Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
की निर्जरा करता रहूंगा। पर कृपालु गुरुदेव उन्हें ज्ञान की दिशा में भी पुरस्सर-अग्रसर करना चाहते थे। यव राजर्षि पुन: पुन: यही कहकर टाल देते कि गुरुदेव ! आपकी कृपा ही मेरे लिये सब कुछ है । अब ज्ञान तो मुझे क्या प्राप्त होगा, बस, आप श्री की, स्थविरों की, ग्लान और शैक्षों की सेवा करता रहूं, यही आशीर्वाद दीजिये।
एक बार यव राजर्षि गुरु के साथ विहरणा करते हुए यवपुर के निकटवर्ती किसी नगर में पधारे । गुरु ने सोचा कि इनकी भ्रान्ति के निराकरण का यह समुचित अवसर है । इसलिये एक दिन मुनि यव को सम्बोधित कर गुरु ने कहा-यवमुनि ! यहां से तुम्हारी संसारपक्षीय राजधानी यवपुर बहुत ही कम दूर रही है । यदि तुम वहां जाओ और लोगों को प्रतिबोध दो तो बहुत अच्छा उपकार हो सकता है। सारी प्रजा तुम से परिचित है, अत: तुम्हें अपने प्रजाजनों और संबंधियों को धर्म लाभ, बोधिलाभ अवश्य देना चाहिये । यव राजर्षि मन ही मन बड़े संकुचित हो रहे थे कि मैं प्रजाजनों को क्या ज्ञान दूंगा, उन्हें क्या सुनाऊंगा? मुझे तो कुछ भी नहीं आता। फिर भी गुरु-आज्ञा को शिरोधार्य कर वे अपनी संसार पक्षीय राजधानी की ओर रवाना हो गये । मस्तिष्क में एक ही हलचल थी कि वहां जाकर क्या उपदेश सुनाऊंगा? प्रत्येक व्याख्याता को कथा के प्रारम्भ में कोई पद्य, गाथा अथवा आगमवाणी का उच्चारण करना आवश्यक होता है पर मुझे तो एक गाथा तक स्मरण नहीं।
इसी उधेड़बुन में मुनि आगे बढ़ते जा रहे थे। जिस मार्ग में वे चल रहे थे, मार्ग के दोनों और यवों (जौ) के खेत लहलहा रहे थे। किसान खेतों की रखवाली कर रहे थे । मुनि ने देखा कि एक गधा जौ खाने के लिये खेत के आस-पास चक्कर काट रहा था परन्तु खेत का मालिक हाथ में लाठी लिये बैठा था, इसलिये गधा जौ खा नहीं पा रहा था । गधे को जौ की ओर ललचायी दृष्टि से देखते अवलोकित कर किसान ने कहा
“ओहावसि पहावसि, ममं चेव निरक्खसि।
लक्खिओ ते अभिप्पाओ, जवं पेच्छसि गद्दहा।" अर्थात् गधे ! तू इधर दौड़ता है, कभी उधर दौड़ता है पर तू मुझे देख रहा है। मैं तेरा अभिप्राय जान चुका हूं, तू जौ खाना चाहता है।
जब यह गाथा यव राजर्षि के कानों में पड़ी तो उन्होंने सोचा, कम से कम इस गाथा को याद करलूं तो कथा के प्रारम्भ में तो कहने के काम आ ही जायेगी । ऋषि वहीं खड़े रह गये उस गाथा को ध्यान से सुनने लगे। प्राय: लाव द्वारा पानी खींचने वाले किसान लोग, एक ही शब्द या माणुस्संखु सुदुल्लहं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org