Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य
मुनि नवीन चन्द्र विजय
जन्म और शैशव
ई. सन् १८२० का वर्ष था। मुगल साम्राज्य का सूर्य अस्त हो रहा था । अंग्रेजों की शासन व्यवस्था फैलती जा रही थी। भारत अनेक छोटे-बड़े राज्यों में विभक्त था । सिक्ख, मुस्लिम और हिन्दू राज्य अपने राज्यों की सुरक्षा के लिए और अंग्रेज अपने साम्राज्य के विस्तरण के लिए एक दूसरे से लड़ रहे थे । चारों ओर युद्ध, आतंक और अराजकता का हुताशन सुलग रहा था ।
पंजाब में महाराजा रणजीतसिंह का शक्तिशाली सिक्ख राज्य निरंतर पतन की ओर बढ़ रहा था । सिक्ख राज्य के पराजय के लिए अंग्रेज जी जान से जुटे हुए थे । महाराजा रणजीतसिंह का अधिकांश समय अंग्रेजों से लोहा लेने में ही बीतता था। उनकी सुविशाल शक्तिशाली सेना के सैकड़ों सेनापति थे । उनमें एक हजार सैनिकों का नेतृत्व करते थे गणेशचन्द्र । वे कलश गांव के निवासी ब्रह्म कपूर क्षत्रिय थे । महाराजा रणजीत सिंह की ओर से युद्ध क्षेत्र में उतर कर गणेशचन्द्र ने उन्हें कई बार विजयी बनाया था। रणजीतसिंह ने भी उन्हें वीरोचित सम्मान देकर अनेक पदकों और पुरस्कारों से सम्मानित किया था ।
महाराजा रणजीतसिंह की सेना में काम करते हुए गणेशचन्द्र को अलग-अलग क्षेत्रों की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी जाती थी और उन्हें वहां स्थानांतरित होना पड़ता था ।
एक बार उन्हें रामनगर के पास फलिया नाम के क्षेत्र की सुरक्षा सौंपी गई। यहां रहते हुए गणेशचन्द्र का परिचय रामनगर के एक कंवरसेनजी नाम के प्रतिष्ठित पुरीवंश के क्षत्रिय सज्जन
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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