Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
में लिखा है
सच्चे बादशाह के दरबार में- 'मैं जीरा पहुंचा। पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज की जन्मभूमि के दर्शन की तीव्र ललक थी। जीरा से मैं लहरा पहुंचा, जहां श्रीसंघ ने गुरुमंदिर का निर्माण करवाया है। साध्वी श्रीमृगावतीजी की प्रेरणा से कीर्तिस्तम्भ का निर्माण हुआ है । मैंने जब गुरुदेव के दर्शन किए तो मुझे जो आनंदानुभूति हुई वह अवर्णनीय है । मन में हर्ष समा नहीं रहा था । नयन पुलकित थे । वाणी रोमांचित थी। आनंद की अमृतधारा से मैं भीग रहा था । मुझे ऐसा लगा मानो अक्षयनिधि मिल गई हो।
मैंने वहां के लोगों से इस महात्मा के बारे में पूछा । एक सरदारजी ने अत्यन्त श्रद्धापूर्वक बताया- महाराजजी ! ये सच्चे बादशाह थे। मेरे दादाजी कहा करते थे कि ये महात्मा बड़े चमत्कारी थे । वे कहते थे कि जब ये बाबा आठ-दस वर्ष के बालक थे, तब एक ज्योतिषी ने कहा था कि यह बालक वजीर होगा या महान संत जिसे सब पूजेंगे। जो इस बाबा की मनौती मन से करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है । उसकी सारी मुरादें पूरी होती है।
सरदारजी ने उनके चमत्कार की एक बात सुनाई । एक सोलह वर्षीय लड़के ने उन्हें चढ़ाए हुए लड्डू चुरा लिए । उस लड़के के अंग सूज गए और वह भयंकर पीड़ा से छटपटाने लगा। जब उसकी माता ने उससे पूछा कि तुमने कोई गड़बड़ तो नहीं की। तो उसने कहा- मैं उस बाबा के मंदिर से लड्डु चुरा कर लाया हूं । इस पर माता ने उसे कहा- 'क्षमा मांग और मनौती कर कि चार लड्डु चढ़ाऊंगा। मुझ पर कृपा करो, अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा । हे दीनदयालु, मुझ पर कृपा करो। ऐसी विनती से वह लड़का तुरंत चंगा हो गया। इस महात्मा के लिए ऐसी कितनी ही चमत्कारपूर्ण बातें वहां के लोगों में प्रचलित हैं । वे उन्हें सच्चे बादशाह कहते हैं।
महान साहित्यकार के रूप में पूज्य आत्मारामजी महाराज की तुलना किससे की जाय? वे तो अतुलनीय एवं अप्रतिम साहित्य मनीषी थे, उनका एक-एक शब्द ज्ञान-प्रकाश से प्रकाशमान था। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में साहित्य सृजन किया। उनका गद्य साहित्य दर्शन की विभूति से सुसम्पन्न है। गद्य ग्रन्थों में 'नव तत्त्व' 'जैन तत्त्वादर्श' 'अज्ञान तिमिर भास्कर' 'सम्यक्त्वशल्योद्धार,' 'जैन मत वृक्ष,' 'चतुर्थ स्तुति निर्णय', 'ईसाई मत समीक्षा' आदि पद्य में उनका साहित्य भक्तिरसामृत से भीगा हुआ है। पद्य में आत्मबावनी, स्तवनावली, सत्तरभेदी पूजा, बीस स्थानक पूजा, अष्ट प्रकारी पूजा, नवपद पूजा, स्नात्र पूजा आदि है।
उनका काव्य निर्मल गंगधारा के समान परम पावन एवं लोकमंगल से परिपूर्ण है।
३३८
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org