Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
वैराग्यवासित संस्कार उदय में आए परिणामत: अतिशय सौन्दर्य मंडित देह सौष्ठव के धनी 'दित्ता' चढ़ती जवानी में संयम पथ के राही बन गए। साधु जीवन का नाम मिला मुनि आत्माराम।
__ पवन का प्रसार और गगन का विस्तार कभी छुपा नहीं रहता । एक अविद्या प्रदान समुदाय में होते हुए भी तीक्ष्ण मेधा एवं तीव्र स्मरणशक्ति के स्वामी मुनिश्री की अदम्य ज्ञान पिपासा जागृत हो चुकी थी। तीन-२ सौ श्लोक प्रतिदिन कण्ठस्थ करते-करते मुनिश्री ढूंढक पंथ में श्री भद्रबाहु स्वामी के तुल्य विद्वान गिने जाते थे । ग्रामानुग्राम विचरण कर मुनिचर्या का पालन करते-करते मुनिश्री का चातुर्मास अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरू हीर सूरीश्वर जी महाराज की कर्मस्थली आगरा में हुआ। यहां विराजित सन्त रत्न मुनि रत्नचन्द्र के पुण्य समागम से मुनिश्री को जैनागमों के विशिष्ट अभ्यास के साथ पंचागी में स्फुट हुए अर्थों को यथार्थ रूप में समझने का अवसर मिला जिससे उनके जीवन में एक ऐतिहासिक मोड़ आया। सत्यमार्ग शोधन हित चाल्यो निर्भय आत्माराम
सिंहनी का दूध शुद्ध स्वर्ण पात्र में ही टिक सकता है। आगमों के विशिष्ट अभ्यास से मुनिश्री को यह निश्चित हो चुका था कि मैंने जो पंथ अपनाया है उसका आचार-विचार पूर्णत: शास्त्र बाह्य है। अपने गुरु एवं प्रमुख ढूंढक साधुओं से आपने इस विषय का शंका निवारण चाहा, परन्तु समाधान तो दूर प्रत्युत्तर में समुदाय बाहर, आहार-पानी बंद की धमकियां मिली।
जिनकी नस-नस में पिता गणेशचन्द्र समान क्षातृत्व का लहू प्रवाहित था, सत्य संशोधन का जोश और दृढ़ संकल्पबद्धता थी ऐसा क्रांतिकारी पौरुष भला रूढ़ि के मिथ्या चोले में कैसे कैद रह सकता था । आपने श्रमणोचित धैर्य, चातुर्य, गांभीर्य एवं दीर्घदृष्टि का परिचय देकर ढूंढक वेश में ही सद्धर्धप्रचार का शंखनाद कर दिया। परिश्रम जिसमें सत्य, निस्वार्थता और शासन के प्रति समर्पण भी समावेशित था, का परिणाम बहुत ही सुखद आया जब ढूंढक पंथ के प्रमुख सत्रह साधु एवं पंजाब के प्रत्येक नगर में सैंकड़ों परिवार आपके अर्थात् शुद्ध जिनमार्ग के अनुगामी बन गए । एक मंजे हुए अनुभवी धर्मनेता की भाँति आवश्यक बल संग्रह के उपरान्त आपने सत्य मार्ग अपनाने की प्रत्यक्ष घोषणा कर दी। संयम कबहु मिले
वीरभाषित सनातन धर्म की जयमाला वरण के उपरान्त भी आप एवं सहवर्ती साधुओं की चिरकालित उत्कृष्ट अभिलाषा अभी अधूरी थी, जिसके पूर्ण हो पाने का समय निकट आ पहुंचा
३४६
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org