Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्री जिनागम हम मन मान्यो तब ही कुपंथ को जाल जर्यो रे ॥
- मुनि श्री अरुण विजय
संसार के रंगमंच पर भिन्न-भिन्न समय पर अनगिनत महापुरुष पैदा हुए और संसार को शांति, सद्भाव, अहिंसा, सत्य, न्याय और क्षमा का संदेश देकर विदा हो गए। इन महापुरुषों की कड़ी में एक ऐसे महापुरुष हैं, जो उन्नीसवीं शताब्दी वि. सं. १८९४ में पैदा हुए और स्थानकवासी संप्रदाय में दीक्षा लेने के बाद जब उन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया तो उन्हें पता चला कि सच्चा जिन धर्म तो मूर्तिपूजा में है । उस समय उस महापुरुष ने शास्त्रोक्त मूर्तिपूजक जिनधर्म को अपनाया और संवेगी दीक्षा लेकर जीवन भर मूर्तिपूजा का प्रचार किया। सत्य के लिए उन्होंने पंथ का भी त्याग कर दिया। वे क्रांतिकारी महापुरुष थे हमारे परमोपकारी, पंजाब देशोद्धारक, न्यायोम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वर जी (आत्मरामजी) महाराज।
गुरु आतम का इस संघ, समाज एवं समुदाय पर असीम उपकार हैं, क्योंकि एक समय ऐसा आ गया था, जब संवेगी साधु तथा तपागच्छ संघ लुप्त प्राय: होने जा रहा था। असंयती यतियों और मंत्र-तंत्र वादियों का चहुं ओर बोल-बाला था । लोग कुगुरु और कुपंथ के जाल में फंसकर सच्चे सत्य और सनातन जिनधर्म से विमुख होते जा रहे थे । आर्य समाजी, ईसाई और स्थानकवासी आदि कई पंथ अपने मत-मतानुसार बनाए गए मनगढंत सम्प्रदायों को बढ़ावा दे रहे थे। वे अपनी पूरी शक्ति लगाकर मूर्तिपूजा का खंडन कर रहे थे। तब गुरु आतम ने इस क्षेत्र में आकर हमारे संघ, समाज और समुदाय का इतिहास बदल दिया।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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