Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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विजयानंद सूरि म. सब से आगे चल रहे थे और पीछे लेफ्ट-राइट-लेफ्ट-राइट करता हुआ मुनि मंडल । उन लुटेरों ने उन्हें देखा तो डर गए । सोचने लगे। निश्चित ही वेश परिवर्तन कर हमें पकड़ने के लिए पुलिस यह चाल चल रही है। उन्होंने कंधे पर रखी काली लाठी को भयानक अस्त्र समझा और लेफ्ट-राइट की अदा ने पुलिस होने का प्रमाण दिया। उन्होंने साधु मण्डल को पुलिस मण्डल समझा और जिस रास्ते से आए थे उसी रास्ते से भाग खड़े हुए। और मुनि मंडल सुखपूर्वक अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँच गया।
कुतर्क
___ एक स्थानकवासी भाई श्री विजयानंद सूरि म. के पास आया और बैठ गया। सुखशाता पूछने के बाद उसने प्रश्न किया कि महाराज आप ने सम्यक्त्वशल्योद्धार में मन्दिर बनवाने वाले श्रावक को स्वर्ग की प्राप्ति लिखी है ।गुरुदेव ने कहा परमात्मा का मन्दिर बनवाना सम्यक्त्व की निर्मलता का कारण है और सम्यग्दृष्टि जीव स्वर्ग में ही जाता है। पांचवें श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी का वचन है कि, “सम्मदिट्ठि जीवो विमाणवज्जेन बंधए। आउं ।” इसलिए ऐसे पवित्र काम के करने वाले जीव का स्वर्ग में जाना शास्त्रसिद्ध है।”
प्रश्नकार ने हंस कर पूछा “महाराज मन्दिर के लिये गधा ईटें लाता है, उसे बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है, वह भी किसी न किसी देवलोक में जाता ही होगा।"
यह कुतर्क था फिर भी बड़ी शान्ति से गुरुदेव ने उससे कहा कि “भाई, तुम मन्दिर को नहीं मानते और मन्दिरजी के बनवाने में पुण्य भी नहीं मानते, किन्तु साधु को दान देने में तो पुण्य मानते हो।”
प्रश्नकार ने कहा “बेशक साधु को दान देने से मनुष्य को स्वर्ग और मोक्ष मिलता है।"
गुरुदेव ने तर्क किया- एक साधु ने कुछ दिनों तक उपवास किये । पारणे का दिन आया। तुमने साधु महाराज को घर बुलाकर दूध वहोराया । तुम्हें बड़ी खुशी हुई । तुमने बड़ा पुण्य बांधा, तुमको ऊँचा स्वर्ग मिलेगा। मगर दूध देने वाली भैंस को भी तो स्वर्ग मिलना चाहिये।"
___ जवाब सुनकर प्रश्नकार खामोश हो गया और मनोमन लज्जित भी। फूलों में जीव
___ एक बार एक महाशय जो पूरे चलते पुर्जे थे और स्थानकवासी सम्प्रदाय के मानने वाले थे, आचार्य देव के पास उपस्थित हुए। पढ़े लिखे अच्छे थे, किन्तु शास्त्रज्ञान से अधूरे थे।
आते ही प्रश्न किया “महाराज मैं आप से कुछ बहस करना चाहता हूं, किन्तु वह शास्त्रों के
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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