Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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समय निरन्तर निकाल कर धर्म में बिताओगें तो तुम्हारे आत्मा का उद्धार होगा । अन्यथा अगर फुर्सत फुर्सत ही पुकारते रहोगे तो जब तक दम है तब तक फुर्सत न मिलेगी । और जब दम निकल जायगा तब तुम्हें कोई यह न पूछेगा कि, तुम्हें फुर्सत है ?
प्रसंगवश मुझे कहने दीजिए कि, माँडवी स्कूल विद्यार्थी मंडल के मैनेजर की मेहनत से विद्यार्थी मण्डल ने जो काम किया है उसे आप खुद देख चुके है । वे स्तुति के पात्र हैं। साथ ही अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि, हमें जिस सभ्यता को धारण करना चाहिए उस सभ्यता की हमें जरासी भी खबर नहीं है । पाँच दस हजार आदमी जमा हों तो भी शान्ति से सभी सुन सकें, हमें ऐसी शान्ति रखनी चाहिए उसकी जगह गड़बड़ करके न स्वयं सुनना न दूसरे को सुनने देना, क्या यह हमें शोभा देता हैं, मैं जानता हूँ कि दुनिया का ढंग जुदा है : “सत्य मिरची झूठ गुड” झूठी बातें गुड के समान मीठी लगती हैं, परन्तु सच्ची बातें मिरची के समान तीखी लगती है, सिर से पैर तक ज्वाल फूट उठती है ।
हम जिन महात्मा की जयन्ती मनाने के लिए यहाँ एकत्र हुए हैं । उन महात्मा में इससे उल्टा गुण था। वे "झूठ मिरची सत्य गुड़” इस सिद्धान्त को मानने वाले थे । इसी लिए आज जैसे अमुक अमुक सेठ के गुरु और अमुक सेठ के गुरु कहलाते है वैसे ही वे अमुक सेठ के गुरु नहीं कहलाते थे । कारण वे सेठियों के कथनानुसार चलना पसन्द नहीं करते थे । वे जानते थे कि उनकी गुरुता कैसे रह सकती है । हरेक श्रावक को धर्मोपदेश द्वारा अपने हुक्म में चला सकते थे । वे भली प्रकार समझते थे कि, साधु और श्रावकों के आपस में धर्म के सिवा दूसरा कोई संबंध नहीं है, इसी लिए उन्हें किसी की परवाह करने की आवश्यकता न थी । आज तो ऐसी दशा हो रही है कि सेठ का कहना गुरु को मानना ही चाहिए, सेठ चाहे गुरु का कहना माने या न माने । इसका मतलब सेठ गुरु होता है या गुरु, गुरु होता है । वह तुम खुद सोच लेना ।
सज्जनों ! स्वर्गीय महात्मा में किस तरह की बेपरवाही थी और कितना साहस था, इस बात का मैं तुम्हें दिग्दर्शन कराऊँगा । पं. हंसराजजी ने जिस " अज्ञान तिमिर भास्कर " की बात कही है, वह जब छपवाने के लिए प्रेस में दिया जाने वाला था, तब कई लोगों ने कहा :“महाराज ! आप साधु है । आप कानून नहीं जानते। इसके छपने से “ मानहानि का केस दायर होने की सम्भावना है।”
महाराज ने फर्माया :- “ भाई हम साधु हैं। हम धन नहीं रखते इसी लिए तुम्हें पुस्तक छपाने
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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