Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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मुनिजनों ने छाछ संबंधित पूरा वृत्तांत महाराज जी को निवेदन किया।
जल के स्थान पर छाछ पीकर मुनिवृन्द ने तृप्त हो, संतोष अनुभव किया।
तत्पश्चात् साथ वे सभी मुनियों को गंभीर स्वर में संबोधित करते हुए आत्माराम जी महाराज ने कहा: “आओ, आज घटित घटना का एक परमार्थ समझाता हूँ। भविष्य में जब कभी प्रस्तुत प्रसंग को लेकर चिंतन- मनन करोगे तो तुम्हें नई दिशा का बोध होगा । मुनिजन भी इस घटना का परमार्थ ज्ञात करने के लिए उत्कंठित हो गए।
___ “हर घर में छाछ थी, किंतु तुम्हें देने की किसी में हिम्मत न थी या यों कहिए कि किसी की हिम्मत न चली । जब कि असली छाछ तो केवल सरदार हीरासिंह के ही पास थी। उसने तुम्हें भर पेट छाछ पीने की और साथ में ले जाने की अनुमति दी । उसके पास की छाछ का कोई हिसाब ही नहीं था।" आत्मारामजी महाराज ने घटित घटना में से परमार्थ का निष्कर्ष निकालने हेतु प्राथमिक प्रस्तावना की।
कई बार सामान्य सांसारिक प्रसंगों में से उनकी पैनी नजर, तेजस्वी प्रतिभा और चिंतनशील मनोवृत्ति सीधे-सादे सार्वजनिक सिद्धांतों का अन्वेषण करती।
__ “बस्ती के सभी लोगों के यहाँ छाछ थी। किंतु वे यह छाछ सरदार हीरासिंह के यहाँ से ले आए थे। अर्थात् उक्त छाछ पर हीरासिंह की मालिकी होने के बावजूद भी अन्य जनों ने अपनी अनुकूलता के अनुसार उसमें कम-ज्यादा पानी मिलाकर उस पर अपनी मालिकी की मुहर लगा दी थी । जब कि हीरासिंह को ऐसा करने की कतई आवश्यकता नहीं थी।” महाराज जी पदार्थ की व्याख्या करते हुए कहा : “यहाँ हीरासिंह की छाछ को हमें जैन दर्शन की संज्ञा देनी चाहिए। जैन दर्शन के अमुक-अमुक सिद्धांतों को अपनाकर अन्य दर्शनावलंबियों ने अपने-अपने पंथ, संप्रदाय प्रस्थापित कर उसका सर्वत्र प्रचार-प्रसार किया। किंतु यह सनातन सत्य है कि उक्त पंथ, संप्रदाय, ठीक वैसे ही उनके सिद्धांत सब के लिए समान रूप से उपभोग्य सिद्ध नहीं हो सकते । जिस तरह अपने यहाँ छाछ लाकर ग्रामजनों ने अपनी-अपनी सुविधानुसार उसमें पानी मिला दिया, ठीक उसी तरह अन्य दर्शनावलंबी जिनशासन के सिद्धांतों में भी एकांतवाद का पानी मिलाते हैं। क्योंकि ऐसा कुछ किए बिना तो छाछ अधिक समय तक टिक नहीं सकती। हीरासिंह की भाँति जिनशासन प्रणीत विशुद्ध सिद्धांत एकमात्र अक्षय भंडार है । जो जितना चाहे उसने निर्दोष, मिलावट विहीन सिद्धांत उसमें से बिना किसी कठिनाई के अपना सकता है। जिनशासन को कदापि किसी प्रकार का संकोच अथवा हानि नहीं होगी। हीरासिंह की छाछ
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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