SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥२७॥ शिरश्चातयन्नुपलब्धः . तदनु कथंचित् तत्प्रदेशे समागतः कुलकः तेन सोपहासमेवं पृष्टः-" जो नोः कुबक, सर्वज्ञपुत्रकस्त्वं, तत्कथय किं निमित्तमेष सरटः शिरो धून्यत्येवं ?" तदनु तत्क्षणोत्पत्तिकीबुधिसहायः कुत्रकस्तस्यैवं. नत्तरं दत्तवान् यथा “नोजोः शाक्यवतिन्नाकर्णय-अयं सरटो नवंतमालोक्य चिंताक्रांतमानसः सन्नूमधश्च निनावयति-किं नवान् निकु-रुपरि कूर्चदर्शनात्, नत निकुकी-बंबशाटकदर्शनादिति. (७) ___कागे संखे वंचिय–विमाया सहि नण पवसादी, अम्ले घरिणिपरिबा-णिहिफुट्टे रायगुणाओ. ॥ ५॥ (टीका)—काक इति घारपरामर्शः-संखे वंचियत्ति-संख्याप्रमाणं एवहे के शा माटे सरमो आ रीते माथु धुणावे जे?' त्यारे ते चेन्नो तरतत्रुद्धिवाळो होवाथी उत्तर देवा लाग्यो के अरे ज्ञाक्यजिक्नुः सांजळ, आ सरमो तने जो चिंतामां पकी ऊंचे नीच जुवे ने के तुं मोढा पर दाढीमूछ होवाथ जितने के लांबी सामी पहेरेली एटने निक्षकी छ ? एमज कागमानी संख्या विन्नातटमा साउहजार जे. कणा थाय तो परदेश गया . बीजा कहे जे के निधि माटे स्त्रीनी परीका करतां वात फूटतां राजानी रजा या नए टीका-पूर्वना नदाहरण माफकन कोक राना कपमावालाए चेन्नाने पूछयु के विनातटनगरमां केटना कागमा छे ? त्यारे चेलाए कह्यु के अरे जिव ! साठ हजार कागमा आ नगरमां ने जिनु बोल्यो के जो काणा अधिका यशे तोश करीश ? चेलाए कडं के जो ताररी गणतीमां ऊणा थाय तो प्रोपित एटने देशांतरमां गया छ एम जाणवू, अने जो श्री नपदेशपद.
SR No.022167
Book TitleUpdeshpad Part 01
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherLalan Niketan Madhada
Publication Year1925
Total Pages420
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy