Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, मंत्र, तंत्र, कल्प, नाट्य, नाटक, ज्योतिष, लक्षण, आयुर्वेद, दर्शन एवं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषा के चरित्र-ग्रन्थ, रास आदि विविध साहित्य विद्यमान है संक्षेप में हमें यह कहना चाहिए कि इन भाण्डारों का सच्चा महत्त्व इनकी व्यापक और विशाल संग्रहदृष्टि के कारण ही है । जिस तरह इन विशाल भाण्डारों में विविध प्रकार के लेखन-संशोधन-रक्षण विषयक साधन एवं संग्रह है उसी प्रकार ताड़पत्र, कागज और कपड़े के ऊपर काली, लाल, सुनहली, रुपहली आदि अनेक प्रकार की स्याही से लिखे हुए अनेक आकार-प्रकार के अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण सचित्र - अचित्र पत्राकार, गुटकाकार कुंडली - आकार लिखे हुए ग्रन्थ विद्यमान हैं । अनेक प्रकार के सचित्र - अचित्र विज्ञप्तिपत्र, तीर्थयात्रादि के चित्रपट, यंत्रपट, विद्यापट आदि का विशाल संग्रह इन भाण्डारों में है। जैनों ने इन भण्डारों के संग्रह के लिये हार्दिक मनोयोग के साथ ही साथ अपनी सम्पत्ति पानी की तरह बहाई है । इसी तरह इनके संरक्षण के लिये भी उन्होंने सभी संभव उपाय किए हैं।
इस प्रकार ज्ञानभाण्डार, उनमें उपलब्ध सामग्री एवं ग्रन्थराशि तथा उनकी व्यवस्था आदि के बारे में हमने संक्षिप्त वर्णन यहां पर किया । विशाल एवं वैविध्यपूर्ण इन ग्रन्थरत्नों का परीक्षक सम्यक् उपयोग करें—यही हमारी आन्तरिक अभिलाषा है।
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શ્રી
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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