SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥4001 हिं-सो मओ अमरवास मणुपत्तो, सिरिवज्कानीयाहिं-तवेण जह देवया खित्ता. ॥ ११३ ॥ नीया महाविदेहं-जह पुट्ठा तत्य तित्थरायाणो, दो अज्झयणा णीया -एगं नावण विमुत्तवरं. ॥ ११४ ॥ एवं वंदित्ताणं गयान बीए विणंमि संपत्ते, नवसुत्तदेसत्यं वष्टिओ सो, न उदितइ-॥ ११५ ॥ जा सूरी, को हेल-तमजोगोसि त्ति तेणिमं नायं, कवे को पमानो-जो सो एवं वियंनेइ. ॥ ११६ ॥ न पुणो काहामि नण-सूरिणो जवि नो तुमं कुणसि, अन्ने काहिंति तो-किल्लेण कहिंचि पमिवन्नं-॥ ११७ ॥ चत्तारि नवरिमाइं पुव्वाणि पढाविलं ननण अन्नं -पाविजसु, वोचिला तो तंमि उवेय वत्थूणि. ॥ ११७ ॥ दसमस्त अंतिमाई सेसं अणुमन्नियं सुयं सव्वं, श्ह गणियारहियाणं-पगयं वेणश्यबुद्धीए. ॥११॥ ७ बनाने त्यांावती जो ने तेमने पोतानी ऋद्धि शक्त बताववा माटे स्थूलनद्रे सिंहनो आकार धारण कर्यो तेने जोइने तेओ गुरु पासे नाशी जड़ कहेवा लागी के हे पूज्य, अमारा जाने तो सिंह खाइ गयो लागे ने. गुरुए कह्यु के जे सिंह खरेखर सिंह नथी पण स्थलनद्रज छे. ११०-१११ त्यार तेश्रो त्यां पाछी आवीने तेने वांदीने त्यां रही त्यारे स्यूलनद्रे तेमने कुशळवार्ता पूछ। एटले तेमणे कयु के श्रीयके दीक्षा लीधी. वाद अमे पर्वना दिवसे तेने अपवास कराव्यो तेयी ते मरीने स्वर्गवास पाग्यो तेथी तेना घातथी मराने अमे तप करी शासन देवीने बोलावो. तेणी यशाने महाविदेहलइ गइ. यहाए त्यां रहेला तीर्थकरने ते वात पूर्वी. वळतां तेणी त्यांची नावना तथा विमुक्ति नामे बे अध्ययन लइ आवी. ११५–११३-११५ एवी रीते ते बेनो तेने वांदीने स्वस्थाने गइ. बाद वीजा दिने स्थूलभद्र नवा श्रुतनो- मद्देश देवा गुरु पासे ऊनो रह्यो, बतां गुरुए नद्देश्यु नहि, त्यारे तेणे कारण पूछतां गुरुए कह्यु के तुं अयोग्य उ. ते ऊपरथी श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy