Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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प्रतिस्थापना की गई । अपने श्रावकों और श्रावकों के बालकों को गुरु वंदन की विधि, सामायिक लेने की विधि और प्रतिक्रमण करने की विधि सिखाई गई।
पांच वर्ष तक उन्होंने पंजाब में यही कार्य किया। इसके बाद उन्हें पंजाब में मंदिर बनाने की आवश्यकता हुई। इसके लिए उन्हें पुन: गुजरात में आना पड़ा। सात चातुर्मास उन्होंने गुजरात और राजस्थान में किए । गुजरात में रहकर उन्होंने पंजाब में मूर्तियां और पूजा की सामग्री भेजी। ई. सन् १८८६ में पालीताणा चातुर्मास में वे आचार्य बने । आचार्य बनने के बाद राधनपुर, मेहसाना और जोधपुर में चातुर्मास करके वे पुन: पंजाब पहुंचे। यहां पहुंचकर उन्होंने अमृतसर, जीरा, होशियारपुर, पट्टी, अम्बाला शहर, संखतरा और लुधियाना में मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ करवाया। मंदिरों का कार्य पूर्ण होने पर संवत् १९४८ वैशाख सुदी छठ को अमृतसर में मगसर सुदी ग्यारस को जीरा में और माघ सुदी पंचमी को होशियारपुर के नूतन जिन मंदिर की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा करवाई। एक ही वर्ष में उन्होंने तीन अंजनशलाकाएं और प्रतिष्ठाएं करवाई।
संवत् १९५१ में माघ सुदी तेरस को पट्टी में, संवत् १९५२ में मिगसर सुदी पूर्णिमा को अम्बाला में और संवत् १९५३ वैशाख सुदी पूर्णिमा को संखतरा की प्रतिष्ठा करवाई। लुधियाना दाल बाजार स्थित नूतन जिन मंदिर की अंजनशलाका और प्रतिष्ठा होने की तैयारियां हो रही थी कि उनका स्वर्गवास हो गया।
___पंजाब में उन्होंने छह नूतन जिन मंदिरों की अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई। यह कार्य करवाकर उन्होंने वहां के श्रावकों की जैन धर्म की आगम सम्मत श्रद्धा को दृढ़ और स्थिर किया।
पंजाब में जिन मंदिरो का निर्माण कार्य पूर्ण करवाने के बाद वे वहां शिक्षा के प्रचार के लिए सरस्वती मंदिरों की स्थापना करना चाहते थे । पर उनकी यह च्छा पूर्ण न हो सकी और वे इस दुनिया से चले गए। उन्होंने अपने जीवन के अन्त तक पंजाब की चिंता की थी । जाते-जाते भी वे अपने विश्वस्त अन्तेवासी गुरु वल्लभ को पंजाब सम्हाल ने की आज्ञा देते गए।
इस समय पंजाब (उत्तरी भारत) के विभिन्न शहरों में पच्चीस जिन मंदिर निर्मित हो गए हैं। कुछ शहरों में हो रहे हैं। केवल लुधियाना शहर में ही आठ मंदिर विद्यमान है। प्रत्येक शहर में धार्मिक संस्कार के लिए पाठशालाएं चल रही है । पर्युषण पर्व के दिनों में सभी प्रमुख शहरों में
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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