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________________ ॥१६॥ पासे-कहियं सव्वं जहावित्तं. ॥ ४ए ॥ परितुठ्ठमणेण सम-तेण पसुत्ता समत्थरयाणिंपि, जाए पनायसमए-चिंतिय मिय मंति पुत्तेण-॥ ५० ॥ उंदष्टियं सुरूवंसमसुहउक्खं अणिग्गयरहस्सं–धमा सुत्तविबुधा-मित्तं महिलं चपेचंति. ॥ २१ ॥ श्य नातेण कया-घरस्स सा सामिणी समग्गस्स, किंव न कीरइ निक्कवरपेम्मपमिबहिययंमि ? ॥ ५५ ॥श्य पश्तक्कररक्खसमालागाराण मज्झओ केणं-तच्चागेणं कय मुक्करं ति नो मज्ज साहेह. ॥ ५३ ॥ ईसा एहि नणियं-सामी, पश्णा सुउक्करं विहियं, परपुरिससमीये जेण-पेसिया सव्वरीइ पिया. ॥ ५४ ॥ नणियं उहाणुएहि-सुउक्करंचेव रक्खसेण कयं, जेहा चिरं बुहिएणवि--न नक्खिया लक्खणिज्जावि. ॥ ५५ ॥ अह पारदारिएहिं—पयंपियं, देव मासिओ एको-मुक्करकारी HABAR श्री उपदेशपद. सघळी बनेली हकीकत कहेवा लागी. ४0 ते सांजळी ते खुश थतां तेनासाये ते आखीरातसूती. मनात थतां मांत्रिपुत्र आ रीते विचारवा लाग्यो. ५० मरजीमुजब चालनार, रूपवंत, सुखासुखमा साथे रहेनार, रहस्यने बुपावी राखनार एवा मित्र अने एवी स्त्रीने जागी ऊना जाग्यशाळिोज जुवेछ. ५१ एम विचारीने तेणे तेणीने घरनी धणियाणी करी. केमके निष्कपट प्रेममा मन राखनारना प्रत्ये शुं नहिकराय ? ५२ आ बावतमां पति, चोर, राक्षस, अने माळी ए चारमां कोणे तेणीने जतीमेली ने दुष्कर काम कर्यु ते मने कहो. ५३ त्यारे जेश्रो ईर्ष्यालु हता तेश्रो बोल्या के स्वामि, पतिए दुष्कर कयु के जेणे परपुरुषनापासे राते तेने जवा दीधी. ५४ कुधातुरो बोट्या के राक्षसे दुब्कुर कर्यु के जेणे ॐ खूब नूखेलो होवाउतां पोता खाज नहि खाधुं. ५५ पारदारिको बोढ्या के माळीज दुष्करकारी गणाय के जेणे राते पोते
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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