Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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सत्यपाल जैन
भारत ऋषियों, मुनियों, महात्माओं, त्यागियों, तपस्वियों, ज्ञानियों एवं आत्म-साधकों का देश है । उन दिव्यात्माओं के जन्म से यहां का कण-कण पवित्र और पावन है। इन्हीं महापुरुषों के कारण भारत युगों-युगों से विश्व का आदरणीय, पूजनीय एवं सम्माननीय बनता आया है। इसी भारत की पुण्य भूमि पर पंजाब के फिरोजपुर जिला के अन्तर्गत एक छोटे से गांव लहरा में हमारे शताब्दी नायक, पंजाब देशोद्धारक, न्यायाम्भोनिधि, विश्व वंद्य विभूति, न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी (आत्मारामजी महाराज का जन्म ई. सन् १८३६ में हुआ था ।
श्री विजयानंद सूरि एवं उनकी जन्म स्थली लहरा
वे केवल जैन धर्म और समाज के ही ज्योतिर्धर युग पुरुष नहीं थे, वे समग्र विश्व के ज्योतिपुंज थे । उन्होंने ई. सन् १८९३ में चिकागो विश्व धर्म परिषद् में अपने प्रतिनिधि श्री वीरचंद राघवजी गांधी को भेज कर समस्त संसार को शांति, सद्भाव, मैत्री, अहिंसा और सत्य का संदेश दिया था। यहां उन्होंने सदियों से धर्म के नाम पर चल रहे आडम्बर, मिथ्या प्रचार और मर्यादाओं से दूर चल रही धारणाओं और परम्पराओं का वास्तविक स्वरूप समझाया और शाश्वत धर्म का अमृतपान कराया। उत्तरी भारत और विशेष रूप से पुराने पंजाब में जहां सदैव विदेशी आक्रमणकारियों ने यहां की संस्कृति को तबाह किया, जैन धर्म के विरुद्ध भी जहां तरह-तरह के पंथ और संप्रदाय खड़े हुए जहां जैन धर्म के शास्त्र से असम्मत मूर्तिपूजा के विरोध को मानक रूप दिया गया उस स्थान पर पूज्य गुरुदेव थे जिन्होंने अपनी लेखनी और वाणी के
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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