Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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संगम था । स्वभुजबल से जिस प्रकार भूमिपति प्रसिद्ध होता है उसी प्रकार स्वमत-परमत शास्त्रों के गंभीर वेत्ता गुरुदेव अपने ज्ञान बल से जैन जगत में उपाध्याय यशोविजयजी के पश्चात् बहुश्रुत के रूप में विख्यात हुए । आपकी विशद् ज्ञान सम्पत्ति महासागर की अथाह सम्पदा को लज्जित करती थी।
श्रुतज्ञान का मूर्तिमन्त रूप होने के साथ-साथ आप ओजस्वी वक्ता, बेजोड़ तार्किकशक्ति सम्पन्न, महातपस्वी, नैमित्तिक, विद्यामन्त्रबल सिद्धियों के धारक, योगी, उत्कृष्ट कवि, संगीतज्ञ एवं सिद्धहस्त लेखक थे। संक्षेप में आपश्री आठों प्रवचन प्रभावक गुणों से समृद्ध एवं सूरिपद की आठों सम्पदाओं से संयुक्त थे । इस असाधारण प्रतिभा के कारण ही आपश्री जंगम युग प्रधान, न्यायाम्भोनिधि, तपगच्छनभोमणि के बिरुद से जगत् विख्यात हैं ।
___ हृदय तंत्री के प्रत्येक तार को झंकृत करने वाली परमात्मा भक्ति से सराबोर पूंजाएं, स्तवन, छंद एवं वैराग्यमय पदों की विशाल निधि आपकी कवित्व शक्ति की द्योतक हैं। इन काव्यों में प्राचीन राग रागिनी भक्तिरस के साथ गूढ तत्वों का निरुपण कर इनकी उपादेयता में शतगुणी वृद्धि की है।
यशैषणा से सदा परे रहकर आपने ज्ञान सम्पत्ति का व्यय लोककल्याण में किया। तत्व निर्णय प्रासाद, नवतत्व संग्रह, अज्ञान तिमिर भास्कर, आईतत्वादर्श, चिकागो प्रश्नोत्तर आदि महाग्रंथ आपके ज्ञानवैभव के उन्नत महल है। साहित्यिक भाषा, के पूर्ण अधिकारी होने के बावजूद भी आपके ग्रन्थों में कहीं पाण्डित्य प्रदर्शन नहीं, अपितु जन हितार्थ प्रचलित हिन्दी भाषा का प्रयोग हुआ है। आपके ग्रन्थ रत्नों का मनन कर दिग्गज प्रतिभाशाली विद्वान भी मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। जिन अकाट्य युक्तियों से आपश्री ने जैनदर्शन के त्रिकालाबाधित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है उन्हें पढ़कर विरोधियों को भी आपकी श्लाघा के लिए विवश होना पड़ता है। जैन साहित्य को समृद्ध करने में आपका योगदान सदैव अमर रहेगा। विप्लववादी योगी महान
षट्दर्शन प्रवीण, अगणित परिषह परंपरा सहिष्णु विजायन्द सूरी महाराज एक समर्थ क्रान्तिकारी थे, जिनके गर्जन से रुढ़िवादी सियारों के दिल दहल गए थे। आपने अकेले हाथों प्राणशोषक रुढ़ियों, कुरीतियों,रिवाजों और संकीर्णताओं के साम्राज्य की जड़ें हिलाकर समाज में नव चेतना का संचार किया।
वर्षों तक विदेशी विधर्मियों की दासता के दुष्प्रभाव से जैनशासन के स्थानकवासी एवं
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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