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________________ || 200 || मचे निवेश्यं तो रां, आहूय ते सु-नरिओ य कर्म परिक्वा हि ॥७॥ तोरसि रजक - दाए गेण ग्रहसयवारे, जिसु निरंतर मस्सि - एकेकं, देमि तो जं. ॥ ८ ॥ जह तासिं अस्सी तस्स जो बहो चिरेणावि, तह मयत्तं जीवा - जाण जवगहणलीलाएं. ॥ ए ॥ (इति) (छ) जोइए (तो अनुक्रमे राज्य मळशे.) ७ बतां तुं राज्य माटे उतावळा होय तो दरेक धार दी एक एक दावी वार तुं जीते, तो तन हु राज्य आपुं. ८ जेम ए तमाम सीओ पर तेने लांबा बखत बमे पण जय मन्त्रो ते नवरूप जंगलयां फरनारा जीवोने मनुष्यपणं जावं. U अर्थ : एकसो न जूए त्ति द्वारपरामर्श :- स्थविरनृपस्योक्तनामकस्य सुतो नंदनः राज्याकांची संपन्नस्ततोsar पित्रा प्रोक्तः - यथा - सद्सययंसि दोयणेति इयं सन्ना त्वया तदा जिता वष्टितं वारान् एकैकारिकेन दायेन जायते ततश्च राज्यं ल मर्दसि नान्यथा - इतो संभावनीयात् जयान त्ति समाजयात् अधिकः समधिको 5तया - मुहाए तिमुधिकया शुद्धधर्माराधनतया महामूल्य वि रेहणत्यथः नेयो ज्ञातव्यो मनुजलान इति. करे बे : राजानो पुत्र राज्य मेळववा आतुर थयो, त्यारे तेना वार दरेक असी एक एक दाववमे जीते अने वे संग्रहगायन तपदे द्वार याद कर्यो छे. ते जितशत्रु नामना स्थविर के सा तु त्यारे जोत्यो गाय के ज्यारे एकसो ते त्यारेज तने राज्य म नहितो नहि. या असंजावनीय समाजययी पण फोकटमां एटने शुद्धधर्मनी आराधना रूप महामू आप्या वगर मनुष्य जन्म मळवा अधिक दुर्लन जाए वो. श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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