Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
कठिनाई से परिचित किया। साथ ही उसे यह बताया कि वे उबाले हुए पानी के सिवाय अन्य पानी को ग्रहण नहीं कर सकते। ___ “ऐसी तप्त दोपहरी में भी क्या आप सब गर्म पानी ही पीएँगे?"
"गर्म पानी ठंडा कर हम उपयोग में ला सकते हैं और यदि गर्म, उबाला हुआ जल न मिले तो छाछ से भी काम चल सकता है।" मुनि ने अधिक स्पष्टीकरण करते हुए कहा।
“लो भई, हुई न कोई बात ! यदि छाछ आपके उपयोग में आ सकती है, तो पहले ही क्यों नहीं बता दिया?" वृद्ध गृहस्थ ने सोत्साह कहा । “अरे, छाछ तो आपको जितनी चाहिए, उतनी मिल सकती है।”
__ हम तो घर-घर घूम लिए। लेकिन हमें छाछ कहीं भी नहीं मिली । हर दरवाजे से हमें निराश होकर ही लौटना पड़ा है।"
“कैसी बचकानी बात करते हैं, महाराज ! ऐसे भला कहीं छाछ मिल सकती है? उसके लिए तो आपको हीरासिंह नामक एक सज्जन का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। एक तरह से वह इस बस्ती का मुखिया है, उसके यहाँ कई दुधारू गाय-भैंस हैं । उसके यहाँ दूध-घी की नदियाँ बहती हैं। अरे, यहाँ के सभी लोग उसी के घर से छाछ लाकर अपना काम चलाते हैं। ऐसी स्थिति में कोई भला आपको छाछ कैसे दे सकता है? यदि आप उसके यहाँ जाएँगे तो जितनी छाछ चाहिए उतनी आसानी से मिल जाएगी।"
मुनिवृंद हीरासिंह के द्वार पर जा पहुँचे। जैन साधुओं को अपने द्वार पर आए देख, हीरासिंह ने सोत्साह दो कदम आगे बढ़, उनका स्वागत करते हुए उल्लसित स्वर में कहा:
“आइए संतो ! आज मेरा घर-आंगन पावन हो गया । कहिए, आपकी क्या सेवा करूँ?”
"बस, हमें थोड़ी छाछ की आवश्यकता है।" भारी प्यास से शुष्क बने कंठ से शब्द प्रस्फुटित हुए।
___ “महाराज, जितनी चाहिए उतनी दिल खोल कर ले लीजिए औ जितनी चाहिए उतनी पी लीजिए। आपकी कृपा से यहाँ छाछ-दूध की रेलपेल है !” सरदार हीरासिंह ने मानों अचानक अपने द्वार पर आए सत्पात्र को निहार, भाव-विभोर हो, कहा।
___ मुनिजनों ने अपने पास के पात्रों को छाछ से भर लिया और स्वस्थान लौट गए, जहाँ श्री आत्माराम जी महाराज अन्य साधुओं के साथ ठहरे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। पड़ाव पर पहुँच,
श्री विजयानंद सूरि: जीवन प्रसंग
३२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org