Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
यात्रार्थ-दर्शनार्थ आते रहते हैं ।
जैनों के अतिरिक्त यहां जैनेतर सिक्ख, ब्राह्मण और अन्य जाति के लोग भी आते रहते हैं । वे इसे सच्चा दरबार और 'आतम बाबा' के नाम से जानते हैं । सम्पूर्ण गांव गुरुदेव की समाधि के प्रति श्रद्धा रखता है और प्रतिदिन दर्शन करता है। वहां की मिट्टी में इतना चमत्कार है कि इससे सभी प्रकार के रोग, दुःख, संताप और अशांति दूर होती है ।
ई. सन् १९७८ में महत्तरा साध्वी श्री मृगावती श्रीजी की निश्रा में लुधियाना से लहरा का छरीपालित संघ निकला था ।
ई. सन् १९८० में आचार्य श्री जनक चन्द्र सूरि महाराज ने यहां चातुर्मास किया था, उनके चातुर्मास से लहरा गांव के विकास एवं प्रगति के नये द्वार खुले थे । यह सम्पूर्ण गांव शाकाहारी है । न कोई यहां शराब पीता है न कोई अंडे खाता है ।
जैन समाज ने यहां एक हॉस्पिटल बनाया है, जो सेवा का एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है।
1
लहरा गांव से तीन कि. मी. दूर जीरा नाम का छोटा सा शहर है। यहीं पर जोधामलजी नाम के स्थानकवासी श्रावक रहते थे । इन्हीं के पास आत्मारामजी बचपन में रहे थे । जिस घर में वे रहे थे, वह घर आज भी बूढ़ा होकर खड़ा है । इसकी जर्जरित मूक दीवारें उस बीते इतिहास की साक्षी हैं ।
जिन छह प्रमुख नगरों में पूज्य श्री विजयानंद सूरि महाराज की प्रेरणा से मंदिर बने थे, में जीरा भी एक है। यहां उनकी प्रेरणा से एक भव्य जिन मंदिर का निर्माण हुआ था। जो आज भी दर्शनीय है । वि. सं. १९४८ में मौन एकादशी के दिन इस मंदिर की भव्य प्रतिष्ठा हुई थी । यह मंदिर इतना सुन्दर और कलात्मक है कि पंजाब सरकार ने इसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बाद इसे दूसरा ऐतिहासिक स्थान घोषित किया है ।
1
४००
Jain Education International
धन्य गुरुदेव
धन्य जन्म भूमि लहरा धन्य क्रीड़ा स्थली जीरा ।
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org