Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्री विजयानन्द सूरि के साहित्य सृजन का क्रमिक इतिहास
अभय कुमार 'यौधेय'
ईसा की अठारहवीं शती का उत्तरकाल भारत वर्ष के लिए घोर विपत्तिकर एवं विनाशकारी था, पर उन्नीसवीं शती का काल, आरम्भ से अन्त तक, वीरता, बलिदान और पातपूर्ण है ।
भाषा, वांगमय और संस्कृति के लिए तो उसे काल रूप ही स्वीकारा जा सकता है। मुगल साम्राज्य, शक्तिहीन और खोखला हो चुका था। रोहेलों, जाटों और मराठों के निरन्तर आक्रमण समूचे देश में उथल-पुथल मचा रखी थी ।
उस पर भी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का खूनी पंजा अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा था । इसलिए ब्रिटिश रीति-नीति के अनुसार संस्कृत, प्राकृत, पाली, मागधी, अर्ध माधकी, हिन्दी एवं उर्दू इत्यादि देशी भाषाओं का ऐसा अवमूल्यन हुआ कि वे लुप्त होने लगी ।
इसके अतिरिक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने एक ही झटके में हमारे सभी निजी उद्योग धन्धों को समाप्त कर दिया, यहां तक कि शिल्पियों और बुनकरों के हाथ तक काट दिए तो भारतीय युवक बेरोजगारी के शिकार हो गए।
इस पर अंग्रेजी सरकार ने भारत में नौकरशाही को प्रोत्साहन देने के लिए, अंग्रेजी पढ़े युवकों को सरकारी नौकरियों के लिए प्राथमिकता दी ।
श्री विजयानन्द सूरि के साहित्य सृजन का क्रमिक इतिहास
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