Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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तपगच्छाचार्य श्रीमद् आत्मानन्द का जीवन चरित है। मैं इस जीवनी को प्रामाणिक मानता हूँ क्योंकि अन्त: एवं बहिर्साक्ष्य से सिद्ध है कि कवि चन्दूलाल न केरल व्यक्तिगत रूप से ही श्रीमद् से परिचित थे अपितु पंजाब में कपितय मन्दिरों के निर्माण में आचार्य श्री के योगदान के साक्षी भी थे। इन नव-निर्मित मन्दिरों में मूर्तियों की प्रतिष्ठा के विभिन्न उत्सवों पर पंडित जी स्वयं उपस्थित थे। मैं तो यह भी समझता हूँ कि बहुत सम्भव है कवि चन्दूलाल ने इस रचना के कुछ अंश स्वयं आचार्य श्री को सुनाए भी होंगे।
मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ के नाम में तनिक-सा परिवर्तन किया है। कवि ने अपनी इस रचना को 'तपगच्छाचार्य महामुनिराज श्रीमद् आत्माराम जी आनन्द विजयजी का जीवन चरित्र' नाम दिया था। जैन धर्म में दीक्षित होने से पूर्व आचार्य श्री का नाम 'आत्माराम' था। दीक्षा के बाद वे 'आनन्द विजय' हुए। तथा कालान्तर में 'विजयानन्द' के नाम से प्रसिद्ध हुए। लोक में उन्हें 'आत्मानन्द' के नाम से स्मरण किया जाता है। पंजाब तथा हरियाणा में विभिन्न शिक्षण संस्थाएं भी आचार्य श्री के प्रसिद्ध नाम अर्थात् 'आत्मानन्द' का ही वहन करती हैं । अत: मैंने इस ग्रन्थ को 'श्री आत्मानन्द जीवन चरित' नाम देना उचित समझा है।
विषय-वस्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन धर्माचार्य श्री आत्मानन्द का जीवन चरित कविता बद्ध किया गया है। इस ग्रन्थ के नायक के रूप में मुनि श्री आत्मानन्द एक सुधारवादी आदर्श युगपुरुष के रूप में हमारे सामने आते हैं। कवि ने इस ग्रन्थ की रचना उन लोगों के लिए की है, जो मूर्तिपूजक सम्प्रदाय से सम्बद्ध होने के कारण, आचार्य श्री के प्रति श्रद्धावान हैं । यही कारण है कि इस ग्रन्थ का आरम्भ “सिमर श्री आतम मुनिराया” से किया गया है । इस ग्रन्थ को चार भागों में विभक्त किया गया है । प्रथम दो भागों में आचार्य श्री की क्रमबद्ध जीवनी है। इनमें उनके जन्म से लेकर स्वर्गवास होने तक की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को कविताबद्ध किया गया है। तृतीय भाग में आचार्य श्री के विभिन्न नगरों में जाने पर उनका जो आदर-सत्कार तथा स्वागत किया गया, उसका वर्णन किया गया है और प्रसंगवश आचार्य श्री के गुणों का वर्णन भी किया गया है। तृतीय भाग को आचार्य श्री के जीवन का रेखाचित्र भी कहा जा सकता है। चतुर्थ भाग में आचार्य श्री के शिष्य मुनियों का आदरपूर्वक स्मरण किया गया है।
प्रथम भाग प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुसार आचार्य श्री आत्मानन्द का जन्म आर्यकुल में हुआ था। अल्पायु
कवि चन्दूलाल कृत श्री आत्मानंद जीवन चरित्र : परिचय एवं समीक्षा
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