Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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प्रेरणा और परिश्रम के आज शुभ परिणाम और सुफल दिख रहे हैं।
पूज्य श्री विजयानंद सूरि महाराज के स्वर्गवास के बाद पंजाब निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ता रहा है। ई. सन् १९४७ में भारत विभाजन के बाद पंजाब के जैनों में थोड़ी अस्थिरता आई । किन्तु परिश्रमी और पुरुषार्थी पंजाबी जैन बन्धु शीघ्र ही अपने पांवों पर खड़े हो गए। इस समय प्रत्येक श्रीसंघ में मंदिर, उपाश्रय, पाठशालाएं और पुस्तकालय हैं ।
___ पंजाबी जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक समाज की गुरुभक्ति, संगठन और मैत्री सदैव आदर्श रही है। सम्पूर्ण पंजाब श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र गुरू परंपरा को ही समर्पित रहा है। एक ही गुरु के विचार, आज्ञा और सिद्धान्त के अनुसार रहना ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
पंजाब में कई संस्थाएं, ट्रस्ट, समितियाँ और तीर्थ हैं। उनमें सबसे बड़ी संस्था है श्री आत्मानंद जैन महासभा (उत्तरी भारत)। पंजाब में गुरू आतम के नाम से चलने वाली यह सबसे बड़ी संस्था है। इसी महासभा के अन्तर्गत सम्पूर्ण पंजाब के संघ संगठित हैं। पंजाब की यही एकमात्र महासभा है जिसके सूत्र में सभी संघ एक माला के रूप में पिरोए गए हैं।
श्री आत्मानंद जैन महासभा की स्थापना पंजाब केसरी युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज के शिष्य उपाध्याय श्री सोहन विजयजी की प्रेरणा से १९ सितम्बर १९२१ ई. सन् गुजरानवाला में हुई थी।
इसका प्रथम उद्देश्य था- पंजाब को एक सूत्र में पिरोना । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए महासभा ने पंजाब के प्रत्येक श्रीसंघ में 'श्री आत्मानंद जैन सभा' की स्थापना की। शिक्षा प्रचार
और जैन धर्म का प्रचार तथा जैन साहित्य एवं संस्कृति की सुरक्षा, प्रश्रय और संवर्धन भी महासभा के लक्ष्य रहे हैं।
प्रारंभ में मेरठ से प्रकाशित 'अफताब जैन' में महासभा के समाचार छपते रहे । फिर महासभा ने अम्बाला से 'आत्मानंद' निकालना प्रारंभ किया। ई. सन् १९५९ से 'विजयानंद' मासिक का प्रकाशन किया गया जो अब तक निरंतर प्रकाशित हो रहा है।
ई. सन् १९२५ में महासभा ने श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल गुजरांवाला की स्थापना की।
साहित्य प्रकाशन के अन्तर्गत महासभा ने श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज का जीवन चरित्र, जैन तत्त्वादर्श, जैन विवाह पद्धति, विविध पूजा संग्रह आदि कई ग्रन्थ प्रकाशित किए हैं।
भारत की स्वतंत्रता से पहले पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर को सहयोग देकर पंजाब के जैन ग्रन्थ भंडारों के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची प्रकाशित करवाई थी।
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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