SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ४॥ RPORN रधणुणा वि स बेहो--विहाडिओ पेहिया तहिं गाहा, अइतिव्यवस्महुस्साहकारिया एयरुव त्ति. ॥ २५३ ॥--जहा–परियज जइ हियए--जणेण संजोय जणियजत्तेण, तहवि तुमचिय धणियं-रयणवई महइ माणेचं. ॥ २४ ॥वरधणुणो चिंतासंगयस्स कह मेयलेहनावत्थो, णायव्वो, बीयदिणे--पव्वगा आगया एगा. ॥२५॥ कुमरस्स सिरे कुसुमे--तह क्खए निक्खिवे नई य, पुत्तय वाससहस्स-जीवसुतो वरधणुं नेइ,- ॥ २५६ ॥ एगते तेण समं–किंचिवि सा मंतिनं झमित्ति गया, तो पुबई कुमारो-घरधणु मेयाइ किं कहियं? ॥ २५ ॥ ईसीसि हसिरवयणो-तो साहर वरधणू जहा एसा, पव्वक्ष्या पमिलेहं-मं मग्गश्तस्स देहस्स. ॥ २५ ॥ नणि यं मए जहेसो-सेहो निवबंनदत्तनामंकी, दीस ता कहसु तुम–को एसो बंनद. कामने जगामनारी आवी रीतनी एक गाया दोती. २५३ ते गाया आ रीते हतो. जो के नेटवाने प्रयत्न करतो बीजो माणस पोताना मनमां बहुए प्रार्थना करे छे, उतां रत्नवतीने खरेखर तारेज परणवी जोइए. २५५ त्यारे वरधनु विचारमा पड्यो के आ लेखनो नावार्थ शी रीते नालम पमशे ? एवामां वीजा दिवसे एक प्रत्राजिका त्यां आवी. २५५ तेणी कुमारना माथापर फूल तथा अदत नाखीने बोली के हे पुत्र, हजारवर्ष जीवतो रहे. एम कही वरधनुने एकांतमां तेको तेना साये कंइ छानी बात कर ऊट रवाने थइ.त्यारे वरधनुने कुमार पूछवा लाग्यो के एणीए शं कयुं ? २५६-३५७ त्यारे वरधनु जरा हसतामुखे बोल्यों के ए प्रवाजिकाए मारी पासेथी ते लेखनो प्रतिशेख 6 ( उत्तर ) माग्यो. २५७ में कयु के ए लेखमा ब्रह्मदत्तराजानु नाम ले, माटे कह के ए ब्रह्मदत्त ते कोण ? २५० ते श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy