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________________ वहुविहं बहुं दे. ॥१॥ जे माटे का डे के विनयनम्र रही अंजलिबद्ध रही अने मरजी साचवीने आराधेल गुरु जूदा जूदा श्रुतशास्त्रो तरतमां शीखवे . (१) तथा नवहियजोगदव्वो-देसे काले परेण विणएण, चित्ता अणकूलो-सीसो___ सम्मं सुयं बहइ ॥२॥ वळी कधु डे के देशकासने योग्य चीजो पूरा विनययी बाबी आपनार, चित्तने पारखनार, अने अनुकूळपणे वर्तनार शिष्य रुमीरीते श्रुत पामी शके छे. (२) __ कथमित्याह-सूत्रानुसारतः सूत्रस्य व्यवहारलाष्यस्यानुसारोऽनुवर्त्तनं तस्मातु -खसुरवधारणे-ततः सूत्रानुसारादेव तदतिक्रमेण सूत्रदाने तषित्वमेव कृतं स्यात्. गुरुए शिष्यने केवी रीते श्रुत आपq ते कहे जे–मूत्र एटले व्यवहारजाप्य तेना अनुसारेज तेने नबंधीन 3 सूत्र शीखवे तो तेनो दुश्मना करतोज गणाय. जे माटे कहबु ने के: यथोक्तं-तत्कारी स्यात्सनियमा-त्तषी चेति यो जमः, आगमार्थे तमुलंघ्य -ततएव प्रवर्त्तते ॥ १ ॥ आगमात्सर्वएवायं-व्यवहारो व्यवस्थितः, तत्रापि हानिको यस्तु-हंताज्ञानां स शेखरः ॥२॥ - जे जम होय ते तेने करतो थको तेनो दुष्पन थाय छे. ते आगमार्थमां तेने नबंधीने ते वसे ज वर्ने छे. (१) आगमीज आ सघळो व्यव्हार चाले छे, माटे त्यां पण जे हर करे ते अजणनो सरदार जाणवो (२) श्री उपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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