Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
आत्माराम
D जयचंद्र बाफना जिन प्रतिमा प्रतिभा प्रमाण ।
हर्षोल्लास और जय जयकार ॥ सुमनों की सुवास, रत्न जटित मणि माणेक का प्रकाश, हिमगिरी से प्रपातित शुभ्र मनहर प्रपातों का रणकार, चंचल अविचल बयारों का मंगल आशीर्वाद-पंजाब की पावन भूमि पर प्रसर प्रसर कर रहा था जयकार । वसुंधरा को नंदनवन बनाने, स्वरूप सजाने, अवतरित हुए थे आत्माराम !
बचपन बीतते न बीतते उद्वेलित था यौवन उपहार । यानी मादकता लसी वसंत श्री-भर लाई थी, बहार।
__ आत्माराम असाधारण मेधावी थे । पराक्रमी और पुरुषार्थी थे । अपने हित-अहित से भिज्ञ थे। कलह-कंकास के अशुभ परिणाम के पारखी थे। संसार के वेर झेर को पहिचानते थे ।विशेषतया पल प्रतिपल के जन्म मरण के साक्षी होने से उसके करुण क्रंदन की असह्य पीड़ा से परिचित भी थे। अत: एवं उन्होंने उनकी विरह व्यथा ने, सुंदरता सजने का संकल्प किया। भव्यता के भूप्रांगण में प्रविष्ठि पाने का पराक्रम किया।
उनकी ही भावना के अनुरूप इन्हें श्री जीवनरामजीका समागम हुआ। हृत्तल वसी उदारता कसमसी । संत सस्मित सुहास से वह विजडित हुई । कर्मण्य आत्माराम की सत्यमेव जयते हुई।
बात ही बात में अनवरत प्रयास में दस वर्ष गुजर गये फिर भी मन की साध नहीं सधी,
३८६
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org