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________________ ॥२८॥ लिओ विढत्तमाहप्पो, रयणवई रपिनमणो----कोमुइ मिव पुणहरिणको. ॥ ५० ॥ वरधणुणा कहिय मिणं-वृत्तंतं सोन मुम्मणो कुमरो, जाओ रयणवईए-नवार अणिमालियाएवि. ॥ २१ ॥ मज्जइ नक्षिणीदासत्यरेवि चंदणरसेण सित्तोवि, सो तिव्यविरहजनणालियो णो णिव्वुइ बहइ.॥ २०२॥ अन्नंमि दिणे पुरबाहिराज देसात वरधणू कुमरं, आगम्म लण णो श्ह-तुम्ह मुवदाण मुधियं ति. ॥ २३ ॥ जम्हा कोसनवणा-दीक्षण गवेसवाकए तुक, इह पुरिसा पेसविया-कओ य पुरसामिणा जत्तो-॥ ॥ सव्वत्तो अम्ह गवेसणंमि श्य सुम्मए जणे वाओ, तो णायवश्यरेणं-सागरदत्तेण नूमिहरे.---- ॥ २५ ॥ संगोविया वेवी----पत्ता रयणी श्री उपदेशपद. ते पारीते के, वधता महात्यमवालो वरधनुना साथे रहेलो ब्रह्मराजानो पुत्र, पूनमनो चंद्र जेम कौमदोसाथे रमे तेम रत्नवतीना साथ रमवा चाहे. २० वरधनुए कहेलो आ वृत्तांत सांजळो कुमार अपजोयनी रत्नवती ऊपर पण उत्सुक यह पर पडयो. २०१ ते तीव्र विरहाग्नियी व्याप्त था नलिनी दळना सायरामां सूतो यको अने चंदनना रसे बाप्यो यका पण वळवा लाग्यो अने क्यांपण शांति पामतो न हतो. २८२ एवामां एकदिने वरधनु बाहेरथी फरी श्रावीने कुमारने कहेवा बाग्यो के तारे अहीं रहेवं वीक नयी. १०३ केमके कोशळपति दीर्घराजाए तने शोधवा यहां माणसो मोकट्या छ, अन हांना राजाए पण चोमेथी आपणने पकवा यत्न कयोंचे एम लोकमां वात संजळायछ, आ वातनी सागरदत्तने खवर से पमतां तेणे तेमने यरामां संताड्यो.२०४-२०५ एम तेणे वे जणने पावीराख्या बाद रातपमा एटो काजळ अ
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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