Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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और संवत् १९३८ में होशियारपुर में पूर्ण किया । इस ग्रन्थ में बारह परिच्छेद हैं । इससे जैन धर्म, दर्शन, आगम और इतिहास आदि का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता है । यह ग्रन्थ उनका गागर में सागर की तरह है ।
अज्ञान तिमिर भास्कर
यह ग्रन्थ उन्होंने संवत् १९३९ में अम्बाला में लिखना प्रारंभ किया और १९४२ में खंभात (गुजरात) में पूर्ण किया । इस ग्रन्थ के नाम से इसका उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है । अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए सूर्य के रूप में इस ग्रन्थ की रचना की गई है । वेद, पुराण, स्मृति और उपनिषदों का खंडन और जैन सिद्धान्तों का मंडन किया गया है । दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित ‘सत्यार्थ प्रकाश' पुस्तक में जैन धर्म और दर्शन पर किए गए मिथ्या आक्षेपों का तर्क संगत जवाब इस ग्रन्थ में है ।
सम्यक्त्वशल्योद्धार
यह ग्रन्थ उन्होंने वि. सं. १९४९ अहमदाबाद में लिखना प्रारंभ किया था और संवत् १९४१ में अहमदाबाद में ही पूर्ण किया । स्थानकवासी साधु जेठमलजी ने 'समकित सार' पुस्तक में मूर्तिपूजा का खंडन किया था। इस पुस्तक के उत्तर में आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ने यह पुस्तक लिखी थी। इस ग्रन्थ में उन्होंने मूर्तिपूजा से संबंधित आगमों के अनेक पाठ उद्धृत करके उसे शास्त्र सम्मत सिद्ध किया है।
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जैन मत वृक्ष
यह पुस्तक उन्होंने संवत् १९४२ में सूरत में लिखनी प्रारंभ की थी और उसी वर्ष सूरत में पूर्ण की थी। इसमें जैन धर्म और जैन श्रमणों का प्राथमिक इतिहास है ।
चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-१
यह पुस्तक उन्होंने संवत् १९४४ में राधनपुर में लिखनी प्रारंभ की और उसी वर्ष राधनपुर पूर्ण की थी ।
आचार्य श्री राजेन्द्र सूरि एवं मुनि धन विजयजी ने चार थुई के स्थान पर तीन थुई का प्रवर्तन किया था । और वे तीन थुई को ही शास्त्र सम्मत सिद्ध करने का असफल प्रयत्न कर रहे थे। उनके उत्तर में उन्होंने चार थुई को शास्त्र सम्मत सिद्ध किया है और प्रमाण के रूप में पूर्वाचार्यों के ८२ ग्रन्थों के प्रमाण दिए हैं।
जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर
इस पुस्तक का प्रारंभ संवत् १९४५ में पालनपुर में किया और उसी वर्ष पालनपुर में ही श्रीमद् विजयानंद सूरिः जीवन और कार्य
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