Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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इस पत्र से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हिन्दुस्तान में रहते हुए भी पूज्य आत्मारामजी म. कितने अधिक लोकप्रिय थे।
विश्व के सुप्रसिद्ध विद्वानों के बीच जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में किसे भेजा जाय? यह जानने के लिए पू. आत्मारामजी म. ने श्रावक संघ पर अपनी नजर दौड़ाई । उस समय श्रावक संघ में जैन धर्म के सूक्ष्म विद्वान श्रावक बहुत ही अल्प थे। आखिर उन्होंने 'वीरचंद राघवजी गांधी' को पसंद किया । वीरचंद भाई उम्र में काफी छोटे थे, फिर भी उनकी सूक्ष्म प्रज्ञा, नम्रता, विशिष्ट वक्तृत्व शैली आदि गुणों से पू. आत्मारामजी म. को काफी संतोष था। पूज्य
आत्मारामजी म. ने वीरचंद गांधी को अपने पास रखकर जैन धर्म का गहन अध्ययन कराया। तीव्र मेधा के कारण वीरचंद गांधी ने अल्पावधि में ही जैन धर्म का गहन अध्ययन कर लिया। वीरचंदजी राघवजी गांधी के प्रभावक व्यक्तित्व व वक्तृत्व से पू. आत्मारामजी म. को पूर्ण संतोष था। महान प्रभावक गुरुवर के अंत:करण की शुभाशीष को प्राप्त कर वीरचंद राघवजी गांधी ने अमेरिका के लिए प्रयाण किया । पूज्य आत्मारामजी म. ने विश्व धर्म परिषद्' के लिए 'चिकागो प्रश्नोत्तर' नामक निबंध तैयार किया था, वह निबंध वीरचंद गांधी को दिया था।
अमेरिका के चिकागो शहर में आयोजित यह 'विश्व धर्म परिषद्' १९ दिन तक चलती रही। वीरचंद गांधी ने अपने प्रभावक वक्तृत्व के द्वारा विश्व के इस मंच पर उन्होंने जैनधर्म का वास्तविक स्वरूप प्रगट किया । उस समय अनेक पत्रों में परिषद् के सामाचार प्रकाशित हुए थे।
वीरचंद गांधी ने अपने वक्तृत्व के द्वारा लोगों को कितना अधिक प्रभावित किया, उसका पता हमें उस समय प्रकाशित अमेरिकन समाचार पत्र से लगता है
“A number of distinguished Hindu scholars, philosophers and religious teachers attended and addressed the Parliament, Some of them taking rank with the highest of any race for learning, eloquence and piety. But it is safe to say that no one of the ariental Scholars was listened to with greater interest than the Young layman (Virchand Gandhi) of Jain Community as he
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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