Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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धार्मिक चेतना के अग्रदूत
___- आचार्य श्री विजय नित्यानन्द सूरि भगवती सूत्र में एक प्रसंग आया है कि एक समय गणधर इन्द्रभूति ने भगवान महावीर से पूछा- “भन्ते । लवण समुद्र में अथाह जलराशी विद्यमान है, फिर क्या कारण है कि वह अध:स्थित इस जंबूद्वीप को डुबो नहीं पाता।"
भगवान ने उत्तर दिया- “ऐसा कभी हुआ नहीं और न होने वाला है।" इन्द्रभूति बोले, “क्यों नहीं भन्ते।"
भगवान- “इन्द्रभूति ! इस विशाल जम्बूद्वीप में अरिहंत, केवली, गणधर, लब्धिधारक, त्यागी, तपस्वी, यशस्वी, सन्त-सती तथा श्रावक-श्राविकाएं निवास करते हैं। उनके अद्वितीय जप-तप तेज प्रभाव से लवणोदधि अपनी मर्यादा का भंग नहीं करता और न कभी करेगा ही।" ... पूज्य गुरुदेव इसी परम्परा के अग्रिम पंक्ति के महनीय सन्त सेना के नायक हैं। ये वे सन्त हैं, जो सम्यक साधना के पवित्र पथ पर दृढ़ता पूर्वक बढ़ते हुए भीतरी शत्रुओं से लोहा लेते हैं। ऐसे सन्तों का जीवन अहिंसा, संयम एवं तप की त्रिपुटी में प्रस्फुटित-पल्लवित- पुष्पित तथा फलित होकर सर्वोच्चमुखी विकास के क्रम में समाज, राष्ट्र और जन-जन के हृदय मन्दिर को स्पर्श कर सिद्धस्थान पर्यन्त पहुंचता है।
वि. सं. १९१० में जब मुनिवर्य श्री गंगाराम जी व श्री जीवनराम जी का चातुर्मास जीरा ग्राम में हुआ तो आत्माराम जी का अन्तस जैन धर्म के संस्कारों से संस्कारित होने लगा। लगभग प्रतिदिन वे उपाश्रय जाते तथा धार्मिक कथाओं व प्रेरणाप्रद प्रवचनों को बड़ी तन्मयता से सुनते थे, यदि उस समय घर पर कोई आवश्यक कार्य भी होता तो वे दृढ़ता पूर्वक मनाकर देते और धार्मिक चेतना के अग्रदूत
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