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________________ ॥ ५॥ तो ति. ॥ ॥ नणियं तीए सुण सोम-किंतु न तए पयासियव्व मिमं, अत्यि इहेव पुरवरे-रयणवई सेट्रिणो धूया. ॥२६०॥ सा बालकालो निश्च-मइ निका जोव्वणं समणुपत्ता, तिजगजनज्जयमम्महनिबस्स महसनलिसमं. ॥ २६१ ॥ दिदा दिणंमि अन्नंमि-सा मए किंचि किंचि कायंती, पल्हत्यियगंभयवा-चामे करपल्लवे विमणा-॥ २६२ ॥ ती समीवं गंतुं-पमता सा मए जहा पुत्ति, चिंतासायरनहरीहि-हीरमाणव्व तं नासि. ॥२६३॥ तो परियणेण नणियं-बहूणि दिवसाणि एव मेईए, विमणुम्मणा य पुटा---पुणो पुणो जाव न कहे,-॥२६३ ॥ जणियं तस्स सहीए–पियंगुलझ्याइ जगवइ जहेसा, वजंती तुज्ज न किंपि-अक्खि सक श्याणिं. ॥ २६५ ॥ ता साहेमि अहं ते--परमत्यं वोनियंमि, एकंमि,दिवसे कीलाहे श्री नुपदेशपद. बोली के हे सौम्य, सांपळ, पण तारे ए वात खुबी न करवी. आज नगरमां एक शेवनी रनवती नाम पुत्री छ. २६० A ते नानपणथी ज मारीसाये प्रीति राखेछे. अने हात्र ते त्रण जगत्ने जीतवा तत्पर मन्मयरूप जोबना मोटा नालासमान यौवन श्यने पामीछे. २६१ तेणी एक दिवसे अवळा हाये लमणे धर उदास थऽ कऽ ध्यान करती मे जोइ. २६२ तेथी । तेनीपासे जइ मे कयु के हे पुत्रि, तुं चिंतासागरमां डूबेनी देखायरे. २६३ त्यारे तेना परिजने कह्यु के आ रीते रहेतां घणा दिन थया . आम उदास रहेता तेणी पूज्या छतां पण का बोनी नहि, तेवामां तेनी प्रियंगुळतिका नामनी सखी बोली के हे जगवती, ए शरमना बीधे हमणा तमने कई कही शकती नयी. २६४–२६५ माटे हुंज तने परमार्य कॐ हुंलु के थोमा दिवसपर चंद्रावतार वनमा रमवामाटे पोताना बुद्धिळ नामना लाइसाथे ए गइ हती. त्यां कूकमानी लागे
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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