Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
सत्य पथानुगामी गुरु विजयानंद
- मुनि श्री धर्मधुरन्धर विजय आगमों एवं आगमों पर लिखित नियुक्तियों, वृत्तियों और चूर्णि आदि ग्रंथों के अध्ययन और अनुशीलन के बाद गुरुवर श्री आत्माराम जी ने संविग्न दीक्षा लेने का मन ही मन विचार बनाया था और एकदा अवसर पाकर गुरुदेव ने अपने साथी मुनियों को अनुशीलित सत्यतत्वों, पंरपराओं का बोध दिया और स्वयं ने इन-इन कारणों और प्रमाणों के आधार पर संविग्न दीक्षा लेने का मन ही मन विचार बनाया है, ऐसा कहा। गुरुदेव के इस विचार को सुनते ही साथी मुनियों ने कई शंकाएं , आशंकाएं, प्रस्तुत की। मगर गुरुदेव ने आगमिक प्रमाण दे देकर उनकी शंकाओं को निर्मूल किया, उन्होंने अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर आगमिक परंपराएं समझाई और निवेदन किया कि “यदि तैयारी हो तो मेरे साथ तैयार हो जाओ, रही तुम्हारी आशंकाएं वर्तमान परंपरा की ओर से, तो सत्य समझने के बाद अब इस मिथ्या को पकड़े रहना मेरे लिए असंभव भी है और अशास्त्रीय भी।” प्रतिदिन अन्य मुनि जन गुरु आतम जी से आगमिक वाचनाएं लेते, संशयों के विषय में पृच्छा करते; सुने और पढ़े हुए तत्वों की परावर्तना करते और सत्य गवेषणा के भाव को हृदय में धारण कर उनका बार-बार चिंतन करते । अंतत: धीरे-धीरे गुरुवर श्री आतम जी के साथ सोलह मुनि तैयार हो गये और उन्होंने गुरु आत्म को अपना प्रमुख बनाया।
जब गुरुजी ने संविग्न दीक्षा लेने के पहले संविग्न परंपरा का सभी दृष्टियों से सूक्ष्म निरीक्षण प्रारंभ किया तो उन्हें स्पष्ट प्रतीत हुआ कि वर्तमान में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा में यतियों का प्राचुर्य है; उनका प्रभाव अधिक है; संविग्न साधुओं की बहुत कमी है, और वर्तमान में संविग्न साधुओं में से अहमदाबाद में स्वयं के गुरुजी के साथ बिराजमान श्री मुक्तिविजयजी
सत्य पथानुगामी गुरु विजयानंद
२४९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org