Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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जी महाराज के पास ले गए और कहा- 'मैं इन्हीं का शिष्य हूँ, इन्हीं की अंनत कृपा का परिणाम हूँ। तुम्हें इन्हीं का शिष्य बनना है । और मैं तुम्हें गुरुभाई के रूप में स्वीकारता हूँ।' इस आज्ञा वचन को सुनकर गुरुवर श्री आत्मारामजी ने मस्तक गुरुवर श्री बूटेराय जी महाराज के चरणों में झुका दिया, और कहा कि 'इस पल से ही यह तन, मन और आत्मा आपको अर्पित करता हूँ। आप आज्ञा करें कि मैं अपने तन-मन और आत्मा का कैसे उपयोग करूँ?' गुरुवर श्री बूटेराय जी महाराज एवं श्री मूलचन्दजी इत्यादि सभी मुनिजन एवं उपस्थित अन्यजन गुरुवर आतम के इस विजय और समर्पण को देखकर विस्मित थे। इस प्रकार गुरुवर श्री आत्मारामजी म. संविग्न दीक्षा के लिए श्री बूटेराय जी महाराज के पास आए। गुरुवर श्री बूटेरायजी महाराजजी ने तत्पश्चात् अवसरानुसार गुरुवर श्री आतमजी को मुनि श्री आनंद विजयजी के रूप में स्वंय का शिष्य बनाया एवं अन्य मुनियों को श्री आनंद विजयजी के शिष्य प्रशिष्यादि के रूप में स्थापित किया।
सत्य पथानुगामी गुरु विजयानंद
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