Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्रीमद् विजयानंद सूरि (आत्मारामजी)
के नाम से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं एवं सभाएं
पंजाब देशोद्धारक, नव युग निर्माता, न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज सत्य धर्म की प्रतिष्ठा के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहे थे । उनमें वर्तमान को परखने की और भविष्य को देखने की सूक्ष्म दृष्टि थी । आने वाले युग को वे पहचान सकते थे। वे शिक्षा और ज्ञान को मनुष्य की पहली आवश्यकता समझते थे। उनका मानना था कि अज्ञानता सारे दुःखों की जड़ है और ज्ञान समस्त सुखों का। जैन धर्म और समाज में फैली तत्कालीन अज्ञानता और अशिक्षा से वे विशेष चिंतित थे। उस समय शिक्षा के प्रति घोर उदासीनता थी।
आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ने जैन धर्म के अनुयायियों को शिक्षित करने का मानसिक संकल्प किया था। उन्होंने बारह ग्रन्थ इसी उद्देश्य से लिखे थे। वे जैनों का एक महाविद्यालय निर्मित करवाना चाहते थे। इससे पहले वे श्रावकों की सम्यग् श्रद्धा की स्थिरता के लिए व्यस्त रहे थे। विशेष रूप से वे पंजाब को लेकर चिंतित थे । उन्होंने एक योजना निश्चित की थी। प्रथम सत्य धर्म का प्रचार करके श्रावकों को श्रद्धानिष्ठ बनाना। श्रद्धालु बनाने के बाद उनकी श्रद्धा को स्थिर रखने के लिए जैन मंदिर निर्मित करना और मंदिर बनाने के बाद शिक्षा के प्रचार के लिए विद्यालय बनाना।
श्रीमद् विजयानंद सूरि (आत्मारामजी) के नाम से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं एवं सभाएं
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