Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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है। गुरु अपने गच्छ और समुदाय की बढ़ोतरी के लिए भी अपने शिष्य को आचार्य पद दे सकता
इस प्रकार के कारणों से आचार्य पद देने से आचार्य पद का गौरव घट जाएगा और योग्यताहीन साधु इस पद का दुरुपयोग करेंगे। तब हर गली के उपाश्रय में आचार्य मिल जाएगा। आचार्य बनना एक फैशन हो जाएगा और इस तरह इस महिमावंत पद का अवमूल्यन हो जाएगा।
श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज को आचार्य पद के विषय में जो डर था वह आज सच हो गया है। आचार्य पद जैसे महा पद की गरिमा का जैसा ह्रास इस समय हो रहा है वह अभूतपूर्व है। अब आचार्य पद के लिए न योग्यता देखी जाती है न विद्वता परखी जाती है। हर समुदाय में आचार्यों की लाइन लगी हुई है। पालीताणा में आचार्य गोचरी की झोली लेकर गोचरी की क्यू में खड़े मिलते हैं। लड्डु की प्रभावना की तरह पदवियाँ बांटी जा रही है। हर साधु आचार्य पद लेने की होड़ में लगा हुआ है। थोड़ी सी प्रवचन क्षमता आते ही हर साधु आचार्य पद का सपना देखने लगता है। आचार्य बनते ही वह 'मैं आचार्य हूँ' के अहम से पीडित हो जाता है।
श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज उस समय के एक मात्र आचार्य थे फिर भी आचार्य पद का उन्हें कोई अहम नहीं था। वे आचार्य होने पर भी अपने से दीक्षा पर्याय में बड़े मुनि श्री मुक्ति विजयजी महाराज एवं मुनि श्री वृद्धिचंदजी महाराज को.वंदन करते थे।
यह थी उनकी साधुता जो वर्तमान समय के साधुओं और आचार्यों में सर्वथा अभाव दिखता है। वे साधुता के शिखर थे। शिखर को साहसिक ही छू पाते हैं।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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