Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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इस स्तुति में 'मेरा' शब्द कितना आत्मीय है ? भगवान भक्त का तादात्म्य आत्मा को आनंद लोक में पहुंचा देता है ।
गुरुराज की कविता का नाद सौन्दर्य देखिए
कहां तक कहूं ? इस मिश्री का तो कण-कण मीठा है। इस अंगूर का तो कण-कण रसीला है । इस चंदन में तो प्रत्येक कण शीतल है। इस काव्यचन्द्र में तो पूर्ण पीयूष भरा हुआ है ।
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'कुमति कुवास निरासनी, बासिनी चिदघन रुपे । मासिनी अमर अनघपद नाशिनी भवजल कूप ॥१ ॥
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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