Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्री विजयानंद गुण गुंजन
नील गगन अति सघन कृष्णघन- पटलावृंत था, घोर तिमिर से दिवसनाथ रथ छादित था । दिगदिगन्त कोई न उषा से आलोकित था, जो था, कोरा क्रूर अमित बीभत्स असित था ॥ अति अन्धकार मय मार्ग था, लाखों विघ्न समूह थे बचकर चलना भी कठिन था, आगे अरि के व्यूह थे ॥
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उस तम-पथ का देख कहीं पड़ता न अन्त था, घोर निराशा-पूर्ण भासता दिग दिगन्त था । क्रूर कुटिल का दुःसमाज फिरता अनन्त था, था कुचक्र सर्वत्र, दुष्ट-दल अति दुरन्तथा ॥ था जैन-जाति के पतन का, भीषण अवसर आ गया । सब ओर क्लेश का द्वेष का, दुःख घोर तर छा गया ॥
इस प्रकार जब निकट विकट संकट था आया, फैल रही अज्ञान तिमिर की थी जब माया । भूरि भ्रान्ति का भाव भूमि मण्डल को भाया, झूठेपन का तिमिर देशभर में था छाया ॥
श्री कन्हैलाल जैन
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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