Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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तब चमका सहसा तिमिर में, तेज कोटि रवि, चन्द का। अवतार परम पावन हुआ, श्री गुरु “विजयानन्द” का ॥ ज्योति जगमगी जगी अखिल तम-तोम हटगया, नील गगन द्युति मान हुआ, घन-पटल फटगया। खल-समाज लट गया, दुष्ट दल भाग चट गया, विघ्न-वृन्द छंटगया, द्वेष, दुख, दैन्य घटगया ॥ गुरुवर के तब नेतृत्व में, साज समुन्नति का सजा। फिर डंका भारतवर्ष में, जैन-जाति - जय का बजा ॥ मिथ्या तम को भेद सत्य-उजियाला आया, खल-कुतर्क उर छेदनार्थ बन भाला आया ॥ हुआ नष्ट विष-कुम्भ, अमृत का प्याला आया। नेता, गुरु, कवि, सन्त, ज्ञान बल वाला आया ॥ आकर उसने दिखला दिया, सत्य ज्ञान संसार को। था ज्ञान-दण्ड कर में लिये, मिथ्या-शल्योद्धार को॥ जैन-जाति चिर नींद-ग्रसित थी, उसे जगाया, सब आलस्य प्रमाद जाति का मार भगाया। द्वेष दूर कर हृदय प्रेम पय मध्य पगाया, कंकड़ दिये निकाल, रत्न को ढेर लगाया ॥ फिर “जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैंठ" कर। कर दिया सत्य सिद्धान्त यह, पतित-जाति- उत्थान पर ॥ अखिल देश में फिर वह जीवन-ज्योति जगाई, जिसकी उज्ज्वल छटा दूर देशों में छाई। भगवन ने वह पावन-जीवन-सुधा बहाई, जिसे पान कर जग ने तृप्ति अलौकिक पाई ॥ जो अमरीका यूरोप में, आज जैन का नाम है। श्री सूरि विजय आनन्द का ही, वह अद्भुत काम है।
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श्री विजयानंद गुण गुंजन
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