपद. Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४१ ॥ यानयुग्यादेघटयितुमारब्धस्य दारुकाणां काष्टानां दखजूतानां यत् प्रमाणं तस्याविज्ञानं प्रपद्यतएव.-अथवेति पक्षांतरे श्ह रथादौ निर्मापणीये यद्दवत्वं निर्माणशीध्रत्वमच्यासाद्भवति.-एमेवत्ति—एवमेव प्रागुक्तहैरण्यकादिवत् पूतिकेत्तिकादविके माषादिदो माषमुद्गगोधूमचूर्णादौ पक्तुमिष्टनोजनयोग्ये प्रमाणज्ञानंदकत्वं वा मुतिणव्यं प्रस्तुतबुद्धिप्रनावादिति. (७) (मनगाथा)-धमकारपुढविमाणं-तह सुक्कुत्तारणं सयराहं, चित्तकरे एवंचिय–वमातो विचलिहणं. च. ॥२७॥ (व्याख्या.)-घटकारः कुंनकारःपृथ्वीमानं घटादिदखनूतमृत्पिमप्रमाणं जानाति यथा श्यता मृत्पिमेन श्यं घटादिनिष्यत्तिः निःपत्स्यते-तथेति समुच्चये-समापनुं ज्ञान थाय ने ते अथवा तो ए रथ वगेरे जलदीमा तैयार करी आपवानी हुशियारी रहे जे ते पण अभ्यासथी थाय छे. तेमज पूर्वे कहेला सोनारा वगैरेनी माफक कंदोइ पण अमद मग के घऊंनो बोट पकववा योग्य जोजनमा केटला प्रमाणनुं जोशे ते जाणी शके डे तथा जे चपलता बतावे जे ते पण आ बुद्धिनोज प्रजाव जे. मूळगाथानो अर्थ--कुंजार घमामा केटली माटी जोशे ते जाणी शके ने तेमज चक्र ऊपरथी जराक सूकुं थतां तेने उतारी से छे तेमज चीतारो रंग उ.परथी चित्रनुं माप करी व्ये छे तथा विद्ध एटले जीवता जेवा प्राणिन चित्र चितरी शके छे ते पण आ बुद्धिज छे. २७. . . ( व्याख्या ) कुंजार घमा वगेरेना माटे माटीनुं माप जाणे जे एटने के आटनी माटीमाथी अमुक घमा वगेरे उपदेशपद.. PARYA Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४१६॥ क्कुत्तार वंति-शुष्कस्य मनाक् शोषमुपागतस्य नामस्य घटादेरुत्तारणं चक्राइवरकेण पृथक्करणमित्येतत्-सयराहंति-शीधं करोति.-चित्तकरेएवंचियत्ति-चित्र करीप्येवमेव वर्णात् वर्णकापक्तपीतादेः सकाशात् प्रमाणं लेखनीयचित्रस्य बुध्यते, विधस्य जीवतश्व गजतुरंगमादेजीवस्य लेखनं करोति प्रक्रांतबुद्धिमाहात्म्यात् चः समुच्चये. (७) .....समाप्तानि कर्मजाया मतेर्शातानि, (७) ॐ बनी शकशे ते जाणे , तेमज चाक परथी घमा वगेरे वासण जराक सूका यया के दोराथी कापी ऊट बूटा करी ये छे. वळी एज रीत चितारो पण राता पीळा वगेरे रंग ऊपरथी आलेखवाना चित्रनुं माप जाणी शके छे, अने क्फि एटले जीवता होय तेवा हाथी घोमा वगेरे प्राणिोना चित्र काढे छे ते पण आ बुद्धिनोज प्रजाव छ, . आ रीते कर्मजा बुद्धिना उदाहरणो समाप्त यया उ. श्री उपदेशपद. Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रजावना करवा माटेनां सुंदर पुस्तको सस्तानावे मळवावें तेमज दरेक जातनां जैनधर्मना पुस्तको माटे लखो शा मोहनलाल रुगनाथ जैन बुकसेतर पालीताणा.