Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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गुणों के रत्नाकर थे गुरु आतम
जिस पावन भारत की भूमि पर देवतागण भी जन्म लेने को आतुर रहते हैं, उसी पुण्य भू पर समय-समय पर अनेक महापुरुषों का अवतरण हुआ है, जिन्होंने निजी स्वार्थ व प्रलोभनों का समाज एवं मानव मात्र के कल्याण के लिए त्याग कर दिया । उन्मार्ग गामी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रस्थान करने की सतत प्रेरणा देना ही, इन महापुरुषों की जीवन यात्रा का उद्देश्य रहता है
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पंन्यास श्री जयन्त विजय
शताब्दी नायक, युग प्रवर्तक, न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ऐसे ही एक महापुरुष थे । वे एक शताब्दी पूर्व इसी भारत भूमि पर अवतरित हुए थे और उन्होंने संसार में कल्याण के मार्ग को प्रशस्त किया था ।
महापुरुष तीन प्रकार के होते हैं, प्रथम वे जो जन्म-जन्मांतर के प्रकर्ष पुण्य से यहाँ प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं । दूसरे वे, जो अपने पुरुषार्थ के द्वारा ख्यात होते हैं और तीसरे वे जो लोगों के द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं । श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वर जी महाराज में तीनों ही प्रकार की विशेषताएं विद्यमान थीं ।
पंजाब केसरी, युगवीर श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने उन्हें 'तपागच्छ गगन में दिनमणि सरीखे' कहा था। उनका जीवन संघर्षों की महागाथा है । वे अनगिनत कठिनाइयों में भी सत्य की खोज करते रहे। उन्होंने विकट परिस्थितियों से कभी हार नहीं मानी ।
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वे चाहते थे कि जैन धर्म का प्रचार समग्र विश्व में हो। इसके लिए उन्होंने श्री वीरचन्द राघवजी गांधी को जैन दर्शन का पारंगत बनाकर विदेशों में भेजा। उन्होंने जैन धर्म को यतिवाद उपद्रव से मुक्त किया। उनका जीवन तो अथाह गुणों का सागर था । वे गुणों के रत्नाकर थे ।
रत्नाकर थे गुरु आतम
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