Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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आधार पर न होकर केवल तर्क के ही आधार पर होगी ।”
गुरुदेव ने कहा- “ठीक; जैसी तुम्हारी इच्छा ।”
“फूलों में जीव होता है और उन्हें आप मूर्तियों पर चढ़ाने का उपदेश करते हैं। क्या इस में हिंसा नहीं होती ?” उन का पहला ही प्रश्न था ।
“मुझे फूलों के जीव को तो पहिले दिखा दो तब मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूं ।” " वाह । इस में क्या बात है ? फूलों में जीव तो होता ही है।” उन्होंने कहा । "इस का प्रमाण क्या है ?” आचार्यदेव ने
पूछा।
“सारे शास्त्रों में लिखा हुआ है सब लोग मानते हैं।” उन्होंने उत्तर दिया । “भाई तुम आचार्यदेव ने कहा
वे महाशय लज्जित हुए और उठकर चलते बने ।
इज्जत का बोझ
तो शास्त्रों को मानते ही नहीं हो, फिर किस लिए उनका प्रमाण देते हो ?”
पटियाला में लाला सीसूमल नाम के एक स्थानकवासी श्रावक रहा करते थे । वे स्थानकवासी पंथ के कट्टर अनुयायी थे और श्री विजयानंद सूरि म. के संवेगी दीक्षा लेने के कारण उनसे बड़े नाराज थे ।
एक बार वे दूसरे शहर में गए और उन्होंने वहाँ कहा "आत्मारामजी सब जगह तो जाते हैं, किन्तु पटियाला में नहीं आते हैं डरके मारे इधर आने का नाम भी नहीं लेते । यदि आ जायँ तो उनकी इज्जत बीच बाजार में उतार लूँ ।"
आचार्यदेव को यह बात मालूम हुई । उन दिनों वे पटियाला के पास ही थे पटियाला विहार के रास्ते में पड़ता भी था, वे पटियाला को ही चल पड़े। उनका प्रवेश हुआ । व्याख्यान भी हुआ, सहस्त्रों आदमी आए और सब ने एक स्वर से स्तुति की तथा पटियाला पधारने पर अपने को भाग्यशाली समझा ।
बातों ही बातों में सीसूमल का जिक्र आ गया। गुरुदेव ने कहा :- “भाई सीसूमल ने, सुनते हैं, कहा था कि पटियाला में आए कि उनकी इज्जत बीच बाजार में ले लूंगा। मैंने भी समझा व्यर्थ इज्जत का बोझा कहां तक लादे फिरूँ, चलो इतना हलका तो हो जाऊंगा ।”
इस घटना को सुनकर सब ने सीसूमल पर लानत की। सीसूमल ने फिर कभी मुँह तक न दिखाया ।
श्री विजयानंद सूरिः जीवन प्रसंग
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