Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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को अपना भयंकर अपमान समझा । और यह क्रूर निर्णय सुनाकर चला गया कि मेरे आदेश का पालन न करने का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना ।
गणेशचन्द्र भी वीर पुरुष थे । उन पर सोढ़ी की धमकी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । और वे इस घटना को सामान्य समझकर उसकी उपेक्षा करके अपने काम में लग गए।
लहरा से एक कि. मी. दूर जीरा नाम का शहर है। इस शहर में स्थानकवासी जैन परिवार रहते थे । उन जैन परिवारों में एक परिवार जोधामलजी जैन का था। जोधामलजी व्यापारी थे और लहरा के अधिकांश लोग अपनी जीवन आवश्यक चीजें उन्हीं की दूकान से खरीदते थे । गणेशचन्द्र भी जोधामलजी के स्थायी ग्राहक थे। उनका ग्राहक और व्यापारी का सम्बन्ध गहरी मित्रता में बदल गया था ।
ठाकुर अत्तरसिंह सोढ़ी किसी भी उपाय से गणेशचन्द्र को फंसाना चाहता था । उस घटना दो वर्ष बीत गए थे । गणेशचन्द्रजी इसे भूल भी गए थे। पर सोढ़ी इसी उपाय की खोज में था कि किस तरह गणेशचन्द्र को दुःखी किया जाए। बहुत सोचने के बाद उसने एक योजना बनाई । पास के गांव में अपने आदमियों के द्वारा एक डाका डलवाया और उन डाकुओं में कई निर्दोष व्यक्तियों के नाम गिना दिए जिनसे अत्तरसिंह सोढ़ी बदला लेना चाहता था। उनमें एक नाम गणेशचन्द्र का था ।
एक दिन पुलिस गणेशचन्द्र के घर आई और उन्हें डाका डालने के अपराध में गिरफ्तार करने लगी । गणेशचन्द्र ने स्वयं के निर्दोष होने के सभी प्रमाण प्रस्तुत किए परंतु उनकी एक न सुनी गई। वे दांत पीसकर रह गए और उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि यह काम अत्तरसिंह सोढ़ी का ही है ।
गणेशचन्द्र ने पुलिस से एक दिन रूकने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना स्वीकार करली गई । इसी एक ही दिन में उन्हें अपने परिवार की सारी व्यवस्था करनी थी। उन्हें अपने से भी अधिक अपने बालक आत्माराम की चिंता थी । वे आत्माराम को लेकर जीरा के अपने मित्र जोधाजी के पास गए और आने का कारण बताते हुए कहा कि अत्तरसिंह मेरे पीछे पड़ा हुआ है । मुझे अपने इस बालक आत्माराम के सुरक्षा की चिंता है । कुछ कह नहीं सकता, अत्तरसिंह मुझे किन संकटों में फंसाएगा और जिंदा भी रहने देगा या नहीं। ऐसे में मैं अपने बालक आत्माराम को आपके हाथों में सौंपकर निश्चित हो जाना चाहता हूँ ।
संकट के समय मित्र की परीक्षा होती है। सच्चा मित्र वही जो संकट में काम आए ।
श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य
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