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शिरश्चातयन्नुपलब्धः . तदनु कथंचित् तत्प्रदेशे समागतः कुलकः तेन सोपहासमेवं पृष्टः-" जो नोः कुबक, सर्वज्ञपुत्रकस्त्वं, तत्कथय किं निमित्तमेष सरटः शिरो धून्यत्येवं ?" तदनु तत्क्षणोत्पत्तिकीबुधिसहायः कुत्रकस्तस्यैवं. नत्तरं दत्तवान् यथा “नोजोः शाक्यवतिन्नाकर्णय-अयं सरटो नवंतमालोक्य चिंताक्रांतमानसः सन्नूमधश्च निनावयति-किं नवान् निकु-रुपरि कूर्चदर्शनात्, नत निकुकी-बंबशाटकदर्शनादिति. (७) ___कागे संखे वंचिय–विमाया सहि नण पवसादी, अम्ले घरिणिपरिबा-णिहिफुट्टे रायगुणाओ. ॥ ५॥
(टीका)—काक इति घारपरामर्शः-संखे वंचियत्ति-संख्याप्रमाणं एवहे के शा माटे सरमो आ रीते माथु धुणावे जे?' त्यारे ते चेन्नो तरतत्रुद्धिवाळो होवाथी उत्तर देवा लाग्यो के अरे ज्ञाक्यजिक्नुः सांजळ, आ सरमो तने जो चिंतामां पकी ऊंचे नीच जुवे ने के तुं मोढा पर दाढीमूछ होवाथ जितने के लांबी सामी पहेरेली एटने निक्षकी छ ?
एमज कागमानी संख्या विन्नातटमा साउहजार जे. कणा थाय तो परदेश गया . बीजा कहे जे के निधि माटे स्त्रीनी परीका करतां वात फूटतां राजानी रजा या नए
टीका-पूर्वना नदाहरण माफकन कोक राना कपमावालाए चेन्नाने पूछयु के विनातटनगरमां केटना कागमा छे ? त्यारे चेलाए कह्यु के अरे जिव ! साठ हजार कागमा आ नगरमां ने जिनु बोल्यो के जो काणा अधिका यशे तोश करीश ? चेलाए कडं के जो ताररी गणतीमां ऊणा थाय तो प्रोपित एटने देशांतरमां गया छ एम जाणवू, अने जो
श्री नपदेशपद.