SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥१४॥ [१४], वश्र इति वैरस्वामी [ १५ ] परिणामिकी बुद्धिरित्यनेन वाक्येनात्र परिरिणामिकीबुधियुक्ता ब्राह्मणी देवदत्ता च गणिका गृह्यते [ १६ ]. चलणाहण-आमने-मणी य-सप्पे य-खग्ग-यूनिंदे, परिणामिएबुछिएएमाई होंतु दाहरणा. ॥५१॥ [टीका] चरणाहननं १७, आमंड इति कृत्रिमामनकं १७, मणिश्च १ए, सर्पश्च २०, खग्गत्ति खड्गः २१, स्तूपेंजः २५–पारिणामिक्यां बुझौ एवमाश्यत्ति एवमादीनि नवंत्युदाहरणानि. एवं च पारिणामिक्यां बुखौ सूत्रोपात्तानि घाविंशतिज्ञातानि एतान्यपि स्वयमेव सूत्रकृता जणिष्यंते इति नेहाश्रितो विस्तरः . [३] ७ रोहानी कथा सांप्रतमुद्दिष्ठज्ञातानां स्वरूपं बिनणिषुरादावेव नरहसिलेतिज्ञातसंग्रहगाथां स्वामी, अने परिणामिकी बुद्धिवाळी ए शब्दे करीने हां ब्राह्मणी तथा देवदत्ता गणिका लेवी.. चरणाहनन, आमम, मणि, सर्प, खम्ग, अने स्तूपेंद्र-ए वगेरे परिणामिकी बुद्धिना नदाहरण छे. ५१ टीका. चरणाघात, आमंग एटले बनावटी आमलकफळ, मणि, सर्प. खा, अने स्तूपनो इंद्र-ए वगेरे परिणामिकी बुद्धिना उदाहरणो छे. आ रीते परिणामिकी बुद्धि पेटे सूत्रमा बावीश उदाहरण सीधां छे. एमनी पण सूत्रकार पोतेज व्याख्या करशे एटले शहां अमे तेनो विस्तार नथी करता. श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy