Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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ही उसका निर्माण होता है। इसलिए गाय का दूध पीना माँस खाने के बराबर है। तुम अहिंसक नहीं माँसाहारी हो।
आचार्य श्री ने उतनी ही स्वस्थता से प्रतिवाद किया :
माना कि गाय या भैंस के खून से दूध बनता है। पर उसका मूल रूप परिवर्तन हो जाता है। खून को देखकर घृणा होती है दूध को देखकर नहीं । बच्चा माँ का दूध पीता है। क्या हम उसके विषय में कह सकते हैं कि वह अपनी माँ का खून पीता है, कदापि नहीं।
ईसाई लोग सूअर का माँस खाते हैं जानते हो सूअर क्या खाता है गटर की गन्दगी खाता है। अब हम यह तो नहीं कहेंगे कि ईसाई लोग सूअर नहीं खाते, गटर की गन्दगी खाते हैं, पर ऐसा नहीं कह सकते । क्योंकि गटर की गन्दगी सूअर के माँस के रूप में परिवर्तित हो जाती है। दूध पीने में कोई हिंसा नहीं है। हाँ सूअर के माँस खाने में निश्चित हिंसा और पाप है क्योकि सूअर को मारे बिना माँस प्राप्त नहीं हो सकता।
आचार्य श्री के उत्तर से ईसाई बहुत प्रभावित हुआ । उसका द्वेष प्रेम के रूप में परिवर्तित हो गया । वह उनके चरणों में गिर पड़ा और अपने कुतर्क के लिए खेद व्यक्त किया। विजयानंद और दयानंद
आचार्य विजयानंद सूरि म. और दयानंद सरस्वती दोनों समकालीन थे, दोनों अपने अपने समाज में प्रसिद्ध थे, दोनों प्रकाण्ड विद्वान थे और दोनों शास्त्रार्थी भी थे।
राजस्थान के सुप्रसिद्ध नगर जोधपुर में दयानंद सरस्वती के प्रवचनों की धूम मची हुई थी। वे अपनी खण्डनात्मक शैली से सभी दर्शनों का खण्डन करते थे । जैन दर्शन का भी उन्होंने खुलकर खण्डन किया। उस समय जोधपुर महाराजा के मंत्री एक जैन सद्गृहस्थ थे। उन्होंने दयानंद से कहा हमारे एक गुरु हैं आचार्य विजयानंद सूरि म. अभी उनका बीकानेर में चातुर्मास हो रहा है। वे महान् विद्वान हैं। आप दोनों एक साथ बैठकर चर्चा करें तो हमें भी कुछ नया जानने के लिए मिलेगा।
दयानंद जी ने उनकी बात स्वीकार कर ली- ठीक है, उन्हें जोधपुर बुला लो मैं चर्चा के लिए तैयार हूँ।
शास्त्रार्थ का दिन निश्चित हुआ आचार्य विजयानंद सूरि म. को जोधपुर आने में अभी बीस दिन शेष थे । इस बीच दयानंद जी ने कहा :- अभी उनके आने में पंद्रह बीस दिन और शेष हैं । तब तक मैं अजमेर हो आता हूँ । वे अजमेर चले गए।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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