SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ३६१ ॥ लेख इति द्वारोपक्षेपः तत्र लिपिविधानं लिपिनेदो ज्ञातं. तच्चाष्टादशधा - हंसली भूलिवी - जक्खी तह रक्खसी य बोधव्वा, उड्डी जवाणि फुरुक्की - कीमी दविमीय सिंधविया ॥ १ ॥ मालविणी नम नागरि--नाम लिवी पारसी य बोधव्वा, तह अनिमित्ता या — चाणक्की मूलदेवी य. ॥ २ ॥ तद्देशप्रसिद्धाश्चैताः तत्र कि केनचिद्राज्ञा कस्य चिडुपाध्यायस्य निजपुत्रा लिपिशिक्षणार्थं समर्पिता:-ते च डुर्ललिततया आत्मानं नियंत्र्य न शिक्षितुमुत्सहते, अपि तु क्रीत्येव. ततो राजोपासंननीरुणा उपाध्यायेन - वट्टक्खेमे मक्खरा विदति - वृत्तानां खटिकामयगोलकानां खेलनं कीमनं तैः सह कृतं तेन चारपातानुरूपपतद्गोलकके बिंदु पी गया होय ते वांची सेवा. त्यां लेख शब्दथी धारने याद करेल छे. लिपिविधान एटले जूदी जूदी लिपियो प्रहार े. हंस लिपि, भूतलि पि, लिपि, राक्षस लिपि, नड्डी, यवनलिपि, फुरुकी लिपि, कीम लिपि, द्राविमी, सिंधी, माळवी, नटलिपि, नागरी लिपि, लिपि (गुजराती), फारसी ; तेमज अनिमित्तलिपि, चाणाकी लिपि तथा मूळदेवी (मूमी) लिपिएम अढार लिपि बे.. एबी ते ते देशमां चालती प्रसिद्ध छे. त्यां एक राजाए एक शिक्षकने पोताना पुत्रो लिपि शीखानवा माटे सोप्या. तेयो रमतियाळ होवाथी कब जामां रही शीखवा तैयार यता नहि, किंतु रमतमांज मन राखता. त्यारे राजाना उपकाथी मरता शिक्षके माटीना ४६ श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy